Sansar डेली करंट अफेयर्स, 20 April 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 20 April 2021


GS Paper 1 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.

Topic : KHAJURAHO

संदर्भ

हाल ही में, पर्यटन मंत्रालय द्वारा “देखो अपना देश” शृंखला के अंतर्गत खजुराहो में बने मंदिरों की वास्तुशिल्पीय भव्यता पर वेबिनार का आयोजन किया गया.

ज्ञातव्य है किदेखो अपना देश वेबिनार श्रृंखलाएक भारत-श्रेष्ठ भारत” अभियान के अंतर्गत भारत की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने का प्रयास है.

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खजुराहो के मंदिरों के विषय में परिचय

  • खजुराहो के मंदिर मध्य भारत में वास्तुकला के शताब्दियों के विकास के पश्चात्‌ उसके चरमोत्कर्ष रूप को दर्शाते हैं.
  • मंदिर निर्माण की नागर शैली में निर्मित इन हिंदू, जैन धर्म से जुड़े मंदिरों को चंदेल शासकों द्वारा 900 ईस्वी से 1130 ईस्वी के बीच बनाया गया था.
  • 12वीं सदी में यहाँ लगभग 85 मन्दिर थे लेकिन अब घटकर केवल 20 मंदिर ही रह गए हैं.
  • खजुराहो के मंदिरों का पहला उल्लेख अबू रेहान अल बिरूनी (1022 ईस्वी) और इब्न बतूता (1335 ईस्वी) के पुस्तकों में है.
  • ये मंदिर चंदेल काल के निवासियों के आर्थिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन पर प्रकाश डालते हैं.
  • ये मंदिर यूनेस्को की विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल हैं.
  • प्रमुख मंदिर : कन्दरिया महादेव मंदिर, विश्वनाथ मंदिर, चौसठ योगिनी मंदिर, देवी जगदम्बा मंदिर, लक्ष्मण मंदिर.

प्रमुख विशेषताएँ

  • खजुराहो के लगभग सभी मंदिर ऊँचे चबूतरे पर बनाए गए है.
  • मंदिरों का मुख सूर्योदय कीनागर दिशा में है.
  • खजुराहो के मंदिरों को केन नदी के पूर्वी तट से पन्‍ना की खदानों से मँगवाए गए हल्के रंग के रेतीले पत्थर से बनाया गया है.
  • खजुराहो के मंदिर अपनी मूर्तियों के लिए विश्व विख्यात हैं, ये मूर्तियाँ हिंदू धर्म में जीवन के चार लक्ष्यों अर्थात्, धर्म, काम, अर्थ, मोक्ष को दर्शाती है.

नागर शैली

  • इस शैली के सबसे पुराने उदाहरण गुप्तकालीन मंदिरों में, विशेषकर, देवगढ़ के दशावतार मंदिर और भितरगाँव के ईंट-निर्मित मंदिर में मिलते हैं.
  • नागर शैली की दो बड़ी विशेषताएँ हैं – इसकी विशिष्ट योजना और विमान.
  • इसकी मुख्य भूमि आयताकार होती है जिसमें बीच के दोनों ओर क्रमिक विमान होते हैं जिनके चलते इसका पूर्ण आकार तिकोना हो जाता है. यदि दोनों पार्श्वों में एक-एक विमान होता है तो वह त्रिरथ कहलाता है. दो-दो विमानों वाले मध्य भाग को सप्तरथ और चार-चार विमानों वाले भाग को नवरथ कहते हैं. ये विमान मध्य भाग्य से लेकर के मंदिर के अंतिम ऊँचाई तक बनाए जाते हैं.
  • मंदिर के सबसे ऊपर शिखर होता है.
  • नागर मंदिर के शिखर को रेखा शिखर भी कहते हैं.
  • नागर शैली के मंदिर में दो भवन होते हैं – एक गर्भगृह और दूसरा मंडप. गर्भगृह ऊँचा होता है और मंडप छोटा होता है.
  • गर्भगृह के ऊपर एक घंटाकार संरचना होती है जिससे मंदिर की ऊँचाई बढ़ जाती है.
  • नागर शैली के मंदिरों में चार कक्ष होते हैं – गर्भगृह, जगमोहन, नाट्यमंदिर और भोगमंदिर.
  • प्रारम्भिक नागर शैली के मंदिरों में स्तम्भ नहीं होते थे.
  • 8वीं शताब्दी आते-आते नागर शैली में अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग नए लक्षण भी प्रकट हुए. बनावट में कहीं-कहीं विविधता आई. जैसा कि हम जानते हैं कि इस शैली का विस्तार उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बीजापुर तक और पश्चिम में पंजाब से लेकर पूरब में बंगाल तक था. इसलिए स्थानीय विविधता का आना अनपेक्षित नहीं था, फिर भी तिकोनी आधार भूमि और नीचे से ऊपर घटता हुआशिखर का आकार सर्वत्र एक जैसा रहा.
  • बोधगया का मंदिर और भुवनेश्वर में स्थित लिंगराज मंदिर इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है.

