Sansar Daily Current Affairs, 28 March 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
Topic : Banning of Unregulated Deposit Schemes Ordinance, 2019
संदर्भ
कर विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि भारत सरकार द्वारा हाल ही में निर्गत अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने वाले अध्यादेश का आभूषण और चिट फण्ड कंपनियों द्वारा वर्तमान में चलाई जा रही मासिक योजनाओं पर प्रभाव नहीं पड़ेगा.
पृष्ठभूमि
फरवरी 2019 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने भोले-भाले निवेशकों को पोंजी योजनाओं से बचाने के लिए अनियमित जमा योजनाओं को प्रतिबंधित करने के विषय में एक अध्यादेश की मंजूरी दे दी थी. लोकसभा में बजट सत्र के आखिरी दिन ध्वनिमत से इस विधेयक को पारित कर दिया गया था. लेकिन यह राज्य सभा में पारित नहीं कराया जा सका.
अनियमित जमा योजना अध्यादेश के लाभ
- प्रस्तावित अध्यादेश से देश में लालची संचालकों द्वारा अवैध रूप से धनराशि जमा कराने से जुड़ी त्रासदी से जल्द से जल्द निपटा जा सकेगा.
- अनियमित जमा योजना प्रतिबंध अध्यादेश 2019 को देश में अवैध रूप से धनराशि जमा कराने वाली योजनाओं पर नकेल कसने के लिए केन्द्र की ओर से सख्त काननू लाने के इरादे से लागू किया गया है.
- अभी तक गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों को आम जनता से विभिन्न जमा योजनाओं के अंतर्गत पैसा जुटाने की सारी गतिविधियां केन्द्र और राज्य सरकारों की ओर से बनाए गए विभिन्न कानूनों के तहत करने की अनुमति मिली हुई है जिनमें कोई एकरूपता नहीं है. इसका लाभ फरेबी पोंजी कंपनियाँ लोगों को उनके जमा पर ज्यादा ब्याज देने का लालच देकर ठग रही हैं.
- ऐसे में नए अध्यादेश के माध्यम से ऐसी कंपनियों पर प्रतिबंध की प्रभावी व्यवस्था की गयी है. इसके जरिए ऐसी योजना पर तुरंत रोक लगाने और इसके लिए आपराधिक दंड का प्रावधान किया गया है.
- इसमें जमाकर्ताओं के लिए फरेबी कंपनियों की परिसंपत्तियां कुड़की कर जमाकर्ताओं को उनका पैसा तुरंत वापस दिलाने की व्यवस्था भी है.
- ऐसे संचालक फिलहाल नियामक संबंधी कमियों तथा सख्त प्रशासनिक उपायों के अभाव का फायदा लेते हुए गरीब और सीधे-साधे लोगों की कड़ी मेहनत से अर्जित धनराशि की ठगी कर लेते हैं.
- कुल मिलाकर, अनियमित जमा योजनाओं पर प्रतिबंध लगाने तथा अवैध तरीके से जमाराशि जुटाने के मामले में दंड तथा धन वापसी के लिए पर्याप्त प्रावधान होने से पीड़ित लोगों को राहत मिलेगी.
GS Paper 2 Source: PIB
Topic : Country-by-country (CbC) reports
संदर्भ
भारत और अमेरिका ने कंट्री-बाय-कंट्री रिपोर्टों के आदान-प्रदान के लिए एक अंतर-सरकारी समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं. इसका उद्देश्य यह व्यवस्था करना है कि सभी कर अधिकारियों के पास किसी बहु-राष्ट्रीय कम्पनी के विषय में एक ही प्रकार की सूचना उपलब्ध हो सके.
लाभ
- इससे दोनों देश एक जनवरी, 2016 को या उसके बाद शुरू होने वाले वित्तीय वर्षों के संबंधित अधिकार क्षेत्र में अर्न्तराष्ट्रीय समूहों की अंतिम मूल संस्थाओं द्वारा दाखिल सीबीसी रिपोर्ट का आदान-प्रदान करने में सक्षम होंगे.
- जिसके परिणामस्वरूप अमरीका में मुख्यालय वाले अर्न्तराष्ट्रीय समूहों की वे भारतीय संघटक संस्थाएं, जिन्होंने अपनी सीबीसी रिपोर्ट पहले ही अमरीका में दाखिल कर दी हैं, उन्हें भारत में अपने अर्न्तराष्ट्रीय समूहों की सीबीसी रिपोर्ट स्थानीय रूप से दाखिल करने की आवश्यकता नहीं होगी.
