Sansar Daily Current Affairs, 20 January 2022
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय.
Topic : Israel- Palestine conflict
संदर्भ
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मध्य पूर्व पर खुली बहस में, भारत ने फिलिस्तीन मुद्दे के शांतिपूर्ण समाधान के लिए अपनी दृढ़ और अटूट प्रतिबद्धता दोहराई है और एक ‘दो-राष्ट्र समाधान’ (Two-State Solution) पर बातचीत का समर्थन किया है.
इस बैठक में ‘दो-राष्ट्र समाधान’ को नष्ट होने से रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की दृढ़ प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए सुरक्षा परिषद द्वारा संकल्प 2334 को पारित किया गया.
फिलिस्तीन के बारे में
मध्य पूर्व में भूमध्यसागर और जॉर्डन नदी के बीच की भूमि को फिलिस्तीन कहा जाता था. यह क्षेत्र पहले खिलाफ़त उस्मानिया में रहा लेकिन बाद में अंग्रेजों और फ्रांसीसियों ने इस पर कब्जा कर लिया. वर्ष 1948 में यहाँ के अधिकांश क्षेत्र पर इजरायली राज्य की स्थापना की गई. इसकी राजधानी बैतुल मुक़द्दस हुआ करती थी, जिसे इजरायली येरुशलम कहते हैं. यह शहर यहदियों, ईसाइयों और मुसलमानों तीनों के लिए पवित्र माना जाता है. वर्तमान में फिलिस्तीन केवल गाजा पट्टी एवं वेस्ट बैंक तक सीमित रह गया है. यही भूमि विवाद फिलिस्तीन-इजरायल विवाद के रूप में जाना जाता है, इसी कारण अरब देशों और इजरायल के बीच कई युद्ध हो चुके हैं.
इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष
- 1948 के अरब-इजराइली युद्ध में जॉर्डन ने वेस्ट बैंक पर आधिपत्य कर लिया था.
- 1967 के छह दिवसीय युद्ध के समय इजराइल ने जॉर्डन से यह भूभाग छीन लिया और तब से इस पर इजराइल का ही कब्ज़ा है.
- इजराइल ने यहाँ 130 औपचारिक बस्तियाँ बनाई हैं. इसके अतिरिक्त इतनी ही बस्तियाँ पिछले 20-25 वर्षों में यहाँ बन चुकी हैं.
- यहाँ 26 लाख फिलिस्तीनी रहते हैं. इसके अतिरिक्त यहाँ 4 लाख इजराइली बस गये हैं. यहूदियों का मानना है कि इस भूभाग पर उनको बाइबिल में ही जन्मसिद्ध अधिकार मिला हुआ है.
- फिलिस्तीनी लोगों का कोई अलग देश नहीं है. उनका लक्ष्य है कि इस भूभाग में फिलिस्तीन देश स्थापित किया जाए जिसकी राजधानी पूर्वी जेरुसलम हो. इस कारण यहूदियों और फिलिस्तीनियों में झगड़ा होता रहता है. फिलिस्तीनियों का मानना है कि 1967 के बाद वेस्ट बैंक ने जो यहूदी बस्तियाँ बसायीं, वे सभी अवैध हैं.
- संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद् और अंतर्राष्ट्रीय न्यायालयभी यही मानता है कि वेस्ट बैंक में इजराइल द्वारा बस्तियाँ स्थापित करना चौथी जिनेवा संधि (1949) का उल्लंघन है जिसमें कहा गया था कि यदि कोई देश किसी भूभाग पर कब्ज़ा करता है तो वहाँ अपने नागरिकों को नहीं बसा सकता है.
- रोम स्टैच्यूट (Rome Statute) के अंतर्गत 1998 में गठित अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (International Criminal Court) के अनुसार भी इस प्रकार एक देश के लोगों को कब्जे वाली भूमि पर बसाना एक युद्ध अपराध है.
