Sansar Daily Current Affairs, 27 May 2020
GS Paper 1 Source : PIB
UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.
Topic : Ramkinkar Baij
संदर्भ
हाल ही में संस्कृति मंत्रालय के राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय ने रामकिंकर बैज की 115वीं जयंती मनाने के लिए ‘रामकिंकर बैज, मूक बदलाव और अभिव्यक्तियों के माध्यम से यात्रा’ के शीर्षक से आभासी यात्रा (वर्चुअल टूर) का आयोजन किया.
इस आभासी यात्रा के दौरान रामकिंकर बैज की उन उत्कृष्ट कलाकृतियों को दर्शाया गया जिन्हें इन पाँच अलग-अलग थीम की श्रृंखला में वर्गीकृत किया गया है – (i) चित्र (पोर्ट्रेट), (ii) जीवन का अध्ययन, (iii) सार एवं संरचनात्मक रचना, (iv) प्रकृति का अध्ययन एवं परिदृश्य, और (v) मूर्तियां.
रामकिंकर बैज कौन थे?
- आधुनिक भारत के सबसे मौलिक कलाकारों में से एक रामकिंकर बैज एक प्रतिष्ठित मूर्तिकार, चित्रकार और ग्राफिक कलाकार थे.
- रामकिंकर बैज (1906-1980) का जन्म पश्चिम बंगाल के बांकुरा में एक ऐसे परिवार में हुआ था, जिसकी आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति थोड़ी कमजोर थी, परन्तु वह अपने दृढ़संकल्प के बल पर भारतीय कला के सबसे प्रतिष्ठित प्रारंभिक आधुनिकतावादियों में स्वयं को शुमार करने में सफल रहे थे.
- वर्ष 1925 में उन्होंने शांतिनिकेतन स्थित कला विद्यालय अर्थात् कला भवन में अपना प्रवेश सुनिश्चित किया और इसके साथ ही नंदलाल बोस के मार्गदर्शन में अनेक बारीकियां सीखीं.
- शांतिनिकेतन के मुक्त एवं बौद्धिक वातावरण में उनके कलात्मक कौशल और बौद्धिक क्षितिज को नए आयाम मिले तथा इस प्रकार से उन्हें अपने ज्ञान में और भी अधिक गहराई एवं जटिलता प्राप्त हुई.
- कला भवन में अपनी पढ़ाई सम्पूर्ण करने के तुरंत पश्चात् वे संकाय के एक सदस्य बन गए और फिर उन्होंने नंदलाल बोस और बिनोद बिहारी मुख़र्जी के साथ मिलकर शांतिनिकेतन को आजादी-पूर्व भारत में आधुनिक कला के सबसे महत्त्वपूर्ण केंद्रों में से एक बनाने में बड़ी भूमिका निभाई.
- रामकिंकर की यादगार मूर्तियाँ सार्वजनिक कला में प्रमाणित मील का पत्थर हैं. भारतीय कला में सबसे पहले आधुनिकतावादियों में से एक रामकिंकर ने यूरोपीय आधुनिक दृश्य भाषा की शैली को आत्मसात किया, लेकिन इसके बावजूद वह अपने ही भारतीय मूल्यों से गहरे रूप से जुड़े हुए थे.
- उन्होंने पहले आलंकारिक शैली एवं बाद में भावात्मक शैली और फिर वापस आलंकारिक शैली में अनगिनत प्रयोग किए.
- उनकी थीम मानवतावाद की गहरी समझ और मनुष्य एवं प्रकृति के बीच पारस्परिक निर्भरता वाले संबंधों की सहज समझ से जुड़ी होती थीं.
- अपनी पेंटिंग एवं मूर्तियों दोनों मेंही उन्होंने प्रयोग की सीमाओं को नए स्तरों पर पहुँचा दिया और इसके साथ ही नई सामग्री का खुलकर उपयोग किया. उदाहरण के लिए, उनके द्वारा अपरंपरागत सामग्री जैसे कि अपनी यादगार सार्वजनिक मूर्तियों में किए गए सीमेंट कंक्रीट के उपयोग ने कला के क्षेत्र में अपनाई जाने वाली प्रथाओं के लिए एक नई मिसाल पेश की. प्रतिमाओं को बेहतरीन बनाने के लिए उनमें सीमेंट, लेटराइट एवं गारे का उपयोग और आधुनिक पश्चिमी एवं भारतीय शास्त्रीय-पूर्व मूर्तिकला मूल्यों का समावेश करने वाली अभिनव निजी शैली का इस्तेमाल दोनों ही समान रूप से विलक्षण थे.
