Sansar डेली करंट अफेयर्स, 21 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 21 August 2019


GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Table of Contents

Topic : UN Security Council

संदर्भ

पिछले दिनों भारत के उपराष्ट्रपति ने आह्वान किया कि भारत को संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् की स्थायी सदस्यता प्राप्त करने के लिए फिर से प्रयास करना चाहिए.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् क्या है?

संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की होती है. सुरक्षा परिषद् का अध्यक्ष इसके सदस्यों में से मासिक आधार पर बदल-बदल कर चुना जाता है. इसकी बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है. इसके फैसले का अनुपालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है. इसमें 15 सदस्य देश शामिल होते हैं जिनमें से पाँच सदस्य देश – चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका – स्थायी सदस्य हैं. शेष दस सदस्य देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है. चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है.

ज्ञातव्य है कि कार्यप्रणाली से सम्बंधित प्रश्नों को छोड़कर प्रत्येक फैसले के लिए मतदान की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई भी स्थायी सदस्य अपना वोट देने से मना कर देता है तब इसे “वीटो” के नाम से जाना जाता है. परिषद् (Security Council) के समक्ष जब कभी किसी देश के अशांति और खतरे के मामले लाये जाते हैं तो अक्सर वह उस देश को पहले विविध पक्षों से शांतिपूर्ण हल ढूँढने हेतु प्रयास करने के लिए कहती है.

परिषद् मध्यस्थता का मार्ग भी चुनती है. वह स्थिति की छानबीन कर उस पर रपट भेजने के लिए महासचिव से आग्रह भी कर सकती है. लड़ाई छिड़ जाने पर परिषद् युद्ध विराम की कोशिश करती है.

वह अशांत क्षेत्र में तनाव कम करने एवं विरोधी सैनिक बलों को दूर रखने के लिए शांति सैनिकों की टुकड़ियाँ भी भेज सकती है. महासभा के विपरीत इसके फैसले बाध्यकारी होते हैं. आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अथवा सामूहिक सैन्य कार्यवाही का आदेश देकर अपने फैसले को लागू करवाने का अधिकार भी इसे प्राप्त है. उदाहरणस्वरूप इसने ऐसा कोरियाई संकट (1950) तथा ईराक कुवैत संकट (1950-51) के दौरान किया था.

कार्य

  • विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना.
  • हथियारों की तस्करी को रोकना.
  • आक्रमणकर्ता राज्य के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करना.
  • आक्रमण को रोकने या बंद करने के लिए राज्यों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना.

संरचना

सुरक्षा परिषद् (Security Council) के वर्तमान समय में 15 सदस्य देश हैं जिसमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी हैं. वर्ष 1963 में चार्टर संशोधन किया गया और अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई. अस्थायी सदस्य विश्व के विभिन्न भागों से लिए जाते हैं जिसके अनुपात निम्नलिखित हैं –

  • 5 सदस्य अफ्रीका, एशिया से
  • 2 सदस्य लैटिन अमेरिका से
  • 2 सदस्य पश्चिमी देशों से
  • 1 सदस्य पूर्वी यूरोप से

चार्टर के अनुच्छेद 27 में मतदान का प्रावधान दिया गया है. सुरक्षा परिषद् में “दोहरे वीटो का प्रावधान” है. पहले वीटो का प्रयोग सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य किसी मुद्दे को साधारण मामलों से अलग करने के लिए करते हैं. दूसरी बार वीटो का प्रयोग उस मुद्दे को रोकने के लिए किया जाता है.

परिषद् के अस्थायी सदस्य का निर्वाचन महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किया जाता है. विदित हो कि 191 में राष्ट्रवादी चीन (ताईवान) को स्थायी सदस्यता से निकालकर जनवादी चीन को स्थायी सदस्य बना दिया गया था.

इसकी बैठक वर्ष-भर चलती रहती है. सुरक्षा परिषद् में किसी भी कार्यवाही के लिए 9 सदस्यों की आवश्यकता होती है. किसी भी एक सदस्य की अनुपस्थिति में वीटो अधिकार का प्रयोग स्थायी सदस्यों द्वारा नहीं किया जा सकता.

