Sansar Daily Current Affairs, 26 March 2020
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Important international institutions and groupings.
Topic : G20 virtual summit
संदर्भ
सऊदी अरब में हाल ही में G-20 देशों का आपातकालीन शिखर सम्मेलन शुरू हुआ. वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से होने वाले इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दुनिया के कई शीर्ष नेता कोरोना वायरस महामारी से निपटने के समन्वित उपायों पर चर्चा किया.
पृष्ठभूमि
विदित हो कि इस वायरस से अब तक 40 हजार से ज्यादा लोगों की मौतें हो चुकी है और जन-जीवन व कारोबार सम्पूर्ण रूप से ठप है. जी-20 की अध्यक्षता कर रहे सऊदी अरब ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जी-20 शिखर सम्मेलन आयोजित करने का आह्वान ऐसे समय पर किया है जब इस वैश्विक संकट से निपटने को लेकर समूह की बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों द्वारा तीव्रता से कदम न उठाने को लेकर आलोचना हो रही है.
G20 क्या है?
- G 20 1999 में स्थापित एक अंतर्राष्ट्रीय मंच है जिसमें 20 बड़ी अर्थव्यस्थाओं की सरकारें और केन्द्रीय बैंक गवर्नर प्रतिभागिता करते हैं.
- G 20 की अर्थव्यस्थाएँ सकल विश्व उत्पादन (Gross World Product – GWP) में 85% तथा वैश्विक व्यापार में 80% योगदान करती है.
- G20 शिखर बैठक का औपचारिक नाम है – वित्तीय बाजारों एवं वैश्विक अर्थव्यवस्था विषयक शिकार सम्मलेन.
- G 20 सम्मेलन में विश्व के द्वारा सामना की जा रही समस्याओं पर विचार किया जाता है जिसमें इन सरकारों के प्रमुख शामिल होते हैं. साथ ही उन देशों के वित्त और विदेश मंत्री भी अलग से बैठक करते हैं.
- G 20 के पासअपना कोई स्थायी कर्मचारी-वृन्द (permanent staff) नहीं होता और इसकी अध्यक्षता प्रतिवर्ष विभिन्न देशों के प्रमुख बदल-बदल कर करते हैं.
- जिस देश को अध्यक्षता मिलती है वह देश अगले शिखर बैठक के साथ-साथ अन्य छोटी-छोटी बैठकों को आयोजित करने का उत्तरदाई होता है.
- वे चाहें तो उन देशों को भी उन देशों को भी बैठक में अतिथि के रूप में आमंत्रित कर सकते हैं, जो G20 के सदस्य नहीं हैं.
- पहला G 20 सम्मेलन बर्लिन में दिसम्बर 1999 को हुआ था जिसके आतिथेय जर्मनी और कनाडा के वित्त मंत्री थे.
- G-20 के अन्दर ये देश आते हैं – अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका.
- इसमें यूरोपीय संघ की ओर से यूरोपीय आयोग तथा यूरोपीय केन्द्रीय बैंक प्रतिनिधित्व करते हैं.
G-20 व्युत्पत्ति
1999 में सात देशों के समूह G-7 के वित्त मंत्रियों तथा केन्द्रीय बैंक गवर्नरों की एक बैठक हुई थी. उस बैठक में अनुभव किया गया था कि विश्व की वित्तीय चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बड़ा मंच होना चाहिए जिसमें विकसित और विकासशील दोनों प्रकार के देशों के मंत्रियों का प्रतिनिधित्व हो. इस प्रकार G-20 का निर्माण हुआ.
इसकी प्रासंगिकता क्या है?
बढ़ते हुए वैश्वीकरण और कई अन्य विषयों के उभरने के साथ-साथ हाल में हुई G20 बैठकों में अब न केवल मैक्रो इकॉनमी और व्यापार पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है, अपितु ऐसे कई वैश्विक विषयों पर भी विचार होता है जिनका विश्व की अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ता है, जैसे – विकास, जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा, स्वास्थ्य, आतंकवाद की रोकथाम, प्रव्रजन एवं शरणार्थी समस्या.
G-20 के कार्यों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
- वित्तीय भाग (Finance Track)– वित्तीय भाग के अन्दर G 20 देश समूहों के वित्तीय मंत्री, केंद्रीय बैंक गवर्नर तथा उनके प्रतिनिधि शामिल होते हैं. यह बैठकें वर्ष भर में कई बार होती हैं.
