Sansar Daily Current Affairs, 28 August 2021
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Issues related to health.
Topic : Havana Syndromes
संदर्भ
हाल ही में अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की वियतनाम यात्रा में हवाना सिंड्रोम के कारण देरी हुई फलस्वरूप उन्हें सिंगापुर में रुककर प्रतीक्षा करनी पड़ी.
‘हवाना सिंड्रोम’ क्या है?
- वर्ष 2016 के अंत में, हवाना में तैनात कई अमेरिकी राजनयिक और अन्य कर्मचारी, अपने होटल अथवा घरों में अजीबोगरीब ध्वनियां सुनाई देने और शरीर में अजीब सनसनी महसूस होने के बाद, बीमार हो गए थे.
- इसके अतिरिक्त, मतली आने, गंभीर सिरदर्द, थकान, चक्कर आने, नींद की समस्या और श्रवण-ह्रास आदि लक्षण पाए गए. इस बीमारी को तब से “हवाना सिंड्रोम” के रूप में जाना जाता है.
‘हवाना सिंड्रोम’ के कारण
- समिति द्वारा जांच किए गए मामलों की व्याख्या करने पर, ‘निर्देशित’ स्पंदित रेडियो आवृत्ति ऊर्जा (Directed pulsed Radio Frequency energy) को ‘हवाना सिंड्रोम’ का सर्वाधिक संभावित कारण पाया गया है.
- इस बीमारी से संक्रमित होने पर, रोगी को पीड़ादायक सनसनाहट और भिनभिनाहट की आवाज का अनुभव होता है, और ये एक विशेष दिशा से या कमरे में एक विशिष्ट स्थान से उत्पन्न होती है.
GS Paper 2 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Drone Rules, 2021
संदर्भ
हाल ही में केन्द्रीय नगरीय उड़्डयन मंत्रालय द्वारा नये ड्रोन नियम, 2021 (Drone Rules, 2021) को अधिसूचित किया है. इनका उद्देश्य ड्रोन नियमों को उपयोगकर्ताओं के अनुकूल बनाना एवं ड्रोन अनुसन्धान एवं विकास को बढ़ावा देना है. ड्रोन नियम, 2021, 12 मार्च, 2021 को जारी यूएएस नियम, 2021 का स्थान लेंगे.
ड्रोन नियम, 2021 से जुड़े प्रमुख बिंदु
- ड्रोन संचालित करने के लिए भरे जाने वाले प्रपत्रों (फॉर्म) की संख्या को 25 प्रपत्रों से घटाकर 6 कर दिया गया है.
- पंजीकरण या लाइसेंस लेने के पहले सिक्योरिटी क्लीयरेंस की आवश्यकता नहीं होगी.
- माइक्रो ड्रोन (गैर-व्यापारिक प्रयोग के लिये), नैनो ड्रोन और अनुसंधान एवं विकास संगठनों के लिये पायलट लाइसेंस दरकार नहीं होगा.
- शुल्क को न्यूनतम स्तर पर किया गया. ड्रोन के आकार से उसका कोई सम्बंध नहीं.
- डिजीटल स्काई प्लेटफार्म पर हरे, पीले और लाल जोन के तौर पर वायुसीमा मानचित्र प्रदर्शित की जाएगी.
- भारत मेँ पंजीकृत विदेशी कंपनियों द्वारा ड्रोन संचालन के लिये कोई बाध्यता नहीं होगी.
- उड़ान-योग्यता प्रमाणपत्र निर्गत करने की उत्तरदायित्व क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया की होगी.
- घरेलू ड्रोन निर्माताओं को संरक्षण प्रदान करते हुए डीजीएफटी द्वारा ड्रोन और ड्रोन के पु्जों के आयात को नियमित किया जायेगा.
- ड्रोन नियम, 2021 के तहत ड्रोन कवरेज को 300 किलोग्राम से बढ़ाकर 500 किलोग्राम किया गया. इसमें ड्रोन टैक्सी को भी शामिल किया गया है.
- समस्त ड्रोन प्रशिक्षण और परीक्षण अधिकृत ड्रोन स्कूल करेगा.
- डीजीसीए प्रशिक्षण की शर्तें तय करेगा. ड्रोन स्कूलों के संचालन को देखेगा और ऑनलाइन पायलट लाइसेंस प्रदान करेगा.
आवश्यकता क्यों?
पश्चिमी देशों में विविध कार्यों, माल ढुलाई, अनुसंधान एवं विकास के लिए ड्रोन के उपयोग का उपयोग किया जाने लगा है, ऐसे में भारत अगर पीछे रहा तो वह इससे होने लाभों से वंचित रह जायेगा इसलिए ड्रोन नियमों में लचीलापन आवश्यक था.
