Sansar Daily Current Affairs, 18 May 2021
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Steps taken to ensure availability of fertilizers to farmers at subsidized prices
संदर्भ
किसानों को रियायती मूल्यों पर उर्वरकों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाए गए हैं. भारत सरकार उर्वरक उत्पादकों/आयातकों के माध्यम से किसानों को रियायती कीमतों पर उर्वरक उपलब्ध करवा रही है. इनमें, यूरिया, फॉस्फेटिक और डाई-अमोनियम फॉस्फेट (DAP), म्यूरेट ऑफ पोटाश (MOP) और सिंगल सुपर फॉस्फेट (SSP) सहित फॉस्फेटिक व पोटाशिक (P&K) के 22 ग्रेड उर्वरक सम्मिलित हैं.
किसानों को यूरिया सांविधिक रूप से अधिसूचित अधिकतम खुदरा मूल्य (MRP) पर उपलब्ध कराया जा रहा है.
मुख्य तथ्य
- ज्ञातव्य है कि खेत पर पहुंचाये गए उर्वरक के मूल्य और किसान द्वारा भुगतान किए गए अधिकतम खुदरा मूल्य के बीच का अंतर सरकार द्वारा उर्वरक निर्माताओं /आयातकों को सब्सिडी के रूप में प्रदान किया जाता है.
- फॉस्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों के लिए, सरकार पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (Nutrient Based Subsidy: NBS) लागू कर रही है.
- NBS के तहत, फॉस्फेटिक और पोटासिक उर्वरकों के प्रत्येक ग्रेड पर (उनकी पोषक सामग्री के आधार पर) वार्षिक रूप से आधारित सब्सिडी की एक निश्चित राशि प्रदान की जाती है.
- मार्च 2018 से, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली आरंभ की गई है. इसमें खुदरा व्यापारियों द्वारा कृषकों को वास्तविक बिक्री के उपरांत ही कंपनियों को सब्सिडी का भुगतान किया जायेगा.
- प्रत्येक खुदरा विक्रेता के पास उर्वरक विभाग के ई-उर्वरक डीबीटी पोर्टल से जुड़ी एक पॉइंट-ऑफ-सेल (PoS) मशीन होती है.
- वर्ष 2020-21 में उर्वरक सब्सिडी 80,000 करोड़ रुपये से कुछ अधिक होने का अनुमान है.
उर्वरक सब्सिडी से संबंधित मुद्दे
- यूरिया का मूल्य नियंत्रण मुक्त नहीं होने के कारण यह सस्ता होता है. इसलिए, किसान अत्यधिक यूरिया का उपयोग करते हैं, जिससे मृदा के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न होता है.
- NBS योजना कम प्रभावी है, क्योंकि इसमें यूरिया शामिल नहीं है.
- “इंकार नहीं करने की नीति” (No denail policy): गैर-किसानों सहित कोई भी व्यक्ति कितनी भी मात्रा में उर्वरक खरीद सकता है. यह अनपेक्षित लाभार्थियों, जो वास्तविक या योग्य किसान नहीं हैं, को भी थोक में खरीद की अनुमति प्रदान करती है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Legislative Council
संदर्भ
हाल ही में आयोजित कैबिनेट की बैठक में लिए गए निर्णय के अनुसार, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा एक ‘विधान परिषद’ (Legislative Council) का गठन किया जाएगा.
इसके लिए कार्रवाई
- ‘विधान परिषद’ की स्थापना करने के लिए, विधानसभा में एक विधेयक पेश करना होता है और फिर इसके लिए राज्यपाल का अनुमोदन आवश्यक होती है.
- ज्ञातव्य है, कि इससे पहले, पश्चिम बंगाल में ‘उच्च सदन’ अर्थात ‘विधान परिषद’ की स्थापना वर्ष 1952 में की गई थी और वर्ष 1969 तक यह अस्तित्व में रहा.
विधान परिषद्
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 169 में राज्यों में विधान परिषद् के गठन का उल्लेख है.
- संविधान के अनुसार इस परिषद् के सदस्यों की कुल संख्या विधान सभा के कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई भाग से ज्यादा नहीं हो सकती, लेकिन कम-से-कम 40 सदस्य होना अनिवार्य है.
- यह एक स्थायी सदन है, जिसका कभी भी विघटन नहीं होता है.
- इसके प्रत्येक सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष होता है.
