Sansar डेली करंट अफेयर्स, 26 November 2018

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Sansar Daily Current Affairs, 26 November 2018


GS Paper 2 Source: PIB

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Topic : “Atmosphere & Climate Research-Modelling Observing Systems & Services (ACROSS)” scheme

संदर्भ

बहु-आयामी योजना “Atmosphere & Climate Research-Modelling Observing Systems & Services (ACROSS)”  के अंदर आने वाली नौ उपयोजनाओं को 2017-2020 की अवधि में चलाते रहने के प्रस्ताव को केन्द्रीय समिति ने अपना अनुमोदन प्रदान कर दिया है.

भूमिका

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Sciences) को यह काम सौंपा गया है कि वह ऐसे अनुसंधान और विकासात्मक गतिविधियाँ करे जिससे मौसम, जलवायु और प्राकृतिक विपदा से सम्बंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की क्षमता में सुधार हो. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने इस दिशा में कई पहलें की हैं और कई विशेष योजनाएँ बनाई हैं, जैसे – मौसम एवं जलवायु का मॉडल तैयार करना, मानसून पर अनुसंधान करना आदि-आदि. ये योजनाएँ कई संस्थानों में चलाई जायेंगी और हर संस्थान को कार्य के सम्पादन के लिए अलग-अलग भूमिका दी जाएगी.

ACROSS योजना

  • ACROSS योजना पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के वायुमंडल विज्ञान कार्यक्रमों का एक हिस्सा है.
  • इस योजना के अंदर मौसम एवं जलवायु सेवाओं के विभिन्न पहलुओं पर काम होता है, जैसे – चक्रवात, आँधी, लू, बवंडर आदि की चेतावनी देना.
  • इस योजना के कार्यान्वयन में कई वैज्ञानिक एवं तकनीकी कर्मचारियों की आवश्यकता होगी जिस कारण रोजगार के अवसर बढ़ेंगे.
  • इस योजना के कार्यान्वयन से कृषि विज्ञान केन्द्रों, कृषि विश्वविद्यालयों और नगरपालिकाओं में भी योग्य व्यक्तियों को नियुक्त करने की व्यवस्था होगी. इस प्रकार रोजगार सृजन में यह योजना सहायक होगी.
  • ये सभी कार्य बहु-आयामी ACROSS योजना के 9 उपयोजनाओं के अन्दर आते हैं.
  • ACROSS योजना का लक्ष्य विश्वसनीय मौसम एवं जलवायु पूर्वानुमान की सुविधा देना है जिससे कि समाज उसका लाभ उठा सके.

GS Paper 2 Source: PIB

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Topic : Allied and Healthcare Professions Bill, 2018

संदर्भ

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने सम्बद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनलों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा एवं सेवाओं के नियमन और मानकीकरण के लिए सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018 को स्वीकृति दे दी है.

विधेयक के मुख्य तथ्य

  • इस विधेयक के अनुसार केंद्र और राज्यों में सम्बद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा परिषदें स्थापित की जायेंगी.
  • इन परिषदों के कार्य ये होंगे – नीतियों और मानकों का निर्धारण, पेशेवर आचरण के लिए नियम बनाना, पंजियाँ बनाना एवं उनका संधारण करना, पेशे में प्रवेश के लिए और उससे निकलने के लिए दोनों प्रकार की सामान्य परीक्षाओं का प्रावधान करना.
  • केन्द्रीय परिषद् में 47 सदस्य होंगे जिनमें से 14 सदस्य पदेन होंगे और शेष 33 सदस्य 15 पेशा श्रेणियों से आने वाले अपदेन सदस्य होंगे.
  • राज्य परिषदों में 7 पदेन और 21 अपदेन सदस्य तथा 1 अध्यक्ष होंगे. यह अध्यक्ष अपदेन सदस्यों के बीच में से चुना जाएगा.
  • केन्द्रीय और राज्य दोनों परिषदों में पेशेवर परामर्शी निकाय भी होंगे जिनका काम स्वतंत्र रूप से समस्याओं का परीक्षण करना और इनके समाधान के लिए अनुशंसा करना होगा.
  • विधेयक के नियम पहले से चल रहे किसी भी कानून से ऊपर माने जायेंगे.
  • सम्बद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा संस्थानों को मान्यता देना राज्य परिषदों का काम होगा.
  • गलत कामों को रोकने के लिए विधेयक में अपराध और दंड के विषय में आवश्यक प्रावधान किये गये हैं.
  • यह विधेयक केंद्र और राज्य सरकारों को भी नियम बनाने की शक्ति देता है.
  • केंद्र सरकार को यह शक्ति होगी कि वह परिषद् को नियम बनाने और अनुसूची में जोड़-घटाव करने के लिए निर्देश दे सकेगा.

