Sansar Daily Current Affairs, 25 March 2020
GS Paper 2 Source: PIB
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Members of Parliament Local Area Development Scheme (MPLADS)
संदर्भ
भारत में कोरोना वायरस (COVID19) से लड़ने के लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं. इसी बीच मोदी सरकार की तरफ से एक महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया गया है. सांसद अब अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलने वाली निधि (MPLADS) का इस्तेमाल कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के मद्देनजर फेस मास्क, टेस्टिंग किट और अन्य सुविधाओं के लिए कर सकेंगे.
पृष्ठभूमि
सांसद निधि का प्रयोग अभी तक मार्ग बनवाने और दूसरे आधारभूत संरचनाओं के निर्माण जैसे कार्यों के लिए किया जाता रहा है. लेकिन देश पर आए कोरोना वायरस के संकट को देखते हुए सांसद निधि के प्रयोग को लेकर यह निर्णय लिया गया है. देश के सभी सांसदों को हर साल सांसद निधि के रूप में पांच करोड़ रुपये की राशि आवंटित होती है.
MPLAD योजना क्या है?
- यह योजना 1993 के दिसम्बर में आरम्भ की गई थी. इसका उद्देश्य सांसदों की ओर से विकासात्मक कार्यों के लिए अनुशंसा प्राप्त कर टिकाऊ सामुदायिक संपदा का सृजन एवं स्थानीय आवश्यकताओं के आधार पर बुनियादी सुविधाएँ (सामुदायिक संरचना निर्माण सहित) प्रदान करना था.
- इस योजना के तहत अग्रलिखित कार्यों के लिए राशि खर्च की जा सकती है – पेयजल, सार्वजनिक स्वास्थ्य, शिक्षा, स्वच्छता, सड़क आदि. यह राशि सांसद अपने ही चुनाव क्षेत्र के लिए खर्च कर सकता है.
- MPLAD के लिए निर्गत राशि सीधे जिला अधिकारियों को अनुदान के रूप में निर्गत की जाती है. यह राशि वित्त वर्ष के साथ समाप्त (non-lapsablee) नहीं होती है, अपितु बाद के वर्षों में भी इसका उपयोग हो सकता है.
- इस योजना में सांसदों की भूमिका एक अनुशंसक की होती है. वे अपनेसंसदीय क्षेत्र के लिए ही कार्य करा सकते हैं, परन्तु राज्य सभा के सांसद को यह अधिकार है कि वे अपने पूरे राज्य में कहीं भी काम करने के लिए अनुशंसा कर सकते हैं. सांसद अपनी पसंद के कार्यों की अनुशंसा जिला अधिकारियों को करते हैं और जिला अधिकारी राज्य सरकार द्वारा विहित प्रक्रिया के अनुसार उन कार्यों का क्रियान्वयन करते हैं. जिला अधिकारी ही यह देखते हैं कि प्रस्तावित कार्य करने योग्य हैं या नहीं और वे ही कार्यान्वयन करने वाली एजेंसियों का चयन करते हैं. कौन काम पहले होगा, उसका निर्धारण भी यही करते हैं. हो रहे काम का निरीक्षण और जमीनी स्तर पर उसके क्रियान्वयन की निगरानी भी उन्हीं का काम है.
चुनौतियाँ
MPLAD योजना के क्रियान्वयन में जो बड़ी समस्या आती है वह यह है कि मंत्रालय तक जिला स्तर से आवश्यक दस्तावेज समय पर नहीं पहुँचते हैं, जैसे – अंकेक्षण प्रमाण पत्र (Audit Certificate), उपयोग प्रमाण पत्र (Utilization Certificate), अनंतिम उपयोग प्रमाण पत्र (Provisional Utilization Certificate), मासिक प्रगति प्रतिवेदन (Monthly Progress Report), बैंक विवरण एवं ऑनलाइन मासिक प्रगति प्रतिवेदन (Bank Statement and Online Monthly Progress Report) आदि.
लंबित व्यय की स्थिति
सांख्यिकी एवं योजना कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSP) के एक प्रतिवेदन के अनुसार फरवरी, 2018 में जो राशि MPLADS के अंदर आवंटित तो हुई थी पर खर्च नहीं हो पाई थी, वह थी ₹4,773.13 करोड़. इसके अतिरिक्त ₹ 2.5 करोड़ की 2,920 किश्तें निर्गत ही नहीं हुई थीं. फलस्वरूप कुल मिलाकर ₹ 12,073.13 करोड़ का बैकलॉग था.