- प्रत्येक 2 वर्ष पर इसके एक-तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त हो जाते हैं.
- इस परिषद् के एक-तिहाई सदस्य स्थानीय संस्थाओं, नगरपालिका, जिला परिषद् आदि के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं. एक-तिहाई सदस्य विधान सभा के सदस्यों के द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्य राज्य के उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों एवं कॉलेजों में कम-से-कम तीन वर्ष का अनुभव रखने वाले अध्यापकों के द्वारा चुने जाते हैं. 1/12 सदस्य सम्बंधित राज्य के वैसे निवासी जो भारत के किसी विश्वविद्यालय से स्नातक हों एवं जिन्होंने स्नातक की उपाधि कम-से-कम तीन वर्ष पहले प्राप्त कर ली हो, के द्वारा चुने जाते हैं. शेष 1/6 सदस्य राज्यपाल के द्वारा कला, साहित्य, विज्ञान, सहकारिता तथा समाज सेवा के क्षेत्र में राज्य के ख्याति प्राप्त व्यक्तियों से मनोनीत किये जाते हैं.
- विधान परिषद् का अधिवेशन आरम्भ होने के लिए इसके कुल सदस्यों का 1/10 भाग या कम-से-कम 10 सदस्य (जो भी ज्यादा हों) का होना आवश्यक है.
- इस परिषद् के सदस्यों को सदन में वक्तव्य देने की पूर्ण स्वतंत्रता है एवं उनके द्वारा दिए गये किसी भी वक्तव्य के लिए किसी न्यायालय में किसी भी प्रकार का मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है.
- इस परिषद् के सदस्यों को सदन का सत्र शुरू होने के 40 दिन पूर्व एवं सत्र समाप्त होने के 40 दिन के बाद के बीच में दीवानी मुकदमों के लिए बंदी नहीं बनाया जा सकता है.
- विधान परिषद् का सत्र राज्यपाल द्वारा बुलाया जाता है. किसी एक वर्ष में इसका कम-से-कम दो सत्र होना आवश्यक है एवं एक सत्र के अंतिम दिन तथा दूसरे सत्र के प्रथम दिन के बीच 6 महीने से ज्यादा का समयांतर नहीं होना चाहिए.
विधान परिषद् सदस्य बनने की योग्यताएँ
- वह भारत का नागरिक हो एवं कम-से-कम 30 वर्ष के उम्र का हो.
- उसका नाम सम्बंधित राज्य की मतदाता सूची में दर्ज हो.
- वह भारत या राज्य सरकार के किसी लाभ का पद धारण नहीं किये हुए हो.
- वह पागल या दिवालिया न हो.
- चुनाव सम्बन्धी किसी अपराध के कारण उसे इस परिषद् के सदस्य चुने जाने के अधिकार से वंचित न कर दिया हो.
विधान परिषद् के कार्य
इस परिषद् के निम्न प्रकार के कार्य हैं –
वित्तीय कार्य
राज्य के वित्त मामलों की वास्तविक शक्तियाँ विधान सभा के पास होती है. कोई भी धन विधेयक पहले विधान सभा में पेश किया जाता है. विधान सभा में पास होने के बाद धन विधेयक को विधान परिषद् में पेश किया जाता है. यह परिषद् इस विधेयक को 14 दिनों तक रोक सकती है. यदि 14 दिनों की अवधि तक यह परिषद् सम्बंधित विधेयक पर कोई कार्रवाई न करे या कोई संशोधन की सिफारिश करे तो सम्बंधित विधान सभा को यह अधिकार है कि उस संशोधन को माने या न माने एवं विधेयक दोनों सदन से पारित समझा जाता है.
विधायी कार्य
इस परिषद् में साधारण विधेयकों को पेश किया जा सकता है लेकिन विधेयक को राज्यपाल के पास भेजे जाने से पहले आवश्यक है कि उसे विधान सभा से पारित किया जाए. अगर कोई विधेयक विधान सभा से पारित किया जा चुका हो परन्तु विधान परिषद् में उस पर कोई गतिरोध हो तो यह परिषद् उस विधेयक को नामंजूर कर सकती है, बदल सकती है या तीन महीने तक रोक कर रख सकती है. इसके बाद यदि विधान सभा इस विधेयक को विधान परिषद् के किये गये संशोधन के साथ या उसके बिना अगर पारित कर देती है तो विधेयक दुबारा इस परिषद् के पास भेजा जाता है. इस बार यदि यह परिषद् विधेयक को पुनः मंजूरी न दे या ज्यादा से ज्यादा एक महीने तक रोक कर रखे तब भी यह विधेयक दोनों सदनों से पारित समझा जाएगा.