स्थायी सदस्य बनने के लिए भारत के तर्क

  • भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था.
  • संयुक्त राष्ट्र के शान्ति रक्षण अभियानों में योगदान करने वाला भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है.
  • आज विश्व के विभिन्न कोनों में भारत के 8,500 से अधिक शान्ति-रक्षक तैनात हैं. यह संख्या संयुक्त राष्ट्र की पाँचों शक्तिशाली देशों के कुल योगदान से भी दुगुनी से अधिक है.
  • भारत बहुत दिनों से सुरक्षा परिषद् का विस्तार करने और उसमें स्थाई सदस्य के रूप में भारत के समावेश की माँग करता रहा है.
  • यह सुरक्षा परिषद् में सात बार सदस्य भी रहा है. इसके अतिरिक्त वह G77 और G4 का भी सदस्य है. इस प्रकार इसे सुरक्षा परिषद् में अवश्य शामिल होना चाहिए.

GS Paper 2 Source: Indian Express

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Delimitation of Constituencies

संदर्भ

जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य को संघीय क्षेत्र बनाने तथा लद्दाख एक संघीय क्षेत्र का स्वरूप देने के कारण चुनाव क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन करना अनिवार्य हो गया है. यद्यपि सरकार ने इसके लिए अभी अधिसूचना नहीं निकाली है परन्तु निर्वाचन आयोग ने इस प्रश्न पर आंतरिक विचार-विमर्श किया है.

जम्मू-कश्मीर संविधान में परिसीमन विषयक प्रावधान

  1. जम्मू-कश्मीर में लोक सभा की सीटों से सम्बंधित परिसीमन भारतीय संविधान के अंतर्गत हुआ करता था. परन्तु वहाँ के विधान सभा सीटों के बारे में निर्णय जम्मू-कश्मीर संविधान तथा जम्मू-कश्मीर जनप्रतिनिधि अधिनियम, 1957 के अनुसार किया जाता था.
  2. जहाँ तक लोक सभा सीटों की बात है, 2002 में नियुक्त अंतिम परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) को जम्मू-कश्मीर का काम नहीं सौंपा गया था. इसका अर्थ यह हुआ कि उस राज्य में लोकसभा की सीटों का परिसीमन 1971 की जनगणना पर आधारित था.
  3. जहाँ तक विधान सभा सीटों का प्रश्न है, जम्मू-कश्मीर के संविधान में एक अलग परिसीमन आयोग की अभिकल्पना है. परन्तु व्यवहार में इस राज्य की विधान सभाओं के लिए चुनाव क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय परिसीमन आयोग की अनुशंसाओं को 1963 और 1973 में अपनाया गया था.
  4. 1991 में जम्मू-कश्मीर में जनगणना नहीं हुई थी और वहाँ नए परिसीमन आयोग के गठन पर विधान सभा ने 2026 तक रोक लगा दी थी और इस रोक को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सही घोषित किया गया था.

परिसीमन आवश्यक क्यों?

जनसंख्या में परिवर्तन को देखते हुए समय-समय पर लोक सभा और विधान सभा की सीटों के लिए चुनाव क्षेत्र का परिसीमन नए सिरे से करने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया के फलस्वरूप इन सदनों की सदस्य संख्या में भी बदलाव होता है.

परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के अलग-अलग भागों को समान प्रतिनिधित्व उपलब्ध कराना होता है. इसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि चुनाव क्षेत्रों के लिए भौगोलिक क्षेत्रों को इस प्रकार न्यायपूर्ण ढंग से बाँटा जाए जिससे किसी एक राजनीतिक दल को अन्य दलों पर बढ़त न प्राप्त हो.