विभिन्न शैलियों के बारे में यहाँ पढ़ें – नागर, द्रविड़ और वेसर


GS Paper 2 Source : LiveMint

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : RBI sets up committee to review ARC regulations

संदर्भ

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने ऋण समाधान में परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों (Asset Reconstruction Companies – ARCs) की भूमिका का मूल्यांकन करने और उनके व्यवसाय मॉडल की समीक्षा करने के लिए 6 सदस्यीय समिति का गठन किया है. इस समिति का नेतृत्व आरबीआई के कार्यकारी निदेशक सुदर्शन सेन कर रहे हैं और इसमें प्रख्यात अर्थशास्त्री और उद्योग विशेषज्ञ शामिल हैं. यह समिति ARCs (Asset Reconstruction Companies) के कानूनी और नियामक ढांचे की समीक्षा करेगी और उनकी प्रभावकारिता में सुधार के लिए उपायों की सिफारिश करेगी.

संदर्भ शर्तें (Terms of reference)

  1. ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों’ (ARCs) पर लागू मौजूदा कानूनी और विनियामक ढांचे की समीक्षा और ‘एआरसी’ की प्रभावकारिता में सुधार के उपायों हेतु सिफारिश करना.
  2. दिवालिया एवं शोधन अक्षमता कोड (IBC), 2016 सहित तनावग्रस्त परिसंपत्तियों के समाधान में ‘एआरसी’ की भूमिका की समीक्षा करना.

‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ (ARC) क्या है?

‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ (Asset Reconstruction Companies- ARCs), ऐसे विशेष वित्तीय संस्थान होते है जो बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ‘गैर-निष्पादित आस्तियों’ (Non Performing Assets- NPAs) खरीदते हैं, ताकि वे अपनी बैलेंसशीट को साफ कर सकें.

  1. इससे बैंकों को सामान्य बैंकिंग गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है.
  2. बैंक, बकाएदारों पर अपना समय और प्रयास बर्बाद करने के बजाय, ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ (ARC) को पारस्परिक रूप से सहमत कीमत पर अपनी ‘गैर-निष्पादित आस्तियों’ (NPAs) को बेच सकते हैं.
  3. ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ अथवा ‘एआरसी’ (ARC), आरबीआई के अंतर्गत पंजीकृत होती हैं.

कानूनी आधार

  1. ‘वित्तीय आस्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्रचना एवं प्रतिभूति हित प्रवर्तन’ (Securitization and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest -SARFAESI) अधिनियम 2002, भारत में ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनियों’ (ARCs) का गठन करने हेतु वैधानिक आधार प्रदान करता है.
  2. SARFAESI अधिनियम न्यायालयों के हस्तक्षेप के बगैर ‘गैर-निष्पादित अस्तियों’ की पुनर्संरचना में मदद करता है.
  3. तब से, इस अधिनियम के तहत, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अधीन पंजीकृत बड़ी संख्या में ARCs का गठन किया गया है. आरबीआई के लिए ARCs को विनियमित करने की शक्ति प्राप्त है.

ARCs के लिये पूंजी आवश्यकताएँ

  1. SARFAESI अधिनियम में, वर्ष 2016 में किये गए संशोधनों के अनुसार, किसी ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ (ARC) के पास न्यूनतम 2 करोड़ रुपए की स्वामित्व निधि होनी चाहिये.
  2. रिज़र्व बैंक द्वारा वर्ष 2017 में इस राशि को बढ़ाकर 100 करोड़ रुपए कर दिया गया था. ‘परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी’ के लिए अपनी जोखिम भारित आस्तियों / परिसंपत्तियों के 15% का पूंजी पर्याप्तता अनुपात बनाए रखना आवश्यक है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : India and its neighbourhood- relations.

Topic : European Council approves conclusions on EU’s Indo-Pacific strategy

संदर्भ

हाल ही में यूरोपीय संघ (European Union) ने हिंद-प्रशांत (Indo-Pacific) क्षेत्र में सहयोग के लिये अपने रणनीतिक निष्कर्ष को मंजूरी प्रदान कर दी है. यूरोपीय संघ की यह प्रतिबद्धता दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा है, जो लोकतंत्र, मानवाधिकार, कानून के शासन और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सम्मान को बनाए रखने पर आधारित होगी.

