Sansar डेली करंट अफेयर्स, 26 February 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 26 February 2020


GS Paper 1 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Population and associated issues, poverty and developmental issues.

Topic : Swachh Bharat Mission

संदर्भ

स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के दूसरे चरण को केंद्र सरकार ने स्वीकृति दे दी है. इसमें खुले में शौच से मुक्ति के बाद सार्वजनिक शौचालयों में बेहतर सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया जायेगा जिसमें खुले में शौच मुक्त अभियान को जारी रखना और ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन भी शामिल होगा.

प्रमुख बिंदु

  • स्वच्छ भारत (ग्रामीण) मिशन का दूसरा चरण 2020-21 से 2024-25 के बीच कार्यान्वित किया जाएगा और इसका अनुमानित बजट 52,497 करोड़ रुपये होगा.
  • इसमें केन्द्र और राज्य दोनों की हिस्सेदारी होगी. इस कार्यक्रम में यह सुनिश्चित करने के लिए भी कार्य किया जायेगा कि एक व्यक्ति भी न छूटे और हर व्यक्ति शौचालय का इस्तेमाल करे.
  • 15वें वित्त आयोग ने ग्रामीण स्थानीय निकायों द्वारा ग्रामीण जलापूर्ति और स्वच्छता के क्रियान्वयन के लिए 30,375 करोड़ रुपये का प्रस्ताव रखा है.
  • खुले में शौच से मुक्त प्लस कार्यक्रम मनेरगा के साथ सम्मिलित होगा.
  • इसके अतिरिक्त, ग्राम पंचायतों को ग्रामीण स्तर पर सामुदायिक स्वच्छता परिसर के निर्माण (सीएमएससी) के लिए आर्थिक सहायता को बढ़ाकर दो लाख से तीन लाख रुपये कर दिया गया है.
  • केन्द्र और राज्यों के बीच सभी घटकों के लिए कोष हिस्सेदारी का ढांचा पूर्वोत्तर राज्यों एवं हिमालयी राज्यों और जम्मू एवं कश्मीर केन्द्र शासित प्रदेश के बीच 90:10, अन्य राज्यों के बीच 60:40 और अन्य केन्द्र शासित प्रदेश के बीच 100:0 होगा.

स्वच्छ भारत मिशन

  1. स्वच्छ भारत अभियान भारत सरकार द्वारा आरंभ किया गया राष्ट्रीय स्तर का अभियान है जिसका उद्देश्य गलियों, सड़कों तथा अधोसंरचना को साफ-सुथरा करना और कूड़ा साफ रखना है.
  2. यह अभियान 02 अक्टूबर, 2014 को आरंभ किया गया. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने देश को गुलामी से मुक्त कराया, परन्तु ‘स्वच्छ भारत’ का उनका सपना पूरा नहीं हुआ.
  3. महात्मा गांधी ने अपने आसपास के लोगों को स्वच्छता बनाए रखने संबंधी शिक्षा प्रदान कर राष्ट्र को एक उत्कृष्ट संदेश दिया था.

स्वास्थ्य और स्वच्छता में सम्बन्ध

यदि देखा जाए तो कई ऐसे बीमारियाँ हैं जिनका प्रत्यक्ष सम्बन्ध साफ-सफाई की आदतों से है. मलेरिया, डेंगू, डायरिया और टीबी जैसी बीमारियां इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं. यह सर्वविदित है कि साफ-सफाई मानव स्वास्थ्य पर सीधा असर डालती है. जिन बीमारियों के मामले ज्यादातर सामने आते हैं और जिनसे ज्यादा मौतें होती हैं, अगर उनके आंकड़ों पर गौर करें तो कहा जा सकता है कि शरीर की तथा परिवेश की वह अचूक मांग है जिसके माध्यम से न सिर्फ स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है बल्कि बीमारियों से लड़ने पर देश भर में हो रहा अरबों का सालाना खर्च भी बचाया जा सकता है. स्वस्थ शरीर में निवसित स्वस्थ मस्तिष्क की उत्पादकता, बढ़ने से देश की उत्पादकता जो बढ़ेगी, सो अलग. इतना ही नहीं, शरीर के स्वस्थ रहने के लिए हर स्तर पर स्वच्छता आवश्यक है और इस तथ्य को हमारे महापुरुषों ने भी लगातार स्वीकारा है.


