Sansar Daily Current Affairs, 22 April 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Citizenship Bill
संदर्भ
असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने लंबे समय से चल रहे नागरिकता विधेयक पर एक बयान दिया कि अगर समझौते के धारा 6 को सही तरीके से लागू किया जाता है तो नागरिकता विधेयक में किसी भी बदलाव की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने कहा कि अधिनियम में संशोधन कोई नई बात नहीं है, क्योंकि इससे पहले भी नौ बार संशोधन किए गए थे.
धारा-6 में क्या है?
विदित हो कि 1979-1985 के दौरान हुए असम आंदोलन के बाद 15 अगस्त 1985 को असम समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. समझौते की धारा-6 के अनुसार असम के लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक, भाषायी पहचान व विरासत को संरक्षित करने और प्रोत्साहित करने के लिए उचित संवैधानिक, विधायी और प्रशासनिक उपाय किये जायेंगे.
असम समझौता क्या है?
असम में बाहरी बनाम असमिया के मसले पर आन्दोलनों का दौर काफी पुराना है. 50 के दशक से ही बाहरी लोगों का असम में आना एक राजनैतिक मुद्दा बनने लगा था. औपनिवेशिक काल में बिहार और बंगाल से चायबागानों में काम करने के लिए बड़ी तादाद में मजदूर असम पहुँचे. अंग्रेजों ने उन्हें यहाँ खाली पड़ी जमीनों पर खेती करने के लिए प्रोत्साहित किया. इसके अलावा विभाजन के बाद नए बने पूर्वी पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल और त्रिपुरा के साथ, असम में भी बड़ी संख्या में बंगाली लोग आये. तब से ही वहाँ रह-रह कर बाहरी बनाम स्थानीय के मुद्दे पर चिंगारी सुलगती रही. लेकिन 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान और आज के बांग्लादेश में मुसलमान बंगालियों के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिंसक कार्रवाई शुरू हुई तो वहाँ के तकरीबन 10 लाख लोगों ने असम में शरण ली. बांग्लादेश बनने के बाद इनमें से ज्यादातर लोग लौट गए, लेकिन तकरीबन 1 लाख असम में ही रह गए. 1971 के बाद भी कई बंगलादेशी असम आते रहे. जल्द ही स्थानीय लोगों को लगने लगा कि बाहर से आये लोग उनके संसाधनों पर कब्ज़ा कर लेंगे और इस तरह जनसंख्या में हो रहे इन बदलावों ने असम के मूल निवासियों में भाषाई, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना पैदा कर दी.
इस भय ने 1978 के आस-पास वहाँ एक शक्तिशाली आन्दोलन को जन्म दिया जिसका नेतृत्व वहाँ के युवाओं और छात्रों ने किया. इसी बीच All Assam Students Union (AASU) और All Assam Gana Sangram Parishad (AAGSP) ने मांग की कि विधान सभा चुनाव कराने से पहले विदेशी घुसपैठियों की समस्या का हल निकाला जाए. बांग्लादेशियों को वापस भेजने के अलावा आन्दोलनकारियों ने 1961 के बाद राज्य में आने वाले लोगों को वापस राज्य में भेजे जाने या उन्हें कई और बसाने की माँग की. आन्दोलन उग्र होता गया और राजनीतिक अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया. 1983 के विधान सभा चुनाव में राज्य की बड़ी आबादी ने मतदान का बहिष्कार किया. इस बीच राज्य में आदिवासी, भाषाई और साम्प्रदायिक पहचानों के नाम पर बड़े पैमाने पर हिंसा हुई. 1984 के आम चुनावों में राज्य के 14 संसदीय क्षेत्रों में चुनाव ही नहीं हो पाए. 1983 के हिंसा के बाद समझौते के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई. आखिरकार अगस्त 1985 को केंद्र की तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आन्दोलन के नेताओं के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते (Assam Accord) के नाम से जाना जाता है. असम समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आये सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और वोट देने का अधिकार देने का फैसला हुआ. 1971 के बाद असम में आये लोगों को वापस भेजने पर सहमति बनी. 1961 से 1971 के बीच आने वाले लोगों को नागरिकता और दूसरे अधिकार जरुर दिए गए लेकिन उन्हें वोट का अधिकार नहीं दिया गया. असम के आर्थिक विकास के लिए पैकेज की भी घोषणा की गई और यहाँ oil refinery, paper-mill और तकनीकी संस्थान स्थापित करने का फैसला किया गया. केंद्र सरकार ने यह भी फैसला किया कि असमिया भाषी लोगों के सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान की सुरक्षा के लिए विशेष कानून और प्रशासनिक उपाय किये जायेंगे.
