Sansar Daily Current Affairs, 29 December 2020
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Indian Judiciary.
Topic : Some court rulings suggest judicial intervention has increased: Vice President
संदर्भ
उपराष्ट्रपति के हालिया बयान के अनुसार, न्यायालय के विभिन्न निर्णयों ने न्यायिक हस्तक्षेप से संबद्ध चिंताओं में वृद्धि की है.
उपराष्ट्रपति ने इस बात को स्पष्ट किया है कि राज्य के तीन अंगों अर्थात् विधानपालिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका में से कोई भी सर्वोच्च होने का दावा नहीं कर सकता है क्योंकि केवल संविधान ही सर्वोपरि है.
न्यायिक हस्तक्षेप के उदाहरणों में सम्मिलित हैं
- दीपावली पर आतिशबाजी से संबंधित प्रतिबंध,
- 10 या 15 वर्ष के उपरांत कुछ विशेष वाहनों के उपयोग पर प्रतिबंध,
- पुलिस जांच की निगरानी करना,
- कॉलेजियम के माध्यम से न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका को किसी भी प्रकार की भूमिका देने से मनाही करना और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) अधिनियम को अवैध घोषित करना.
निहितार्थ
न्यायिक हस्तक्षेप न्यायिक सक्रियता (judicial activism) के एक चरम रूप को संदर्भित करता है, जहाँ प्रायः कार्यपालिका, विधानपालिका और न्यायपालिका के मध्य शक्तियों के संतुलन को बाधित करने के प्रयोजनार्थ न्यायपालिका द्वारा विघायिका के क्षेत्र में मनमाने, अनुधित और लगातार हस्तक्षेप किए जाते हैं. यहाँ, न्यायालय कानून बनाकर विधायिका की भूमिका का अतिक्रमण करता है. वैसे, सक्रियता और इस्तक्षेप के मध्य एक सूक्ष्म सीमा रेखा होती है. यद्यपि न्यायिक सक्रियता को कार्यपालिका की विफलताओं के पूरक के रूप में सकारात्मक माना जाता है, परन्तु कार्यपालिका के क्षेत्र में अतिक्रमण को लोकतंत्र के समुचित कार्य में अनुचित हस्तक्षेप माना जाता है.
न्यायिक सक्रियता में न्यायाघीशों द्वारा अपनी शक्तियों का उपयोग अन्याय को समाप्त करने के लिए किया जाता है, विशेषकर तब जब सरकार की अन्य शाखाएं ऐसा करने के लिए प्रेरित नहीं होती हैं.
मेरी राय – मेंस के लिए
जब न्यायाधीश यह मानने लगते हैं कि वे समाज की सभी समस्याओं को हल कर सकते हैं और इस दृष्टिकोण से विधायिका व कार्यपालिका के कार्य भी स्वयं करने लगते हैं (क्योंकि उन्हें लगता है कि विधायिका व कार्यपालिका अपने कर्त्तव्य निर्वहन में विफल रहे हैं) तब विभिन्न समस्याएँ उत्पन्न होती हैं. निश्चय ही न्यायाधीश कुछ चरम मामलों में हस्तक्षेप कर सकते हैं, परन्तु समाज की सभी प्रमुख समस्याओं के समाधान के लिये उनका आगे आना अनुपयुक्त है क्योंकि इसके लिये न तो उनके पास विशेषज्ञता होती है और न ही संसाधन होते हैं. इसके साथ ही जब न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालिका के कार्य क्षेत्र का अतिक्रमण करने लगती है तो परिहार्य रूप से इस पर राजनेताओं एवं अन्य की तीखी प्रतिक्रिया आती है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Separation of powers between various organs dispute redressal mechanisms and institutions.
Topic : What the law says about a governor’s power to summon, prorogue or dissolve an assembly?
संदर्भ
केरल सरकार द्वारा किसान आंदोलन पर चर्चा करने हेतु विशेष विधानसभा सत्र बुलाने के लिए राज्यपाल से दोबारा अनुमति मांगी गई है.
