If you want to connect me on Instagram, my insta id is >> Click Here
Sansar Daily Current Affairs, 28 September 2019
GS Paper 1 Source: PIB
UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena such as earthquakes, Tsunami, Volcanic activity, cyclone etc., geographical features and their location- changes in critical geographical features (including water-bodies and ice-caps) and in flora and fauna and the effects of such changes.
Topic : Naming of cyclones
संदर्भ
पिछले दिनों हिक्का (Hikka) नामक उष्णकटिबंधीय आँधी चक्रवात में परिवर्तित हो गया.
चक्रवातों का नाम कैसे पड़ता है?
सितम्बर 2004 में उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से सम्बंधित एक अंतर्राष्ट्रीय पैनल ने निर्णय किया कि उष्णकटिबंधीय चक्रवात क्षेत्र में स्थित देश चक्रवातों के लिए अपना-अपना नाम देंगे जिसके आधार पर बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में उठने वाली आँधियों का नाम रखा जाएगा.
- 8 देश भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाईलैंड – ने 64 नाम सुझाए.
- आँधी आने पर नई दिल्ली स्थित क्षेत्रीय विशेषज्ञ मौसम वैज्ञानिक केंद्र (Regional Specialized Meteorological Centre) नामों की सूची में से एक नाम चुनता है.
- सबसे पहले चक्रवात को बांग्लादेश के द्वारा सुझाया गया नाम – अनिल (Onil) – दिया गया था. उसके बाद से दी गई सूचियों में से चुनकर बाद में आने वाले चक्रवात को नाम दिया जाता है.
चक्रवातों का नाम देना आवश्यक क्यों है?
ज्ञातव्य है कि अटलांटिक आँधियों के लिए 1993 से ही नाम दिए जाते रहे हैं. परन्तु ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का नामकरण पहले नहीं होता था क्योंकि यह भय था कि बहुल राष्ट्रीयता वाले इस क्षेत्र का कोई न कोई देश नाम के मामले में संवेदनशील हो सकता है. अब उष्णकटिबंधीय चक्रवातों का भी नामकरण होता है. इसका उद्देश्य यह है कि लोग किसी चक्रवात के बारे में आसानी से समझ सकें और याद रख सकें. ऐसा करने से आपदा के बारे में जागरूकता, तैयारी, प्रबंधन एवं उसके निवारण में सुविधा हो सके.
चक्रवातों के नामकरण विषयक मार्गनिर्देश
किसी चक्रवात के नामकरण के लिए सामान्य नागरिक भी अपना सुझाव मौसम विज्ञान महानिदेशक को दे सकता है. किन्तु इस निदेशालय ने नाम चुनने के लिए कठोर नियम बना रखे हैं –
- उदाहरण के लिए नाम को छोटा और आसानी से समझ लेने लायक होना चाहिए.
- नाम ऐसा हो जो सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील न हो और उसका कोई ऐसा अर्थ न हो जो आक्रोश पैदा कर सके.
- व्यापक मृत्यु एवं विनाश लाने वाले चक्रवात का नाम दुबारा उपयोग में नहीं आता है. ज्ञातव्य है कि अटलांटिक और पूर्वी प्रशांत महासागरीय आँधियों के नाम की सूची के नामों का कुछ-कुछ वर्षों के बाद दुबारा प्रयोग होता है.
चक्रवातों की श्रेणियाँ
- श्रेणी 1 : 90 से 125 किमी. प्रति घंटे चलने वाली हवाएँ, घरों को नाममात्र की क्षति, पेड़ों और फसलों को कुछ क्षति.
- श्रेणी 2 : 125 से 164 किमी. प्रति घंटे की विध्वंसक हवाएँ, घरों को छोटी-मोटी क्षति, पेड़ों, फसलों और कारवाँओं को अच्छी-खासी क्षति, बिजली जाने का जोखिम.
- श्रेणी 3 : 165 से 224 किमी. प्रति घंटे की अति विध्वंसक हवाएँ, छतों और भवन-संरचना को कुछ क्षति, कुछ कारवाँओं का विनाश, बिजली जाने की संभावना.
