Sansar Daily Current Affairs, 21 January 2021
GS Paper 2 Source : PIB
UPSC Syllabus : Functions and responsibilities of the Union and the States, issues and challenges pertaining to the federal structure, devolution of powers and finances up to local levels and challenges therein.
Topic : Special State Status
संदर्भ
आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भेंट के दौरान आंध्रप्रदेश राज्य से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और राज्य के लिए विशेष राज्य के दर्जे की माँग रखी.
विशेष राज्य का दर्जा क्या होता है ?
विशेष राज्य का दर्जा मिलने के बाद राज्यों को कई तरह के लाभ होते हैं. इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण है – केन्द्रीय सहायता में बढ़ोतरी. केंद्र अपने अनेक योजनाओं को लागू करने के ऐवज में राज्यों को वित्तीय मदद देते हैं.
कब किसे मिला दर्जा?
- 1969-1974 – चौथी पंचवर्षीय योजना के दौरान पहली बार असम, जम्मू-कश्मीर और नागालैंड.
- 1974-1979 – पाँचवी पंचवर्षीय योजना के दौरान हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा.
- 1990 के वार्षिक योजना में अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम जुड़े.
- 2001 को उत्तराखंड को यह दर्जा मिला.
शर्तें (CONDITIONS)
किसी भी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा देने के लिए विशेष शर्तें निर्धारित की गई हैं. जैसे –
- वह राज्य दुर्गम इलाकों वाला पर्वतीय भूभाग हो.
- राज्य का कोई हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय सीमा से लगा हो.
- प्रति व्यक्ति आय और गैर कर राजस्व काफी कम हो.
- आधारभूत ढाँचे का अभाव हो.
- जनजातीय आबादी की बहुलता हो और आबादी का घनत्व काफी कम हो.
- इनके अलावा राज्य का पिछड़ापन, भौगोलिक स्थिति, सामाजिक समस्याएँ भी इसका आधार हैं.
संविधान में प्रावधान
भारतीय संविधान में किसी भी राज्य के लिए विशेष श्रेणी के राज्य का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन पहले का योजना आयोग और राष्ट्रीय विकास परिषद् ने ये मानते हुए कि देश के कुछ इलाके तुलनात्मक रूप से दूसरे इलाकों से पिछड़े हुए हैं, उन्हें अनुच्छेद 371 के तहत विशेष केन्द्रीय सहायता देने का प्रावधान किया था. इसके आधार पर आगे चलकर कुछ राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया.
और भी अधिक जानकारी के लिए यह पढ़ें > विशेष राज्य का दर्जा
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GADGIL FORMULA
केंद्र द्वारा जो राज्यों को संसाधन उपलब्ध कराये जाते थे, उनमें कोई भी विशेष नियमों का पालन नहीं होता था. इसके चलते अलग-अलग क्षेत्रों का विकास एक समान नहीं हो पा रहा था. विशेष श्रेणी के राज्य के दर्जे का मुद्दा 1969 में सर्वप्रथम राष्ट्रीय विकास परिषद् की बैठक में DR Gadgil Formula के अनुमोदन के बाद सामने आया. DR Gadgil के formula में कहा गया कि राष्ट्रीय विकास परिषद् की ओर से कुछ राज्यों को विकास के लिए विशेष राज्य का राज्य दर्जा दिया जाना चाहिए. इससे पहले तक केंद्र के पास राज्यों को अनुदान देने का कोई specific formula नहीं था.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests
Topic : India-Singapore Defense Relations
संदर्भ
हाल ही में भारत व सिंगापुर रक्षा मंत्रियों की 5वीं वार्ता सम्पन्न हुई है.
प्रमुख बिन्दु
- भारत और सिंगापुर के रक्षा मंत्रियों के मध्य 5वीं वार्ता (Defence Ministers’ Dialogue – DMD) 20 जनवरी, 2021 को एक वीडियो कॉन्फेंस के माध्यम से सफलतापूर्वक आयोजित की गई.
- 5वीं रक्षा मंत्री वार्ता (डीएमडी) में दोनों देशों की नौसेनाओं के मध्य पनडुब्बी बचाव सहायता (submarine rescue support) पर समझौता (agreement) हुआ है.
- 5वीं डीएमडी के दौरान, दोनों देशों के सशस्त्र बलों के लिए अगस्त 2020 में मानवीय सहायता और आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief – HADR) सहयोग पर समझौता सहित द्विपक्षीय रक्षा सहयोग का विस्तार करने वाली पहलों का स्वागत किया गया.