- वर्ष 1970 में भारत सरकार ने उन्हें भारतीय कला में उनके अमूल्य योगदान के लिए पद्म भूषण से सम्मानित किया. वर्ष 1976 में उन्हें ललित कला अकादमी का एक फेलो बनाया गया. उन्हें वर्ष 1976 में विश्व भारती द्वारा मानद डॉक्टरल उपाधि ‘देशोत्तम’ से और वर्ष 1979 में रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय द्वारा मानद डी.लिट से सम्मानित किया गया.
- कोलकाता में कुछ समय तक बीमार रहने के बाद रामकिंकर 2 अगस्त, 1980 को अपनी अंतिम एवं अनंत यात्रा पर निकल पड़े.
आगे की राह
इस प्रकार के आभासी यात्रा के आयोजन से युवा कलाकारों को प्रोत्साहन मिलता है जिससे वे आलंकारिक और भावात्मक दोनों ही रूपों या शैली में किए गए इस तरह के बेकरार प्रयोगों की गहरी समझ विकसित करने में समर्थ हो सकते हैं.
GS Paper 1 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, Literature and Architecture from ancient to modern times.
Topic : Purandara Dasa
संदर्भ
हाल ही में ‘पुरातत्व, विरासत एवं संग्रहालय विभाग’ (Department of Archeology,Heritage and Museum) ने कर्नाटक के तीर्थहल्ली (Thirthahalli) तालुका के अरगा ग्राम पंचायत के केशवपुरा में अनुसंधान कार्य शुरू करने का निर्णय लिया. इस शोध का उद्देश्य पुरंदर दास के जन्मस्थान के बारे में स्पष्ट पुरातात्त्विक साक्ष्य का पता लगाना है.
मुख्य तथ्य
- पुरंदर दास के जन्मस्थान से संबंधित रहस्य को सुलझाने के लिये राज्य सरकार ने कन्नड़ विश्वविद्यालय, हम्पी को एक विशेषज्ञ समिति गठित करने का निर्देश दिया था.
- इस समिति में आर.के. पद्मनाभ (संगीत विशेषज्ञ), लीलादेवी आर. प्रसाद (कन्नड़ एवं संस्कृति के पूर्व मंत्री), कन्नड़ भक्ति साहित्य के विशेषज्ञ ए. वी. नवादा, वीरन्ना राजूरा, अरालूमाल्लिगे पार्थसारथी और शिवानंद विरक्थमत्त को नामित किया गया था.
- इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में इस मुद्दे (पुरंदर दास के जन्मस्थान से संबंधित) पर और शोध करने की सिफारिश की थी.
पुरंदर दास कौन थे?
- पुरन्दर दास कर्नाटक संगीत के महान संगीतकार थे. इनके कई कृतियां समकालीन तेलुगु गेयकार अन्नमचार्य से प्रेरित थे.
- इन्हें कर्नाटक संगीत जगत के ‘पितामह’ मानते हैं.
- शिलालेखों के प्रमाणानुसार माना जाता है कि पुरन्दर दास का जन्म कर्नाटक के शिवमोगा जिले में तीर्थहल्ली के पास क्षेमपुरा में 1484 ई. में हुआ था. हालांकि, कुछ मतानुसार पुणे से 81 मील दूर स्थित पुरन्दर घाट को उनका पैतृक शहर माना जाता है. एक धनी व्यापारी परिवार में जन्मे, पुरन्दर दास का नाम ‘श्रीनिवास नायक’ रखा गया था. उन्होंने अपने परिवार की परंपराओं के अनुसार औपचारिक शिक्षा प्राप्त की और संस्कृत, कन्नड़ और पवित्र संगीत में प्रवीणता प्राप्त की. अपने पैतृक कारोबार को सम्भालने के बाद, पुरन्दर दास ‘नवकोटि नारायण’ के रूप में लोकप्रिय हो गए.
- 30 वर्ष की आयु में उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी और अपने परिवार के साथ एक चारण का जीवन व्यतीत करने के लिए घर छोड़ दिया. कालांतर में उनकी भेंट ऋषि व्यासतीर्थ (माधव दर्शन के मुख्य समर्थकों में से एक) से हुई, जिन्होंने 1525 में उन्हें दीक्षा देकर एक नया नाम ‘पुरन्दर दास’ दिया.