- श्रेणी 4 : 225-279 किमी. प्रति घंटे की अति विध्वंसक हवाएँ, छतों और भवन संरचनाओं को अच्छी-खासी क्षति, कारवाँओं का विनाश, उनका हवाओं में उड़ जाना, चारों ओर बिजली का जाना.
- श्रेणी 5 : 280 किमी. प्रति घंटे से अधिक की गति की अत्यंत खतरनाक हवाएँ जो दूर-दूर तक विनाश लाती हैं.
छः छः वर्ष पर फिर से उपयोग किये गए नाम
अटलांटिक और प्रशांत महासागर की आँधियों के नाम हर छठे वर्ष फिर से उपयोग में लाये जाते हैं. पर यदि कोई आँधी अत्यंत जानलेवा और क्षतिकारक सिद्ध होती है तो भविष्य में उस आँधी के नाम को दुहराया नहीं जाता है क्योंकि म्यामी-स्थित US नेशनल हरीकेन सेंटर के पूर्वानुमानकर्ताओं का कहना है कि ऐसा करना असंवेदनशील तथा भ्रमोत्पादक होता है.
चक्रवातीय मौसम
देश में चक्रवात अप्रैल से दिसम्बर के बीच होते हैं. भीषण आँधियों से दर्जनों की मृत्यु हो जाती है और निचले क्षेत्रों से हजारों को खाली कराया जाता है. साथ ही फसल और सम्पत्ति को व्यापक क्षति पहुँचती है.
विभिन्न क्षेत्रों में चक्रवात के नाम
तूफ़ान – चीनी सागर और प्रशांत महासागर.
हरिकेन – कैरीबियाई सागर और अटलांटिक महासागर
टोर्नेडो – पश्चिमी अफ्रीका का गिनी लैंड और दक्षिणी अमेरिका
विली-विलिज – पश्चिमोत्तर ऑस्ट्रेलिया
उष्णकटिबंधीय चक्रवात – हिन्द महासागर
चक्रवात के विषय में अधिक जानकारी के लिए यह पोस्ट जरुर पढ़ें > चक्रवात
GS Paper 2 Source: PIB
UPSC Syllabus : Development processes and the development industry the role of NGOs, SHGs, various groups and associations, donors, charities, institutional and other stakeholders.
Topic : ‘UMMID’ initiative
संदर्भ
भारत सरकार ने नवजात शिशुओं में होने वाले वंशानुगत रोगों के उपचार के लिए “उम्मीद” नामक एक पहल का आरम्भ किया है. UMMID का पूरा नाम है – Unique Methods of Management and treatment of Inherited Disorders.
यह योजना जैव-प्रौद्योगिकी विभाग की ओर से इस अवधारणा के अनुसार तैयार की गई है कि बचाव उपचार से बेहतर होता है.
इस पहल का ध्येय डॉक्टरों में वंशानुगत विकृतियों के विषय में जागरूकता उत्पन्न करना है तथा साथ ही अस्पतालों में मोलेक्यूलर निदान की सुविधाएँ स्थापित करना है जिससे कि आनुवंशिक चिकित्सा विज्ञान में हो रहे विकास का लाभ भारत के रोगियों तक पहुँचाया जा सके.
UMMID का उद्देश्य
- सरकारी अस्पतालों में ऐसे निदान (National Inherited Diseases Administration – NIDAN) केंद्र स्थापित करना जहाँ रोगियों को मंत्रणा दी जाए और साथ ही जन्म-पूर्व परीक्षण, निदान, प्रबंधन एवं बहुविध देखभाल की सुविधा हो. विदित हो कि सरकारी अस्पतालों में ही रोगी उपचार के लिए अधिक आते हैं.
- मानव आनुवंशिकी में सिद्धहस्त डॉक्टर पैदा करना.
- आंकाक्षी जिलों में अवस्थित अस्पतालों में गर्भवती स्त्रियों और नवजात शिशुओं में वंशानुगत रोग है अथवा नहीं इसकी जाँच की सुविधा देना.
