Sansar Daily Current Affairs, 22 June 2021
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : J&K Delimitation Commission
संदर्भ
जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए, केंद्र शासित प्रदेश में सीटों का परिसीमन करना आवश्यक होगा.
पृष्ठभूमि
जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग का गठन केंद्र द्वारा पिछले साल 6 मार्च को जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों के अनुसार केंद्रशासित प्रदेश के लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों को फिर से निर्धारित करने के लिए किया गया था. विदित हो कि, ‘जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम’, 2019 द्वारा राज्य को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख, केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया गया था.
परिसीमन क्या है?
परिसीमन का शाब्दिक अर्थ विधान सभा से युक्त किसी राज्य के अन्दर चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं का पुनर्निधारण होता है.
परिसीमन का कार्य कौन करता है?
- परिसीमन का काम एक अति सशक्त आयोग करता है जिसका औपचारिक नाम परिसीमन आयोग है.
- यह आयोग इतना सशक्त होता है कि इसके आदेशों को कानून माना जाता है और उन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
- आयोग के आदेश राष्ट्रपति द्वारा निर्धारित तिथि से लागू हो जाते हैं. इन आदेशों की प्रतियाँ लोक सभा में अथवा सम्बंधित विधान सभा में उपस्थापित होती हैं. इनमें किसी संशोधन की अनुमति नहीं होती.
परिसीमन आयोग और उसके कार्य
- संविधान के अनुच्छेद 82 के अनुसार संसद प्रत्येक जनगणना के पश्चात् एक सीमाकंन अधिनियम पारित करता है और उसके आधार पर केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) का गठन करती है.
- इस आयोग में सर्वोच्च न्यायालय का एक सेवा-निवृत्त न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त और राज्यों के राज्य निर्वाचन आयुक्त सदस्य होते हैं.
- इस आयोग का काम चुनाव क्षेत्रों की संख्या और सीमाओं का इस प्रकार निर्धारण करना है कि यथासम्भव सभी चुनाव क्षेत्रों की जनसंख्या एक जैसी हो.
- आयोग का यह भी काम है कि वह उन सीटों की पहचान करे जो अजा/अजजा के लिए आरक्षित होंगे. विदित हो कि अजा/अजजा के लिए आरक्षण तब होता है जब सम्बंधित चुनाव-क्षेत्र में उनकी संख्या अपेक्षाकृत अधिक होती है.
- सीटों की संख्या और आकार के बारे में निर्णय नवीनतम जनगणना के आधार पर किया जाता है.
- यदि आयोग के सदस्यों में किसी बात को लेकर मतभेद हो तो बहुत के मत को स्वीकार किया जाता है.
- संविधान के अनुसार, परिसीमन आयोग का कोई भी आदेश अंतिम होता है और इसको किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है.
- प्रारम्भ में आयोग भारतीय राज्य पत्र में अपने प्रस्तावों का प्रारूप प्रकाशित करता है और पुनः उसके विषय में जनता के बीच जाकर सुनवाई करते हुए आपत्ति, सुझाव आदि लेता है. तत्पश्चात् अंतिम आदेश भारतीय राजपत्र और राज्यों के राजपत्र में प्रकाशित कर दिया जाता है.
परिसीमन आवश्यक क्यों?
जनसंख्या में परिवर्तन को देखते हुए समय-समय पर लोक सभा और विधान सभा की सीटों के लिए चुनाव क्षेत्र का परिसीमन नए सिरे से करने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया के फलस्वरूप इन सदनों की सदस्य संख्या में भी बदलाव होता है.
परिसीमन का मुख्य उद्देश्य जनसंख्या के अलग-अलग भागों को समान प्रतिनिधित्व उपलब्ध कराना होता है. इसका एक उद्देश्य यह भी होता है कि चुनाव क्षेत्रों के लिए भौगोलिक क्षेत्रों को इस प्रकार न्यायपूर्ण ढंग से बाँटा जाए जिससे किसी एक राजनीतिक दल को अन्य दलों पर बढ़त न प्राप्त हो.
चुनाव क्षेत्र परिसीमन का काम कब-कब हुआ है?
- चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन का काम सबसे पहले 1950-51 में हुआ था. संविधान में उस समय यह निर्दिष्ट नहीं हुआ था कि यह काम कौन करेगा. इसलिए उस समय यह काम राष्ट्रपति ने चुनाव आयोग के सहयोग से किया था.
- संविधान के निर्देशानुसार चुनाव क्षेत्रों का मानचित्र प्रत्येक जनगणना के उपरान्त फिर से बनाना आवश्यक है. अतः 1951 की जनगणना के पश्चात् 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम पारित हुआ. तब से लेकर 1952, 1963, 1973 और 2002 में परिसीमन का काम हुआ. उल्लेखनीय है कि 1976 में आपातकाल के समय इंदिरा गाँधी ने संविधान में संशोधन करते हुए परिसीमन का कार्य 2001 तक रोक दिया था. इसके पीछे यह तर्क दिया था गया कि दक्षिण के राज्यों को शिकायत थी कि वे परिवार नियोजन के मोर्चे पर अच्छा काम कर रहे हैं और जनसंख्या को नियंत्रण करने में सहयोग कर रहे हैं जिसका फल उन्हें यह मिल रहा है कि उनके चुनाव क्षेत्रों की संख्या उत्तर भारत के राज्यों की तुलना में कम होती है. अतः 1981 और 1991 की जनगणनाओं के बाद परिसीमन का काम नहीं हुआ.
- 2001 की जनगणना के पश्चात् परिसीमन पर लगी हुई इस रोक को हट जाना चाहिए था. परन्तु फिर से एक संशोधन लाया गया और इस रोक को इस आधार पर 2026 तक बढ़ा दिया कि तब तक पूरे भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर एक जैसी हो जायेगी. इसी कारण 2001 की जनगणना के आधार पर किये गये परिसीमन कार्य (जुलाई 2002 – मई 31, 2018) में कोई ख़ास काम नहीं हुआ था. केवल लोकसभा और विधान सभाओं की वर्तमान चुनाव क्षेत्रों की सीमाओं को थोड़ा-बहुत इधर-उधर किया गया था और आरक्षित सीटों की संख्या में बदलाव लाया गया था.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Section 309 in The Indian Penal Code
संदर्भ
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं द्वारा लम्बे समय से भारतीय दंड संहिता की धारा 309 को समाप्त करने की मांग की जा रही है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 309 के बारे में
- इस धारा के तहत यदि कोई भी व्यक्ति आत्महत्या का प्रयास करता है, और बच जाता है तो उसे IPC की धारा 309 के तहत गिरफ्तार किया जा सकता है.
- 19 वीं शताब्दी में अंग्रेजों द्वारा लाया गया यह कानून उस समय की सोच को दर्शाता है, जब हत्या या खुद को मारने का प्रयास राज्य के खिलाफ, साथ ही धर्म के खिलाफ अपराध माना जाता था.
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन द्वारा लाया गया यह कानून भारत में अभी तक बना हुआ है जबकि ब्रिटिश संसद ने वर्ष 1961 में अपने देश में आत्महत्या के अपराधीकरण को रद्द कर दिया था.
- इसे समाप्त करने की मांग करने वाले न्यायालय के वर्ष 1994 के चेन्ना जग्देश्वर बनाम आंध्रप्रदेश राज्य में दिए गये निर्णय का हवाला देते हैं, जिसमें न्यायालय ने आईपीसी की धारा 309 को अनुच्छेद 14 एवं 21 का उल्लंघन माना था जो ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार’ की गारंटी देता है.
मेन्टल हेल्थकेयर एक्ट (MHCA), 2017 के प्रावधान
- यद्यपि अभी तक यह धारा IPC में बनी हुई है लेकिन फिर भी मेंटल हल्थकेयर एक्ट (MHCA), 2017, जो जुलाई 2018 में लागू हुआ, ने धारा 309 के उपयोग की गुंजाइश को काफी कम कर दिया है और केवल एक अपवाद की स्थिति के रूप मे ही आत्महत्या के प्रयास को दंडनीय बनाया है.
- परन्तु यह प्रावधान केवल मानसिक राग की स्थिति में ही लागू होता है.
