Sansar Daily Current Affairs, 19 April 2019
GS Paper 2 Source: Business Standard
Topic : Line of Control
संदर्भ
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने हाल ही में आदेश दिया है कि जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) के आर-पार होने वाले व्यापार को स्थगित कर दिया जाए. वास्तव में सरकार को सूचना मिल रही थी कि इस व्यापार का दुरुपयोग पाकिस्तान के कुछ लोग अवैध हथियार, नारकोटिक पदार्थ और जाली नोट आदि भारत में प्रवेश कराने के लिए कर रहे थे.
नियंत्रण रेखा के आर-पार व्यापार
- इस व्यापार का उद्देश्य है सामान्य उपयोग की वस्तुओं का व्यापार जिससे नियंत्रण रेखा के दोनों ओर रहने वाले स्थानीय लोगों को लाभ पहुँचे.
- यह व्यापार नियंत्रण रेखा पर दो स्थानों से होकर होता है. पहला स्थान बारामूला जिले के अन्दर उरी के पास स्थित सलामाबाद और दूसरा स्थान पुंछ जिले का चक्कन-दा-बाग़ है.
- यह व्यापार सप्ताह में चार दिन होता है.
- यह व्यापार वस्तु-विनियम प्रणाली से होता है और इसपर शून्य चुंगी लगती है.
सीमा नियंत्रण रेखा पर व्यापार रोका क्यों गया?
- इस व्यापार का बड़े पैमाने पर दुरूपयोग हो रहा था. पता चला था कि इस व्यापार के माध्यम से कई विदेशी देशों और अन्य क्षेत्रों से भी माल आने लगा था.
- राष्ट्र-विरोधी लोग इस मार्ग का दुरूपयोग हवाला का धन, नशीली दवाओं और हथियारों को भारत में लाने के लिए कर रहे थे.
- ज्ञात हुआ कि इस व्यापार में संलग्न कई लोग प्रतिबंधित आतंकी संगठनों और अलगाववादी संस्थाओं से जुड़े हुए थे.
- इस व्यापार का लाभ उठाकर भारत के कुछ लोग पाकिस्तान चले गये और वहाँ जाकर सैन्य संगठनों में शामिल हो गये. उन्होंने वहाँ जाकर व्यापारिक प्रतिष्ठान स्थापित किये, परन्तु व्यापार पर सैन्य संगठनों का ही नियंत्रण होता था.
LoC क्या है?
- पहले नियंत्रण रेखा (LoC) को युद्ध-विराम रेखा कहा जाता था. आगे चलकर 3 जुलाई, 1972 को हुए शिमला समझौते के पश्चात् उसका नाम बदलकर नियंत्रण रेखा कर दिया गया.
- नियंत्रण रेखा की एक ओर जम्मू है जो भारत द्वारा नियंत्रित जम्मू-कश्मीर का अंग है तो दूसरी ओर पाकिस्तान के आधिपत्य वाला कश्मीर और गिलगित-बल्तिस्तान है. इस रेखा का सबसे उत्तरी बिंदु NJ9842 कहा जाता है.
- चीन द्वारा नियंत्रित कश्मीर के अक्साई चीन नामक हिस्से और भारत के नियंत्रण वाले जम्मू-कश्मीर राज्य के बीच में एक और युद्ध-विराम रेखा है.
GS Paper 2 Source: Economic Times
Topic : United Nations Mission in South Sudan
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र दक्षिणी सुडान अभियान (UNMISS) में अपनी सेवा देने वाले 150 शान्तिरक्षकों (peacekeepers) को उनकी समर्पित सेवा भावना और बलिदान के लिए मेडल दिए गये हैं.
संयुक्त राष्ट्र दक्षिणी सुडान अभियान क्या है?
ज्ञातव्य है कि 9 जुलाई, 2011 को दक्षिणी सुडान विश्व के सबसे नए देश के रूप में अस्तित्व में आया. इसके पहले वहाँ 2005 में व्यापक शान्ति समझौता (Comprehensive Peace Agreement – CPA) हस्ताक्षरित हुआ था और तत्पश्चात् छह वर्षों तक शान्ति प्रक्रिया चालू रही.
परन्तु सुरक्षा परिषद् का मंतव्य था कि दक्षिणी सुडान में जो स्थिति है वह अंतर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा पर एक खतरा बनी हुई है. अतः सुरक्षा परिषद् ने एक संयुक्त राष्ट्र अभियान गठित किया जिससे कि वहाँ शान्ति और सुरक्षा सुदृढ़ हो सके और विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ बन सकें.
