Sansar डेली करंट अफेयर्स, 29 April 2021

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Sansar Daily Current Affairs, 29 April 2021


GS Paper 1 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Major crops cropping patterns in various parts of the country, different types of irrigation and irrigation systems storage, transport and marketing of agricultural produce and issues and related constraints; e-technology in the aid of farmers.

Topic : ‘Large Area Certification’ scheme

संदर्भ

केंद्र शासित प्रदेश अंडमान और निकोबार के 14,491 हेक्टेयर एरिया, व्यापक क्षेत्र प्रमाणीकरण योजना अर्थात् ‘लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन’ योजना के अंतर्गत ‘जैविक प्रमाणीकरण’ प्राप्त करने वाला पहला वृहत संस्पर्शी क्षेत्र (large contiguous territory) बन गया गया है.

वृहत क्षेत्र प्रमाणीकरण योजना’ के बारे में

  1. ‘कृषि और किसान कल्याण विभाग’ द्वारा अपनी प्रमुख योजना ‘परंपरागत कृषि विकास योजना’ (PKVY) के तहत इन संभावित क्षेत्रों का इस्तेमाल करने के लिए एक अनूठा त्वरित प्रमाणन कार्यक्रम ‘वृहत क्षेत्र प्रमाणीकरण’ अर्थात् लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन” (LAC) शुरू किया गया है.
  2. LAC के तहत, क्षेत्र के प्रत्येक गाँव को एक क्लस्टर/ग्रुप के रूप में माना जाता है.
  3. अपने निजी खेत और पशुधन रखने वाले सभी किसानों को मानक आवश्यकताओं का पालन करना होता है और प्रमाणित होने के बाद उन्हें परिवर्तन अवधि तक प्रतीक्षा नहीं करना होता है.
  4. PGS -इंडिया के अनुसार मूल्यांकन की एक प्रक्रिया द्वारा वार्षिक सत्यापन के माध्यम से वार्षिक आधार पर प्रमाणन का नवीनीकरण किया जाता है.

वृहत क्षेत्र प्रमाणीकरण’ (LAC) के लाभ

  1. जैविक उत्पादन के मानक नियम के तहत, रासायनिक प्रयोग वाले क्षेत्रों को जैविक के रूप में अर्हता प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 2-3 वर्षों का समय लगता है.
  2. इस अवधि के दौरान, किसानों को मानक जैविक कृषि मानकों को अपनाने और प्रमाणन प्रक्रिया के तहत अपने खेतों को रख-रखाव करना होता है. सफलता पूर्वक समापन होने पर, ऐसे खेतों को 2-3 वर्षों के पश्चात् जैविक के रूप में प्रमाणित किया जा सकता है.
  3. प्रमाणन प्रक्रिया को प्रमाणीकरण अधिकारियों द्वारा विस्तृत डोक्यूमेंटेशन और समय-समय पर सत्यापन की भी जरूरत होती है.
  4. LAC के अंतर्गत आवश्यक प्रकिया बहुत सरल होती है और क्षेत्र को करीब तुरंत प्रमाणित किया जा सकता है.

मेरी राय – मेंस के लिए

 

जैविक खेती की पहचान एक बड़ी जीवन शक्ति विकल्प के रूप में की गई है जो सुरक्षित और रासायनिक अवशेष मुक्त भोजन और खाद्य उत्पादन प्रणालियों को लंबे समय तक स्थिरता प्रदान करती है. कोविड -19 महामारी ने जैविक उत्पाद की आवश्यकता और मांग को और बढ़ा दिया है. विश्व में जैविक खाद्य की मांग बढ़ रही है और भारत इसका अपवाद नहीं है. 2014 के बाद से रासायन मुक्त खेती के पर्यावरण और मानव लाभ के महत्व को समझते हुए, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के माध्यम से भारत सरकार ने परंपरागत कृषि विकास योजना, उत्तर पूर्व में जैविक मिशन आदि की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से जैविक / प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है. भारत में अब 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र जैविक प्रमाणीकरण के तहत पंजीकृत हैं और शनैः शनैः अधिक से अधिक किसान इस मुहिम में शामिल हो रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण रिपोर्ट (2021) के अनुसार, भारत क्षेत्रफल के मामले में 5वें स्थान पर है और कुल उत्पादकों की संख्या (आधार वर्ष 2019) के मामले में शीर्ष पर है.


GS Paper 3 Source : Indian Express

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UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : Net Zero Producers Forum

संदर्भ

हाल ही में सऊदी अरब ‘नेट ज़ीरो उत्पादक मंच’ (Net Zero Producers’ Forum) में शामिल हुआ है.

