Sansar Daily Current Affairs, 19 June 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Operation sunrise and Kaladan Project
ऑपरेशन सनराइज
- ऑपरेशन सनराइज वह सामरिक नीति है जिसका उद्देश्य भारत और म्यांमार दोनों को क्षति पहुँचाने वाले सैन्य गुटों पर वार करना है क्योंकि विशाल कलादान परियोजना को कुछ सैन्य गुटों से खतरा था.
- यह ऑपरेशन भारत और म्यांमार दोनों देशों की सेनाओं ने संयुक्त रूप से किया था.
- इस ऑपरेशन में जिन गुटों को क्षति पहुँचाई गई थी, वे हैं – NCSN (K), कामतापुर लिबरेशन आर्गेनाईजेशन (KLO), असम का यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट तथा नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोरोलैंड (NDFB).
कलादान परियोजना क्या है?
- कलादान परियोजना म्यांमार के सितवे बंदरगाह को भारत-म्यांमार सीमा से जोड़ती है.
- यह परियोजना भारत और म्यांमार दोनों के द्वारा संयुक्त रूप से आरम्भ की गई थी. इसका उद्देश्य भारत के पूर्वी बंदरगाहों से म्यांमार तक और उसके पश्चात् म्यांमार होते हुए भारत के पूर्वोत्तर भागों तक माल-ढुलाई का प्रबंधन करना है.
- इस परियोजना से आशा है कि नए समुद्री मार्ग खुलेंगे तथा पूर्वोत्तर राज्यों में आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही भारत और म्यांमार के बीच में आर्थिक, वाणिज्यिक एवं सामरिक सम्बन्ध प्रगाढ़ होंगे.
- यह परियोजना कलकत्ता से सितवे तक की दूरी को 1,328 किमी. तक घटा देगी और “मुर्गी की गर्दन” की ओर जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.
सितवे कहाँ है?
सितवे (Sittwe) दक्षिणी-पश्चिमी म्यांमार में स्थित रखाइन राज्य की राजधानी है. यह कलादान नदी के मुहाने पर स्थित है, जो बहते हुए मिज़ोरम में प्रवेश कर जाती है.
भारत के लिए सितवे का महत्त्व
भारत की वर्षों से यह चेष्टा रही है कि उसे अपने चारों ओर से भूमि से घिरे हुए पूर्वोत्तर राज्यों तक माल पहुँचाने के लिए बांग्लादेश से होकर कोई रास्ता मिल जाए. अभी तो यह स्थिति है कि वहाँ माल पहुँचाने के लिए पश्चिम बंगाल के उस उत्तरी भाग से होकर जाना पड़ता है जो भूटान और बांग्लादेश के बीच स्थित है और जिसे “मुर्गी की गर्दन” भी कहते हैं. यदि सितवे होकर रास्ता मिल जाए तो कलकत्ता से मिजोरम एवं आगे की दूरी और खर्च दोनों में पर्याप्त कमी आ जायेगी.
GS Paper 2 Source: Indian Express
Topic : Brazil’s slavery ‘dirty list’
संदर्भ
ब्राज़ील में कई बड़े-बड़े प्रतिष्ठानों को अवैध रूप से दास श्रम करवाते हुए पाया गया है. फिर भी वे इस प्रकार के प्रतिष्ठानों पर निगरानी के लिए सरकार द्वारा बनाई गई “गंदी सूची” में आने से वे बचते रहें.
गंदी सूची क्या है?
गंदी सूची (dirty list) ब्राजील सरकार द्वारा खोली गई वह पंजी है जिसमें दास श्रम में संलग्न नियुक्तिदाताओं के नाम अंकित किये जाते हैं. यह सूची 2004 में बनी थी और तब संयुक्त राष्ट्र ने इस कदम को ब्राज़ील के दासता विरोधी अभियान का एक सशक्त साधन मानते हुए प्रशंसा की थी.
