Sansar Daily Current Affairs, 27 June 2019
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : National Policy on Biofuels – 2018
संदर्भ
सरकार द्वारा अनुमोदित राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति – 2018 में यह लक्ष्य रखा गया है कि 2030 तक पेट्रोल में 20% ऐथनॉल मिलाया जाएगा और डीजल में 5% जैव-डीजल मिलाया जाएगा.
राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति – 2018 की मुख्य विशेषताएँ
- इस नीति में जैव ईंधन को तीन श्रेणी बाँटा गया है.
- पहली श्रेणी 1G है जिसके अंतर्गत bioethanol & biodiesel एवं “Advanced Biofuels” आते हैं.
- दूसरी श्रेणी 2G है जिसमें ethanol, Municipal Solid Waste (MSW) आते हैं.
- तीसरी श्रेणी 3G कहलाएगी जिसमें आने वाले ईंधन biofuels, bio-CNG आदि हैं.
- ये श्रेणियाँ इसलिए बनाई गई हैं कि तदनुसार आवश्यक आर्थिक सहायता और वित्तीय प्रोत्साहन राशि (incentives) दी जा सकेगी.
- इस नीति में एथनोल (ethanol) उत्पादन के लिए उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल की परिभाषा को व्यापक विस्तार देते हुए इसमें इन सामग्रियों को भी जोड़ा गया है – गन्ना रस, चुकंदर जैसे मीठे पदार्थ, मीठा बाजरा, मंडयुक्त अनाज जैसे मकई, कसावा, क्षतिग्रस्त गेहूँ, टूटा चावल, अखाद्य सड़ा आलू.
विभिन्न प्रकार के जैव ईंधन
- बायो ऐथनॉल :यह कार्बोहाइड्रेट और फसलों एवं अन्य पौधों व घासों के रेशेदार (cellulosic) सामग्री के किण्वन से उत्पादित अल्कोहल है. सामान्यतः ईंधन की ऑक्टेन संख्या बढ़ाने के लिए इसका योजक के रूप में प्रयोग किया जाता है.
- जैव डीजल :यह पौधों और पशुओं से प्राप्त तेलों और वसा के ट्रांस एस्टरीफिकेशन द्वारा उत्पादित फैटी एसिड का मिथाइल या मिथाइल एस्टर है. इसका प्रत्यक्ष रूप से ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है.
- बायो गैस :बायो गैस अवायवीय जीवों द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अवायवीय पाचन के माध्यम से उत्पादित मीथेन है. इसे पूरक गैस प्राप्ति करने के लिए एनारोबिक डाइजेस्टर में या तो जैव-निम्नीकरणीय अपशिष्ट पदार्थ डालकर अथवा ऊर्जा फसलों का उपयोग करके उत्पादन किया जा सकता है.
इस नीति से संभावित लाभ
आयत पर निर्भरता कम करती है – बड़े पैमाने पर जैव ईंधन के उत्पादन से कच्चे तेल पर आयात निर्भरता में कमी आएगी और विदेशी मुद्रा की बचत होगी.
स्वच्छ पर्यावरण – फसलों को जलाने में कमी लाने और कृषि अवशेषों/अपशिष्ट के जैव ईंधन में रूपांतरण में ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन और अन्य कणिकीय पदार्थों में कमी आएगी.
नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन – एक अनुमान के अनुसार, प्रतिवर्ष भारत में 62 MMT नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (Municipal Solid Waste : MSW) उत्पन्न होता है. यह नीति अपशिष्ट/प्लास्टिक, MSW का ड्राप इन फ्यूल (ठोस अपशिष्ट से हाइड्रोकार्बन ईंधन) में रूपांतरण को बढ़ावा देती है.
ग्रामीण क्षेत्रों में अवसंरचना संबंधी निवेश – पूरे देश में दूसरी पीढ़ी की जैव रिफाइनरियों की संख्या बढ़ने से ग्रामीण इलाकों में अवसंरचना सम्बन्धी निवेश को बढ़ावा मिलेगा.