- शेरपा भाग (Sherpa Track)– शेरपा भाग में G-20 के सम्बंधित मंत्रियों के अतिरिक्त एक शेरपा अथवा दूत भी सम्मिलित होता है. शेरपा का काम है G20 की प्रगति के अनुसार अपने मंत्री और देश प्रमुख अथवा सरकार को कार्योन्मुख करना.
G-20 का विश्व पर प्रभाव
- G-20 में शामिल देश विश्व के उन सभी महादेशों से आते हैं जहाँ मनुष्य रहते हैं.
- विश्व के आर्थिक उत्पादन का 85% इन्हीं देशों में होता है.
- इन देशों में विश्व की जनसंख्या का 2/3 भाग रहता है.
- यूरोपीय संघ तथा 19 अन्य देशों का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में 75% हिस्सा है.
- G 20 कि बैठक में नीति निर्माण के लिए मुख्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों को भी बुलाया जाता है. साथ ही अध्यक्ष के विवेकानुसार कुछ G20 के बाहर के देश भी आमंत्रित किये जाते हैं.
- इसके अतिरिक्त सिविल सोसाइटी के अलग-अलग क्षेत्रों के समूहों को नीति-निर्धारण की प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाता है.
निष्कर्ष
G-20 एक महत्त्वपूर्ण मंच है जिसमें ज्वलंत विषयों पर चर्चा की जा सकती है. मात्र एक अथवा दो सदस्यों पर अधिक ध्यान देकर इसके मूल उद्देश्य को खंडित करना उचित नहीं होगा. विदित हो कि इस बैठक का उद्देश्य सतत विकास वित्तीय स्थायित्व को बढ़ावा देना है. आज विश्व में कई ऐसी चुनौतियाँ उभर रही हैं जिनपर अधिक से अधिक ध्यान देना होगा और सरकारों को इनके विषय में अपना पक्ष रखना होगा. ये चुनौतियाँ हैं – जलवायु परिवर्तन और इसका दुष्प्रभाव, 5-G नेटवर्क के आ जाने से गति और राष्ट्रीय सुरक्षा दोनों के बीच संतुलन निर्माण और तकनीक से संचालित आतंकवाद.
GS Paper 3 Source: PIB
UPSC Syllabus : Inclusive development and issues arising from it.
Topic : Recapitalisation of RRBs
संदर्भ
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (CCEA) ने 2019-20 के बाद एक और वर्ष के लिए यानी 2020-21 तक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को न्यूनतम नियामकीय पूंजी प्रदान कर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (RRB) के पुनर्पूंजीकरण की प्रक्रिया को जारी रखने को अपनी स्वीकृति दे दी है.
- इसके अंतर्गत उन क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को न्यूनतम नियामकीय पूंजी दी जाएगी जो 9% के ‘पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (Capital to Risk weighted Assets Ratio – CRAR) को बनाए रखने में असमर्थ हैं, जैसा कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्दिष्ट नियामकीय मानदंडों में उल्लेख किया गया है.
- CCEA ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना के लिए केंद्र सरकार के हिस्से के रूप में 670 करोड़ रुपये (यानी 1340 करोड़ रुपये के कुल पुनर्पूंजीकरण सहयोग का 50%) का उपयोग करने को भी स्वीकृति दे दी है.
- हालांकि, इसमें यह शर्त होगी कि प्रायोजक बैंकों द्वारा समानुपातिक हिस्सेदारी को जारी करने पर ही केंद्र सरकार का हिस्सा जारी किया जाएगा.
लाभ
- बेहतर CRAR वाले वित्तीय दृष्टि से सुदृढ़ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होंगे.
- आरबीआई के दिशा-निर्देशों के अनुसार, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपने कुल ऋण का 75% ‘पीएसएल (प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण देना)’ के तहत प्रदान करना पड़ता है. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों मुख्यत: छोटे एवं सीमांत किसानों, सूक्ष्म व लघु उद्यमों, ग्रामीण कारीगरों और समाज के कमजोर वर्गों पर फोकस करते हुए कृषि क्षेत्र और ग्रामीण क्षेत्रों की कर्ज तथा बैंकिंग संबंधी आवश्यकताओं को पूरा कर रहे हैं. इसके अलावा, आरआरबी ग्रामीण क्षेत्रों के सूक्ष्म/लघु उद्यमों और छोटे उद्यमियों को भी ऋण देते हैं.