GS Paper 2 ource: PIB

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UPSC Syllabus : Various statutory and constitutional bodies.

Topic : Law commission of India

संदर्भ

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को 22वें विधि आयोग के गठन को स्वीकृति दी.

  • यह आयोग सरकार को जटिल कानूनी मुद्दों पर सलाह देगा.
  • विदित हो कि पूर्व विधि आयोग का कार्यकाल इस वर्ष अगस्त में समाप्त हो रहा है.
  • मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद विधि मंत्रालय अब नये आयोग को अधिसूचित करेगा जिसका कार्यकाल तीन वर्ष होगा.

भारतीय विधि आयोग

  • भारतीय विधि आयोग न तो एक संवैधानिक निकाय है और न ही वैधानिक निकाय. यह भारत सरकार के आदेश से गठित एक कार्यकारी निकाय है. इसका प्रमुख कार्य है, कानूनी सुधारों हेतु कार्य करना.
  • आयोग का गठन एक निर्धारित अवधि के लिये होता है और यह विधि और न्याय मंत्रालय के लिये परामर्शदाता निकाय के रूप में कार्य करता है.
  • इसके सदस्य मुख्यतः कानून विशेषज्ञ होते हैं.
  • यह आयोग सरकार को जटिल कानूनी मामलों पर सलाह देता है और इसका कार्यकाल तीन साल का होता है.
  • विधि आयोग के गठन के लिए राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद सरकार अब इसका अध्यक्ष और अन्य सदस्य नियुक्त करेगी.
  • इसका अध्यक्ष आम तौर पर उच्चतम न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का कोई सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश होता है.
  • इससे पूर्ववर्ती आयोग का कार्यकाल 31 अगस्त 2018 को समाप्त हो गया था.

इतिहास

  • प्रथम आयोग 1833 के चार्टर ऐक्ट के अंतर्गत सन्‌ 1834 में बना. इसके निर्माण के समय भारतईस्ट इंडिया कंपनी के शासन में था किंतु विधि पारित करने के लिए कोई एकमेव सत्ता न थी, न्यायालयों का अधिकारक्षेत्र अस्पष्ट एवं परस्पर स्पर्शी था तथा कुछ विधियों का स्वरूप भी भारत के प्रतिकूल था. इस स्थिति को दृष्टि में रखते हुए लार्ड मैकाले ने ब्रिटिश पार्लमेंट में भारत के लिए एक विधि आयोग की निर्मिति पर बल दिया.
  • प्रथम आयोग के चार सदस्य थे जिसमें मैकाले अध्यक्ष थे. इस आयोग को वर्तमान न्यायालयों के अधिकारक्षेत्र एवं नियमावली, तथा ब्रिटिश भारत में प्रचलित समस्त विधि के विषय में जाँच करने, रिपोर्ट देने और जाति धर्मादि को ध्यान में रखकर उचित सुझाव देने का कार्य सौंपा गया.
  • सर्वप्रथम इस आयोग का ध्यान आपराधिक विधि की ओर आकर्षित हुआ. बंगाल तथा मद्रास में इस्लामिक दंडविधि प्रचलित थी जो अपने आदिमपन एवं अविचारिकता के कारण सर्वथा अनुपयुक्त थी. मैकाले के मार्गदर्शन में प्रथम आयोग ने भारतीय दंडसंहिता का प्रारूप तैयार किया किंतु कारणवश उसे विधि का रूप न दिया जा सका.
  • इसके बाद द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ विधि आयोग, जो क्रमशः वर्ष 1853, 1861 और 1879 में गठित किये गए थे, ने 50 वर्ष की अवधि में उस समय प्रचलित अंग्रेजी क़ानूनों के पैटर्न पर, जिन्हें कि भारतीय दशाओं के अनुकूल किया गया था, की व्यापक किस्मों से भारतीय विधि जगत को समृद्ध किया.
  • भारतीय नागरिक प्रक्रिया संहिता, भारतीय संविदा अधिनियम, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, संपत्ति अंतरण अधिनियम आदि प्रथम चार विधि आयोगों का परिणाम हैं.

GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Assisted Reproductive Technology Regulation Bill

संदर्भ

यूनियन कैबिनेट ने बुधवार 19 फरवरी को सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक (ART विधेयक) मंजूर कर दिया. अब ये लोकसभा में पेश होगा, उसके बाद राज्य सभा में जाएगा. राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ये कानून में तब्दील होगा.

सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक क्यों लाया गया?

  • यह विधेयक गर्भाधान के कृत्रिम तरीकों को लेकर नियम कानून सख्त रखने के लिए बनाया गया है.
  • इस विधेयक का मतलब है गर्भ धारण करने में सहायता देने वाली तकनीक को रेगुलेट करने वाला विधेयक. यानी अगर कोई दम्पत्ति बच्चा पैदा करना चाहता है और प्राकृतिक तरीकों से यह संभव नहीं हो पा रहा है तो वह डॉक्टर से सलाह लेगा, जांच करवाएगा फिर उसकी आवश्यकता के हिसाब से उस दम्पत्ति को बच्चा पैदा करने के लिए कृत्रिम तरीके बताये जाएँगे जिनसे गर्भ धारण करने में मदद मिल सके.
  • इन्हीं तरीकों और तकनीकों का गलत प्रयोग न हो, और प्रयोग करने वालों के पास कानून का फ्रेमवर्क उपलब्ध रहे, इसलिए यह विधेयक लाया गया.

कैसे मिलती है गर्भाधान में सहायता?

  • इन विट्रो फ़र्टिलाइजेशन (IVF) (यूटेरस से बाहर शुक्राणु और एग्स को मिलाकर भ्रूण बनान और फिर यूट्रस में रखना)
  • इंट्रा यूटेराइन इनसेमिनेशन (सीधे यूटेरस में शुक्राणु पहुंचाना. इसमें पार्टनर का और डोनर का शुक्राणु, दोनों शामिल हैं)
  • क्रायो प्रिजर्वेशन (शुक्राणु और एग्स को फ्रीज करके रखना ताकि बाद में उनका इस्तेमाल हो सके)
  • इसमें सरोगेसी भी आती है.

सहायक प्रजनन तकनीक नियमन विधेयक से सम्बंधित मुखत तथ्य

  • संसद में पारित हो जाने एवं इस विधेयक के कानून का रूप लेने के बाद केंद्र सरकार इस अधिनियम के लागू होने की तिथि को अधिसूचित करेगी. इसके पश्चात राष्‍ट्रीय बोर्ड का गठन किया जाएगा.
  • राष्‍ट्रीय बोर्ड प्रयोगशाला एवं नैदानिक उपकरणों, क्लिनिकों एवं बैंकों के लिये भौतिक अवसंरचना तथा यहाँ नियुक्त किये जाने वाले विशेषज्ञों हेतु न्‍यूनतम मानक तय करने के लिये आचार संहिता निर्धारित करेगा, जिसका पालन करना अनिवार्य होगा.
  • केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने के तीन महीनों के भीतर राज्‍य एवं केंद्रशासित प्रदेश इसके लिये राज्‍य बोर्डों और राज्‍य प्राधिकरणों का गठन करेंगे.
  • संबंधित राज्‍य में क्लिनिकों एवं बैंकों के लिये राष्‍ट्रीय बोर्ड द्वारा निर्धारित नीतियों एवं योजनाओं को लागू करने का उत्तरदायित्व राज्‍य बोर्ड पर होगा.
  • विधेयक में केंद्रीय डेटाबेस के रख-रखाव तथा राष्‍ट्रीय बोर्ड के कामकाज में सहायता के लिये राष्‍ट्रीय रजिस्‍ट्री एवं पंजीकरण प्राधिकरण का भी प्रावधान किया गया है.
  • विधेयक में उन लोगों के लिये कठोर दंड का भी प्रस्‍ताव किया गया है, जो लिंग जाँच, मानव भ्रूण अथवा जननकोष की बिक्री का काम करते हैं और इस तरह के गैर-कानूनी कार्यों के लिये संगठन चलाते हैं.