कानूनी ढाँचे का संभावित स्वरूप
- नए ढाँचे में पूरी पारदर्शिता अपनाई जानी चाहिए. सभी सांसद और दल संसद और जनता को बताएँ कि उन्हें अपने चुनाव क्षेत्र से कितने आवेदन मिले थे, उनमें कितने पर अनुशंसा हुई, कितने काम अस्वीकृत कर दिए गये (कारण साहित), कार्य की प्रगति क्या है और किस-किस को योजना का लाभ मिला.
- इस बात पर रोक लगे कि सांसद MPLADs के कोष को अपने निजी कामों में न लगाएँ अथवा कोष से अपने सम्बन्धियों अथवा निजी न्यासों में खर्च न करें. इस विषय में यदि चूक होती है तो उसके लिए उन्हें उत्तरदायी बनाया जाए.
- जिला प्रशासन को भी नियमित रूप से सांख्यिकी एवं योजना कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSP) और जनसामान्य को योजना के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध जानकारी करानी चाहिए. इस जानकारी में किये गये कामों का सांसदवार (MP-wise) और वर्षवार (work-wise) ब्यौरा होना चाहिए.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Parliament and State Legislatures – structure, functioning, conduct of business, powers & privileges and issues arising out of these.
Topic : Parliamentary standing committees
संदर्भ
COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए किये गये लॉकडाउन के चलते संसदीय स्थायी समितियों की सभी बैठकों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया गया.
संसदीय स्थायी समितियाँ क्यों आवश्यक हैं?
- संसदीय समितियाँ वे मंच हैं जहाँ किसी प्रस्तावित कानून के ऊपर विस्तृत विचार-विमर्श होता है.
- ऐसी समितियों में विभिन्न राजनीतिक दलों के सांसदों की संख्या के अनुपात में सांसद लिए जाते हैं.
- समितियों की बैठक बंद कमरे में होती है और सदस्यों पर दलीय व्हिप नहीं चलता है.
- संसदीय समितियों में सदनों की तुलना में अधिक व्यापक ढंग से विचार होता है और सदस्य बिना झिझक के अपनी बात रखते हैं.
- संसदीय समितियों से सांसदों को कार्यकारी प्रक्रिया को निकट से समझने का अवसर मिलता है.
स्थाई समितियों के प्रकार
- अधिकांश संसदीय समितियाँ स्थायी होती हैं क्योंकि ये अनवरत् अस्तित्व में रहती हैं और सामान्यतः प्रत्येक वर्ष पुनर्गठित होती हैं.
- कुछ समितियाँ किसी विशेष विधेयक पर विचार करने के लिए गठित होती हैं. अतः इन्हें “सिलेक्ट समितियाँ” कहा जाता है. सम्बंधित विधेयक के पारित होते ही यह समिति समाप्त हो जाती है.
संवैधानिक स्रोत
संसदीय समितियों की शक्ति का स्रोत दो धाराएँ हैं –
- पहली धारा 105 (Article 105) है जो सांसदों के विशेषाधिकार से सम्बंधित है.
- दूसरी धारा 118 (Article 118) है जिसमें संसद की प्रक्रिया और आचरण के विषय में संसद को नियम बनाने के लिए प्राधिकृत किया गया है.
भारतीय संसद की प्रमुख स्थायी समितियाँ निम्नलिखित हैं –
याचिका समिति (The Committee on Petitions)
इस समिति में कम से कम 15 सदस्य होते हैं. लोकसभा अध्यक्ष समिति के सदस्यों का नाम-निर्देशन करता है और समिति का कार्यकाल एक वर्ष है. जनता द्वारा सदन के सम्मुख सामान्य हित से सम्बंधित जो याचिकाएँ प्रस्तुत की जाती हैं यह समिति उन याचिकाओं पर विचार कर सदन के सामने रिपोर्ट देती है.
लोक लेखा समिति (The Public Accounts Committee)
इस समिति का कार्य सरकार के सभी वित्तीय लेन-देन सम्बन्धी विषयों की जांच करना है. समिति में 22 सदस्य होते हैं, जिनमें 15 सदस्य लोकसभा से और 7 सदस्य राज्यसभा से होते हैं. समिति का कार्यकाल 1 वर्ष है और कोई मंत्री इस समिति का सदस्य नहीं होता है. इस समिति की सिफारिशों ने देश के वित्तीय प्रशासन को सुधारने में बहुत अधिक योगदान किया है.
प्राक्कलन समिति (Estimates Committee)
प्राक्कलन समिति कार्य भी शासन पर वित्तीय नियंत्रण करना है. इस समिति का कार्य विभिन्न विभागों के वित्तीय अनुमानों की जांच करना है और यह फिजूलखर्ची रोकने (to stop wasteful expenditure) के लिए सुझाव देती है. इसकी नियुक्ति प्रति वर्ष प्रथम सत्र के प्रारम्भ में की जाती है. समिति में लोकसभा के 30 सदस्य होते हैं और इसका कार्यकाल 1 वर्ष होता है. कोई मंत्री इसका सदस्य नहीं होता है.