व्यय अनुमान

प्रथम चार वर्षों में कुल लागत 95 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया है. कुल बजट का लगभग 80% (अर्थात् 75 करोड़ रुपये) राज्यों के लिए निर्धारित किया जा रहा है, जबकि शेष राशि के जरिए 4 वर्षों तक केन्द्रीय परिषद् के परिचालन के साथ-साथ केन्द्रीय एवं राज्य स्तरीय रजिस्टरों को तैयार करने में सहयोग के रूप में दिया जाएगा.

लाभार्थियों की संख्या

यह अनुमान लगाया गया है कि सम्बद्ध एवं स्वास्थ्य सेवा पेशा विधेयक, 2018 से देश में प्रत्यक्ष तौर पर लगभग 8-9 लाख वर्तमान सहयोगी एवं स्वास्थ्य सेवा संबंधी पेशेवर और हर वर्ष कार्यबल में बड़ी संख्या में सम्मिलित होने वाले एवं स्वास्थ्य प्रणाली में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले अन्य स्नातक पेशेवर लाभान्वित होंगे. क्योंकि इस विधेयक का उद्देश्य मुहैया कराई जाने वाली स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी प्रणाली को मजबूत बनाना है, अतः यह कहा जा सकता है कि इस विधेयक से देश की सम्पूर्ण जनसंख्या और समूचा स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र लाभान्वित होगा.


GS Paper 3 Source: Indian Express

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Topic : Microbiome research

संदर्भ

हाल ही में, पुणे में जीवाणु मंडल पर हुए अनुसंधान के विषय में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन नवम्बर 19 से 22 तक आयोजित किया गया. विदित हो कि यह विषय अभी भारत के लिए अध्ययन का एक नया विषय है.

मानव जीवाणु मंडल क्या है?

मानव के शरीर में भाँति-भाँति के सूक्ष्म जीव रहते हैं जो अधिकांशतः बैक्टीरिया होते हैं. इन सूक्ष्म जीवों के समुदाय को मानव जीवाणु मंडल (human microbiome) कहते हैं.

मानव जीवाणु मंडल की भूमिका

मनुष्य में पाए जाने वाले जीवाणु मानव के शरीर को कई प्रकार से प्रभावित करते हैं. एक ओर ये जटिल दुष्पाच्य कार्बोहाइड्रेट और वषा का अपचय करते हैं तो दूसरी ओर कई आवश्यक विटामिन उत्पन्न करके प्रतिरक्षा तन्त्र को बनाए रखते हैं. एक प्रकार से ये पैथोजेन (pathogens) अर्थात् रोगकारी तत्त्वों से लड़ने वाले पहली पंक्ति के सिपाही हैं.

मानव जीवाणु मंडल पर अनुसंधान का महत्त्व

मानव जीवाणुमंडल पर अनुसंधान से बहुत बातों का पता चलता है, यथा – किस प्रकार मानव शरीर के अलग-अलग भागों में अलग-अलग विशेष सूक्ष्म जीवों के समुदाय बसते हैं और किन कारणों से इन जीवाणु मंडलों की बनावट तय होती है. ज्ञातव्य है कि हमारे आनुवंशिक गुणों, खान-पान की आदतों, उम्र, भौगोलिक स्थिति और नस्ल ऐसे कारण हैं जिनसे हमारे जीवाणु मंडलों की बनावट तय होती है. इन अध्ययनों से यह लाभ हुआ है कि हम इस बात का अध्ययन कर सकते हैं कि हमारे शरीर में रहने वाले जीवाणु हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव छोड़ते हैं और कहाँ तक रोगों के कारण हैं.

भारत की परियोजना

भारत ने एक परियोजना तैयार की है जिसमें देश-भर के मानव जीवाणु मंडलों का अध्ययन किया जाएगा और उसका नक्शा तैयार किया जायेगा. यह परियोजना 150 करोड़ रु. की है जिसके लिए शीघ्र अनुमोदन आने वाला है.

इस परियोजना के अंदर देश के अलग-अलग भौगोलिक भागों से विभिन्न नस्लों के 20,000 भारतीयों के लार, मल और त्वचा के अंश का संग्रह किया जाएगा. भारत में इस प्रकार के अनुसंधान की अपार संभावनाएँ हैं क्योंकि यहाँ 4,500 प्रकार के नस्ली समूह हैं और साथ ही हिमालय और पश्चिमी घाटों में दो वैश्विक जैव-विवधता के महत्त्वपूर्ण स्थल भी हैं.


GS Paper 3 Source: Down to earth

Topic : Transgenic rice with reduced arsenic accumulation

Transgenic rice with reduced arsenic accumulation

संदर्भ

चावल के दानों में शंखिया (arsenic) का जमा होना आज भारतीय कृषि के लिए एक गंभीर समस्या है. इस समस्या के समाधान के लिए लखनऊ-स्थित CSIR- राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (CSIR- National Botanical Research Institute) ने परिवर्तित जीनों वाले चावल को विकसित किया है जिसमें एक नया फंफूदी जीव (fungal gene) प्रविष्ट करके चावल के दाने में शंखिया के जमाव को घटा दिया गया है.