दिसम्बर, 2013 में दक्षिणी सुडान में लोगों की सुरक्षा और मानवाधिकार पर खतरा उपस्थित हो गया और मानवीय सहायता मुहैया करने की आवश्यकता आन पड़ी. इसलिए सुरक्षा परिषद् ने UNMISS को फिर से आपसी लड़ाई बंद करने के विषय में किये गये समझौते को कार्यान्वित करने हेतु पुनः सक्रिय कर दिया.
UNMISS के उद्देश्य
- शान्ति को सुदृढ़ करना और इस प्रकार देश के निर्माण और आर्थिक विकास के लिए वातावरण तैयार करना.
- दक्षिणी सुडान गणतंत्र की सरकार को संघर्ष की रोकथाम करने और नागरिकों को सुरक्षा देने की जिम्मेवारी पूरी करने में सहायता देना.
- दक्षिणी गणतंत्र की सरकार को सहायता देकर उसे सुरक्षा देने, विधि व्यवस्था बनाने और न्याय व्यवस्था को मजबूत करने के लिए सक्षम बनाना.
शान्तिरक्षा क्या है?
- जिन देशों में अंदरूनी संघर्ष चल रहा है, वहाँ शान्ति बनाने के लिए संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षक सैन्य बल भेजा करता है. इस कार्य से बहुधा कई देशों में गृह युद्ध समाप्त हुए हैं और शान्ति स्थापित हुई है.
- शान्तिरक्षक सैन्य बल में कई देशों से सैनिक लिए जाते हैं और उसकी वैधानिक मान्यता होती है.
- संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षक (UN peacekeepers) अशांत देशों को संघर्ष से शान्ति तक पहुँचाने में सहयोग करते हैं.
- वर्तमान में 4 महादेशों में 14 संयुक्त राष्ट्र शान्तिरक्षण की कार्रवाई चल रही है.
- शान्तिरक्षक का काम तीन मूलभूत सिद्धांतों से चलता है – सम्बंधित पक्षकारों की सहमति, निष्पक्षता और शक्ति का प्रयोग उसी समय करना जब सैन्य बल की जान पर खतरा हो.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Voting rights of undertrials and convicts
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायालय के पास एक याचिका विचाराधीन है जिसमें एक चुनावी कानून पर प्रश्न खड़ा किया गया है जो विचाराधीन और दण्डित अपराधियों को मत का अधिकार नहीं देता है.
इस विषय में कानून क्या कहता है?
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अनुभाग 62(5) के अनुसार जो व्यक्ति पुलिस की संरक्षा में है और जो सजा के बाद कैद भुगत रहे हैं, वे वोट नहीं दे सकते. जो कैदी विचाराधीन हैं उनको भी यह अधिकार नहीं दिया गया है चाहे उनके नाम मतदाता सूची में हों भी तो. मात्र वे ही व्यक्ति जिनको प्रतिषेधात्म्क रूप से बंदी बनाया गया है मत दे सकते हैं और वह भी डाक मत से.
सर्वोच्च न्यायालय का मंतव्य क्या रहा है?
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार मंतव्य दिया था कि यदि कोई व्यक्ति कारागार में है तो वह अपने आचरण के चलते वहाँ है, अतः वह अन्य लोगों की भाँति अधिकार का दावा नहीं कर सकता है.
उन्हें मताधिकार क्यों मिले?
- बंदियों को मत देने से रोकते समय इस पर ध्यान नहीं दिया गया है कि उनके अपराध की गुरुता क्या है और उन्हें कितनी अवधि की सजा मिली है. साथ ही दंड प्राप्त बंदियों, विचाराधीनों और पुलिस संरक्षा के अधीन व्यक्तियों में कोई अंतर नहीं किया गया है.
- जब तक कानून किसी का दोष सिद्ध नहीं करता है, तब तक वह व्यक्ति निर्दोष माना जाना चाहिए.
- बंदियों के मताधिकार से सम्बंधित वर्तमान व्यवस्था मनमानी है और समानता के अधिकार से सम्बंधित संविधान की धारा 326 का उल्लंघन भी करती है.
अन्य देशों में क्या होता है?
- यूरोप में कई देश ऐसे हैं जहाँ कैदी को वोट देने दिया जाता है – स्विट्ज़रलैंड, फिनलैंड, नॉर्वे, डेनमार्क, आयरलैंड, बाल्टिक देश और स्पेन.