राज्यपाल की शक्तियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
संविधान में, विधान-मण्डल का सत्र आहूत, सत्रावसान और विघटन करने की राज्यपाल की शक्ति से संबंधित दो उपबंध हैं.
अनुच्छेद 174 के अनुसार, राज्यपाल, विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर, जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिए आहूत करेगा.
अनुच्छेद 174 (2) राज्यपाल, समय-समय पर-
अनुच्छेद 174 (2) (a) के तहत सदन का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा तथा अनुच्छेद 174 (2) (b) के तहत विधान सभा का विघटन कर सकेगा.
अनुच्छेद 163 के अनुसार– राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रि-परिषद् होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा. साथ ही इसमें यह भी कहा गया है, जिन परिस्थितियों में संविधान के तहत राज्यपाल को अपने विवेकानुसार कार्य करने की ज़रूरत होती है, उस स्थिति में उसे मंत्रिमंडल की सलाह की आवश्यकता नहीं होगी.
इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय
अरुणाचल प्रदेश में हुए संवैधानिक संकट के संबंधित नबाम रेबिया (Nabam Rebia) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने साल 2016 के निर्णय में स्पष्ट रूप से कहा था कि ‘राज्यपाल केवल मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर ही विधान-मण्डल का सत्र आहूत, सत्रावसान और विघटन कर सकते हैं.
परन्तु न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि राज्यपाल के पास यह विश्वास करने के कारण होते हैं, कि मुख्यमंत्री तथा उनकी मंत्रिपरिषद ने सदन का विश्वास खो दिया है, तो वह सदन में शक्ति परीक्षण कराने का आदेश दे सकते हैं.
GS Paper 3 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Infrastructure: Energy, Ports, Roads, Airports, Railways etc.
Topic : FASTag mandatory for all vehicles from 1 Jan, 2021
संदर्भ
हाल ही में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने घोषणा की कि 1 जनवरी, 2021 से देश में सभी वाहनों के लिए फास्टैग (FASTag) को अनिवार्य किया जा रहा है. मंत्रालय का कहना है कि यह यात्रियों के लिए उपयोगी है क्योंकि उन्हें नकद भुगतान, समय की बचत और ईंधन के लिए टोल प्लाजा पर रुकने की आवश्यकता नहीं होगी.
पृष्ठभूमि
फास्टैग की शुरुआत 2016 में हुई थी और चार बैंकों ने उस साल सामूहिक रूप से एक लाख टैग जारी किए थे. उसके बाद 2017 में सात लाख और 2018 में 34 लाख फास्टैग जारी किए गए. मंत्रालय ने इस साल नवंबर में अधिसूचना जारी कर एक जनवरी, 2021 से पुराने वाहनों या एक दिसंबर, 2017 से पहले के वाहनों के लिए भी फास्टैग को अनिवार्य कर दिया.
केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989
केंद्रीय मोटर वाहन नियम, 1989 के अनुसार एक दिसंबर, 2017 से नए चार पहिया वाहनों के पंजीकरण के लिए फास्टैग को अनिवार्य किया गया है. इसके अलावा परिवहन वाहनों के फिटनेस प्रमाणपत्र के लिए संबंधित वाहन का फास्टैग जरूरी है. राष्ट्रीय परमिट वाले वाहनों के लिए फास्टैग को एक अक्टूबर, 2019 से अनिवार्य किया गया है. नए तीसरे पक्ष बीमा के लिए भी वैध फास्टैग को अनिवार्य किया गया है, यह एक अप्रैल, 2021 से लागू होगा.
FASTAGS क्या है?
यह टोल भुगतान करने के लिए बनाया गया एक उपकरण है. यह रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान (Radio Frequency Identification ) तकनीक का उपयोग करता है और इससे टोल पर प्रीपेड बैलेंस उपयोग करके सीधे भुगतान किया जा सकता है.
