Sansar Daily Current Affairs, 20 March 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : The Mizoram Maintenance of Household Registers Bill, 2019
संदर्भ
मिज़ोरम विधानसभा ने मिज़ोरम पारिवारिक पंजी संधारण विधेयक, 2019 को सर्वसहमति से पारित कर दिया है.
विधेयक के मुख्य तत्त्व
- इसके अंतर्गत पारिवारिक स्तर पर राज्य में रहने वाले प्रत्येक जन का नाम, विवरण एवं छायाचित्र से युक्त पंजी बनाई जाएगी जिससे कि उन अवैध विदेशियों का पता चल सके जो राज्य में रहकर विकास योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं.
- विधेयक के अनुसार प्रत्येक परिवार और उसके सदस्यों का यह उत्तरदायित्व होगा कि वे पंजी बनाने वाले अधिकारियों द्वारा माँगी गई प्रत्येक सूचना, विवरण और छायाप्रति मुहैया करें.
- सूचनाओं को एकत्र करने के पश्चात् पंजी बनाने वाले अधिकारी दो प्रकार की पंजियाँ तैयार करें – एक नागरिक निवासियों की और दूसरी गैर-नागरिक निवासियों की.
- पंजी के लिए कोई व्यक्ति जो सूचना आदि देगा उसका सत्यापन राज्य सरकार द्वारा समय-समय पर नामित राज्य-स्तरीय गैर-सरकारी संगठनों की स्थानीय शाखा का अध्यक्ष करेगा और उस पर प्रतिहस्ताक्षर करेगा.
- विधेयक के अनुसार सभी सरकारी विभाग और पुलिस पारिवारिक पंजियों का उपयोग प्रशासनिक कार्यों, विकास की योजनाओं और विधि व्यवस्था लागू करने में कर सकेंगे.
- विधेयक ने नागरिक शब्द की परिभाषा देते हुए कहा है कि राज्य का नागरिक वह व्यक्ति है जिसका नाम पारिवारिक पंजी में है अथवा जिसके पास नागरिकता अधिनियम, 1955 के अंतर्गत वर्णित आवश्यक योग्यता है.
विधेयक आवश्यक क्यों था?
मिज़ोरम की सीमाएँ सुरक्षित नहीं हैं, अतः यहाँ दशाब्दियों से बाहरी व्यक्ति प्रवेश करते रहे हैं. बाहर से विदेशी आकार यहाँ छिप-छिपाकर रहते हैं और गलत पहचान का लाभ उठाकर पुलिस की नज़र से बच जाते हैं. ये स्थानीय लोगों में घुल-मिल गये हैं और सरकार की कल्याण योजनाओं का अच्छा-ख़ासा अंश हस्तगत कर लेते हैं.
बहुत सारे विदेशियों का मिज़ोरम में आकर गाँवों में स्थानीय निवासियों के साथ घुल-मिल जाने से राज्य की जनसंख्या में असामान्य वृद्धि हुई है और विधि-व्यवस्था पर संकट आ पड़ा है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Section 33(7) of the Representation of People’s Act
संदर्भ
ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने आगामी विधानसभा में दो चुनाव क्षेत्रों से लड़ने का निर्णय लिया है.
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुभाग 33(7) में वर्णित प्रावधान
1996 के पहले कोई भी व्यक्ति जितने चुनाव क्षेत्रों से चाहे लड़ सकता था. इस प्रथा को रोकने के लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में अनुभाग 33(7) का प्रावधान किया गया. इस अनुभाग के अनुसार कोई व्यक्ति अधिकतम दो ही चुनाव क्षेत्रों से प्रत्याशी बन सकता है. यह प्रावधान सभी प्रकार के चुनावों के लिए हैं, जैसे – संसदीय चुनाव, विधानसभा चुनाव, द्वैवार्षिक परिषद् का चुनाव अथवा उप-चुनाव.
एक से अधिक सीट से लड़ने पर प्रतिबन्ध क्यों होना चाहिए?
- लोकतंत्र का सिद्धांत ही है – एक व्यक्ति, एक वोट, एक प्रत्याशी, एक चुनाव क्षेत्र. इसलिए आदर्श स्थिति यही होनी चाहिए कि एक व्यक्ति एक समय पर एक ही चुनाव क्षेत्र से खड़ा हो.