- ‘CRAR’ बढ़ाने के लिए पुनर्पूंजीकरण या नई पूंजी संबंधी सहयोग मिलने पर क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अपने पीएसएल लक्ष्य के तहत उधारकर्ताओं की इन श्रेणियों को निरंतर ऋण देने में समर्थ साबित होंगे, अत: वे ग्रामीण आजीविकाओं के लिए निरंतर सहयोग देना जारी रखेंगे.
पृष्ठभूमि
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के पूंजी-जोखिम भारित परिसंपत्ति अनुपात (CRAR) के लिए प्रकटीकरण मानदंडों को मार्च 2008 से लागू करने संबंधी आरबीआई के निर्णय को ध्यान में रखते हुए डॉ. के.सी. चक्रबर्ती की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था.
समिति की सिफारिशों के आधार पर ‘क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना’ को कैबिनेट ने 10 फरवरी, 2011 को आयोजित अपनी बैठक में मंजूरी दी थी, ताकि विशेषकर पूर्वोत्तर क्षेत्र और पूर्वी क्षेत्र में कमजोर RRB की आवश्यकता को पूरा करने के लिए आकस्मिक निधि के रूप में 700 करोड़ रुपये की अतिरिक्त राशि के साथ 40 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को 2,200 करोड़ रुपये की पुनर्पूंजीकरण सहायता प्रदान की जा सके. अत: हर साल 31 मार्च को क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के सीआरएआर की जो स्थिति होती है उसके आधार पर ही राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) उन आरआरबी की पहचान करता है, जिन्हें 9% के अनिवार्य सीआरएआर को बनाए रखने के लिए पुनर्पूंजीकरण संबंधी सहायता की आवश्यकता होती है.
वर्ष 2011 के बाद 2,900 करोड़ रुपये की वित्तीय सहायता के साथ क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के पुनर्पूंजीकरण की योजना को चरणबद्ध ढंग से वर्ष 2019-20 तक बढ़ाया गया, जिसमें भारत सरकार की 1,450 करोड़ रुपये की 50% हिस्सेदारी शामिल थी. पुनर्पूंजीकरण के लिए भारत सरकार के हिस्से के रूप में स्वीकृत 1,450 करोड़ रुपये में से 1,395.64 करोड़ रुपये की राशि वर्ष 2019-20 में अब तक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को जारी की जा चुकी है.
इस अवधि के दौरान सरकार ने क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को आर्थिक दृष्टि से व्यवहार्य या लाभप्रद और टिकाऊ संस्थान बनाने के लिए भी कई पहल की हैं. क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को अपने उपरिव्यय को कम करने में सक्षम बनाने, प्रौद्योगिकी के उपयोग को बढ़ाने, पूंजी आधार एवं परिचालन क्षेत्र का विस्तार करने और उनकी ऋण राशि में वृद्धि करने के लिए सरकार ने तीन चरणों में क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों के ढांचागत सुदृढ़ीकरण या संयोजन की शुरुआत की है. इसके परिणामस्वरूप आरआरबी की संख्या वर्ष 2005 के 196 से घटकर अब केवल 45 रह गई है.
GS Paper 2 Source: PIB
UPSC Syllabus : Biotechnology related issues.
Topic : Bio fortified crops
संदर्भ
विज्ञान और प्रौद्योगिक विभाग, भारत सरकार के अंतर्गत आने वाले स्वायत्त संस्थान अघरकर रिसर्च संस्थान (Agharkar Research Institute – ARI) पुणे के वैज्ञानिको ने एक तरह के गेहूं की बायो फोर्टीफाइड किस्म MACS 4028 बनायी है, जिसमें उच्च मात्रा में प्रोटीन है.
ARI के वैज्ञानिक, जो गेहूं के सुधार पर काम कर रहे है, उनके द्वारा बनाई गयी इस गेहूं की किस्म में लगभग 14.7% ज्यादा उच्च प्रोटीन है, बेहतर पोषण गुणवत्ता के साथ जिंक 40.3 पीपीएम है, और लौह सामग्री 40.3 पीपीएम और 46.1 पीपीएम है.
विशेषताएँ
- MACS 4028, जिसके विकसित होने की जानकारी इंडियन जर्नल ऑफ़ जेनेटिक्स एंड प्लांट ब्रीडिंग में प्रकाशित हुई थी, एक प्रकार की सेमी ड्वार्फ किस्म है, जो 102 दिनों में बड़ी होती है और जिसने 19.3 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की श्रेष्ठ और स्थिर उपज क्षमता दिखाई है. यह स्टेम रस्ट, फोलिअर अफिड्स, लीफ रस्ट, रुट अफिड्स और ब्राउन वीट माइट की प्रतिरोधी है.