भारत ड्रोन GS Paper 3 Source : The Hindu UPSC Syllabus : Effects of liberalization on the economy, changes in industrial policy and their effects on industrial growth. संदर्भ केन्द्रीय वाणिज्य मामले मंत्रालय ने हाल ही में कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (Corporate Social Responsibility – CSR) नियमों के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश निर्गत करते हुए स्पष्ट किया है कि CSR नियमों के तहत कंपनियों द्वार पिछले 3 सालों के औसत निवल लाभ के 2% से अधिक के खर्चों (Excess Spendings) को आगामी 3 वर्षों के भीतर समायोजित (adjust) किया जाना होगा, अन्यथा उसे व्यपगत (lapse) माना जायेगा. हालाँकि वित्त वर्ष 2021 से पूर्व किये गये 2% की सीमा से अधिक के CSR खर्चों को आगामी वर्षों में समायोजित करने की छूट नहीं दी जाएगी. ज्ञातव्य है कि इससे पहले सरकार ने कहा था कि पीएम केयर्स फंड में CSR के तहत दी गई 2% से अधिक की राशि को आगामी वर्षों में समायोजित किया जा सकेगा. सामाजिक उत्तरदायित्व का विचार हमारे देश में बहुत पुराना है. व्यवसायियों द्वारा समाज के हित के लिए अपनी सम्पदा में से हिस्सा देने की अवधारणा हमारे देश के लिए न तो आधुनिक है, और न ही पश्चिमी देशों से आयातित. प्राचीन भारतीय समाज में व्यवसायी का महत्वपूर्ण सम्मानित स्थान था तथा वे समाज के हित के लिए मूल तंत्र की भांति कार्य करते थे. बाढ़, सूखा, महामारी आदि प्राकृतिक विपत्तियों के समय वे अपने खाद्यान्न के गोदाम सामान्य जनता के लिए खोल देते थे तथा अपने धन से राहत कार्यों में सहायता करते थे. धर्मशालाओं तथा मंदिरों का निर्माण, रात्रि शरणस्थल (Night Shelters), जगह-जगह पीने के पानी की व्यवस्था, नदियों के किनारे घाटों का निर्माण, कुऐं बनवाना, इत्यादि व्यवसायियों के लिए आम बात थी. इसी प्रकार विद्यालयों में शिक्षा के लिए दान देना तथा गरीब लड़कियों के दहेज की व्यवस्था करना उनके लिए सामान्य कार्य था. स्वतंत्रता के पश्चात् व्यवसायी वर्ग ने अपने सामाजिक उत्तरदायित्व को निम्न प्रकार से पूरा किया – स्वयं के प्रति व्यवसायी वर्ग ने अपने प्रति उत्तरदायित्व को अच्छी तरह से निभाया है. व्यवसायी वर्ग (मुख्य रूप से निजी क्षेत्र) का प्रमुख उद्देश्य लाभ अर्जित करना होता है. व्यवसायियों ने लाभ का अर्जन कर तथा उसका पुनर्विनियोग कर अपने व्यवसाय का बहुमुखी विकास किया है. निजी क्षेत्र में समस्त आर्थिक क्रियाएं न केन्द्रित हो जाएं, इस हेतु सरकार ने विभिन्न स्तर पर कदम उठाये हैं. व्यवसायियों ने नये-नये उत्पाद बनाकर नये बाजारों में प्रवेश किया है. अनुसंधान तथा आधुनिकीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया है. स्वामियों के प्रति व्यवसायियों ने स्वामियों या अंशधारियों के प्रति पूर्णरूप से उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं किया है. अंशधारियों का हित इसमें होता है कि उन्हें समय से पर्याप्त मात्रा में लाभांश मिलता रहे. चूंकि अंशधारी बिखरे हुए होते हैं, अत: वे संचालक मण्डल पर विश्वास करके उसे अपना ट्रस्टी बना देते हैं. व्यवहार में अंशधारियों को कभी-कभी लाभांश मिलता ही नहीं है या मिलता भी है तो बहुत थोड़ी मात्रा में इससे अंशधारियों के हित कुप्रभावित होते हैं. सरकार ने अंशधारियों के हितों की रक्षा के लिए कई कदम उठाये हैं. ‘सेबी’ की स्थापना इन्हीं कदमों में से एक है. कर्मचारियों के प्रति कुछ व्यवसायिक संगठनों को छोड़कर अधिकांश संगठनों ने कर्मचारियों के प्रति अपने सामाजिक उत्तरदायित्व की अवहेलना ही की है. टाटा, बिड़ला, जे.