Sansar Daily Current Affairs, 23 June 2020
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Geographic features and their status
Topic : Senkaku Island – Dispute between China and Japan
संदर्भ
हाल ही में जापान की एक स्थानीय परिषद में चीन और ताइवान के साथ विवादित सेनकाकू द्वीपीय क्षेत्र में स्थित कुछ द्वीपों की प्रशासनिक स्थिति बदलने वाले विधेयक को स्वीकृति दी गई है.
मामला क्या है?
- चीन और जापान दोनों ही इन निर्जन द्वीपों पर अपना दावा करते हैं. जिन्हें जापान में सेनकाकू और चीन में डियाओस (दियाओयू) के नाम से जाना जाता है. इन द्वीपों का प्रशासन 1972 से जापान के हाथों में है. लेकिन उनकी कानूनी स्थिति अब तक कुछ विवादित रही है.
- पूर्वी चीन सागर में मौजूद इस द्वीप पर ताइवान भी अपना दावा जताता रहा है. हालांकि द्वीप पर इस वक्त जापान का कब्जा है.
- वहीं, चीन का दावा है कि यह द्वीप उसके अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जापान को अपना दावा छोड़ देना चाहिए.
सेनकाकू द्वीप
- इस विवाद का कारण पूर्वी चीन सागर में स्थित आठ निर्जन द्वीप हैं, जिनका कुल क्षेत्रफल 7 वर्ग किमी. है.
- यह ताइवान के उत्तर-पूर्व, चीनी मुख्य भूमि के पूर्व में और जापान के दक्षिण-पूर्व प्रांत, ओकिनावा के दक्षिण-पश्चिम में स्थित हैं.
विवादित क्षेत्र का आर्थिक महत्त्व
- तेल एवं प्राकृतिक गैस के भंडार
- प्रमुख जलयान मार्गों के पास स्थित
- समृद्ध मत्स्यन क्षेत्र
सेन फ्रांसिस्को संधि
जापान और अमेरिका में 1951 में सेन फ्रांसिस्को संधि है जिसके तहत जापान की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की है. इस संधि में यह भी बात लिखी है कि जापान पर हमला अमेरिका पर हमला माना जाएगा. इस कारण अगर चीन कभी भी जापान पर हमला करता है तो अमेरिका को इनके बीच आना पड़ेगा.
GS Paper 2 Source : Livemint
UPSC Syllabus : Indian Constitution– historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.
Topic : Office of Profit
लाभ का पद क्या है?
अनुच्छेद 102(1)(a) एवं 191(1)(a) में लाभ के पद के आधार पर निरर्हताओं का उल्लेख है, किंतु लाभ के पद को न तो संविधान में परिभाषित किया गया है और न ही जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम में.
प्रद्युत बारदोलाई बनाम स्वप्न रॉय वाद (2001) में उच्चतम न्यायालय ने लाभ के पद की जांच के लिए निम्नलिखित प्रश्नों को रेखांकित किया:
- क्या वह नियुक्ति सरकार द्वारा की गई है;
- क्या पदस्थ व्यक्ति को हटाने अथवा बर्खास्त करने का अधिकार सरकार के पास है;
- क्या सरकार किसी पारिश्रमिक का भुगतान कर रही है;
- पदस्थ व्यक्ति के कार्य क्या हैं एवं क्या वह यह कार्य सरकार के लिए कर रहा है; तथा
- क्या किए जा रहे इन कार्यों के निष्पादन पर सरकार का कोई नियंत्रण है.
कालांतर में, जया बच्चन बनाम भारत संघ वाद में उच्चतम न्यायालय ने इसे अग्रलिखित प्रकार से परिभाषित किया- “ऐसा पद जो कोई लाभ अथवा मौद्रिक अनुलाभ प्रदान करने में सक्षम हो.” इस प्रकार “लाभ के पद” वाले मामले में लाभ का वास्तव में “प्राप्त होना” नहीं अपितु लाभ ‘प्राप्ति की संभावना’ एक निर्णायक कारक है.
लाभ के पदों पर संयुक्त समिति
- इसमें 15 सदस्य होते हैं जो संसद के दोनों सदनों से लिए जाते हैं.
- यह केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा नियुक्त समितियों की संरचना व प्रकृति की जांच करती है तथा अनुशंसा करती है कि किन-किन पदों पर आसीन व्यक्तियों को संसद के किसी सदन का सदस्य बनने के लिए योग्य अथवा निर्योग्य माना जाए.
- इसने लाभ के पद को निन्न प्रकार परिभाषित किया है:
- यदि पदस्थ व्यक्ति को क्षतिपूर्ति भत्ते के अतिरिक्त कोई पारिश्रमिक जैसे उपस्थिति शुल्क, मानदेय, वेतन आदि प्राप्त होता है.
