Sansar डेली करंट अफेयर्स, 28 November 2020

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Sansar Daily Current Affairs, 28 November 2020


GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian Constitution- historical underpinnings, evolution, features, amendments, significant provisions and basic structure.

Topic : Anti-Defection Law

संदर्भ

लोक सभा में ‘अयोग्य’ घोषित होने वाले भारत के प्रथम संसद सदस्य को, अब मिज़ोरम में विधानसभा सदस्य के रूप में भी अयोग्य घोषित कर दिया गया है.

हाल ही में, मिजोरम विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा ज़ोरम पीपुल्स मूवमेंट (Zoram People’s Movement – ZPM) के विधायक ‘लालडूहोमा’ (Lalduhoma) को अयोग्य घोषित करते हुए सदन से बाहर कर दिया गया है.

संविधान की दसवीं अनुसूची क्या है?

राजनीतिक दल-बदल लम्बे समय से भारतीय राजनीति का एक रोग बना हुआ था और 1967 से ही राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक (anti-defection law) लगाने की बात उठाई जा रही थी. अन्ततोगत्वा आठवीं लोकसभा के चुनावों के बाद 1985 में संसद के दोनों सदनों ने सर्वसम्मति से 52वाँ संशोधन पारित कर राजनीतिक दल-बदल पर कानूनी रोक लगा दी. इसे संविधान की दसवीं अनुसूची (10th Schedule) में डाला गया जिसके आधार पर चुने हुए सदस्यों को अयोग्य घोषित किया जा सकता है.

दल-परिवर्तन विरोधी कानून के बारे में

  1. दल-परिवर्तन विरोधी कानून को पद संबंधी लाभ या इसी प्रकार के अन्य प्रतिफल के लिए होने बाले राजनीतिक दल-परिवर्तन को रोकने हेतु लाया गया था.
  2. इसके लिए, वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची जोड़ी गई थी.
  3. यह उस प्रक्रिया को निर्धारित करता है जिसके द्वारा विधायकों/सांसदों को सदन के किसी अन्य सदस्य द्वारा दायर याचिका के आधार पर विधायिका के पीठासीन अधिकारी द्वारा दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराया जा सकता है.
  4. इसके अंतर्गत किसी विधायक/सांसद को निर्योग्य माना जाता है, यदि उसने-
  • या तो स्वेच्छा से अपने दल की सदस्यता त्याग दी है; या
  • सदन में मतदान के समय अपने राजनीतिक नेतृत्व के निर्देशों की अनुज्ञा की है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि कोई सदस्य किसी भी मुद्दे पर पार्टी के व्हिप के विरुद्ध (अर्थात्‌ निदेश के विरुद्ध मतदान करता है या मतदान से विरत रहता है) कार्य करता है तो वह सदन की अपनी सदस्यता खो सकता है.
  1. यह अधिनियम संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों पर लागू होता है.

इस अधिनियम के तहत अपवाद

सदस्य निम्नलिखित कुछ परिस्थितियों में निर्योग्यता के जोखिम के बिना दल परिवर्तन कर सकते हैं.

  • यह अधिनियम एक राजनीतिक दल को अन्य दल में विलय की अनुमति देता है, यदि मूल राजनीतिक दल के दो-तिहाई सदस्य इस विलय का समर्थन करते हैं.
  • यदि किसी व्यक्ति को लोक सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा राज्य सभा का उपसभापति या किसी राज्य की विधान सभा का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अथवा किसी राज्य की विधान परिषद्‌ का सभापति या उपसभाषपति चुना जाता है, तो वह अपने दल से त्यागपत्र दे सकता है या अपने कार्यकाल के पश्चात्‌ अपने दल की सदस्यता पुनः ग्रहण कर लेता है.

हाल की घटनाएँ

  • नवीनतम मामला मणिपुर के एक कांग्रेस विधायक की निर्योग्यता से संबंधित है, जो वर्ष 2017 के विधान सभा चुनाव के ठीक बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गया था. कांग्रेस पार्टी ने मणिपुर के विधान सभा अध्यक्ष को उस विधायक को निर्योग्य घोषित करने के लिए कहा था, लेकिन अध्यक्ष इस मामले पर कार्रवाई करने में विफल रहे और यात्रिका को लंबित रखा गया.
  • हाल ही में, उच्चतम न्यायालय को कर्नाटक के कुछ विधायकों को अध्यक्ष द्वारा निर्योग्य ठहराए जाने के मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा था. इस वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह कहा कि “जो अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल के दबावों और इच्छाओं से मुक्त होकर कार्य नहीं कर सकता है, वह अध्यक्ष के पद पर आसीन होने के योग्य नहीं है”.
  • आंध्र प्रदेश में, विगत तीन वर्षों में विपक्षी दल के 23 विधायक दल-परिवर्तन कर सत्तारूढ़ दल में सम्मिलित हो गए. इस घटनाक्रम ने अध्यक्ष की भूमिका पर प्रश्नचिन्ह आरोपित किया है.