परिसीमन आयोग और उसके कार्य

  • संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात् एक सीमाकंन अधिनियम पारित करता है और उसके आधार पर केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन करती है.
  • इस आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवा-निवृत्त न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्त सदस्य होते हैं.
  • इस आयोग का काम चुनाव क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का इस प्रकार निर्धारण करना है कि यथासम्भव सभी चुनाव क्षेत्रों की जनसंख्या एक जैसी हो.
  • आयोग का यह भी काम है कि वह उन सीटों की पहचान करे जो अजा/अजजा के लिए आरक्षित होंगे. विदित हो कि अजा/अजजा के लिए आरक्षण तब होता है जब सम्बंधित चुनाव-क्षेत्र में उनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है.
  • सीटों की संख्या और आकार के बारे में निर्णय नवीनतम जनगणना के आधार पर किया जाता है.
  • यदि आयोग के सदस्यों में किसी बात को लेकर मतभेद हो तो बहुत के मत को स्वीकार किया जाता है.
  • संविधान के अनुसार, परिसीमन आयोग का कोई भी आदेश अंतिम होता है और इसको किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
  • प्रारम्भ में आयोग भारतीय राज्य पत्र में अपने प्रस्तावों का प्रारूप प्रकाशित करता है और पुनः उसके विषय में जनता के बीच जाकर सुनवाई करते हुए आपत्ति, सुझाव आदि लेता है. तत्पश्चात् अंतिम आदेश भारतीय राजपत्र और राज्यों के राजपत्र में प्रकाशित कर दिया जाता है.

चुनाव क्षेत्र परिसीमन का काम कब-कब हुआ है?

  • चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम सबसे पहले 1950-51 में हुआ था. संविधान में उस समय यह निर्दिष्ट नहीं हुआ था कि यह काम कौन करेगा. इसलिए उस समय यह काम राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के सहयोग से किया था.
  • संविधान के निर्देशानुसार चुनाव क्षेत्रों का मानचित्र प्रत्येक जनगणना के उपरान्त फिर से बनाना आवश्यक है. अतः 1951 की जनगणना के पश्चात् 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम पारित हुआ. तब से लेकर 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन का काम हुआ. उल्लेखनीय है कि 1976 में आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी ने संविधान में संशोधन करते हुए परिसीमन का कार्य 2001 तक रोक दिया था. इसके पीछे यह तर्क दिया था गया कि दक्षिण के राज्यों को शिकायत थी कि वे परिवार नियोजन के मोर्चे पर अच्छा काम कर रहे हैं और जनसंख्या को नियंत्रण करने में सहयोग कर रहे हैं जिसका फल उन्हें यह मिल रहा है कि उनके चुनाव क्षेत्रों की संख्या उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम होती है. अतः1981 और 1991 की जनगणनाओं के बाद परिसीमन का काम नहीं हुआ.
  • 2001 की जनगणना के पश्चात् परिसीमन पर लगी हुई इस रोक को हट जाना चाहिए था. परन्तु फिर से एक संशोधन लाया गया और इस रोक को इस आधार पर 2026 तक बढ़ा दिया कि तब तक पूरे भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर एक जैसी हो जायेगी. इसी कारण 2001 की जनगणना के आधार पर किये गये परिसीमन कार्य (जुलाई 2002 – मई 31, 2018) में कोई ख़ास काम नहीं हुआ था. केवल लोकसभा और विधान सभाओं की वर्तमान चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं को थोड़ा-बहुत इधर-उधर किया गया था और आरक्षित सीटों की संख्या में बदलाव लाया गया था.

 

GS Paper 3 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : DRAFT NATIONAL RESOURCE EFFICIENCY POLICY

संदर्भ

भारत सरकार के पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता नीति, 2019 का एक प्रारूप प्रस्तावित किया है जिसका उद्देश्य संसाधनों के उपयोग को इस प्रकार कार्यक्षम बनाना है कि पर्यावरण पर न्यूनतम दुष्प्रभाव पड़े.

राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता नीति के मुख्य तथ्य

  • पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अन्दर एक राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता प्राधिकरण (National Resource Efficiency Authority – NREA) का गठन किया जाएगा.
  • इस प्राधिकरण को सहयोग देने के लिए एक अन्तर-मंत्रालयी राष्ट्रीय संशोधन कार्यक्षमता बोर्ड (Inter-Ministerial National Resource Efficiency Board) बनाया जाएगा.
  • प्रारूप में प्रस्ताव है कि पुनः चक्रित सामग्रियों (recycled materials), लघु एवं मध्यम उद्यमों को दिए जाने वाले हरित ऋणों एवं कचरा निपटाने संयंत्रों के लिए दिए जाने वाले कम ब्याज वाले ऋणों के लिए कर का लाभ दिया जाएगा.
  • नई नीति में Material Recovery Facilities (MRF) स्थापित करने का प्रावधान है.
  • निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं को कहा जाएगा कि वे पुनः चक्रित अथवा नवीकरणीय सामग्रियों का अधिक से अधिक प्रयोग करें.
  • राष्ट्रीय नीति के पीछे मूलभूत विचार यह है कि देश की अर्थव्यवस्था को चक्रीय अर्थव्यवस्था (circular economy) के रूप में ढाला जाए जहाँ उपलब्ध संसाधनों का उपयोग अधिक सक्षमतापूर्वक होवे.
  • इसके लिए प्रारूप में 6R के सिद्धांत को अपनाने की बात कही गई है. यहाँ पर 6R का अभिप्राय है – Reduce (घटाना), Reuse (फिर से प्रयोग करना), Recycle (पुनः चक्रित करना), Redesign (नए सिरे से रूपांकित करना), Re-manufacture (दुबारा बनाना) और Refurbish (नया रूप देना).
  • नीति में ‘green public procurement’ पर बल दिया गया है. इसका अभिप्राय है कि ऐसे उत्पाद ख़रीदे जाएँ जिनसे पर्यावरण को कम क्षति पहुँचती हो, जैसे – पहले से उपयोग किये गये कच्चे माल और स्थानीय स्तर से प्राप्त माल.
  • प्रस्तावित नीति में देश को Zero Landfill दृष्टिकोण अपनाने को कहा गया है. इसका अर्थ यह हुआ कि बड़ी मात्रा में कचरा उत्पन्न करने वालों को सामग्रियों का आदर्शतम उपयोग करने के साथ-साथ कचरे का बेहतर प्रबंधन भी करना चाहिए.

राष्ट्रीय संसाधन कार्यक्षमता प्राधिकरण (NREA) के कार्य

  • विभिन्न प्रक्षेत्रों के द्वारा सामग्रियों के पुनः चक्रण, फिर से प्रयोग और कम से कम कचरा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कार्यक्षम रणनीतियों का निर्माण और कार्यान्वयन करना.
  • पुराने कच्चा माल को फिर से उपयोग करते समय गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए मानक तैयार करना.
  • विभिन्न प्रक्षेत्रों और अलग-अलग क्षेत्रों में हो रहे सामग्रियों के उपयोग, उत्पन्न हो रहे कचरे, पुनः चक्रित वस्तुओं और कचरा फेके जाने के बारे में डेटाबेस संधारित करना और कार्यान्वयन पर नजर रखना.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Security challenges and their management in border areas; linkages of organized crime with terrorism.

Topic : Information Fusion Centre (IFC) for the Indian Ocean Region (IOR)

संदर्भ

सागर (Security and Growth for All in the Region – SAGAR) नामक प्रधानमंत्री के विज़न के अनुसार अनावृत राष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र जागरूकता परियोजना (National Maritime Domain Awareness – NMDA Project) के अंतर्गत सूचना मिश्रण केंद्र – हिन्द महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) की क्षमताओं को बढ़ाने की योजना है.

IFCIOR क्या है?

  • यह सूचनाओं के संकलन का एक केंद्र है जहाँ हिन्द महासागर क्षेत्र से सम्बंधित सामुद्रिक सूचना इकट्ठी की जाती है. यहाँ से इस महासागर में हो रही सामुद्रिक गतिविधियों की समग्र जानकारी उपलब्ध होती है.
  • समेकित सूचना संकलन केंद्र गुरुग्राम में स्थित नौसेना के सूचना प्रबंधन एवं विश्लेषण केंद्र में स्थापित है.
  • इस केंद्र से सभी तटीय रडार जुड़े हुए हैं जिनसे देश की लगभग 7,500 किमी. लम्बी समुद्र तट रेखा का प्रत्येक क्षण का चित्र निर्बाध रूप से प्राप्त हो सकता है.
  • इस केंद्र के माध्यम से श्वेत जहाजरानी (white shipping) अर्थात् वाणिज्यिक जहाजरानी के विषय में इस कार्यशाला में सूचनाओं का आदान-प्रदान क्षेत्र के अन्य देशों के साथ किया जाएगा जिससे कि हिन्द महासागर में सामुद्रिक गतिविधियों के प्रति जागरूकता में सुधार लाया जा सके.

