Sansar डेली करंट अफेयर्स, 29 June 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 29 June 2019


GS Paper  2 Source: PIB

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Topic : Space Activities Bill

संदर्भ

भारत सरकार अन्तरिक्ष गतिविधि विधेयक लाने जा रही है जिसमें अन्तरिक्ष के वाणिज्यिक उपयोग की अनुमति दी जायेगी.

प्रस्तावित विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

  • इस विधेयक का उद्देश्य भारत की अन्तरिक्ष संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देना और नियमित करना है.
  • विधेयक में प्रस्ताव है कि भारत की अन्तरिक्ष संबंधी गतिविधियों में गैर-सरकारी/निजी क्षेत्र एजेंसियों की प्रतिभागिता को प्रोत्साहित किया जाए, परन्तु ये सभी अन्तरिक्ष विभाग के माध्यम से सरकार के मार्ग-निर्देशन में और उसकी स्वीकृति से कार्य करेंगी.
  • पारित अधिनियम के प्रावधान भारत के प्रत्येक नागरिक के साथ-साथ अन्तरिक्षीय गतिविधियों में भारत अथवा विदेश में संग्लन सभी प्रक्षेत्रों पर लागू होंगे.
  • वाणिज्यिक अन्तरिक्षीय गतिविधि में संग्लन व्यक्ति को भारत सरकार एक अ-हस्तांतरणीय लाइसेंस देगी.
  • लाइसेंस देने की उचित प्रक्रिया, पात्रता के मानदंड और लाइसेंस के शुल्क के विषय में नियम केंद्र सरकार बनाएगी.
  • केंद्र सरकार अन्तरिक्ष में पृथ्वी के परिक्रमा-पथ में भेजी गई अथवा भेजी जाने वाली सभी वस्तुओं की एक पंजी का संधारण करेगी तथा देश के लिए अन्तरिक्षीय गतिविधि की नई-नई योजनाओं का निर्माण करेगी.
  • भारत सरकार अन्तरिक्ष में वाणिज्यिक गतिविधि के लिए पेशेवर एवं तकनीकी सहयोग भी देगी तथा साथ ही अन्तरिक्षीय गतिविधि के संचालन के लिए प्रक्रियाओं का नियमन भी करेगी.
  • सरकार सभी सुरक्षा के लिए सभी आवश्यकताओं को सुनिश्चित करेगी तथा देश की प्रत्येक अन्तरिक्षीय गतिविधि के संचालन का पर्यवेक्षण करेगी. साथ ही यदि ऐसी गतिविधि के समय कोई घटना अथवा दुर्घटना हो जाती है तो वह इसकी विवेचना भी करेगी.
  • अन्तरिक्ष में की जाने वाली गतिविधि से सृजित उत्पादों और तकनीकों के मूल्य से सम्बंधित विवरणों को सरकार किसी व्यक्ति अथवा किसी एजेंसी से विहित प्रक्रिया के द्वारा साझा करेगी.
  • यदि कोई व्यक्ति सरकार की स्वीकृति के बिना अन्तरिक्ष का वाणिज्यिक करता है तो उसे तीन वर्ष तक का कारावास अथवा एक करोड़ रु. का आर्थिक दंड अथवा दोनों दिया जा सकता है.

अन्तरिक्ष के लिए कानून की आवश्यकता क्यों?

भारत में अन्तरिक्षीय गतिविधियों के समग्र विकास को सहारा देने के लिए एक राष्ट्रीय अन्तरिक्ष कानून का होना आवश्यक है. ऐसा कानून भारत में होने वाली अन्तरिक्षीय गतिविधियों में गैर-सरकारी/निजी क्षेत्र की एजेंसियों की प्रतिभागिता बढ़ाने में मदद करेगा. विदित हो कि विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संधियों में इस प्रकार के प्रावधान हैं जिनके प्रति भारत अपनी प्रतिबद्धता स्वीकार कर चुका है.


GS Paper  2 Source: Indian Express

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Topic : Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA)

संदर्भ

ईरान का यह कहना है कि वह परमाणु समझौते से जुड़ी कुछ प्रतिबद्धताओं से बाहर निकल रहा है और वह अपने यूरेनियम का संवर्द्धन जारी रखेगा. ईरान के इस वक्तव्य से अमरीका और ईरान के बीच रिश्ते दिन पर दिन तनावपूर्ण होते जा रहे हैं.