GS Paper 2 Source: PIB

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : Changes in Pradhan Mantri Fasal Bima Yojana To Make It Optional For Farmers

संदर्भ

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने फसल बीमा योजना लागू करने में वर्तमान चुनौतियों के समाधान के लिए ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY)’ तथा ‘पुनर्गठित मौसम आधारित फसल बीमा योजना (RWBCIS)’ को नया रूप देने की मंजूरी दी है. जारी PMFBY तथा RWBCIS के कुछ मानकों/प्रावधानों में संशोधन का निम्नलिखित प्रस्ताव है.

मुख्य बिंदु

  1. बीमा कम्पनियों को व्यवसाय का आवंटन तीन वर्षों के लिए किया जाएगा (PMFBY/RWBCIS दोनों).
  2. राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों को वित्त का आकार या सांकेतिक औसत पैदावार का जिला स्तरीय मूल्य (एनएवाई) यानी एनएवाई* किसी भी जिले के फसल मिश्रण (PMFBY/RWBCIS दोनों) के लिए बीमित राशि के रूप में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को चुनने का विकल्प दिया जाएगा. अन्य फसलों के लिए फसल के खेत मूल्य पर विचार किया जाएगा, जिनका न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया गया है.
  3. PMFBY/RWBCIS के अंतर्गत केन्द्रीय सब्सिडी असिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिए 30 प्रतिशत तक प्रीमियम दरों के लिए सीमित होगी और सिंचित क्षेत्रों/फसलों के लिए 25 प्रतिशत होगी. 50 प्रतिशत या उससे अधिक सिंचित क्षेत्र वाले जिलों को सिंचित क्षेत्र/जिला (PMFBY/RWBCIS दोनों) के रूप में माना जाएगा.
  4. योजना लागू करने में राज्यों/केन्द्र शासित प्रदेशों के लिए लचीलापन होगा और उनके पास प्रतिबंधित बुआई, स्थानीय आपदा, मध्य सीजन में विपरीत परिस्थिति तथा फसल कटाई के बाद के नुकसानों जैसे अतिरिक्त जोखिम कवर/विशेषताओं में से कोई एक या अनेक चुनने का विकल्प होगा. राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश ओला-वृष्टि आदि जैसे विशिष्ट एकल जोखिम/बीमा कवर की पेशकश PMFBY के अंतर्गत बेस कवर के साथ और बेस कवर के बिना दोनों स्थितियों में कर सकते है. (PMFBY/RWBCIS दोनों)
  5. राज्यों द्वारा संबंधित बीमा कम्पनियों को निर्धारित समयसीमा से आगे प्रीमियम सब्सिडी में विलंब करने की स्थिति में राज्यों को बाद के सीजन में योजना को लागू करने की अनुमति नहीं दी जाएगा. खरीफ तथा रबी सीजन के लिए इस प्रावधान को लागू करने की कटऑफ तिथि क्रमिक वर्षों में क्रमशः 31 मार्च और 30 सितंबर होगी. (PMFBY/RWBCIS दोनों)