अमेरिका और भारत का दृष्टिकोण
अमेरिका इजराइली बस्तियों को अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन नहीं मानता है, अपितु उन्हें इजराइल की सुरक्षा के लिए आवश्यक मानता है. भारत पारम्परिक रूप से इस मामले में दो देशों के अस्तित्व के सिद्धांत (2-state solution) पर चलता आया है और इसलिए वह एक संप्रभु और स्वतंत्र फिलिस्तीन देश के स्थापना का समर्थन करता है. फिर भी इजराइल से भारत के रिश्ते दिन-प्रतिदिन प्रगाढ़ होते रहे हैं.
यरूशलेम, वर्तमान घटनाओं का केंद्र
यरूशलम, शुरू से ही इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के केंद्र में रहा है.
- 1947 की संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना (UN Partition Plan) के मूल दस्त्वेजों के अनुसार, यरूशलेम को एक अंतरराष्ट्रीय शहर बनाया जाना प्रस्तावित था.
- किंतु, वर्ष 1948 में हुए पहले अरब-इजरायल युद्ध में, इजरायलियों ने शहर के पश्चिमी आधे हिस्से पर कब्जा कर लिया, और जॉर्डन ने पूर्वी हिस्से पर अपना अधिकार जमा लिया. शहर के पूर्वी भाग में ‘ओल्ड सिटी’ भी शामिल है जिसमे ‘हरम अश-शरीफ’ स्थित है.
- अल-अक्सा मस्जिद (Al-Aqsa Mosque), इस्लाम धर्म का तीसरा सबसे पवित्र स्थल है और ‘हरम अश-शरीफ’ के भीतर ‘चट्टानी गुंबद’ (Dome of the Rock) स्थित है.
- इज़राइल ने वर्ष1967 हुए छह-दिवसीय युद्ध में, जॉर्डन के अधिकार में आने वाले पूर्वी यरूशलेम पर कब्ज़ा कर लिया और बाद में इसे अपने राज्य में शामिल कर लिया.
नागरिकता संबंधी मुद्दे
- अपने राज्य में शामिल करने के बाद से, इज़राइल द्वारा पूर्वी यरुशलम में बस्तियों का विस्तार किया गया है, जिनमे अब लगभग 220,000 यहूदी निवास करते हैं.
- पूर्वी येरुशलम में पैदा होने वाले यहूदियों को इजरायली नागरिकता प्रदान की जाती हैं, जबकि शहर में रहने वाले फिलिस्तीनियों को सशर्त निवास परमिट दिए जाते हैं.
- इजरायली कब्जे वाले वेस्ट बैंक के अन्य हिस्सों के विपरीत, पूर्वी यरुशलम में फिलिस्तीनीयों को, इजरायल की नागरिकता के लिए आवेदन करने की अनुमति है.
- हालांकि, बहुत कम फिलिस्तीनियों द्वारा इजरायल की नागरिकता के लिए आवेदन किया गया है.
समस्या का मूल कारण
- इज़राइल पूरे यरुशलम शहर को “एकीकृत, अपरिवर्तनशील राजधानी” मानता है. इज़राइल के इस दावे का पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने समर्थन किया था, यद्यपि अधिकांश अन्य देश इस दावे को मान्यता नहीं देते हैं.
- संपूर्ण राजनीतिक विस्तार के फिलिस्तीनी नेताओं का कहना है कि, जब तक पूर्वी यरुशलम को फिलिस्तीन की राजधानी नहीं घोषित किया जाता है, तब तक, वे भविष्य में बनने वाले फिलिस्तीनी राष्ट्र के लिए किसी भी समझौता फार्मूला को स्वीकार नहीं करेंगे.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारतीय संविधान- ऐतिहासिक आधार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना.
Topic : Anti-defection law
संदर्भ
हाल ही में, राजनेताओं द्वारा उत्तर प्रदेश में अगले महीने से शुरू होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले दल बदलने पर, ‘बहुजन समाज पार्टी’ (BSP) प्रमुख मायावती ने एक अधिक सख्त दलबदल-रोधी कानून बनाए जाने की मांग की है.