यह सूची श्रम निरीक्षकों से युक्त एक सरकारी निकाय के द्वारा सम्पादित हुआ करती है. इस निकाय का नाम है – Division of Inspection for the Eradication of Slave Labor (DETRAE)
गंदी सूची में किसी कम्पनी का नाम कैसे आता है?
यदि कोई श्रम निरीक्षक किसी पर इसलिए आर्थिक दंड लगाता है कि वह दास श्रम करवा रहा है तो उसके पश्चात् आंतरिक सरकारी प्रक्रिया द्वारा इसकी जाँच होती है जिसमें नियुक्तिदाता को भी अपने बचाव के लिए कुछ कहने का अवसर दिया जाता है. जब अपील की सारी संभावनाएँ समाप्त हो जाती हैं और नियुक्तिदाता दोषी पाया जाता है तो उसका नाम और उसके प्रतिष्ठान का नाम सूची में डाल दिया जाता है.
नियुक्तिदाता गंदी सूची से डरते क्यों हैं?
नियुक्तिदाता गंदी सूची से इसलिए डरते हैं कि इसमें आने पर उनका नाम अथवा ब्रांड दास श्रम से जुड़ जाता है. फलतः सरकारी बैंकों से ऋण लेने की उनकी सम्भावना सीमित हो जाती है. निजी बैंक भी इसे ऋण जोखिम के रूप में देखते हैं. प्रतिष्ठान से जुड़े हुए अंतर्राष्ट्रीय क्रेता और आपूर्तिकर्ता भी गंदी सूची में आने वाले प्रतिष्ठान के उत्पाद खरीदने से मुकरने लगते हैं.
GS Paper 3 Source: Indian Express
Topic : Bt Cotton
संदर्भ
अभी पिछले दिनों महाराष्ट्र के अंकोला में स्थित एक गाँव के में हज़ार किसान सरकारी नियमों को धता बताते हुए इकठ्ठा हुए और वहाँ एक संशोधित जीन वाले कपास (genetically modified cotton) की किस्म के बीजों को रोप दिया जिनके लिए सरकार की अनुमति नहीं है. सरकार अब इस बात का पता लगा रही है कि वहाँ पर क्या रोपा गया था.
सरकार किस प्रकार के रोपण की अनुमति देती है?
सरकार संशोधित जीन वाले जिस एकमात्र कपास की खेती की अनुमति देती है, वह है – Bt Cotton. कपास की यह प्रजाति विशाल प्रतिष्ठान बेयर-मोनसेंटो ने तैयार की थी.
Bt Cotton तैयार करने के लिए Bacillus thuringiensis नाम के मृदा बैक्टीरिया से ‘Cry1Ab’ और ‘Cry2Bc’ नामक दो जीन निकाल कर कपास के बीज में डाल दिए जाते हैं. ऐसा करने से पौधे में एक ऐसा प्रोटीन उत्पन्न हो जाता है जो Heliothis bollworm अर्थात् pink bollworm नामक कीड़े का प्रतिरोधी होता है. विदित हो कि यही कीड़े कपास में बहुधा लग जाते हैं. Bt Cotton को व्यवसाय में लाने की अनुमति GEAC ने 2002 में दी थी.
GEAC क्या है?
- GEAC का पूरा नाम है – Genetic Engineering Appraisal Committee.
- पर्यावरण मंत्रालय के अन्दर आने वाली इस समिति का दायित्व है किसी आनुवंशिक रूप से संशोधित पौधे की निरापदता का मूल्यांकन करना और यह तय करना कि वह खेती के लिए उपयुक्त है या नहीं.
- इस समिति में विशेषज्ञ और सरकारी प्रतिनिधि होते हैं.
- समिति की अनुशंसा पर अंतिम निर्णय पर्यावरण मंत्री करते हैं.
- अभी तक संशोधित जीन वाले जिन पौधों को GEAC ने अनुमति दी है, वे हैं – Bt ब्रिंजल और Bt सरसों. परन्तु अभी तक इन दो पौधों पर पर्यावरण मंत्री का अनुमोदन प्राप्त नहीं हुआ है.