- भारत सीबीसी रिपोर्टों के आदान-प्रदान के लिए बहुपक्षीय सक्षम प्राधिकरण समझौते (एमसीएए) पर पहले ही हस्ताक्षर कर चुका है, जिससे 62 क्षेत्राधिकारों के साथ सीबीसी रिपोर्टों का आदान-प्रदान करना संभव हो गया है.
CBC रिपोर्ट
- सीबीसी रिपोर्ट में किसी भी एमएनई समूह की आय के वैश्विक आवंटन, अदा किए गए करों और कुछ अन्य संकेतकों से संबंधित देश-दर-देश सूचनाओं का संकलन किया गया है.
- इसमें किसी विशेष क्षेत्राधिकार में कार्यरत एमएनई समूह के सभी घटक निकायों की सूची है और इसके साथ ही इस तरह के प्रत्येक घटक निकाय के मुख्य कारोबार के स्वरूप का भी उल्लेख किया गया है.
- किसी एक वर्ष में 750 मिलियन यूरो (अथवा कोई समतुल्य स्थानीय मुद्रा) अथवा उससे अधिक का वैश्विक समेकित राजस्व अर्जित करने वाले एमएनई समूहों के लिए अपने जनक निकाय के क्षेत्राधिकार में सीबीसी रिपोर्टों को दाखिल करना आवश्यक है. भारतीय मुद्रा रुपये में 750 मिलियन यूरो की समतुल्य राशि को भारतीय नियमों के तहत 5500 करोड़ रुपये के रूप में निर्दिष्ट किया गया है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
Topic : RBI plans a regulatory sandbox
संदर्भ
भारतीय रिज़र्व बैंक दो महीने के अन्दर Fintech कम्पनियों अर्थात् वित्तीय तकनीक वाली कम्पनियों (financial technology companies) के लिए मार्गनिर्देश निर्गत करने वाला है जिससे कि वे अपने नए उत्पाद का अनावरण करने के पहले उपभोक्ताओं के छोटे समूह के सामने परीक्षण कर सकें.
विदित हो कि जिस स्थान पर इस प्रकार का परीक्षण होता है, वह नियामक सैंडबॉक्स (regulatory sandbox) कहलाता है.
नियामक सैंडबॉक्स क्या है?
नियामक सैंडबॉक्स उस सुरक्षित स्थान को कहते हैं जहाँ व्यवसायीगण शिथिल नियामक दशाओं में अपने नवाचारी उत्पादों की जाँच कर सकते हैं. इसमें सम्मिलित होने वाली कंपनियाँ अपने नए उत्पादों का विमोचन एक नियंत्रित परिवेश के अन्दर गिने-चुने उपभोक्ताओं के समक्ष एक सीमित समय के लिए करती हैं.
नियामक सैंडबॉक्स का महत्त्व और लाभ
- नियामक सैंडबॉक्स से Fintech कम्पनियों को अपने नवाचारी उत्पादों को कम लागत पर और कम समय में अनावरण करने में सहायता मिलेगी.
- सैंडबॉक्स की व्यवस्था से यह लाभ भी है कि Fintech कंपनियाँ अपने नए उत्पादों और सेवाओं का परीक्षण प्रत्यक्ष रूप से अथवा आभासी रूप से कर सकती हैं.
- इससे कंपनियाँ बिना किसी व्यापक और खर्चीले तामझाम के अपने उत्पाद की व्यवहार्यता का परीक्षण कर सकेंगी.
- नियामक सैंडबॉक्स का एक अतिरिक्त लाभ यह है कि Fintech कंपनियाँ अपने उत्पादों से सम्बंधित नए-नए प्रयोग कर पाएँगे और इसमें विफलता का खतरा कम होगा और यदि होगा भी तो उसके कारणों का विश्लेषण किया जा सकता है.
नियामक सैंडबॉक्स की आवश्यकता क्यों?
- नीति आयोग के अनुसार भारत का फिनटेक बाजार विश्व में सबसे अधिक तेजी से बढ़ने वाला बाजार है. एक औद्योगिक अनुसंधान से पता चला है कि 2029 तक एक ट्रिलियन डॉलर अर्थात् खुदरा और SME का 60% कर्ज डिजिटल तरीके से भुगतान किया जाएगा.
- भारतीय फिनटेक अर्थतंत्र विश्व का तीसरा बड़ा अर्थतंत्र है जिसने 2014 से लगभग 6 बिलियन डॉलर के निवेश को आकर्षित किया है. फिनटेक अथवा वित्तीय तकनीक वाली कंपनियाँ विभिन्न वित्तीय सेवाओं के लिए तकनीक का प्रयोग करती हैं, जैसे – भुगतान, पियर टू पियर उधारी, क्लाउड फंडिंग आदि.