नेट ज़ीरो उत्पादक मंच (Net Zero Producers’ Forum)

  • संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, कतर और नॉर्वे ने मिलकर ‘नेट ज़ीरो उत्पादक मंच’ (Net Zero Producers’ Forum) का निर्माण किया है.
  • ‘नेट ज़ीरो उत्पादक मंच’, एक सहकारी मंच (कोआपरेटिव फोरम) है.
  • इस सहकारी मंच के अंतर्गत संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, कतर और नॉर्वे मिलकर सम्मिलित रूप से नेट ज़ीरो उत्सर्जन हेतु व्यावहारिक रणनीतियों पर कार्य करेंगे.
  • गौरतलब है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, सऊदी अरब, कतर और नॉर्वे सामूहिक रूप से 40% वैश्विक तेल और गैस उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं. इससे वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन का जोखिम बढ़ा हुआ है.
  • इसीलिए ये देश ‘नेट ज़ीरो उत्पादक मंच’ के अंतर्गत सामूहिक रूप से निम्नलिखित गतिविधियों को बढ़ावा देंगे, ताकि जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम किया जा सके-
  1. मीथेन का न्यूनीकरण (methane abatement),
  2. सर्कुलर कार्बन इकोनॉमी दृष्टिकोण को बढ़ावा,
  3. स्वच्छ-ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा,
  4. कार्बन कैप्चर और भंडारण हेतु प्रौद्योगिकियों का विकास,
  5. हाइड्रोकार्बन राजस्व पर निर्भरता में कमी,
  6. क्षेत्रीय परिस्थितियों के हिसाब से पर्यावरण फ्रेंडली प्रथाओं को अपनाने हेतु प्रोत्साहन,
  7. वनों के क्षेत्र को बढ़ाना,
  8. जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना.

कार्बन न्यूट्रैलिटी (कार्बन तटस्थता)

  • कार्बन न्यूट्रैलिटी या नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का तात्पर्य है कि जितनी कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जित की जाएगी, उतनी ही कार्बन डाईऑक्साइड वातावरण से हटाई जाएगी.
  • इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अर्थव्यवस्था के हर महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को इको फ्रेंडली बनाना होता है.
  • विभिन्न देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को प्रदूषण फैलाने वाले कोयले और गैस व तेल से चलने वाले बिजली स्टेशनों की जगह, पवन या सौर ऊर्जा फार्म जैसे अक्षय ऊर्जा स्रोतों के ज़रिये सशक्त करना होता है.

वर्तमान में वैश्विक स्तर पर कार्बन तटस्थता की स्थिति

  • विकसित देशों द्वारा कार्बन तटस्थता की घोषणाओं के बाद भी कार्बन के उत्सर्जन में अपेक्षाकृत कमी नहीं ला पा रहे हैं .
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने भूमि उपयोग और भूमि उपयोग परिवर्तन एवं वन संबंधित उत्सर्जन (land use and land use change and forest related emissions) पर गंभीरता से विचार विचार नहीं किया है.
  • यूरोपीय संघ (ईयू) द्वारा 2050 तक शून्य कार्बन उत्सर्जक बनने के लिए एक कानून निर्मित किया गया है. यह सौदा यूरोपीय संघ के सभी सदस्यों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है. यह जलवायु कानून विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में ग्रीनहाउस उत्सर्जन को कम करने के लिए यूरोप की योजनाओं के लिए एक आधार तैयार करेगा.
  • वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार, कार्बन उत्सर्जन के मामले में चीन सर्वप्रथम स्थान पर हैऔर इसके पश्चात् अमरीका का स्थान आता है तथा तीसरे स्थान पर भारत है.

भारत की प्रतिबद्धता

  • विश्‍व सतत विकास शिखर सम्‍मेलन-2021का उद्घाटन करने के बाद भारत ने कहा कि साझा प्रयासों से ही सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल किया जा सकता है और इन लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में भारत अपनी भूमिका के लिए तैयार है.
  • भारत ने अप्रैल 2016 में औपचारिक रूप से पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर किये थेभारत का लक्ष्य 2005 के स्तर की तुलना में 2030 तक उत्सर्जन को 33-35% तक कम करना है.
  • इसके साथ ही भारत का लक्ष्य 2030 तक अतिरिक्त वनों के माध्यम से 2.5-3 अरब टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर कार्बन में कमी लाना है.भारत अपने लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ रहा है.

GS Paper 3 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Pollution related issues.

Topic : New fly ash utilisation rule for thermal power plants

संदर्भ

केंद्र सरकार ने कोयला और लिग्नाइट आधारित तापीय विद्युत् संयंत्रों (Thermal Power Plants: TPPs) के लिए तीन से पाँच साल की अवधि के भीतर फ्लाई ऐश का 100 प्रतिशत उपयोग सुनिश्चित करना अनिवार्य कर दिया है.

