Sansar Daily Current Affairs, 22 May 2019
GS Paper 2 Source: Indian Express
Topic : WTO’s dispute settlement mechanism
संदर्भ
विश्व व्यापार संगठन (WTO) के अंतर्गत अपीलीय निकाय (Appellate Body) में नए सदस्यों की नियुक्ति लम्बे समय से नहीं होने के कारण विवाद निपटारे की प्रणाली ध्वस्त होती हुई-सी प्रतीत हो रही है. इसी परिप्रेक्ष्य में पिछले सप्ताह नई दिल्ली में 20 विकासशील देशों की एक बैठक हुई जिसमें इस संकट के निवारण पर विचार-विमर्श किया गया.
उल्लेखनीय है कि यदि इस समस्या का समाधान नहीं हुआ तो यह निकाय निष्क्रिय हो जाएगा और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार से सम्बंधित विवादों में उलझे देशों के हितों पर कुठाराघात होगा.
WTO का अपीलीय निकाय क्या है?
यह अपीलीय निकाय सात सदस्यों की एक स्थायी समिति है जिसकी स्थापना 1995 में हुई थी. इस निकाय में WTO सदस्यों के द्वारा लाये गये व्यापार से सम्बंधित विवादों पर किये गये न्याय-निर्णयों के विरुद्ध अपील सुनी जाती है. 1995 से अब तक इस निकाय के पास 500 विवाद आये जिसमें 350 मामलों में न्याय-निर्णय दिया गया. यह निकाय अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के मामले में सर्वोच्च संस्था है.
इस संस्था के पास वे देश आते हैं जिन्हें लगता है कि WTO समझौते का उल्लंघन हुआ है. अपीलीय निकाय निम्नस्थ संस्थाओं द्वारा दिए गये निर्णयों को यथावत् रख सकता है अथवा उन्हें संशोधित कर सकता है अथवा आदेश को पलट सकता है.
अपीलीय निकाय के पूर्ण गठन में समस्या क्या है?
पिछले दो वर्षों से अपीलीय निकाय के सदस्यों की संख्या घटकर 3 रह गई है जबकि इसमें 7 सदस्य चाहिएँ. ऐसा इसलिए है कि अमेरिका समझता है कि WTO उससे भेदभाव करता है और इसलिए अमेरिका नए सदस्यों की नियुक्ति और पुराने सदस्यों की फिर से नियुक्ति में अड़चन डाल रहा है. स्थिति यह है कि आने वाले दिसम्बर में इसके दो सदस्य अपनी कार्यावधि पूरी कर लेंगे और उसके बाद इस निकाय में मात्र एक सदस्य रह जाएगा. विदित हो कि अपील की सुनवाई के लिए कम-से-कम 3 सदस्य होना आवश्यक है.
भारत पर इसका प्रभाव क्या होगा?
WTO अपीलीय निकाय का निष्क्रिय होना भारत के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि इस देश के द्वारा सामना किये जाने वाले विवादों की संख्या बढ़ती जा रही है, विशेषकर कृषि उत्पादों के मामलों में. पिछले चार महीनों में ही भारत के विरुद्ध WTO में चार वाद दायर किये गये हैं जिनमें भारत द्वारा चीनी और गन्ना उत्पादकों को समर्थन देने का आरोप लगाया गया है.
क्या किया जाए?
यद्यपि अपीलीय निकाय के लिए नियुक्ति WTO सदस्यों की सर्वसम्मति से होता है, परन्तु यदि सर्वसम्मति नहीं होती है तो मतदान का एक प्रावधान है. यदि चाहें तो 17 अल्प-विकसित और विकासशील देश मिलकर मतदान के लिए प्रस्ताव दे सकते हैं और बहुमत के आधार पर नए सदस्यों की नियुक्ति कर सकते हैं. परन्तु यह उपाय सफल हो जाएगा इसकी गारंटी नहीं है क्योंकि अमेरिका इस पर अपना वीटो दे सकता है.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : Competition Commission of India (CCI)
संदर्भ
पिछले 20 मई, 2019 को भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (Competition Commission of India – CCI) ने अपना दसवाँ वार्षिक दिवस मनाया. विदित हो कि इसी तिथि को 2002 में प्रतिस्पर्धा अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के विषय में अधिसूचना निकली थी.
CCI क्या है?
