Sansar Daily Current Affairs, 21 April 2020
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Why govt is encouraging ethanol production?
संदर्भ
केंद्र सरकार ने भारतीय खाद्य निगम में उपलब्ध अधिशेष चावल को अल्कोहल आधारित हैंड सैनिटाइजर बनाने के लिए इथेनॉल में परिवर्तित करने और पेट्रोल में सम्मिश्रण करने की अनुमति दे दी.
विदित हो कि भारत में फैल रहे कोरोना महामारी से बचाव के लिए जरुरी हैंड सैनिटाइजर की बढ़ती मांग को देखते हुए यह निर्णय किया गया है.
पृष्ठभूमि
सरकार ने हाल ही में देश की अनेक डिस्टिलरीज वाली चीनी मिलों को हैंड सैनिटाइजर बनाने का लाइसेंस दिया ताकि वे कोरोना महामारी से बचाव के लिए अस्पतालों और स्वास्थ्य संस्थानों को मुहैया करा सकें.
महत्त्वपूर्ण आँकड़ा
- आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार, एफसीआई के सरकारी गोदामों में कुल 58.49 मिलियन टन खाद्यान्न है, जिसमें चावल 30.97 मिलियन टन और गेहूं 27.52 मिलियन टन है.
- भारतीय खाद्य निगम के पास चावल का भारी मात्रा में भण्डार में है अर्थात् चावल की मात्रा कुल खपत की आवश्यकता से अधिक है. सैनिटाइजर के अतिरिक्त इस चावल से जो एथेनॉल बनेगा उसे पेट्रोल में मिलाकर बेचा जाएगा. कोरोना वायरस के चलते हैंड सैनिटाइजर की भारी मांग देखी जा रही है.
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति
- राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति, 2018 के 5.3 पैरा में कहा गया है कि अगर एक फसल वर्ष में कृषि एंव किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा अनुमानित मात्रा से अधिक खाद्यान्न की आपूर्ति हो तो, यह नीति अनाज की इस अतिरिक्त मात्रा को राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की स्वीकृति के आधार पर इथेनॉल में बदलने की मंजूरी देगी.
- राज्य सरकार जैव ईंधन के विपणन को प्रोत्साहित करेगी एवं उसके विषय में जागरुकता का प्रसार करेगी.
- विदित हो कि राजस्थान में 8 टन प्रतिदिन की क्षमता का एक बायोडीजल संयंत्र भारतीय रेलवे की वित्तीय सहायता से पहले ही स्थापित किया जा चुका है.
- राज्य सरकार के अनुसार, राज्य ग्रामीण आजीविका विकास परिषद् (SRLDC) बायोडीजल की आपूर्ति के माध्यम से अतिरिक्त आय के स्त्रोतों का पता लगाने के लिए महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों (SHGs) को भी प्रोत्साहित करेगी.
- इस नीति में एथनोल (ethanol) उत्पादन के लिए उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल की परिभाषा को व्यापक विस्तार देते हुए इसमें इन सामग्रियों को भी जोड़ा गया है – गन्ना रस, चुकंदर जैसे मीठे पदार्थ, मीठा बाजरा, मंडयुक्त अनाज जैसे मकई, कसावा, क्षतिग्रस्त गेहूँ, टूटा चावल, अखाद्य सड़ा आलू,
- नीति में जैव ईंधनों को आधारमुक्त जैव ईंधनों यानी पहली पीढ़ी (1जी) के बायोइथेनॉल और बायोडीजल तथा विकसित जैव ईंधनों यानी दूसरी पीढ़ी (2जी) के इथेनॉल, निगम के ठोस कचरे(Municipal Solid Waste – MSW) से लेकर ड्रॉप-इन ईंधन, तीसरी पीढ़ी (3जी) के जैव ईंधन, Bio-CNG आदि को श्रेणीबद्ध किया गया है, ताकि प्रत्येक श्रेणी के अंतर्गत उचित वित्तीय और आर्थिक प्रोत्साहन बढ़ाया जा सके.
- ज्ञातव्य है कि अतिरिक्त उत्पादन के चरण के दौरान किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलने का खतरा होता है.
