Sansar Daily Current Affairs, 25 January 2021
GS Paper 1 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Women related issues. Welfare schemes for the protection of vulnerable sections of the society.
Topic : NATIONAL GIRL CHILD DAY (NGCD)
संदर्भ
गिरते हुए बाल लिंग अनुपात (Child Sex Ratio – CSR) के विषय में जागरूकता उत्पन्न करने तथा बालिका के पक्ष में सकारात्मक वातावरण सृजित करने के लिए 24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस (National Girl Child Day – NGCD) मनाया गया. ज्ञातव्य है कि यह दिवस सबसे पहले 2008 में मनाया गया था. इसी अवसर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ (BBBP) योजना की वर्षगाँठ भी मनाई गई.
उद्देश्य
- समाज में बालिकाओं के प्रति चेतना जाग्रत करना.
- बालिकाओं के लिए नए अवसरों का सृजन करना.
- बेटियों के प्रति सभी असमानताओं को हटाना.
- देश में बेटियों को सभी मानवाधिकार, आदर एवं मान मिलना सुनिश्चित करना.
- लैंगिक भेदभाव को दूर करने के लिए काम करना और लोगों को इस विषय में शिक्षित करना.
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP)
- बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना (BBBP) जनवरी 2015 में आरम्भ की गई थी.
- इस योजना में केंद्र सरकार के कार्यान्वयन में तीन मंत्रालय सहयोग (tri-ministerial effort) करते हैं. ये मंत्रालय हैं – महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय एवं मानव संसाधन विकास मंत्रालय.
- इस योजना का उद्देश्य लैंगिक समानता तथा लड़कियों की पढ़ाई के महत्त्व को बढ़ावा देना है.
- योजना का लक्ष्य बाल लिंग अनुपात में सुधार लाना है. इसके लिए सरकार की ओर से कई क्षेत्रों में सुधारात्मक प्रयास किये जाएँगे, जैसे – लोगों को यह पता लाने से रोकना कि गर्भस्त शिशु लड़की है या लड़का, बच्चियों की शिक्षा को बढ़ावा देना तथा उनको हर प्रकार से सशक्त करना.
योजना की महत्ता और आवश्यकता
1961 से भारत में लगातार बाल लिंग अनुपात (child sex ratio) गिरता जा रहा है. 1991 में यह अनुपात 945 था जो घटकर 2001 में 927 हो गया और आगे चल कर 2011 में 918 हो गया. यह गिरावट खतरनाक है. लिंग अनुपात की इस गिरावट के कई मूलभूत कारण हैं, जैसे – समाज में लड़कियों के प्रति भेदभाव की परम्परा, लिंग के निर्धारण के लिए उपकरणों का सरलता से उपलब्ध होना, उनका सस्ता होना और उनका दुरूपयोग किया जाना.
बाल लिंग अनुपात
बाल लिंग अनुपात (Child Sex Ratio – CSR) 0 से 6 वर्ष के बच्चों में प्रत्येक एक हजार लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या को कहते हैं. इसलिए इस अनुपात में गिरावट को स्त्रियों की अशक्तता का एक बहुत बड़ा संकेत माना जाता है. यह अनुपात इस सच्चाई को भी प्रतिबिम्बित करता है कि लिंग निर्णय के द्वारा गर्भ में ही बच्चियों के साथ भेद-भाव होता है और उनके जन्म के उपरान्त भी वे भेद-भाव की शिकार होती हैं.
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
जया जेटली टास्क फोर्स (कार्य दल)
सरकार ने मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) को कम करने के उद्देश्य से मातृत्व की उम्र की समीक्षा के लिए जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यीय टास्क फोर्स (कार्य दल) का गठन किया गया था.
इस कार्यदल के विचारार्थ विषय निम्नलिखित थे :-
- विवाह और मातृत्व की आयु के इन सभी के साथ सह-संबंध पर गौर करना
- माँ का स्वास्थ्य, चिकित्सीय सेहत एवं पोषण की स्थिति और गर्भावस्था, जन्म एवं उसके बाद नवजात शिशु/ शिशु/ बच्चा
- प्रमुख मापदंड जैसे कि शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate – IMR), मातृ मृत्यु दर (MMR), कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate – TFR), जन्म के समय लिंग अनुपात (Sex Ratio at Birth – SRB), बाल लिंग अनुपात (Child Sex Ratio – CSR), इत्यादि.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Appointment to various Constitutional posts, powers, functions and responsibilities of various Constitutional Bodies.