रोजगार सृजन – जैव रिफ़ाइनरियों की स्थापना से संयंत्र परिचालनों, ग्रामीण स्तर के उद्यमों और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में रोजगार के अवसर पैदा होंगे.
किसानों के लिए अतिरिक्त आय – किसान कृषि अवशेषों/अपशिष्ट का लाभ उठा सकते हैं जिन्हें अक्सर उनके द्वारा जला कर नष्ट कर दिया जाता है. कीमत गिरने पर वे अपने अधिशेष उत्पाद उचित दाम में इथेनॉल बनाने वाली इकाइयों को बेच सकते हैं.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : PMUY
संदर्भ
प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत 7.23 करोड़ कनेक्शन दिए जा चुके हैं.
प्रधानमन्त्री उज्ज्वला योजना
- पीएमयूवाई की शुरूआत एक मई 2016 को की गयी. इसके तहत मार्च 2019 तक गरीब परिवार की पांच करोड़ महिलाओं को नि:शुल्क गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने का लक्ष्य था। बाद में लक्ष्य को बढ़ाकर 2021 तक 8 करोड़ कर दिया गया और अब सभी घर को गैस कनेक्शन उपलब्ध कराने पर जोर दिया जा रहा है.
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (PMUY) का शुभारम्भ डॉ. बी.आर.अम्बेडकर की जयंती परतेलंगाना राज्य में किया गया.
- प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लक्ष्य गरीब परिवारों तक एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) कनेक्शन पहुँचाना है.
- इस योजना के अंतर्गत सामाजिक-आर्थिक-जाति-जनगणना (SECC) के माध्यम से पहचान किये गए गरीबी रेखा के नीचे आने वाले परिवारों की वयस्क महिला सदस्य को केंद्र सरकार द्वारा प्रति कनेक्शन 1600 रुपये की वित्तीय सहायता के साथ जमा-मुक्त एलपीजी कनेक्शन दिया जाता है.
- यह योजना पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा लागू की जा रही है.
PMUY के फायदे
- शुद्ध ईंधन के प्रयोग से महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार
- अशुद्ध जीवाश्म ईंधन के प्रयोग न करने से वातावरण में कम प्रदूषण
- खाने पर धुएं के असर से मृत्यु में कमी
- छोटे बच्चों में स्वास्थ्य समस्या से छुटकारा
LPG आवश्यक क्यों?
- भारत में उपले, कोयले, लकड़ियाँ आदि से भोजन बनाने की परम्परा रही है. पर इन ईंधनों से निकलने वाला धुआँ प्रदूषण फैलाता है और महिलाओं और बालिकाओं के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है. स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि घरों में होने वाले वायु प्रदूषण स्वास्थ्य की क्षति का दूसरा सबसे बड़ा कारण है.
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ठोस इंधन के प्रयोग से भारत में 13% मृत्यु होती है और लगभग 40% फेफड़ों की बीमारी की जड़ में यही है. 30% मोतियाबिंद और 20% स्केमिक हृदय रोग, फेफड़ा कैंसर और फेफड़ा संक्रमण ठोस इंधन के चलते होता है.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : National Policy on Domestic Workers
संदर्भ
भारत सरकार राष्ट्रीय घरेलू कामगार नीति के एक प्रारूप पर विचार कर रही थी. इसका उद्देश्य घरेलू कामगारों को न्यूनतम मजदूरी दिलवाना और साथ ही उनकी सामाजिक सुरक्षा एवं काम करने की दशा में सुधार लाना है.
राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता क्यों?
- घरेलू कामगारों को दी गई मजदूरी कम होती है और वह जल्दी बढ़ती नहीं है. विशेषकर बंगाल में और आदिवासी कामगारों के मामलों में यह और भी कम होती है. वस्तुतः घरेलू कामगार के वेतन और सेवा-शर्तों पर घर के मालिक का वर्चस्व होता है.