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग की स्थापना मार्च, 2009 में हुई थी.
- यह एक वैधानिक निकाय है जिसका दायित्व प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 के प्रावधानों को पूरे भारत में लागू करना है तथा प्रतिस्पर्धा पर बुरा प्रभाव डालने वाली गतिविधियों को रोकना है.
- इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तिकेंद्र सरकार द्वारा की जाती है.
- प्रतिस्पर्धा अधिनियम, 2002 (अधिनियम) की धारा 8 (1) के अनुसार आयोग में केवल एक अध्यक्ष होगा और सदस्यों की संख्या कम से कम दो होगी और अधिक से अधिक छह होगी.
कार्य
आयोग के निम्नलिखित कार्य हैं :-
- व्यापार से सम्बंधित प्रतिस्पर्धा पर प्रतिकूल प्रभाव करने वाले कारकों को रोकना.
- बाजारों में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना और बनाए रखना.
- उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना.
- व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना.
- यह आयोग किसी वैधानिक प्राधिकरण के द्वारा भेजे गये प्रतिस्पर्धात्मक मामलों पर अपना परामर्श भी देता है.
- यह प्रतिस्पर्धा से जुड़े मामलों के विषय में जन-जागरूकता सृजित करता है और प्रशिक्षण प्रदान करता है.
प्रतिस्पर्धा अधिनियम
2002 का मूल प्रतिस्पर्धा अधिनियम और उसका 2007 में संशोधन अधिनियम प्रतिस्पर्धा विरोधी समझौतों का प्रतिषेध करता है, प्रतिष्ठानों द्वारा अपनी प्रबल स्थिति के दुरूपयोग पर रोक लगाता है तथा भारत के अंदर प्रतिस्पर्धा पर विपरीत प्रभाव डालने वाली गतिविधियों, यथा – अधिग्रहण, नियंत्रण हाथ में लेना आदि को नियंत्रित करता है.
हाल ही में भारत सरकार ने प्रतिस्पर्धा अधिनियम की समीक्षा के लिए एक प्रतिस्पर्धा कानून समीक्षा समिति (Competition Law Review Committee) बनाई है जो यह देखेगी कि प्रतिस्पर्धा कानून आर्थिक मूलभूत सिद्धांतों के अनुरूप है अथवा नहीं.
GS Paper 3 Source: Indian Express
Topic : ‘Room for the River’ project
संदर्भ
अपनी हाल की यूरोप यात्रा के क्रम में केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन नीदरलैंड के नूर्डवार्ड नामक नगर में ठहरे थे जहाँ रूम फॉर द रिवर अर्थात् नदी के लिए स्थान नामक परियोजना संचालित हो रही है.
रूम फॉर द रिवर परियोजना क्या है?
- यह परियोजना नीदरलैंड्स सरकार की एक मूर्धन्य परियोजना है जिसमें नदियों के आस-पास के क्षेत्रों को बार-बार आने वाली बाढ़ से बचाने और डेल्टा क्षेत्रों में जल प्रबंधन प्रणालियों में सुधार लाने पर बल दिया गया है.
- इस परियोजना की मूलभूत अवधारणा नदियों को और अधिक स्थान मुहैया कराना है जिससे कि वे बाढ़ के समय जल-स्तर के अत्यधिक बढ़ जाने के समय उसे सम्भाल सकें.
- यह परियोजना नीदरलैंड्स के 30 स्थलों पर लागू की जा रही है और इस पर 3 बिलियन यूरो का खर्च बैठ रहा है.
- इस परियोजना में आने वाली प्रत्येक नदी के लिए अलग-अलग पूर्व-नियोजित समाधान उपलब्ध कराए गये हैं.
- परियोजना के अंतर्गत करणीय कार्य 9 प्रकार के हैं, जैसे – बाढ़ आने वाले स्थलों की सतह को नीचा करना, ग्रीष्मकालीन नदी तल को गहरा करना, तटबंधों को सुदृढ़ करना, तटबंधों को नई जगह ले जाना, ग्रॉयन की ऊँचाई घटाना, पार्श्ववर्ती नहरों की गहराई बढ़ाना तथा बाधाओं को दूर करना.