UMMID का माहात्म्य
देखा जाता है कि भारत के शहरों में नवजात की मृत्यु का तीसरा सबसे बड़ा कारण वंशानुगत विकृतियाँ ही होती हैं. ऐसा इसलिए होता है कि हमारे यहाँ जनसंख्या विशाल है और जन्म दर भी ऊँची है. इसके अतिरिक्त इन रोगों का एक बड़ा कारण कुछ समुदायों में एक ही रक्त के बीच विवाह होना भी है. अतः वंशानुगत रोगों से ग्रस्त लोगों के उपचार के लिए UMMID जैसी पहल का माहात्म्य सरलता से समझा जा सकता है.
GS Paper 2 Source: Indian Express
UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.
Topic : Participatory Guarantee Scheme (PGS)
संदर्भ
भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India – FSSAI) के प्रमुख ने यह विश्वास व्यक्त किया है कि भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा सूत्रपात की गई सहभागी प्रत्याभूति योजना अर्थात् Participatory Guarantee Scheme (PGS) किसानों को जैव खाद्य फसल उगाने के लिए उत्प्रेरित करेगी.
सहभागी प्रत्याभूति योजना (PGS) क्या है?
- यह भारत सरकार के कृषि मंत्रालय की एक योजना है जिसके अंतर्गत जैव कृषि उत्पादों को अभिप्रमाणित किया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि जैव उत्पाद निर्धारित गुणवत्ता मानकों पर खरे हैं अथवा नहीं.
- जो अभिप्रमाणन दिया जाएगा वह या तो एक कथन के रूप में होगा अथवा उसे एक अभिलिखित लोगो (logo) के रूप में दिखाया जाएगा.
सहभागी प्रत्याभूति योजना (PGS) के लाभ
- PGS के अन्दर दिए गये अभिप्रमाणन की प्रक्रिया सरल होती है और इसके लिए अभिलेख भी मूलभूत होते हैं.
- किसान इसमें प्रयोग होने वाली स्थानीय भाषा को भलीभाँति समझ लेते हैं.
- इसके सदस्यगण एक-दूसरे के समीप रहने वाले और एक-दूसरे को जानने वाले होते हैं.
- ये सभी सदस्य स्वयं जैव-खेती करने वाले किसान होते हैं, अतः अभिप्रमाणन की प्रक्रिया को सरलता से समझ लेते हैं.
- इसके अंतर्गत होने वाली मूल्यांकन का काम उसी गाँव के किसान करते हैं न कि कोई तीसरा पक्ष. इससे मूल्यांकन की लागत बहुत कम रह जाती है.
- PGS के अन्दर क्षेत्रीय समूह एक-दूसरे को पहचानते हैं और उनकी सहायता भी करते हैं. इससे प्रसंस्करण और विपणन के लिए नेटवर्किंग का काम बेहतर ढंग से होता है.
- PGS में प्रत्येक किसान को अलग से प्रमाण पत्र दिया जाता है और किसान को यह छूट होती है कि वह अपने समूह से हटकर अपने उत्पाद को बाजार में बेच ले.
PGS की कमियाँ
- PGS अभिप्रमाणन केवल उन किसानों अथवा समुदायों को मिलता है जो किसी गाँव में अथवा आस-पास के गाँवों के एक संकुल में समूह बनाकर काम कर सकते हैं.
- PGS केवल खेती से जुड़ी गतिविधियों पर लागू होता है, जैसे – फसल का उत्पादन, प्रसंस्करण, मवेशी पालन आदि.
- PGS के अन्दर कोई अकेला किसान अथवा पाँच से कम किसानों का समूह नहीं आता है. ऐसे किसानों को या तो तृतीय पक्ष से अभिप्रमाणन लेना होता है अथवा वे चाहें तो किसी पहले से वर्तमान PGS स्थानीय समूह से जुड़ सकते हैं.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Science and Technology- developments and their applications and effects in everyday life Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.
Topic : Methane-powered rocket engine
संदर्भ
भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) दो “LOx मीथेन” ईंजन बनाने जा रहा है. ऐसे ईंजन में तरल ऑक्सीजन ऑक्सीकारक (liquid oxygen oxidiser ) और मीथेन ईंधन (methane fuel ) हुआ करता है.
मीथेन का प्रयोग क्यों?