IFCIOR का महत्त्व

  • IFC-IOR के अन्दर हिन्द महासागर के किनारे-किनारे अवस्थित देश और द्वीप आते हैं जिनकी अपनी-अपनी अनूठी आवश्यकताएँ, आकांक्षाएँ, रुचियाँ और मान्यताएँ हैं.
  • हिन्द महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती को रोकने के लिए यह संगठन आवश्यक है.
  • यह संगठन सुनिश्चित करता है कि सम्पूर्ण क्षेत्र पारस्परिक सहयोग, सूचनाओं के आदान-प्रदान तथा क्षेत्र की चिंताओं और खतरों की समझ के माध्यम से लाभ उठाएँ.

हिन्द महासागर का महत्त्व क्यों?

  • यह महासागर वैश्विक व्यापार के चौराहे पर स्थित है. अतः यह उत्तरी अटलांटिक और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित बड़ी-बड़ी अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को जोड़ता है. इसका महत्त्व इसलिए बढ़ जाता है कि आज की युग में वैश्विक जहाजरानी उभार पर है.
  • हिन्द महासागर प्राकृतिक संसाधनों में भी समृद्ध है. विश्व का 40% तटक्षेत्रीय तेल उत्पादन हिन्द महासागर की तलहटियों में ही होता है.
  • विश्व का 15% मत्स्य उद्योग हिन्द महासागर में ही होता है.
  • हिन्द महासागर की तलहटी तथा तटीय गाद में बहुत-सारे खनिज होते हैं, जैसे – निकल, कोबाल्ट, लोहा, मैंगनीज, तांबा, जस्ता, चाँदी, सोना, टाइटेनियम, ज़िरकोनियम, टिन आदि. इनके अतिरिक्त यहाँ बहुत-सारे दुर्लभ मृदा तत्त्व (Rare Earth Elements) भी विद्यमान हैं, यद्यपि इनको निकालना व्यवासायिक रूप से सदैव लाभप्रद नहीं होता है.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Awareness in space.

Topic : PARKER SOLAR PROBE

संदर्भ

सौर-पृथ्वी प्रणाली (Sun-Earth system) के विविध पहलुओं की खोज के लिए बने नासा के “लिविंग विद अ स्टार” नामक कार्यक्रम के एक अंग के रूप में प्रक्षेपित पार्कर सोलर प्रोब नामक अन्तरिक्ष यान ने अगस्त 12 को अपनी यात्रा का एक वर्ष पूरा कर लिया. विदित हो कि यह सूर्य के सबसे निकट पहुँचने वाली मानव-निर्मित वस्तु है.

नासा के अनुसार इसके द्वारा सूर्य के विषय में संग्रह की गई सूचनाओं से सूर्य की हमारी समझ में क्रान्ति आ जायेगी.

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पार्कर सोलर प्रोब

  • सूर्य के बारे में सूचनाओं का संग्रह करने के लिए यह NASA द्वारा भेजा गया एक अन्तरिक्ष यान है.
  • Parker Solar Probe नामक यह अन्तरिक्ष यान बनाने में 5 बिलियन डॉलर का खर्च आया है.
  • NASA पहले भी इस तरह का मिशन सूर्य के वायुमंडल में भेजा चुका है, पर इस बार का मिशन सूरज के और भी निकट जाएगा जिसके कारण इसे प्रचंड ताप एवं विकिरण का सामना करना पड़ेगा.
  • सूर्य के निकट के पहुँचने के लिए यह मिशन शुक्र के गुरुत्वाकर्षण का उपयोग करेगा.
  • यह मिशन अंत में सूर्य से 9 मिलियन miles तक नजदीक पहुँच जाएगा.
  • इस प्रकार यह पिछले किसी भी मिशन की तुलना में सूर्य के सात गुणा अधिक निकट पहुँच जायेगा. उस समय वह बुध के परिक्रमा पथ के भीतर रहेगा.
  • इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य सौर कोरोना (solar corona) में उर्जा एवं ताप की गतिविधियों, सौर पवनों की गति में वृद्धि के कारणों तथा सौर ऊर्जा कणों के विषय में जानकारी लेना है.