- घर का मालिक समय पर मजदूरी का भुगतान नहीं करता है.
- नौकरी के आरम्भ में तय किये गये काम से अधिक काम लिया जाता है.
- मनमाने ढंग से मजदूरी घटा दी जाती है.
- जब कभी कोई कामगार वेतन अथवा काम के बारे में फिर से कुछ कहता है तो उसको काम छोड़ देना पड़ता है और इसको लेकर न केवल कहा-सुनी होती है, अपितु मार-पीट तक हो जाती है.
- घरेलू कामगार पर नौकरी छूटने का खतरा निरंतर बना रहता है और कभी-कभी वह बकाया पाने के लिए अपराध भी कर बैठता है.
प्रस्तावित राष्ट्रीय नीति
- इसका उद्देश्य घरेलू कामगारों को शोषण, परेशानी, हिंसा, आदि से बचाना और उन्हें सामाजिक सुरक्षा एवं न्यूनतम मजदूरी का अधिकार दिलवाना है.
- इस नीति में यौन उत्पीड़न और बंधुआ मजदूरी के विरुद्ध प्रावधान किये गये हैं.
- इस नीति के अंतर्गत सामाजिक सुरक्षा, रोजगार के लिए उचित शर्तों, शिकायत निवारण और विवाद निपटारे के लिए एक सांस्थिक तन्त्र का निर्माण प्रस्तावित है. इसके अनुसार घरेलू कामगार श्रमिक कहे जाएँगे और उन्हें राजश्रम विभाग के अन्दर अपने-आप को पंजीकृत करने का अधिकार होगा.
- इस नीति के अनुसार घरेलू कामगार भी अन्य कामगारों की भाँति अपना संगठन बना सकेंगे.
- राष्ट्रीय नीति में घरेलू रोजगार के लिए एक आदर्श समझौता पत्र की भी अभिकल्पना है जिसमें यह बताया जाएगा कि कामगार को कितना घंटा काम करना है और उसे आराम के लिए कितनी छुट्टी मिल सकती है.
- इस नीति के अनुसार सरकारें घरेलू कामगारों की नियुक्ति और इससे सम्बंधित एजेंसियों पर नियंत्रण रखने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगी तथा केंद्र, राज्य एवं जिला-स्तरों पर कार्यान्वयन समितियाँ गठित की जाएँगी.
- राष्ट्रीय नीति में विभिन्न प्रकार के कामगारों की स्पष्ट परिभाषा दी जायेगी, जैसे – आंशिक कामगार, पूर्णकालिक कामगार, घर में रहने वाले कामगार. इसके अतिरिक्त इस नीति में काम पर लगाने वालों और निजी नौकरी दिलाने वाली एजेंसियों को भी परिभाषित किया जाएगा.
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Complaint Management System (CMS) by RBI
संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक के अन्दर शिकायत निवारण प्रक्रिया को सुचारू बनाने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक सॉफ्टवेर ऐप का अनावरण किया है, जिसका नाम CMS अर्थात् शिकायत प्रबंधन प्रणाली है. इस ऐप का उद्देश्य ग्राहकों की समस्याओं का समय पर निदान करना है.
यह ऐप कैसे काम करता है?
इस ऐप पर ग्राहक किसी भी सार्वजनिक व्यवहार वाली नियमित इकाई, जैसे – वाणिज्यिक बैंक, शहरी सहकारी बैंक, गैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियाँ, के विरुद्ध शिकायत कर सकता है. यह शिकायत या तो सीधे सही कार्यालय में दी जा सकती है अथवा ओम्बड्सममैन/RBI के क्षेत्रीय कार्यालय को.