अध्यक्ष की भूमिका में परिवर्तन की आवश्यकता क्‍यों है?

अध्यक्ष के पद की प्रकृति: चूँकि अध्यक्ष के पद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता है, इसलिए अध्यक्ष पुन: निर्वाचित होने के लिए अपने राजनीतिक दल पर निर्भर रहता है. अतः यह स्थिति अध्यक्ष को स्वविवेक के बजाए सदन की कार्यवाही को राजनीतिक दल की इच्छा से संचालित करने का मार्ग प्रशस्त करती है.

पद से संबंधित अंतर्निहित विरोधाभास: उल्लेखनीय है कि जब अध्यक्ष किसी विशेष राजनीतिक दल से या तो नाममात्र (डी ज्यूर) या वास्तविक (डी फैक्टो) रूप से संबंधित होता है तो उस स्थिति में एक अर्ध-न्यायिक प्राधिकरण के तौर पर उसे (अध्यक्ष) निर्योग्यता संबंधी याचिकाएं सौपना युक्तिसंगत और तार्किक प्रतीत नहीं होता है.

दल-परिवर्तन विरोधी कानून के तहत निर्योग्यता के संबंध में अध्यक्ष द्वारा किए जाने वाले निर्णय से संबंधित विलंब पर अंकुश लगाने हेतु: अध्यक्ष के समक्ष लंबित निर्योग्यता संबंधी मामलों के निर्णय में विलंब के कारण, प्राय: ऐसे उदाहरण सामने आए हैं जहां सदस्यों को अपने दलों से निर्योग्य घोषित किए जाने पर भी वे सदन के सदस्य बने रहते हैं.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

  • द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग की “शासन में नैतिकता” नामक शीर्षक से प्रकाशित रिपोर्ट में और विभिन्न अन्य विशेषज्ञ समितियों द्वारा सिफारिश की गई है कि सदस्यों को दल-परिवर्तन के आधार पर निर्योग्य ठहराने के मुद्दों के संबंध में निर्णय राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा निर्वाचन आयोग की सलाह पर किया जाना चाहिए.
  • जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने कहा है, जब तक कि “असाधारण परिस्थितियां” उत्पन्न नहीं हो जाती हैं, दसवीं अनुसूची के तहत निर्योग्यता संबंधी याचिकाओं पर अध्यक्ष द्वारा तीन माह के भीतर निर्णय किया जाना चाहिए.
  • संसदीय लोकतंत्र के अन्य मॉडलों/उदाहरणों का अनुसरण करते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अध्यक्ष तटस्थ रूप से निर्णय कर सके. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में यह परिपाटी रही है कि आम चुनावों के समय राजनीतिक दल अध्यक्ष के विरुद्ध निर्वाचन हेतु किसी भी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करते हैं और जब तक अन्यथा निर्धारित नहीं हो जाता, अध्यक्ष अपने पद पर बना रहता है. वहां यह भी परिपाटी है कि अध्यक्ष अपने राजनीतिक दल की सदस्यता से त्याग-पत्र दे देता है.
  • वर्ष 1951 और वर्ष 1953 में, भारत में विधान मंडलों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में इस ब्रिटिश मॉडल को अपनाने हेतु एक प्रस्ताव पारित किया गया था.
  • हालाँकि, पहले से ही विधायिका के पीठासीन अधिकारियों के मध्य इस बात पर चर्चा चल रही है कि विशेष रूप से सदस्यों के दल परिवर्तन से संबंधित मामलों में, अध्यक्ष के पद की “गरिमा” को कैसे सुरक्षित किया जाए. इस संदर्भ में, लोकतांत्रिक परंपरा और विधि के शासन को बनाए रखने के लिए शीर्ष अदालत द्वारा सुझाए गए उपायों को अपनाने की तत्काल आवश्यकता है. उल्लेखनीय है कि एक सतर्क संसद, दक्षतापूर्ण कार्य करने वाले लोकतंत्र की नींव का निर्माण करती है और पीठासीन अधिकारी इस संस्था की प्रभावकारिता को सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