- MACS 4028 किस्म को यूनिसेफ के विशेष कार्यक्रम के तहत उगाया गया है. इस कार्यक्रम का उद्देश्य कुपोषण को मिटाना और ‘विज़न 2022’ को बढ़ावा देना है. भारत के ग्रामीण इलाकों में अप्रत्यक्ष भूख को ख़तम करने के लिए और ‘कुपोषण मुक्त भारत’ हासिल करने के लिए परंपरागत तरीकों से पौधे बनाने की तकनीक का इस्तमाल किया जा रहा है.
- MACS 4028 को सेंट्रल सब कमिटी आन क्रॉप स्टैंडर्ड्स द्वारा अधिसूचित किया गया है, साथ ही महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों को शामिल करते हुए समय पर बुवाई के लिए वैरायटी फॉर एग्रीकल्चरल क्रॉप्स (सीवीआरसी), प्रायद्वीपीय क्षेत्र में बारिश की स्थिति के लिए भी अधिसूचना जारी की गयी है. इंडियन कॉउन्सिल ऑफ़ एग्रीकल्चरल रिसर्च ने इस किस्म को 2019 की बिओफोर्टीफ़िएड केटेगरी में टैग किया है.
उपयोगिता
गेहूं भारत में 6 अलग तरह के मौसमों में उगाया जाता है. महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में गेहूं की खेती बारिश के मौसम और सीमित सिंचाई परिस्थिति में होती है. एसी स्थिति में फसल को नमी की मार झेलनी पड़ जाती है. यही वजह है की सूखा झेलने वाली फसलों की मांग अधिक है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Government Budgeting.
Topic : What is Finance Bill?
संदर्भ
वित्त विधेयक को पारित किए जाने के बाद लोकसभा की बैठक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दी गई. विदित हो कि बजट सत्र 3 अप्रैल को समाप्त होने वाला था.
बजट को दो भागों में सदन के सामने रखा जाता है, जिसमें पहला भाग वित्त विधेयक (फाइनेंस बिल) और दूसरा विनियोग विधेयक (अप्रोप्रीएशन बिल) होता है. जहां वित्त विधेयक सरकार की आय पक्ष को दर्शाता है. वहीं विनियोग विधेयक विभिन्न मंत्रालयों की ओर से मांगे गए अनुदानों और प्रभारित व्यय को दर्शाता है.
वित्त विधेयक क्या है?
- आने वाले वर्ष के लिए सरकार के सब वित्तीय प्रस्ताव एक विधेयक में सम्मिलित किए जाते हैं जिसे वित्त विधेयक कहा जाता है.
- यह विधेयक साधारणतया, प्रत्येक वर्ष बजट पेश किए जाने के तुरंत बाद लोकसभा में पेश किया जाता हे.
- यह सरकार के वित्तीय प्रस्तावों को और किसी अवधि के लिए अनुपूरक वित्तीय प्रस्तावों को भी प्रभावी करता है.
वित्त विधेयक पेश करने की अनुमति
वित्त विधेयक को पेश करने की अनुमति के लिए रखे गए प्रस्ताव का विरोध नहीं किया जा सकता और उसे तुरंत मतदान के लिए रखा जाता है.
वित्त विधेयक पर चर्चा की सीमाएं क्या हैं?
- विधेयक पर चर्चा सामान्य प्रशासन और स्थानीय शिकायतों के संबंधी मामलों पर होती है, जिनके लिए संघ सरकार उत्तरदायी हो.
- सरकार की नीति की सामान्य रूप से आलोचना करने की अनुमति तो है, परंतु किसी विशेष अनुमान के ब्यौरों पर चर्चा नहीं की जा सकती.
- संक्षेप में, समूचे प्रशासन का पुनरीक्षण तो होता है, लेकिन जिन प्रश्नों पर चर्चा हो चुकी हो उन पर फिर से चर्चा नहीं की जा सकती.
वित्तविधेयक पारित होने और राष्ट्रपति की अनुमति के लिए समयसीमा क्या होती है?
यह विधेयक पेश किए जाने के बाद 75 दिनों के भीतर संसद द्वारा इस पर विचार करके पास किया जाना और उस पर राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त हो जाना आवश्यक है.
