Sansar डेली करंट अफेयर्स, 26 December 2018

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Sansar Daily Current Affairs, 26 December 2018


GS Paper 1 Source: The Hindu

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Topic : Government rejects separate time zone for NE States

संदर्भ

भारत सरकार ने इस माँग को रणनीतिक कारणों से निरस्त कर दिया है कि पूर्वोत्तर राज्यों के लिए एक अलग समय-जोन बनाया जाए.

पृष्ठभूमि

वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद् (Council of Scientific & Industrial Research – CSIR) की राष्ट्रीय भौतिक प्रयोगशाला (National Physical Laboratory – NPL) के वैज्ञानिक, जो भारतीय प्रामाणिक समय (Indian Standard Time) की देख-रेख करते हैं, ने हाल ही में एक शोध-पत्र प्रकाशित किया है जिसमें भारत में दो समय-खंड(two time zones) बनाने की आवश्यकता का वर्णन किया है तथा सुझाव दिया है कि जो नया समय-खंड बनेगा, वह वर्तमान समय-खंड से एक घंटा आगे होगा.

दो समय-खंड की आवश्यकता क्यों?

  • भारत की चौड़ाई बहुत अधिक है. वस्तुतः यह 68°7’पू. से लेकर 97°25’पू. देशांतर तक फैला हुआ है अर्थात् पूर्व से पश्चिम 29° का अंतर है. भौगोलिक दृष्टि से इसका अर्थ हुआ है कि पूर्व और पश्चिम में दो घंटे का अंतराल है.
  • पूर्वोत्तर के विधायकों, कार्यकर्ताओं, उद्योगपतियों एवं सामान्य नागरिकों की यह शिकायत रही है कि उन पर भारतीय मानक समय का विपरीत प्रभाव रहता है और इसलिए वे एक अलग समय-खंड की माँग करते रहे हैं.
  • पूर्वोत्तर में सूरज 4 सबेरे ही उग जाता है और जाड़े में 4 बजे सायं तक डूब जाता है. इसके चलते जब तक सरकारी कार्यालय अथवा शैक्षणिक संस्थान खुलते हैं तब तक दिन के 5-6 घंटे बर्बाद हो जाते हैं. जाड़े में यह समस्या और भी विकट हो जाती है. रात में कार्यालय अथवा विद्यालय आदि खोले रखने से बिजली की खपत बढ़ जाती है जिसके चलते पर्यावरण को भी क्षति पहुँचती है.

प्रस्तावित समय खंड

ऊपर वर्णित शोधपत्र में दो समय-खंड प्रस्तावित किये गये हैं – IST-I (UTC + 5.30 h) और IST-II (UTC + 6.30 h). दोनों समय-खंडों के बीच की रेखा के रूप में 89°52’पू. देशांतर को चुना गया है जो असम और पश्चिम बंगाल की सीमा से गुजरता है.

प्रस्ताव में कहा गया है कि इस रेखा के पश्चिम वाले राज्यों में वर्तमान समय-खंड लागू रह सकता है और नया समय-खंड अर्थात् IST-II इस रेखा के पूर्व की ओर स्थित राज्यों के लिए लागू किया सकता है. ये राज्य होंगे – असम, मेघालय, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा, अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह.