- कानून की धारा 115 (2) में कहा गया है कि “सरकार का कर्तव्य होगा कि वह किसी गंभीर तनावग्रस्त व्यक्ति द्वारा आत्महत्या करने क प्रयास की पुनरावृत्ति के जोखिम को कम करने के लिए, उक्त व्यक्ति को उपयुक्त देखभाल, उपचार और पुनर्वास प्रदान करे.”
आत्महत्या के मामले
- सामूहिक या पारिवारिक आत्महत्या के अधिकतम मामले तमिलनाडु (16), आंध्र प्रदेश (14), केरल (11) और पंजाब (9) और राजस्थान (7) द्वारा दर्ज किए गए हैं.
- बेरोजगारों के कारण आत्महत्या करने के मामले केरल में 14%, इसके बाद महाराष्ट्र में 10.8%, तमिलनाडु में 9.8%, कर्नाटक में 9.2% और ओडिशा में 6.1% है.
- व्यावसायिक गतिविधियों वाले लोगों की आत्महत्या के अधिकांश मामले महाराष्ट्र (14.2%), तमिलनाडु (11.7%), कर्नाटक (9.7%), पश्चिम बंगाल (8.2%) और मध्य प्रदेश (7.8%) में थे.
- कृषक क्षेत्र में लगे पीड़ितों की संख्या महाराष्ट्र में (38.2% 10,281), कर्नाटक (19.4%), आंध्र प्रदेश (10.0%), मध्य प्रदेश (5.3%) और छत्तीसगढ़ और तेलंगाना (4.9% प्रत्येक) में दर्ज की गई.
- शहरों में आत्महत्या की दर (13.9%) अखिल भारतीय औसत की तुलना में अधिक थी. ‘परिवार की समस्याएं (शादी से संबंधित समस्याओं के अलावा)’ (32.4%); ‘विवाह संबंधी समस्याएं’ (5.5%); और ‘बीमारी’ (17.1%) कुल आत्महत्याओं के 55% के लिए जिम्मेदार है.
दक्षिणी राज्यों में प्रचलित मनोविकार
- भारत के दक्षिणी राज्य अधिक आधुनिकीकृत और नगरीकृत राज्य हैं. अतः वहाँ अवसाद अधिक देखने को मिलता है.
- अवसाद का आत्महत्या से सीधा सम्बन्ध होता है. अतः दक्षिणी राज्यों में आत्महत्या की घटनाएँ उत्तरी भारत की तुलना में अधिक होती हैं.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : The draft Cinematograph (Amendment) Bill 2021
संदर्भ
हाल ही में, केंद्र सरकार द्वारा ‘सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक 2021’ का मसौदा (The draft Cinematograph (Amendment) Bill 2021) निर्गत किया गया है. इसके जरिये ‘सिनेमैटोग्राफ अधिनियम, 1952’ में संशोधन किया जाएगा.
सिनेमेटोग्राफ (संशोधन) विधेयक, 2021
- इस विधेयक में सिनेमेटोग्राफ अधिनियम, 1952 में कुछ ऐसे संशोधन प्रावधान डाले गये हैं जिनमें अनधिकृत रूप से फिल्मों की प्रतिलिपि तैयार करने पर अथवा कैमरे से रिकॉर्ड करने पर दंड की व्यवस्था की गई है.
- इस प्रावधान के अंतर्गत केंद्र सरकार के लिए ‘पुनरीक्षण करने की शक्ति’ (Revisionary Powers) प्रदान की गई है और केंद्र सरकार को ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ (Central Board of Film Certification- CBFC) द्वारा अनुमोदित फिल्मों की ‘पुन: जांच’ करने में सक्षम बनाया गया है.
- संशोधन विधेयक का मुख्य लक्ष्य फिल्मों की चोर बाजारी को रोकना है. ऐसा देखा जाता है कि किसी फिल्म के सिनेमाघर में पहुँचने के पहले उसका चोर-बाजारी वाला संस्करण इन्टरनेट पर डाल दिया जाता है जिस कारण फिल्म उद्योग को बड़ा घाटा तो होता ही है, सरकार को भी अर्थ की हानि होती है.
- विधयेक में फिल्मों की चोर-बाजारी के लिए3 वर्ष तक के कारावास और 10 लाख रु. के जुर्माने तक के अर्थदंड का प्रावधान है.
