Sansar डेली करंट अफेयर्स, 21-31 October 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 21-31 October 2020


GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.

Table of Contents

Topic : Bundi Architecture

संदर्भ

पर्यटन मंत्रालय ने 24 अक्टूबर, 2020 को ‘बूंदी: आर्किटेक्चरल हेरिटेज ऑफ ए फॉरगोटेन राजपूत कैपिटल’ शीर्षक से ‘देखो अपना देश’ वेबिनार शृंखला का आयोजन किया, जो राजस्थान के बूंदी ज़िले पर केंद्रित थी.

उद्देश्य

  • मध्ययुगीन भारत के प्रमुख शक्ति केंद्रों के आस-पास स्थित छोटे ऐतिहासिक शहर वर्तमान में गुमनामी की दशा में हैं.
  • भारत के विशाल भूगोल में विस्तृत छोटे शहरों और कस्बों की ओर पर्यटकों का ध्यान काफी कम गया है, ऐसे में पर्यटकों को इन क्षेत्रों के बारे में अवगत कराना काफी आवश्यक है, ताकि आम लोग इन क्षेत्रों के ऐतिहासिक महत्त्व को जान सकें और एक पर्यटन स्थल के तौर पर इनका विकास हो सके.

देखो अपना देश’ वेबिनार श्रृंखला क्या है?

  • इस वेबिनार श्रृंखला की शुरुआत भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय द्वारा 14 अप्रैल, 2020 को की गई.
  • “देखो अपना देश” वेबिनर का एकमात्र उद्देश्य लोगों को भारत के गंतव्य स्थलों की जानकारी प्रदान करना है.
  • ‘देखो अपना देश’ श्रृंखला सत्रों के संचालन का जिम्मा इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन राष्ट्रीय ई-गवर्नेंस विभाग लेता है.
  • विदित हो कि इस वेबिनार श्रृंखला के आने वाले सत्र का शीर्षक ‘फोटोवाल्किंग भोपाल’ (Photowalking Bhopal) है.
  • इस शो को एक्सपर्ट होस्ट करते हैं और देश की कई मशहूर जगहों के बारे में बताते हैं.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

  • पर्यटन मंत्रालय की देखो अपना देश वेबिनार शृंखला के 32वें सत्र में हिमालय क्षेत्र के चार स्थलों की विशेष चर्चा हुई. ये स्थल हैं –
  1. कुआरी दर्राउत्तराखंड (लार्ड कर्जन द्वारा खोजा गया).
  2. ब्रह्मा ताल, उत्तराखंड (एक प्रछन्न (छिपी हुई) झील जहाँ भगवान् ब्रह्मा ने तपस्या की थी.
  3. फोटोक्सार, लद्दाख (एक रमणीय गाँव)
  4. रूपखंड, उत्तराखंड (त्रिशूल मैसिफ की गोद में स्थित हिमानी झील).

GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : World geography

Topic : Tectonic Plate

संदर्भ

हाल ही में वैज्ञानिकों ने एक मॉडल (model) बनाया है जो बताता है कि लगभग 60 मिलियन वर्ष पहले पश्चिमी – उत्तरी अमेरिका (Western North America) में स्थित एक टेक्टॉनिक प्लेट (tectonic plate) वास्तव में मौजूद थी. हालाँकि कुछ भू-भौतिकीविद इससे सहमत नहीं हैं.

टेक्टॉनिक प्लेट

प्लेट टेक्टोनिक सिद्धांत के अनुसार पृथ्वी की भू-पर्पटी अनेक छोटी-बड़ी प्लेटों में विभक्त है. ये टेक्टोनिक प्लेटें स्वतंत्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलमंडल पर विभिन्न दिशाओं में संचलन करती हैं. समुद्री तल प्रसार, महाद्वीपीय विस्थापन, भूपटलीय संरचना, भूकम्प एवं ज्वालामुखी क्रिया इत्यादि को समझने के लिए प्लेट टेक्टॉनिक सिद्धान्त का प्रयोग किया जाता है.

प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत का विकास

  • वर्ष 1955 में सर्वप्रथम कनाडा के भू-वैज्ञानिक जे. टूजो विल्सन (J-Tuzo Wilson) ने ‘प्लेट’ शब्द का प्रयोग किया.
  • वर्ष 1967 में मैकेंजी, मॉर्गन व पारकर पूर्व के उपलब्ध विचारों को समन्वित कर ‘प्लेट विवर्तनिकी सिद्धांत’ का प्रतिपादन किया.

प्लेट एवं प्लेट विवर्तनिकी

  • क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल की ऊपरी परत से निर्मित 5 किलोमीटर से लेकर 200 किलोमीटर मोटाई की ठोस परत अर्थात् स्थलमंडल के वृहद भाग को प्लेट कहते हैं. वस्तुतः पृथ्वी का स्थलीय दृढ़ भू-खंड ही प्लेट कहलाता है. यह कई खंडों में विभाजित होती है जो महाद्वीपीय और महासागरीय क्रस्ट से निर्मित होती है. इनमें सिलिका, एल्युमिनियम तथा मैग्नीशियम की अधिकता होती है.
  • विदित हो कि ये प्लेटें स्वतंत्र रूप से पृथ्वी के दुर्बलमंडल पर विभिन्न दिशाओं में संचलन करती हैं.
  • प्लेटों के एक दूसरे के सापेक्ष होने वाले संचलन के परिणामस्वरूप पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तन के अध्ययन को प्लेट विवर्तनिकी कहते हैं.

प्लेट्स के संचरन का कारण

  • मुख्यतः संवहन तरंग, कटक दबाव एवं स्लैब खिंचाव को सम्मिलित रूप को प्लेट संचलन के लिये उत्तरदायी माना जाता है  जिसमें संवहन तरंगों का योगदान सर्वाधिक होता है.
  • ध्यातव्य है कि संवहन तरंगों की उत्पत्ति तापमान में वृद्धि एवं दाब में कमी के कारण गर्मगलित पदार्थ अर्थात् मैग्मा के प्रभाव से होती है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : ssues relating to development and management of Social Sector/Services relating to Health, Education, Human Resources. Issues relating to poverty and hunger.

Topic : IT Ministry working to comply with CIC orders on Aarogya Setu

संदर्भ

हाल ही में, आरटीआई (सूचना का अधिकार) के माध्यम से आरोग्य सेतु एप्लीकेशन (Aarogya Setu application) से संबंधित जानकारी माँगी गयी थी.

आरोग्य सेतु क्या है?

आरोग्य सेतु (Aarogya Setu), एक एंड्राइड (Android) और आईओएस (IOS) प्लेटफ़ॉर्म आधारित ऐप है, जो कोरोनावायरस वायरस ट्रैकिंग ऐप के रूप में उपयोगकर्ताओं द्वारा प्रदान किए गए डेटा का उपयोग करती है.

संबंधित प्रकरण

कुछ समय पूर्व, एक आरटीआई (सूचना का अधिकार) के माध्यम से आरोग्य सेतु एप्लीकेशन (Aarogya Setu application) से संबंधित जानकारी मांगी गयी थी. जिसके जबाब में इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (IT Ministry) और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (National Informatics Centre- NIC) ने कहा था कि, उनके पास आरोग्य सेतु एप्लीकेशन के ‘निर्माण’ से संबंधित कोई जानकारी नहीं है.

  1. इस जबाब पर केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) द्वारा आईटी मंत्रालय और राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र की फटकार लगाई गयी.
  2. केंद्रीय सूचना आयोग (CIC) ने सरकार के इस जवाब को ‘अतर्कसंगत’ करार दिया है. आयोग ने NIC को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा है कि उस पर ‘प्रथमदृष्टया सूचना को बाधित करने और अस्पष्ट जवाब देने के लिए’ सूचना के अधिकार अधिनियम (आरटीआई) के तहत जुर्माना क्यों नहीं लगाया जाए.

केन्द्रीय सूचना आयोग के पदों के लिए अर्हता

  • सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुभाग 12 (5) के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य केन्द्रीय सूचना आयुक्त वे व्यक्ति होंगे जो सार्वजनिक रूप से सुप्रतिष्ठित होंगे और जिन्हें इन विषयों का गहन ज्ञान और अनुभव होगा – विधि, विज्ञान एवं तकनीक, समाज सेवा, प्रबन्धन, पत्रकारिता, जन-मीडिया अथवा प्रशासन.
  • अधिनियम के अनुभाग12 (6) में यह बतलाया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त अथवा केन्द्रीय सूचना आयुक्त संसद के सदस्य अथवा किसी भी राज्य अथवा केन्द्रीय-शाषित क्षेत्र के विधायक नहीं होंगे. साथ ही वे ऐसे व्यक्ति नहीं होंगे जो किसी अन्य लाभ के पद पर हैं अथवा किसी राजनीतिक दल से जुड़े हुए हैं अथवा कोई व्यवसाय करते हों अथवा कोई पेशा करते हों.

मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल और वेतन

  • अधिनियम के अनुभाग 13 के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त का कार्यकाल पदधारण के अगले पाँच साल तक या 65 वर्ष की आयु तक होगा. उसकी दुबारा नियुक्ति नहीं होगी.
  • अधिनियम के अनुभाग 13(5)(a) में बतलाया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त का वेतन, भत्ते और अन्य सेवा शर्तें वही होंगी जो मुख्य चुनाव आयुक्त की होती हैं.

केन्द्रीय सूचना आयुक्तों का कार्यकाल एवं सेवा शर्तें

  • प्रत्येक सूचना आयुक्त, उस तारीख से, जिसको वह अपना पद ग्रहण करता है, पाँच वर्ष की अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तकइनमें से जो भी पहले आये, पद धारण करेगा और सूचना आयुक्त के रूप में पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होगा.
  • परन्तु प्रत्येक सूचना आयुक्त, इस उपधारा के अधीन अपना पद रिक्त करने पर, धारा 12 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट रीति से मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्ति के लिये पात्र होगा.
  • परन्तु यह प्रावधान भी है कि जहाँ सूचना आयुक्त को मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में नियुक्त किया जाता है वहाँ उसकी पदावधि सूचना आयुक्त और मुख्य सूचना आयुक्त के रूप में कुल मिलाकर पाँच वर्ष से अधिक नहीं होगी.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Parliament and State Legislatures – structure, functioning, conduct of business, powers & privileges and issues arising out of these.

Topic : Joint Committee of Parliament

संदर्भ

डेटा संरक्षण विधेयक (Data Protection Bill) की समीक्षा के लिये गठित संसद की संयुक्त समिति (Joint Parliamentary Committee (JPC) द्वारा ट्विटर इंक’ (Twitter Inc), अमेरिका स्थित मूल कंपनीसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लद्दाख को चीन के हिस्से के रूप में दिखाने के संबंध में हलफनामे के रूप में स्पष्टीकरण माँगा गया है.

संबंधित प्रकरण

  1. मानचित्र का त्रुटिपूर्ण प्रदर्शन केवल भारत अथवा भारतीयों की संवेदनशीलता का मामला नहीं है, यह भारत की संप्रभुता और अखंडता का मामला है और इसका सम्मान नहीं करना एक आपराधिक कृत्य है.
  2. भारतीय मानचित्र को अनुचित और गलत तरीके से दिखाना राजद्रोह का अपराध है जिसके लिए सात जेल की सजा का प्रावधान है.