- रोमानिया, आइसलैंड, नीदरलैंड, स्लोवाकिया, लक्जमबर्ग, साइप्रस और जर्मनी जैसे यूरोप के कुछ ऐसे देश हैं जिन्होंने मध्यम मार्ग अपनाते हुए कैदियों को मताधिकार दिया है परन्तु सजा की मात्रा क्या है जैसी कुछ शर्तें लगा दी हैं.
- बल्गेरिया में जिस बंदी को दस वर्ष से कम की सजा मिली है वह वोट दे सकता है. यह अवधि ऑस्ट्रेलिया में पाँच वर्ष है.
आगे की राह
आज आपराधिक न्याय व्यवस्था में सुधार लाने की आवश्यकता है. कैदियों को मताधिकार देना भी ऐसा ही एक सुधार हो सकता है. यह आवश्यक भी है क्योंकि मताधिकार से वंचित करने का एक बुरा इतिहास रहा है जिसमें अमेरिका और कनाडा जैसे देशों ने मूल निवासियों के प्रति नस्ली भेदभाव और उत्पीड़न किये हैं.
न्याय प्रणाली का यह एक मूल सिद्धांत है कि किसी को भी तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक उसका दोष सिद्ध नहीं होता है. यदि इस सिद्धांत पर चल कर कैदियों को मताधिकार मिल जाएगा तो उनको भविष्य में समाज से जोड़ने और फिर से स्थापित करने में सहायता मिलेगी.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Genome sequencing to map population diversity
संदर्भ
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) पूरे भारत वर्ष से लगभग 1,000 ग्रामीण युवाओं के जीनोमों को क्रमबद्ध करेगा जिससे कि देश की जनसंख्या का एक आनुवांशिक मानचित्र तैयार हो सके. इस परियोजना का उद्देश्य छात्रों को जीनोमिक्स की उपादेयता के विषय में जागरूक करना है.
परियोजना के मुख्य तत्त्व
- भारत सरकार पहले से एक वृहद् कार्यक्रम चला रही है जिसमें कम से कम दस हजार भारतीय जीनोमों को क्रमबद्ध किया जाना है. वर्तमान परियोजना उसी वृहद् परियोजना का एक अंश है.
- इस परियोजना के लिए जिन व्यक्तियों से जीनोमों के नमूने जमा किये जा रहे हैं वे देश की जनसांख्यिक विविधता को प्रदर्शित करते हैं.
- अधिकांश जीनोम महाविद्यालय के उन छात्र-छात्राओं से लिए जा रहे हैं जो जीव विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं.
- परियोजना का लक्ष्य है अधिक से अधिक महाविद्यालय के छात्रों तक पहुंचना और उन्हें जीनोमिक्स के सम्बन्ध में शिक्षित करना. इस परियोजना के फलस्वरूप वे अपनी जीनोम से प्रकट हुई सूचना के बारे में जान सकेंगे.
जीनोम को क्रमबद्ध करना आवश्यक क्यों?
मानव जीनोम को सबसे पहले 2003 में क्रमबद्ध किया गया था. तब से वैज्ञानिकों को यह पता है कि हर व्यक्ति की आनुवांशिक बनावट अनूठी होती है और उसका रोग से सम्बन्ध होता है. सिस्टिक फाब्रोसिस और थेलसिमिया जैसे लगभग 10,000 रोग इसलिए होते हैं कि कोई एक अकेला जीव ठीक से काम नहीं कर रहा होता है. जीनोम को क्रमबद्ध करने से यह सिद्ध हुआ है कि कैंसर भी कुछ अंगों का रोग न होकर आनुवांशिक भी हो सकता है.
परियोजना का माहात्म्य
विश्व-भर में कई देशों ने जीनोम को क्रमबद्ध करने के लिए अपने नागरिकों से नमूने लिए हैं जिससे कि उनकी अनूठी आनुवांशिक विशेषताओं तथा किसी रोग के प्रति उनमें झुकाव तथा प्रतिरोध का निर्धारण किया जा सके. वर्तमान परियोजना के माध्यम से भारत में पहली बार यहाँ के कुछ निवासियों के नमूने लिए जा रहे हैं.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Profit Attribution to Permanent Establishment(PE) in India
संदर्भ
भारत में स्थायी कार्यालय को लाभ-वितरण (Profit Attribution to Permanent Establishment – PE) के विषय में तैयार एक प्रतिवेदन पर केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (CBDT) ने सभी हितधारकों से मंतव्य माँगा है.