- इसे संज्ञान में रखते हुए इस नीति में राष्ट्रीय जैव ईंधन समन्वय समिति की मंजूरी से इथेनॉल उत्पादन के लिए (पेट्रोल के साथ उसे मिलाने के लिए) अधिशेष अनाजों के इस्तेमाल की अनुमति दी गई है.
- जैव ईंधनों के लिए नीति में 2जी इथेनॉल जैव रिफाइनरी को 1G जैव ईंधनों की तुलना में अतिरिक्त कर प्रोत्साहन, उच्च खरीद मूल्य आदि के अलावा 6 सालों में 5 हजार करोड़ रु. निधि की व्यवस्था करने का प्रावधान है.
जैव ईंधन क्या है?
जैव ईंधन कम समय में कार्बनिक पदार्थ से उत्पादित किया जाने वाला हाइड्रोकार्बन ईंधन है. यह जीवाश्म ईंधन से भिन्न होता है क्योंकि जीवाश्म ईंधन के बनने में लाखों-करोड़ों वर्ष लग जाते हैं. जैव ईंधन को ऊर्जा का नवीकरणीय रूप माना जाता है और इसमें जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन होता है.
प्रकार
- पहली पीढ़ी के जैव ईंधन– इसमें किण्वन के पारम्परिक तरीके द्वारा ऐथनॉल बनाने के लिए गेहूँ और गन्ने जैसी खाद्य फसलों और बायोडीजल के लिए तिलहनों का उपयोग किया जाता है.
- दूसरी पीढ़ी के जैव ईंधन– इसमें गैर-खाद्य फसलों का उपयोग किया जाता है और ईंधन के उत्पादन में लकड़ी, घास, बीज फसलों, जैविक अपशिष्ट जैसे फीडस्टॉक का उपयोग किया जाता है.
- तीसरी पीढ़ी के जैव ईंधन– इसमें विशेष रूप से इंजिनियर्ड शैवालों (engineered Algae) का प्रयोग किया जाता है. शैवाल के बायोमास का उपयोग जैव ईंधन में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है. इसमें अन्य की तुलना में ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन कम होता है.
- चौथी पीढ़ी के जैव ईंधन– इसका उद्देश्य न केवल संधारणीय ऊर्जा का उत्पादन करना है बल्कि यह कार्बन डाइऑक्साइड के अभिग्रहण (capturing) और भंडारण (storage) की एक पद्धति भी है.
और अधिक जानकारी प्राप्त करें – जैव ईंधन नीति
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Issues relating to development and management of Social Sector/Services relating to Health, Education, Human Resources.
Topic : How Kerala’s Kasaragod has fought coronavirus?
संदर्भ
केरल के कासरगोड में पिछले सात दिन में केवल 14 और 16 अप्रैल को एक-एक कोरोना के पॉजिटिव केस मिले, बाकी दिन एक भी मामला सामने नहीं आया. जिले में अब तक दर्ज हुए 167 मामलों में से केवल 51 चिकित्सालय में हैं और शेष को घर भेज दिया गया है. इसकी वजह ‘केरल की कासरगोड पहल’ को माना जा रहा है और इसे मॉडल के रूप में देश में बाकी हॉटस्पॉट के लिए अनुकरणीय माना जा रहा है.
‘केरल की कासरगोड पहल’
- विदेश से आए लोगों और कोविड-19 मरीजों के पहले व दूसरे स्तर पर संपर्क में आए लोगों को पृथक किया गया. ऐसे लोगों पर विशेष नजर रखी गई जो खाड़ी देशों से आ रहे थे. यह इसलिए क्योंकि यहां तीसरा संक्रमित मामला चीन से आए व्यक्ति में मिला था तो वहीं कई लोग मध्य पूर्वी एशिया से भी यहां आए थे. 15% संक्रमित NRI थे.
- तीन प्रकार की लॉक की रणनीति अपनाई गई –
- लॉक 1 : यहां पारंपरिक रूप से पुलिस ने अपना काम किया. सड़कों को रोका, मोबाइल पेट्रोलिंग करवाई गई. लाभ यह हुआ कि लोगों के घर से बाहर आने पर नियंत्रण हो गया.