- उन्होंने अनेक कीर्तनों (भक्ति गीत) की रचना की. उनकी रचनाओं में से अधिकांश कन्नड़ में हैं और कुछ संस्कृत में हैं. उन्होंने ‘पुरन्दर विट्ठल’ नामक उपनाम से अपनी रचनाओं पर हस्ताक्षर किए. उनकी रचनाओं में भाव, राग और लय का एक अद्भुत संयोजन मिलता है. सन् 1564 में 80 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया.
- पुरन्दर दास ने संगीत शिक्षा के लिए बुनियादी पैमाने ‘राग मलावागोवला’ की रचना की और स्वरावली, अलंकार, लक्षण-गीत, गीत, प्रबंध, उगभोग, सुलादी और कृति के रूप में वर्गीकृत अभ्यास की श्रृंखला के माध्यम से कर्नाटक संगीत शिक्षण पद्धति का प्रारम्भ किया जिसका आज भी अनुसरण किया जाता है.
हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत के मध्य मुख्य अंतर निम्नलिखित हैं –
- हिन्दुस्तानी संगीत में गायिकी के मुख्य रूप ध्रुपद, खयाल, तराना, ठुमरी, टप्पा और गजल होते हैं जबकि कर्नाटक संगीत में आलापन, निरावल, कल्पनास्वरम, रागम थान पल्लवी होते हैं.
- हिन्दुस्तानी संगीत पर तुर्की-फारसी (खयाल, कव्वाली) संगीत के तत्त्वों का प्रभाव है जबकि कर्नाटक संगीत पर कोई तुर्की-फारसी प्रभाव नहीं है.
- हिन्दुस्तानी संगीत में राग को समय के अनुसार गाने की एक व्यवस्था है जो कि कर्नाटक संगीत में दिखाई नहीं देती है.
- हिन्दुस्तानी संगीत में एक से अधिक गायन शैलियाँ हैं जिन्हें घरानों के नाम से जाना जाता है जबकि कर्नाटक संगीत में एक ही शैली होती है.
- तबला, सारंगी, सितार, संतूर, सरोद, शहनाई, वायलिन और बाँसुरी का उपयोग हिन्दुस्तानी संगीत में देखा जा सकता है जबकि कर्नाटक संगीत में वीणा, मृदंगम, मैन्डोलिन, जलतरंग, वायलिन और बाँसुरी का प्रयोग अधिक देखा जाता है.
- कर्नाटक संगीत में कंपित स्वर का प्रयोग होता है जो हिन्दुस्तानी संगीत में नहीं मिलता है.
- हिन्दुस्तानी संगीत का क्षेत्र व्यापक है क्योंकि इसका प्रभाव नेपाल और अफगानिस्तान सहित पूरे उत्तर भारत एवं दक्कन तक है. जबकि कर्नाटक संगीत का विस्तार दक्षिण भारतीय राज्यों तक ही सीमित है.
- कर्नाटक संगीत में 72 राग हैं जबकि हिन्दुस्तानी संगीत में 6 मुख्य राग और अनेक रागिनियाँ हैं.
- हिन्दुस्तानी संगीत में विविधता उत्पन्न करने की छूट होती है जबकि ऐसी स्वतंत्रता कर्नाटक संगीत में नहीं होती है.
- कर्नाटक संगीत में गायन और वादन दोनों का बराबर महत्त्व होता है परन्तु हिन्दुस्तानी संगीत में गायन सर्वोपरि होता है और वादन गायन का साथ देने के लिए होता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Govt notifies BS-VI emission norms for quadricycles
संदर्भ
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने 22 मई 2020 को बीएस 6 के लिए एल7 (क्वाड्रिसाइकिल) (खास तरह की छोटी कारें) क्लास के प्रदूषण मानकों के बारे में अधिसूचना जीएसआर 308 (ई) जारी की है. यह अधिसूचना भारत में सभी एल, एम और एन श्रेणी के वाहनों के लिए बीएस 6 मानकों के तहत प्रदूषण नियमों के लिए लागू होगी. बाकी सभी गाड़ियों के लिए ये नियम 1 अप्रैल से लागू हो चुके हैं.