भारत और सिंगापुर में रक्षा संबंध
- भारत की ‘ऐक्ट ईस्ट नीति’ पर अमल करते हुए हाल के दिनों में भारत और सिंगापुर के बीच कई उच्च स्तरीय वार्ताएँ और समझौते किये गए हैं जिससे दोनों देशों के बीच परस्पर संबंध और प्रगाढ़ हो रहे हैं.
- भारत और सिंगापुर के मध्य द्विपक्षीय वार्ताओं के साथ ही संयुक्त अभ्यासों और अन्य द्विपक्षीय सहयोग के लिए 20 से अधिक व्यवस्थाएँ की गई हैं जिन पर हर वर्ष अमल किया जाता है. नवंबर 2015 में दोनों देशों के मध्य इन संबंधों को रणनीतिक साझेदारी का रूप दिया गया.
- सिंगापुर भविष्य में ओडिशा के चांदीपुर में मिसाइलों की फायरिंग (firing of missiles) के लिए एकीकृत परीक्षण रेंज (integrated test range) का भी प्रयोग कर सकता है.
- जून 2018 में शांगरी ला डॉयलॉग से इतर भारत और सिंगापुर ने रक्षा और रणनीतिक साझेदारी के अतिरिक्त कई और क्षेत्रों में भी परस्पर सहयोग के कई समझौतों पर हस्ताक्षर किये.
- इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण समझौता भारतीय नौसेना और सिंगापुर की नौसेना के बीच किया गया कार्यान्वयन समझौता था जो आपसी समन्वयन, नौसेना के जहाजों, पनडुब्बियों और नौसेना के विमानों के रखरखाव और लाजिस्टिक्स से संबंधित है.
- इस समझौते के लागू होने के साथ ही दोनों देश अपने नौसैनिक संसाधनों को लॉजिस्टिक्स और सेवाओं के माध्यम से एक-दूसरे के साथ साझा कर रहे हैं.
- समझौते के माध्यम से भारत और सिंगापुर अपने साझा समुद्री क्षेत्र में अपने सहयोगी देशों के साथ नियमित रूप से संयुक्त अभ्यास करने पर सहमत हुए हैं.
- नवंबर 2020 में भारतीय नौसेना और सिंगापुर नौसेना के बीच सिंगापुर-भारत समुद्री द्विपक्षीय अभ्यास (सिम्बेक्स) के 27वें संस्करण का सफलतापूर्वक संचालन किया गया. इसके अतिरिक्त, नवंबर 2020 में ही सिंगापुर-भारत-थाईलैंड समुद्री अभ्यास (सिटनेक्स) के दूसरे संस्करण का भी आयोजन किया गया.
- ज्ञातव्य है कि भारत और सिंगापुर की सेनाओं के बीच बोल्ड कुरुक्षेत्र (Bold Kurukshetra) युद्ध अभ्यास का आयोजन किया जाता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian constitution and historical underpinnings.
Topic : Guidelines of Supreme Court on ‘Reservation in promotion’
संदर्भ
सर्वोच्च न्यायलय ने अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल से, वर्ष 2006 में संविधान पीठ द्वारा एम. नागराज मामले में दिए गए निर्णय को लागू करने के संबंध में राज्यों द्वारा उठाए जा रहे विभिन्न मुद्दों को संकलित करने के लिए कहा है.
एम. नागराज मामले में न्यायालय ने, पदोन्नति के संबंध में अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति समुदायों के सदस्यों हेतु क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू किया जाना बरकरार रखा था.
एम. नागराज मामला
17 जून, 1995 को, संसद द्वारा अपनी विधायी क्षमता के तहत सतहत्तरवां संशोधन पारित किया गया. इस संशोधन के माध्यम से अनुसूचित जाति / अनुसूचित जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान करने हेतु संविधान के अनुच्छेद 16 में एक उपबंध (4A) संग्लन किया गया.
आरक्षण का संवैधानिक आधार – अनुच्छेद 335
संविधान का अनुच्छेद 335 यह मान्य करता है कि अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को समान स्तर पर लाने के लिए विशेष उपाय किये जा सकते हैं.
इंदिरा साहिनी बनाम भारतीय संघ एवं एम. नागराज मामला
- 1992 में सर्वोच्च न्यायालय ने इंदिरा साहिनी बनाम भारतीय संघ में एक महत्त्वपूर्ण न्याय-निर्णय दिया था. इसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 16(4) के अंतर्गत आरक्षण मात्र सरकारी नौकरी में घुसने के समय दिया जा सकता है न कि प्रोन्नति में.