- प्रस्तावित संशोधन कहता है कि वह हर व्यक्ति दंड का अधिकारी होगा जो स्वत्त्वाधिकारी की लिखित स्वीकृति के बिना किसी फिल्म की प्रतिलिपि तैयार करता है अथवा उसको प्रसारित करता है अथवा ऐसी प्रतिलिपि के प्रचार-प्रसार के लिए सहायता देता है.
- आयु-आधारित प्रमाणीकरण (Age-based certification): विधेयक में आयु-आधारित वर्गीकरण और श्रेणीकरण का प्रावधान लागू करने का प्रस्ताव किया गया है. इसके तहत, फिल्मो के लिए मौजूदा श्रेणियों (U, U/A और A) को दोबारा आयु-आधारित समूहों (U /A 7+, U/A 13+ और U/A 16+) में विभाजित करने का प्रस्ताव है.
संशोधनों का माहात्म्य
फिल्म उद्योग बहुत लम्बे समय से सरकार से माँग करता रहा है कि फिल्मों को कैमरे से रिकॉर्ड करने और उसे प्रसारित करने को रोकने के लिए कानून में बदलाव लाए. प्रस्तावित संशोधन इसी संदर्भ में पेश किया गया है. इससे फिल्म उद्योग की आय में वृद्धि होगी, रोजगार बढ़ेंगे और राष्ट्र की बौद्धिक सम्पत्ति नीति के लक्ष्यों को पूरा करने में सफलता मिलेगी.
संबंधित चिंताएं
- पुनर्प्रमाणन के लिए आदेश देने की केंद्र की शक्ति, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) द्वारा संचालित मौजूदा प्रक्रिया के तहत उल्लिखित प्रत्यक्ष सरकारी सेंसरशिप (Government Censorship) में एक अतिरिक्त परत जोड़ सकती है.
- फिल्म प्रमाणन के सबंध में उच्चतम न्यायालय ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा है, कि सरकार को सेंसरशिप की मांग करने का कोई अधिकार नहीं है, और जब एक बार ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ किसी फिल्म को प्रमाणित कर देता है, उसके बाद सरकार इस विषय पर शक्तिहीन हो जाती है. विधेयक में प्रस्तावित प्रावधान शीर्ष अदालत के इस विचार के विपरीत हैं.
- अक्सर, किसी फिल्म की प्रमाणन प्रक्रिया के बाद किंतु उसकी रिलीज से ठीक पहले विभिन्न समूहों या व्यक्तियों द्वारा आपत्ति जताई जाती है. प्रस्तावित नए नियमों के लागू होने से, फिल्मों को यादृच्छिक आपत्तियों के आधार पर पुन: प्रमाणन के लिए लंबे समय तक रोका जा सकता है, भले ही इनके लिए CBFC प्रमाणित कर चुका हो.
इस विषय पर सरकार का पक्ष
सरकार, जिन फिल्मों पर उसके लिए शिकायतें प्राप्त होती हैं, उन फिल्मों के लिए सुपर-सेंसर के रूप में कार्य करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करने का औचित्य साबित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 में उल्लिखित ‘उचित प्रतिबंधों’ का हवाला देती है- भले ही ‘सिनेमैटोग्राफ अधिनियम’ को क्रियान्वित करने वाले अधिकार प्राप्त आधिकारिक निकाय ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’ (CBFC) के अनुसार इन फिल्मों में प्रतिबंध लगाए जाने योग्य सामग्री नहीं पाई गई हो.
GS Paper 3 Source : Times of India
UPSC Syllabus : Infrastructure
Topic : Indira Gandhi Nagar
संदर्भ
हाल ही में देश की सबसे लंबी नहर इंदिरा गाँधी नहर के मरम्मत के कार्य को 60 दिनों के रिकॉर्ड समय में पूरा कर लिया गया. यह उल्लेखनीय कार्य है कि क्योंकि नहर की 70 किमी लम्बे भाग की मरम्मत के लिए जल की आपूर्ति को रोकना पड़ा जिससे 1.75 करोड़ लोगों की सिंचाई एवं पल आपूर्ति बाधित हुई.
इंदिरा गाँधी नहर के बारे में
- इंदिरा गाँधी नहर को ‘राजस्थान नहर’ के नाम से भी जाना जाता है.
- यह मुख्यत: उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में बहती है.