कोरोना के अध्ययन की आवश्यकता क्यों?

Corona में सूर्य के धरातल की तुलना में अधिक गर्मी होती है. इसी के चलते सूर्य से सौर पवन निकलते हैं जो पूरे सौरमंडल में लगातार छाते रहते हैं. कभी-कभी यह सौर पवन पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को प्रभावित कर देते हैं जिसके चलते हमारी संचार व्यवस्थाओं को क्षति पहुँचती है. NASA को उम्मीद है कि Corona के अध्ययन से हम इनकी भविष्यवाणी करने में सक्षम हो जायेंगे.

हम सूर्य और सौर पवन का अध्ययन क्यों करते हैं?

  • सूर्य धरती के सबसे निकट स्थित तारा है. इसका अध्ययन करके हम ब्रह्मांड के अन्य तारों के विषय में जान सकते हैं.
  • सूर्य धरती के जीवन के लिए प्रकाश और ताप का स्रोत है. हम सूर्य को जितना जानेंगे उतना ही यह समझ पायेंगे कि पृथ्वी पर जीवन का विकास कैसे हुआ.
  • सूर्य से सौर पवन निकलते हैं जो वस्तुतः आयनीकृत गैस होते हैं. यह पवन 500 किलोमीटर/सेकंड अर्थात् 10 लाख मील/घंटे की गति से धरती के पास से गुजरता है. इस पवन का धरती पर होने वाला प्रभाव जानना आवश्यक है. वैज्ञानिकों का मानना है कि सौर पवन में होने वाले उतार-चढ़ाव से पृथ्वी का चुम्बकीय क्षेत्र हिल जाता है और इससे विकिरण पट्टियों में ऊर्जा का प्रवेश होता है. इस प्रकार पृथ्वी के निकट स्थित अन्तरिक्ष के मौसम में कई परिवर्तन आते हैं.
  • अन्तरिक्ष के मौसम में आने वाले इस परिवर्तन से हमारे उपग्रहों की कक्षा बदल जाती है और उनकी आयु घट जाती है. साथ ही उनमें रखे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है. अतः सौर पवनों के पृथ्वी के निकट स्थित अन्तरिक्ष के मौसम की जानकारी के आधार पर हम अपने उपग्रहों की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपाय कर सकते हैं.
  • अन्तरिक्षीय वातावरण पर सौर पवन का बड़ा प्रभाव पड़ता है. भविष्य में मानव अन्तरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी से और अधिक से अधिक दूर भेजेगा. उस समय अन्तरिक्षीय वातावरण की हमारी समझ उसी तरह काम आएगी जैसे समुद्र में चलने वाले जहाज समुद्र की जानकारी से लाभ उठाते हैं.

Prelims Vishesh

What is Debenture Redemption Reserve (DRR)? :-

  • पिछले दिनों भारत सरकार ने सूचीबद्ध कम्पनियों, गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों और HFCs के लिए डेबेंचर रिडेम्पशन रिज़र्व (DDR) की आवश्यकता को समाप्त कर दिया है और उसके लिए कम्पनी (शेयर पूँजी एवं डेबेंचर) नियमावली में आवश्यक संशोधन कर दिए हैं.
  • विदित हो कि अब तक डेबेंचर निकालने वाली भारतीय कम्पनी को एक डेबेंचर रिडेम्पशन सर्विस को सृजित करना आवश्यक होता था. इसका उद्देश्य निवेशकों को कम्पनी के द्वारा डिफ़ॉल्ट किये जाने पर सुरक्षा प्रदान करना था.

Okjokull glacier :

  • पिछले दिनों आइसलैंड के ओक्जोकुल ग्लेशियर के स्मरण में एक पट्टिका निकाली गई.
  • विदित हो कि यह ग्लेशियर 2014 में मृत घोषित कर दिया गया था क्योंकि उस समय तक इसमें इतनी मोटाई नहीं बची थी कि वह आगे की ओर सरक सके.

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