पृष्ठभूमि
केंद्र सरकार ने 2018 में क्वाड्रिसाइकिल सेगमेंट की शुरुआत की थी और इसे वाणिज्यिक और निजी दोनों तरह के उपयोग के लिए मंजूरी दी थी.
क्वाड्रिसाइकिल वाहन क्या होते हैं?
- क्वाड्रिसाइकिल वे वाहन हैं जो आकार में तीन पहिया वाहन के बराबर होता है लेकिन इसमें चार पहिये होते हैं और यह पूरी तरह से एक कार की तरह ढका होता है.
- नियम के अनुसार, एक क्वाड्रिसाइकिल 3.6 मीटर से अधिक लंबी नहीं हो सकती है, इसमें 800cc से छोटा इंजन होना चाहिए, और इसका वजन 475 किलोग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए.
- मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत क्वाड्रिसाइकल को “गैर-परिवहन” के रूप में डाला गया था.
- भारत में कार्गो परिवहन के लिए क्वाड्रिसाइकिल की अनुमति नहीं है. उन्हें एक कठोर जाँच से गुजरना पड़ता है और भारत न्यू व्हीकल सेफ्टी असेसमेंट प्रोग्राम के सुरक्षा मानदंडों को पूरा करना पड़ता है.
BS मानक (BS Norms) क्या है?
- BS का full-form है – Bharat Stage
- Bharat Stage (BS) कारों के अन्दर प्रयोग होने वाले ईंजन के द्वारा मुक्त किये गये प्रदूषक तत्त्वों के स्तर को नियंत्रित करने के लिए भारत सरकार के द्वारा बनाया गया मानक है.यह मानक दुपहिया, तिपहिया, चौपहिया वाहनों के साथ-साथ निर्माण कार्य में प्रयुक्त वाहनों पर भी लागू होता है.
- विदित हो कि भारत प्रदूषण के विषय में यूरो (European) प्रदूषण मानकों का अनुसरण करता रहा है पर इस मामले में वह पाँच साल पीछे चल रहा है.
BS IV और BS VI में क्या अंतर है?
- वर्तमान बीएस -4 और नए बीएस -6 मानकों में जो मुख्य अंतर है वह गंधक (sulfur) की मात्रा से सम्बंधित है.
- BS VI प्रमाणित ईंजन 80% कम सल्फर छोड़ता है.
- विश्लेषकों का कहना है कि BS VI प्रमाणित ईंजन लगाने से डीजल की गाड़ियों में 70% कम NOx (nitrogen oxides) निकलेगा तथा पेट्रोल की गाड़ियों में 25% कम NOx निकलने की आशा है.
ईंधन के स्तरों का उत्क्रमण आवश्यक क्यों?
- वायु प्रदूषण को रोकने के लिए यह आवश्यक है कि ईंधन से सम्बंधित मानकों का कठोरता से उत्क्रमण होता रहे. भारत में अभी भी मोटर वाहनों का प्रचलन विकसित देशों की तुलना में कम है. इसलिए विश्व-भर के कार निर्माताओं की नज़र भारत पर टिकी हुई है. दूसरी ओर, दिल्ली जैसे शहरों की वायु गुणवत्ता संसार भर में सबसे निकृष्ट मानी जाती है. कुछ दिन पहले राष्ट्रीय राजधानी में सम-विषम योजना लागू की गई थी जिससे वहाँ वायु की गुणवत्ता में सुधार हुआ. इसके अतिरिक्त बड़े-बड़े डीजल कारों का पंजीकरण रोकने के लिए न्यायालय में याचिकाएं दी गई हैं. अतः सरकार इस विषय में शिथिलता से काम नहीं चला सकती.
- चीन जैसे अन्य विकासशील देशों ने कुछ समय पहले अपने वाहनों को उत्क्रमित कर उन्हें यूरो 5 उत्सर्जन मानकों के बराबर पहुँचा दिया है, परन्तु भारत इस मामले में पीछे रह गया है. चीन और मलेशिया का इस विषय में यह अनुभव रहा है कि निकृष्ट वायु गुणवत्ता व्यवसाय के लिए भी ठीक नहीं है. अतः उत्सर्जन मानकों में सुधार करने से हमारे यहाँ निवेश भी बढ़ेंगे.