Topic : Rajiv case convict
संदर्भ
तमिलनाडु में राजीव गांधी की हत्या में शामिल 7 लोगों की सजा माफ करने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है. इस याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल अपने माफी के अधिकारों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं. राज्य सरकार ने दोषियों की माफी का प्रस्ताव कैबिनेट से पास कर दिया है परन्तु राज्यपाल माफी देने के लिए राजी ही नहीं हैं. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161 राज्यपाल को सजा माफी की शक्ति देता है.
अनुच्छेद 161 क्या है?
- अनुच्छेद 161 में राज्यपाल को प्राप्त क्षमादान आदि करने की शक्ति का वर्णन है. वह कुछ मामलों में दंड को लंबित, विलोपित अथवा कम-बेसी कर सकता है.
- अनुच्छेद 161 में संविधान यह नहीं बताता है कि राज्यपाल क्षमादान के मामले में कितने समय में निर्णय ले सकता है. इसका अभिप्राय यह हुआ कि वह चाहे तो मंत्रिमंडल द्वारा प्रस्तावित क्षमादान के किसी मामले को अनंतकाल तक के लिए टाल सकता है.
- क्षमादान की शक्ति के प्रयोग करते समय केंद्र की सहमति आवश्यकता नहीं है, इसके लिए राज्य मंत्रिमंडल का परामर्श ही पर्याप्त होता है.
राष्ट्रपति और राज्यपाल की क्षमादान की शक्ति में अंतर
- राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति का वर्णन अनुच्छेद 72 में है जबकि इस विषय में शक्ति का वर्णन अनुच्छेद 161 में है.
- राष्ट्रपति को यह शक्ति है कि कोर्ट मार्शल के द्वारा दिए गये दंड को भी वह क्षमता कर सकता है जबकि राज्यपाल ऐसा नहीं कर सकता है.
- राष्ट्रपति मृत्युदंड को भी क्षमा कर सकता है परन्तु राज्यपाल को मृत्युदंड से सम्बंधित मामलों पर कोई अधिकार नहीं है.
क्षमादान शक्ति का महत्त्व
कार्यपालिका की क्षमादान शक्ति काफी महत्त्वपूर्ण होती है क्योंकि यह न्यायपालिका द्वारा की गई त्रुटियों में सुधार करती है. इसके द्वारा अभियुक्त के अपराध या निर्दोषता पर विचार किए बगैर उसे दोषसिद्धि किए जाने संबंधी प्रभाव को समाप्त किया जाता है.
- क्षमादान शक्ति, न्यायपालिका की त्रुटि अथवा संदेहात्मक दोषसिद्धि के मामले में किसी निर्दोष व्यक्ति को दंडित होने से बचाने में काफी सहायक होती है.
- क्षमादान शक्ति का उद्देश्य न्यायिक त्रुटियों को ठीक करना है. क्योंकि कोई भी न्यायिक प्रशासन संबंधी मानव प्रणाली खामियों से मुक्त नहीं हो सकती है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Urbanization, their problems and their remedies
Topic : Faecal Sludge and Septage Management – FSSM
संदर्भ
नीति आयोग ने शहरी क्षेत्रों में मल-युक्त गाद एवं सेप्टेज प्रबंधन (Faecal Sludge and Septage Management – FSSM) पर रिपोर्ट निर्गत की. यह दस्तावेज़ शहरी भारत में मल-युक्त गाद एवं सेप्टेज प्रबंधन (FSSM) से संबद्ध कई प्रमुख प्रथाओं को प्रस्तुत करता है.
मुख्य निष्कर्ष
- शहरी भारत में 66 लाख घरेलू शौचालयों और 6 लाख से अधिक सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालयों के निर्माण के साथ शौचालयों तक सार्वभौमिक पहुंच की स्थिति प्राप्त की गई है.
- खुले में शौच मुक्त (Open-Defection-Free: ODF) के लक्ष्य को प्राप्त करने के उपरांत, भारत अब ODF+ और ODF++ राष्ट्र बनने की ओर अग्रसर हो गया है.
- शौचालयों तक सार्वभौमिक पहुँच के बावजूद, अनुपचारित अपशिष्ट जल का एक बड़ा हिस्सा जल निकायों या भूमि पर प्रवाहित कर दिया जाता है.
- लगभग 60% शहरी परिवार ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों (OSS) पर निर्भर हैं.
- शहरी स्थानीय निकायों की सीमित क्षमता और संसाधनों के परिणामस्वरूप सेप्टिक टैंक तथा गड्डों के रख-रखाव एवं सफाई का अपूर्ण विनियमन हुआ है.