विशेषाधिकार समिति (The Committee of Privileges)
इस समिति का कार्य सदन और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों की रक्षा करना है. इस उद्देश्य से यह समिति विशेषाधिकारों के उल्लंघन के मामलों की जांच करती है. इसमें 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें सदन का अध्यक्ष मनोनीत करता है.
सरकारी आश्वासन समिति (The Committee on Govt. Assurances)
शासन और मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा समय-समय पर जो आश्वासन दिए जाते हैं, इन आश्वासनों को किस सीमा तक पूरा किया जाता है, इस बात की जाँच यह समिति करती है. इस समिति का कार्य सदन की प्रक्रिया तथा उसके कार्य-संचालन के नियमों पर विचार करना तथा आवश्यकतानुसार उनमें संशोधन की सिफारिश करना है.
सदन में अनुपस्थित रहने वाले सदस्यों सम्बन्धी समिति (The Committee on absence of members from sitting of the House)
यदि कोई सदस्य सदन की बैठक से 60 या उससे अधिक दिनों तक सदन की अनुमति के बिना अनुपस्थित रहता है, तो उसका मामला समिति के पास विचार के लिए भेजा जाता है. समिति को अधिकार है की सम्बंधित सदस्य की सदस्यता समाप्त कर दे अथवा अनुपस्थिति माफ़ कर दे. इस समिति में 15 सदस्य होते हैं, जिन्हें अध्यक्ष एक वर्ष के लिए मनोनीत करता है.
Useful Link to download
संसद समिति के बारे में Complete PDF डाउनलोड करने लिए क्लिक करें और कबाड़ से जुगाड़ सेक्शन देखें > https://www.sansarlochan.in/download
GS Paper 3 Source: PIB
UPSC Syllabus : Government Budget
Topic : States asked to use cess fund to help construction workers
संदर्भ
भारत सरकार के श्रम मंत्रालय (Ministry of Labour) ने सभी राज्यों को COVID -19 के मद्देनज़र निर्माण क्षेत्र से संबंधित श्रमिकों के कल्याण के लिये ‘निर्माण उपकर निधि’ (Construction Cess Fund) का उपयोग करने की एडवाइज़री जारी की.
पृष्ठभूमि
कोरोना वायरस संकट (Covid-19) से निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) में दिल्ली, यूपी और हरियाणा जैसी कुछ राज्य सरकारों ने दिहाड़ी और कंस्ट्रक्शन श्रमिकों को उनके जीवनयापन के लिए जो आर्थिक मदद देने का एलान किया है. दरअसल, वह उन्हीं श्रमिकों के हक का पैसा है. बिल्डिंग और दूसरे कंस्ट्रक्शन वर्कर्स के लिए काटे गए सेस का 52,000 करोड़ रुपया अनयूज्ड पड़ा हुआ है. जिसके खर्च न होने पर 2018 में सुप्रीम कोर्ट भी नाराजगी जाहिर कर चुका है.
किस कानून के तहत पैसा एकत्र किया जाता है?
- बिल्डिंग और दूसरे कंस्ट्रक्शन वर्कर सबसे ज्यादा असुरक्षित होते हैं. उनका काम भी अस्थायी और काम के घंटे काफी लंबे होते हैं. इसलिए उनके हितों को सुरक्षित रखने के लिए भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक उपकर अधिनियम, 1996 (Building and Other Construction Workers Cess Act, 1996) बनाया गया था. इसके तहत सभी राज्यों में बीओसीडब्ल्यू वेलफेयर बोर्ड बनाए गए हैं. ये सेस इसी पर वसूला जाता है.
- इस अधिनियम में भवन तथा अन्य निर्माण श्रमिकों के रोजगार तथा सेवा शर्तों के साथ ही उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य और कल्याणकारी उपायों के प्रावधान हैं.
- इसके तहत राज मिस्त्री, ईंट पकाने वाले मजदूर, प्लंबर, वैल्डर, इलेक्ट्रिशियन, सीवरेज, मार्बल, टाइल लगाने वाले और पेंटर-पीओपी करने वाले आदि शामिल हैं. सभी राज्यों को मिलाकर इस सेस से 52000 करोड़ रुपये उपलब्ध हैं.
उपकर (Cess) क्या होता है?
- उपकर भुगतेय कर (payable tax) पर लगाया जाता है न कि कर-योग्य आय (taxable income) पर. इस प्रकार यह कर के ऊपर अधिभार (surcharge) के समतुल्य होता है.