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016
- नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 के द्वारा अवैध आव्रजकों (migrants) की परिभाषा को सरकार बदलना चाह रही है.
- मूल नागरिकता अधिनियम संसद् द्वारा 1955 में पारित हुआ था.
- प्रस्तावित संशोधन के अनुसार अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आये हुए उन आव्रजकों को ही अवैध आव्रजक माना जाएगा जो हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी अथवा ईसाई नहीं हैं.
- इसके पीछे अवधारणा यह है कि जो व्यक्ति अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान में धार्मिक अत्याचार का शिकार होकर भारत आते हैं, उन्हें सरकार नागरिकता देना चाहती है. परन्तु इन देशों से यदि कोई मुसलमान भागकर आता है तो उसे वैध आव्रजक नहीं माना जायेगा.
- मूल अधिनियम के अनुसार वही आव्रजक भारत की स्थाई नागरिकता प्राप्त कर सकता है जो यहाँ लगातार 11 वर्ष रहा हो.
- संशोधन में इस अवधि को घटाकर 6 वर्ष कर दिया गया है.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Role of EC
संदर्भ
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा की गयी कार्रवाई के संबंध में पूछने पर चुनाव आयोग ने स्वयं को ‘शक्तिहीन’ बताया, जबकि संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत आयोग के पास ‘अधिकारों का भंडार’ है.
मामला क्या है?
- चुनाव आयोग ने उस वक्त सबको अचम्भे में डाल दिया जब उन्होंने जस्टिस जे चेलामेश्वर और जस्टिस एस अब्दुल नजीर की बेंच के समक्ष कहा कि चुनाव आयोग के पास सीमित शक्तियां हैं.
- दरअसल 324 के तहत चुनाव आयोग उन सभी मामलों में दखल दे सकता है और फैसले ले सकता है जिनमें वैधानिक रूप से स्पष्टता नहीं है. इसका मकसद फ्री एंड फेयर चुनाव को सुनिश्चित किया जा सके.
- संविधान के अनुच्छेद 324 को चुनाव आयोग के लिए अधिकारों का हौज कहा जाता है लेकिन चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि मौजूदा कानूनों से घिरा होने की वजह से वो अपने अधिकारों का प्रभावी तरीके से प्रयोग नहीं कर पाता.
भारतीय निर्वाचन आयोग क्या है?
भारतीय निर्वाचन आयोग एक स्वायत्त एवं अर्ध-न्यायिक संस्थान है जिसका गठन भारत में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से विभिन्न से भारत के प्रतिनिधिक संस्थानों में प्रतिनिधि चुनने के लिए गया था. भारतीय चुनाव आयोग की स्थापना 25 जनवरी 1950 को की गई थी.
भारत के निर्वाचन आयोग से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं :-
(a) संविधान के भाग-15 के अनुच्छेद-324 से 329 में निर्वाचन से संबंधित उपबंध दिया गया है.
(b) निर्वाचन आयोग का गठन मुख्य निर्वाचन आयुक्त एवं अन्य निर्वाचन आयुक्तों से किया जाता है, जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा की जाती है.
(c) मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु, जो पहले हो तब तक होगा.
(d) मुख्य चुनाव आयुक्त तथा अन्य चुनाव आयुक्तों को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर वेतन (90 हजार रुपये मासिक) एवं भत्ते प्राप्त होंगे.
(e) पहले चुनाव आयोग एक सदस्यीय आयोग था, लेकिन अक्टूबर 1993 में तीन सदस्यीय आयोग बना दिया गया.