- इस परियोजना के अंतर्गत नदी तटों के आस-पास के क्षेत्रों में फव्वारे और बैठने के मनोहारी स्थान भी बनाए जा रहे हैं. परिदृश्य को परिवर्तित कर इस प्रकार बनाया जा रहा है कि बाढ़ के दौरान आने वाले अतिरिक्त पानी को सोखने के लिए जगह बन सके.
केरल के लिए इसकी प्रासंगिकता
केरल सरकार का विचार है कि नूर्डवार्ड की भाँति केरल के कुट्टनाड में भी ऐसी परियोजना आरम्भ की जा सकती है. विदित हो कि कुट्टनाड समुद्र तल से नीचे स्थित है और यह राज्य का चावल का कटोरा माना जाता है. पिछले वर्ष आने वाली बाढ़ के कारण कुट्टनाड और उसके आस-पास के कोट्टयम और अलपुझ्झा जिलों के आस-पास के भूभाग सप्ताहों तक पानी में डूबे रहे थे. राज्य की बड़ी नदियाँ कुट्टनाड में ही अपना पानी छोड़ती हैं. अतः नीदरलैंड्स की परियोजना के तर्ज पर बाढ़ रोकने के लिए यहाँ भी व्यापक और दीर्घकालिक उपाय करने की आवश्यकता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : Effects of plastics on environment
संदर्भ
नए अनुसंधानों से पता चला है कि विश्व-भर में होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का 3.8% प्लास्टिक से होता है. यह प्रतिशत विमानन प्रक्षेत्र के उत्सर्जन का लगभग दुगुना है. यदि प्लास्टिक राज्य नामक कोई देश होता तो वह विश्व का पाँचवा सबसे अधिक उत्सर्जन करने वाला देश कहलाता.
चिंता का विषय
प्लास्टिक की माँग बढ़ती ही जाती है. प्रतिवर्ष 380 मिलियन टन प्लास्टिक तैयार होता है जो 1950 के उत्पादन की तुलना में 190 गुना है. अभी प्रत्येक वर्ष प्लास्टिक उत्पादन में 4% की वृद्धि हो रही है. यदि इसी दर पर वृद्धि होती रही तो 2050 तक वैश्विक उत्सर्जन का 15% प्लास्टिक के निर्माण से ही होने लगेगा.
उत्सर्जन के लिए प्लास्टिक उत्तरदायी कैसे?
99% से अधिक प्लास्टिक का निर्माण पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे पेट्रोरसायनों से होता है. इन कच्चे मालों का शोधन करके एथिलीन, प्रोपीलिन, ब्यूटेन और अन्य मूलभूत प्लास्टिक निर्माण ब्लाक बनाए जाते हैं. तत्पश्चात इनको निर्माताओं तक पहुंचाया जाता है. प्लास्टिक के उत्पादन और परिवहन में भयंकर मात्रा में इंधन की आवश्यकता होती है. इस प्रक्रिया में ग्रीनहाउस गैसों का बड़े पैमाने पर उत्सर्जन होता है.
एक अध्ययन के अनुसार उत्पादन एवं परिवहन के चरण में प्लास्टिक से होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की 61% मात्रा उसके उत्पादन और परिवहन के समय ही वायुमंडल में प्रवेश कर जाती है. शेष 30% तब होता है जब प्लास्टिक से बोतल, थैलियाँ, हेलमेट आदि बनाए जाते हैं. उत्सर्जन का एक अंश फोम बनाने जैसी प्रक्रियाओं से होता है. प्लास्टिक को फेक देने के बाद उससे कार्बन का उत्सर्जन होता है क्योंकि उसमें जमा कार्बन सड़ने के बाद निकलने लगता है.
ज्ञातव्य है कि प्लास्टिक को गलने में शताब्दियाँ लग जाती हैं. अतः उनको कहीं दबा देने से भी कोई अधिक लाभ नहीं है. यदि उनको खुले आकाश के तले जला दिया जाता है तो उनमें जमा कार्बन और भी तेजी से वायुमंडल में चला जाता है. इस समस्या का स्थायी समाधान तब होगा जब पेट्रोरसायन के बदले ऐसे स्रोतों से प्लास्टिक बनाया जाए जो स्वयं विनष्ट हो जाते हैं. जैसे – लकड़ी, मकई की माढ, गन्ना आदि.