विदित हो कि 2015 के परमाणु समझौते के मुताबिक ईरान के यूरेनियम संवर्धन पर सीमा तय की गई थी. इसके बदले ईरान पर तेल निर्यात पर लगे प्रतिबंधों को हटा दिया गया था. दरअसल, तेल ही ईरान सरकार की आमदनी का मुख्य स्रोत है.

पृष्ठभूमि

वर्ष 2015 में हुए ईरान परमाणु समझौते के तहत ईरान ने अपने करीब नौ टन अल्प संवर्धित यूरेनियम भंडार को कम करके 300 किलोग्राम तक करने की शर्त स्वीकार की थी. इस समझौते का उद्देश्य था परमाणु कार्यक्रमों को रोकना. इन शर्तों के बदले में पश्चिमी देश ईरान पर लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध हटाने पर सहमत हुए थे.

ईरान आणविक समझौता क्या है?

  • यह समझौता, जिसे Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA के नाम से भी जाना जाता है, ओबामा के कार्यकाल में 2015 में हुआ थी.
  • इरानियन आणविक डील इरान और सुरक्षा परिषद् के 5 स्थाई सदस्य देशों तथा जर्मनी के बीच हुई थी जिसे P5+1भी कहा जाता है.
  • यह डील ईरान द्वारा चालाये जा रहे आणविक कार्यक्रम को बंद कराने के उद्देश्य से की गई थी.
  • इसमें ईरान ने वादा किया था कि वह कम-से-कम अगले 15 साल तक अणु-बम नहीं बनाएगा और अणु-बम बनाने के लिए आवश्यक वस्तुओं, जैसे समृद्ध यूरेनियम तथा भारी जल के भंडार में भारी कटौती करेगा.
  • समझौते के तहत एक संयुक्त आयोग बनाया गया था जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि थे. इस आयोग का काम समझौते के अनुपालन पर नज़र रखना था.
  • इस डील के अनुसार ईरान में स्थित आणविक केंद्र अमेरिका आदि देशों की निगरानी में रहेंगे.
  • ईरान इस डील के लिए इसलिए तैयार हो गया था क्योंकि आणविक बम बनाने के प्रयास के कारण कई देशों ने उसपर इतनी आर्थिक पाबंदियाँ लगा दी थीं कि उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी.
  • उल्लेखनीय है कि तेल निर्यात पर प्रतिबंध के कारण ईरान को प्रतिवर्ष करोड़ों पौंड का घाटा हो रहा था. साथ ही विदेश में स्थित उसके करोड़ों की संपत्तियां भी निष्क्रिय कर दी गई थीं.

अमेरिका समझौते से हटा क्यों?

अमेरिका का कहना है कि जो समझौता वह दोषपूर्ण है क्योंकि एक तरफ ईरान को करोड़ों डॉलर मिलते हैं तो दूसरी ओर वह हमास और हैजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को सहायता देना जारी किये हुए है. साथ ही यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से रोक नहीं पा रहा है. अमेरिका का कहना है कि ईरान अपने आणविक कार्यक्रम के बारे में हमेशा झूठ बोलता आया है.

अमेरिका के निर्णय पर अन्य देशों और संगठनों की प्रतिक्रिया

  • JCPOA के अन्य भागीदार इस समझौते को भंग करने के पक्ष में नहीं है.
  • केवल दो देशों – सऊदी अरब और इजराइल ने अमेरिका का इस समझौते से पीछे हटने के निर्णय की सराहना की है.
  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) का कहना है कि अमेरिका के एकपक्षीय निर्णय से सम्पूर्ण समझौते की नींव ही हिल गई है. यदि अमेरिका इस समझौते से जुड़ा होता तो यह बहुत हद तक सम्भव था कि समझौते के हर-एक बिंदु को अंततः ईरान सहज स्वीकार कर लेता.
  • ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी, पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते और उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते से अलगाव के बाद, यह निर्णय अमेरिकी विश्वसनीयता को और कम करता है.
  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) में ईरान तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. इस निर्णय के बाद ईरान की तेल आपूर्ति गिरकर 200,000 bpd और 1 मिलियन bpd के बीच हो सकती है. यह इस पर निर्भर करेगा कि वाशिंगटन के निर्णय का कितने अन्य देश समर्थन करते हैं.
  • तेल की कीमतों में संभावित वृद्धि हो सकती है जो वित्तीय बाजारों में अस्थिरता का कारण बन सकती है क्योंकि यूरोपीय देशों तक 37% तेल आपूर्ति ईरान द्वारा की जाती है. JCPOA के निर्माण के बाद व्यापार सम्बन्धों में कई आयामों का विकास हुआ है. अमेरिका द्वारा समझौते में स्वयं को अलग करना विशेष रूप से यूरोपीय देशों में इसकी विश्वसनीयता में कमी और NATO गठबंधन को कमजोर बना सकता है.
  • यह जनसामान्य के जीवन में अनेक कठिनाइयाँ पैदा करेगा.