मुख्य विशेषताएँ

  • इन नियमों का अनुपालन नहीं करने वाले TPPs को “प्रदूषक द्वारा भुगतान सिद्धांत (Polluter Pays Principle) के तहत उपयोग नहीं की गई फ्लाई ऐश (जिसे लिगेसी ऐश भी कहा जाता है) पर 1,000 रुपये प्रति टन की दर से आर्थिक दंड देना होगा. फ्लाई ऐश के उपयोग संबंधी लक्ष्यों को अप्रैल 2022 से आरंभ किया जाएगा.
  • इसके तहत एकत्रित आर्थिक जुर्माना राशि को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के इस हेतु नामित खाते में जमा किया जाएगा.
  • यह नियम फ्लाई ऐश उपयोग नीति (Fly Ash Utilization policy) के अनुरूप है. इस नीति का उद्देश्य फ्लाई ऐश के उपयोग को विद्युत उत्पादन की प्रक्रिया में एक अभिन्‍न क्रियाकलाप के रूप में स्थापित करना है. साथ ही, सभी प्रयासों के माध्यम से फ़्लाई ऐश के उपयोग को संधारणीय आधार पर अधिकतम 100 प्रतिशत तक करना है.

फ्लाई ऐश क्या है?

फ्लाई ऐश एक बारीक पाउडर है जो तापीय बिजली संयंत्रों में कोयले के जलने से उप-उत्पाद के रूप में प्राप्त होता है. इसमें भारी धातु होते हैं और साथ ही PM 2.5 और ब्लैक कार्बन भी होते हैं.

इसमें पाया जाने वाला PM 2.5 गर्मियों में हवा के माध्यम से उड़ते-उड़ते 20 किलोमीटर तक फ़ैल जाता है. यह पानी और अन्य सतहों पर जम जाता है.

फ्लाई ऐश हानिकारक कैसे?

फ्लाई ऐश में सिलिका, एल्यूमीनियम और कैल्शियम के ऑक्साइड की पर्याप्त मात्रा होती है. आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम तथा सीसा जैसे तत्त्व भी सूक्ष्म मात्रा में पाए जाते हैं. इस प्रकार इससे पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर संकट उत्पन्न होता है. फैक्ट्रियों से निकलने वाले कोयले के धुओं से फ्लाई ऐश तो वातावरण में फैलता ही है साथ ही साथ कई बार फैक्ट्रियाँ फ्लाई ऐश को जमा कर के बाहर उनका भंडार बना देती हैं. ये सारे कचरे जमा हो-हो कर कभी-कभी पहाड़ जैसा बन जाते हैं. वहाँ से फ्लाई ऐश वातावरण को प्रदूषित करते ही हैं और बहुधा नदी/नहरों में भी फ्लाई ऐश के अंश चले जाते हैं.

फ्लाई ऐश का उपयोग

  • इसे कृषि में अम्लीय मृदाओं के लिए एक अभिकारक के रूप में, मृदा कंडीशनर के रूप में प्रयोग किया जा सकता है.इससे मृदा की महत्त्वपूर्ण भौतिक-रसायन विशेषताओं, जैसे जल धारण क्षमता, हाइड्रोक्लोरिक कंडक्टिविटी आदि में सुधार होगा.
  • भारत अभी तक फ्लाई ऐश प्रयोग की अपनी संभावनाओं का पूर्ण प्रयोग कर पाने में सक्षम नहीं है. हाल ही के CSE के एक अध्ययन के अनुसार, उत्पादित की जाने वाले फ्लाई ऐश का मात्र 50-60% ही प्रयोग हो पाता है.

GS Paper 3 Source : PIB

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UPSC Syllabus : Conservation related issues.

Topic : Project ‘Pyrasol’

संदर्भ

हाल ही में, चेन्नई में, एकीकृत सौर ड्रायर और पायरोलिसिस पायलट (Integrated Solar Dryer and Pyrolysis pilot) प्लांट की आधारशिला रखी गई.

  1. यह पायलट इंडो-जर्मन परियोजना ‘पायरासोल’ का भाग है, जिसकी शुरुआत स्मार्ट शहरों के शहरी जैविक कचरे को बायोचार और ऊर्जा में बदलने के लिए की गई है.
  2. यह ‘पायरासोल’ प्रोजेक्ट, इंडो-जर्मन साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर द्वारा सीएसआईआर-सीएलआरआई को प्रदान किया गया था.
  3. यह परियोजना अंततः भारतीय स्मार्ट शहरों के ‘फैब्रीस ऑर्गेनिक वेस्ट’ (FOW) और ‘सीवेज स्लज’ (SS) के संयुक्त प्रसंस्करण के लिए प्रौद्योगिकी विकास के साथ-साथ ऊर्जा रिकवरी, कार्बन अनुक्रमीकरण और पर्यावरण सुधार से संबंधित अत्यधिक उपयोगी बायोचार और स्वच्छतापूर्ण व्यवस्था को प्रोत्साहन देगी.