संसदीय समितियों का वर्गीकरण 

  • संसदीय समितियाँ कई प्रकार की होती हैं, जिन्हें उनके कार्य, सदस्यता और कार्यकाल की अवधि के आधार पर वर्गीकृत किया जा सकता है.
  • विधेयक, बजट और मंत्रालयों की नीतियों की जाँच करने वाली समितियों को विभागीय स्थायी समितियाँ कहा जाता है. संसद में इस प्रकार की 24 समितियाँ हैं. प्रत्येक समिति में 31 सदस्य (21 लोकसभा और 10 राज्यसभा) होते हैं.
  • विभागीय स्थायी समितियों का कार्यकाल एक वर्ष का होता है, जिसके बाद उनका पुनर्गठन किया जाता है. लोकसभा की अवधि के दौरान उनका कार्य जारी रहता है. कोई भी मंत्री इन समितियों का सदस्य नहीं बन सकता है. वित्त, रक्षा, गृह आदि से संबंधित प्रमुख समितियों की अध्यक्षता आमतौर पर विपक्षी सांसदों द्वारा की जाती है.
  • दोनों सदनों के सांसदों को सम्मिलित करके एक विशिष्ट उद्देश्य के लिये संयुक्त संसदीय समितियाँ गठित की जाती हैं. वर्ष 2011 में टेलीकॉम लाइसेंस और स्पेक्ट्रम के मुद्दे पर कॉन्ग्रेस के सांसद पी.सी. चाको की अध्यक्षता में संयुक्त संसदीय समिति द्वारा जाँच की गई थी. वर्ष 2016 में नागरिकता (संशोधन) विधेयक को भाजपा सांसद राजेंद्र अग्रवाल की अध्यक्षता में एक संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया था.
  • किसी एक विशेष विधेयक की जाँच के लिये प्रवर समिति (Select Committee) का गठन किया जाता है. इसकी सदस्यता किसी एक सदन के सांसदों तक ही सीमित रहती है. पिछले वर्ष राज्यसभा ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 को सदन के विभिन्न दलों के 23 सांसदों की प्रवर समिति को संदर्भित किया था. इस समिति की अध्यक्षता भाजपा सांसद भूपेन्द्र यादव कर रहे थे.
  • चूँकि संयुक्त संसदीय समितियों और प्रवर समितियों का गठन एक विशिष्ट उद्देश्य के लिये किया जाता है, इसलिये इनके द्वारा रिपोर्ट प्रस्तुत करने के पश्चात् इन्हें भंग कर दिया जाता है. इन दोनों प्रकार की समितियों की अध्यक्षता सत्तारूढ़ दल के सांसद करते हैं.

समिति द्वारा विधेयक की जांच कब की जाती है?

विधेयकों को परीक्षण हेतु स्वचालित रूप से समितियों के पास नहीं भेजा जाता है.

इसे तीन विधियों से एक समिति के लिए संदर्भित किया जाता है. ये विधियां निम्नलिखित हैं:

  1. जब विधेयक को पेश करने वाले मंत्री के द्वारा सदन को सलाह दी जाती है, कि इसकी जांच सदन की प्रवर समिति या दोनों सदनों की संयुक्त समिति द्वारा की जानी चाहिए.
  2. यदि मंत्री इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं करता हैतो यह सदन के पीठासीन अधिकारी पर निर्भर करता है कि विधेयक को विभाग से संबंधित स्थायी समिति के लिए भेजे अथवा नहीं.
  3. इसके अतिरिक्त, एक सदन द्वारा पारित किसी विधेयक को दूसरे सदन द्वारा अपनी प्रवर समिति को भेजा जा सकता है.

विधेयक को एक समिति के पास भेजने के बाद की प्रक्रिया

  1. समिति, विधेयक का विस्तृत परीक्षण करती है.
  2. यह विशेषज्ञोंहितधारकों और नागरिकों से टिप्पणियों और सुझावों को आमंत्रित करती है.
  3. सरकार भी अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के लिए समिति के समक्ष उपस्थित होती है.
  4. इस सब को सम्मिलित करते हुए एक प्रतिवेदन (रिपोर्ट) में विधेयक को मजबूत बनाने संबंधी सुझाव दिए जाते है.
  5. समिति की रिपोर्ट एक अनुशंसात्मक प्रकृति की होती है.

प्रतिवेदन हेतु समय सीमा

समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट पेश करने के बाद ही विधेयक पर संसद में प्रगति हो सकती है. आमतौर परसंसदीय समितियों को तीन महीने में अपनी रिपोर्ट देनी होती हैलेकिन कभी-कभी इसमें अधिक समय लग सकता है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests

Topic : SCO

संदर्भ

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय, भारत सरकार ने हाल ही में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) के सदस्य देशों के मंत्रियों की 8वीं बैठक में वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से भाग लिया. इस बैठक की अध्यक्षता रूस ने की. सदस्य देशों के परिवहन मंत्रालयों / विभागों के स्तर पर समन्वित कार्रवाइयों की आवश्यकता के बारे में बात की गई ताकि कोविड-19 महामारी जैसी आपातकालीन परिस्थितियों में स्थायी परिवहन संचालन सुनिश्चित किया जा सके और सीमा क्षेत्रों में आपातकालीन स्थितियों के प्रसार को रोका जा सके.

Shanghai Cooperation Organization क्या है?

शंघाई सहयोग संगठन एक राजनैतिक, आर्थिक और सुरक्षा सहयोग संगठन है जिसकी शुरुआत चीन और रूस के नेतृत्व में यूरेशियाई देशों ने की थी. दरअसल इसकी शुरुआत चीन के अतिरिक्त उन चार देशों से हुई थी जिनकी सीमाएँ चीन से मिलती थीं अर्थात् रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान. इसलिए इस संघठन का प्राथमिक उद्देश्य था कि चीन के अपने इन पड़ोसी देशों के साथ चल रहे सीमा-विवाद का हल निकालना. इन्होंने अप्रैल 1996 में शंघाई में एक बैठक की. इस बैठक में ये सभी देश एक-दूसरे के बीच नस्ली और धार्मिक तनावों को दूर करने के लिए आपस में सहयोग करने पर राजी हुए. इस सम्मेलन को शंघाई कहा गया.

इसके बाद 2001 में शंघाई 5 में उज्बेकिस्तान भी शामिल हो गया. 15 जून 2001 को शंघाई सहयोग संगठन की औपचारिक स्थापना हुई.

शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य

शंघाई सहयोग संगठन के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं –

  1. सदस्यों के बीच राजनैतिक, आर्थिक और व्यापारिक सहयोग को बढ़ाना.
  2. तकनीकी और विज्ञान क्षेत्र, शिक्षा और सांस्कृतिक क्षेत्र, ऊर्जा, यातायात और पर्यटन के क्षेत्र में आपसी सहयोग करना.
  3. पर्यावरण का संरक्षण करना.
  4. मध्य एशिया में सुरक्षा चिंताओं को ध्यान में रखते हुए एक-दूसरे को सहयोग करना.
  5. आंतकवाद, नशीले पदार्थों की तस्करी और साइबर सुरक्षा के खतरों से निपटना.

SCO का विकास कैसे हुआ?

  1. 2005 में कजाकिस्तान के अस्ताना में हुए SCO के सम्मेलन में भारत, ईरान, मंगोलिया और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों ने पहली बार इसमें हिस्सा लिया.
  2. 2016 तक भारत SCO में एक पर्यवेक्षक देश के रूप में सम्मिलित था.
  3. भारत ने सितम्बर 2014 में शंघाई सहयोग संगठन की सदस्यता के लिए आवेदन किया.
  4. जून 2017 में अस्ताना में आयोजित SCO शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान को भी औपचारिक तौर पर पूर्ण सदस्यता प्रदान की गई.
  5. वर्तमान में SCO की स्थाईसदस्य देशों की संख्या 8 है – चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, भारत और पाकिस्तान.
  6. जबकि चार देश इसके पर्यवेक्षक (observer countries) हैं – अफगानिस्तान, बेलारूस, ईरान और मंगोलिया.
  7. इसके अलावा SCO में छह देश डायलॉग पार्टनर (dialogue partners) हैं – अजरबैजान, आर्मेनिया, कम्बोडिया, नेपाल, तुर्की और श्रीलंका.

SCO क्यों महत्त्वपूर्ण है?

SCO ने संयुक्त राष्ट्र संघ से भी अपना सम्बन्ध कायम किया है. SCO संयुक्त राष्ट्र की महासभा में पर्यवेक्षक है. इसने यूरोपियन संघ, आसियान, कॉमन वेल्थ और इस्लामिक सहयोग संगठन से भी अपने सम्बन्ध स्थापित किये हैं. सदस्य देशों के बीच समन्वय के लिए 15 जनवरी, 2004 को SCO सचिवालय की स्थापना की गई. शंघाई सहयोग संगठन के महत्त्व का पता इसी बात से चलता है कि इसके आठ सदस्य देशों में दुनिया की कुल आबादी का करीब आधा हिस्सा रहता है. इसके साथ-साथ SCO के सदस्य देश दुनिया की 1/3 GDP और यूरेशिया (यूरोप+एशिया) महाद्वीप के 80% भूभाग का प्रतिनिधित्व करते हैं.

इसके आठ सदस्य देश और 4 observer देश दुनिया के उन क्षेत्रों में आते हैं जहाँ की राजनीति विश्व राजनीति पर सबसे अधिक असर डालती हैं. श्रम या मानव संसाधन के लिहाज से भारत और चीन खुद को संयुक्त रूप से दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति कह सकते हैं. IT, engineering, रेडी-मेड गारमेंट्स, मशीनरी, कृषि उत्पादन और रक्षा उपकरण बनाने के मामले में रूस, भारत और चीन दुनिया के कई विकसित देशों से आगे है. ऊर्जा और इंजीनियरिंग क्षेत्र में कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान जैसे मध्य-एशियाई देश काफी अहमियत रखते हैं. इस लिहाज से SCO वैश्विक व्यापार, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर असर डालने की क्षमता रखता है. हालाँकि इन देशों के बीच आपसी खीचतान भी रही है. ये सभी देश आतंकवाद से पीड़ित भी रहे हैं. ये देश एक-दूसरे की जरूरतें पूर्ण करने में सक्षम हैं. SCO में शामिल देश रक्षा और कृषि उत्पादों के सबसे बड़ा बाजार हैं. IT, electronics और मशीनरी उत्पादन में इन देशों ने हाल के वर्षों में काफी प्रगति की है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues related to education.

Topic : BRICS

संदर्भ

केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय ने हाल ही में ब्रिक्स (BRICS) के पर्यटन मंत्रियों की आभासी बैठक में भाग लिया, बैठक में दूसरे ब्रिक्स सदस्य देशों के पर्यटन मंत्री भी सम्मिलित हुए.

आभासी बैठक के दौरान पर्यटन मंत्रालय ने कहा कि कोविड-19 महामारी ने सभी क्षेत्रों में विभिन्न आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर डाला है और विशेष रूप से वैश्विक स्तर पर पर्यटन क्षेत्र के लिए कई चुनौतियां पैदा हो गई हैं. भारत भी ऐसी चुनौतियों का सामना कर रहा है. 

BRICS क्या है?