आचार संहिता को वैधानिक दर्जा
निर्वाचन आयोग की राय कुछ हिस्सों में आदर्श आचार संहिता को वैधानिक दर्जा देने की बात की जाती है. लेकिन निर्वाचन आयोग आदर्श आचार संहिता को ऐसा दर्जा देने के पक्ष में नहीं है. निर्वाचन आयोग के अनुसार कानून की पुस्तक में आदर्श आचार संहिता को लाना केवल अनुत्पादक (प्रतिकूल) होगा. हमारे देश में निश्चित कार्यक्रम के अनुसार सीमित अवधि में चुनाव कराये जाते हैं. सामान्यतः किसी राज्य में आम चुनाव निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव कार्यक्रम घोषित करने की तिथि से लगभग 45 दिनों में कराया जाता है. इस तरह आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन संबंधी मामलों को तेजी से निपटाने का महत्व है. यदि आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन को रोकने तथा उल्लंघनकर्ता के विरुद्ध चुनाव प्रक्रिया के दौरान सही समय से कार्रवाई नहीं की जाती तो आदर्श आचार संहिता का पूरा महत्व समाप्त हो जाएगा तथा उल्लंघनकर्ता उल्लंघनों से लाभ उठा सकेगा. आदर्श आचार संहिता को कानून में बदलने का अर्थ यह होगा कि कोई भी शिकायत पुलिस/मजिस्ट्रेट के पास पड़ी रहेगी. न्यायिक प्रक्रिया संबंधी जटिलताओं के कारण ऐसी शिकायतों पर निर्णय संभवतः चुनाव पूरा होने के बाद ही हो सकेगा.
आदर्श आचार संहिता विकास गतिविधियों में बाधक नहीं
प्रायः यह शिकायत सुनने को मिलती है कि आदर्श आचार संहिता विकास गतिविधियों की राह में बाधा बनकर आ जाती है. लेकिन आदर्श आचार संहिता के सीमित अवधि में लागू किये जाने पर भी जारी विकास गतिविधियां रोकी नहीं जाती और उन्हें बिना किसी बाधा के आगे जारी रखने की अनुमति दी जाती है और ऐसी नई परियोजनाएं चुनाव पूरी होने तक टाल दी जाती हैं जो शुरू नहीं हुई हैं. ऐसे काम जिनके लिए अकारण प्रतीक्षा नहीं की जा सकती (आपदा की स्थिति में राहत कार्य आदि) उन्हें मंजूरी के लिए आयोग को भेजा जा सकता है.
GS Paper 2 Source: Times of India
Topic : Cancer Preparedness Index 2019 released by EIU
संदर्भ
द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू) ने इंडेक्स ऑफ़ कैंसर प्रेपरेडनेस (आईसीपी) 2019 जारी किया है जिसमें 28 देशों में से भारत शीर्ष से 19 वें स्थान पर है. डेटा की विस्तृत श्रृंखला कैंसर के उपचार और रोकथाम के लिए देशों के तरीकों की कैंसर की तैयारी की भिन्नता को इंगित करती है.
- 2018 में कैंसर के कारण दुनिया भर में 6 मिलियन लोगों की मौत हुई, जो इसे दूसरा सबसे बड़ा हत्यारा बनाता है.
- जिस रिपोर्ट के तहत आईसीपी पेश किया गया है, उसकी थीम है – ‘दुनिया भर में कैंसर की तैयारी: वैश्विक महामारी के लिए राष्ट्रीय तत्परता’.
इंडेक्स ऑफ़ कैंसर प्रेपरेडनेस (ICP) क्या है?
- आईसीपी का उद्देश्य राष्ट्रीय प्रयासों के बेंचमार्किंग और कैंसर चुनौती को संबोधित करने में सर्वोत्तम प्रथाओं की पहचान करना है
- तीन व्यापक डोमेन जिनके तहत आईसीपी कैंसर की तैयारी के मुद्दे की पड़ताल करता है – नीति और योजना, देखभाल वितरण एवं स्वास्थ्य प्रणाली और शासन.
कैंसर की तैयारी के लिए समग्र सर्वोत्तम प्रथाओं पर निष्कर्ष
- शीर्ष 3 राष्ट्र: ऑस्ट्रेलिया आईसीपी में सबसे ऊपर है, इसके बाद नीदरलैंड और जर्मनी हैं.