भारत पर निर्णय के प्रभाव

तेल की कीमतें : ईरान वर्तमान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश (इराक के बाद) है और कीमतों में कोई भी वृद्धि मुद्रास्फीति के स्तर और भारतीय रूपये दोनों को भी प्रभावित करेगी.

चाबहार : अमेरिकी प्रतिबंध चाबहार परियोजना के निर्माण की गति को धीमा कर सकते हैं अथवा रोक भी सकते हैं. भारत, बन्दरगाह हेतु निर्धारित कुल 500 मिलियन डॉलर के व्यय में इसके विकास के लिए लगभग 85 मिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान के लिए रेलवे लाइन हेतु लगभग 1.6 अरब डॉलर तक का व्यय हो सकता है.

भारत, INSTC (International North–South Transport Corridor) का संस्थापक है. इसकी अभिपुष्टि 2002 में की गई थी. 2015 में JCPOA पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद ईरान से प्रतिबन्ध हटा दिए गये और INSTC की योजना में तीव्रता आई. यदि इस मार्ग से सम्बद्ध कोई भी देश या बैंकिंग और बीमा कम्पनियाँ INSTC योजना से लेन-देन करती है तथा साथ ही ईरान के साथ व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का अनुपालन करने का निर्णय लेती हैं तो नए अमेरिकी प्रतिबंध INSTC के विकास को प्रभावित करेंगे.


GS Paper  2 Source: Indian Express

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Topic : UN Security Council

संदर्भ

एशिया-प्रशांत समूह ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में दो साल की अस्थायी सदस्यता के लिए सर्वसम्मति से भारत की उम्मीदवारी का समर्थन किया है. यह भारत के लिए महत्त्वपूर्ण कूटनीतिक जीत है और विश्व मंच पर देश की बढ़ती साख को दर्शाता है. भारत की कूटनीतिक गोलबंदी कुछ इस प्रकार थी कि पाकिस्तान को भी भारत की सदस्यता का समर्थन करना पड़ा.

किन देशों ने भारत का समर्थन किया?

भारत की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले 55 देशों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, इंडोनेशिया, ईरान, जापान, कुवैत, किर्गिस्तान, मलेशिया, मालदीव, म्यांमार, नेपाल, पाकिस्तान, कतर, सऊदी अरब, श्रीलंका, सीरिया, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और विएतनाम शामिल हैं.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् क्या है?

संयुक्त राष्ट्र घोषणा पत्र के अनुसार शांति एवं सुरक्षा बहाल करने की प्राथमिक जिम्मेदारी सुरक्षा परिषद् की होती है. इसकी बैठक कभी भी बुलाई जा सकती है. इसके फैसले का अनुपालन करना सभी राज्यों के लिए अनिवार्य है. इसमें 15 सदस्य देश शामिल होते हैं जिनमें से पाँच सदस्य देश – चीन, फ्रांस, सोवियत संघ, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका – स्थायी सदस्य हैं. शेष दस सदस्य देशों का चुनाव महासभा में स्थायी सदस्यों द्वारा किया जाता है. चयनित सदस्य देशों का कार्यकाल 2 वर्षों का होता है.

ज्ञातव्य है कि कार्यप्रणाली से सम्बंधित प्रश्नों को छोड़कर प्रत्येक फैसले के लिए मतदान की आवश्यकता पड़ती है. अगर कोई भी स्थायी सदस्य अपना वोट देने से मना कर देता है तब इसे “वीटो” के नाम से जाना जाता है. परिषद् (Security Council) के समक्ष जब कभी किसी देश के अशांति और खतरे के मामले लाये जाते हैं तो अक्सर वह उस देश को पहले विविध पक्षों से शांतिपूर्ण हल ढूँढने हेतु प्रयास करने के लिए कहती है.