  • BRICS विश्व की उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं वाले पाँच बड़े देशों – ब्राजील, रूस, भारत, चीन एवं दक्षिण अफ्रीका – का संघ है. इसका नाम इन देशों के पहले अक्षरों को मिला कर बना है.
  • BRICS की पहली बैठक जून 2009 रूस के Yekaterinburg शहर में हुई थी.
  • 2010 में दक्षिण अफ्रीका के शामिल किए जाने से पहले इसे “BRIC” के नाम से जाना जाता था.
  • यह नाम 2001 में Goldman Sachs संस्था के अर्थशास्त्री Jim O’Neill द्वारा सुझाया गया था.
  • इसकी बैठक हर वर्ष होती है जिसमें राजनीतिक एवं सामाजिक-आर्थिक सहयोग के क्षेत्र के विषय में चर्चा होती है.
  • BRICS की अध्यक्षता एक देश के पास न होकर प्रतिवर्ष बदलती रहती है और बदलने का एक क्रम भी BRICS के नाम के अनुसार ही होता है अर्थात् पहले B=Brazil, R=Russia आदि आदि…
  • BRICS में सम्बंधित देशों के प्रमुखों की बैठक तो होती है, साथ ही कई क्षेत्रीय (sectoral) बैठकें भी होती हैं जिनकी संख्या पिछले दस वर्षों में 100 पहुँच चुकी है.
  • BRICS देशों के बीच में सहयोग का कार्यक्रम तीन स्तरों अथवा ट्रैकों (TRACKS) पर चलता है. ये ट्रैक हैं –
  1. Track I = सम्बंधित देशों के बीच में औपचारिक कूटनीतिक कार्यकलाप,
  2. Track II = सरकार से सम्बद्ध संस्थानों, यथा – सरकारी उपक्रम एवं व्यवसाय परिषदों के माध्यम से किये गये कार्यकलाप,
  3. Track III = सिविल सोसाइटी के साथ और “जन से जन” स्तर पर किये गए कार्यकलाप.

BRICS और भारत

हालांकि, भारत को व्यापक रूप से एक मजबूत, उभरती अर्थव्यवस्था के रूप में देखा जाता है, लेकिन BRICS के अन्य सदस्यों से तुलना करने के लिए इसकी आर्थिक क्षमता ही एकमात्र मानदंड नहीं होना चाहिए. समग्र GDP, सामाजिक असमानताओं एवं बुनियादी स्वास्थ्य और अन्य कल्याण सेवाओं तक पहुँच के मामले में, भारत अन्य BRICS राष्ट्रों से पीछे है. कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां भारत अपने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय हितों की वृद्धि हेतु, इस फोरम का उपयोग कर सकता है –

  • भारत द्वारा विदेशी निवेशकों को और अधिक आकर्षित करने के लिए, अपने बुनियादी डांचे में सुधार हेतु अत्यधिक वित्त की आवश्यकता है. विश्व बैंक और IMF के अतिरिक्त, न्यू डेवलपमेंट बैंक भी एक महत्वपूर्ण संगठन है, जो भारत को बुनियादी ढांचे हेतु ऋण प्रदान कर सकता हैं.
  • भारत की शक्ति श्रम, सेवा, जेनेरिक दवाइयों और सूचना प्रौद्योगिकी में निहित है. इसके साथ ही अन्य BRICS भागीदारों के साथ अन्य पर्याप्त सहक्रियाएं हैं, जिनका उपयोग कर इन क्षेत्रों में अंतर-BRICS संबंधों को और मजबूत बनाया जा सकता है.
  • BRICS के सभी सदस्यों छ्वारा तीव्र शहरीकरण की चुनौती का सामना किया जा रहा है. इससे निपटने के लिए भारत ने BRICS सहयोग तंत्र में अर्थवनाईज़ैशन फोरम को शामिल किया है, जिसके माध्यम से एक-दूसरे के अनुभव से सबक लेकर BRICS सहयोग को आगे बढ़ाया जा सकता है.
  • पूर्व सोवियत संघ के विघटन के पश्चात्, रूस के साथ भारत के महत्त्वपूर्ण संबंधों में कमी आती जा रही थी. BRICS एक महत्वपूर्ण मंच है, जिसके द्वारा भारत रूस के साथ अपने सहयोग को बढ़ावा देने के लिए अपनी वार्ता को आगे बढ़ा सकता है.
  • BRICS में सदस्य देशों के मध्य अधिक साझेदारी और सहयोग का वादा किया गया है. यह द्विपक्षीय मुद्दों को हुल करने के लिए भी मंच विकसित कर सकता है.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Issues related to education.

Topic :Annual State of Education Report (ASER) survey

संदर्भ

हाल ही में, सितंबर माह में किए गए शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (Annual State of Education Report– ASER) सर्वेक्षण के परिणाम जारी किये गए हैं.

यह सर्वेक्षण, भारत के ग्रामीण छात्रों की ‘प्रौद्योगिकी के विभिन्न स्तरों तक पहुँच, स्कूल और परिवार के संसाधनों में भिन्नता के परिणामस्वरूप होने वाले शिक्षा में डिजिटल विभाजन के कारण पढाई में होने वाले नुकसान का अनुमान प्रस्तुत करता है.

शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (ASER) के बारे में

  1. असर (Annual Status of Education Report-ASER)ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों द्वारा पढ़ सकने और गणित के प्रश्नों को हल करने की क्षमता पर आधारित, ग्रामीण शिक्षा और अध्ययन परिणामों का एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण है.
  2. यह सर्वेक्षण शिक्षा क्षेत्र की शीर्षस्थ गैर-लाभकारी संस्था ‘प्रथम द्वारा पिछले 15 वर्षों से प्रतिवर्ष कराया जाता है. इस वर्ष, सर्वेक्षण फोन कॉल के माध्यम से आयोजित किया गया था.

प्रमुख निष्कर्ष- कोविड-19 महामारी का प्रभाव

  1. सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 20% ग्रामीण बच्चों के पास घर पर कोई पाठ्यपुस्तकें नहीं है. आंध्र प्रदेश में, 35% से कम बच्चों के पास पाठ्यपुस्तकें थीं. पश्चिम बंगाल, नागालैंड और असम में 98% से अधिक बच्चों के पास पाठ्यपुस्तकें थीं.
  2. सर्वेक्षण सप्ताह के दौरान, लगभग प्रति तीन में से एक ग्रामीण बच्चे द्वारा पढाई संबंधी कोई कार्य नहीं किया गया था.
  3. सर्वेक्षण सप्ताह में, लगभग तीन में से दो बच्चों के पास उनके विद्यालय द्वारा दी गई कोई भी पढाई संबंधित सामग्री या कार्य नहीं था, और प्रति दस छात्रों में से केवल एक को लाइव ऑनलाइन कक्षा की सुविधा उपलब्ध थी.
  4. स्मार्टफोन की सुविधा प्राप्त बच्चों में से एक तिहाई बच्चों को पढाई संबंधित सामग्री नहीं मिली थी.
  5. 6-10 वर्ष की आयु के 5.3% ग्रामीण बच्चों ने इस वर्ष अभी तक स्कूल में दाखिला नहीं लिया था.
  6. 15-16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के मध्य 2018 की तुलना में नामांकन स्तर थोड़ा अधिक था.
  7. सरकारी स्कूलों में नामांकन अपेक्षाकृत अधिक रहा, जबकि निजी स्कूलों में, सभी आयु-वर्गों के छात्रों की, नामांकन में गिरावट देखी गयी.
  8. लगभग 62% स्कूली बच्चों वाले ग्रामीण परिवारों के पास स्मार्टफोन थे. लॉकडाउन के बाद लगभग 11% परिवारों द्वारा एक नया फोन खरीदा गया, जिसमें से 80% स्मार्टफोन थे.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : ESANJEEVANI

संदर्भ

स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण मंत्रालय की ओर से शुरू की गई टेलिमेडिसिन सेवा ई-संजीवनी के तहत 6 लाख टेली परामर्श सेवाएं देने का काम पूरा कर लिया गया है. अंतिम 1 लाख टेली परामर्श सेवाएं देने का काम केवल 15 दिन में पूरा किया गया.  इसे प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी की डिजिटल इंडिया पहल को बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है.

कोविड के समय में ई-संजीवनी डिजिटल प्‍लेटफॉर्म ने स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल करने वालों और चिकित्‍सा समुदाय के लिए अपनी उपयोगिता और आसान पहुंच को साबित किया है. तमिलनाडु, केरल और गुजरात जैसे राज्‍य सप्‍ताह के सातों दिन 12 घंटे ई-संजीवनी ओपीडी सेवा चला रहे हैं. यह इस बात का सबूत है कि धीरे-धीरे ई-संजीवनी मरीजों और डॉक्‍टरों के बीच किस तरह से लोकप्रिय होती जा रही है.

ई-संजीवनी क्या है?

  • ई-संजीवनी एक वेब-आधारित व्यापक टेली-मेडिसिन सेवा है.
  • ई-संजीवनी ग्रामीण क्षेत्रों और अलग-थलग पड़े समुदायों में विशेष स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच को जन-जन तक पहुँचती है.
  • ई-संजीवनी का उद्देश्य चिकित्सा सेवाओं की गुणवत्ता बढ़ाने के अतिरिक्त, असमान वितरण और बुनियादी ढांचे की कमी के साथ-साथ मानव संसाधनों से संबंधित मुद्दों को संबोधित करते हुए, डिजिटल विभाजन को कम करके स्वास्थ्य सेवाओं को न्यायसंगत बनाना है.
  • इस योजना को 16 जून, 2009 को प्रारम्भ किया गया था.
  • ई-संजीवनी मंच ने दो प्रकार की टेली-मेडिसिन सेवाओं को सक्षम बनाया है जैसे डॉक्टर-से-डॉक्टर (ई-संजीवनी) और रोगी-से-डॉक्टर (ई-संजीवनी ओपीडी) टेली-परामर्श.
  • ‘ई संजीवनी’ और ‘ई संजीवनी ओपीडी’ द्वारा 23 राज्यों में टेली-परामर्श सेवा लागू की जा चुकी है और अन्य राज्य इसको आरम्भ करने की प्रक्रिया में हैं.

टेली-मेडिसिन सेवा क्या होती है?

  • टेली-मेडिसिन स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने की एक उभरती हुई शैली है, जो कि स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर को दूरसंचार प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए कुछ दूरी पर बैठे रोगी की जाँच एवं उपचार करने की अनुमति देता है.
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, टेली-मेडिसिन का अर्थ पेशेवर स्वास्थ्य विशेषज्ञों द्वारा सूचना प्रौद्योगिकी (IT) का प्रयोग करते हुए ऐसे स्थानों पर रोगों की जाँच, उपचार तथा रोकथाम, अनुसंधान और मूल्यांकन आदि की सेवा प्रदान करना है, जहाँ रोगी और डॉक्टर के मध्य दूरी एक महत्त्वपूर्ण कारक हो.
  • टेली-मेडिसिन का सबसे पहले प्रयोग एरिज़ोना प्रांत के ग्रामीण क्षेत्रों में निवास कर रहे लोगों को आधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को प्रदान करने के लिये किया गया. ज्ञातव्य है कि राष्ट्रीय वैमानिकी एवं अंतरिक्ष प्रशासन (NASA) ने टेलीमेडिसिन के प्रारम्भिक विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
  • दूसरी ओर, भारत में इसरो द्वारा वर्ष 2001 में टेली-मेडिसिन सुविधा की शुरुआत पायलट परियोजना के तौर पर किया गया था जिसके अंतर्गत चेन्नई के अपोलो अस्पताल को चित्तूर ज़िले के अरगोंडा गाँव के अपोलो ग्रामीण अस्पताल से जोड़ा था.