पायरासोल’ प्रोजेक्ट क्या है?

  • यह परियोजना भारतीय स्मार्ट शहरों के साथ-साथ अन्य शहरी केंद्रों में एकीकृत और संवादात्मक दृष्टिकोण के साथ शहरी कचरे के संग्रह, उपचार और निपटान प्रणालियों के प्रबंधन और आयोजन पर केन्द्रित है.
  • यह परियोजना भारतीय स्मार्ट शहरों के साथ-साथ अन्य शहरी केंद्रों में एकीकृत और संवादात्मक दृष्टिकोण के साथ शहरी कचरे के संग्रह, उपचार और निपटान प्रणालियों के प्रबंधन और आयोजन पर केन्द्रित है.
  • इस पायरासोल परियोजना के माध्यम से, शहरी जैविक कचरे के लिए सरल और मजबूत प्रसंस्करण प्रौद्योगिकियों को एक क्रमबद्ध तरीके से जोड़ा जाएगा और भविष्य में स्वच्छता और देखभाल में सुधार करने के साथ-साथ पुनर्विकसित ऊर्जा की आपूर्ति, कचरे को उत्पादों में बदलने के एक अभिनव जैविक स्वरूप द्वारा स्मार्ट शहरों में कार्बन के स्तर को कम करने के लिए विकसित किया जाएगा. एक उच्च स्तरीय कुशल सिंगल-चैम्बर पायरोलिसिस के बाद प्राकृतिक सौर चिमनी के प्रभाव का उपयोग करके अपशिष्ट को सुखाने की प्रणाली का भी उपयोग किया जाएगा.

इंडो-जर्मन साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (IGSTC) क्या है?

इंडो-जर्मन साइंस एंड टेक्नोलॉजी सेंटर (IGSTC) की स्थापना भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) और जर्मन सरकार द्वारा की गई थी.

  1. इसका उद्देश्य भारत-जर्मन की अनुसंधान और प्रौद्योगिकी नेटवर्किंग का उपयोग करते हुए अनुप्रयुक्त अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास एवं उद्योग में भागीदारी की सुविधा प्रदान करने पर जोर देना है.
  2. IGSTC अपने प्रमुख कार्यक्रम ‘2+2 परियोजनाओं’ के जरिये भारत और जर्मनी से अनुसंधान और अकादमिक संस्थानों एवं सार्वजनिक/निजी उद्योगों की क्षमता को समन्वित करके नवाचार केंद्रित अनुसंधान और विकास परियोजनाओं को उत्प्रेरित करता है.

Prelims Vishesh

Non-resident taxable persons (NRTPs) :-

  • अनिवासी कर योग्य व्यक्ति (NRTP) का आशय ऐसे व्यक्ति से है, जो कभी-कभी वस्तुओं और,”या सेवाओं की आपूर्ति से संबद्ध लेनदेन करता है, परन्तु जिनके पास भारत में व्यवसाय या निवास का कोई निश्चित स्थान नहीं है.
  • माल एवं सेवा कर (GST) कानून के तहत इनके लिए पंजीकरण, रिटर्न, रिफंड आदि हेतु पृथक प्रावधान किए गए हैं.
  • घरेलू करदाता: इनके लिए GST के तहत पंजीकरण केवल तभी आवश्यक है, जब कुल कारोबार (टर्नओवर) निर्धारित सीमा से अधिक हो.
  • अनिवासी कर योग्य व्यक्ति (NRTP): इन्हें भारतीय GST कानून के तहत अनिवार्य रूप से पंजीकरण करवाना आवश्यक है, भले ही कारोबार की मात्रा कुछ भी हो.

Convention on the Recognition and Enforcement of Foreign Arbital Awards (also called New York Convention) :-

  • यह अंतर्राष्ट्रीय माध्यस्थम्‌ के प्रमुख साधनों में से एक है.
  • इसके दो बुनियादी घटकों में शामिल हैं :- विदेशी माध्यस्थम्‌ पंचाटों की मान्यता और प्रवर्तन, अर्थात्‌, दूसरे देश (अनुबंधकर्ता) के राज्यक्षेत्र में दिए गए माध्यस्थम्‌ पंचाट (निर्णय).
  • एक अनुबंधित राज्य का न्यायालय, जब उस मामले को अभिग्रहित करता है, जिसके संबंध में पक्षकारों ने एक माध्यस्थम्‌ समझौता किया है, तो न्यायालय द्वारा किसी एक पक्ष के अनुरोध पर, उस मामले को माध्यस्थम्‌ के लिए अवश्य संदर्भित करना चाहिए.
  • भारत सहित 160 से अधिक देशों द्वारा इसका पालन किया जाता है.

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