चिंताएँ

  • दो समय-खंड (two time-zones) बनाने पर एक खंड से दूसरे खंड में जाने के समय घड़ी को फिर से मिलाना आवश्यक हो जाएगा. इससे सम्भ्रम की स्थिति हो सकती है. हो सकता है कि मानवीय भूल से भीषण रेल-दुर्घटना भी घाट जाए.
  • यह तर्क दिया जाता है कि नया समय-खंड बनाने से बिजली की जो बचत होगी, वह कोई ख़ास बचत नहीं होगी.
  • एक घंटे का अंतराल होने के कारण दो समय-खंडों के कार्यालय-समय में 25% की ओवर-लैपिंग होगी जिसके कारण पूर्वी-क्षेत्र की उत्पादकता को और वहाँ के हितों को क्षति पहुँच सकती है.
  • नए समय-खंड के विरोधियों के पास एक मनोवैज्ञानिक तर्क भी है. उनका कहना है कि पूर्वोत्तर के लोग शेष भारत से अपने-आप को अलग-थलग मानते हैं और यह भावना नया समय-खंड लागू करने से और भी प्रबल हो सकती है.
  • भारत की जनसंख्या विशाल है. यदि देश को दो समय खण्डों में बाँटा जाएगा तो इन समय-खंडों की सीमा पर अराजकता हो सकती है. कहने का अभिप्राय यह है कि जब भी कोई इस सीमा को पार करेगा तो घड़ी को फिर से मिलाना होगा. इस कारण खतरनाक गलतियाँ हो सकती हैं. हमारे रेलवे के सिग्नल पूर्णतया स्वचालित नहीं है और कई रेल मार्ग एकल ट्रैक के हैं. इसलिए मानवीय भूल से कोई बड़ी दुर्घटना घट सकती है. यदि ऐसी कोई दुर्घटना होती है तो उससे समय खंड बनाने से होने वाले कथित लाभ एक झटके में समाप्त हो जाएँगे.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Rythu Bandhu scheme

संदर्भ

हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने यह मन्तव्य दिया है कि किसानों के ऋण को माफ़ करना कोई स्थायी समाधान नहीं है. उनका कहना है कि इसके बदले किसानों की आय बढ़ाने के लिए तेलंगाना की ऋदु बंधु (Rythu Bandhu – Friend of Farmers) योजना के समान एक निवेशात्मक योजना चलाई जानी चाहिए.

ऋदु बंधु क्या है?

इस वर्ष अगस्त में तेलंगाना सरकार ने किसानों के लिए ऋदु बंधु नामक निवेश की योजना का अनावरण किया था. इस योजना में प्रत्येक किसान की खेती से सम्बंधित आरम्भिक आवश्यकताओं के लिए आर्थिक सहायता देने का प्रावधान है. मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने ऋदु बंधु योजना शुरू की जिसके अंतर्गत राज्य सरकार प्रत्येक किसान के लिए प्रति सीजन 4,000 रुपये प्रति एकड़ का निवेश प्रदान कर रही है. सरकार ने इस रबी सत्र में 4,000 रुपये प्रति एकड़ का वितरण शुरू कर दिया है.

चुनौतियाँ

ऋदु बंधु योजना ने असली किसानों – किरायेदार किसानों की भी पहचान नहीं कर पाया है  – किसानों को उनके लिए निवेश समर्थन से इंकार कर दिया. इसके अलावा, यह योजना केवल बड़े और मध्यम पैमाने पर किसानों के लिए फायदेमंद है. लगभग 62% लाभार्थियों के सीमांत किसानों में केवल 39 लाख एकड़ जमीन है, जबकि 3% बड़े पैमाने पर किसानों के पास लगभग 30 लाख एकड़ जमीन है.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Governing council for MSME exports

संदर्भ

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग मंत्रालय ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग के निर्यात की सम्भावना खोलने के लिए एक रणनीतिक कार्य-योजना निर्गत की है.

पृष्ठभूमि

हाल ही में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग में ठीक-ठाक वृद्धि हुई है और सम्पूर्ण निर्यात में इसका अच्छा-ख़ासा हिस्सा रहा है. परन्तु अभी भी इस उद्योग के सामने कई चुनौतियाँ हैं जो इसे विदेशी बाजार में प्रवेश करने से रोकती हैं. इसलिए यह आवश्यक है कि इन चुनौतियों का विस्तार से अध्ययन किया जाए और एक ऐसा पारिस्थितिकी तन्त्र बनाया जाए जिसमें इन उद्योगों का निर्यात-व्यापार फले-फूले.

प्रस्तावित कार्य योजना क्या है?