- जब कोई दो सीटों से लड़ता है और दोनों जीत जाता है तो उसे एक सीट को छोड़ना पड़ जाता है. अब जो सीट खाली हुई उस पर छह महीने के अन्दर चुनाव कराना आवश्यक हो जाता है. दुबारा चुनाव करने से सरकार पर आर्थिक बोझ तो बढ़ता ही है, अपितु कार्यबल और अन्य संसाधनों का फिर से प्रयोग करना पड़ता है.
- जिस चुनाव क्षेत्र में दुबारा चुनाव होता है तो वहाँ के मतदाताओं को फिर से मत देने के लिए निकलना पड़ता है जो उन्हें अनावश्यक रूप से परेशानी में डालता है.
निर्वाचन आयोग का सुझाव
भारतीय निर्वाचन आयोग ने यह वैकल्पिक सुझाव दिया है कि यदि कोई व्यक्ति दो सीटों से चुनाव लड़ता है और जीतने पर एक सीट को छोड़ देता है, तो उस सीट के लिए उप-चुनाव कराने में जो खर्च आयेगा उसका थोड़ा-थोड़ा वहन उस प्रत्याशी को करना होगा. आयोग का सुझाव है कि यदि कोई संसदीय सीट त्यागता है तो दस लाख रू. और यदि विधानसभा की सीट छोड़ता है तो उसे 5 लाख रू. की क्षतिपूर्ति देनी चाहिए.
GS Paper 2 Source: Indian Express
Topic : Indian Forest Act amendment
संदर्भ
भारत सरकार ने भारतीय वन अधिनियम में संशोधन करने के लिए पहला प्रारूप तैयार कर लिया है और उसे राज्यों को मन्तव्य देने के लिए भेज दिया गया है.
प्रारूप के मुख्य तत्त्व
- प्रारूप में “समुदाय” को इस प्रकार परिभाषित किया गया है – सरकारी प्रलेखों के आधार पर लक्षित व्यक्तियों का वह समूह जो किसी विशेष स्थान में रहता है और जिसका सामान्य सम्पदा संसाधनों पर संयुक्त रूप से अधिकार होता है. इस परिभाषा में नस्ल, धर्म, जाति, भाषा और संस्कृति का कोई स्थान नहीं है.
- प्रस्तावित संशोधन में वन की परिभाषा इस प्रकार है – किसी भी सरकारी प्रलेख में वन अथवा वनभूमि के रूप में अभिलिखित अथवा अधिसूचित कोई भी सरकारी अथवा निजी अथवा संस्थानगत भूमि तथा समुदाय द्वारा वन एवं मैन्ग्रोव के रूप में प्रबंधित भूमि तथा साथ ही ऐसी कोई भी भूमि जिसे केन्द्रीय अथवा राज्य सरकार अधिसूचित कर अधिनियम के लिए वन के रूप में घोषित करे.
- भारतीय वन अधिनियम, 1927 की प्रस्तावना में वर्णित था कि अधिनियम मुख्य रूप से उन कानूनों पर केन्द्रित है जो वन उत्पादों के परिवहन और उन पर लगने वाले कर से सम्बंधित हैं. परन्तु प्रस्तावित संशोधन में अधिनियम के लिए मुख्य विचारणीय विषय अब ये हो गये हैं – वन संसाधनों का संरक्षण, संवर्द्धन और सतत प्रबंधन तथा पारिस्थितिकी तन्त्र की सेवाओं की शाश्वत उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरणगत स्थिरता को सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन एवं अंतर्राष्ट्रीय वचनबद्धताओं से सम्बंधित चिंता.
- संशोधन में राज्यों की भूमिका पहले से बड़ी कर दी गई है. अब यदि कोई राज्य यह अनुभव करता है कि वन अधिकार अधिनियम (FRA) के अंतर्गत प्रदत्त किसी अधिकार से संरक्षण के प्रयासों में अड़चन आती है तो वह राज्य ऐसे अधिकार में परिवर्तन कर सकता है और इसके लिए सम्बन्धित व्यक्ति को बदले में धनराशि दे सकता है अथवा भूमि दे सकता है अथवा ऐसा कोई भी कदम उठा सकता है जिससे वन में रहने वाले समुदायों का सामाजिक सन्गठन ज्यों का त्यों बना रहे अथवा ऐसे वन समुदायों को कोई ऐसा नया वन खंड दे सकता है जिसका आकार पर्याप्त हो और जहाँ वनवासी ठीक-ठाक सुविधाओं के साथ रह सकें.