संवैधानिक अधिकार
भारत के संविधान के किसी संशोधन में विधान परिषद् विधान सभा के साथ मिलकर भाग लेती है अगर वह संशोधन विधेयक सम्बंधित राज्य पास स्वीकृति के लिए भेजा जाता हो. राज्य का मन्त्रिमंडल केवल विधान सभा के प्रति उत्तरदायी होता है. यह परिषद् मन्त्रिमण्डल को अविश्वास प्रस्ताव द्वारा नहीं हटा सकती है.
विधान परिषद् के सभापति एवं उप-सभापति
विधान परिषद् के सभापति एवं उप-सभापति का चुनाव सम्बंधित विधान परिषद् के सदस्यों द्वारा किया जाता है. सभापति या उप-सभापति को सदस्यों के द्वारा कम-से-कम 14 दिन पूर्व सूचना देकर प्रस्ताव लाकर बहुमत के द्वारा हटाया जा सकता है. इनका वेतन राज्य के संचित निधि कोष से दिया जाता है.
किन-किन राज्यों में विधान परिषदें हैं?
आंध्र प्रदेश के अलावा, पांच अन्य राज्यों में विधान परिषदें हैं – बिहार (58), कर्नाटक (75), महाराष्ट्र (78), तेलंगाना (40), उत्तर प्रदेश (100). जम्मू-कश्मीर में भी एक विधान परिषद् हुआ करती थी, किन्तु उस राज्य के संघीय राज्य बन जाने के कारण वह परिषद् समाप्त हो चुकी है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Collegium System
संदर्भ
हाल ही में, ‘भारत निर्वाचन आयोग’ (Election Commission of India- ECI) के सदस्यों की नियुक्ति करने हेतु एक स्वतंत्र कॉलेजियम का गठन की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी.
यह याचिका ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा दायर की गई.
एक स्वतंत्र कॉलेजियम की आवश्यकता
याचिका में कहा गया है, कि पूर्णतयः कार्यपालिका द्वारा की जाने वाली, निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति हेतु वर्तमान प्रक्रिया, संविधान के अनुच्छेद 324 (2) के साथ असंगत है.
- निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति पर कार्यपालिका द्वारा ‘अपनी पसंद के हिसाब से चुनाव करना’ (pick and choose), निर्वाचन आयोग के उस आधार का ही उल्लंघन करती है, जिस पर इसका गठन किया गया था. और,
- इस प्रक्रिया से, निर्वाचन आयोग, कार्यपालिका की मात्र एक शाखा बन कर रह जाता है.
समय की माँग
लोकतंत्र, हमारे संविधान की मूल संरचना का एक पहलू है, और स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने तथा हमारे देश में स्वस्थ लोकतंत्र बनाए रखने के लिए, निर्वाचन आयोग को राजनीतिक और / या कार्यकारी हस्तक्षेप से पृथक होना चाहिए.
इस संदर्भ में विभिन्न विशेषज्ञ समितियों द्वारा की गई संस्तुतियाँ
- विधि आयोग की 255वीं रिपोर्ट में की गई अनुशंसा के अनुसार, सभी निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति, प्रधान मंत्री, लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश से मिलकर बनी, एक तीन-सदस्यीय कॉलेजियम या चयन समिति के परामर्श से राष्ट्रपति द्वारा की जानी चाहिए.
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा, जनवरी 2007 में प्रस्तुत चौथी रिपोर्ट में एक तटस्थ और स्वतंत्र कॉलेजियम के गठन की भी सिफारिश की गई थी. प्रधान मंत्री की अध्यक्षता वाले इस कॉलेजियम में सदस्य की रूप में, लोक सभा अध्यक्ष, लोक सभा में नेता-प्रतिपक्ष, विधि मंत्री और राज्यसभा के उपसभापति सम्मिलित होने चाहिए.
- डॉ. दिनेश गोस्वामी समिति ने मई 1990 में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में, निर्वाचन आयोग में नियुक्ति के लिए, भारत के मुख्य न्यायाधीश और विपक्ष के नेता जैसे तटस्थ अधिकारियों के साथ प्रभावी परामर्श किए जाने की सिफारिश की थी.