- इसलिए ग्राहकों की सुरक्षा तथा सभी हितधारकों के हितों की रक्षा के लिए आज फिनटेक प्रतिष्ठानों के नियन्त्रण हेतु नियामक और पर्यवेक्षणात्मक तन्त्र की अत्यंत आवश्यकता है.
GS Paper 3 Source: Indian Express
Topic : What is Mission Shakti?
संदर्भ
हाल ही में भारतीय वैज्ञानिकों ने मिशन शक्ति का सफल संचालन करते हुए पृथ्वी की निम्न कक्षा (low orbit) में अवस्थित एक जीवंत उपग्रह को मार गिराया है.
मिशन शक्ति क्या है?
- मिशन शक्ति एक संयुक्त कार्यक्रम है जिसका संचालन रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने मिलकर चलाया है.
- इस अभियान के अंतर्गत एक उपग्रह नाशक (anti-satellite – A-SAT) अस्त्र छोड़ा गया जिसका लक्ष्य भारत का ही एक ऐसा उपग्रह था जो अब काम में नहीं आने वाला था.
- मिशन शक्ति का संचालन ओडिशा के बालासोर में स्थित DRDO के अधीक्षण स्थल से हुआ.
माहात्म्य
ऐसी विशेषज्ञ और आधुनिक क्षमता प्राप्त करने वाला भारत विश्व का मात्र चौथा देश है और इसका यह प्रयास पूर्णतः स्वदेशी है. अभी तक केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही अन्तरिक्ष में स्थित किसी जीवंत लक्ष्य को भेदने की शक्ति थी.
क्या परीक्षण से अन्तरिक्ष में मलबा पैदा हुआ?
यह परीक्षण जान-बूझकर पृथ्वी की निम्न कक्षा (low earth orbit – LEO) में किया गया जिससे कि अन्तरिक्ष में कोई मलबा न रहे. जो कुछ भी मलबा बना वह क्षयग्रस्त हो जाएगा और कुछ सप्ताह में पृथ्वी पर आ गिरेगा.
पृथ्वी की निम्न कक्षा (Low Orbit) क्या है?
पृथ्वी की जो कक्षा 2,000 किमी. की ऊँचाई तक होती है उसे निम्न कक्षा कहा जाता है. यहाँ से कोई उपग्रह धरातल और समुद्री सतह में चल रही गतिविधियों पर नज़र रख सकता है. ऐसे उपग्रह का प्रयोग जासूसी के लिए हो सकता है. अतः उससे युद्ध के समय देश की सुरक्षा पर गंभीर खतरा हो सकता है.
पृष्ठभूमि
- समय के साथ-साथ अन्तरिक्ष भी एक युद्ध क्षेत्र में रूपांतरित हो रहा है. अतः अन्तरिक्ष में स्थित शत्रु उपग्रहों के संहार की क्षमता अत्यावश्यक हो गयी है. ऐसे में एक उपग्रह नाशक (A-SAT) हथियार से अन्तरिक्ष तक भेदने में भारत की सफलता का बड़ा माहात्म्य है.
- ध्यान देने योग्य बात है कि अभी तक किसी देश ने किसी अन्य देश के उपग्रह पर A-SAT नहीं चलाया है. सभी देशों ने अपने ही बेकार पड़े उपग्रहों को लक्ष्य बनाकर A-SAT का सञ्चालन किया है जिससे विश्व को पता लग सके कि उनके पास अन्तरिक्ष में युद्ध करने की क्षमता है.
- आगामी कुछ दशकों में सेनाओं के लिए A-SAT मिसाइल सबसे शक्तिशाली सैन्य अस्त्र बनने वाला है.
भारत की ऐसी क्षमता की आवश्यकता क्यों?
- भारत एक ऐसा देश है जिसके पास बहुत दिनों से और बहुत तेजी से बढ़ते हुए अन्तरिक्ष कार्यक्रम हैं. पिछले पाँच वर्षों में इसमें देखने योग्य बढ़ोतरी हुई है. स्मरणीय है कि भारत ने मंगल ग्रह पर मंगलयान नामक अन्तरिक्षयान सफलतापूर्वक भेजा था. इसके पश्चात् सरकार ने गगनयान अभियान को भी स्वीकृति दे दी है, जो भारतीयों को बाह्य अन्तरिक्ष में ले जाएगा.
- भारत ने 102 अन्तरिक्षयान अभियान हाथ में लिए हैं जिनके अंतर्गत अग्रलिखित प्रकार के उपग्रह आते हैं – संचार उपग्रह, पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह, प्रायोगिक उपग्रह, नौसैनिक उपग्रह, वैज्ञानिक शोध और खोज के उपग्रह, शैक्षणिक उपग्रह और अन्य छोटे-छोटे उपग्रह.