पृष्ठभूमि
- दुनिया भर में कपास के किसानों को तंबाकू बडवॉर्म, कपास बौलवॉर्म और गुलाबी बौलवॉर्म से भारी नुक्सान पहुचंता है.
- बीटी कपास (Bt Cotton) कपास की कीट-प्रतिरोध प्रजाति है.
- पहले कपास में जो कीड़े लगते थे उसके लिए कीटनाशक का छिड़काव करना होता था.
- इस प्रजाति की फसल लगाने से कि यह लाभ होगा कि कपास की खेती में कम कीटनाशकों का प्रयोग होगा जोकि पर्यावरण के लिए लाभदायक साबित होगा.
किसान क्या चाहते हैं?
जिन किसानों ने अंकोला में कपास के बीज रोपे हैं उनका कहना है कि ये बीज ऐसे हैं जो glyphosate नामक पतवारनाशक छिड़काव को सह लेते हैं, अतः उनको खरपतवार निकालने में समय अथवा लागत नहीं लगती. वस्तुतः ऐसे बीज में ऊपर बताये गये दो जीनों के अतिरिक्त एक तीसरा जीन Cp4-Epsps भी डाल दिया जाता है जो Agrobacterium tumefaciens नामक मृदा बैक्टेरिया से प्राप्त है.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Data Localization
संदर्भ
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री ने ई-वाणिज्य एवं डाटा स्थानीयकरण के विषय में उद्योग जगत के हितधारकों को विचार-विमर्श के लिए आमंत्रित किया है. आयोजित बैठक में जिन विषयों पर चर्चा होगी वे हैं –
- बढ़ती हुई डिजिटल अर्थव्यवस्था में भारत के लिए अवसर
- ई-वाणिज्य के आने से भारतीय GDP में होने वाला मूल्य संवर्द्धन
- निजता, सुरक्षा, निरापदता एवं स्वतंत्र चयन इन चारों दृष्टिकोणों से डाटा प्रवाहों को समझना
- डाटा का आदान प्रदान
- सीमा-पार डाटा प्रवाह से होने वाले लाभ और लागत, तथा
- डाटा के प्रयोग पर नज़र रखने के लिए साधन.
डाटा स्थानीयकरण (Data Localization)
डाटा स्थानीयकरण का अर्थ है डाटा को उस उपकरण में जमा किया जाना जो उस देश की सीमाओं के अन्दर भौतिक रूप से विद्यमान हैं जहाँ कि डाटा का सृजन हुआ था. कुछ देशों में डिजिटल डाटा के मुक्त प्रवाह पर पाबंदी है, विशेषकर उस डाटा के प्रवाह पर जिसका सरकार की गतिविधियों पर प्रभाव पड़ सकता है.
ऐसी पाबंदी लगाने के पीछे कई कारण होते हैं, जैसे – नागरिक के डाटा को सुरक्षित करना, डाटा की निजता की रक्षा करना, डाटा की संप्रभुता को बनाये रखना, राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास की गतिविधियाँ.
तकनीकी कंपनियों के पास प्रचुर मात्रा में डाटा जमा हो जाता है क्योंकि उपभोक्ता के डाटा तक उनकी पहुँच निर्बाध है और उस पर उनका नियंत्रण है. इसका उनको ये लाभ मिलता है कि वे भारतीय उपभोक्ताओं के डाटा को स्वतंत्र रूप से प्रोसेस कर लेते हैं और देश के बाहर उसे मोनेटाइज भी कर लेते हैं अर्थात् उसका मौद्रिक लाभ उठा लेते हैं.