- लॉक 2 : इसमें जीआईएस तकनीक का उपयोग कर संक्रमित लोगों, क्वारंटीन हुए लोगों, विदेश से आए लोगों और उनसे पहले व दूसरे स्तर पर संपर्क में आए लोगों की मैपिंग हुई. किसी को यहां आने या बाहर जाने की अनुमति नहीं दी गई.
- लॉक 3 : सातों क्षेत्रों को कोविड सीमा क्षेत्र में बदले जिले के बाकी हिस्सों से काट दिया गया. विदेश से लौटे जो लोग अपने घर गए और जिन परिजन, रिश्तेदारों व दोस्तों से मिले, पुलिस ने उन सबकी सूची बनाई. घरों के बाहर पुलिस बैठाई गई.
अन्य उल्लेखनीय मॉडल
आगरा मॉडल
मरीज़ों का पता चलते ही, डीएम ने सबसे पहले आगरा के जिस होटल में विदेशी सैलानी रुके थे उसको क्वारंटीन किया. उस होटल के तकरीबन 160 कर्मचारियों को भी निगरानी में रखा गया. कंटेनमेंट प्लान जिला-स्तर पर जारी किया गया. आगरा के स्मार्ट सिटी सेंटर को ज़िला प्रशासन ने कोविड19 के वॉर रुम में तब्दील किया गया और सभी मरीज़ों की निगरानी यहीं से प्रारम्भ की गई.
भीलवाड़ा मॉडल
कोरोना महामारी से पहले चरण की जंग जीतकर देश में रोल मॉडल बना राजस्थान काभीलवाड़ा जिला फिलहाल पॉजीटिव रोगियों से मुक्त हो गया है. इसने धारा 144 सीआरपीसी लगाए जाने के साथ भीलवाड़ा शहर को सम्पूर्ण रूप तरह से अन्य क्षेत्रों से पृथक कर दिया. प्रथम चरण में, आवश्यक सेवाओं की अनुमति दी गई थी; द्वितीय चरण में, शहर और जिले की सीमाओं के हर प्रवेश और निकास बिंदु पर चेकपोस्ट लगाये गये. ट्रेनों, बसों और कारों को रोक दिया गया. पड़ोसी जिलों के जिलाधीशों को भी अपनी सीमाओं को सील करने के लिए कहा गया था.
पथनमथिट्टा मॉडल
केरल के पथनमथिट्टा जिले में भी आगरा की तरह कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग और सीलिंग पर कार्य हुआ. परन्तु कुछ अन्य नए काम भी हुए. ज़िले में बाहर से आए हर व्यक्ति की जानकारी एक डेटाबेस में डाली गई और इधर बराबर जांच होती रही. जांच में कोई पॉज़िटिव निकलता तो डेटाबेस से उसकी जानकारी त्वरित रूप से ले ली जाती और उससे सम्पर्क किया जाता. उस हिस्से की पुलिस को सूचित कर दिया जाता और अंततः व्यक्ति को क्वॉरंटीन और कांटैक्ट ट्रेसिंग प्रारम्भ हो जाती. जिले में हर प्रकार की धार्मिक सभाओं पर अधिक लोगों के जमा न होने का आग्रह किया गया. जांच में जो लोग पॉज़िटिव मिले, और वो जिस-जिस क्षेत्र से निकले थे, उसके ग्राफिक्स बनाए गए. नक़्शे पर कोरोना पॉज़िटिव व्यक्ति का पूरा रास्ता ट्रेस किया गया. दिखाया गया कि संक्रमित मरीज़ कहां-कहां गया था. जिन लोगों को क्वारिंटीन किया गया है, वो अपनी जगह से न हिलें, ये पक्का करने के लिए चेंगन्नूर के IHRD कॉलेज में पढ़ने वाले छात्रों ने एक ऐप भी बनाया. कोरोना- आरएम नाम का यह ऐप जीपीएस की मदद से शीघ्र बता देता था कि क्वारिंटीन में रखा गया व्यक्ति बाहर निकल गया है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : India and neighbours.