वित्त विधेयक की क्या विशिष्टता होती है?
सामान्य रूप से, कोई ऐसा विधेयक वित्त विधेयक होता है, जो राजस्व या व्यय से संबंधित हो. वित्त विधेयकों में किसी धन विधेयक के लिए उल्लिखित किसी मामले का उपबंध शामिल होने के अलावा अन्य राजस्व या व्यय संबधी मामलों का भी उल्लेख किया जाता है.
वित्त विधेयक कितने प्रकार के होते हैं?
वित्त विधेयकों को निम्नलिखित दो श्रेणियों में विभाजित किया गया है-
- श्रेणी क: ऐसे विधेयक जिनमें धन विधेयक के लिए अनुच्छेद 110 में उल्लिखित किसी भी मामले के लिए उपबंध किए जाते हैं. हालांकि इसमें अन्य प्रकार के मामले भी होते हैं. उदाहरणार्थ किसी विधेयक में करारोपण का खंड हो, परंतु वह केवल करारोपण के संबंध में न हो, उसमें अन्य वित्तीय मामले भी हों.
- श्रेणी ख: ऐसे वित्तीय विधेयक जिनमें संचित निधि से व्यय संबंधी उपबंध किए गए हो.
धन विधेयक और वित्त विधेयक में अंतर
धन विधेयक और वित्त विधेयकों को पास कराने की प्रक्रिया में अंतर होता है. धन विधेयक, राष्ट्रपति की सिफारिश पर केवल लोकसभा में पेश किया जाता है, और राज्यसभा को उस पर अपनी सम्मति देने या रोकने की शक्ति प्राप्त नहीं है. इसके विपरीत वित्त विधेयक के संबंध में राज्यसभा को सम्मति देने, संशोधन करने या रोकने की पूरी शक्ति प्राप्त है. जैसे कि साधारण विधेयक के विषय में होती है.
GS Paper 3 Source: PIB
UPSC Syllabus : Awareness in the fields of IT, Space, Computers, robotics, nano-technology, bio-technology and issues relating to intellectual property rights.
Topic : National Supercomputing Mission (NSM)
संदर्भ
राष्ट्रीय सुपर कम्प्यूटिंग मिशन (NSM)
- राष्ट्रीय सुपरकम्प्यूटिंग मिशन (NSM) सरकार द्वारा 2015 में शुरू किया गया है, जिसे 7 वर्ष की अवधि में एमईआईटीवाई और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) द्वारा संयुक्त रूप से संचालित और कार्यान्वित किया जा रहा है.
- विदित हो कि पुणे स्थित प्रगत संगणन विकास केंद्र (C-DAC) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc), बंगलूरू को इस मिशन के लिये नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया था.
- मिशन के अंतर्गत 70 से अधिक उच्च-क्षमता वाली कम्प्यूटिंग सुविधाओं से युक्त एक विशाल सुपर कम्प्यूटिंग ग्रिड की स्थापना की जानी है जो देश भर में फैले हुए राष्ट्रीय शैक्षणिक एवं अनुसंधान एवं विकास संस्थानों को सुदृढ़ करेगा.
- इन सुपर कम्प्यूटरों को राष्ट्रीय सुपर कंप्यूटर ग्रिड से जोड़ दिया जाएगा. इसके लिए राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क (NKN) की सहायता ली जायेगी जो पहले से एक तेज नेटवर्क के द्वारा शैक्षणिक संस्थाओं एवं अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं को जोड़े हुए है.
- इस मिशन का एक उद्देश्य देश में उच्च पेशेवर कम्प्यूटिंग से अवगत मनुष्यों की फ़ौज तैयार करना है जिससे कि कम्प्यूटिंग के विकास के मार्ग में आ रही चुनौतियों का निदान हो सके.
माहात्म्य
विश्व-भर में सुपर कंप्यूटिंग सुविधाओं के चलते कई देश इन क्षेत्रों में उच्च गुणवत्ता का काम करने में सक्षम हो गये हैं – वाहनों और हवाई जहाजों का रूपांकन करना, बहुमंजिला इमारतों और पुलों जैसी विशाल अवसरंचनाओं का निर्माण करना, अन्य निर्माण करना, नई जीवन रक्षक दवाओं की खोज करना, खनिज तेल, प्राकृतिक गैस आदि के साथ-साथ ऊर्जा के नए स्रोतों का दोहन करना आदि.