- इसमें यह भी कहा गया था कि जो प्रोन्नतियाँ पहले ही हो चुकी हैं, वे ज्यों की त्यों रहेंगी और इस न्याय-निर्णय के बाद पाँच वर्षों तक मान्य रहेंगी. यह भी व्यवस्था दी गई कि इन प्रोन्नतियों में क्रीमी लेयर को बाहर रखना अनिवार्य है.
- परन्तु संसद ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को निष्प्रभावी करने के लिए जून 17, 1995 में अनुच्छेद 16 में 77वें संशोधन के माध्यम से उपवाक्य (4A) जोड़ दिया जिससे प्रोन्नति में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों को आरक्षण मिल गया.
- संसद के इस कार्य के विरुद्ध कई लोग सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे. इस विषय में वहाँ जो मामला चला उसे नागराज मामला (Nagaraj case) कहा जाता है.
- सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान में किये गये उपर्युक्त संशोधन को वैध ठहराया, परन्तु साथ ही यह भी निर्देश दिया कि प्रोन्नति में आरक्षण करने के पहले इन आँकड़ों को अवश्य जमा करने चाहिएँ – पिछड़ापन, सरकारी नौकरी में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व और साथ ही यह भी देख लेना होगा कि कहीं इस आरक्षण से कहीं सरकारी सेवा की कार्यकुशलता पर बुरा प्रभाव तो नहीं पड़ रहा.
आरक्षण का इतिहास
- भारत की सदियों पुरानी जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी कुप्रथाएँ देश में आरक्षण व्यवस्था की उत्पत्ति का प्रमुख कारण हैं. सरल शब्दों में आरक्षण का अभिप्राय सरकारी नौकरियों, शैक्षणिक संस्थानों और विधायिकाओं में किसी एक वर्ग विशेष की पहुँच को सरल बनाने से है. इन वर्गों को उनकी जातिगत पहचान के कारण ऐतिहासिक रूप से कई अन्यायों का सामना करना पड़ा है.
- वर्ष 1882 में विलियम हंटर और ज्योतिराव फुले ने मूल रूप से जाति आधारित आरक्षण प्रणाली की कल्पना की थी.
- आरक्षण की विद्यमान प्रणाली को सही मायने में वर्ष 1933 में प्रस्तुत किया गया था जब तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैमसे मैकडोनाल्ड ने सांप्रदायिक अधिनिर्णय दिया. ज्ञातव्य है कि इस अधिनिर्नयन के अंतर्गत मुसलमानों, सिखों, भारतीय ईसाइयों, एंग्लो-इंडियन, यूरोपीय और दलितों के लिये अलग-अलग निर्वाचन क्षेत्रों का प्रावधान किया गया.
- आज़ादी के बाद प्रारम्भिक दौर में मात्र SC और ST समुदाय से संबंधित लोगों के लिये ही आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, परन्तु वर्ष 1991 में मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को भी आरक्षण की सीमा में सम्मिलित कर लिया गया.
मेरी राय – मेंस के लिए
वस्तुतः आरक्षण भारत में सदैव ही एक ज्वलंत मुद्दा रहा है और समय-समय पर इसको लेकर विवाद भी हुए हैं. विशेषज्ञों ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि आरक्षण का एकमात्र उद्देश्य आर्थिक स्तर पर समानता लाना नहीं था, बल्कि इसका मुख्य उद्देश्य सामाजिक स्तर पर समानता लाना था. सार्वजनिक पदों पर पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित अस्पष्टता से निपटने के लिये एक व्यापक कानून की आवश्यकता है. इस व्यापक कानून के जरिये विद्यमान अस्पष्ट विषयों जैसे- दक्षता का अपरिभाषित मापदंड और पिछड़ेपन के मूल्यांकन में परिदार्शिता का अभाव आदि को संबोधित किया जाना चाहिये.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Infrastructure- energy.
Topic : System strengthening: Northeast states lead in power supply infra push
संदर्भ
पूर्वोत्तर राज्य विद्युत आपूर्ति अवसंरचना के निर्माण में अग्रणी हैं.
केंद्र के प्रमुख कार्यक्रम
- एकीकृत विद्युत विकास योजना (Integrated Power Development Scheme: IPDS) ने जनवरी 2024 तक सात पूर्वोत्तर राज्यों में 90% पूर्णता की उच्च सफलता दर हासिल की है.