संबंधित प्रकरण
राजनेताओं द्वारा चुनाव से ठीक पहले दल-बदलने का चलन कोई असामान्य घटना नहीं है. और जब भी दल बदलने की घटनाएँ होती है, दल-परिवर्तन को रोकने हेतु विधि-निर्माताओं को व्यक्तिगत रूप से दंडित करते हेतु बनाया गया ‘दलबदल-रोधी कानून’ (anti-defection law) चर्चा के केंद्र में आ जाता है.
दल-परिवर्तन विरोधी कानून के बारे में
- दल-परिवर्तन विरोधी कानून को पद संबंधी लाभ या इसी प्रकार के अन्य प्रतिफल के लिए होने बाले राजनीतिक दल-परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था.
- इसके लिए, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी.
- यह उस प्रक्रिया को निर्धारित करता है जिसके द्वारा विधायकों/सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दायर याचिका के आधार पर विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराया जा सकता है.
- इसके अंतर्गत किसी विधायक/सांसद को निर्योग्य माना जाता है, यदि उसने-
- या तो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है; या
- सदन में मतदान के समय अपने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों की अनुज्ञा की है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई सदस्य किसी भी मुद्दे पर पार्टी के व्हिप के विरुद्ध (अर्थात् निदेश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से विरत रहता है) कार्य करता है तो वह सदन की अपनी सदस्यता खो सकता है.
- यह अधिनियम संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों पर लागू होता है.
Read more about it: 52 amendment in Hindi
इस अधिनियम के तहत अपवाद
सदस्य निम्नलिखित कुछ परिस्थितियों में निर्योग्यता के जोखिम के बिना दल परिवर्तन कर सकते हैं.
- यह अधिनियम एक राजनीतिक दल को अन्य दल में विलय की अनुमति देता है, यदि मूल राजनीतिक दल के दो-तिहाई सदस्य इस विलय का समर्थन करते हैं.
- यदि किसी व्यक्ति को लोक सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् का सभापति या उपसभाषपति चुना जाता है, तो वह अपने दल से त्यागपत्र दे सकता है या अपने कार्यकाल के पश्चात् अपने दल की सदस्यता पुनः ग्रहण कर लेता है.
अध्यक्ष की भूमिका में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों है?
अध्यक्ष के पद की प्रकृति: चूँकि अध्यक्ष के पद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है, इसलिए अध्यक्ष पुन: निर्वाचित होने के लिए अपने राजनीतिक दल पर निर्भर रहता है. अतः यह स्थिति अध्यक्ष को स्वविवेक के बजाए सदन की कार्यवाही को राजनीतिक दल की इच्छा से संचालित करने का मार्ग प्रशस्त करती है.
पद से संबंधित अंतर्निहित विरोधाभास: उल्लेखनीय है कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से या तो नाममात्र (डी ज्यूर) या वास्तविक (डी फैक्टो) रूप से संबंधित होता है तो उस स्थिति में एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर उसे (अध्यक्ष) निर्योग्यता संबंधी याचिकाएं सौपना युक्तिसंगत और तार्किक प्रतीत नहीं होता है.
दल-परिवर्तन विरोधी कानून के तहत निर्योग्यता के संबंध में अध्यक्ष द्वारा किए जाने वाले निर्णय से संबंधित विलंब पर अंकुश लगाने हेतु: अध्यक्ष के समक्ष लंबित निर्योग्यता संबंधी मामलों के निर्णय में विलंब के कारण, प्राय: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां सदस्यों को अपने दलों से निर्योग्य घोषित किए जाने पर भी वे सदन के सदस्य बने रहते हैं.
मेरी राय – मेंस के लिए
- द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की “शासन में नैतिकता” नामक शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में और विभिन्न अन्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा सिफारिश की गई है कि सदस्यों को दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराने के मुद्दों के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाना चाहिए.
- जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है, जब तक कि “असाधारण परिस्थितियां” उत्पन्न नहीं हो जाती हैं, दसवीं अनुसूची के तहत निर्योग्यता संबंधी याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा तीन माह के भीतर निर्णय किया जाना चाहिए.