FSSM
- एक कम लागत वाला और आसानी से मापनीय स्वच्छता समाधान (scalable sanitation solution) है. यह ऑनसाइट स्वच्छता प्रणालियों (OSS), जैसे गड्ढा युक्त शौचालय, सेप्टिक टैंक आदि से अपशिष्ट के सुरक्षित संग्रह, वहन, उपचार और निपटान/ पुनः: उपयोग पर केंद्रित है.
- FSSM एक समयबद्ध रीति में सभी के लिए पर्याप्त और समावेशी स्वच्छता के सतत विकास लक्ष्य (SDG) 6.2 को प्राप्त करने हेतु एक साधन प्रस्तुत करता है.
- शहरी विकास मंत्रालय ने भारत में FSSM के देशव्यापी कार्यान्वयन की सुविधा के लिए FSSM पर राष्ट्रीय नीति आरंभ की है.
- राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने भी FSSM की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
ODF के तहत मानदंड
- मार्च 2016 में जारी किये गए मूल ODF प्रोटोकॉल में कहा गया है कि “एक शहर / वार्ड को ODF शहर / वार्ड के रूप में अधिसूचित किया जाता है, यदि दिन के किसी भी समय, एक भी व्यक्ति खुले में शौच नहीं करता हुआ नहीं पाया जाता है.”
- ODF + और ODF++ को अगस्त 2018 में प्रारम्भ किया गया था.
ODF+ के अंतर्गत मानदंड
- ODF + प्रोटोकॉल में कहा गया है – “एक शहर, वार्ड या कार्यक्षेत्र को ODF+ घोषित किया जा सकता है, यदि किसी दिन किसी भी व्यक्ति को खुले में शौच और/या पेशाब करते हुए नहीं पाया जाता है और सभी सामुदायिक तथा सार्वजनिक शौचालय कार्यात्मक अवस्था में एवं सुव्यवस्थित हैं.”
- उन शहर और कस्बों को ODF+ के अंतर्गत रखा जाता है, जो पहले ही आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय (Ministry of Housing and Urban Affairs- MoHUA) द्वारा निर्धारित ODF प्रोटोकॉल के अनुसार ODF स्थिति प्राप्त कर चुके हैं और शौचालय सुविधाओं के उचित रख-रखाव के लिये ODF स्थिति की निरंतरता सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहे हैं.
ODF++ के अंतर्गत मानदंड
- ODF ++ प्रोटोकॉल इस शर्त को जोड़ता है कि “मल कीचड़/सेप्टेज (Faecal sludge/Septage) और नालियों का सुरक्षित रूप से प्रबंधन और उपचार किया जाए, जिसमें किसी प्रकार के अनुपचारित कीचड़/सेप्टेज (Sludge/Septage) और नालियों की निकासी जल निकायों या खुले क्षेत्रों के नालों में नहीं होती है.”
- ODF ++ में सभी के लिये सुरक्षित स्थायी स्वच्छता प्राप्त करने हेतु ODF+ के प्रोटोकॉल के अलावा सभी संग्रहणीय मल और सीवेज के सुरक्षित संग्रहण, परिवहन, उपचार और निपटान शामिल हैं. यह शहरों में स्वच्छता की निरंतर स्थिरता के लिये प्रशंसनीय कदम है.
मेरी राय – मेंस के लिए
यदि देखा जाए तो कई ऐसे बीमारियाँ हैं जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध साफ-सफाई की आदतों से है. मलेरिया, डेंगू, डायरिया और टीबी जैसी बीमारियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. यह सर्वविदित है कि साफ-सफाई मानव स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है. जिन बीमारियों के मामले ज्यादातर सामने आते हैं और जिनसे ज्यादा मौतें होती हैं, अगर उनके आंकड़ों पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि शरीर की तथा परिवेश की वह अचूक मांग है जिसके माध्यम से न सिर्फ स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है बल्कि बीमारियों से लड़ने पर देश भर में हो रहा अरबों का वार्षी खर्च भी बचाया जा सकता है. स्वस्थ शरीर में निवसित स्वस्थ मस्तिष्क की उत्पादकता, बढ़ने से देश की उत्पादकता जो बढ़ेगी, सो अलग. इतना ही नहीं, शरीर के स्वस्थ रहने के लिए हर स्तर पर स्वच्छता आवश्यक है और इस तथ्य को हमारे महापुरुषों ने भी हमेशा स्वीकारा है.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Security challenges and their management in border areas; linkages of organized crime with terrorism.
Topic : Bodoland Territorial Region -BTR
संदर्भ
केन्द्रीय गृह मंत्री श्री अमित शाह ऐतिहासिक बोडोलैंड भूभागीय क्षेत्र (Bodoland Territorial Region -BTR) समझौते की पहली वर्षगाँठ पर असम के कोकराझार में आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में शामिल हुए और समझौते के लिए प्रति केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया.