इस कार्य योजना में निम्नलिखित कार्य को संपादित करना लक्ष्य के रूप में रखा गया है –

  • वित्त की व्यवस्था
  • सस्ती दर पर व्यापार हेतु वित्त की उपलब्धता
  • 2020 तक 100 बिलियन डॉलर के निर्यात का लक्ष्य.
  • अपने उत्पादों और सेवाओं को विदेश में निर्यात करने से सम्बन्धित MSME की तैयारी का आकलन.
  • उन क्षेत्रों का पता लगाना जहाँ सुधार की आवश्यकता है जिससे कि निर्यात कारगर ढंग से और कुशलतापूर्वक हो सके.
  • MSME को वैश्विक मूल्य शृंखला से जोड़ना.

प्रशासनिक परिषद्

इन लक्ष्यों को पाने के लिए प्रस्ताव में एक प्रशासनिक परिषद् के गठन का सुझाव दिया गया है जिसके अध्यक्ष MSME मंत्रालय के सचिव तथा इस मंत्रालय के विकास आयुक्त (DC) उपाध्यक्ष होंगे.

इस परिषद् में कई अन्य सदस्य भी होंगे जो इन प्राधिकारों से आएँगे – MSME मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, MSME निर्यात प्रोत्साहन परिषद्, निर्यात विकास प्राधिकरण, कमोडिटी बोर्ड और अन्य निकाय.

MSME प्रक्षेत्र के समक्ष समस्याएँ

  • उत्पादनों और सेवाओं के बारे में सीमित जानकारी
  • विदेशी बाजारों के काम-काज की जानकारी का अभाव
  • व्यापार वितरण के चैनलों तक पहुँचने और विदेशी ग्राहकों से जुड़ने में दिक्कत
  • सरकार द्वारा निर्यात के प्रोत्साहन के लिए बनाई गई योजनाओं की जानकारी का अभाव
  • निर्यात और आयात से सम्बन्धित कानूनी और नियामक ढाँचे की जानकारी का अभाव.
  • अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौतों के बारे में लगभग शून्य जानकारी
  • व्यापार के लिए सस्ते वित्त की पहुँच नहीं होना.
  • ऊँची लागत वाले उत्पादन मानक और अभिप्रमानण प्रक्रिया
  • माल भेजने के लिए हवाई अड्डे और पानी के जहाज में आने वाली लागत
  • नई-नई तकनीकों की कमी
  • सामान को पैक करने के पुराने ढंग

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग

सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग (MSME) विश्व की अधिकांश अर्थव्यस्थाओं का मेरुदंड होते हैं और विकासशील देशों में प्रमुख भूमिका निभाते हैं.

  • अंतर्राष्ट्रीय लघु व्यवसाय परिषद् (International Council for Small Business – ICSB) के द्वारा उपलब्ध कराए गए आँकड़ों के अनुसार इस प्रकार के उद्योग सभी उद्योगों का 90% होते हैं. साथ ही इनसे सम्पूर्ण रोजगार का 60-70% रोजगार होता है और GDP का 50% आता है.
  • MSME में काम करने वाले लोग अधिकतर वंचित क्षेत्रों से आते हैं, जैसे – स्त्रियाँ, गरीब घरों के युवा और अन्य लोग. कई बार तो ऐसा देखा जाता है कि छोटे उद्योग गाँवों में आजीविका के एकमात्र स्रोत होते हैं.

GS Paper 3 Source: Down to Earth

Topic : Mobile towers are harmless: CPCB

संदर्भ

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board – CPCB) का एक अध्ययन हाल ही में सार्वजनिक हुआ है जिसमें बताया गया है कि मोबाइल टावरों से मनुष्य के स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है.

यह अध्ययन उन कई अध्ययनों में से एक है जो CPCB ने पिछले दशक में किये थे किन्तु जिन्हें हाल ही में सार्वजनिक किया गया. ज्ञातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि उन सभी रिपोर्टों को सार्वजनिक कर दिया जाए जो पर्यावरणिक प्रदूषण के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर प्रभाव से जुड़े हुए हैं.