यह कैसे संभव हुआ?

अनुसंधानकर्ताओं ने मिट्टी की एक फंफूद से Arsenic methyltransferase (WaarsM) नामक जीन  का क्लोन बनाया जिसका नाम Westerdykellaaurantiaca रखा गया. पुनः इस जीन को उसी चावल के जेनोम में Agrobacterium tumefaciens नामक एक मिट्टी के बैक्टीरिया की सहयता से प्रवेश कराया गया. ज्ञातव्य है कि मिट्टी के इस बैक्टीरिया में पौधे के जीन की बनावट को परिवर्तित करने की प्राकृतिक क्षमता होती है.

उसके पश्चात् नए-नए विकसित परिवर्तित जीन वाले धान तथा साथ ही सामान्य धान को शंखिया में डाला गया. देखा गया कि ऐसा करने पर परिवर्तित जीन वाले पौधे की जड़ और टहनी में शंखिया सामान्य धान की तुलना में कम जमा हुआ था.

आवश्यकता और महात्म्य

कई लोग शंखिया की विषाक्तता के शिकार हैं, इसलिए आज आवश्यकता है कि धान की ऐसी प्रजाति विकसित की जाए जिसके दाने, जड़ और पराली में शंखिया की मात्रा कम से कम हो और अनाज का उत्पादन भी अधिक से अधिक हो. यदि ऐसा जैव-तकनीक की विधियों से होता है तो न केवल मानव अपितु पशुओं के लिए भी यह लाभकारी होगा.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Global Stocktake

संदर्भ

अगले महीने पोलैंड में होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (UN climate conference) के पहले, BASIC देश अर्थात् ब्राजील, साउथ अफ्रीका, भारत और चीन हाल ही में मिले और विकसित देशों पर यह दबाव डाला कि वे 2020-पूर्व जलवायु से सम्बंधित लक्ष्यों को पूरा करें और क्रमिक रूप से, परन्तु ठोस रूप से अपनी वित्तीय सहायता में वृद्धि करें.

इन देशों ने एक संयुक्त वक्तव्य निर्गत किया जिसमें विकसित देशों से कहा गया कि वे 2020 तक पूरी की जाने वाली कार्रवाइयों में रह गई कमियों को 2023 तक तत्परता से दूर कर दें जिससे प्रथम वैश्विक आकलन (Global Stocktake – GST) के समय इनका लाभ उठाया जा सके.

वैश्विक आकलन क्या है?

वैश्विक आकलन (Global Stocktake – GST) उस समीक्षा का नाम दिया गया है जिसमें हर पाँच वर्ष पर देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन से सम्बन्धित की गई कार्रवाइयों के प्रभाव का आकलन करने का प्रस्ताव है.

ज्ञातव्य है कि पहले पेरिस समझौते में यह तय हुआ था कि हर देश पाँच-पाँच वर्ष पर जलवायु विषयक अपनी योजना प्रस्तुत करेगा. पेरिस समझाते में यह भी तय हुआ था कि प्रथम वैश्विक आकलन 2023 में होगा.

इस आकलन में देखा जाएगा कि विश्व के औसत तापमान को औद्योगिक युग के आरम्भ होने के पहले के तापमान से 2°C के अन्दर रखने में हम समर्थ हुए हैं कि नहीं अथवा हमें इस दिशा में और भी कुछ करने की आवश्यकता है.

BASIC देश

  • BASIC देश के अंतर्गत चार बड़े परन्तु नए-नए औद्योगिकीकृत देश आते हैं – ब्राजील, साउथ अफ्रीका, भारत और चीन. यह भू-राजनैतिक गठबंधन नवम्बर 2009 में एक समझौते के द्वारा बना था.
  • इस मंच के जरिये जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2009 से समुचित उपायों पर मुख्य रूप से चर्चा की जाती है.
  • जलवायु परिवर्तन के विषय में चल रहे अंतर्राष्ट्रीय घटनाक्रम पर चर्चा के लिए प्रत्येक 6 महीने में एक बार बेसिक राष्ट्रों का एक मंत्री-स्तरीय सम्मेलन आयोजित किया जाता है.
  • इसमें तकनीकी, आर्थिक तथा रणनीतिक सहयोग संबंधित संयु्क्त सहयोग की प्रतिबद्धता दिखलाई जाती है.
  • हाल ही में भारत का समर्थन करते हुए बेसिक ने यूरोपीय संघ द्वारा बाहरी विमानों पर लगाए जा रहे कार्बन कर का भी कड़ा विरोध दर्ज़ किया है.
  • BASIC देशों का मानना है कि यूरोपीय संघ को यह कर तत्काल खारिज कर देना चाहिए, क्योंकि यह कर संयुक्त राष्ट्र के बहु-पक्षवाद (Multi-lateralism) की भावना के विरुद्ध है.

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