  • दिनेश गोस्वामी समिति: वर्ष 1990 में चुनावी सुधारों को लेकर गठित दिनेश गोस्वामी समिति ने कहा था कि दल-बदल कानून के तहत प्रतिनिधियों को अयोग्य ठहराने का निर्णय चुनाव आयोग की सलाह पर राष्ट्रपति/राज्यपाल द्वारा लिया जाना चाहिये.संबंधित सदन के मनोनीत सदस्यों को उस स्थिति में अयोग्य ठहराया जाना चाहिये यदि वे किसी भी समय किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होते हैं.
  • विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट: वर्ष 1999 में विधि आयोग ने अपनी 170वीं रिपोर्ट में कहा था कि चुनाव से पूर्व दो या दो से अधिक पार्टियाँ यदि गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं तो दल-बदल विरोधी प्रावधानों में उस गठबंधन को ही एक पार्टी के तौर पर माना जाए. राजनीतिक दलों को व्हिप (Whip) केवल तभी जारी करनी चाहिये, जब सरकार की स्थिरता पर खतरा हो. जैसे- दल के पक्ष में वोट न देने या किसी भी पक्ष को वोट न देने की स्थिति में अयोग्य घोषित करने का आदेश.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Bilateral, regional and global groupings and agreements involving India and/or affecting India’s interests

Topic : ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus

संदर्भ

 दिसंबर 2020 में, वियतनाम की अध्यक्षता में आसियान रक्षा मंत्रियों की बैठक-प्लस (ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus– ADMM-Plus) आयोजित की जा रही है। वियतनाम ने भारत को बैठक में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया है।

ADMM-PLUS क्या है?

  • ADMM-Plus का पूरा नाम है – ASEAN Defence Ministers’ Meeting Plus
  • ADMM-Plus की स्थापना के लिए सिंगापुर में 2007 में सम्पन्न ADMM की दूसरी बैठक में अवधारणा पत्र अंगीकृत किया गया था.
  • ADMM-Plus वह रक्षा मामलों से सम्बंधित मंच है जो क्षेत्रीय सुरक्षा से सम्बन्धित हैं. इसके माध्यम से आसियान देशों और उनके आठ संवाद भागीदारों के बीच सामरिक संवाद एवं व्यावहारिक सहयोग को बढ़ावा दिया जाता है.
  • इसका पहला सम्मेलन 2010 में वियतनाम की राजधानी हनोई में हुआ था. उस सम्मलेन में रक्षा मंत्रियों ने आपस में व्यवहारिक सहयोग के लिए पाँच विषयों पर सहमति दी थी. ये विषय हैं – सामुद्रिक सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, शान्ति बनाए रखने की कारर्वाइयाँ, मानवीय सहायता एवं आपदा राहत तथा सैन्य औषधियाँ.
  • 2013 में इस सूची में एक नया क्षेत्र भी जोड़ा गया जो है – मानवीयता पर आधारित खदान सुरक्षा.

उद्देश्य

  • यह देखते हुए भी कि अलग-अलग आसियान देशों की अपनी-अपनी क्षमता है, ADMM –Plus आसियान देशों को लाभ पहुँचाने और साझा सुरक्षा चुनौतियों से निबटने के लिए क्षमता वर्धन का काम करता है.
  • आसियान देशों के रक्षा स्थापनाओं के बीच पारस्परिक विश्वास और भरोसा बढ़ाने के लिए संवाद और पारदर्शिता पर बल देना.
  • क्षेत्र के समक्ष उपस्थित अंतर्देशीय सुरक्षा चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए रक्षा और सुरक्षा में सहयोग के माध्यम से क्षेत्रीय शान्ति और स्थिरता को बढ़ावा देना.
  • बाली समझौता 2 में वर्णित क्षेत्र में शान्ति, स्थिरता व लोकतंत्र और समृद्धि विषयक आसियान की आकांक्षा को देखते हुए आसियान सुरक्षा समुदाय को साकार करने में योगदान करना.
  • शांतिपूर्ण, सुरक्षित और समृद्ध आसियान बनाने तथा संवाद भागीदारों एवं अन्य मित्रों के साथ बाह्य सम्बन्धों की अग्रगामी रणनीतियाँ अंगीकृत करने के लिए Vientiane Action Programme का कार्यान्वयन करने में सहायता करना.