- देश में अभी भी काफी संख्या में बीएस-3 गाडियां सड़कों पर दौड़ रही हैं, और इनसे निकलने वाला धुआँ हमारी सेहत के लिए काफी खतरनाक साबित हो रहा है. वहीं बीएस-4 से निकलने वाला धुआँ कई गंभीर बीमारियों जैसे आंखों में जलन, नाक में जलन, सिरदर्द और फेफड़ों की बीमारी को जन्म देता है. ऐसे में जब देश में सिर्फ बीएस-6 गाड़ियां चलेंगी, तो प्रदूषण पर काफी हद तक नियंत्रण किया जा सकेगा. इसलिए सरकार ने देश में बीएस-4 के बाद सीधे बीएस-6 उत्सर्जन मानक लागू कर दिए.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Issues related to health.
Topic : What are heatwaves?
संदर्भ
उत्तर भारत के कई भागो में भीषण लू चल रही है. राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई जिलों में 45 डिग्री सेल्सियस तक तापमान चला गया है जोकि सामान्य तापमान से 5 डिग्री अधिक है.
लू क्या होती है?
यदि मैदानों में किसी स्थल में अधिकतम तापमान कम से कम 40°C हो जाए तो उसे लू की अवस्था कहते हैं. इसी प्रकार यदि समुद्र तटीय स्थलों में अधिकतम तापमान 37°C और पहाड़ी क्षेत्रों में 30°C हो जाए तो कहा जाएगा कि वहाँ लू का प्रकोप है.
लू का स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव
- लू होने से शरीर में पानी घट जाता है, शरीर में अकड़न होती है और हीट स्ट्रोक तक हो जाता है.
- लू का सीधा प्रभाव बच्चों और ऐसे बूढों पर होता है जिनको पहले से कुछ बीमारियाँ हैं.
- लू का सामना इन लोगों को अधिक करना पड़ता है – फेरीवाले, कैब चलाने वाले, निर्माण कार्य में लगे मजदूर, पुलिसकर्मी, सड़क के पास गुमटी चलाने वाले आदि. ये सभी लोग समाज के कमजोर तबके के लोग होते हैं जिनको रोजी-रोटी के लिए तेज धूप में भी काम करना पड़ता है.
भारत और अन्यत्र लू के खतरे क्यों बढ़ रहे हैं?
- शहरी क्षेत्रों में अधिक से अधिक कंक्रीट फर्श होने और कम वृक्ष होने के कारण तापमान बढ़ जाता है.
- शहरों के तापमान के कारण आस-पास का तापमान 3-4°C अधिक अनुभव होने लगता है.
- विश्व-भर में पिछले 100 वर्षों से तापमान 8°C के औसत से बढ़ता आया है और रात्रिकालीन तापमान भी बढ़ रहा है.
- जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि का शिखर-स्तर और उसके टिके रहने का समय लगातार बढ़ रहा है.
- मध्यम-उच्च गर्म हवा के क्षेत्र में पराबैंगनी किरणों का तीव्र होना भी गर्म हवाओं का एक कारण है.
लू के प्रकोप से लड़ने के लिए हम क्या कर सकते हैं?
- ऐसे स्थानों का पता लगाया जाये जहाँ गर्मी ज्यादा पड़ती हो और वहां पर मौसम विभाग के आँकड़ों का अनुसरण करते हुए समय पर कार्रवाई करके अधिक से अधिक लोगों को बचाया जा सके.
- गर्मी से मजदूरों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए वर्तमान श्रम कानून और नियमावलियों की समीक्षा की जाए.
- स्वास्थ्य, पानी और बिजली जैसे प्रक्षेत्रों में नीतिगत हस्तक्षेप और समन्वय किया जाए.
- लोगों को पारम्परिक प्रथाओं को अपनाने के लिए कहा जाए, जैसे – घर के अन्दर रहना और आरामदेह कपड़े पहनना आदि.
- लोगों को ऐसे घर बनाने को कहा जाए जिनमें खिड़कियों के ऊपर छज्जे हों, जमीन के अन्दर पानी जमा करने के लिए जलाशय हों और घर के सामान ऐसे पदार्थों के बने हों जो कुचालक होते हैं.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.
Topic : No answers yet for Somalia
संदर्भ
केन्या और सोमालिया के बीच समुद्री विवाद पर चल रही जन सुनवाई को अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने एक बार फिर स्थगित कर दिया है.
विवाद का विषय क्या है?
- हिंद महासागर में समुद्री सीमा के परिसीमन को लेकर सोमालिया और केन्या के बीच विवाद है.