परिषद् मध्यस्थता का मार्ग भी चुनती है. वह स्थिति की छानबीन कर उस पर रपट भेजने के लिए महासचिव से आग्रह भी कर सकती है. लड़ाई छिड़ जाने पर परिषद् युद्ध विराम की कोशिश करती है.

वह अशांत क्षेत्र में तनाव कम करने एवं विरोधी सैनिक बलों को दूर रखने के लिए शांति सैनिकों की टुकड़ियाँ भी भेज सकती है. महासभा के विपरीत इसके फैसले बाध्यकारी होते हैं. आर्थिक प्रतिबंध लगाकर अथवा सामूहिक सैन्य कार्यवाही का आदेश देकर अपने फैसले को लागू करवाने का अधिकार भी इसे प्राप्त है. उदाहरणस्वरूप इसने ऐसा कोरियाई संकट (1950) तथा ईराक कुवैत संकट (1950-51) के दौरान किया था.

कार्य

  • विश्व में शांति एवं सुरक्षा बनाए रखना.
  • हथियारों की तस्करी को रोकना.
  • आक्रमणकर्ता राज्य के विरुद्ध सैन्य कार्यवाही करना.
  • आक्रमण को रोकने या बंद करने के लिए राज्यों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाना.

संरचना

सुरक्षा परिषद् (Security Council) के वर्तमान समय में 15 सदस्य देश हैं जिसमें 5 स्थायी और 10 अस्थायी हैं. वर्ष 1963 में चार्टर संशोधन किया गया और अस्थायी सदस्यों की संख्या 6 से बढ़ाकर 10 कर दी गई. अस्थायी सदस्य विश्व के विभिन्न भागों से लिए जाते हैं जिसके अनुपात निम्नलिखित हैं –

  • 5 सदस्य अफ्रीका, एशिया से
  • 2 सदस्य लैटिन अमेरिका से
  • 2 सदस्य पश्चिमी देशों से
  • 1 सदस्य पूर्वी यूरोप से

चार्टर के अनुच्छेद 27 में मतदान का प्रावधान दिया गया है. सुरक्षा परिषद् में “दोहरे वीटो का प्रावधान” है. पहले वीटो का प्रयोग सुरक्षा परिषद् के स्थायी सदस्य किसी मुद्दे को साधारण मामलों से अलग करने के लिए करते हैं. दूसरी बार वीटो का प्रयोग उस मुद्दे को रोकने के लिए किया जाता है.

परिषद् के अस्थायी सदस्य का निर्वाचन महासभा में उपस्थित और मतदान करने वाले दो-तिहाई सदस्यों द्वारा किया जाता है. विदित हो कि 191 में राष्ट्रवादी चीन (ताईवान) को स्थायी सदस्यता से निकालकर जनवादी चीन को स्थायी सदस्य बना दिया गया था.

इसकी बैठक वर्ष-भर चलती रहती है. सुरक्षा परिषद् में किसी भी कार्यवाही के लिए 9 सदस्यों की आवश्यकता होती है. किसी भी एक सदस्य की अनुपस्थिति में वीटो अधिकार का प्रयोग स्थायी सदस्यों द्वारा नहीं किया जा सकता.

स्थायी सदस्य बनने के लिए भारत के तर्क

  • भारत संयुक्त राष्ट्र संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक था.
  • संयुक्त राष्ट्र के शान्ति रक्षण अभियानों में योगदान करने वाला भारत विश्व का दूसरा बड़ा देश है.
  • आज विश्व के विभिन्न कोनों में भारत के 8,500 से अधिक शान्ति-रक्षक तैनात हैं. यह संख्या संयुक्त राष्ट्र की पाँचों शक्तिशाली देशों के कुल योगदान से भी दुगुनी से अधिक है.
  • भारत बहुत दिनों से सुरक्षा परिषद् का विस्तार करने और उसमें स्थाई सदस्य के रूप में भारत के समावेश की माँग करता रहा है.
  • यह सुरक्षा परिषद् में सात बार सदस्य भी रहा है. इसके अतिरिक्त वह G77 और G4 का भी सदस्य है. इस प्रकार इसे सुरक्षा परिषद् में अवश्य शामिल होना चाहिए.

GS Paper  3 Source: Indian Express

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Topic : Falcon Heavy launch

संदर्भ

एलन मस्क (Elon Musk) की कम्पनी स्पेसX ने पिछले दिनों फाल्कन हैवी अन्तरिक्षयान को इसके तीसरे मिशन पर प्रक्षेपित कर दिया है. कहा जाता है कि यह मिशन इस कंपनी का अब तक का सबसे जटिल मिशन है.