- न्यायमूर्ति तारकुंडे समिति ने 1975 की अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की, कि निर्वाचन आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता-प्रतिपक्ष और भारत के मुख्य न्यायाधीश से मिलकर बनी एक समिति के परामर्श से नियुक्त किया जाना चाहिए.
कॉलेजियम व्यवस्था क्या है?
- उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया के सम्बन्ध में संविधान में कोई व्यवस्था नहीं दी गई है.
- अतः यह कार्य शुरू में सरकार द्वारा ही अपने विवेक से किया जाया करता था.
- परन्तु 1990 के दशक में सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में हस्तक्षेप करना शुरू किया और एक के बाद एक कानूनी व्यवस्थाएँ दीं. इन व्यवस्थाओं के आलोक में धीरे-धीरे नियुक्ति की एक नई व्यवस्था उभर के सामने आई. इसके अंतर्गत जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की अवधारणा सामने आई.
- सर्वोच्च न्यायालय में भारत के मुख्य न्यायाधीश तथा वरिष्ठतम न्यायाधीश कॉलेजियम के सदस्य होते हैं.
- ये कॉलेजियम ही उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के जजों की नियुक्ति के लिए नाम चुनती है और फिर अपनी अनुशंसा सरकार को भेजती है.
- सरकार इन नामों से ही न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए कार्रवाई करती है.
- कॉलेजियम की अनुशंसाराष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी नहीं है. यदि राष्ट्रपति किसी अनुशंसा को निरस्त करते हैं तो वह वापस कॉलेजियम के पास लौट जाती है. परन्तु यदि कॉलेजियम अपनी अनुशंसा को दुहराते हुए उसे फिर से राष्ट्रपति को भेज देती है तो राष्ट्रपति को उस अनुशंसा को मानना पड़ता है.
कॉलेजियम व्यवस्था (COLLEGIUM SYSTEM) कैसे काम करती है?
- कॉलेजियम अपनी ओर से वकीलों और जजों के नामों की केन्द्रीय सरकार को अनुशंसा भेजता है. इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपनी ओर से कॉलेजियम को कुछ नाम प्रस्तावित करती है.
- कॉलेजियम द्वारा भेजे गये नामों की केंद्र सरकार तथ्यात्मक जाँच करती है और फिर सम्बंधित फाइल को कॉलेजियम को लौटा देती है.
- तत्पश्चात् कॉलेजियम केंद्र सरकार द्वारा भेजे गये नाम और सुझावों पर विचार करता है और फिर फाइल को अंतिम अनुमोदन के लिए सरकार को फिर से भेज देता है. जब कॉलेजियम फिर से उसी नाम को दुबारा भेजता है तो सरकार को उस नाम पर अनुमोदन देना पड़ता है. किन्तु सरकार कब अब अपना अनुमोदन देगी इसके लिए कोईसमय-सीमा नहीं है. यही कारण है कि जजों की नियुक्ति में लम्बा समय लग जाता है.
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : World Agri-Tourism Day – 2021
संदर्भ
हाल ही में 16 मई,2021 को विश्व कृषि-पर्यटन दिवस (World Agri-Tourism Day) मनाया गया है.
विश्व कृषि-पर्यटन दिवस (World Agri-Tourism Day)
- विश्व कृषि-पर्यटन दिवस (World Agri-Tourism Day), हर वर्ष 16 मई को मनाया जाता है.
- वर्ष 2021 में इस दिवस का विषय (theme) ‘कृषि पर्यटन के माध्यम से ग्रामीण महिला सतत् उद्यमिता के अवसर’ (Rural Women Sustainable Entrepreneurship Opportunities through Agri Tourism) है.
- 16 मई, 2021 को देश भर में 14वें विश्व कृषि-पर्यटन दिवस के अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है.
‘कृषि पर्यटन’ क्या है?
- कृषि पर्यटन का आशय पर्यटन के उस रूप से है, जिसमें ग्रामीण संस्कृति को पर्यटक आकर्षण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह पारिस्थितिकी पर्यटन के समान ही होता है, यद्यपि इसमें प्राकृतिक परिदृश्य के बजाय सांस्कृतिक परिदृश्य को शामिल किया जाता है.
- यह पारिस्थितिकी पर्यटन के समान ही होता है, यद्यपि इसमें प्राकृतिक परिदृश्य के बजाय सांस्कृतिक परिदृश्य को शामिल किया जाता है.