Topic : Additional trade barriers violate WTO’s principle of non-discrimination: China
संदर्भ
चीनी ने कहा कि विशिष्ट देशों के निवेशकों के लिए भारत के नए एफडीआई मानदंड WTO के नियमों के ख़िलाफ़ हैं और जी-20 के आम समझौते (consensus) के भी विरुद्ध हैं.
भारत द्वारा एफडीआई नियमों में परिवर्तन की चीन ने आलोचना की है और उसने भारत सरकार द्वारा शीघ्र नियमों में परिवर्तन की आशा जताई है.
पृष्ठभूमि
- भारत ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश मार्ग के माध्यम से COVID-19 महामारी के बीच तनावग्रस्त फर्मों के अधिग्रहण को रोकने के लिए अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में संशोधन किया है. भारत सरकार ने देश की प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) नीति में संशोधन किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वर्तमान में मौजूद COVID-19 लॉकडाउन के कारण तनाव का सामना करने वाली फर्मों का कोई शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण न हो. संशोधन के अनुसार, पड़ोसी देशों – जिसमें चीन, नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान को भारतीय कंपनियों में निवेश के लिए सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता होगी.
- केंद्र सरकार ने पाकिस्तान को रक्षा, अंतरिक्ष, परमाणु ऊर्जा और विदेशी निवेश के लिए निषिद्ध क्षेत्रों/ गतिविधियों में निवेश करने से भी रोक दिया है.
चीन का तर्क
- पिछले वर्ष दिसंबर तक चीन की कंपनियों ने भारत में 800 करोड़ डॉलर यानी करीब 60,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है जो भारत में निवेश करने वाले किसी भी पड़ोसी देश से ज्यादा है.
- चीन की कंपनियों ने भारत की मोबाइल, घरेलू इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, ऑटोमोबाइल व ढांचागत क्षेत्र को विकसित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है. ये कंपनियां भारत में रोजगार दे रही हैं और ऐसे अवसरों का सृजन कर कर रही हैं जो दोनो देशों के हित में हैं.
प्रत्यक्ष निवेश पर भारत के अतिरिक्त अन्य देश भी अपनी नीतियों में परिवर्तन क्यों ला रहे हैं?
- ज्ञातव्य है कि भारत से पहले ऑस्ट्रेलिया, इटली, स्पेन और जर्मनी ने संवेदनशील सेक्टर में होने वाले निवेश को लेकर इसी तरह के एहतियाती कदम उठाए हैं. इन देशों में भी चीन की कंपनियों का ही डर है जो शेयर बाजार में गिरावट के दौर में उनकी कंपनियों के अधिग्रहण करने की मंशा रखती हैं.
- चीन के पीपुल्स डेवलपमेंट बैंक ने कुछ दिनों पूर्व ही भारत के सबसे बड़े निजी ऋणदाता HDFC बैंक में एक फीसदी से अधिक हिस्सेदारी ले ली थी.
- दुनिया के एक बड़े वर्ग का मानना है कि कोरोना वायरस चीन की साजिश है. चीनी कंपनियों के कोरोना वायरस के कारण कमजोर हो चुकी दूसरे देशों की कंपनियों में निवेश करने से इस आशंका को और बल मिलता है. इसी आशंका को रोकने के लिए अमेरिका और यूरोपिय यूनियन ने चीनी कंपनियों के निवेश को पूरी तरह रोक दिया है.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Indigenization and development of new technology.
Topic : TriboE masks and triboelectricity
संदर्भ
बेंगलुरु में स्थित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के स्वायत्त संस्थान नैनो एवं मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र (Centre for Nano and Soft Matter Sciences – CeNS) के शोधकर्ताओं ने TriboE नामक मास्क बनाने की एक पद्धति निकाली है.
ऐसे मास्क में संक्रमण को रोकने के लिए विद्युत् आवेश होते हैं. परन्तु इसके लिए किसी बाहरी ऊर्जा की आवश्यकता नहीं होती.
TriboE मास्क कैसे काम करता है?