ई-संजीवनी ओपीडी

  • इस सुविधा का प्रारम्भ COVID-19 महामारी के दौर में रोगियों को घर बैठे चिकित्सकों से परामर्श लेने में सक्षम बनाने के उद्देश्य से किया गया था.
  • इसके जरिये नागरिक बिना अस्पताल गये व्यक्तिगत रूप से चिकित्सकों से परामर्श कर सकते हैं.
  • सबसे अच्छी बात यह है कि यह एंड्रॉइड मोबाइल एप्लीकेशन के रूप में सभी नागरिकों के लिये उपलब्ध है. 
  • आज की तिथि में करीब 2800 प्रशिक्षित डॉक्टर ई-संजीवनी ओपीडी (eSanjeevani OPD) पर उपलब्ध हैं, और दैनिक रूप से लगभग 250 चिकित्सक और विशेषज्ञ ई-स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध करा रहे हैं. इसके जरिये आम लोगों के लिये बिना यात्रा किये स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ प्राप्त करना बहुत ही सरल हो गया है.

मेरी राय – मेंस के लिए

  

ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी जैसा तकनीक आधारित मंच ग्रामीण क्षेत्र के उन लोगों के लिये बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो सकते हैं, जिनके पास इस प्रकार की सेवाओं तक सरल पहुँच उपलब्ध नहीं है. इन सुविधाओं का उपयोग करने से स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने के समय और लागत दोनों में बहुत ही कमी आती है. साथ ही इस प्रकार के मंच भारत के ‘डिजिटल इंडिया’ दृष्टिकोण के भी अनुरूप हैं और वर्तमान COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थितियों को सही ढंग से संबंधित करने में भी उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं. ई-संजीवनी और ई-संजीवनी ओपीडी को लेकर कई नई कोशिशें की गई हैं, उदाहरण के लिये केरल ने पलक्कड़ ज़िले की जेल में टेली-मेडिसिन सेवाओं को सफलतापूर्वक लागू किया है. इस प्रकार  यह आवश्यक है कि राज्य द्वारा अपनाई गई सर्वोत्तम प्रथाओं का विश्लेषण किया जाए और यथासंभव उन्हें देशव्यापी स्तर पर लागू किया जाए.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : Singapore International Arbitration Centre

संदर्भ

हाल ही में, सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (Singapore International Arbitration Centre– SIAC) द्वारा वैश्विक ई-कॉमर्स दिग्गज अमेज़ॅन की याचिका पर ‘फ्यूचर-रिलायंस’ सौदे पर रोक लगा दी गयी.

SIAC के निर्णय का प्रभाव

सिंगापुर स्थित मध्यस्थता अदालत के आदेशानुसार, फ्यूचर ग्रुप द्वारा अपने खुदरा व थोक कारोबारलॉजिस्टिक्स और वेयरहाउसिंग इकाइयों को रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और फैशनस्टाइल को बेचने पर रोक लगा दी गयी है. फ्यूचर ग्रुप तथा रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड के मध्य अगस्त में  24,713 करोड़ रुपये का सौदा हुआ था.

अमेज़ॅन द्वारा SIAC में याचिका दायर करने का कारण

आमतौर पर, किसी सौदे में सभी पक्षकारों द्वारा एक अनुबंध समझौते (contractual agreement) पर हस्ताक्षर किये जाते हैं, जिसमे मुख्यतः निम्नलिखित विवरणों का उल्लेख होता है:

  1. मध्यस्थता करने वाला मध्यस्थ न्यायाधिकरण (The arbitral institution administering the arbitration) .
  2. लागू होने वाले नियम (applicable rules) .
  3. मध्यस्थता का स्थान (seat of arbitration) .

इस मामले में, अमेज़ॅन और फ्यूचर ग्रुप के मध्य हुए एक समझौते के तहत, दोनों पक्षों के मध्य कोई विवाद होने पर, सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) द्वारा निर्णय कराने पर सहमति हुई थी.

SIAC के तहत प्रक्रिया

सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) में किसी विवाद को फैसले के लिए जाने के पश्चात, मध्यस्थ न्यायाधिकरण (arbitral tribunal) की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया शुरू होती है.

मध्यस्थ न्यायाधिकरण का गठन: प्रायः, तीन सदस्यीय न्यायाधिकरण होने पर, दोनों पक्षों द्वारा न्यायाधिकरण में एक-एक सदस्य की नियुक्ति की जाती हैं, तथा तीसरे सदस्य को दोनों पक्षों की सहमति से नियुक्त किया जाता है. सहमति नहीं होने पर, तीसरे सदस्य की नियुक्ति SIAC द्वारा की जाती है.

आपातकालीन मध्यस्थ की नियुक्ति:

आमतौर पर मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति में समय लगता है.

अतः, SIAC के नियमों के तहत, पक्षकारों द्वारा सिंगापुर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र’ से अंतरिम राहत पाने हेतु आपातकालीन मध्यस्थ (Emergency Arbitrator) नियुक्त करने को कहा जा सकता है. इसके साथ ही मुख्य मध्यस्थ न्यायाधिकरण की नियुक्ति संबंधी प्रक्रिया जारी रहती है.

पक्षकारों द्वारा फैसला मानने से इंकार करने पर

वर्तमान में भारतीय कानून के तहत, आपातकालीन मध्यस्थ (Emergency Arbitrator) के आदेशों के प्रवर्तन के लिए कोई अभिव्यक्‍त तंत्र नहीं है.

  1. हालांकि, पक्षकारों द्वारा आपातकालीन मध्यस्थ (इमरजेंसी आर्बिट्रेटर) के आदेशों का स्वेच्छा से अनुपालन किया जाता है.
  2. यदि, पक्षकारों द्वारा आदेशों का स्वेच्छा से अनुपालन नहीं किया जाता है, तो जिस पक्ष के हक़ में निर्णय दिया गया होता है, इस मामले में अमेज़ॅन, वह मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम (Arbitration & Conciliation Act), 1996 की धारा 9 के तहत, भारत में उच्च न्यायालय से सामान राहत पाने के लिए अपील कर सकता है.

सिंगापुर के ‘अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता’ केंद्र बनने का कारण

  1. भारत में निवेश करने वालेविदेशी निवेशक आमतौर पर भारतीय अदालतों की नीरस और निरर्थक प्रक्रिया से बचना चाहते हैं.
  2. विदेशी निवेशकों को लगता है, कि विवादों के समाधान में सिंगापुर तटस्थ रहने वाला देश है.
  3. समय के साथ सिंगापुर ने अंतरराष्ट्रीय मानकों और उच्च सत्यनिष्ठा सहित विधि के शासन द्वारा शासित क्षेत्राधिकार के रूप में एक उत्कृष्ट प्रतिष्ठा अर्जित कर ली है. इससे निवेशकों को विश्वास होता है कि मध्यस्थता प्रक्रिया त्वरितनिष्पक्ष और न्यायपूर्ण होगी.

SIAC की 2019 की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, भारत, मध्यस्थता केंद्र का शीर्ष उपयोगकर्ता था. भारत से वर्ष 2019 में 485 मामले निर्णय करवाने हेतु SIAC में भेजे गए. इसके पश्चात, फिलीपींस (122 मामले), चीन (76 मामले) और संयुक्त राज्य अमेरिका (65 मामले) का स्थान रहा.

भारत का निजी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र

मुंबई में अब भारत का अपना अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र है.

सिंगापुर अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (SIAC) के बारे में

यह सिंगापुर में स्थित एक गैर-लाभकारी अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता संगठन है. यह मध्यस्थता संबंधी अपने नियमों और UNCITRAL मध्यस्थता नियमों के तहत मध्यस्थता प्रबंधन करता है.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : J&K Panchayati Raj Act

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम (J&KPRA), 1989 के अंगीकरण को स्वीकृति प्रदान की है.  इससे पूर्व, गृह मंत्रालय ने जम्मू-कश्मीर में नई शासन इकाई के रूप में जिला विकास परिषदों (District Development Councils : DDCs) की स्थापना को सुविधाजनक बनाने हेतु J&KPRA में संशोधन किया था.

नवीन संरचना

  • जिला विकास परिषद वस्तुतः जिला योजना और विकास बोर्डों (DDBs) को प्रतिस्थापित करेंगी, जिनकी अध्यक्षता कैबिनेट मंत्री द्वारा की जाती थी तथा सांसद और विधायक एवं विधान पार्षद इसके सदस्यों के रूप में कार्य करते थे और जिला उपायुक्त इसका सदस्य सचिव होता था.
  • अब, नए ढांचे में एक DDC और एक जिला योजना समिति (DPC) शामिल होंगी.
  • DDCs में प्रत्येक जिले से निर्वाचित प्रतिनिधि शामिल होंगे और निर्वाचित प्रतिनिधियों में से नियुक्त एक अध्यक्ष द्वारा इसकी अध्यक्षता की जाएगी.
  • DDCs का कार्यकाल 5 वर्ष का होगा.
  • DDCs के अधिकार क्षेत्र के तहत नगरपालिका या नगर निगम के रूप में नामित क्षेत्रों को छोड़कर संपूर्ण जिला शामिल होगा. 

DDCs के कार्य 

  • DDCs हलका पंचायतों और खंड विकास परिषदों के कार्यों का पर्यवेक्षण करेंगी, जिन्हें वर्ष 1989 के अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था. 
  • नियोजन प्रक्रिया को शामिल कर DDCs के कार्यों के दायरे को बढ़ाया गया है. नियोजन प्रकिया को प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित प्रतिनिधियों को हस्तांतरित किया गया है.
  • इससे पूर्व, DDCs ही योजना और विकास संबंधी कार्यों का कार्यान्वयन करते थे. 
  • साथ ही, प्रत्येक जिले के लिए एक DPC स्थापित की जाएगी, जो जिले के लिए विकास कार्यक्रमों के निर्माण पर सहयोग और मार्गदर्शन प्रदान करेगी.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.

Topic : Japan Rejects UN’s Nuclear Ban Treaty

संदर्भ

हाल ही में जापान ने संयुक्त राष्ट्र परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध संधि (TPNW) पर हस्ताक्षर से इनकार करते हुए यह घोषणा की है कि वह अगले साल से प्रवर्तन में आने वाले इस संधि को नहीं अपनाएगा.

उल्लेखनीय है कि जापान में परमाणु हमले से बचने वाले लोगों ने “ परमाणु हथियार मुक्त विश्व” के लिए जापान सरकार को इस संधि पर हस्ताक्षर करने हेतु दबाव बनाया गया था.