- उपकर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के करों पर लगाया जाता है.
- करों से प्राप्त होने वाले राजस्व की भाँति उपकर भी भारत सरकार की समेकित निधि (Consolidated Fund) में ही जाता है.
कर और उपकर में अंतर
- उपकर किसी विशेष उद्देश्य को पूरा करने के लिए लगाया जाता है जबकि कर के साथ ऐसा नहीं होता. इसलिए उपकर से प्राप्त होने वाला धन किसी अन्य सरकारी कार्य पर खर्च नहीं हो सकता.
- एक ओर जहाँ कर का राजस्व राज्यों एवं संघीय क्षेत्रों में वित्त आयोग के मार्गनिर्देशों के अनुसार बाँटा जाता है, वहीं उपकर से प्राप्त धन को उनके साथ बाँटा नहीं जात्ता है.
- उपकर के कुछ हालिया उदाहरण हैं:- मोटर वाहनों पर अवसंरचना उपकर (infrastructure cess on motor vehicles), स्वच्छ पर्यावरण उपकर, कृषि कल्याण उपकर और शिक्षा उपकर.
GS Paper 3 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Inclusive growth and issues arising from it.
Topic : Kurzarbeit scheme
संदर्भ
नए कोरोना वायरस के प्रकोप से सर्वत्र अर्थव्यवस्था को क्षति पहुँच ही रही है, साथ ही साथ नौकरियाँ जाने की संभावना भी बन रही है. इस संदर्भ में जर्मनी का मंत्रिमंडल एक योजना बनाने जा रहा है जिसके अन्दर कानून बनाकर अप्रैल के पहले सप्ताह तक अल्पावधि कार्यभत्ते के लाभ को विस्तारित कर दिया जाएगा.
विदित हो कि अल्पावधि कार्य को जर्मन भाषा में “कुर्जार्बेट” (Kurzarbeit) कहते हैं.
कुर्जार्बेट क्या है?
- जर्मन भाषा में कुर्जार्बेट का अर्थ होता है – “अल्पावधि कार्य”.
- इस कार्य के लिए जो भत्ता दिया जाता है उसका नाम है – कुर्जार्बेटगेल्ड (kurzarbeitgeld).
- जर्मनी में किसी अनिश्चित आर्थिक कारणों से उपार्जन में होने वाली हानि की कुर्जार्बेटगेल्ड के द्वारा आंशिक रूप से भरपाई की जाती है.
- कुर्जार्बेट की नीति सबसे पहले प्रथम विश्वयुद्ध के समय अपनाई गई थी और कालांतर में 2008 के आर्थिक संकट के समय भी इसे लागू किया गया था.
कुर्जार्बेट नीति कैसे काम करती है?
- आर्थिक संकट के समय काम करने की अवधि घटने से होने वाली आय की हानि से प्रभावित कामगारों को इस योजना से लाभ पहुँचाया जाता है.
- इसके लिए आवेदन देने पर कामगार को सरकार आय में होने वाली क्षति के एक अंश का भुगतान करती है.
- ऐसा होने से कम्पनियाँ अपने कामगारों को नौकरी से नहीं निकालती हैं और कामगार एक वर्ष तक अपनी नौकरी पर बने रह जाते हैं.
भुगतान कितना होता है?
कुर्जार्बेट योजना के अंतर्गत किया गया भुगतान उपार्जन में होने वाली शुद्ध हानि के आधार पर होता है. जर्मनी के फेडेरल एजेंसी फॉर वर्क नामक संस्था के अनुसार साधारणतः कामगारों को शुद्ध उपार्जन के ऊपर 60% भरपाई की जाती है. यदि कामगार बच्चे वाला है तो उसे 67% का भुगतान किया जाता है.
Prelims Vishesh
What is hantavirus? :-
- चीन के यूनान प्रान्त में हन्ता वायरस के मामले सामने आये हैं.
- ये वायरस मुख्य रूप से चूहे फैलाते हैं.
- यदि कोई चूहा इस वायरस का वहन कर रहा हो तो उस चूहे से संपर्क में आने वाला व्यक्ति संक्रमित हो जाता है.
- यह संक्रमण चूहे के ताजा पेशाब, मल अथवा लार से हो जाता है.
- संक्रमण होने से मनुष्य को ज्वर और थकान हो जाती है एवं मांसपेशियों और सर में वेदना हो जाती है. वह थरथराने लग सकता है और उसके पेट में समस्या हो सकती है.
- दस सप्ताह के पश्चात् संक्रमित व्यक्ति खांसने लगता है और साँस छोटी होने लगती है.
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