- अन्तरिक्ष में मीथेन को पानी और कार्बन डाइऑक्साइड के साथ संश्लेषित किया जा सकता है और इसीलिए कुछ लोग इसे अन्तरिक्ष का भावी ईंधन भी कहते हैं.
- अभी ऑक्सीकारक के रूप में ISRO डाइ-मेथिल हाइड्रेजिन (Di-Methyl Hydrazine ) और नाइट्रोजन टेट्रोक्साइड (Nitrogen tetroxide) का प्रयोग करता है जो अत्यंत विषाक्त होता है और कैंसरकारक भी कहा जाता है.
- दूसरी ओर मीथेन अविषाक्त होने के साथ-साथ एक उच्चतर विशिष्ट आवेग (higher specific impulse) वाला गैस होता है जिसके एक किलो से किसी एक किलो वाले आयतन को अधिक समय तक चलाया जा सकता है.
- मीथेन को भंडारित करना भी सरल है और जलने के बाद यह कोई अवशेष नहीं छोड़ता है.
- यह कम जगह छेकता है और अन्तरिक्ष में इसका संश्लेषण सरलता से संभव हो सकता है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Conservation, environmental pollution and degradation, environmental impact assessment.
Topic : Black carbon
संदर्भ
पिछले दिनों एक अध्ययन का परिणाम प्रकाशित हुआ जिसमें बताया गया कि गाड़ियों के एग्जॉस्ट (exhaust) और कोयला पर चलने वाले बिजली संयंत्रों से निकलने वाले ब्लैक कार्बन कण जरायु (placenta) के उस भाग में पाए गये हैं जिधर भ्रूण का मुँह होता है. इसमें यह भी बताया गया है कि जरायु में ब्लैक कार्बन की उपस्थिति गर्भस्थ शिशु के समग्र विकास को दुष्प्रभावित कर सकती है.
निष्कर्ष
- ब्लैक कार्बन के कण सबसे अधिक उन स्त्रियों के जरायु में पाए गये हैं जो नित्य-प्रति वायु में तैरते हुए प्रदूषक तत्त्वों को झेलती हैं.
- साँस लेने पर ये कण माता के फेफड़ों से होते हुए जरायु तक पहुँच जाते हैं जिसके चलते बच्चे के फेफड़ों के ऊतक स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं और साथ ही उसके विकास में जीवन-भर चलने वाले विकार उत्पन्न कर देते हैं.
- प्रदूषित वायु के कारण गर्भपात, समय-पूर्व प्रसव और जन्म के समय भार के कम होने जैसे मामले देखे जाते हैं जो अंततः मधुमेह, दमा, स्ट्रोक, हृदय रोग आदि के जनक सिद्ध होते हैं.
ब्लैक कार्बन क्या होता है?
ब्लैक कार्बन जीवाश्म ईंधन, लकड़ी और अन्य ईंधन के अपूर्ण दहन द्वारा उत्सर्जित कणिकीय पदार्थ (Particulate Matter : PM) है जो वायुमंडल के ताप को बढ़ाता है. यह वायुमंडल में उत्सर्जन के कुछ दिनों से सप्ताहों तक स्थिर रहने वाला एक अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक है. इस छोटी अवधि के दौरान ब्लैक कार्बन जलवायु, हिमनद क्षेत्रों, कृषि और मानव स्वास्थ्य पर महत्त्वपूर्ण प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव डाल सकता है.
ब्लैक कार्बन के प्रभाव
जलवायु पर प्रभाव
ब्लैक कार्बन तापवृद्धि में सहायक है क्योंकि यह प्रकाश को अवशोषित करने और निकटवर्ती वातावरण की ऊष्मा की वृद्धि में अत्यधिक प्रभावी है. यह बादल निर्माण के साथ-साथ क्षेत्रीय परिसंचरण और वर्षा को भी प्रभावित करता है. बर्फ तथा हिम पर निक्षेपित होने पर, ब्लैक कार्बन और सह-उत्सर्जित कण एल्बिडो प्रभाव (सूर्य के प्रकाश को परावर्तित करने की क्षमता) को कम करते हैं तथा सतह के तापमान में वृद्धि करते हैं. इसके परिणामस्वरूप आर्कटिक और हिमालय जैसे ग्लेशियर क्षेत्रों में बर्फ पिघलने लगती है.