पृष्ठभूमि

  • संयुक्त राष्ट्र परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध संधि (TPNW), नाभिकीय हथियारों पर प्रतिबंध लगाने से संबंधित है.
  • इस संधि को को 7 जुलाई 2017 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनाया गया था और महासचिव द्वारा 20 सितंबर 2017 को सदस्य देशों के हस्ताक्षर के लिए देशों के समक्ष रखा गया था.
  • इस संधि को प्रवर्तन में आने के लिए 50 देशों के मंजूरी की आवश्यकता थी. उल्लेखनीय है कि इसे 50 सदस्य के रूप में समर्थन होंडुरास के द्वारा दिया गया. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार परमाणु हथियार पर प्रतिबंध लगाने वाले या संधि 90 दिनों के अंदर प्रवर्तन में आ जाएगी.
  • हालांकि अमेरिका सहित P5 के देश इस संधि को लेकर दूरी बनाए हुए हैं वहीं अमेरिका ने चिट्ठी लेकर देशों को इस संधि का समर्थन ना करने की सलाह दी गई थी.
  • उपरोक्त घटनाक्रमों के बीच जापान द्वारा भी इस संधि को हाल ही में अपनाने से मना कर दिया गया.

क्यों जापान द्वारा संधि का किया जा रहा है विरोध?

  • जापान के अनुसार इस संधि को लेकर उसका दृष्टिकोण अलग है एवं यह संधि यथार्थवादी नहीं है एवं यह संधि गैर परमाणु राज्य एवं परमाणु शक्ति संपन्न राज्यों के मध्य एक विभाजन की स्थिति पैदा करता है. इसीलिए जापान ने बीच का रास्ता अपनाते हुए दोनों पक्षों के संकरे अंतर को कम करने हेतु इस विकल्प को चुना है.
  • इसके साथ ही जापान ने अपने समक्ष उत्पन्न चुनौतियों को भी इंगित किया है जहां पर उसे चीन और उत्तर कोरिया से खतरा है. उल्लेखनीय है की जापान की सुरक्षा अमेरिका के परमाणु छतरी (U.S. nuclear umbrella) के नीचे 50 हजार अमेरिकी सैनिकों द्वारा की जाती है.
  • पिछले कुछ वर्षों से दक्षिण चीन सागर में चीन का लगातार आक्रामक रुख एवं कोरिया प्रायद्वीप में उत्तर कोरिया के द्वारा लगातार हथियारों के परीक्षण जापान की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा देते हैं. तात्कालिक सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर पिछले कुछ वर्षों से जापान के द्वारा सुरक्षा में आत्मनिर्भरता के लिए ना केवल सैन्य बजट बढ़ाया गया है बल्कि अत्याधुनिक हथियारों से जापान सेना को सुसज्जित भी करना प्रारंभ किया है.
  • उपरोक्त चुनौतियों को देखते हुए जापान ने परमाणु शक्ति के संदर्भ में न्यूनतम प्रतिरोधक क्षमता हासिल करने के अपने विकल्पों को खुला रखा है.

संयुक्त राष्ट्र परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध संधि (TPNW)

संयुक्त राष्ट्र संघ ने जुलाई 2017 में एक संधि को अपनाया है, इस संधि के माध्यम से किसी भी परिस्थिति में परमाणु हथियारों को विकसित करने, परीक्षण, उत्पादन, निर्माण और किसी भी रूप में प्राप्त करने, रखने या संग्रहण को  प्रतिबंधित किया गया है. इसी संधि को संयुक्त राष्ट्र परमाणु हथियार प्रतिबंध का नाम दिया गया है.

 इस तरह से यह संधि परमाणु हथियारों की सम्पूर्ण शृंखला को प्रतिबंधित करती है. उल्लेखनीय है कि सन् 1968 में नाभिकीय अप्रसार संधि अपनाने के बाद परमाणु हथियारों पर नियंत्रण स्थापित करने के दृष्टिकोण से यह एक महत्त्वपूर्ण  बहुराष्ट्रीय संधि है. 

संधि के विरोधी राष्ट्रों का मत

पाँचों प्रमुख परमाणु संपन्न राष्ट्रों अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्राँस और चीन द्वारा इस संधि के प्रति असहमति जताई गई है. उल्लेखनीय है कि भारत ने भी इस संधि के प्रति अपनी अनिच्छा ज़ाहिर की है. इनका तर्क है कि- 

  • इनके हथियार किसी संभावित परमाणु आक्रमण के प्रति सुरक्षा प्रदान करने के लिये हैं.
  • परमाणु हथियारों पर इस तरह का तथाकथित प्रतिबंध उन सुरक्षा संबंधी सुभेद्यता को संबोधित करने में सक्षम नहीं है, जो शीत युद्ध के बाद लगातार बनी हुई है.
  • यह न ही किसी देश की सुरक्षा में अभिवृद्धि कर पाएगी और न ही अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने में कारगर होगी.
  • साथ ही यह संधि किसी देश द्वारा शांतिपूर्ण नाभिकीय तकनीक के इस्तेमाल और ऊर्जा आपूर्ति के सिद्धांत के विपरीत है. 

संधि के समर्थक राष्ट्रों का मत

ब्राज़ील इस संधि पर हस्ताक्षर करने वाले देशों में प्रथम है, इसके अतिरिक्त अल्जीरिया, वेनेजुएला सहित कुल 123 भागीदार देशों में से 122 देशों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिये हैं. 50 देशों के अनुसमर्थन के पश्चात यह संधि प्रभाव में आ जाएगी. इन देशों ने संधि के समर्थन में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किये हैं-

  • यह संधि नाभिकीय हथियारों के संबंध में विद्यमान “कानूनी अंतराल” को पाटने में कारगर होगी.
  • नाभिकीय अप्रसार संधि के अंतर्गत परमाणु हथियारों को पूरी तरह से गैर-कानूनी घोषित नहीं किया गया है, अतः सशस्त्र विद्रोह के दौरान उनका प्रयोग अंतर्राष्ट्रीय कानून से विरोधाभाषी होगा.
  • वस्तुतः यह संधि नाभिकीय अप्रसार और परमाणु निःशस्त्रीकरण के प्रयासों को और भी सशक्त करने में सक्षम है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोरियो गुतेरस ने उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु और मिसाइल परीक्षणों के बीच बढ़ते तनाव के कारण कहा कि वर्तमान में परमाणु हमले का खतरा शीत युद्ध के उपरांत सबसे अधिक है. अतः ऐसे में यह संधि दुनिया के सार्वभौमिक रूप से आयोजित लक्ष्य “परमाणु हथियारों से  मुक्त विश्व” की दिशा में काफी महत्त्वपूर्ण होगी.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests.

Topic : 2+2 DIALOGUE

संदर्भ

भारत और संयुक्त राज्य यूएसए ने 27 अक्टूबर, 2020 को 2 + 2 मंत्रिस्तरीय वार्ता के तीसरे दौर में BECA समझौते (भू-स्थानिक सहयोग के लिए बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता) पर हस्ताक्षर किये हैं.

2+2 वार्ता क्या होती है?

जून, 2017 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की वाशिंगटन डी.सी. की यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका के बीच इस नए वार्ता प्रारूप पर सहमति हुई थी.

  1. इस वार्ता प्रणाली मेंदोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्री भाग लेते हैं.
  2. 2+2 वार्ता नेभारत-अमेरिका व्यापार और वाणिज्यिक मुद्दों हेतु रणनीतिक और वाणिज्यिक संवाद को प्रतिस्थापित किया है.

2+2 वार्ता का उद्देश्य

  • भारत और यूएसए के बीच रक्षा के क्षेत्र में साझेदारी और मज़बूत करने के लिए नियमित वार्ता का एक मजबूत ढाँचा विकसित करना.
  • हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने में भारत-यूएसए के बीच मजबूत सहयोग विकसित करना.
  • भारत और यूएसए के बीच रक्षा एवं विदेश मामलों में सहयोग और साझेदारी को आगे बढ़ाना.

बेसिक एक्सचेंज एंड कॉपरेशन एग्रीमेंट (BECA) क्या है?

  • भू-स्थानिक सहयोग के लिए बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA) मुख्य रूप से अमेरिकी रक्षा विभाग की नेशनल जियोस्पेटियल-इंटेलिजेंस एजेंसी और भारत के रक्षा मंत्रालय के बीच एक संचार समझौता है.
  • यह समझौता भारत और यूएसए को महत्त्वपूर्ण सैन्य सूचनाओं जैसे कि, उन्नत उपग्रह और स्थलाकृतिक डाटा का आदान-प्रदान करने की अनुमति देगा. इन सैन्य सूचनाओं में नक्शे, समुद्री और वैमानिकी चार्ट के अलावा भूभौतिकीय, भू-चुंबकीय और गुरुत्वाकर्षण डाटा भी शामिल है.
  • आपस में साझा की गई अधिकांश जानकारी अवर्गीकृत होगी और इसे डिजिटल या मुद्रित प्रारूप में साझा किया जाएगा. BECA समझौते में वर्गीकृत जानकारी को भी उचित सुरक्षा उपायों के साथ साझा करने का प्रावधान शामिल है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि, यह जानकारी अन्य किसी तीसरे पक्ष के साथ साझा नहीं की गई है.
  • यह BECA समझौता भारत और यूएसए के बीच रक्षा संबंधों को मजबूत करने के लिए हस्ताक्षरित चार मूलभूत समझौतों में से अंतिम है .

मेरी राय – मेंस के लिए

 

अक्टूबर के अंत में संभावित आगामी 2+2 वार्ता के दौरान BECA को लागू किये जाने के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है, क्योंकि अभी भी इस समझौते पर पूरी बातचीत समाप्त नहीं हुई है. इसके साथ ही इस वार्ता का समय नवंबर में आयोजित होने वाले अमेरिका के आगामी राष्ट्रपति चुनावों के बिलकुल पास है परंतु अभी भी इसकी तिथि का निर्धारण नहीं किया गया है.

हाल के वर्षों में भारतीय सीमा पर पाकिस्तान और चीन की आक्रामकता में वृद्धि को देखते हुए भारत के लिये अपनी सैन्य शक्ति में वृद्धि करना बहुत ही आवश्यक है. भारत को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती चुनौती के खिलाफ सामान विचारधारा वाले देशों को साथ लाने का प्रयास करना चाहिये साथ ही क्वाड जैसे मंचों के माध्यम से अन्य क्षेत्रों के साथ नौसैनिक सहयोग को बढ़ाया जाना चाहिये. अमेरिका के साथ रक्षा सहयोग बढ़ाने में भारत के लिये रूस के साथ संबंध संतुलन को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है, अतः भारत को इस दिशा में भी ध्यान देना होगा.


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Anyone in India can now buy land in Jammu and Kashmir

संदर्भ

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने हाल ही में जम्मू-कश्मीर में भूमि संबंधित मामलों को नियंत्रित करने वाले नए नियम अधिसूचित किये हैं, जिसके माध्यम से अब कोई भी भारतीय नागरिक केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में गैर-कृषि भूमि खरीद सकता है.

प्रमुख बिंदु

  • केंद्र सरकार ने एक अधिसूचना के माध्यम से जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीदने के लिये स्थायी निवासी होने की शर्त को समाप्त कर दिया है, जिससे अब जम्मू-कश्मीर में गैर-कृषि भूमि खरीदने के लिये किसी भी प्रकार के अधिवास या स्थायी निवासी प्रमाणपत्र की आवश्यकता नहीं होगी. हालाँकि कृषि योग्य भूमि को इसके तहत शामिल नहीं किया गया है और इसकी खरीद अभी भी राज्य के किसानों और कृषिविदों द्वारा ही की जा सकती है.
  • ज्ञात हो कि केंद्र सरकार जल्द ही केंद्र-शासित प्रदेश लद्दाख के संबंध में भी इस प्रकार की अधिसूचना जारी कर सकती है.