पृष्ठभूमि
दोहरा कराधान निवारण समझौते (Double Tax Avoidance Agreement – DTAA) की धारा 7 के अधीन स्थायी कार्यालयों को लाभ वितरित करने विषयक वर्तमान योजना की जाँच करने तथा आयकर नियम 1962 के नियम 10 में परिवर्तन लाने के बारे में सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन हुआ था जिसका मुख्य उद्देश्य कराधान व्यवस्था में अधिक स्पष्टता तथा पूर्वानुमान की सुविधा लाना था एवं स्थायी कार्यालयों को लाभ वितरित करने से जुड़ी समस्याओं का समाधान करना था. इस समिति ने अपना प्रतिवेदन जमा कर दिया है और सरकार ने निर्णय लिया है कि इस पर हितधारकों और जनसामान्य से मंतव्य प्राप्त किया जाए.
स्थायी कार्यालयों की प्रासंगिकता
सामान्यतः यह होता है कि विदेशी कंपनियाँ दोहरा कराधान निवारण संधियों के अधीन कर में छूट पाते हैं और अपने देश में ही कर चुकाते हैं. परन्तु यदि उनका स्थायी कार्यालय भारत में है तो उनको चाहिए कि वे भारत में प्राप्त की गई आय के लिए कर चुकाएँ. इस प्रकार, स्थायी कार्यालय के कारण विदेशी कंपनियों को भारत में होने वाली आय कर-योग्य हो जाती है.
स्थायी कार्यालय क्या है?
भारत में स्थायी कार्यालय (permanent establishment) व्यवसाय के उस निश्चित स्थल को कहते हैं जहाँ कोई विदेशी उपक्रम पूर्णतः अथवा आंशिक रूप से भारत में व्यवसाय कर रहा होता है. यह कार्यालय एक शाखा कार्यालय हो सकता है अथवा प्रबंधन का स्थल हो सकता है. कारखाने, गोदाम, कार्यशाला आदि भी स्थायी कार्यालय के अन्दर आते हैं. परन्तु प्रत्येक कर संधि में स्थायी कार्यालय की परिभाषा एक समान नहीं होती.
लागू होने वाले प्रावधान
अनिवासियों पर भारत में जो कर लगता है वह 1961 के आयकर अधिनियम के प्रावधानों तथा दोहरा कराधान निवारण समझौतों के अनुसार लगाया जाता है. दोहरा कराधान निवारण समझौते केंद्र सरकार द्वारा आयकर अधिनियम के अनुभाग 90 अथवा 90A के अंतर्गत तैयार किये जाते हैं अथवा अंगीकृत किये जाते हैं. आयकर अधिनियम के अंतर्गत अनिवासी भारतीयों पर कर लगाने के लिए कुछ मानक निर्धारित हैं. यदि किसी अनिवासी भारतीय को व्यवसाय से होने वाली आय इन मानकों पर खरी उतरती है तो सरकार उसपर कर लगा सकती है. सम्बन्धित कर संधियों में भी ऐसी आय पर कर लगाने के लिए कुछ मानक निर्धारित हैं.
Prelims Vishesh
Drugs Technical Advisory Board (DTAB) :-
- औषधि तकनीकी परामर्शी बोर्ड (DTAB) देश का वह सर्वोच्च वैधानिक निर्णायक निकाय है जो औषधियों से सम्बंधित तकनीकी विषयों पर परामर्श देता है.
- इसका गठन औषधि एवं प्रसाधन अधिनयम, 1940 के तहत हुआ है.
- यह बोर्ड केंद्र के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीनस्थ संगठन – केन्द्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन – का एक अंग है.
Bubble boy disease :–
- अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि उन्होंने HIV का उपयोग कर एक ऐसी जीन चिकित्सा तैयार की है जिससे उन्हें आठ शिशुओं को बबल बॉय रोग से मुक्ति दिलाने में सहायता मिली है.
- बबल बॉय एक ऐसा रोग है जो अधिकांशतः लड़कों को होता है. इस रोग में बच्चे को कई प्रतिरक्षा से सम्बंधित कमियाँ एक साथ हो जाती हैं. ऐसे बच्चों को एक बुलबुले के अन्दर रहना पड़ता है जिससे कि वे कीटाणुओं के सम्पर्क में न आ सकें क्योंकि उनमें प्रतिरोध की क्षमता अत्यंत कम होती है.
- यह रोग IL2RG नामक X क्रोमोजोम में स्थित जीन के रूपांतरण से होता है.
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