  6. फसल नुकसान/अनुमति योग्यदावों के आकलन के लिए दो चरण की प्रक्रिया अपनाई जाएगी. यह प्रक्रिया परिभाषित अंतर मैट्रिक्स पर आधारित होगी और इसमें मौसम संकेतकों, सेटेलाइट संकेतकों आदि का इस्तेमाल प्रत्येक क्षेत्र के लिए सामान्य सीमा तथा अंतर सीमाओं के साथ किया जाएगा. पैदावार नुकसान निर्धारण के लिए (PMFBY) केवल अंतर वाले क्षेत्र ही फसल कटाई प्रयोगों (सीसीई) के अधीन होंगे.
  7. सीसीई संचालन में स्मार्ट सैंपलिंग टेक्निक (एसएसटी) तथा सीसीई की संख्या के अधिकतम उपयोग को अपनाया जाएगा. (PMFBY)
  8. योजना लागू करने वाली बीमा कम्पनियों के लिए राज्यों द्वारा कटऑफ तिथि से आगे पैदावार डाटा का प्रावधान नहीं करने की स्थिति में टेक्नोलॉजी समाधान के उपयोग के माध्यम से निश्चित पैदावार के आधार पर दावे निपटाए जाएंगे.
  9. योजना के अंतर्गत नामांकन सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक बनाया जाएगा. (PMFBY/RWBCIS दोनों)
  10. प्रीमियम सब्सिडी में केन्द्रीय हिस्सा पूर्वोत्तर राज्यों के लिए वर्तमान 50:50 की साझा व्यवस्था से बढ़ाकर 90 प्रतिशत किया जाएगा. (PMFBY/RWBCIS दोनों)
  11. प्रशासनिक खर्चों के लिए योजना की कुल आवंटन का कम से कम 3 प्रतिशत का प्रावधान भारत सरकार तथा योजना लागू करने वाली राज्य सरकार करेगी. यह प्रत्येक राज्य के लिए डीएसी एंड एफडब्ल्यू द्वारा निर्धारित ऊपरी सीमा के अधीन होगा. (PMFBY/RWBCIS दोनों)
  12. उपरोक्त के अतिरिक्त कृषि, सहकारिता तथा किसान कल्याण विभाग अन्य हितधारकों/एजेंसियों की सलाह से राज्य विशेष, वैकल्पिक जोखिम समाप्ति कार्यक्रम तैयार करेंगे/विकसित करेंगे. योजना सभी किसानों के लिए स्वैच्छिक है इसलिए वित्तीय समर्थन तथा कारगर जोखिम समाप्ति उपाए फसल बीमा के माध्यम से उपलब्ध कराए जाएंगे, विशेषकर 151 जिलों को, जो काफी अधिक जल की कमी से दबाव में है. इनमें 29 जिलों पर किसानों की कम आय तथा सूखा के कारण दोहरा प्रभाव पड़ा. इसलिए इस संबंध में एक अलग योजना तैयार की जाएगी.
  13. योजना के संबंधित प्रावधानों/मानकों तथा PMFBY तथा RWBCIS के संचालन दिशा-निर्देश को संशोधित करके उपरोक्त संशोधनों को शामिल किया जाएगा और इन्हें खरीफ 2020 सीजन से लागू किया जाएगा.

संभावित लाभ

आशा है कि इन परिवर्तनों से किसान बेहतर तरीके से कृषि उत्पादन में जोखिम प्रबंधन करने में सक्षम होंगे और कृषि आय को स्थिर बनाने में सफल होंगे. इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में कवरेज बढ़ेगा और पूर्वोत्तर क्षेत्र के किसान बेहतर तरीके से कृषि जोखिम प्रबंधन में सक्षम होंगे. परिवर्तन त्वरित और सटीक पैदावार आंकलन को सक्षम बनाएंगे, जिससे दावों का निपटान तेजी से होगा.
इन परिवर्तनों को पूरे देश में खरीफ 2020 सीजन से लागू करने का प्रस्ताव है.