के., रिलायन्स, मफतलाल, हिन्दुस्तान लीवर, डालमिया, इत्यादि कुछ गिने-चुने संगठन कर्मचारियों के प्रति उत्तरदायित्व को प्रभावी तरीके से सम्पादित करते हैं. अधिकांश व्यवसायी अपने कर्मचारियेां का अधिकाधिक शोषण करते हैं. न तो इन व्यवसायियों के पास कार्य मापन हेतु उचित पैमाना होता है और न ही कर्मचारियों को कार्य करने के लिए उचित पर्यावरण ये व्यवसायी प्रदान करते हैं. गुलामों की भांति इन कर्मचारियों का भी क्रय-विक्रय किया जाता है. उपभोक्ताओं के प्रति उपभोक्ताओं को अच्छी किस्म की तथा स्वास्थ्यवर्धक वस्तुएं उचित मूल्य पर प्राप्त करने का अधिकार है. परन्तु इस उत्तरदायित्व का निर्वहन करने में भारतीय व्यवसायी असफल रहा है. आज व्यवसायी नकली वस्तुओं को बेचकर, मिलावटी सामान बेचकर या अन्य किसी अनैतिक या अवैधानिक तरीके से थोड़े से समय में अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहता है. किन्तु विगत कुछ वर्षों से व्यवसायी वर्ग में अपने उपभोक्ताओं के प्रति जागरूकता आयी है. अब व्यवसायी उपभोक्ताओं की रूचि तथा आवश्यकता, विज्ञापन में मिथ्यावर्णन न करना, अच्छी व सस्ती वस्तुएं उपलब्ध कराना, विक्रय के पश्चात् सेवा, वितरण प्रणाली को सरल बनाना, वस्तुओं को प्रमापित करवाना, उपभोक्ता की शिकायतों को सुनना तथा उनका उचित तरीके से समाधान करना, इत्यादि पर ध्यान देने लगा है. सरकार के प्रति जहाँ तक भारतीय व्यवसायियों द्वारा सरकार के प्रति अपने उत्तरदायित्व को निभाने का प्रश्न है, इसमें वे एक बड़ी सीमा तक असफल रहे हैं. व्यवसायियों के लिए करों की चोरी, रिश्वत देकर अधिकारियों को भ्रष्ट करना, राजनैतिक सम्बन्धों का अपने तुच्छ हितों हेतु दुरूपयोग करना, इत्यादि सामान्य बातें हैं. व्यवसायी काला बाजारी, मिलावट आदि करके विभिन्न सरकारी नियमों- अधिनियमों का खुला उल्लंघन करते हैं. समुदाय के प्रति व्यवसायी ने अपने आस-पास के समुदाय तथा राष्ट्र के लिए एक सीमा तक अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन किया है. समुदाय के लाभार्थ उन्होंने विद्यालयों, चिकित्सालयों, धर्मशालाओं, पुस्तकालयों इत्यादि के निर्माण में योगदान दिया है. शिक्षा का प्रसार तथा जनसंख्या पर नियंत्रण जैसे कार्यों में भी वे पीछे नहीं रहे हैं. व्यवसायिक क्रियाओं के माध्यम से विस्थापितों का पुनर्वास, लघु उद्योगों तथा आनुषंगिक उद्योगों को प्रोत्साहन, शोध एवं विकास के कार्यों को विशेष महत्व दिया है. विभिन्न औद्योगिक एवं व्यवसायिक नेताओं जैसे जी.डी. बिरला, जे.आर.डी. टाटा, लाला श्री राम, कस्तुरभाई लालाभाई, धीरूभाई अम्बानी एवं अन्य लोगों ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी संस्थानों की स्थापना करने के साथ-साथ भारतीय कला, इतिहास व सभ्यता से सम्बन्धित केन्द्रों की स्थापना भी की है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फन्डामेन्टल रिसर्च, पिलानी तथा रांची में स्थापित बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, धीरूभाई अम्बानी के रिलायन्स ग्रुप द्वारा गांधीनगर में स्थापित टेक्नोलाजी इंस्टीट्यूट (मुम्बई), इत्यादि प्रमुख संस्थान निजी क्षेत्र द्वारा स्थापित किये गये हैं. इसी प्रकार सांस्कृतिक रंगमंचों की कमी को पूरा करने के लिए श्री राम बन्धुओं द्वारा दिल्ली में श्रीराम सेन्टर फॉर आर्ट्स एण्ड कल्चर स्थापित किया गया है. GS Paper 3 Source : The Hindu UPSC Syllabus : Environment and Biodiversity. संदर्भ केन्द्रीय पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने गुवाहाटी, असम में अवस्थित इको-सेंसिटिव ज़ोन एवं आर्द्रभूमि दीपार बील (Deepor Beel) के भीतर स्थित 4.1 वर्ग किमी क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य के रूप में अधिसूचित किया गया है. अधिसूचना के अनुसार इको-सेंसिटिव ज़ोन की सीमा में कोई नई होटल, रिज़ोर्ट नहीं बनाई जा सकेगी. इसके अतिरिक्त हाइड्रोइलेक्ट्रिक परियोजनाओं, ईटों के भट्ठे, डंपिंग को भी प्रतिबंधित किया गया है. दीपार बील के 148.97 वर्ग किमी क्षेत्र को इको-सेंसिटिव ज़ोन घोषित किया गया है. Rights of Persons with Disabilities Act, 2016 :- Aarogya Dhara 2.0 :- Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Current Affairs Hindi July,2021 Sansar DCA is available Now, Click to Downloadइस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
Topic : Changes in Corporate Social Responsibility (CSR) Rules
भारत में CSR प्रावधान
मेरी राय – मेंस के लिए
Topic : Deepor Beel
दीपार बील के बारे में
Prelims Vishesh