- यदि वह निकाय जिसमें व्यक्ति को पद प्राप्त है;
- कार्यकारी, विधायी अथवा न्यायिक शक्तियों का प्रयोग कर रहा है; अथवा
- उसे निधियों के वितरण, भूमि के आवंटन, लाइसेंस जारी करने आदि की शक्तियाँ प्राप्त हैं; अथवा
- वह नियुक्ति, छात्रवृत्ति आदि प्रदान करने की शक्ति रखता है.
- यदि वह निकाय जिसमें व्यक्ति को पद प्राप्त है, सरंक्षण के माध्यम से प्रभाव अथवा शक्तियों का प्रयोग करता है.
निर्योग्यता के पक्ष में तर्क
शक्ति-पृथक्करण के विरुद्ध: लाभ का पद धारण करके कोई विधायक, कार्यपालिका (जिनका वह भाग बन गया है) से स्वतंत्र होकर अपने कार्यो का निर्वहन नहीं कर सकता.
संवैधानिक प्रावधानों की अवहेलना: संसदीय सचिवों के पद अथवा ऐसे ही अन्य पदों का प्रयोग राज्य सरकारों द्वारा संविधान द्वारा निर्धारित मंत्रियों की अधिकतम 15% (दिल्ली के मामले में 10%) की सीमा से बचने के साधन के रूप में किया जाता है.
संरक्षण के माध्यम से शक्ति का प्रयोग: संसदीय सचिव सरकारों की उच्च-स्तरीय बैठकों में भागीदारी करते हैं. साथ ही उनकी मंत्रियों व मंत्रालयों की फाइलों तक पहुँच हर समय बनी रहती है तथा यह पहुँच उन्हें संरक्षण के माध्यम (way of patronage) से शक्ति का प्रयोग करने में सक्षम बनाती है.
राजनीतिक समर्थन जुटाने के लिए तथा गठबंधन की राजनीति के दौर में मंत्री पदों के विकल्प के रूप में भी इन पदों का दुरूपयोग किया जाता है.
जनहित के लिए खतरा: मंत्रियों के विपरीत संसदीय सचियों को गोपनीयता की शपथ (अनुच्छेद 239 AA(4)) नहीं दिलाई जाती. तथापि उन्हें उन सूचनाओं की जानकारी हो सकती है जिनका प्रकटीकरण जनहित के लिए हानिकारक हो, भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे सकता हो और यहाँ तक कि राष्ट्रीय सुरक्षा के समक्ष भी खतरा उत्पन्न कर सकता हो.
लाभ के पद से संबंधित अन्य मुद्दों में विधियों में संशोधन के माध्यम से विधायी शक्ति का स्वेच्छाचारी उपयोग, बड़े आकार के मंत्रिमंडल के कारण सार्वजनिक धन का दुरूपयोग तथा संशोधन की शक्ति के स्वेच्छाचारी प्रयोग के माध्यम से राजनीतिक अवसरवादिता सम्मिलित हैं. साथ ही विभिन्न राज्यों में इनकी भिन्न-भिन्न प्रस्थिति भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है.
मेरी राय – मेंस के लिए
लाभ का पद ब्रिटेन से प्रेरित है किंतु ब्रिटेन में निरर्हताओं का न तो कोई सामान्य सिद्धांत है और न ही कानून के अंतर्गत ऐसे पदों की कोई विशेष सूची दी गई है. दूसरी ओर भारत में, संविधान के अंतर्गत सामान्य निरर्हताओं का उल्लेख है, जबकि संसद कानून बनाकर कुछ विशेष अपवादों को भी शामिल कर सकती है.
चूँकि लाभ के पद की न्यायिक व्याख्याएं भिन्न-भिन्न रही हैं, अत: यह मामला संसद की संयुक्त समिति को संदर्भित कर दिया जाना चाहिए ताकि वह इस बात का निर्धारण कर सके कि कौन-कौन से पद निर्योग्यता का आधार होंगे.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Salient features of the Representation of People’s Act.
Topic : Principle of Secret Ballot
संदर्भ
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय में स्पष्ट किया है कि गुप्त मतदान का सिद्धांत (Principle of Secret Ballot) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की आधारशिला है.
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, किसी भी लोकतंत्र में गुप्त मतदान प्रणाली यह सुनिश्चित करने में मदद करती है कि मतदाता का चुनाव पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो.
पृष्ठभूमि
- सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के एक निर्णय के बाद आया है, जिसमें 25 अक्तूबर, 2018 को प्रयागराज ज़िला पंचायत की बैठक के निर्णय को रद्द कर दिया गया था, जिसमें पंचायत अध्यक्ष के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित किया गया था.