इसका महत्त्व इसमें है कि इसके साथ विभिन्न संगठनों एवं सरकारी एजेंसियों के 24 उपग्रह छोड़े गये हैं.

गहन अन्तरिक्ष आणविक घड़ी

  • इस मिशन पर नासा और उसके सहयोगियों की गहन अन्तरिक्ष आणविक घड़ी (Deep Space Atomic Clock – DSAC) भी अन्तरिक्ष में भेजी गई है.
  • आशा की जाती है कि DSAC जी.पी.एस. उपग्रहों में लगी हुई आणविक घड़ियों की तुलना में 50 गुना अधिक सटीक समय देगी.
  • कहा जाता है कि यह घड़ी एक दशक में मात्र एक माइक्रो सेकंड की गलती अर्थात् दस मिलियन वर्षों में मात्र एक सेकंड की गलती कर सकती है. इस घड़ी से अन्तरिक्षयानों के संचालन में सहायता मिलेगी.

ASCENT हरित ईंधन

  • यह एक राकेट ईंधन है जो उपग्रहों में प्रयोग होने वाले हाइड्रेजिन नामक पारम्परिक ईंधन की भाँति मनुष्यों और पर्यावरण की दृष्टि से विषाक्त नहीं है.
  • ASCENT का पूरा नाम है – Advanced Spacecraft Energetic Non-toxic Propellant.
  • इसमें हाइड्रोक्सिल अमोनियम नाइट्रेट के साथ ऑक्सीडाइजर मिश्रित होता है. ASCENT को पहले AF-M315E कहा जाता था.
  • पहले पहल इसका निर्माण अमेरिका की वायुसेना ने किया था.
  • बताया जाता है कि इस ईंधन के प्रयोग से प्रक्षेपण का समय छोटा हो जाएगा और फलतः इसकी लागत घट जायेगी.

सौर-संचालित अन्तरिक्षयान

  • LightSail 2 प्लेनेट्री सोसाइटी की एक सौर-संचालित अन्तरिक्षयान परियोजना है जिसके लिए धनराशि कई स्रोतों से जुटाई गई है.
  • इस परियोजना का उद्देश्य पृथ्वी के परिक्रमा पथ में एक ऐसा अन्तरिक्षयान प्रस्थापित करना है जो केवल सौर प्रकाश से चले.
  • विदित हो कि 2015 में इसी परियोजना के तहत LightSail 1 नामक अन्तरिक्षयान का सफलतापूर्वक प्रायोगिक परीक्षण किया गया था.

GS Paper  3 Source: Indian Express

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Topic : Methane On Mars

संदर्भ

मंगल ग्रह की यात्रा पर गए नासा के क्युरोसिटी मार्स रोवर ने मंगल ग्रह पर मीथेन गैस की अब तक की सबसे बड़ी मात्रा का पता लगाने में सफलता प्राप्त की है. इस सफल कार्य का सम्पादन क्युरोसिटी मार्स रोवर ने लेजर स्पेक्ट्रोमीटर की सहायता से किया.

इस खोज के पीछे ऐसी ख़ास बात क्या है?

वैसे नासा के मार्स एक्सप्लोरेशन के कार्यक्रम के अंतराल क्यूरोसिटी टीम ने अनेक बार मीथेन का पता लगाया गया है, पर इस बार विशाल मात्रा में मीथेन भंडार का पता लगाया गया है. यह भंडार 21 पार्ट्स पर बिलियन यूनिट्स बाय वॉल्यूम (ppbv) है. दरअसल, 1 ppbv का अर्थ है यदि हम मंगल ग्रह पर वायु के एक वॉल्यूम को लेते हैं तो इसमें 1 अरबवां हिस्सा मीथेन होगा.

मंगल पर मीथेन के मिलने से क्या पता लग सकता है?

मीथेन की इतनी बड़ी मात्रा का मंगल ग्रह पर पाया जाना यह संकेत देता है कि मंगल में भी धरती की ही तरह जीवन विद्यमान है. ऐसा इसीलिए क्योंकि धरती पर सूक्ष्म जीवाणुओं के जीवन के लिए मीथेन एक आवश्यक गैस है. यह भी संभव है कि चट्टनों और पानी के परस्पर क्रिया करने के फलस्वरूप इस गैस का निर्माण मंगल पर हुआ हो.