बोडोलैंड टेरीटोरियल रीजन के बारे में
- इसका पहले नाम था – बोडोलैंड टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक्ट (Bodoland Territorial Area Districts- BTAD).
- बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल की मौजूदा 40 सीटों को बढ़ाकर 60 कर दिया गया था और कई नए जिलों का गठन किए जाने का प्रावधान किया था.
- केंद्र सरकार ने नए समझौते के तहत अगले तीन वर्षों में बोडोलैंड के विकास के लिए 1,500 करोड़ रुपये के एक पैकेज को स्वीकृति दी थी. इसके अलावा बोडो आंदोलन के दौरान मारे गए लोगों के परिवार को 5 लाख रुपए प्रदान करने का भी प्रावधान किया गया था.
- इस समझौते में, ‘गैर-जघन्य अपराधों’ (Non-Heinous Crimes) के लिये नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड समूहों के सदस्यों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले असम सरकार द्वारा वापस लिए जाने और जघन्य अपराध संबंधी मामलों की समीक्षा करने का प्रावधान था
- बोडो भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत भारत की एक महत्त्वपूर्ण जनजाति है और यह जनजाति असम का सबसे बड़ा जनजाति समुदाय भी है
- राज्य की कुल जनसंख्या में बोड़ो जनजाति का प्रतिशत लगभग 5-6 प्रतिशत है.
- लंबे समय तक असम के बड़े हिस्से पर बोडो जनजातियों का नियंत्रण रहा है. असम के चार जिलों कोकराझार, बाक्सा, उदलगुड़ी और चिरांग को मिलाकर बोडो टेरिटोरियल एरिया डिस्ट्रिक का गठन किया गया है. इन जिलों में कई अन्य जातीय समूह भी रहते हैं.
- उल्लेखनीय है कि बोडो समुदाय ने वर्ष 1966-67 में राजनीतिक समूह असम मैदानी जनजाति परिषद (Plans Tribals Council of Assam-PTCA) के बैनर तले अलग बोडोलैंड राज्य बनाए जाने की मांग की. इसके अलावा बोडो गुटों की मांग थी कि उनकी संस्कृति और पहचान की रक्षा की जाए.
स्वायत्त जिला परिषद् क्या हैं?
संविधान की छठी अनुसूची के अनुसार, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्र हैं जो तकनीकी रूप से अनुसूचित क्षेत्रों से अलग होते हैं. यद्यपि ये क्षेत्र राज्य के कार्यकारी अधिकार क्षेत्र में आते हैं, परन्तु कतिपय विधायी एवं न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करने के लिए इनमें जिला परिषदों एवं क्षेत्रीय परिषदों का प्रावधान किया गया है. प्रत्येक जिला एक स्वायत्त जिला होता है और राज्यपाल अधिसूचना निर्गत कर के इन जनजातीय क्षेत्रों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकता है अथवा उन्हें विभाजित कर सकता है.
अपनी अधिसूचना के माध्यम से राज्यपाल निम्नलिखित काम कर सकता है –
- कोई भी क्षेत्र सम्मिलित कर सकता है
- कोई भी क्षेत्र को भारत कर सकता है
- नया स्वायत्त जिला बना सकता है
- स्वायत्त जिले का क्षेत्र बढ़ा सकता है
- स्वायत्त जिले का क्षेत्र घटा सकता है
- स्वायत्त जिले का नाम बदल सकता है
- किसी स्वायत्त जिले की सीमाओं को परिभाषित कर सकता है
जिला परिषदों एवं क्षेत्रीय परिषदों की बनावट
- जिला परिषद् में अधिक से अधिक 30 सदस्य होंगे जिनमें अधिकतम चार व्यक्ति को राज्यपाल नामित करेगा और शेष वयस्क मताधिकार के आधार पर चुने जाएँगे.
- स्वायत्त क्षेत्र के रूप में सृजित प्रत्येक क्षेत्र के लिए एक अलग क्षेत्रीय परिषद् होगी.
क्या है बोड़ोलैंड का मुद्दा?
- 1960 के दशक से ही बोड़ो अपने लिये अलग राज्य की मांग करते आए हैं.
- असम में इनकी ज़मीन पर अन्य समुदायों का आकर बसना और ज़मीन पर बढ़ता दबाव ही बोड़ो असंतोष के कारण हैं.