यह उपकरण कार के आगे वाले शीशे से लगा हुआ होता है जिससे वाहन को टोल पर रुकना आवश्यक नहीं रह जाता है. इस टैग की वैधता पाँच वर्ष तक के लिए होती है और इसे समय-समय पर रिचार्ज करना होता है.
इसके क्या लाभ हैं?
- डिजिटल भुगतान होने के चलते इसमें नकद की आवश्यकता नहीं पड़ती.
- टोल पर समय बर्बाद नहीं होता.
- टोल पर रुकने से ईंधन खर्च होता है और प्रदूषण भी होता है. इस तकनीक से इन सब से बचा जा सकता है.
- इससे सरकार को ये जानकारी हो जाती है किसी टोल से कितने और किस प्रकार के मोटर यान गुजरे. इससे सरकार को पता लगेगा कि बजट में सड़क चौड़ाई और अन्य बुनियादी ढाँचे के लिए कितने खर्च का प्रावधान किया जाए.
GS Paper 3 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Issues related to internal security.
Topic : New research: Illegal trade in wild animals is unaffected by pandemic
संदर्भ
कोविड -19 के कारण लगाए गए लाकडॉउन के बीच और पशु से मानव रोग संचरण के जोखिम के बावजूद, सोशल मीडिया नेटवर्कों पर अवैध वन्यजीव व्यापार जारी रहा, जिसमें कभी-कभी जंगली जानवरों को “लॉकडाउन पालतू जानवर” के रूप में बेचा जा रहा है.
ब्राजील और इंडोनेशिया पर केंद्रित जर्नल ऑफ एनवायर्नमेंटल रिसर्च में प्रकाशित इस शोध पेपर का शीर्षक है- “वन्यजीवों में ऑनलाइन व्यापार और COVID-19 की प्रतिक्रिया में कमी”.
शोध पत्र के प्रमुख बिन्दु
- ऑक्सफोर्ड ब्रूक्स विश्वविद्यालय और पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पालतू जंगली जानवरों के व्यापार के बारे में 20,000 फेसबुक पोस्टों का विश्लेषण किया है.
- ऑक्सफोर्ड ब्रूक्स यूनिवर्सिटी ने एक मीडिया विज्ञप्ति में कहा कि इस बात का कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला है कि महामारी के कारण ऑनलाइन वन्यजीव व्यापार हतोत्साहित या कम हो गया था.
- विश्वविद्यालय की विज्ञप्ति ने अध्ययन के सह-लेखक एना नेकरिस के अनुसार हम कई पोस्ट ऐसे देखें जिनमें कोविड -19 के कारण जानवरों का अवैध व्यापार कम होते दिख रहा था, लेकिन स्थिति इसके विपरीत नजर आ रही है अर्थात जंगली जानवरों का अवैध व्यापार और बढ़ गया है|
- कोविड -19 का उल्लेख करने वाले विज्ञापनों में अक्सर वन्यजीव व्यापार को बढ़ाते हुए दिखाया गया और यह सुझाव दिया गया कि महामारी के दौरान प्रत्येक आदमी को एक जंगली पालतू जानवर खरीदने कि आवश्यकता है क्योंकि लॉकडाउन के समय ये पालतू जानवर किसी व्यक्ति के लिए एक अच्छे साथी साबित हो सकते हैं और लॉकडाउन इन जंगली पालतू जानवरों को खरीदने के लिए एक अच्छा समय है.
- शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि किसी भी व्यापारी या उपभोक्ता ने बीमारियों को फैलाने में वन्यजीव व्यापार की भूमिका पर चर्चा नहीं की. इसके बजाय, अवैध व्यापार में अधिक छूट दी गई, और होम डिलीवरी सेवाएं भी प्रदान की गईं.
- शोध के एक अन्य सह-लेखक, थिस मोरकट्टी के अनुसार “जानवरों के अवैध बाजार अक्सर मांग की आपूर्ति के लिए विस्तारित होते हैं जो वर्तमान में भी मौजूद है और ऐसे समय में, न केवल वन्यजीव व्यापार जारी है, बल्कि इनपर निगरानी करना लगभग असंभव हो गया है.”