सुपर कंप्यूटरों ने मानव मात्र को कई प्रकार से लाभान्वित किया है. इनके कारण मौसम का पूर्वानुमान अब सटीक हो गया है और प्राकृतिक घटनाओं पर प्रतिक्षण ध्यान रखने की सुविधा हो गयी है. समय पर चक्रवात की चेतावनी देने से कई प्राण और सम्पत्तियाँ बच गई हैं
लघु वन उत्पादों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य योजना क्या है?
- यह योजना भारत सरकार ने 2013 में चालू की थी. इसका उद्देश्य था लघु वन उत्पादों को चुनने वाले लोगों को उचित मूल्य दिलवाना. इस योजना के लिए केंद्र ने अपना अंश 967 करोड़ रु. रखा था जो 2013-14 से 2016-17 तक खर्च होने थे.
- इस योजना का मुख्य लक्ष्य वनों में जाकर छोटे-छोटे उत्पादों को चुनकर जमा करने वाले लोगों की आजीविका को सुरक्षा देना और सुधार लाना है.
- यह योजना लघु वन उत्पादों के संग्रहणकर्ताओं को उचित राशि देकर उनकी आय के स्तर को बढ़ाती है तथा साथ ही यह सुनिश्चित करती है कि लघु वन उत्पाद का सतत संग्रहण होता रहे.
- यह योजना इस बात पर ध्यान देती है कि लघु वन उत्पाद एक विशेष मूल्य पर खरीदे जाएँ और उनका प्राथमिक प्रसंस्करण, भंडारण, परिवहन आदि सुचारू रूप से हो सके.
- इस योजना में यह भी ध्यान रखा जाता है कि इन उत्पादों के स्रोत सदा बने रहे अर्थात् उनमें क्षरण न हो.
- इस योजना का एक पक्ष यह भी है कि इससे स्त्रियों का आर्थिक सशक्तीकरण सुदृढ़ होता है क्योंकि अधिकांश संग्रहणकर्ता स्त्रियाँ ही होती हैं और इन उत्पादों जमा करने वाली और उपयोग करने वाली एवं बेचने वाली स्त्रियाँ ही होती हैं.
- ज्ञातव्य है कि लघु वन उत्पाद प्रक्षेत्र में यह क्षमता है कि वह देश में हर वर्ष दस मिलियन कार्यदिवस का सृजन कर सकता है.
योजना का कार्यान्वयन
- वन धन योजना केन्द्रीय स्तर पर नोडल विभाग के रुप में जनजातीय कार्य मंत्रालय द्वारा तथा राष्ट्रीय स्तर पर नोडल एजेंसी के रूप में ट्राइफेड (TRIFED) के माध्यम से क्रियान्वित की जायेगी.
- राज्य स्तर पर MFP हेतु राज्य नोडल एजेंसी तथा प्राथमिक स्तर पर जिलाधिकारियों द्वारा योजना कार्यान्वयन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की परिकल्पना की गई है.
लघु वन उत्पादों का माहात्म्य
- लघु वन उत्पाद वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों के लिए आजीविका के एक प्रमुख साधन होते हैं. इन लोगों के लिए लघु वन उत्पादों का महत्त्व इसी बात से पता चलता है कि लगभग 100 मिलियन वनवासी भोजन, आश्रय, औषधियों और नकद आय के लिए लघु वन उत्पादों पर ही निर्भर रहते हैं.
- जिस समय खाने-पीने की कमी होती है तो उस समय आदिवासियों, विशेषकर आदिम जनजातियों जैसे शिकारियों और भोजन संग्रह करने वालों तथा भूमिहीनों के लिए लघु वन उत्पाद जीने का सहारा होते हैं. आदिवासियों की वार्षिक आय का 20-40% इन्हीं उत्पादों से आता है और इनके संग्रहण आदि में इनका अधिकांश समय बीतता है.
- अधिकांश लघु वन उत्पादों को स्त्रियाँ ही जमा करती हैं, उपयोग में लाती हैं और बेचती हैं. इसलिए इनके न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी करने से स्त्रियों की आर्थिक स्थिति सशक्त होगी.
- लघु वन उत्पाद प्रक्षेत्र एक ऐसा प्रक्षेत्र है जो देश में प्रत्येक वर्ष 10 मिलियन कार्य दिवस का सृजन करने कि क्षमता रखता है.
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