रिपोर्ट के मुख्य तथ्य

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि गैर-आयन विकिरण सुरक्षा से सम्बंधित अंतर्राष्ट्रीय आयोग (International Commission on Non Ionizing Radiation Protection – ICNIRP) के द्वारा तय की गई सुरक्षा सीमाओं  को देखते हुए ऐसा कोई ठोस प्रमाण नहीं मिलता कि मोबाइल फोन के विकिरण से मनुष्य के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है. विदित हो कि आयोग ने विकिरण के लिए 450 μW/cm2 की सीमा निर्धारित की है.
  • किन्तु रिपोर्ट यह भी मानता है कि वर्तमान एक्स्पोजर सुरक्षा मानक शुद्ध रूप से तापीय प्रभाव पर आधारित है और उनमें विकिरण के गैर-तापीय प्रभावों पर ध्यान नहीं दिया गया है.
  • CPCB ने यह अवश्य कहा है कि मोबाइल टावर के विकिरण का कोई बुरा प्रभाव नहीं होता, परन्तु यह भी कहा है कि स्वास्थ्य पर उससे होने वाले खतरे पर और शोध की आवश्यकता है.

ICNIRP

  • यह एक अंतर्राष्ट्रीय आयोग है जो स्वतंत्र लाभ-रहित वैज्ञानिक संगठन है जिसकी शुरुआत जर्मनी में हुई थी.
  • इसकी स्थापना में 1992 में अंतर्राष्ट्रीय विकिरण सुरक्षा संघ ने की थी.
  • इसका कार्य रेडियो, माइक्रो-वेव, पराबैंगनी और इन्फ्रा-रेड किरणों आदि गैर-आयन विकिरणों के विषय में वैज्ञानिक जानकारी इकठ्ठा करना और सुरक्षात्मक मार्गनिर्देश देना है.

केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB)

CPCB एक वैधानिक संगठन है जिसे जल (प्रदूषण की रोकथाम एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के तहत सितम्बर 1974 में गठित किया गया था. कालांतर में इस बोर्ड को वायु (रोकथाम एवं प्रदूषण नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत शक्तियाँ और कार्य सौंपे गये थे.

CBPB के कार्य

  • नदियों और कूओं की स्वच्छता को बढ़ाना और जल प्रदूषण की रोकथाम करना. इसके लिए इस बोर्ड ने जैव-रसायनिक ऑक्सीजन की माँग अर्थात् बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) के कई मानक तैयार किए हैं जिनके अनुसार जल प्रदूषण की मात्रा की तय की जाती है.
  • देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार करना तथा वायु प्रदूषण की रोकथाम करना.

Prelims Vishesh

Jagannatha Ashrams :-

हरियाणा सरकार ने बच्चों की देख-भाल से सम्बंधित प्रदेश में संचालित सभी संस्थाओं को एक नाम – जगन्नाथ आश्रम – रख दिया है क्योंकि इन सभी संस्थाओं का उद्देश्य समान रूप से बच्चों का चहुँमुखी विकास करना ही है.

India’s first music museum to be set up in Thiruvaiyaru :-

केन्द्रीय सरकार की सहायता से देश का पहला संगीत संग्रहालय तमिलनाडु के तिरुवैयरु में स्थापित किया जाएगा जहाँ कर्नाटक संगीत के तीन पुरोधाओं में से एक संत त्यागराज का जन्म हुआ था. अन्य दो पुरोधा हैं – मुत्थुस्वामी दीक्षितार और श्याम शास्त्री.

कर्नाटक संगीत या संस्कृत में कर्णाटक संगीतं भारत के शास्त्रीय संगीत की दक्षिण भारतीय शैली का नाम है, जो उत्तरी भारत की शैली हिन्दुस्तानी संगीत से बहुत हद तक अलग है (कैसे अलग है जानने के लिए क्लिक करें > Click). कर्नाटक संगीत ज्यादातर भक्ति संगीत के रूप में होता है और ज्यादातर रचनाएँ हिन्दू देवी देवताओं को संबोधित होता है. इसके अतिरिक्त कुछ हिस्सा प्रेम और अन्य सामाजिक मुद्दों को भी समर्पित होता है. जैसा कि आमतौर पर भारतीय संगीत मे होता है, कर्नाटक संगीत के भी दो मुख्य तत्व राग और ताल होता है. कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है. त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की ‘त्रिमूर्ति’ कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है. कर्नाटक शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति सम्मिलित हैं.


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