क्यूरोसिटी मार्स रोवर क्या है?

क्यूरोसिटी मार्स रोवर कार के आकार का एक वाहन है जिसे मंगल ग्रह पर वर्तमान एक गड्ढे (गेल क्रेटर) का अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है. इसे 26 नवम्बर, 2011 को लांच किया गया था. मंगल के ऊपर सैटेलाइट भेजने के उपरान्त नासा ने फैसला किया था कि वह मंगल की सतह पर रोवर उतारेगा और जमीनी स्तर पर मंगल के वातावरण और सतह की जांच करेगा. इस रोवर की आयु वाइज तो एक मंगल वर्ष (687 दिन) निर्धारित की गई थी, परन्तु कालांतर में इसे अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया. यह आज भी कार्यशील है.

मीथेन क्या है?

  • प्राकृतिक रूप से मीथेन विभित्र परिस्थितियों में बनती है. मीथेन पृथ्वी की सतह के नीचे पेट्रोलियम पदार्थों के साथ प्राकृतिक गैस के रूप में पाई जाती है.
  • मीथेन दलदली झूम में भी पाई जाती है. अत: इसे मार्श गैस भी कहते हैं.
  • मीथेन कोयला खानों में इकट्ठा हो जाती है जिससे विस्फोट एवं आग लगने की घटनाएँ हो सकती हैं.
  • सोडियम एसोटेट को सोडियम हाइड्रॉकसाइड तथा कैल्सियम ऑक्साइड के साथ गर्म करके मीथेन गैस का निर्माण किया जाता है.
  • जल में अविलेय होने के कारण, मीथेन को जल के नीचे की ओर विस्थापन द्वारा गैस जार में एकत्र की जाती है.
  • यह रंगहीन गैस है. यह जल में अविलेय है. यह वायु से भी हल्की होती है. यह ग्रीन हाउस प्रभाव पैदा करती है. संपीडित प्राकृतिक गैस (CNG) मुख्यत: मीथेन ही होती है.

आगे की राह

मीथेन एक प्राकृतिक गैस है और मंगल पर आरंभिक रूप में पाई गई मीथेन प्रचीन कालीन रही हो। उनका कहना है कि वर्तमान में मंगल पर अधिक मात्रा में मीथेन  इस वजह से भी हो सकती है कि वहां सतह फटने से बड़ी मात्रा में मीथेन निकली हो. मंगल पर मीथेन की यह मात्रा अभी शुरुआती वैज्ञानिक परिणाम है और निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए बहुत कुछ किया जाना शेष है.


Prelims Vishesh

Russia extends ban on European food imports until end of 2020 :-

  • रूस ने यूरोपीय संघ से होने वाले खाद्य आयातों पर लगाये गये अपने प्रतिबंध की अवधि को 2020 तक बढ़ा कर दिया है.
  • विदित हो कि यह प्रतिबंध रूस ने 2014 में यूक्रेन संकट में उसकी भूमिका के कारण उस पर लगाये गये अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंधों के बदले लगाया था.

Plastic Parks :

  • पूरे देश में प्लास्टिक पार्क लगाने की अपनी योजना के तहत भारत सरकार ने फेज-1 में चार प्लास्टिक पार्क स्थापित करने की स्वीकृति दे दी है.
  • ये पार्क असम (तिनसुकिया), मध्य प्रदेश (रायसेन), ओडिशा (जगतसिंहपुर) और तमिलनाडु (तिरुवल्ल्लुर) में होंगे.
  • ये सभी राज्य सरकारों के अधीन होंगे जो प्लास्टिक के उत्पादन के विषय में सभी वैधानिक स्वीकृतियों और पर्यावरणगत अनुमतियों को मुहैया करने के लिए उत्तरदायी होंगी.

APEDA :-

  • APEDA का पूरा नाम कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural and Processed Food Products Export Development Authority) है.
  • इसकी स्थापना भारत सरकार द्वारा APEDA अधिनियम, 1985 के तहत की गई है.
  • यह प्राधिकरण प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात प्रोत्साहन परिषद् (Authority replaced the Processed Food Export Promotion Council – PFEPC) के स्थान पर बनाया गया है.
  • इस प्राधिकरण को फल, सब्जी, माँस, मुर्गी, दूध, मिठाई, आचार, बिस्कुट, मधु, गुड़ आदि कई खाद्य पदार्थों के निर्यात को बढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई है.

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