- अलग राज्य के लिये बोड़ो आंदोलन 1980 के दशक के बाद हिंसक हो गया और तीन धड़ों में बंट गया. पहले का नेतृत्व नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोड़ोलैंड ने किया, जो अपने लिये अलग राज्य चाहता था. दूसरा समूह बोड़ोलैंड टाइगर्स फोर्स है, जिसने अधिक स्वायत्तता की मांग की. तीसरा धड़ ऑल बोड़ो स्टूडेंट्स यूनियन है, जिसने मध्यम मार्ग की तलाश करते हुए राजनीतिक समाधान की मांग की.
- बोड़ो अपने क्षेत्र की राजनीति, अर्थव्यवस्था और प्राकृतिक संसाधन पर जो वर्चस्व चाहते थे, वह उन्हें 2003 में मिला. तब बोड़ो समूहों ने हिंसा का रास्ता छोड़ मुख्यधारा की राजनीति में आने पर सहमति जताई.
- इसी का नतीजा था कि बोड़ो समझौते पर 2003 में हस्ताक्षर किये गए और भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के अंतर्गत बोड़ोलैंड क्षेत्रीय परिषद का गठन हुआ.
NDFB क्या है?
- एनडीएफबी अर्थात् नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोड़ोलैंड एक ऐसा संगठन है जिसका उद्देश्य असम से बोड़ो बहुल इलाके को अलग कर एक स्वतंत्र और संप्रभु बोड़ोलैंड देश की स्थापना है. भारत सरकार ने इस ग्रुप को आतंकी गुट की श्रेणी में डाल रखा है.
- एनडीएफबी में दो गुट हैं, पहला आईके सांग्बिजित के नेतृत्व में एनडीएफबी (एस). जो भारत सरकार से वार्ता के पक्ष में है. वहीं, दूसरा धड़ा एनडीएफबी (आर-बी) रंजन डायमरी के नेतृत्व में जो हमेशा से संघर्ष का ही रास्ता अपनाता रहा है. हालांकि पहले दोनों धड़े एक ही थे, परन्तु वर्ष 2012 के बाद से दोनों धड़े अलग हुए हैं. अधिकांश हमलों के लिए एनडीएफबी (आर-बी) ग्रुप ही उत्तरदायी है.
- लगभग 28 साल पहले 1986 में बना ये संगठन सामूहिक नरसंहार के लिए कुख्यात है और ऐसे हमलों में वो अब तक हजार से भी ज्यादा लोगों की जान ले चुका है.
- इस ग्रुप में फिलहाल 1200 के करीब आतंकी हैं, जो अक्सर सुरक्षा बलों और गैर बोड़ो समुदाय पर हमला करते रहते हैं. एक समय ये संख्या 3500 से ज्यादा थी, लेकिन भारत और भूटानी सुरक्षा बलों के अभियानों और आंतरिक फूट के चलते इसकी ताकत कम हो रही है. जिसकी बौखलाहट में इस संगठन ने अपने हमलों को तेज कर दिया है.
बोड़ो कौन हैं?
- बोड़ो पूर्वोत्तर भारत के असम राज्य के मूल निवासी हैं और भारत की एक महत्त्वपूर्ण जनजाति हैं. बोड़ो समुदाय स्वयं एक बृहत बोड़ो-कछारी समुदाय का हिस्सा माने जाते हैं.
- सन् 2011 की भारतीय राष्ट्रीय जनगणना में लगभग 20 लाख भारतीयों ने स्वयं को बोड़ो बताया था जिसके अनुसार वे असम की कुल जनसंख्या को प्राप्त करने हेतु एक साधन के 5.5% हैं. भारतीय संविधान की छठी धारा के अंतर्गत वे एक अनुसूचित जनजाति हैं.
- बोड़ो लोगों की मातृभाषा भी बोड़ो भाषा कहलाती है, जो एक ब्रह्मपुत्री भाषा है.
Prelims Vishesh
Odisha reopens world’s largest white crocodile park after annual census :-
- हाल ही में ओडिशा के सफेद मगरमच्छ पार्क (भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान) को फिर से खोल दिया गया है.
- वार्षिक जनगणना (annual census) के बाद भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान को पर्यटकों के लिए फिर से खोल दिया गया है.
- भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान (Bhitarkanika National Park) ओडिशा के केंद्रपाड़ा जिले में अवस्थित है। यहाँ सफेद मगरमच्छ(white crocodile) काफी अधिक संख्या में पाये जाते हैं। इसलिए इस राष्ट्रीय उद्यान को सफेद मगरमच्छ पार्क (white crocodile park) भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि एश्चुअरी मगरमच्छ को ही सफेद मगरमच्छ कहा जाता है.
- यह दुनिया का सबसे बड़ा सफेद मगरमच्छ पार्क है.
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