- संसदीय लोकतंत्र के अन्य मॉडलों/उदाहरणों का अनुसरण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यक्ष तटस्थ रूप से निर्णय कर सके. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में यह परिपाटी रही है कि आम चुनावों के समय राजनीतिक दल अध्यक्ष के विरुद्ध निर्वाचन हेतु किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करते हैं और जब तक अन्यथा निर्धारित नहीं हो जाता, अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है. वहां यह भी परिपाटी है कि अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल की सदस्यता से त्याग-पत्र दे देता है.
- वर्ष 1951 और वर्ष 1953 में, भारत में विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में इस ब्रिटिश मॉडल को अपनाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया था.
- हालाँकि, पहले से ही विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के मध्य इस बात पर चर्चा चल रही है कि विशेष रूप से सदस्यों के दल परिवर्तन से संबंधित मामलों में, अध्यक्ष के पद की “गरिमा” को कैसे सुरक्षित किया जाए. इस संदर्भ में, लोकतांत्रिक परंपरा और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि एक सतर्क संसद, दक्षतापूर्ण कार्य करने वाले लोकतंत्र की नींव का निर्माण करती है और पीठासीन अधिकारी इस संस्था की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
- दिनेश गोस्वामी समिति: वर्ष 1990 में चुनावी सुधारों को लेकर गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा था कि दल-बदल कानून के तहत प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने का निर्णय चुनाव आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा लिया जाना चाहिये.संबंधित सदन के मनोनीत सदस्यों को उस स्थिति में अयोग्य ठहराया जाना चाहिये यदि वे किसी भी समय किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं.
- विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट: वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव से पूर्व दो या दो से अधिक पार्टियाँ यदि गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं तो दल-बदल विरोधी प्रावधानों में उस गठबंधन को ही एक पार्टी के तौर पर माना जाए. राजनीतिक दलों को व्हिप (Whip) केवल तभी जारी करनी चाहिये, जब सरकार की स्थिरता पर खतरा हो. जैसे- दल के पक्ष में वोट न देने या किसी भी पक्ष को वोट न देने की स्थिति में अयोग्य घोषित करने का आदेश.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus: भारत के हितों पर विकसित तथा विकासशील देशों की नीतियों तथा राजनीति का प्रभाव; प्रवासी भारतीय.
Topic : Houthi movement
संदर्भ
हाल ही में, अबू धाबी में हुए एक संदिग्ध ड्रोन हमले में दो भारतीयों सहित तीन लोग मारे गए थे. यमन के हूती विद्रोहियों (Houthi rebels) ने इस ड्रोन हमले की जिम्मेदारी ली है.
संबंधित प्रकरण
अरब जगत के सबसे गरीब देशों में से एक, ‘यमन’ लगभग सात साल से जारी गृह युद्ध से तबाह हो चुका है. राजधानी साना’ (Sana’a)’ पर ‘हूती विद्रोहियों’ द्वारा कब्ज़ा करने के बाद, देश में ईरानी प्रभाव को समाप्त करने तथा पूर्व सरकार को बहाल करने के उद्देश्य से सऊदी अरब के नेतृत्व में सेना ने विद्रोहियों के खिलाफ जंग छेड़ दी.
वर्ष 2015 में यूनाइटेड अरब अमीरात भी इस सऊदी अभियान में शामिल हो गया और वर्ष 2019 और 2020 में अपनी सेना की औपचारिक वापसी की घोषणा के बावजूद, इस संघर्ष में गंभीरतापूर्वक शामिल रहा है.
हूती कौन हैं?
- हूती (Houthi), ‘जैदी शिया संप्रदाय’ (Zaidi Shia sect) से संबंधित एक सशस्त्र विद्रोही समूह हैं जो यमन की सरकार के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं.
- परंपरागत रूप से, हूती समुदाय के लोग ‘यमन’ के उत्तर-पश्चिम में स्थित ‘सादा प्रांत’ (Saada Province) में केंद्रित रहे हैं.
मामला क्या है?