स्वास्थ्य पर प्रभाव
- ब्लैक कार्बन और इसके सह-प्रदूषक सूक्ष्म कणिकीय पदार्थ (5) वायु प्रदूषण के प्रमुख घटक हैं.
- इनसे होने वाले रोग हैं – हृदय और फेफड़ों के रोग, स्ट्रोक, हार्ट अटैक, चिरकालिक श्वसन रोग जैसे ब्रोंकाइटिस, गंभीर अस्थमा तथा अन्य कार्डियो-रेस्पिरेटरी लक्षणों सहित वयस्कों में समयपूर्व मृत्यु.
वनस्पति और पारिस्थितिकी तन्त्र पर प्रभाव
- ब्लैक कार्बन अनेक प्रकार से पारिस्थितिकी तन्त्र के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है. यह पौधों पर जमा हो जाता है तथा उनके तापमान में वृद्धि कर देता है. यह पृथ्वी पर आपतित सूर्यताप में कमी लाता है तथा वर्षा प्रतिरूप को भी परिवर्तित कर देता है.
- वर्षा प्रतिरूप में परिवर्तन के पारिस्थितिकी तन्त्र और मानव आजीविका दोनों के लिए दूरगामी परिणाम हो सकते हैं, उदाहरण के लिए यह मानसून में अवरोध उत्पन्न करता है, जो एशिया और अफ्रीका के बृहद् क्षेत्रों में कृषि के लिए महत्त्वपूर्ण है.
- ब्लैक कार्बन में वृद्धि के कारण हिमरेखा के समीप हिम-आच्छादित क्षेत्र के विस्तार में कमी के साथ-साथ मूल्यवान् औषधीय जड़ी बूटियों के विलुप्त होने जैसे प्रभाव दृष्टिगत होते हैं.
Prelims Vishesh
Kargil to Kohima (K2K) Ultra Marathon – “Glory Run”:-
- पिछले दिनों पैदल यात्रियों की सुरक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के साथ मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वाले बहादुरों को श्रद्धांजलि देने के लिए करगिल से एक ग्लोरी रन नामक अल्ट्रा मैराथन दौड़ आयोजित की गई जो करगिल से लद्दाख में स्थित कई दर्रों से होते हुए कोहिमा (K2K) तक जायेगी.
- इस क्रम में धावक हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, प. बंगाल, असम और नागालैंड की यात्रा करेंगे.
Central Advisory Board of Education (CABE) :–
केन्द्रीय शिक्षा परामर्शी बोर्ड (CABE) केन्द्रीय और राज्य सरकारों को शिक्षा के विषय में परामर्श देने वाला सर्वोच्च निकाय है जिसमें सांसदों (राज्य सभा और लोक सभा) के अतिरिक्त भारत सरकार, राज्य सरकारों एवं संघीय क्षेत्रों के प्रतिनिधि भी होते हैं.
Sagittarius A* :–
- Sagittarius A* एक विशालकाय कृष्ण विवर (black hole) है जो पृथ्वी से 26,000 प्रकाश वर्ष की दूरी पर आकाशगंगा के मध्य में स्थित है.
- पिछले दिनों इसके आस-पास का क्षेत्र सामान्य से कहीं अधिक चमकीला देखा गया.
- किसी कृष्ण विवर के आस-पास चमक का होना एक असाधारण घटना है. वैज्ञानिकों का अनुमान है कि ऐसा इसलिए हो रहा है कि यह कृष्ण विवर आस-पास के खगोलीय पिंडों को तेजी से खाता जा रहा है.
Happy Seeder :–
- हैप्पी सीडर (HS) अथवा टर्बो हैप्पी सीडर (THS) ट्रेक्टर-संचालित एक मशीन है जिसे पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर इंटरनेशनल अग्रीकल्चरल रिसर्च (ACIAR) ने मिलकर पराली को समाप्त करने के लिए तैयार किया है.
- इन मशीनों से गेहूँ के बीज सीधे रोपे जा सकते हैं और पराली जलाने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी.
Click here to read Sansar Daily Current Affairs – Sansar DCA
August, 2019 Sansar DCA is available Now, Click to Download