- कृषि-पर्यटन में शहरी पर्यटक किसानों के घर में रहते हैं. अपने प्रवास के दौरान वे खेती की गतिविधियों, ट्रैक्टर की सवारी, बैलगाड़ी की सवारी में संलग्न होते हैं. इसके अलावा, वे लोक गीतों और नृत्यों का आनंद लेते हैं. वे ताजा कृषि उपज खरीदते हैं. बदले में, किसान पर्यटकों को आवास प्रदान करते हैं और उनके प्रवास के दौरान उनका मनोरंजन करते हैं.
‘कृषि पर्यटन’ का उद्देश्य व लाभ
- विश्व कृषि-पर्यटन दिवस का लक्ष्य कृषि और पर्यटन क्षेत्र को एकीकृत कर किसानों की आय में बढ़ोतरी करना है.
- विशेषज्ञों की मानें तो कृषि पर्यटन में कृषि आय बढ़ाने और एक गतिशील, विविध ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास को प्रोत्साहित करने की महत्त्वपूर्ण क्षमता है.
- कई विकसित देशों में कृषि पर्यटन, पर्यटन उद्योग का एक अभिन्न अंग बन गया है. इसे कृषि तथा संबद्ध व्यवसाय के मूल्यवर्द्धन के रूप में देखा जा सकता है, जो किसानों और ग्रामीण समुदायों को ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं प्राकृतिक संसाधनों की बहु-क्रियाशील प्रकृति के इष्टतम लाभों का उपयोग करने में सक्षम बनाता है.
- उल्लेखनीय है कि भारत में महाराष्ट्र राज्य कृषि पर्यटन को विकसित करने और बढ़ावा देने वाला अग्रणी राज्य है. महाराष्ट्र में वर्ष 2005 में कृषि-पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये कृषि पर्यटन विकास निगम (ATDC) का गठन किया गया था.
Prelims Vishesh
Active Pharmaceutical Ingredients – API :-
- ऐसी सूचना है कि भारत ने चीन से उन APIs की कीमतों को स्थिर करने का आग्रह किया है, जिनका उपयोग कोविड-19 से सम्बंधित दवाएँ बनाने में किया जाता है.
- सक्रिय औषधि सामग्री (API) का प्रयोग टेबलेट, कैप्सूल और सिरप बनाने के के लिए “कच्चे माल” की तरह किया जाता है. किसी भी दवाई के बनने में API की मुख्य भूमिका होती है और इसी API के लिए भारतीय कंपनियाँ बहुत हद तक चीन पर निर्भर हैं.
- सक्रिय औषधि सामग्री (API) किसी दवा का वह भाग है जो रोग को ठीक करने की क्षमता रखता है. आपने कई बार दवाइयाँ खरीदते समय किसी टैबलेट पर लिखा देखा होगा – Dolo 650 (Paracetamol). इसका अर्थ यह होता है कि इस टैबलेट में 650mg सक्रिय औषधि सामग्री है जो आपके ज्वर को ठीक करने में सहायता पहुंचाएगी. दवाई बनाने वाली कंपनियों में भी दो तरह की कंपनियाँ होती है. अधिकांश कंपनियां सक्रिय औषधि सामग्री बनाती हैं और इन दवाइयों को लेकर दूसरी कंपनियाँ इनका फार्मूलेशन तैयार करने का काम करती हैं.
National Crisis Management Committee (NCMC) :-
- हाल ही में, आसन्न चक्रवात की स्थिति की समीक्षा करने के लिए NCMC की बैठक आयोजित की गई थी.
- NCMC को एक प्राकृतिक आपदा के दौरान राहत उपायों और कार्यवाहियों के प्रभावी समन्वयन तथा कार्यान्वयन के लिए स्थापित किया गया था.
- यह गृह मंत्रालय के अधीन कार्य करती है तथा प्राकृतिक आपदा प्रबंधन प्रणाली का एक अभिन्न अंग है.
- NCMC आवश्यक समझे जाने पर संकट प्रबंधन समूह को दिशा-निर्देश भी प्रदान करती है।
- इसकी अध्यक्षता मंत्रिमंडलीय सचिव द्वारा की जाती है तथा सभी संबंधित मंत्रालयों / विभागों के सचिवों के साथ-साथ संबंधित संगठन समिति के सदस्य होते हैं.
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