- नीचे के 3 राष्ट्र: सऊदी अरब, रोमानिया और मिस्र नीचे के 3 देशों में हैं.
भारत का परिदृश्य
- भारत 19 वें स्थान पर है और इसका स्कोर 100 में से 9 है.
- भारत ने कैंसर नीति और नियोजन में 17 वां स्थान पाया और इस रैंक के लिए 100 में से 8 स्कोर किया.
- आईसीपी रैंकिंग के अनुसार, भारत 28 देशों की सूची में अनुसंधान के लिए प्रथम और तंबाकू नियंत्रण के लिए तीसरे स्थान पर है.
- भारत अपनी राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण योजना के लिए 23 वें स्थान पर है, जो अपेक्षाकृत खराब रैंकिंग है.
- भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली 100 में से 3 के स्कोर के साथ 25 वें स्थान पर है. यह रेटिंग सऊदी अरब, केन्या और मिस्र से ऊपर है.
- भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली को सूची में दूसरा सबसे खराब दर्जा दिया गया है और भारत सरकार को बेहतरी लाने के लिए कम राजनीतिक इच्छाशक्ति दिखाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है.
- कैंसर देखभाल की अपनी डिलीवरी में, भारत 3 के स्कोर के साथ 20 वें स्थान पर है.
- भारत ‘क्लीनिकल गाइडलाइंस’ की श्रेणी में पहले स्थान पर है, लेकिन 3 चरणों में पीछे है, जैसे कि टीकाकरण, स्क्रीनिंग और शुरुआती पहचान.
इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू)
- द इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (ईआईयू), जिसकी स्थापना 1946 में हुई.
- इसका मुख्यालय लंदन, इंग्लैंड में है.
- इसके वर्तमान प्रबंध निदेशक रॉबिन बेव हैं, जो पहले कंपनी के संपादकीय निदेशक और मुख्य अर्थशास्त्री थे.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : FAME-II Scheme
संदर्भ
फेम II योजना के तहत, केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) निर्माताओं के लिए सब्सिडी प्राप्त करने के प्रावधान के लिए कम से कम 50% घटकों का भारत में स्थानीयकरण अनिवार्य कर दिया है. स्थानीय विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए और आयात पर कम निर्भर रहने के लिए यह कदम उठाया गया है.
- नीति आयोग में सीईओ अमिताभ कांत (मुख्य कार्यकारी अधिकारी) की अध्यक्षता में नेशनल मिशन फॉर ट्रांसफॉर्मेटिव मोबिलिटी वाली ‘अंतर मंत्रालयी संचालन समिति’ में फेम II स्कीम के तहत इन शर्तों पर फैसला किया गया.
- केवल कंपनियां जो 50% स्थानीयकरण सीमा को पूरा करती हैं, वे विद्युत गतिशीलता को बढ़ाने के लिए ‘फास्टर एडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ़ हाइब्रिड एंड इलेक्ट्रिक व्हीकल्स’ (फेम -II) योजना के तहत प्रोत्साहन और सब्सिडी के लिए पात्र होंगी.
- सरकार भारत में सेल और बैटरियों के बड़े पैमाने पर विनिर्माण के लिए प्रमुख कारखानों को स्थापित करने के लिए राज्यों और उद्यमियों को चुनने के लिए चुनौती मार्ग अपनाएगी.
FAME 2 योजना
FAME India योजना का पूरा नाम है – Faster Adoption and Manufacturing of Electric Vehicles in India अर्थात् भारत में बिजली से चलने वाले वाहनों को अपनाने और उन्हें बनाने में तेजी लाने की योजना.
ई-गतिशीलता के लिए FAME योजना :- FAME योजना 1 अप्रैल, 2015 में शुरू की गई थी और इसका उद्देश्य था बिजली और संकर ऊर्जा से चलने वाले वाहनों के निर्माण के तकनीक को बढ़ावा देना और उसकी सतत वृद्धि को सुनिश्चित करना. इस योजना के अंदर सार्वजनिक परिवहन में बिजली की गाड़ियों (EVs) के प्रयोग को बढ़ावा देना है और इसके लिए बाजार और माँग का सृजन करना है. इसके तहत वाहन परिक्षेत्र में 100% विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी जायेगी.