लाभ
शिकायत दायर होने के बाद यह ऐप स्वतः एक पावती उत्पन्न करता है जिसके आधार पर शिकायतकर्ता शिकायत की स्थिति के बारे में समय-समय पर जानकारी ले सकता है. इसी ऐप से वह आवश्यकता पड़ने पर किसी भी स्तर पर हुए आदेश के विरुद्ध ऑनलाइन अपील भी कर सकता है. इस ऐप में फीडबैक देने की भी सुविधा है जो शिकायतकर्ता की इच्छा पर निर्भर है. इन सब उपायों के कारण शिकायत निवारण की प्रक्रिया पूर्णतः पारदर्शी हो जाती है.
आवश्यकता
बैंकिंग प्रणाली में लोगों का विश्वास बना रहे इसके लिए शिक्षा तो आवश्यक है ही, साथ ही ग्राहकों को सशक्स्त करना भी उतना ही आवश्यक है. इसके लिए ससमय और कारगर शिकायत निवारण का एक सुदृढ़ तंत्र होना अनिवार्य है. हम कह सकते हैं कि RBI द्वारा निर्गत यह ऐप इस दिशा में बढ़ा हुआ एक महत्त्वपूर्ण कदम है.
GS Paper 3 Source: Times of India
Topic : Jal Hi Jeevan Hai
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हरियाणा सरकार ने “जल ही जीवन है” नाम की एक योजना बनाई है जिसका मूलमन्त्र है – “धान की खेती वाली भूमि में मकई, अरहर और सोयाबीन लगाकर जल को बचाना.” हरियाणा के उत्तरी जिलों के किसानों ने फसलों की विविधता वाली इस योजना में रूचि दिखलाई है.
“जल ही जीवन है” योजना क्या है?
- इस योजना में हरियाणा के सात डार्क जोन प्रखंडों में धान के स्थान पर मकई और अन्य फसलों की खेती करने की अभिकल्पना की गई है.
- इस योजना में लगभग 50,000 हेक्टेयर भूमि के विविधीकरण का लक्ष्य रखा गया है.
इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी?
वर्षों से दोहन के कारण राज्य में भूमिजल इतना घट गया है कि राज्य में 60 ऐसे भूभाग हैं जहाँ जलाभाव देखा जाता है. इनमें दस जिलों में स्थित 21 ऐसे भूभाग हैं जहाँ यह समस्या सबसे विकट है. लगातार धान उपजाने के कारण राज्य में जल का स्तर प्रत्येक वर्ष एक मीटर घटता जाता है. विदित हो कि धान बहुत अधिक पानी खाता है.
जल-स्तर के नीचे होने का कारण मात्र धान की खेती ही नहीं है, अपितु अन्य कारण भी हैं –
- खेतों का लगातार उपयोग होता है. पहले धान उगाई जाती है और फिर तुरंत गेहूँ लगा दिया जाता है.
- बरसात से खेतों को वर्ष-भर में जितना पानी मिलता है उससे कहीं अधिक भूमि जल खर्च कर दिया जाता है.
- धान और गेहूँ दोनों फसलों की सिंचाई की विधि भी ऐसी है जिसमें पानी बहुत अधिक मात्रा में पटाया जाता है और इसका एक बड़ा अंश बर्बाद हो जाता है.
योजना के उद्देश्य
- हरियाणा में पानी खाने वाली फसलों का क्षेत्रफल घटाना.
- टिकाऊ कृषि के लिए वैकल्पिक फसलों के निमित्त तकनीकी नवाचार लाना.
- संसाधन संरक्षण की व्यवस्था करना.
- भूजल के स्तर को फिर से पुराने स्तर पर लाना.
- धान-गेहूँ चक्र के कारण मिट्टी में होने वाले ह्रास को नियंत्रित करना और मिट्टी के लिए ऐसी फसलों की खेती को प्रोत्साहन देना जिनमें सूक्ष्म पोषक तत्त्व भरे हों और जो मिट्टी का संरक्षण करने में समर्थ हों.