- वर्ष 2015 में विद्युत मंत्रालय द्वारा शहरी क्षेत्रों में विद्युत अवसंरचना में सुधार और विद्युत आपूर्ति में स्मार्ट मीटर एवं सूचना प्रौद्योगिकी प्रणाली लागू करने हेतु IDPS का प्रारंभ किया गया था.
उद्देश्य
इसके प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं :-
- शहरी क्षेत्रों में उप-पारेषण और वितरण नेटवर्क को दृढ़ करना.
- शहरी क्षेत्रों में वितरण ट्रांसफार्मर / फीडर / उपभोक्ताओं का मीटरीकरण करना.
- वितरण क्षेत्र की सूचना प्रौद्योगिकी सक्षमता और पुनर्गठित त्वरित विद्युत विकास एवं सुधार कार्यक्रम (R-APDRP) के अंतर्गत वितरण नेटवर्क को सुदृढ़ता प्रदान करना.
यह योजना समग्र तकनीकी और वाणिज्यिक हानियों (Aggregate Technical & Commercial losses: AT&C) में कमी करने; सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम ऊर्जा लेखांकन/ लेखा परीक्षा प्रणाली की स्थापना करने, मीटर के अनुसार विद्युत् की खपत के आधार पर बिल में गणना की गई ऊर्जा में सुधार और संग्रह दक्षता में सुधार करने में सहायता प्रदान करेगी.
Prelims Vishesh
Kollam drawings :-
- यह फर्श पर ज्यामितीय प्रतिरूपों को चित्रित करने की एक पारंपरिक भारतीय कला शैली है.
- इन्हें घरों में स्वास्थ्य और समृद्धि को आमंत्रित करने की अभिव्यक्ति के रूप में चित्रित किया जाता है.
- इसमें कच्चे माल के रूप में चावल का आटा व दाल जैसे खाद्य पदार्थ और पत्तियां प्रयुक्त होते हैं.
- इस कलाकृति में कमल, मत्स्य, पक्षी आदि का रूपांकन किया जा सकता हैं जो मनुष्य और जीव-जंतुओं के मध्य एकता को अभिव्यक्त करता है.
- अधिकांश कलाकृतियां वृत्ताकार होती हैं, जो समय की अंतहीनता की भावना को प्रदर्शित करती है.
- सूर्य, चंद्रमा और अन्य राशि चिन्ह भी इसके सामान्य विषय हैं.
Dr V Shanta, renowned Indian oncologist, passes away :-
- भारत की प्रसिद्ध कैंसर विशेषज्ञ ‘डॉ. वी. शांता’ का हाल ही में चेन्नई में निधन हो गया है.
- डॉ. वी. शांता चेन्नई स्थित अडयार कैंसर संस्थान की अध्यक्ष थीं.
- कैंसर के मरीजों को उच्च कोटि का इलाज सुनिश्चित करने के प्रयासों के लिए डॉ. वी. शांता को पद्म विभूषण (2016), पद्म भूषण (2006) और पद्म श्री (1986) सम्मान से नवाजा जा चुका है.
- वर्ष 2005 में डॉ. वी. शांता को ‘मैग्सेसे पुरस्कार’ भी दिया गया था.
- डॉ. वी. शांता का जन्म 1927 में हुआ था.
- गौरतलब है कि ‘नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त वैज्ञानिक एस चंद्रशेखर उनके मामा थे.इसके अतिरिक्त, प्रसिद्ध वैज्ञानिक व नोबेल पुरस्कार विजेता सी. वी. रमन उनके नाना के भाई थे.
Places in news :-
सुलावेसी द्वीप (Sulawesi island): यह द्वीप इंडोनेशिया में अवस्थित है. हाल ही में यहाँ भूकंप का अनुभव किया गया था.सुलावेसी 45,000 वर्षों से अधिक प्राचीन गुफा चित्रकला के लिए भी प्रसिद्ध है. इंडोनेशिया की सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी पर्वतों में से एक सोपुतान ज्वालामुखी पर्वत (Mount Soputan volcano) इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप (Sulawesi island) में ही अवस्थित है.
सेमेरू ज्वालामुखी (Semeru volcano): इसे “द ग्रेट माउंटेन* के रूप में जाना जाता है. यह जावा, इंडोनेशिया में सर्वाधिक ऊँचा और सबसे अधिक सक्रिय ज्वालामुखी है. हाल ही में, इस ज्वालामुखी में उद्गार हुआ है.
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