क्या-क्या परिवर्तन होगा?

  • नए कानूनों के माध्यम से जम्मू-कश्मीर की भूमि पर स्थायी निवासियों के विशेष अधिकारों को समाप्त कर दिया गया है.
  • जम्मू-कश्मीर के बाहर निवास करने वाले आम लोग और निवेशक सभी जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीद सकेंगे, जिससे इस क्षेत्र का विकास सुनिश्चित होगा.
  • कृषि योग्य भूमि को गैर-कृषि प्रयोजन के लिये उपयोग करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, हालाँकि यहाँ अपवाद स्वरूप कृषि योग्य भूमि को शैक्षिक या स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की स्थापना हेतु प्रयोग किया जा सकता है.
  • नए प्रावधान के तहत कोर कमांडर के पद से ऊपर के पद पर कार्यरत सेना का कोई अधिकारी राज्य के किसी स्थानीय क्षेत्र को ‘सामरिक क्षेत्र’ के रूप में घोषित कर सकता है, जिसका उपयोग केवल सशस्त्र बलों द्वारा परिचालन और प्रशिक्षण संबंधी आवश्यकताओं के लिये किया जाएगा.

धारा 35A क्या है?

धारा 35A संविधान में बाद में प्रवृष्ट किया गया एक प्रावधान है जो जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को यह खुला अधिकार देता है कि वह यह निर्धारित करे कि राज्य के स्थायी निवासी कौन हैं और उन्हें अलग अधिकार (special rights) और विशेषाधिकार प्रदान करे. ये अधिकार और विशेषाधिकार जिन क्षेत्रों से सम्बंधित हैं, वे हैं – सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियाँ, राज्य में सम्पत्ति खड़ा करना, छात्रवृत्ति लेना, अन्न सार्वजनिक सहायताओं और कल्याण कार्यक्रमों का लाभ उठाना. कहने का अभिप्राय यह है कि ये सभी लाभ केवल उन व्यक्तियों को मिलेंगे जो राज्य के स्थायी निवासी हैं.

इस धारा में यह भी प्रावधान है कि इसके तहत विधान सभा द्वारा की गई किसी भी कार्रवाई को संविधान अथवा देश के किसी भी कानून का उल्लंघन नहीं माना जाएगा.


GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Enviornment and Biodiversity

Topic : Snow Leopard

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री ने ‘प्रोजेक्ट स्नो लेपर्ड’ (Project Snow Leopard- PSL) के साथ केंद्र सरकार के अन्य प्रयासों के तहत हिम तेंदुओं के प्रवास क्षेत्र के संरक्षण हेतु सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है. 

हिम तेंदुआ

  • संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण प्रतिरोध संधि (United Nations Convention to Combat Desertification – UNCCD) के पक्षकारों की 14वीं बैठक में विशेषज्ञों ने यह मन्तव्य दिया है कि यदि हिम तेंदुओं का संरक्षण किया जाए और लोगों की सांस्कृतिक मान्यताओं की रक्षा की जाए तो हिमालय के पारिस्थितिकी तन्त्र में हो रहे भूमि की गुणवत्ता के ह्रास को रोका जा सकता है.
  • ज्ञातव्य है कि हिम तेंदुआ IUCN की लाल सूची में संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में दर्ज है.
  • यह प्रजाति CITES की अनुसूची I में सूचीबद्ध है.

अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस’

  • वर्ष 2013 की बिश्केक घोषणा (Bishkek Declaration) के तहत 23 अक्टूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय हिम तेंदुआ दिवस’ (International Snow Leopard Day) के रूप में अधिसूचित किया गया.
  • विदित हो कि वर्ष 2013 में 12 स्नो लेपर्ड रेंज देशों (अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कज़ाखस्तान, किर्गिज गणराज्य, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान) द्वारा बिश्केक घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए थे.
  • साथ ही इस अवसर पर ‘वैश्विक हिम तेंदुआ और पारिस्थितिकी तंत्र संरक्षण’ (Global Snow Leopard and Ecosystem Protection-GSLEP) कार्यक्रम की शुरुआत की गई थी.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

विश्व बैंक के वैश्विक व्याघ्र पहल (Global Tiger Initiative – GTI) कार्यक्रम ने बाघों से सम्बंधित एजेंडा को सबल बनाने के लिए वैश्विक प्रतिभागियों को प्रेरित किया है. कालांतर में यह कार्यक्रम वैश्विक व्याघ्र पहल परिषद् (Global Tiger Initiative Council – GTIC) का रूप ले चुकी है. इस परिषद् के अन्दर दो अलग-अलग उप कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं जो हैं – वैश्विक व्याघ्र मंच कार्यक्रम (Global Tiger Forum) और वैश्विक हिम तेंदुआ पारिस्थितिकी सुरक्षा कार्यक्रम (Global Snow Leopard Ecosystem Protection Program).

कुछ विवादास्पद परियोजनाएँ

  • कान्हा और पेंच बाघ रिजर्व को जोड़ने वाले गलियारे में राजमार्ग और रेलवे लाइनों का विस्तार किया जा रहा है.
  • महाराष्ट्र के मेलघाट बाघ रिजर्व से होकर एक रेलवे लाइन का निर्माण किया जा रहा है.
  • मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व का लगभग 100 वर्ग किलोमीटर केन-बेतवा नदी लिंकिंग परियोजना में चला जाएगा.

GS Paper 3 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Pollution related issues.

Topic : Yellow Dust

संदर्भ

हाल ही में उत्तर कोरिया के कोरियन सेंट्रल टेलीविज़न (KCTV) द्वारा चीन से पीले धूल (Yellow Dust) भरे बादलों के आने की चेतावनी जारी की गयी है.

उत्तर कोरिया के अधिकारियों के अनुसार- यह ‘येलो डस्ट’ (Yellow Dust) अपने साथ कोविड-19 महामारी ला सकती है.

पीली धूल (Yellow Dust) क्या है?

पीली धूल, वास्तव में चीन और मंगोलिया के रेगिस्तान की धूल है, जिसे एक विशिष्ट अवधि के दौरान प्रति वर्ष तीव्र गति से चलने वाली सतही हवाएं अपने साथ उड़ाकर उत्तर और दक्षिण कोरिया दोनों देशों में लेकर आती हैं.

इस रेत के कणों में औद्योगिक प्रदूषकों जैसे अन्य विषाक्त पदार्थों मिश्रित होते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ‘पीली धूल’ श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बन जाती है.

कोविड-19 का धूल के बादलों के माध्यम से संचरण

अमेरिका के रोग नियंत्रण केंद्र (Centres for Disease Control- CDC) के अनुसार, कोविड-19 विषाणु घंटों तक हवा में रह सकता है. हालांकि, CDC ने यह भी कहा है, हवा के माध्यम से, विशेषकर खुले स्थानों पर, कोविड-19 के फैलने की संभावना नहीं है.


GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Mechanisms, laws, institutions and Bodies constituted for the protection and betterment of these vulnerable sections; Important International institutions, agencies and fora- their structure, mandate.

Topic : WAYS AND MEANS ADVANCES (WMA)

संदर्भ

WMA क्या है?

भारतीय रिज़र्व बैंक सरकार का बैंकर होता है, अतः वह केंद्र एवं राज्य सरकारों को तात्कालिक ऋण की सुविधा प्रदान करता है. इस तात्कालिक ऋण सुविधा को लिए वेज़ एंड मीन्स एडवांसेज (WMA) कहते हैं.

केंद्र सरकार के लिए WMA

  • केंद्र सरकार के लिए WMA योजना का आरम्भ अप्रैल 1, 1997 में हुआ था. इसके पहले केंद्र सरकार के घाटे को पूरा करने के लिए वित्त देने हेतु चार दशकों से एक प्रणाली अपनाई जाती थी जिसके अंतर्गत तदर्थ कोषागार विपत्र निर्गत होते थे.
  • WMA योजना का उद्देश्य सरकार की प्राप्ति और भुगतान के अंतर को तात्कालिक रूप से दूर करना होता है. यदि सरकार को तत्काल रूप से नकद की आवश्यकता होती है तो वह RBI से नकद ले सकती है. किन्तु 90 दिनों के भीतर-भीतर इस भुगतान की प्रतिपूर्ति कर दी जाती है. WMA पर ब्याज भी लगता है जो रेपो दर के अनुरुप होता हैWMA की सीमा क्या हो, इसके लिए भारतीय रिज़र्व बैंक और भारत सरकार मिलकर निर्णय लेते हैं.

राज्य सरकारों के लिए WMA

  • राज्य सरकारों के लिए WMA योजना दो प्रकार की होती हैं – विशेष WMA एवं सामान्य
  • विशेष WMA राज्य सरकार की सरकारी प्रतिभूतियों को बंधक के रूप में लेकर दिया जाता है.
  • विशेष WMA की सीमा पार हो जाने पर राज्य सरकार को सामान्य WMA दिया जाता है. सामान्य WMA की सीमा सम्बंधित राज्य के वास्तविक राजस्व और पूँजी व्यय के तीन वर्षों की औसत पर आधारित होती है. यदि राज्य सरकार इस सीमा से ऊपर पैसा निकालती है तो इसे ओवरड्राफ्ट कहा जाता है.
  • कोई भी राज्य सरकार अधिकतम चार लगातार कार्यदिवसों के लिए ओवरड्राफ्ट ले सकती है, परन्तु एक तिमाही में ऐसे दिवसों की संख्या अधिकतम 36 होनी चाहिए.
  • WMA की ब्याज दर रेपो दर के अनुरूप होती है.

GS Paper 3 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Awareness in the fields of IT, Space, Computers, robotics, nano-technology, bio-technology and issues relating to intellectual property rights.

Topic : IndiGen Program

संदर्भ

हाल ही में भारत के इंडिजेन कार्यक्रम के तहत 1029 अनुक्रमित जीनों के व्यापक संगणना, विश्लेषण परिणामों को एक वैज्ञानिक पत्रिका, न्यूक्लिक एसिड रिसर्च में प्रकाशित किया गया है.

पृष्ठभूमि

  • भारत दुनिया की 17 प्रतिशत आबादी वाले 1.3 बिलियन से अधिक व्यक्तियों के साथ जनसंख्या घनत्व के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश है. इसके अलावा, भारत की जनसंख्या संरचना में पुनरावर्ती जेनेटिक तत्वों (recessive alleles ) की अधिकता है.
  • इस समृद्ध आनुवंशिक विविधता के बावजूद, भारत को वैश्विक जीनोम अध्ययनों में कम प्रतिनिधित्व दिया गया है. भारत से बड़े पैमाने पर पूर्ण जीनोम अध्ययनों के संचालित न होने से, इन जनसंख्या-विशिष्ट आनुवंशिक वेरिएंट को वैश्विक स्तर पर पर्याप्त रूप से संश्लेषित और सूचीबद्ध नहीं किया जाता है.

इंडीजेन कार्यक्रम क्या है?