GS Paper 2 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Related to Health.

Topic : Anemia

संदर्भ

हाल ही में स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने कहा है कि भारत में रक्ताल्पता (anemia) के सभी कारणों से निपटने के प्रयास करने की जरूरत है.

पृष्ठभूमि

एनीमिया पर समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण (Comprehensive National Nutrition Survey) के अनुसार, देश में प्रजनन आयु (reproductive age) की करीब आधी महिलाएं खून की कमी (anemic) की शिकार हैं जबकि स्कूल पूर्व (preschoolers)के 41 प्रतिशत बच्चे, स्कूल जाने वाले 24 प्रतिशत बच्चे (school age children) और 28 प्रतिशत वयस्क(adolescents) भी एनीमिया के शिकार हैं.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि भारत सरकार को सभी उम्र के लोगों में एनीमिया को कम करने पर ध्यान देना चाहिए तथा एनीमिया(anemia) के सभी कारणों को दूर करने के प्रयास करने की जरूरत है.

समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के बारे में

  • समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण(Comprehensive National Nutrition Survey), केंद्र सरकार द्वारा संचालित देश का पहला राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण है, जिसमें फरवरी 2016 से लेकर अक्टूबर 2018 तक के आंकड़ों को शामिल किया गया है.
  • इस सर्वेक्षण को भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा आयोजित किया गया था.
  • भारत सरकार ने समग्र राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण को सितम्बर,2019 में जारी किया था.
  • इस सर्वेक्षण में भारत में कुपोषण की स्थिति को बताया गया है.

क्या है एनीमिया (anemia) रोग?

  • एनीमिया (anemia) रोग में शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं का स्तर सामान्‍य से कम या हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है.सभी व्यक्तियों में इसका स्तर भिन्न-भिन्न हो सकता है.
  • सामान्य तौर पर यह स्तर निम्न प्रकार से होता है.एनीमिया/रक्ताल्पता के तीन प्रमुख कारण हैं: खून की कमी, लाल रक्त कोशिकाओं के उत्पादन में कमी और लाल रक्त कोशिकाओं के विनाश की उच्च दर.

प्रीलिम्स बूस्टर

 

राष्ट्रीय पोषण माह

  • पोषण माह मनाने का सबसेप्रधान उद्देश्य पोषण के सन्देश को गाँव-गाँव तक पहुँचाना है.
  • यह कार्यक्रममहिला एवं बाल विकास मंत्रालय एवं नीति आयोग की एक पहल है और इसका समर्थन 18 सम्बंधित मंत्रालय/विभाग/सरकारी संगठन कर रहे हैं.
  • इस कार्यक्रम का लक्ष्य तकनीक का प्रयोग करते हुए पोषण के सम्बन्ध में किये जा रहे समस्त प्रयासों को एक सूत्र में बांधना और पोषण के विषय में जागरूकता को जन आन्दोलन के स्तर तक ले जाना है.
  • इस कार्यक्रम में इन आठथीमपर ध्यान दिया जा रहा है – प्रसवपूर्व देखभाल, इष्टतम स्तनपान विधि (प्रारंभिक और विशिष्ट), पूरक आहार, रक्ताल्पता (anemia), सार्वजनिक विकास की निगरानी, बालिका शिक्षा, आहार, विवाह की सही उम्र, स्वच्छता, खाद्य में पोषक तत्त्वों की मिलावट.

पोषण अभियान

POSHAN Abhiyaan (National Nutrition Mission) का आरम्भ प्रधानमन्त्री द्वारा राजस्थान के झुंझुनू में 8 मार्च, 2018 में किया गया था.

  • इस अभियान का लक्ष्य है छोटे-छोटे बच्चों, महिलाओं और किशोरियों के बीच कुंठित विकास, कुपोषण, रक्ताल्पता और साथ ही जन्म के समय शिशु के भार की अल्पता की दर को क्रमशः 2%, 2%, 3 % और 2% प्रतिवर्ष घटाना.
  • मिशन का एक लक्ष्य यह भी है कि 0 से 6 साल के बच्चों में शारीरिक विकास में कमी की दर को वर्तमान के 4% से घटाकर 2022 तक 25% कर दिया जाए.
  • सरकार पोषण अभियान को 2020 तक विभिन्न चरणों में देश के सभी 36 राज्यों/केंद्र शाषित क्षेत्रों तथा 718 जिलों तक ले जाना चाहती है.