- इस योजना का उद्देश्य देश में बिजली से चलने वाले वाहनों को बढ़ावा देना है.
- यह योजना 1 अप्रैल, 2019 से आगामी तीन वर्षों तक चलेगी और इसके लिए 10,000 करोड़ रु. की बजटीय व्यवस्था की गई है.
- यह योजना FAME India I (1 अप्रैल, 2015 में अनावृत) का विस्तारित संस्करण है.
फेम-इंडिया योजना फेज II के उद्देश्य
- सार्वजनिक परिवहन में बिजली से चलने वाली गाड़ियों का अधिक से अधिक प्रयोग सुनिश्चित करना.
- बिजली वाले वाहनों की ग्राह्यता को प्रोत्साहित करने के लिए इनके लिए बाजार बनाना और माँग में वृद्धि करना.
पृष्ठभूमि
यह राष्ट्रीय बिजली गतिशीलता मिशन योजना का अंग है. पर्यावरण के अनुकूल वाहनों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सरकार ने 2015 में भारत में (FAME – INDIA) योजना की शुरुआत की थी. फेम इंडिया योजना का लक्ष्य है कि दो पहिया, तीन पहिया, चार पहिया यात्री वाहन, हल्के वाणिज्यिक वाहन और बसों सहित सभी वाहन क्षेत्रों में बिजली के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाए. इसके लिए यह योजना सब्सिडी का लाभ प्रदान करती है. इस योजना के तहत संकर एवं इलेक्ट्रिक तकनीकों, जैसे – सशक्त संकर तकनीक (strong hybrid), प्लग-इन शंकर तकनीक (plug-in hybrid) और बैटरी/बिजली तकनीक को प्रोत्साहित किया जाता है. इस योजना को भारी उद्योग मंत्रालय द्वारा चालाया जा रहा है. FAME योजना इन चार क्षेत्रों पर अपना ध्यान केन्द्रित करती है – तकनीकी विकास, माँग का सृजन, प्रायोगिक परियोजनाएँ एवं चार्ज करने की सुविधा.
Prelims Vishesh
Marine turtles along the Indian coast :-
- भारतीय जल मेंसमुद्री कछुओं की पाँच प्रजातियाँ हैं – लैदरबैक, लॉगरहेड, हॉक्सबिल, ग्रीन और ओलिव रिडले.
- ये कछुए ज्यादातर देश के पूर्वी तट पर पाए जाते हैं.
- इन कछुओं की IUCN स्थिति है –
- हॉक्सबिल- गंभीर रूप से संकटग्रस्त(Critically Endangered या CR)
- ग्रीन कछुआ- संकटग्रस्त(Endangered या EN)
- लैदरबैक हॉक्सबिल – असुरक्षित (Vulnerable या VU)
- लॉगरहेड – असुरक्षित(Vulnerable या VU)
- ओलिव रिडले – असुरक्षित(Vulnerable या VU)
Active volcanoes of Indonesia :-
- इंडोनेशिया का माउंट अगुंग सक्रिय ज्वालामुखी फिर से फट गया है.
- पूर्वी जावा के ज्वालामुखी पर्वत माउंट ब्रोमो और योग्याकार्टा के माउंट मेरापी में भी विस्फोट जारी है.
- पिछले वर्ष और 2018 में भी बाली के पर्वत अगुंग (Mt Agung) में भी एक विस्फोट हुआ था. विदित हो कि इंडोनेशिया में मोटे तौर से 400 ज्वालामुखी पर्वत हैं जिनमें 127 अभी सक्रिय हैं. इस प्रकार विश्व की सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक तिहाई इसी देश में है.
- माउंट अगुंग: इंडोनेशिया के बाली में माउंट अगुंग एक सक्रिय ज्वालामुखी है.
- माउंट ब्रोमो: माउंट ब्रोमो इंडोनेशिया के पूर्वी जावा में एक सक्रिय ज्वालामुखी और टेंगर मासिफ का हिस्सा है.
- माउंट मेरापी: माउंट मेरापी एक सक्रिय ज्वालामुखी है जो मध्य जावा और योग्याकार्टा प्रांत, इंडोनेशिया के बीच की सीमा पर स्थित है.
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