  • इस कार्यक्रम के अंतर्गत मानव जीनोम को क्रमबद्ध किया जाता है और प्रत्येक व्यक्ति की आनुवंशिक अनूठी बनावट और उसको होने वाले रोग के बीच सम्बन्ध की व्याख्या की जाती है.
  • चिकित्साशास्त्र का कहना है कि सिस्टिक फाइब्रोसिस (cystic fibrosis), थेलसिमिया जैसे अनेक रोग मात्र एक जीन की विकृति से जन्म लेते हैं.

इंडीजेन का उद्देश्य

  • इंडीजेन कार्यक्रम का उद्देश्य भारत के विविध नस्ली समूहों के हजारों व्यक्तियों के जीनोम को पूरी तरह क्रमबद्ध करना है.
  • इस कार्यक्रम का लक्ष्य भारत के लोगों के जीनोम डाटा का उपयोग करते हुए सार्वजनिक स्वास्थ्य तकनीकों में उनका प्रयोग करना है और आनुवंशिक रोगशास्त्र की समझ को बढ़ाना है.

महत्त्व

जीनोम इंडिया पहल के माध्यम से सामान्य रोगों के लिए जीनों और आनुवंशिक विविधताओं को पहचाने में सहायता मिलेगी. साथ ही इससे मेंडेलियन विकारों (Mendelian disorders) का उपचार करने में भी सहयोग मिलेगा. इसके अतिरिक्त भारत में प्रीसिजन मेडिसिन (Precision Medicine) के माध्यम से उपचार का मार्ग भी प्रशस्त होगा और फलतः देश के जनसामान्य के स्वास्थ्य की देखभाल में सुधार आएगा.

जीनोमिक्स क्या है?

  • किसी प्राणी के जीन सहित उसके पूरे DNA के क्रम को जीनोम कहते हैं.
  • जीनोमिक्स (Genomics) विज्ञान का वह बहु-शाखीय अध्ययन क्षेत्र है जिसमें जीनोमों की बनावट, कार्य, क्रमिक विकास, मानचित्रण और सम्पादन का अध्ययन होता है.
  • जीनोमिक्स में जीनोमों को क्रमबद्ध कर के उनका विश्लेषण किया जाता है.
  • जीनोमिक्स में हुई प्रगति के कारण मनुष्य को जटिल जैव-वैज्ञानिक प्रणालियों, यहाँ तक की मस्तिष्क को समझने में सहयता मिली है.

जीनोम को क्रमबद्ध करना आवश्यक क्यों?

मानव जीनोम को सबसे पहले 2003 में क्रमबद्ध किया गया था. तब से वैज्ञानिकों को यह पता है कि हर व्यक्ति की आनुवांशिक बनावट अनूठी होती है और उसका रोग से सम्बन्ध होता है. सिस्टिक फाब्रोसिस और थेलसिमिया जैसे लगभग 10,000 रोग इसलिए होते हैं कि कोई एक अकेला जीव ठीक से काम नहीं कर रहा होता है. जीनोम को क्रमबद्ध करने से यह सिद्ध हुआ है कि कैंसर भी कुछ अंगों का रोग न होकर आनुवांशिक भी हो सकता है.

इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?

विश्व-भर में चल रही जीनोम परियोजनाएँ

Genome Sequencing To Map Population Diversity

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (CSIR) पूरे भारत वर्ष से लगभग 1,000 ग्रामीण युवाओं के जीनोमों को क्रमबद्ध करेगा जिससे कि देश की जनसंख्या का एक आनुवांशिक मानचित्र तैयार हो सके. इस परियोजना का उद्देश्य छात्रों को जीनोमिक्स की उपादेयता के विषय में जागरूक करना है. भारत सरकार पहले से एक वृहद् कार्यक्रम चला रही है जिसमें कम से कम दस हजार भारतीय जीनोमों को क्रमबद्ध किया जाना है. वर्तमान परियोजना उसी वृहद् परियोजना का एक अंश है. इस परियोजना के लिए जिन व्यक्तियों से जीनोमों के नमूने जमा किये जा रहे हैं वे देश की जनसांख्यिक विविधता को प्रदर्शित करते हैं. अधिकांश जीनोम महाविद्यालय के उन छात्र-छात्राओं से लिए जा रहे हैं जो जीव विज्ञान में स्नातक की पढ़ाई कर रहे हैं. परियोजना का लक्ष्य है अधिक से अधिक महाविद्यालय के छात्रों तक पहुंचना और उन्हें जीनोमिक्स के सम्बन्ध में शिक्षित करना. इस परियोजना के फलस्वरूप वे अपनी जीनोम से प्रकट हुई सूचना के बारे में जान सकेंगे.

Earth Biogenome Project

अंतर्राष्ट्रीय जीव वैज्ञानिकों ने अर्थ बायो-जीनोम प्रोजेक्ट (BioGenome Project – EBP) नामक परियोजना आरम्भ की है. यह एक बड़े सोच वाली परियोजना है जिसमें अगले 10 वर्षों तक विश्व के एक-एक ज्ञात पशु, पौधे और फंफूद प्रजाति (fungal species) के DNA का अध्ययन किया जाएगा. इसके लिए 1.5 मिलियन अलग-अलग जिनेमों को क्रमबद्ध किया जाएगा जिसपर अनुमानतः 4.7 बिलियन डॉलर का व्यय आएगा.

EBP परियोजना में काम करने के लिए विश्व के 19 शोध संस्थानों ने अब तक अपने हस्ताक्षर कर दिए हैं और कुछ अन्य इसमें सम्मिलित होने की सोच रहे हैं. जिन प्राणियों की DNA शृंखला का अध्ययन होने वाला है, उनमें बैक्टीरिया और archaea जैसे अ-जटिल सूक्ष्म जीवाणुओं को छोड़कर अन्य सभी प्रकार के प्राणी होंगे, जैसे – पशु, पौधे, फंफूद, प्रोटोजोआ आदि. इस परियोजना के लिए धनराशि सरकारों, फाउंडेशनों, धार्मादा प्रतिष्ठानों (charities) से प्राप्त की जायेगी. इस परियोजना के पहले चरण में 9,000 यूकेरियोटिक (eukaryotic) प्राणिवर्गों, अर्थात् उन प्राणियों जिनके कोषों में झिल्ली से घिरा एक नाभिक होता है, का रेफरेन्स जीनोम तैयार किया जाएगा. इसमें 600 मिलियन डॉलर की आवश्यकता होगी और अभी तक 200 मिलियन डॉलर का प्रबंध हो भी चुका है. इस परियोजना में सम्मिलित ब्रिटेन के प्रतिभागी Wellcome Sanger Institute के नेतृत्व में देश में रहने वाले सभी 66,000 ज्ञात प्रजातियों के जेनेटिक कोड को क्रमबद्ध करेंगे. 100 मिलियन पौंड (£100m) वाले इस राष्ट्र-स्तरीय कार्यक्रम को Darwin Tree of Life का नाम दिया गया है.

100K Genome Asia Project

सिंगापुर-स्थित नान्यांग प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय (Nanyang Technological University – NTU) के नेतृत्व में एक परियोजना चल रही है जिसमें 50 हजार भारतीयों सहित एक लाख एशियाई लोगों के सम्पूर्ण जीनोम को क्रमबद्ध किया जाएगा. इस योजना का नाम 100k जीनोम एशिया प्रोजेक्ट है. इसमें भारत के वैज्ञानिक और कंपनियाँ भी काम कर रही हैं. यह एक लाभ रहित परियोजना है जिसमें एशिया के एक लाख लोगों के जीनोम को इस उद्देश्य से क्रमबद्ध किया जा रहा है कि इससे एशिया महादेश के लोगों को सही-सही औषधि देना संभव हो जाएगा. इस परियोजना में डाटा विज्ञान एवं कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence – AI) के क्षेत्र में हुई प्रगतियों तथा डाटा विश्लेषण का भी सहारा लिया जाएगा. इसके लिए दक्षिण एशिया के 12 देशों तथा उत्तरी एवं पूर्वी एशिया के कम-से-कम 7 देशों के लोग चुने जाएँगे. प्रथम चरण में परियोजना में एशिया की सभी प्रमुख प्रजातियों के लिए चरणबद्ध reference genomes बनाने पर बल होगा. इससे एशिया की विभिन्न आबादियों के इतिहास और उसकी भीतरी बनावट को समझने में बहुत बड़ी सहायता मिलेगी. एक लाख व्यक्तिगत जीनोम को क्रमबद्ध करने के समय उससे माइक्रो-बायोम, चिकित्सकीय और फेनोटाइप सूचनाएँ भी जोड़कर रखी जायेंगी. इससे लाभ यह होगा कि स्थानीय समुदायों के मरे हुए और स्वस्थ जीवित व्यक्तियों के विषय में गहनतर विश्लेषण संभव हो सकेगा.


GS Paper 3 Source : Economic Times

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UPSC Syllabus : Growth and Development

Topic : Base year revision for CPI-industrial workers suspicious: AITUC

संदर्भ

श्रम एवं रोज़गार राज्य मंत्री संतोष कुमार गंगवार ने हाल ही में वर्ष 2016 के आधार पर औद्योगिक श्रमिकों के लिये उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) की नई शृंखला जारी की है.

प्रमुख बिंदु

  • केन्द्रीय मंत्री द्वारा जारी नई शृंखला, मौजूदा शृंखला आधार वर्ष 2001=100 को वर्ष आधार 2016=100 के साथ प्रतिस्थापित करेगी.
  • ध्यातव्य है कि इस संशोधन से पूर्व श्रम ब्यूरो की स्थापना के बाद से शृंखला को वर्ष 1944 से वर्ष 1949; वर्ष 1949 से वर्ष 1960; वर्ष 1960 से वर्ष 1982 और वर्ष 1982 से वर्ष 2001 तक संशोधित किया गया था.
  • केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि भविष्य में इस सूचकांक के आधार वर्ष में प्रत्येक पाँच वर्ष बाद परिवर्तन किया जाएगा.

नई शृंखला में किये गए सुधार

  • वर्ष 2016 के आधार पर जारी नई शृंखला में कुल 88 केंद्रों को शामिल किया गया है, जबकि वर्ष 2001 के आधार वर्ष पर जारी होने वाली शृंखला में केवल 78 केंद्र ही शामिल थे.
  • खुदरा शृंखला के आँकड़ों के संग्रह के लिये चयनित बाज़ारों की संख्या भी वर्ष 2016 के आधार वर्ष वाली शृंखला के तहत 317 बाज़ारों तक बढ़ा दी गई है, जबकि वर्ष 2001 की शृंखला में 289 बाज़ारों को ही शामिल किया गया था.
  • वर्ष 2016 की शृंखला के तहत राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की संख्या 28 हो गई है, जबकि वर्ष 2001 शृंखला में राज्यों की संख्या केवल 25 ही थी.
  • नई शृंखला के तहत खाद्य समूह के भार को घटाकर 39.17 प्रतिशत कर दिया गया है, जो कि वर्ष 2001 में 46.2 प्रतिशत था, वहीं शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी विविध मदों के भार को 23.26 प्रतिशत (वर्ष 2001) से बढ़ाकर 30.31 प्रतिशत कर दिया गया है.
  • नई शृंखला में ज्यामितीय माध्य (Geometric Mean) आधारित कार्यप्रणाली का उपयोग सूचकांकों के संकलन के लिये किया जाता है, जबकि वर्ष 2001 की शृंखला में अंकगणितीय माध्य (Arithmetic Mean) का उपयोग किया जाता था.