- राजस्थान नहर सतलज और रावी के संगम पर निर्मित हरिके बांध से निंकाली गई यह नहर पंजाब व राजस्थान को जल की आपूर्ति करती है.
- यह नहर राजस्थान की नही एशिया की सबसे बड़ी मानव निर्मित नहर है जिसकी कुल लम्बाई 649 किलामीटर लम्बी है.
- इस नहर का उद्घाटन 31 मार्च 1958 को तत्कालीन केन्द्रीय गह मंत्री श्री गोविन्द वललभ पंत ने किया था तथा 2 नवंबर 1984 को इसका नाम इंदिरा गांधी नहर परियोजना कर दिया गया.
- इंदिरा गाँधी नहर के प्रणता इंजीनियर श्री कंवरसेन थे.
- इस परियोजना को राज्य की मरूगंगा, मरूस्थल की जीवनरखा व प्रदेश की जीवनरेखा भी कहाँ जाता है.
- यह नहर 19.63 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य कमान क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान करती हैं.
- अंतर्राष्ट्रीय सीमा की और पश्चिम में ढाल होने के कारण मुख्य नहर से 7 लिफ्ट नहर, 9 शाखाएँ निकाली गई हैं.
- लिफ्ट नहरें ढाल के अनुरूप बनाई गई है, जिससे विभिन्न कस्बों तथा शहरों को पेयजल उपलब्ध होता है.
Prelims Vishesh
Spcialised Supervisory and Regulatory Cadre: SSRC :-
- SSRC को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा वर्ष 2019 में बैंकिंग और वित्तीय संस्थाओं की प्रभावी निगरानी के लिए प्रस्तावित किया गया था.
- इसका उद्देश्य व्यवसायिक बैंकों, शहरी सहकारी बैंकों एवं गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों से सम्बंधित पर्यवेक्षण और नियमन को सशक्त करना है.
- RBI के पास वर्तमान में वित्तीय पर्यवेक्षण के लिए एक बोर्ड है. इसमें केंद्रीय बोर्ड के चार निदेशक सदस्य हैं और इसकी अध्यक्षता RBI गवर्नर करता है.
- RBI का डिप्टी गवर्नर पदेन सदस्य होता है.
Place of Effective Management (POEM) :-
- कोविड-19 के उपरांत हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल (HNI) व्यक्तियों द्वारा व्यावसायिक व पारिवारिक वर्धित पलायन के साथ, POEM का उल्लंघन करने का जोखिम बढ़ गया है.
- आयकर अधिनियम,1961 की धारा 6 के अंतर्गत “प्रभावी प्रबंध का स्थान” से ऐसा स्थान अभिप्रेत है, जहां किसी अस्तित्व के संपूर्ण कारबार के संचालन के लिए आवश्यक प्रमुख प्रबंधन और वाणिज्यिक विनिश्चय, सारवान रूप से किए जाते हैं.
- इसे वर्ष 2017-18 में भारत में अधिवास स्थिति और इसके कारण आरोपित होने वाले कर से बचने के लिए भारत के बाहर नियंत्रण एवं प्रबंधन से संबंधित निरर्थक या अलग-थलग प्रकरणों को कृत्रिम रूप से स्थानांतरित करके भारतीय कर प्राधिकारियों के दायरे को सीमित करने की प्रथा पर अंकुश लगाने के लिए प्रस्तुत किया गया था.
Quacquarelli Symonds (QS) World University Rankings (WUR) :-
- IIT बॉम्बे,IIT दिल्ली और भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु एकमात्र भारतीय संस्थान हैं, जिन्होंने विश्व स्तर पर शीर्ष 200 में स्थान प्राप्त किया है.
- विश्व स्तर पर मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी को प्रथम स्थान प्रदान किया गया, उसके पश्चात ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय जबकि स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय ने तीसरा स्थान साझा किया.
- QS, रैंकिंग को संकलित करने के लिए छह संकेतकों का उपयोग करता है यथा: शैक्षणिक प्रतिष्ठा, नियोक्ता प्रतिष्ठा, प्रति संकाय साइटेशन, संकाय / छात्र अनुपात, अंतर्राष्ट्रीय संकाय अनुपात और अंतर्राष्ट्रीय छात्र अनुपात.
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