- संशोधन के प्रारूप में वनों की एक नई श्रेणी बनाई गई है – उत्पादन वन. ये वे वन होंगे जहाँ इन वस्तुओं का विशेष रूप से उत्पादन होता है – इमारती लकड़ी, पल्प, पल्प वुड, जलावन, गैर-इमारती वन उत्पाद, औषधीय पौधे अथवा अन्य वन प्रजातियाँ.
भारतीय वन अधिनियम, 1927
- भारतीय वन अधिनियम, 1927 (Indian Forest Act, 1927) मुख्य रूप से ब्रिटिश काल में लागू पहले के कई भारतीय वन अधिनियमों पर आधारित है. इन पुराने अधिनियमों में सबसे प्रसिद्ध था – भारतीय वन अधिनियम, 1878.
- 1878 और 1927 दोनों अधिनियमों में वनाच्छादित क्षेत्र अथवा वह क्षेत्र जहाँ बहुत से वन्य जीव रहते हैं., वहाँ आवाजाही एवं वन-उत्पादों के स्थानान्तरण को नियंत्रित किया गया था. साथ ही इमारती लकड़ी और अन्य वन उत्पादों पर चुंगी लगाए जाने का प्रावधान किया गया था.
- 1927 के अधिनियम में किसी क्षेत्र को आरक्षित वन अथवा सुरक्षित वन अथवा ग्राम वन घोषित करने की प्रक्रिया बताई गई है. 1927 के अधिनियम में यह भी बताया गया है कि वन अपराध क्या है और किसी आरक्षित वन के भीतर कौन-कौन से कार्य वर्जित हैं और अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन के लिए कौन-कौन से दंड निर्धारित हैं.
GS Paper 2 Source: Livemint
Topic : Permanent status to Finance Commission
संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने वित्त आयोग को स्थायी बनाने का पक्ष लिया है.
वित्त आयोग को स्थायी बनाने के लिए तर्क
यदि वित्त आयोग को स्थायी स्वरूप दे दिया जाता है तो इससे नीतियों में एक सततता आएगी जोकि अर्थव्यवस्था के लिए लाभकारी होगी. विदित हो कि कई दशाब्दियों से अलग-अलग वित्त आयोग कर राशि के राज्यों के बीच वितरण के सिद्धांतों के विषय में अलग-अलग रवैया अपनाते रहे हैं.
केंद्र से राज्यों को दी जाने वाली निधियों के मामले में एक निश्चित सिद्धांत अपनाना अत्यावश्यक है. GST के आने के पश्चात् यह और भी आवश्यक हो गया है. ऐसी दशा में वित्त आयोग की नीतियों का एकरूप होना अनिवार्य प्रतीत होता है.
यदि वित्त आयोग को स्थायी स्वरूप दे दिया जाता है तो दो वित्त आयोगों के बीच की कालावधि में नीतियों का संचालन नहीं रुकेगा और वित्त आयोग के सुझावों के कार्यान्वयन से सम्बन्धित मामलों का समुचित समाधान संभव हो सकेगा.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : Special Stamp on Ice Stupa Released
संदर्भ
भारतीय डाक विभाग ने हाल ही में हिम स्तूप पर एक विशेष टिकट निकाला है जिसका उद्देश्य हिमालय की हिमानियों के क्षय तथा उसके हिमालय के आस-पास के पर्यावरण पर दुष्प्रभाव के बारे में जागरूकता उत्पन्न करना है.
हिम स्तूप क्या हैं और उनकी आवश्यकता क्या है?
- वर्तमान में ऐसी कृत्रिम हिमानियों अर्थात् हिम स्तूपों के निर्माण पर विचार चल रहा है जो पूरे जाड़ों में झरनों और नदियों में ऊपर से प्रवाहित और व्यर्थ होने वाले पानी को जमा करके रोक देंगे. कृत्रिम हिमानियों का पानी जाड़ों में न बहकर बसंत में ठीक उसी समय बहेंगी जब खेतों को आवश्यकता होती है.