GS Paper 3 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : GREAT BARRIER REEF

संदर्भ

हाल ही में ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क अथॉरिटी (Great Barrier Reef Marine Park Authority) के वैज्ञानिकों ने इस तथ्य पर प्रकाश डाला है कि “ला-लीना जैसी वैश्विक मौसम की घटना भी ग्रेट बैरियर रीफ (Great Barrier Reef) क्षेत्र का तापमान नहीं कम कर पाएगी.”

मुख्य तथ्य

  • ग्रेट बैरियर रीफ मरीन पार्क वैज्ञानिकों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का तापमान बढ़ रहा है, जो कोरल ब्लीचिंग (coral bleaching) के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है.
  • बढ़ते समुद्री तापमान से ग्रेट बैरियर रीफ को काफी नुकसान हो रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इस क्षेत्र में ला-लीना जैसी वैश्विक मौसम की घटना भी उस मात्रा तक तापमान नहीं कम कर पाएगी, जिससे कि ग्रेट बैरियर रीफ का संरक्षण हो सके और कोरल ब्लीचिंग को रोका जा सके.

ग्रेट बैरियर रीफ क्या है?

विशाल प्रवाल भित्ति विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति है जो ऑस्ट्रेलिया के क्वीन्सलैंड के समुद्री तट के निकट प्रवाल सागर में अवस्थित है. इसमें 2,900 से अधिक अलग-अलग भित्तियाँ हैं और 900 प्रवाल द्वीप हैं जो लगभग 344,400 वर्ग किलोमीटर में फैले हुए हैं.

विशाल प्रवाल भित्ति को बाह्य अन्तरिक्ष से भी देखा जा सकता है. हम कह सकते हैं कि यह विश्व की वह सबसे बड़ी संरचना है जो जीवों द्वारा बनाई गई है. यह भित्ति करोड़ों सूक्ष्म जीवों से बनी हुई है जिन्हें प्रवाल पोलिप (coral polyps) कहते हैं.

प्रवाल भित्तियाँ क्या हैं?

  • प्रवाल भित्तियाँ महासागरों में जैव-विविधता के महत्त्वपूर्ण हॉटस्पॉट हैं. वस्तुतः प्रवाल जेलीफिश और एनिमोन की भाँतिCnidaria श्रेणी के जानवर होते हैं. इनमें व्यक्तिगत पोलिप (polyps) होते हैं जो आपस में मिलकर भित्ति का निर्माण करते हैं. प्रवाल भित्तियों में अनेक प्रकार की प्रजातियों को आश्रय मिलता है.
  • ये भित्तियाँ तटीय जैवमंडल की गुणवत्ता को बनाए रखती हैं.
  • कार्बन डाइऑक्साइड को चूना पत्थर शेल में बदलकर प्रवाल उसके स्तर को नियंत्रित करते हैं. यदि ऐसा नहीं हो तो महासागर के जल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा इतनी बढ़ जायेगी कि उससे पर्यावरण को संकट हो जाएगा.

प्रवाल श्वेतीकरण किसे कहते हैं?

  • मूलतः श्वेतीकरण तब होता है जब प्रवालों से प्राकृतिक रूप से जुड़ी जूक्सेनथेले (zooxanthellae) नामक काई बाहर आने लगती है. ऐसा जल के तापमान बढ़ने से होता है. वस्तुतः यह काई प्रवाल की ऊर्जा का 90% मुहैया करती है. इस काई में क्लोरोफील और कई अन्य रंजक होते हैं. इन तत्त्वों के कारण प्रवालों का रंग कहीं पीला तो कहीं लाल मिश्रित भूरा होता है.
  • जब प्रवाल सफ़ेद होने लगता है तो उसकी मृत्यु तो नहीं होती, परन्तु लगभग मृत ही हो जाता है. कुछ प्रवाल इस प्रकार की घटना से बच निकते हैं और जैसे ही समुद्र तल का तापमान सामान्य होता है तो यह फिर से पुराने रूप में आ जाते हैं.
  • 2016-17 में विशाल प्रवाल भित्ति के उत्तरी भागों में दोनों वर्ष अभूतवर्ष श्वेतीकरण देखा गया, जिस कारण उन्हें ऐसी क्षति पहुँची कि उसकी भरपाई होना कठिन है.

GS Paper 1 Source : The Hindu

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UPSC Syllabus : Indian culture will cover the salient aspects of Art Forms, literature and Architecture from ancient to modern times.