PMFBY योजना के समक्ष चुनौतियाँ

  • कुछ ही राज्य सरकारें समय पर प्रीमियम में अपना हिस्सा दे रही हैं जिससे केन्द्रीय सरकार के द्वारा शेष हिस्से को देने में कठिनाई हो रही है.
  • फसलों की क्षति के मूल्यांकन के बारे में आधुनिक तकनीक का प्रयोग नहीं हो रहा है.
  • क्षति के आकलन के सम्बन्ध में लगी हुई एजेंसियाँ अप्रशिक्षित हैं और उनमें भ्रष्टाचार देखा गया है.
  • दावा भुगतान में देरी.
  • बीमा कंपनियों द्वारा वसूल की जा रही प्रीमियम की दरें ऊँची हैं.
  • राज्यों की ओर से प्रीमियम के भुगतान में देरी अथवा फसल-कटाई का आँकड़ा आने में कोताही के कारण कम्पनियाँ किसानों को समय पर भुगतान नहीं कर रही हैं.
  • बीमा कम्पनियाँ योजना के उचित कार्यान्वयन के लिए आवश्यक ढाँचा तैयार करने में विफल रही हैं.
  • भीषण मौसमी घटनाओं के समय इस योजना से मिलने वाला लाभ किसानों के लिए अपर्याप्त होता है.

प्रधान मन्त्री फसल बीमा योजना (PMFBY)

अप्रैल 2016 में भारत सरकार ने पुरानी बीमा योजनाओं, जैसे – राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना, मौसम आधारित फसल बीमा योजना और संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को वापस लेते हुए एक नई योजना प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का आरम्भ किया था.

  • इस बीमा योजना के अंतर्गत किसानों को खरीफ फसलों के लिए 2% और रबी फसलों के लिए 1.5% प्रीमियम देना होता है.
  • वार्षिक नकदी और बाग़वानी फसलों के लिए प्रीमियम की दर 5% होती है.
  • जिन किसानों ने बैंकों से ऋण लिया है उनके लिए यह योजना अनिवार्य है और जिन्होंने नहीं लिया है, उनके लिए यह वैकल्पिक है.

उद्देश्य

  • अप्रत्याशित कारणों से फसल की क्षति के शिकार किसानों को आर्थिक सहारा देना.
  • किसानों की आय को बनाए रखना जिससे कि वे खेती करना नहीं छोड़ें.
  • किसानों को अभिनव एवं आधुनिक कृषि प्रचलन अपनाने के लिए उत्साहित करना.
  • कृषि प्रक्षेत्र में ऋण के प्रवाह को सुनिश्चित करना जिससे खाद्य सुरक्षा, फसलों की विविधता, उत्पादन में वृद्धि और कृषि क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा मिले और उत्पादन के जोखिमों से किसान सुरक्षित हो सके.

GS Paper 2 Source: Indian Express

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UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.

Topic : UK’s points-based visa policy

संदर्भ

ब्रिटेन की गृहमंत्री प्रीति पटेल ने देश की नई अंक आधारित वीजा प्रणाली के शुभारंभ की घोषणा की है. इसका उद्देश्‍य भारत सहित दुनियाभर के ‘होनहार और श्रेष्‍ठ’ लोगों को आकर्षित करना है. विदित हो कि सुश्री पटेल भारतीय मूल की सबसे वरिष्‍ठ कैबिनेट मंत्री हैं.