- भारत का अन्तरिक्ष कार्यक्रम देश की सुरक्षा, आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक अवसरंचना की रीढ़ है.
- मिशन शक्ति यह सत्यापित करने के लिए संचालित हुई कि भारत के पास अपनी अन्तरिक्षीय सम्पदाओं को सुरक्षित रखने की क्षमता है. विदित हो कि देश के जो हित बाह्य अन्तरिक्ष में हैं उनकी रक्षा का दायित्व भारत सरकार पर ही है.
निहितार्थ
- मिशन शक्ति का MTCR (Missile Technology Control Regime) अथवा अन्य ऐसी संधियों में भारत की स्थिति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.
- A-SAT तकनीक प्राप्त हो जाने से आशा की जाती है कि भविष्य में भारत इसका प्रयोग घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्य के लिए भी कर सकेगा.
आगे की राह
बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों की होड़ ऐसी वस्तु है जिसको प्रोत्साहन नहीं मिलना चाहिए. भारत की यह नीति रही है कि अन्तरिक्ष का उपयोग मात्र शान्तिपूर्ण उद्देश्यों के लिए होना चाहिए. भारत बाह्य अन्तरिक्ष (outer space) को रणभूमि बनाने के विरुद्ध रहा है तथा अन्तरिक्ष में स्थित संपदाओं की रक्षा और सुरक्षा के लिए जो भी अंतर्राष्ट्रीय प्रयास होते हैं उसका वह पक्षधर रहा है.
भारत इस बात पर विश्वास रखता है कि बाह्य अन्तरिक्ष मानव मात्र के लिए एक विरासत है जिसपर सभी का अधिकार है. जो देश अन्तरिक्ष में उपग्रह छोड़ते हैं, उनका यह कर्तव्य है कि वे अन्तरिक्ष तकनीक एवं उसके अनुप्रयोगों का लाभ पूरी मानवता तक पहुँचाने में सहायता करेंगी.
बाह्य अन्तरिक्ष में हथियारों को लेकर अंतर्राष्ट्रीय कानून क्या है?
- अमेरिका, रूस और चीन समेत सभी देशों ने 1967 की आउटर अंतरिक्ष संधि (Outer Space Treaty) पर हस्ताक्षर किए थे.
- भारत ने इस संधि पर 1982 में हस्ताक्षर किये थे.
- समझौते के अनुसार कोई भी देश अंतरिक्ष में क्षेत्राधिकार नहीं दिखा सकता.
- यह समझौता किसी भी देश को पृथ्वी की कक्षा या उससे बाहर परमाणु हथियार या हथियार रखने से रोकता है.
- चंद्रमा और मंगल जैसे ग्रहों, जहाँ मानव की पहुँच हो सकती है, के संदर्भ में यह संधि और भी कठोर है. इन ग्रहों में कोई भी देश सैन्य अड्डों का निर्माण नहीं कर सकता है या किसी भी प्रकार का सैन्य संचालन नहीं कर सकता है या किसी अन्य प्रकार के पारंपरिक हथियारों का परीक्षण नहीं कर सकता है.
- पर साथ ही साथ यह संधि बैलिस्टिक मिसाइलों के अंतर-महाद्वीपीय प्रयोग को प्रतिबंधित नहीं करती है जो लक्ष्य को भेदने के लिए पृथ्वी की कक्षा से बाहर भी चले जाते हैं.
- इस संधि की इस चूक का लाभ उठाकर कोई देश अन्तरिक्ष का युद्ध के लिए उपयोग कर सकता है.
Prelims Vishesh
NCLAT :-
- राष्ट्रीय कम्पनी कानून अपीलीय पंचाट (NCLAT) का गठन (1 जून, 2016 से प्रभावी) कम्पनी अधिनियम, 2013 के अनुभाग 410 के अंतर्गत किया गया था.
- इसका कार्य राष्ट्रीय कम्पनी कानून पंचाटों (NCLT) द्वारा पारित आदेशों के विरुद्ध अपील सुनना है.
- यह संस्था NCLT द्वारा ऋणशोधन एवं दिवालियापन संहिता (Insolvency and Bankruptcy Code – IBC), 2016 के विभिन्न अनुभागों के अंतर्गत पारित आदेशों पर भी अपील सुनती है.
- इसके अतिरिक्त यह भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग के द्वारा पारित किसी आदेश के विरुद्ध भी अपील की सुनवाई करती है.
President Kovind honoured with Croatia’s highest civilian order :–
- हाल ही में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को क्रोएशिया देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से नवाजा गया.
- इस सम्मान का नाम है – The Grand Order of the King of Tomislav.
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