Alliance to End Plastic Waste (AEPW)
हाल ही में वैश्विक कंपनियों के एक गुट ने एक नया संगठन बनाया है जिसका नाम APEW अर्थात् प्लास्टिक कचरे की समाप्ति के लिए संघ रखा गया है. इस संघ में लगभग 30 कंपनियाँ हैं जिन्होंने वादा किया है कि वे विश्व-भर में प्लास्टिक के कचरे को समाप्त करने के लिए 1 बिलियन डॉलर से अधिक देंगी और इसके लिए अगले पाँच वर्षों में 5 बिलियन डॉलर का निवेश भी करेंगी. यह एक लाभ-रहित संगठन है. इस संघ का उद्देश्य प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के उपाय निकालना और प्रयोग में आ चुके प्लास्टिक को फिर से प्रयोग करने को बढ़ावा देना है.
GS Paper 3 Source: PIB
Topic : RISAT-2B
संदर्भ
हाल ही में ISRO ने श्रीहरिकोटा से PSLV-C46 के माध्यम से RISAT-2B नामक रडार छायांकन उपग्रह का सफल प्रक्षेपण किया है.
- RISAT-2B को 555 किमी. की ऊँचाई के परिक्रमा पथ पर भूमध्यरेखा से 37 अंश (degree) झुकाव पर स्थापित किया गया है.
- यह प्रक्षेपण RISAT कार्यक्रम का चौथा प्रक्षेपण है.
मुख्य तथ्य
- इस उपग्रह का प्रयोग टोह लगाने, सामरिक सर्वेक्षण तथा आपदा प्रबंधन के लिए किया जाएगा. इसके अतिरिक्त यह कृषि और वानिकी में भी काम आएगा.
- इसमें एक संश्लेषित (synthetic) रडार लगा हुआ है जो दिन और रात दोनों में और आकाश के मेघाछन्न होने पर भी चित्र खींच सकता है.
- इस उपग्रह में 6 मीटर का खुल जाने वाला रेडियल रिब अन्टेना भी लगा है जिसको बनाने में नवीनतम जटिल तकनीक का प्रयोग हुआ है.
- RISAT-2B अन्तरिक्ष में जाकर RISAT-2 तक पहुँच जाएगा, जो 2009 में छोड़ा गया था. विदित हो कि RISAT 2 का प्रयोग भारत में पाकिस्तान से आंतकियों के घुसपैठ को रोकने के लिए सीमा पार के शिविरों में होने वाली गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए बड़े पैमाने पर किया गया था.
Prelims Vishesh
International Day for Biological Diversity :-
- 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया गया जिसका उद्देश्य जैव विविधता से सम्बंधित विषयों के प्रति लोगों में समझ और जागरूकता पैदा करना है.
- 2019 के लिए इसके लिए जो थीम निर्धारित की गई है, वह है – हमारी जैव विविधता, हमारे खाद्य पदार्थ, हमारा स्वास्थ्य.
Indo-Myanmar coordinated patrol (IMCOR) :-
- 2019 का भारत-म्यांमार समन्वित गश्ती का आयोजन चल रहा है. यह इस प्रकार की आठवीं गश्ती है.
- इसमें दोनों देशों की नौसेनाएँ सम्मिलित होती हैं और आतंकवाद, मानव तस्करी, पशु हत्या, अवैध मछली मारना, नशीले द्रव्यों का व्यापार जैसी अवैध गतिविधियों का समाधान करने का प्रयास किया जाता है.
- ऐसी गश्तियाँ सबसे पहले मार्च 2013 में आरम्भ हुई है.
Ongole cattle :-
- उपराष्ट्रपति वैंकैया नायडू ने हाल ही में ओंगोल गोवंश प्रजाति के संरक्षण का आह्वान किया है.
- विदित हो कि यह प्रजाति आंध्र प्रदेश के प्रकाशम जिले में पाई जाती है और इसका नाम उस जगह पर रखा गया है जहाँ इसकी उत्पत्ति हुई है.
- यह एक भारी-भरकम पशु है जिसे खुरहा, मुंह का रोग और मैड काऊ डिजीज नहीं होता है.
- तगड़ेपन और जुझारूपन के कारण इस प्रजाति के सांड का प्रयोग मैक्सिको और पूर्व अफ्रीका में सांडों की लड़ाई में होता है.
- आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में जो पारम्परिक सांडों की लड़ाई होती है उसमें इन्हीं सांडों का प्रयोग होता है.
Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA
April, 2019 Sansar DCA is available Now, Click to Download