नई प्रणाली से देश में आने वाले कम कुशल और सस्‍ते कामगारों की संख्‍या घटेगी. नई प्रणाली पहली जनवरी 2021 से लागू होगी तब तक ब्रेक्जिट के बाद का संक्रमण काल समाप्‍त हो जाएगा. ब्रिटेन पिछले महीने यूरोपीय संघ से अलग हो गया था. ब्रेक्जिट के बाद लागू हो रही यह नई प्रणाली यूरोपीय संघ और भारत जैसे अन्‍य देशों पर समान रूप से लागू होगी. इसके तहत विशिष्‍ट कौशल, योग्‍यताओं, वेतन और व्‍यवसाय के लिए अंक दिए जाएंगे. सबसे अधिक या पर्याप्‍त अंक प्राप्‍त करने वालों को ही वीजा दिया जाएगा.

अंक पर आधारित वीजा की नीति क्या है?

  • अंक पर आधारित वीजा के लिए अलग-अलग श्रेणियों के लिए अंक दिए जाते हैं. ये श्रेणियाँ हो सकती हैं – आयु, अंग्रेजी में कुशलता, कार्यानुभव आदि.
  • अधिकारीगण एक कट-ऑफ निर्धारित करेंगे और उसी व्यक्ति को वीजा दी जायेगी जिसके अंक उस कट-ऑफ तक पहुंचेंगे.
  • ऑस्ट्रेलिया में इस प्रकार का वीजा प्राप्त कर के कोई भी आव्रजक देश में कहीं भी रह कर स्थायी रूप से काम कर सकता है और अपने योग्यताप्राप्त सम्बन्धियों को स्थायी निवास के लिए स्पोंसर कर सकता है. कालांतर में ये लोग ऑस्ट्रेलिया की स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली में पंजीकृत हो सकते हैं और वहाँ के नागरिक भी बन सकते हैं.
  • वीजा के लिए जिन नौकरियों में कुशलता की अपेक्षा होती है, वे हैं – लेखाकार, अभिनेता, विमान अभियंता, विज्ञापन प्रबंधक, प्लम्बर, लेखक, बेकर, तैराकी प्रशिक्षक, यूरोलॉजिस्ट, सब्जी उत्पादक.

अंक पर आधारित वीजा प्रणाली के लाभ

इस प्रणाली के माध्यम से जो कामगार ऑस्ट्रेलिया आते हैं, उनको नियोजनकर्ता के स्पोंसरशिप की आवश्यकता नहीं पड़ती है. इससे यह होता है कि वे अपने नियोजनकर्ता पर कम निर्भर रहते हैं और उन्हें नौकरी बदलने के लिए यूनाइटेड किंगडम की तरह उनकी अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती. फलतः ऐसे कामगारों के पास मोल-तोल की अधिक शक्ति हो जाती है है और वे प्रतिस्पर्धात्मक श्रम बाजार में अधिक सक्रिय रह पाते हैं.

आलोचना

बिंदु आधारित प्रणाली की सबसे आम आलोचना यह है कि इसमें आव्रजक कामगार नौकरी के लायक हैं या नहीं, इसको जानना कठिन होता है क्योंकि उनके पास नौकरी का कागज़ नहीं होता है. यदि वे किसी नियोजनकर्ता के माध्यम से आते तो स्पष्ट होता कि वे क्या काम कर सकते हैं. अतः बिंदु आधारित प्रणाली में सरकार को ही यह निर्णय लेना पड़ता है कि कौन आव्रजक नौकरी की  कुशलता रखता है.


Prelims Vishesh 

World’s largest cave fish discovered in Meghalaya :-

  • मेघालय के घने जंगलों में विश्व की सबसे बड़ी गुफा मछली मिली है. इसका वजन करीब दो पौंड या एक किलोग्राम और लंबाई डेढ़ फुट है. यह जमीन के 300 फुट नीचे रहती है.
  • चूंकि इसे प्रकाश की जरूरत नहीं, इसलिए यह देख नहीं सकती. विश्व में इन भूमिगत मछलियों की 250 प्रजातियां अब तक दर्ज हैं, लेकिन वे सभी भारत में मिली इस नई मछली से 10 गुना तक छोटी हैं.

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