उद्देश्य

  1. इस क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों और तनाव के समय क्षेत्रीय स्थिरता, सुरक्षा, समृद्धि तथा स्थायी विकास में योगदान देना.
  2. आसियान (ASEAN) को केंद्र में रखकर नियम-आधारित बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना, जिस पर भारत द्वारा भी बल दिया गया.

इसकी आवश्यकता के पीछे कारण

इंडो-पैसिफिक में वर्तमान गतिशीलता के चलते गहन भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा उत्पन्न हो रही है, जिस कारण व्यापार और आपूर्ति शृंखलाओं के साथ-साथ तकनीकी, राजनीतिक और सुरक्षा क्षेत्रों में भी तनाव बढ़ा है. इन घटनाक्रमों से इस क्षेत्र ओर इसके आप-पास के क्षेत्रों की स्थिरता और सुरक्षा के लिए संकट बढ़ता जा रहा है, जिसका यूरोपीय संघ के हितों पर सीधे प्रभाव पड़ता है.

हिंद-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र

एकल रणनीतिक क्षेत्र के रूप में इंडो-पैसिफिक’ (Indo- Pacific) की अवधारणा, हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के परिणाम है. यह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के मध्य परस्पर संपर्क तथा सुरक्षा और वाणिज्य के लिए महासागरों के महत्त्व का प्रतीक है.

भारत के लिए ‘इंडो-पैसिफिक क्षेत्र’ की भूमिका एवं निहितार्थ

  1. इंडो-पैसिफिक / हिंद-प्रशांत क्षेत्र, जैसा कि, राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति में वर्णित है, विश्व के सबसे अधिक आबादी वाले और आर्थिक रूप से गतिमान हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है. यह, भारत के पश्चिमी तट से संयुक्त राज्य के पश्चिमी तट तक विस्तृत है.
  2. भारत, सदैव से गंभीर राष्ट्रीय महत्त्वाकांक्षाओं वाला देश रहा है और “इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी” अवधारणा का सबसे महत्त्वपूर्ण पैरोकार है.
  3. मुक्त अर्थव्यवस्था के साथ, भारत, हिंद महासागर में आने निकटवर्ती देशों और विश्व की प्रमुख समुद्री शक्तियों के साथ संबंध स्थापित कर रहा है.

मुख्य बिंदु

  • उल्लेखनीय है कि विश्व का लगभग 90% विदेशी व्यापार समुद्र के जरिये किया जाता है और इसके एक बड़े हिस्से का संचालन हिन्द और प्रशांत महासागरों के माध्यम से किया जाता है.
  • 25% विश्व समुद्री व्यापार मलक्का जलडमरूमध्य से होकर गुजरता है.
  • इसके अतिरिक्त, संयुक्त राज्य अमेरिका की वार्षिक रक्षा रिपोर्ट के अनुसार, चीन के पास दुनिया की सबसे बड़ी नौसेना है.
  • इसमें 350 से अधिक जहाज और पनडुब्बी हैं तथा चीन, हिंद महासागर क्षेत्र में अपनी पकड़ का विस्तार करने के अवसरों की खोज कर रहा है.

GS Paper 3 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Science and Technology. Related to Space.

Topic : NASA’s Mars helicopter takes flight, 1st for another planet

संदर्भ

नासा (NASA) का परसिवरेंस रोवर इस समय मंगल (Mars) के जजीरो क्रेटर की सतह पर अन्वेषण कर रहा है. इसी बीच आकर्षण का केंद्र नासा का इंजेन्युटी हेलीकॉप्टर (Ingenuity Helicopter) रहा जिससे बहुत कठिन परिस्थितियों में अपनी पहली चार उड़ानों में सफलता प्राप्त कर ली. अब अगले चरण में इस रोटोक्राफ्ट को एक नया मिशन मिला है.

इंजेन्युटी को अब परसिवरेंस के आगे आगे चलना होगा और उसकी नेविगेशन में सहायता करनी होगी जिससे रोवर को मंगल पर जीवन के संकेत खोजने में सहयोग मिल सके.

सूक्ष्मजीवन के संकेत

मंगल ग्रह पर अभी तक अंतरिक्ष यानों और अन्य रोवर की पड़तालों से सतह पर जीवन के किसी भी तरह के संकेत नहीं मिले हैं. लेकिन वैज्ञानिकों को पूरी उम्मीद है कि वहां की सतह के नीचे सूक्ष्मजीवन के हालात आज भले ही ना हों एक समय में जरूर रहे होंगे और उन्हें उनके संकेत मिल सकते हैं.  ऐसे में परसिवरेंस रोवर के प्रमुख लक्ष्यों में से एक लक्ष्य मंगल की सतह के नीचे वहाँ पर पुरातन सूक्ष्मजीवों के संकेतों की खोज करना है.