हूती शिया मुसलमान हैं, जिन्हें ईरान का समर्थन हासिल है. यमन के बाक़ी हिस्सों में बहुतायत सुन्नी मुसलमानों की है और हूती विद्रोहियों के ख़िलाफ़ बमबारी करने का नेतृत्व सऊदी अरब ने शुरू किया था.
विदित हो कि यमन में हाउती विद्रोही (Houthi rebels) और राष्ट्रपति अब्द्रबूह मंसूर हादी की विश्वासी में कई वर्षों से युद्ध चल रहा है. इस लड़ाई में सऊदी अरब भी 2015 से घुस गया है. उसकी योजना है कि हाउती विद्रोहियों को राजधानी “सना” से बाहर कर दिया जाए और देश की सरकार को वापस दे दिया जाए. परन्तु चार वर्षों से चल रही लड़ाई के बावजूद न केवल सना अपितु अधिकांश उत्तरी यमन पर हौथियों का नियंत्रण बना हुआ है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार यमन में अभी तक इसके कारण दस हजार लोग मारे जा चुके हैं. साथ ही दोनों पक्षों के हवाई आक्रमणों के चलते इमारतों को क्षति पहुँची है तथा भोजन और दवाई की आपूर्ति दुष्प्रभावित हुई है. फलस्वरूप 12 मिलियन लोग भूक से मरने की कगार पर हैं. यहाँ हाल ही में कोलरा भयंकर रूप से फ़ैल गया था. UNICEF का कहना है कि यमन में हर दस मिनट पर एक बच्चा मर जाता है जबकि उपचार से उसे बचाया जा सकता था.
मेरी राय – मेंस के लिए
1990 में यमन का उत्तरी और दक्षिणी हिस्सा एक ही देश के हिस्से थे. वास्तव में दक्षिणी हिस्सा ज़्यादा खुशहाल था. लेकिन चार साल बाद ही सालेह ने जैसे ही सत्ता संभाली देश गृह युद्ध की गिरफ़्त में आ गया.
2007 में दक्षिणी यमन में आंदोलन शुरू हुआ, वे अलग देश की मांग नहीं कर रहे थे, लेकिन अपनी समस्याओं का हल करने की बात कर रहे थे. इसलिए मौजूदा संकट का हल तब तक नहीं होगा, जब तक दक्षिणी यमन की चिंताओं को दूर नहीं किया जाता.
Prelims Vishesh
Eastern Swamp deer :-
- दक्षिण एशिया में हर जगह विलुप्त हो चुके, संवेदनशील श्रेणी में दर्ज पूर्वी बारहसिंगा या ईस्टर्न स्वैम्प डियर (Eastern Swamp deer) की आबादी ‘काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान’ और ‘टाइगर रिजर्व’ में काफी कम हो गयी है.
- इन जीवों की संख्या वर्ष 2018 में 907 थी, जोकि 10 जनवरी और 11 जनवरी को आयोजित गणना के अनुसार 868 रह गयी है. ‘पूर्वी बारहसिंगा’ की आबादी में आई इस कमी के लिए अधिकारियों ने वर्ष 2019 और 2020 में आने वाले दो भयंकर बाढो के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
बारहसिंगा के बारे में
- बारहसिंगा को ‘दलदली हिरण’ या स्वैम्प डियर भी कहा जाता है. ये जीव ‘काजीरंगा’ के लिए स्थानिक है.
- पूर्वी दलदली हिरण (पूर्वी बारहसिंगा), एक समय काजीरंगा के ‘मध्य कोहोरा’ और ‘बागोरी पर्वतमाला’ में सर्वाधिक संख्या में पाए जाते थे.
- IUCN स्थिति: संवेदनशील (Vulnerable).
- यह मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का ‘राजकीय पशु’ भी है.
- विस्तार: मध्य भारत से लेकर उत्तरी भारत और दक्षिणी नेपाल.
- भारत: असम, जमना नदी, गंगा नदी, ब्रह्मपुत्र नदी, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश.
Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Current Affairs Hindi
December, 2021 Sansar DCA is available Now, Click to Download