भारत में अवैध शिकार के लिए क़ानून
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972
इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य वन्य जीवों के अवैध शिकार, उनकी खाल/माँस के व्यापार को रोकना है. यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण देता है. इस अधिनियम में कुल 6 अनुसूचियाँ हैं जो अलग-अलग तरह से वन्यजीव को सुरक्षा प्रदान करती हैं.
अनुसूची
- अधिनियम की अनुसूची 1 और अनुसूची 2 के दूसरे भाग वन्य जीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते हैं. इसलिए इसमें कठोरतम सजा का प्रावधान है.
- अनुसूची 3 और अनुसूची 4 भी वन्य जीवों को संरक्षण प्रदान करती हैं किन्तु इनके लिए निर्धारित सजा बहुत कम है.
- वहीं अनुसूची 5 में वे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार हो सकता है.
- जबकि अनुसूची 6 में संरक्षित पौधों की खेती और रोपण पर रोक है.
इस अधिनियम के तहत वन्यजीव को पकड़ने की कोशिश करना, उन्हें नुकसान पहुँचाना पूरी तरह गैर-कानूनी है. इसके अलावा वन्य जीवों के लिए बने अभयारण्य में आग लगाने, हथियारों के साथ प्रवेश करने पर रोक है. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत जंगल के पेड़-पौधों को तोड़ना या काटना मना है. इसके साथ ही वन्यजीवों के शरीर, अंग और चमड़ों का व्यापार करना, सजावट के तौर पर प्रयोग करना पूरी तरह प्रतिबंधित है.
Schedule 1, 2, 3 और 4
Schedule 1 में आने वाले जानवरों को highly endangered माना जाता है. बाघ, चिंकारा, ब्लैक बक आदि इसी श्रेणी में आते हैं. इसलिए schedule 1 में आने वाले जीवों को नुकसान पहुँचाने की सजा भी सबसे अधिक होती है.
सजा का प्रावधान (SECTION 51)
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में वन्यजीवों के शिकार पर कड़ी सजा का प्रावधान है. इस अधिनियम की अनुसूची 1 और अनु. 2 के तहत अवैध शिकार, अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान को क्षति पहुँचाने पर कम से कम 3 साल की सजा है जो 7 साल तक बढ़ाई जा सकती है. इसके साथ ही दस रुपये जुर्माना है. दूसरी बार इस प्रकार का अपराध करने पर 3 से 7 की जेल की सजा निश्चित है और जुर्माना 25 हजार तक लग सकता है.
वन्यजीवों के प्रति अपराध करने के लिए प्रयोग किये गए किसी भी उपकरण, वाहन या हथियार को जब्त करने का भी इस कानून में प्रावधान है.
इस टॉपिक से UPSC में बिना सिर-पैर के टॉपिक क्या निकल सकते हैं?
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम
- संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (United Nations Environment Programme -UN Environment) एक अग्रणी वैश्विक पर्यावरण प्राधिकरण है जो वैश्विक पर्यावरण कार्य-सूची (Agenda) का निर्धारण करता है, संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के तहत सतत् विकास के पर्यावरणीय आयाम के सुसंगत कार्यान्वयन को बढ़ावा देता है और वैश्विक पर्यावरण के लिये एक आधिकारिक सलाहकार के रूप में कार्य करता है.
- इसकी स्थापना 5 जून, 1972 को की गई थी.
- इसका मुख्यालय नैरोबी, केन्या (Nairobi, Kenya) में है.
Prelims Vishesh
Good governance day :-
- देश में प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को सुशासन दिवस मनाया जाता है.
- इस दिवस का आयोजन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के रूप में भी किया जाता है.
- इसका उद्देश्य देश के नागरिकों और छात्रों को सरकार द्वारा निभाई जाने वाली जिम्मेदारियों और कर्तव्यों के बारे में जानकारी देना है.
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