परसिवरेंस रोवर’ के बारे में

  1. परसिवरेंस रोवर (Perseverance rover) को, जुलाई 2020 में लॉन्च किया गया था.
  2. मंगल ग्रह पर परसिवरेंस अभियान का मुख्य उद्देश्य खगोल-जीवविज्ञान (astrobiology) का अध्ययन तथा प्राचीन सूक्ष्मजीवीय जीवन के खगोलीय साक्ष्यों की खोज करना है.
  3. यह रोवर, ग्रह के भूविज्ञान और अतीत के जलवायु के बारे में विवरण उपलब्ध कराएगा तथा मानव जाति के लिए लाल ग्रह के अन्वेषण का मार्ग प्रशस्त करेगा. यह, मंगल ग्रह की चट्टानों तथा रेगोलिथ अर्थात विखंडित चट्टानों और धूल (Reglolith) के नमूने एकत्र करने वाला पहला मिशन होगा.
  4. इसमें ईधन के रूप में, प्लूटोनियम के रेडियोधर्मी क्षय से उत्पन्न ताप द्वारा जनित विद्युत शक्ति का उपयोग किया गया है.
  5. परसिवरेंस रोवर में MOXIE अथवा मार्स ऑक्सीजन ISRU एक्सपेरिमेंट नामक एक विशेष उपकरण लगा है, जो मंगल ग्रह पर कार्बन-डाइऑक्साइड-समृद्ध वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करके पहली बार आणविक ऑक्सीजन का निर्माण करेगा. (ISRU- In Situ Resource Utilization, अर्थात स्व-स्थानिक संशाधनो का उपयोग).

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Boao Forum for Asia :-

  • चीन के हैनान प्रांत (Hainan Province) में हाल ही में ‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ (Boao Forum for Asia– BFA) का वर्ष 2021 के लिए वार्षिक सम्मलेन आयोजित किया गया है.
  • ‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ (Boao Forum for Asia– BFA) के वर्ष 2021 के वार्षिक सम्मलेन में 60 से अधिक देशों और नागरिक समाज , प्रमुख संगठनों आदि के लगभग 2,600 लोगों ने भाग लिया है.
  • ‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ (Boao Forum for Asia– BFA) की स्थापना वर्ष 2001 में हुई थी. इसकी स्थापना 25 एशियाई देशों और ऑस्ट्रेलिया ने मिलकर की थी.
  • ‘बोआओ फोरम फॉर एशिया’ एक गैर-लाभकारी संगठन है जो एशिया और अन्य महाद्वीपों की राष्ट्रीय सरकारों के लीडर्स, बिजनेसमैन और शिक्षाविदों आदि को वैश्विक मुद्दों पर अपनी दृष्टि साझा करने के लिए एक मंच उपलब्ध कराता है.

Aditya L1 Mission :-

  • हाल ही में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशन साइंसेज (ARIES) के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक समूह ने सूर्य के अंदरूनी हिस्सों से निकलने वाले बहुत तेजी से कोरोनल मास इजेक्शन (Coronal Mass Ejections -CMEs) को ट्रैक करने के लिए एक एल्गोरिथम (algorithm) विकसित किया है.
  • आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशन साइंसेज की यह उपलब्धि भारत के आगामी ‘आदित्य L1 मिशन’ (Aditya L1 Mission) के लिए काफी उपयोगी है.
  • इसरो (ISRO) द्वारा आदित्य L-1 को 400 किलो-वर्ग के उपग्रह के रूप में वर्गीकृत किया है जिसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान- XL (PSLV- XL) से लॉन्च किया जाएगा. कोविड -19 महामारी के कारण आदित्य L-1 मिशन को वर्ष 2022 में लॉन्च किया जाएगा.
  • आदित्य एल- 1 को सूर्य एवं पृथ्वी के बीच स्थित एल-1 लग्रांज/लेग्रांजी बिंदु के निकट स्थापित किया जाएगा.
  • आदित्य एल- 1 को सौर प्रभामंडल के अध्ययन के लिए निर्मित किया गया है. सूर्य की बाहरी परतों, जोकि डिस्क (फोटोस्फियर) के ऊपर हजारों कि.मी. तक फैला है, को प्रभामंडल कहा जाता है. इसका तापमान मिलियन डिग्री केल्विन से भी अधिक है. ज्ञातव्य है कि सौर भौतिकी में अब तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पाया है कि प्रभामंडल का तापमान इतना अधिक क्यों होता है.

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