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय के अनुसार, अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध हुए मतदान के दौरान निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया गया जिससे मतदान की गोपनीयता भंग हुई थी.
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपनी जाँच में पाया था कि पंचायत के कुछ सदस्यों ने मतदान की गोपनीयता के नियम का उल्लंघन किया था.
मतदान की गोपनीयता सर्वोच्च न्यायालय का व्यक्तव्य
- ‘मतपत्र की गोपनीयता’ स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की आधारशिला है. मतदाता की पसंद स्वतंत्र होनी चाहिए और लोकतंत्र में गुप्त मतदान प्रणाली मतदाता की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करती है.
- वोटर के मतपत्र की गोपनीयता के अधिकार की रक्षा करना क़ानून का नियम है.
- मतदाता को अपने मत के बारे में बताने के लिए विवश करना भी, मताधिकार के प्रयोग की स्वतंत्रता का उल्लंघन है.
- मतदान की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण संकेतक है.
- हालांकि, एक मतदाता स्वेच्छा से गैर-प्रकटीकरण (Non-Disclosure) के विशेषाधिकार को त्याग सकता है. ऐसा करने से मतदाता को कोई नहीं रोक सकता है.
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
- मतपत्रों की गोपनीयता का सिद्धांत संवैधानिक लोकतंत्र की एक महत्त्वपूर्ण शर्त है, जो कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के उद्देश्यों की प्राप्ति में काफी लाभदायक है.
- न्यायालय के अनुसार, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 94 मतदाता के पक्ष में एक विशेषाधिकार का प्रावधान करती है.
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के अनुसार ‘मतदान की गोपनीयता’
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of People Act– RPA) की धारा 94 में ‘मतदाता को अपनी पसंद के अनुसार मतदान गोपनीयता के विशेषाधिकार’ का प्रावधान किया गया है.
गुप्त मतदान प्रणाली
- गुप्त मतदान प्रणाली का अभिप्राय मतदान की उस विधि से होता है जो यह सुनिश्चित करती है कि सभी मत गुप्त रूप से डाले जाएँ, ताकि मतदाता किसी अन्य व्यक्ति से प्रभावित न हो और मतदान के समय किसी को भी यह ज्ञात न हो कि विशिष्ट मतदाता ने किसे वोट दिया है.
- सरल शब्दों में कहा जा सकता है कि गुप्त मतदान वह मतदान पद्धति है जिसमें मतदाता की पसंद गोपनीय होती है.
- भारत में गुप्त मतदान की शुरुआत वर्ष 1951 में पेपर बैलेट के साथ हुई थी.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : Madhesis oppose new Nepal rule
संदर्भ
नेपाल की संसद में हाल ही में विवादास्पद नागरिकता संशोधन विधेयक पेश किया गया है. इस कानून के पास होने के बाद नेपाल में विवाह करने वाली दूसरे देश की महिलाओं को नागरिकता के लिए 7 वर्ष तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी.
- विदित हो कि नागरिकता क़ानून 2006 के तहत शादी के तुरंत बाद ही विदेशी महिला को नेपाल की नागरिकता मिल जाती है.
- यह परिवर्तन नेपाल के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों को सर्वाधिक प्रभावित करेगा. नेपाल के मैदानी इलाकों को मधेस क्षेत्र के रूप में जाना जाता है, तथा यहाँ के लोगों की भारत के साथ सीमा पार रिश्तेदारी सामान्य बात है.
प्रस्तावित परिवर्तन
- विधेयक में देश के नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने का प्रस्ताव किया गया है, जिसके अंतर्गत किसी नेपाली नागरिक से विवाहित एक विदेशी महिला को प्राकृतिक नागरिकता (Naturalised Citizenship) के लिए सात साल तक इंतजार करना होगा.
- विधेयक में नेपाली नागरिक से विवाहित विदेशी महिला के लिये प्राकृतिक नागरिकता प्राप्त करने तक सात अधिकार प्रदान करने का प्रावधान किया गया है.
- नागरिकता प्रमाण पत्र के न होने पर भी उन्हें किसी भी व्यवसाय तथा चल और अचल संपत्ति बेचने, कारोबार से लाभ कमाने एवं किसी भी प्रकार की संपत्ति के लेनदेन से वंचित नहीं किया जायेगा.
क्या भारत को बनाया जा रहा है निशाना?
वैसे तो कानून बनने के बाद नया नियम सभी विदेशी महिलाओं पर लागू होगा. मगर भारत और नेपाल के बीच हाल के दिनों में जिस तरीके से रिश्तों में खटास आई है, इसे देखते हुए कई लोगों का मानना है कि यह भारत को निशाना बनाने के लिए किया गया है. भारत-नेपाल में ऐसे कई परिवार हैं जिनकी सीमापार रिश्तेदारी है.