भारत सरकार डाटा का स्थानीयकारण साथ ही साथ एक विशेष कारण से भी चाहती है. वह भारत को डिजिटल जगत का एक वैश्विक हब बनाना चाहती है जिसके लिए क्लाउड कंप्यूटिंग, डाटा होस्टिंग और अंतर्राष्ट्रीय डाटा केन्द्रों की स्थापना अपेक्षित होगी. देश के आर्थिक विकास के लिए यह एक बड़ा कदम होगा.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Forest landscape restoration (FLR) and Bonn Challenge
संदर्भ
भारत सरकार ने भारत में वन परिदृश्य पुनर्निर्माण (Forest Landscape Restoration – FLR) एवं बॉन चुनौती (Bonn Challenge) के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने हेतु एक मूर्धन्य परियोजना का अनावरण किया है. यह परियोजना प्रथमतः प्रायोगिक रूप से 3.5 वर्षों के लिए हरियाणा, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, नागालैंड और कर्नाटक में चलाई जायेगी.
बॉन चुनौती क्या है?
- जर्मनी की सरकार और IUCN ने संयुक्त रूप से 2011 में एक उच्च-स्तरीय आयोजन करते हुए 2020 के लिए एक लक्ष्य का अनावरण किया था जिस पर आगे चलकर न्यूयॉर्क वन घोषणा 2014 (New York Declaration on Forests ) संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन ने अपना समर्थन देते हुए लक्ष्य के वर्ष को 2020 से बढ़ाकर 2030 कर दिया था.
- बॉन चुनौती का उद्देश्य वैश्विक प्रयासों के माध्यम से 2020 तक 150 मिलियन हेक्टेयर वनविहीन और क्षयग्रस्त भूमि को तथा 2030 तक 350 मिलियन हेक्टेयर भूमि को पहले वाली अवस्था में लाना है.
- बॉन चुनौती एक ऐसा माध्यम है जिसका उपयोग विभिन्न राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को पूरा करने में किया जा सकता है, जैसे जल एवं खाद्य सुरक्षा एवं ग्रामीण विकास. साथ ही इसके माध्यम से विभिन्न देशों को अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन, जैव-विविधता एवं भूमिक्षय से सम्बंधित प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में सहायता दी जा सकती है.
FLR क्या है?
- वन परिदृश्य पुनर्निर्माण (FLR) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा पर्यावरण एवं मानव कल्याण की दृष्टि से वनविहीन अथवा क्षयग्रस्त वन परिदृश्यों को पुरानी दशा में लाने का प्रयास किया जाता है.
- FLR का आशय मात्र पेड़ों को रोपना ही नहीं है. इसका लक्ष्य है वर्तमान एवं भविष्य की आवश्यकताओं को पूरी करने के लिए भूमि के सम्पूर्ण परिदृश्य को फिर से पुरानी दशा में लाना.
- यह एक लम्बी अवधि का कार्यक्रम है ज्योंकि इसके लिए पर्यावरण से सम्बंधित कई काम बरसों तक करने होंगे.
- पुनर्निर्माण के अधिकांश काम खेतों अथवा गोचर भूमि के आस-पास हो सकते हैं. ऐसा करते समय यह ध्यान में रखना होगा कि पुनर्निर्माण से इनपर कोई आँच न आये, अपितु इनका विस्तार ही हो.
- FLR के माध्यम से खेती, कृषि वानिकी और पर्यावरण गलियारों से सम्बंधित विभिन्न प्रकार की गतिविधियाँ सम्पन्न हो सकती हैं.
- FLR के संचालन के लिए कुछ निर्देशक सिद्धांत ये हैं – परिदृश्य पर ध्यान केन्द्रीय करना, पुनर्निर्माण के माध्यम से भूमि को दुबारा उपयोग के योग्य बनाना, हितधारकों को शामिल करना, स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार भूमि को ढालना तथा प्राकृतिक वन-क्षेत्र में कमी आगे कभी न हो यह सुनिश्चित करना.
Prelims Vishesh
World Food India 2019 :–
- भारत सरकार ने पहली बार 2017 में विश्व खाद्य भारत नामक द्वैवार्षिक आयोजन आरम्भ किया था जिसका उद्देश्य है विश्व-स्तर पर खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को बढ़ावा देना.
- पिछले दिनों सरकार ने घोषणा की कि यह दिवस इस वर्ष 1 से 4 नवम्बर के बीच मनाया जाएगा.
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