- यह विवादित क्षेत्र लगभग 1,00,000 वर्ग किमी तक फैला है और इसमें तेल और गैस के विशाल भंडार हैं.
- सोमालिया का तर्क है कि समुद्री सीमा उसी दिशा में निर्धारित होनी चाहिए जिस दिशा में इन देशों की भू-सीमाएँ चलती हैं अर्थात् दक्षिण-पूर्व भाग.
- दूसरी ओर, केन्या इस बात पर जोर देता है कि सीमा को तटरेखा पर लगभग 45-डिग्री कोण पर मुड़ जाना चाहिए और इसके बाद अक्षांशीय रेखा पर चलना चाहिए, जिससे कि केन्या को समुद्र का एक बड़ा हिस्सा मिल सके.
विवाद के समाधान के प्रयास
2009 में एक समझौता हुआ था जिसके अंतर्गत सोमालिया और केन्या ने एक-दूसरे को 200 समुद्री मील के आगे के कॉन्टिनेंटल शेल्फ की बाहरी सीमाओं के संबंध में संयुक्त राष्ट्र कॉन्टिनेंटल शेल्फ सीमा आयोग (UN Commission on the Limits of the Continental Shelf – CLCS) को अलग-अलग आवेदन देने पर अनापत्ति व्यक्त की थी.
दोनों पक्षों ने यह भी वचन दिया था कि CLCS के सुझावों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार वे विवाद का समाधान करेंगे. किन्तु 2014 में सोमालिया मामले को लेकर के हेग के अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में पहुँच गया और वहाँ इसकी सुनवाई होने लगी. अक्टूबर, 2019 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ने सुनवाई को 8 जून, 2020 तक के लिए स्थगित कर दिया है.
अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ
सोमालिया और केन्या के इस विवाद पर कई देशों की नज़र है. इसका कारण यह है कि विवादित क्षेत्र में खनिज तेल और गैस की प्रचुरता है. यूनाइटेड किंगडम और नॉर्वे सोमालिया के पक्ष में हैं तो अमेरिका और फ्रांस केन्या की पीठ ठोक रहे हैं. इन सब को आशा है कि तेल और गैस के ठेके उनको मिल जायेंगे.
संयुक्त राष्ट्र कॉन्टिनेंटल शेल्फ सीमा आयोग (CLCS)
- कॉन्टिनेंटल शेल्फ से 200 समुद्री मील से आगे की बाहरी समुद्री सीमा के निर्धारण के लिए तथा समुद्री विधि से सम्बंधित संयुक्त राष्ट्र संधि के लिए संयुक्त राष्ट्र कॉन्टिनेंटल शेल्फ सीमा आयोग (CLCS) का गठन हुआ है.
- संयुक्त राष्ट्र की यह संधि स्पष्ट प्रावधान करती है कि इस आयोग की अनुशंसा के आधार पर ही तटीय देशों की बाहरी समुद्री सीमा निर्धारित की जायेगी.
- इस आयोग में 21 सदस्य होते हैं. ये सदस्य भू-विज्ञान, भू-भौतिकी अथवा हाइड्रोग्राफी के विशेषज्ञ होते हैं और इनका चयन संधि पर हस्ताक्षर करने वाले पक्षकार देश अपने नागरिकों में से करते हैं. चयन में इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि विश्व के सभी भूभागों का इस आयोग में समुचित प्रतिनिधित्व हो.
Prelims Vishesh
Textiles Committee :-
- कपड़ा समिति भारत सरकार के कपड़ा मंत्रालय के अधीन एक वैधानिक निकाय है जिसकी स्थापना 1963 में कपड़ों और कपड़ा मशीनों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए हुई थी.
- यह समिति कपड़ों और कपड़ा मशीनों के परीक्षण के लिए प्रयोगशालाएँ चलाती है और वहाँ जाकर निरीक्षण और परीक्षण भी करती है.
International Day for Biological Diversity :-
- प्रत्येक वर्ष की भाँति इस वर्ष भी 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाया गया जिसका उद्देश्य जैव विविधता से सम्बंधित विषयों के प्रति लोगों में समझ और जागरूकता पैदा करना है.
- 2020 के लिए इसके लिए जो थीम निर्धारित की गई है, वह है – “हमारे समाधान प्रकृति में ही स्थित हैं” / “Our solutions are in nature”.
- 2000 तक यह दिवस दिसम्बर 29 को मनाया जाता था.
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