भारत और नेपाल के नागरिकों के बीच शादियां आम बात है. माना जाता है कि सैंकड़ो सालों पहले यहां पर जन्मी जानकी की शादी भारत के अयोध्या के राजकुमार राम से हुई थी.
मेरी राय – मेंस के लिए
पहला तो यह कि इससे महिला के उस मूल अधिकार का उल्लंघन होगा जिसके अनुसार शादी के बाद ही उसे नेपाल की नागरिकता मिल जानी चाहिए. दूसरा यह कि इसका बुरा प्रभाव भारत और नेपाल के लोगों के बीच के रिश्ते पर पड़ेगा. रामायण काल या फिर शायद उससे पहले से दोनों के बीच अंतर-देशीय शादियां होती रही हैं और लोगों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता है जो इससे ख़त्म हो सकता है. यह नेपाल के तराई और सीमावर्ती भारत के लोगों के बीच इस तरह के रिश्तों को एक तरह से ख़त्म करने की कोशिश है और यह हमारे सांस्कृतिक रिश्तों पर भी हमला है. तराई के इलाक़े में रहने वाले लगभग सभी परिवारों के वैवाहिक संबंध भारत के बिहार, उत्तर प्रदेश और दूसरे पड़ोसी राज्यों में रहने वालों से हैं. यह प्रस्ताव अगर क़ानून बन गया तो इसका गहरा असर होगा.
Prelims Vishesh
What is Covifor? :-
- पिछले दिनों भारतीय औषधि महानियंत्रक (DCGI) ने दवा निर्माता कम्पनी हेटरो (Hetero) को COVID-19 के उपचार के लिए विषाणु निरोधी औषधि Remdesivir के अनावरण की अनुमति प्रदान कर दी है.
- विदित हो कि इसके एक दिन पहले Glenmark कम्पनी के द्वारा निर्मित इसी प्रकार की और दवा को भारतीय बाजार में आने की अनुमति मिली थी, जिसका नाम Fabiflu है.
Golden Langurs :-
- पश्चिमी असम और पास में स्थित भूटान की काली पहाड़ियों के सदाहरित और मिश्र पर्णपाती जंगल में बसने वाले सुनहले लंगूरों के बारे में यह पता चला है कि नर लंगूर गर्भवती लंगूर के पेट पर आघात करके अजात शिशु को मार डालते हैं. यही नहीं जब वह जन्म जाता है और दूध पीता हुआ होता है तो उस समय भी नर लंगूर बच्चे को मार डालते हैं. यह तब होता है जब मादा लंगूर के जीवन में एक नया नर लंगूर आता है.
- IUCN की लाल सूची में सुनहला लंगूर “संकटग्रस्त” (endangered) प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध है.
- भूटान में 2009 की गणना के बाद ऐसे लंगूरों की संख्या में 62% गिरावट देखी गई है.
International Yoga Day :-
- 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया.
- यह दिवस जून 21, 2015 से संयुक्त राष्ट्र के अनुमोदन से मनाया जाना आरम्भ हुआ.
- इसका मुख्य लक्ष्य पूरे विश्व में स्वस्थ रहने की महत्ता के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना है.
- इस वर्ष की थीम है – “स्वास्थ्य के लिए योग – घर पर योग”/ “Yoga for Health – Yoga at Home”.
Swabhiman Anchal :-
- ओडिशा के मलकानगिरी जिले का एक अंश माववादियों का गढ़ रहा है क्योंकि यह तीन ओर से पानी और एक ओर से दुर्गम धरातल से घिरा हुआ है.
- अब स्थिति बदल चुकी है और इस क्षेत्र का नाम स्वाभिमान अंचल रख दिया गया है. वर्तमान में ओडिशा की पुलिस वहां की सुरक्षा को सुदृढ़ करने में लगी हुई है.
UNICEF Kid Power :-
- अमेरिका के UNICEF ने UNICEF Kid Power नामक एक कार्यक्रम बनाया है जिसमें बच्चों के लिए योग के 13 आसन सुझाए गये हैं.
- इस कार्यक्रम में बच्चों को ट्रैकर बैंड दिए गये हैं जो स्मार्ट फ़ोन ऐप से जुड़ा हुआ होता है. यह ट्रैकर यह बताता है कि बच्चे ने कितने कदम चले हैं और उनको कितने अवार्ड मिले हैं. इन अवार्ड पॉइंटों के आधार पर UNICEF अत्यंत कुपोषित बच्चों को विश्व-भर में उपचारात्मक खाद्य पदार्थ के पैकेट मुहैया करा रहा है.
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