- किसानों को ऐसी वैकल्पिक फसलों को लगाने की प्रेरणा देना जिनसे उन्हें तुलनात्मक रूप से अधिक लाभ हो सके.
- नई फसलों को सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर क्रय को सुनिश्चित करना.
- किसानों को खेती के लिए सामग्री उपलब्ध कराना और उन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत पूर्ण बीमा देकर उनकी जोखिम को सम्भालना.
सरकार द्वारा दी गई उत्प्रेरणाएँ
- प्रत्येक किसान को प्रति एकड़ 2,000 रू. दिए जाएँगे.
- चुने हुए किसानों को HSDC काउंटरों पर मुफ्त में ऊँची गुणवत्ता और अधिक फसल देने वाले संकर बीज दी जाएँगे.
- चुने हुए कुछ किसानों को मकई के लिए भी उनके प्रीमियम की राशि राज्य सरकार देगी.
- इन किसानों के उत्पादों को राज्य सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदेगी.
GS Paper 3 Source: Indian Express
Topic : What is Lunar Evacuation System?
संदर्भ
नासा ने निर्णय किया है कि वह 2024 में एक बार फिर से मानव को चंद्रमा पर भेजेगा. इसके लिए चल रही तैयारों में से एक तैयारी एक ऐसे उपकरण का निर्माण करना है जो चंद्रमा में घायल होने अन्तरिक्षयात्रियों का उद्धार कर सके. यह उपकरण तैयार हो गया है और अब इसका परीक्षण किया जा रहा है. इसका नाम है – लूनर इवेक्यूएशन सिस्टम असेम्बली अर्थात् LESA.
LESA क्या है?
LESA यूरोपीय एजेंसी द्वारा निर्मित एक पिरामिड के आकार का उपकरण है जिसका काम चंद्रमा के तल पर घायल अन्तरिक्ष यात्रियों को बचाना है.
यह कैसे काम करता है?
LESA को संचालित करके एक अकेला अन्तरिक्षयात्री अपने उस सहयोगी को बचा सकता है जो गिर गया हो. इस उपकरण की विशेषता है कि इसका उपयोग करके कोई भी अन्तरिक्षयात्री अपने सह-यात्री को दस मिनट के अन्दर उठाकर एक चलंत स्ट्रेचर पर डाल सकता है जिसके बाद उस अन्तरिक्षयात्री को पास में स्थित यान में सुरक्षित पहुँचा दिया जा सकेगा.
Prelims Vishesh
Arogyapacha (Trichopus zeylanicus) :-
- केरल विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने आरोग्यपाचा (Trichopus zeylanicus) नामक एक अत्यंत सशक्त औषधीय पौधे की आनुवंशिक बनावट को डिकोड किया है.
- विदित हो कि यह पौधा अगस्त्य पहाड़ियों में बहुतायत से पाया जाता है.
- थकान दूर करने के लिए प्रसिद्ध इस पौधे को वहाँ की कानी जनजाति पारम्परिक रूप से प्रयोग में लाती रही है.
Saudi launches residency scheme to boost revenue :-
- सऊदी अरब ने एक विशेष आवासीय योजना बनाई है जिसका उद्देश्य समृद्ध विदेशियों को अपने यहाँ आकर्षित करना है जिससे कि देश के गैर-खनिज तेल राजस्व को बढ़ाया जा सकेगा.
- इस योजना के अन्दर जो विदेशी 213,000 डॉलर जमा करेगा उसको सऊदी अरब का स्थायी नागरिक बना दिया जाएगा.
Nepalese nationals require visa to enter India via Pak, China :-
भारत में नेपाल के दूतावास द्वारा निर्गत एक सूचना के अनुसार जो नेपाली भारत में पाकिस्तान, चीन, होंग-कोंग और मकाऊ के रास्ते से होकर आएँगे उनके पास अब भारतीय वीजा होना अनिवार्य होगा.
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