- हिम स्तूप की यह अवधारणा मूलतः HIAL के संस्थापक सोनम वांगचुक की है जिन्होंने इसकी कल्पना वसंत ऋतु में लद्दाख के किसानों की समस्याओं के निराकरण के लिए की थी.
हिम स्तूप का स्वरूप
हिम स्तूप का निर्माण झरनों को जमा कर किया जाता है. जब कोई झरना जम जाता है तो वह हिम के विशाल मीनार में बदल जाता है जिसकी ऊँचाई 30 से लेकर 50 मीटर ऊँची हो सकती है. जमे हुए झरने स्थानीय पवित्र स्तूपों के सदृश दिखते हैं, इसलिए इन्हें हिम स्तूप का नाम दिया गया है. ये स्तूप उस गाँव के ठीक पास में बनाए जा सकते हैं जहाँ पानी की आवश्यकता है. हिम स्तूप से बहने वाले जल का प्रयोग सरलतापूर्वक भूमिगत पाइप डालकर किया जा सकता है.
यह कैसे काम करता है?
पानी सदैव अपना स्तर बनाए रखता है, इसलिए 60 मीटर की ऊँचाई में पाइप लगाकर पानी को नीचे उतारा जा सकता है और वह पानी तेजी से 60 मीटर ऊँचे उस स्थान में पहुँच सकता है जहाँ कि गाँव है. हिम स्तूप लम्बवत् खड़े रहते हैं, इसलिए इनको सूर्य की धूप कम मिलती है. फलस्वरूप इनको पिघलने में कम समय लगता है.
माहात्म्य
प्रत्येक स्तूप में 30-50 लाख लीटर पानी संधारित करने की क्षमता होती है जो पहाड़ों की ढालों में प्राकृतिक रूप से बचने वाले पानी के अतिरिक्त होता है. यह तकनीक जीवन रक्षक है और खेती के लिए भी अत्यंत लाभदायक है.
Prelims Vishesh
India-Indonesia Coordinated Patrol (Ind-Indo Corpat) :-
- भारत और इंडोनेशिया की समन्वित गश्ती इंड-इंडो कार्पेट का 33वाँ संस्करण पोर्ट ब्लेयर में आरम्भ होने जा रहा है.
- यह कार्यक्रम भारत और इंडोनेशिया के बीच मित्रवत सम्बन्धों कि सुदृढ़ करने तथा सामुद्रिक क्षेत्र में आवाजाही व्यवस्थित करने के निमित्त आयोजित होता है.
Indo-Sri Lanka joint Exercise Mitra shakti-VI :–
प्रत्येक वर्ष भारत और श्रीलंका की सेनाओं के बीच आदान-प्रदान और सैन्य कूटनीति के एक भाग के रूप में मित्र शक्ति नामक अभ्यास किया जाता है जिसका उद्देश्य दोनों देशों की सेनाओं के बीच निकट सम्बन्ध बनाने तथा संयुक्त अभ्यास की क्षमता को संवर्धित करने के लिए किया जाता है.
G.B. Pant National Institute of Himalayan Environment & Sustainable Development :–
- भारत रत्न गोविन्द बल्लभ पन्त की जन्मसती के अवसर पर गोविन्द बल्लभ राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण एवं सतत विकास संस्थान की स्थापना 1988-89 में हुई थी.
- यह पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, भारत सरकार के अधीन एक स्वायत्त संस्थान है.
- यह संस्थान हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरण के अनुकूल विकास तथा प्राकृतिक संसाधनों के सम्यक् संरक्षण को समर्पित है.
U.S. Mathematician Becomes First Woman To Win Abel Prize, ‘Math’s Nobel’ :–
- अमेरिका के कैरन उह्लेनबेक को गणित का सबसे सम्मानित पुरस्कार – एबल पुरस्कार – दिया गया है.
- यह पुरस्कार पानी वाली यह पहली महिला हैं.
- इस पुरस्कार में $7,03,000 का चेक मिलता है.
- यह पुरस्कार हर वर्ष नार्वे का राजा देता है. पुरस्कार का नाम नोर्वे की ही 19वीं शताब्दी के गणितज्ञ नील्स हेनरिक एबल के नाम पर है.
Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA
June, 2019 Sansar DCA is available Now, Click to Download