उद्देश्य

  • औद्योगिक श्रमिकों हेतु उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI-IW) के लिये आधार वर्ष में परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य इस सूचकांक में श्रमिक वर्ग की आबादी के नवीनतम उपभोग पैटर्न को सही ढंग से प्रदर्शित करना है.
  • मज़दूर और श्रमिक वर्ग के उपभोग पैटर्न में बीते वर्षों में काफी बदलाव आया है, इसलिये समय के साथ ‘कंज़म्पशन बास्केट’ (Consumption Basket) को भी अपडेट करना आवश्यक है, ताकि आँकड़ों की विश्वसनीयता बरकरार रखी जा सके.
  • ध्यातव्य है कि इससे पूर्व विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठनों और राष्ट्रीय आयोगों ने लक्षित समूह के तेज़ी से बदलते उपयोग पैटर्न के आधार पर लगातार संशोधन करने की सिफारिश की थी.

Prelims Vishesh

PM Street Vendor’s AtmaNirbhar Nidhi Scheme :-

  • हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार ने पी.एम. स्वनिधि योजना के तहत ऋणों के वितरण की रैंकिंग में प्रथम स्थान प्राप्त किया है.
  • इसे आवासन और शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा जून, 2020 में प्रारंभ किया गया था, ताकि कोविड–19 से प्रभावित स्ट्रीट वेंडर्स (पथ विक्रेताओं) को अपनी आजीविका पुनः प्रारम्भ करने के लिए वहनीय कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान किया जा सके.
  • इस योजना के तहत, विक्रेता (vendors) 10,000 रुपये तक के कार्यशील पूंजी ऋण का लाभ प्राप्त कर सकते हैं, जिसे एक वर्ष की अवधि में मासिक किश्तों में चुकाया जा सकता है.
  • इसका लक्ष्य 50 लाख से अधिक स्ट्रीट वेंडर्स को लाभान्वित करना है.

Industry 4.0 technology :-

  • हाल ही में, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) खड़गपुर और टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (TCS) लिमिटेड ने संयुक्त रूप से दूर से नियंत्रित होने वाले कारखाने के परिचालन हेतु एक नवीन उद्योग 4.0 प्रौद्योगिकी विकसित की है.
  • उद्योग 4.0 औद्योगिक क्रांति में एक नए चरण को संदर्भित करता है. यह मुख्यतया अंतर्सयोजकता (interconnectivity), स्वचालन (automation), मशीन लर्निंग (machine learning) और रियल-टाइम डेटा (real-time) पर केंद्रित है.
  • अन्य औद्योगिक क्रांतियाँ: > i) प्रथम औद्योगिक क्रांति (मानव उत्पादकता में वृद्धि): 18वीं शताब्दी में प्रारंभ हुई थी. ii) द्वितीय औद्योगिक क्रांति (व्यापक पैमाने पर उत्पादन): 19वीं शताब्दी में शुरू हुई थी. iii)  तृतीय औद्योगिक क्रांति (आंशिक स्वचालन): 1970 के दशक में आरंभ हुई थी.

GeM :-

  • GeM (Government E-marketplace) ने केंद्रीय सार्वजनिक खरीद पोर्टल के साथ GeM को एकीकृत करके तथा वस्तुओं और सेवाओं की संपूर्ण सार्वजनिक खरीद को एक एकल प्लेटफॉर्म पर समेकित करके UPS के निर्माण से संबंधित कार्यों को पूर्ण कर लिया है.
  • GeM वस्तुतः विभिन्‍न सरकारी विभागों/संगठनों / सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) हेतु आवश्यक सामान्य उपयोग की वस्तुओं और सेवाओं की ऑनलाइन खरीद की सुविधा प्रदान करने वाला एक वन स्टॉप पोर्टल है.
  • यह वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के तहत कार्य करता है.

Oaxaca :-

  • प्रधान मंत्री ने अपने मन की बात में मैक्सिको के ओक्साका क्षेत्र का उल्लेख किया था.
  • कड़ी ओक्‍साका (Khadi Oaxaca) एक फार्म-टू-गारमेंट (farm-to-garment) समूह है, जिसमें लगभग 400 परिवार शामिल हैं.
  • ये परिवार दक्षिणी मैक्सिको के ओक्साका क्षेत्र में पारंपरिक खेतों में कार्य करते हैं और खेतों में ही छोटे-छोटे मकानों में निवास करते हैं.

Integrity Pact :-

  • केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVG) ने सरकारी संगठनों में खरीद गतिविधियों के लिए सत्यनिष्ठा समझौते के अनुपालन के संबंध में मानक संचालन प्रक्रिया में संशोधन किया है.
  • सत्यनिष्ठा समझौता एक सतर्कता साधन है, जो भावी विक्रेताओं/ बोलीदाताओं और क्रेताओं के मध्य एक समझौते की परिकल्पना करता है.
  • यह समझौता दोनों पक्षों को अनुबंध के किसी भी पहलू पर किसी भी भ्रष्ट प्रमाव का व्यवहार न करने के लिए प्रतिबद्ध करता है.
  • यह समझौता सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता, समता और प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित करता है.

PM inaugurates key projects in Gujarat :-

  • किसान सूर्योदय योजना: इसका उद्देश्य किसानों को दिन के समय सिंचाई हेतु विद्युत की आपूर्ति सुनिश्चित करना है.
  • जूनागढ़ जिले में गिरनार रोपवे: गिरनार रोपवे एशिया का सबसे लंबा रोपवे है, जिसकी लम्बाई 2.3 किमी. है.
  • माउंट गिरनार एक प्रमुख तीर्थ स्थल है, जहाँ अम्बा मंदिर, दत्तात्रेय मंदिर और अन्य हिंदू एवं जैन मंदिर स्थित हैं.

Yellow Dust :-

  • उत्तर कोरियाई अधिकारियों ने अपने नागरिकों से चीन से चलने वाले “पीली आंधी” के रहस्यमयी मेघ के संपर्क से बचने के लिए अपने घरों के भीतर रहने का आग्रह किया है.
  • पीली आंधी / तूफान वस्तुत: चीन और मंगोलिया के रेगिस्तान से आने वाली रेत है, जिसे उच्च गति वाली धरातलीय पवनें प्रत्येक वर्ष विशिष्ट अवधि के दौरान उत्तर एवं दक्षिण कोरिया में ले जाती हैं.
  • रेत के कण औद्योगिक प्रदूषकों जैसे अन्य विषाक्त पदार्थों के साथ मिश्रित हो जाते हैं और श्वसन संबंधी रोगों को उत्पन्न करते हैं.

OPEC :-

  • ओपेक (OPEC) ने यह संभावना व्यक्त की है कि कुछ देशों में लॉकडाउन और कर्फ्यू से वैश्विक ऊर्जा मांग में कमी नहीं आएगी.
  • ओपेक एक अंतर-सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना बगदाद सम्मेलन (वर्ष 1960) के दौरान की गई थी.
  • इसका उद्देश्य पेट्रोलियम उत्पादकों हेतु उचित और स्थिर कीमतों को बनाए रखने के लिए, सदस्य देशों के मध्य पेट्रोलियम नीतियों के समन्वय एवं एकीकरण को बढ़ावा देना है.
  • सदस्य: अल्जीरिया, अंगोला, कांगो, इक्वेटोरियल गिनी, गैबॉन, ईरान, इराक, कुवैत, लीबिया, नाइजीरिया, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और वेनेजुएला.

India-Australia Circular Economy Hackathon: I-ACE :-

  • इसका आयोजन नीति आयोग के तहत अटल नवाचार मिशन (AIM) द्वारा ऑस्ट्रेलिया के कॉमनवेल्थ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर किया जा रहा है.
  • यह भारत और ऑस्ट्रेलिया दोनों देशों में चक्रीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए अभिनव तरीके तलाशने में सहायता करेगा.
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था, पारंपरिक रैखिक अर्थव्यवस्था (निर्माण, उपयोग और निपटान) का एक विकल्प है.

India begins anti-dumping probe into low density polyethylene imports from 6 Nations :-

  • इन 6 देशों के विरुद्ध जांच का उत्तरदायित्व व्यापार उपचार महानिदेशालय (DGTR) को प्रदान किया गया है.
  • इन देशों में कतर, सऊदी अरब, सिंगापुर, थाईलैंड, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं .
  • DGTR, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय की एक अन्वेषण इकाई है. इसे एंटी-डंपिंग और काउंटरवेलिंग ड्यूटी की जांच और सुरक्षोपायों के अनुपालन से संबंधित अधिकार प्रदान किए गए हैं.
  • LDPE (Low Density Polyethylene) पॉलिमर की एक श्रेणी के अंतर्गत आता है, जिसे सामूहिक रूप से पॉलियोलेफिन के रूप में संदर्भित किया जाता है.
  • LPDE वस्तुतः अम्ल, क्षार और वनस्पति तेलों के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी होता है.
  • इसकी कठोरता, लचीलापन और सापेक्ष पारदर्शिता इसे हीट-सीलिंग की आवश्यकता वाले पैकेजिंग अनुप्रयोगों हेतु बेहतर बनाती है.

Centre promises law to check stubble burning :-

  • केंद्र सरकार पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में कृषि अवशेष दहन को रोकने संबंधी प्रयासों को सशक्त बनाने हेतु एक सांविधिक निकाय गठित करने के लिए एक व्यापक विधान अधिनियमित करने की तैयारी कर रही है.
  • यह कानून राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) दिल्‍ली और आसपास के क्षेत्रों में वायु प्रदूषण को कम करने संबंधी उपायों को भी लागू करेगा.
  • NCR में पहले से ही एक ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान संचालनरत है, जिसके तहत कई उपायों को निर्दिष्ट किया गया है, जिन्हें सरकारों द्वारा प्रदूषण के स्तर के आधार पर अपनाना चाहिए.

Himalayan Brown Bear (Ursus arctos isabellinus) :-

  • हाल ही के एक अध्ययन से हिमालयी भूरे भालू के उपयुक्त पर्यावास और जैविक गलियारों में हुई उल्लेखनीय कमी का पता चला है.
  • यह हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिवासित सबसे बड़े माँसमक्षी प्राणियों में से एक है.
  • विस्तार (range): इनका अधिवास क्षेत्र पाकिस्तान, नेपाल, तिब्बत और भारत के पर्वतीय अंचलों विशेषकर उच्च हिमालयी क्षेत्रों तक विस्तारित है.
  • भारत में, वे ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क (हिमाचल प्रदेश) में भी पर्यावासित हैं.
  • IUCN स्थिति: इंडेंजर्ड

Amur falcon :-

  • अमूर फाल्कन, बाज परिवार का एक छोटा शिकारी पक्षी है. यह साइबेरिया और उत्तरी चीन स्थित क्षेत्रों में प्रजनन करता है तथा प्रायः सर्दियों में प्रवास हेतु दक्षिणी अफ्रीका की ओर प्रवास कर जाता है.
  • नागालैंड में दोयांग झील अमूर बाज़ों के लिए एक ठहराव के रूप में कार्य करती है.
  • ज्ञातव्य है कि नागालैंड के पांगती गाँव को फाल्कन कैपिटल ऑफ वर्ल्ड के रूप में जाना जाता है.
  • IUCN स्थिति: लीस्ट कन्सर्न्ड.

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