Topic : Fiscal Deficit

संदर्भ

केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा चालू वित्त वर्ष में अक्टूबर के अंत तक बढ़कर 9.53 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया जो सालाना बजट अनुमान का लगभग 120 प्रतिशत है.

कारण:

  1. राजकोषीय घाटे में वृद्धि का मुख्य कारण राजस्व संग्रह में कमी होना रहा है.
  2. कोरोनावायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन से कारोबारी गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुई थीं, जिससे राजस्व प्राप्ति सुस्त पड़ गई.

क्या है राजकोषीय घाटा

  • सरकार की कुल आय और व्यय में अंतर को राजकोषीय घाटा कहा जाता है. इससे पता चलता है कि सरकार को कामकाज चलाने के लिये कितनी उधारी की ज़रूरत होगी. कुल राजस्व का हिसाब-किताब लगाने में उधारी को शामिल नहीं किया जाता है. राजकोषीय घाटा आमतौर पर राजस्व में कमी या पूंजीगत व्यय में अत्यधिक वृद्धि के कारण होता है.
  • पूंजीगत व्यय लंबे समय तक इस्तेमाल में आने वाली संपत्तियों जैसे-फैक्टरी, इमारतों के निर्माण और अन्य विकास कार्यों पर होता है. राजकोषीय घाटे की भरपाई आमतौर पर केंदीय बैंक (रिजर्व बैंक) से उधार लेकर की जाती है या इसके लिये छोटी और लंबी अवधि के बॉन्ड के जरिये पूंजी बाजार से फंड जुटाया जाता है.

क्या है FRBM कानून?

  • उल्लेखनीय है कि देश की राजकोषीय व्यवस्था में अनुशासन लाने के लिये तथा सरकारी खर्च तथा घाटे जैसे कारकों पर नज़र रखने के लिये राजकोषीय जवाबदेही एवं बजट प्रबंधन (FRBM)  कानून को वर्ष 2003 में तैयार किया गया था तथा जुलाई 2004 में इसे प्रभाव में लाया गया था.
  • यह सार्वजनिक कोषों तथा अन्य प्रमुख आर्थिक कारकों पर नज़र रखते हुए बजट प्रबंधन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. FRBM के माध्यम से देश के राजकोषीय घाटों को नियंत्रण में लाने की कोशिश की गई थी, जिसमें वर्ष 1997-98 के बाद भारी वृद्धि हुई थी.
  • केंद्र सरकार ने FRBM कानून की नए सिरे से समीक्षा करने और इसकी कार्यकुशलता का पता लगाने के लिये एन. के. सिंह के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था.

मौद्रिक नीति समिति 

  • मौद्रिक नीति समिति (MPC) का गठन ब्याज दर निर्धारण को अधिक उपयोगी एवं पारदर्शी बनाने के लिये 27 जून, 2016 को किया गया था.
  • वित्त अधिनियम, 2016 द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया अधिनियम, 1934 (RBI अधिनियम) में संशोधन किया गया, ताकि मौद्रिक नीति समिति को वैधानिक और संस्थागत रूप प्रदान किया जा सके.
  • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार, मौद्रिक नीति समिति के छह सदस्यों में से तीन सदस्य RBI से होते हैं और अन्य तीन सदस्यों की नियुक्ति केंद्रीय बैंक द्वारा की जाती है.
  • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है, जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक के डिप्टी गवर्नर मौद्रिक नीति समिति के प्रभारी के तौर पर काम करते हैं.

ये जरूर पढ़ें – राजकोषीय घाटा


Prelims Vishesh

AUTONOMOUS DISTRICT COUNCILS :-

संविधान की छठी अनुसूची के अनुसार, असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजातीय क्षेत्र हैं जो तकनीकी रूप से अनुसूचित क्षेत्रों से अलग होते हैं. यद्यपि ये क्षेत्र राज्य के कार्यकारी अधिकार क्षेत्र में आते हैं, परन्तु कतिपय विधायी एवं न्यायिक शक्तियों का प्रयोग करने के लिए इनमें जिला परिषदों एवं क्षेत्रीय परिषदों का प्रावधान किया गया है. प्रत्येक जिला एक स्वायत्त जिला होता है और राज्यपाल अधिसूचना निर्गत कर के इन जनजातीय क्षेत्रों की सीमाओं में परिवर्तन कर सकता है अथवा उन्हें विभाजित कर सकता है.


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