TriboE मास्क इलेक्ट्रोस्टैटिक्स पर चलता है. जब इसकी दो कुचालक परतें (non-conducting layers) एक-दूसरे से रगड़ खाती हैं तो इनमें तुरंत धनात्मक एवं ऋणात्मक आवेश उत्पन्न हो जाते हैं जो कुछ समय तक चलते रहते हैं. इससे जो विद्युत् क्षेत्र बनता है यह कीटाणुओं को न केवल निष्क्रिय बना सकता है, अपितु उनका नाश भी कर सकता है.
इस मास्क की मुख्य विशेषताएँ
- इसमें तीन परतें होती हैं. दो परतें पोलीप्रोपलीन की होती हैं और उनके बीच नायलोन के कपड़े की एक परत होती है. पोलीप्रोपलीन की परतें ग्रोसरी थैलों से बनती हैं.
- यदि नायलोन का कपड़ा नहीं मिले तो किसी पुरानी साड़ी अथवा शाल को काटकर रेशमी कपड़ा भी प्रयोग में लाया जा सकता है.
- जब ये परतें एक-दूसरे से रगड़ खाती हैं तो दोनों बाहरी परतों में ऋणात्मक आवेश तथा नायलोन में धनात्मक आवेश उत्पन्न हो जाता है.
- संक्रमण करने वाले विषाणु को यह मास्क अपनी दोहरी विद्युत् दीवार के बल पर रोक देता है.
- साधारणतः उपलब्ध कपड़ों से बने होने के कारण यह मास्क अन्य कपड़ों के समान धोया जा सकता है और फिर से प्रयोग में लाया जा सकता है.
ट्रायबोइलेक्ट्रिक प्रभाव (Triboelectric Effect) क्या होता है?
ट्रायबोइलेक्ट्रिक प्रभाव अर्थात् ट्रायबोइलेक्ट्रिक आवेश एक प्रकार का सम्पर्कजन्य विद्युतीकरण है जिसमें दूसरे पदार्थ के द्वारा अलग कर दिए जाने पर कुछ पदार्थ विद्युत् से आवेशित हो जाते हैं. इन दो पदार्थों को तीसरे पदार्थ से रगड़ने पर इनकी सतहों के बीच सम्पर्क बढ़ जाता है और फलतः ट्रायबो इलेक्ट्रिक प्रभाव उत्पन्न होता है.
उदाहरण
इसका एक अत्यंत प्रसिद्ध उदाहरण तब देखने को मिलता है जब हम एक प्लास्टिक कलम को अपने आस्तीन पर रगड़ते हैं. यह आस्तीन कपड़े, ऊन, पोलियेस्टर या आजकल कपड़ों के लिए प्रयुक्त होने वाले मिश्रित कपड़े का हो सकता है. रगड़े जाने पर कलम में विद्युत् का आवेश आ जाता है और इससे एक वर्ग सेंटीमीटर से कम के आकार के कागज़ के टुकड़े उठाये जा सकते हैं. यही नहीं यदि इसी प्रकार की एक और आवेशित कलम इस कलम के पास लाया जाए तो दोनों एक दूसरे को विपरीत दिशा में धकेलने लगते हैं.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Awareness in space.
Topic : Lithium rich red giants
संदर्भ
भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अधीनस्थ भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान (Indian Institute of Astrophysics – IIA) के शोधकर्ताओं ने पिछले दिनों लिथियम-रिच नामक सैंकड़ों दैत्याकार तारों (Li-rich giant stars) की खोज की है.
शोधकर्ताओं ने इन तारों को केन्द्रीय हीलियम-बर्निंग तारों (central He-burning stars) अर्थात् रेड क्लब दैत्याकार तारों (red clump giants) से जोड़ा है और इस प्रकार लाल दैत्याकार तारों के क्रमिक विकास को समझने के लिए नये मार्क खुल गये हैं.
निहितार्थ
शोधकर्ताओं की इस खोज से यह संकेत मिलता है कि तारों में लिथियम (Li) का उत्पादन हो रहा है और इसी कारण अंतर तारकीय (interstellar) क्षेत्र में ये प्रचुरता से पाए हाते हैं.
बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस (Big Bang Nucleosynthesis) के साथ-साथ तारकीय मिश्रण प्रक्रिया को सत्यापित करने के लिए शोधकर्ताओं को हमारी आकाशगंगा में लिथियम (Li) की प्रचुरता के स्रोतों का पता लगाने में बड़ी रूचि रहती है.
पृष्ठभूमि
माना जाता है कि बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस (BBN) के समय तीन प्रीमौर्डियल तत्त्वों (primordial elements) की सृष्टि हुई थी – लिथियम (Lithium -Li), हाइड्रोजन और हीलियम.
तारों में लिथियम
विश्वास किया जाता है कि तारे आकाशगंगा में लिथियम के स्रोत हैं. दूसरे शब्दों में ये तारे लिथियम के खजाने हैं. परन्तु, समय के साथ-साथ यह लिथियम घटता जाता है क्योंकि लिथियम 2.5X106 K जितने अत्यंत न्यून तापमान में भी जलता रहता है. विदित हो कि तारों में इतना तापमान सरलतापूर्वक उपलब्ध होता है.
बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस क्या है?
बिग बैंग न्यूक्लियोसिंथेसिस सिद्धांत बताता है कि ब्रह्माण्ड के आयतन का एक चौथाई भाग हीलियम का बना होता है. यह यह भी बताता है कि ब्रह्माण्ड में 0.01% ड्यूटेरियम और उससे भी बहुत कम लिथियम हुआ करता है.
प्रीमौर्डियल न्यूक्लियोसिंथेसिस
अधिकांश ब्रह्माण्डवेत्ता विश्वास करते हैं कि बिग बैंग के तुरंत पश्चात् अर्थात् 10 सेकंड से लेकर 20 मिनट के अन्दर परमाणुओं का संश्लेषण हुआ था. इस संश्लेषण को प्रीमौर्डियल न्यूक्लियोसिंथेसिस (Primordial nucleosynthesis) का नाम दिया गया है.
Prelims Vishesh
Festivals being celebrated in several parts of country :-
- वैशाखी – यह पर्व वासंतिक फसल (रबी फसल) का पर्व होने के साथ-साथ इसलिए भी मनाया जाता है कि इसी दिन गुरुगोविन्द सिंह ने खालसा पन्थ की स्थापना की थी. यह पर्व वैशाख महीने के पहले दिवस को मनाया जाता है.
- विशु – यह पर्व केरल और कर्नाटक के तुलुनाडु क्षेत्र के साथ-साथ तमिलनाडु के पार्श्ववर्ती क्षेत्र में मनाया जाता है. यह पर्व केरल में प्रचलित सौर पंचाग के नौवें महीने – मेदम – के पहले दिन मनाया जाता है.
- रोंगाली बिहू – यह पर्व असम के नववर्ष के प्रारम्भ को द्योतित करता है.
- नब बर्ष – यह बंगाली नववर्ष के आगमन पर मनाया जाता है.
- पुथंडु – यह तमिलनाडु का पर्व है जो चितिरइ नामक तमिल महीने के पहले दिन मनाया जाता है अर्थात् यह तमिलों के लिए नववर्ष का दिन होता है.
Indo-U.S. Science and Technology Forum (IUSSTF) :-
- भारत सरकार और अमेरिका की सरकार ने 2000 में एक समझौता करते हुए Indo-U.S. Science and Technology Forum (IUSSTF) की स्थापना की थी.
- इसका उद्देश्य दोनों देशों के बीच इन क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना है – विज्ञान, प्रौद्योगिकी, आभियंत्रिकी एवं जैव-औषधीय अनुसंधान.
- IUSSTF एक स्वायत्त और लाभरहित संस्था है जो सरकारों, शिक्षा जगत, उद्योग तथा कई गैर-सरकारी प्रतिष्ठानों के सहयोग से काम करता है.
- इसे अमेरिका और भारत के कई स्वतंत्र स्रोतों से धनराशि मिलती है और दोनों सरकारें भी अपना-अपना योगदान करती हैं.
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