Sansar Daily Current Affairs, 30 December 2019
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Agricultural produce and issues and related constraints; e-technology in the aid of farmers.
Topic : Illegal cultivation of Bt brinjal
संदर्भ
पिछले दिनों हरियाणा में अवैध रूप से बीटी बैंगन की खेती करने का मामले की पुष्टि हुई है. विदित हो कि 2010 में बीटी बैंगन भारत में प्रतिबंधित कर दिया गया था.
तत्काल आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee – GEAC) को क्या करना चाहिए?
- उन खेतों में जाना चाहिए जहाँ बीटी बैंगन लगाये गये हैं और वहाँ पर जाकर परीक्षण करना चाहिए.
- इनके लिए बीज कहाँ से आये इसका पता लगाना चाहिए.
- बीटी बैंगन की फसल को नष्ट कर देना चाहिए.
- किसानों को जो हानि होगी उसकी क्षतिपूर्ति करना चाहिए.
- जिन कम्पनियों ने ये बीज दिए हैं उनपर दंड लगाना चाहिए.
- भविष्य में ऐसी घटनाएँ न हों इसके लिए एक तंत्र बनाया जाना चाहिए.
बीटी बैंगन
- बीटी बैंगन जो कि एक आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल है, इसमें बैसिलस थुरियनजीनिसस (Bacillus thuringiensis) नामक जीवाणु का प्रवेश कराकर इसकी गुणवत्ता में संशोधन किया गया है.
- बैसिलस थुरियनजीनिसस जीवाणु को मृदा से प्राप्त किया जाता है.
- बीटी बैंगन और बीटी कपास (Bt Cotton) दोनों के उत्पादन में इस विधि का प्रयोग किया जाता है.
GM फसल क्या है?
संशोधित अथवा परिवर्तित फसल (genetically modified – GM Modified crop) उस फसल को कहते हैं जिसमें आधुनिक जैव-तकनीक के सहारे जीनों का एक नया मिश्रण तैयार हो जाता है.
ज्ञातव्य है कि पौधे बहुधा परागण के द्वारा जीन प्राप्त करते हैं. यदि इनमें कृत्रिम ढंग से बाहरी जीन प्रविष्ट करा दिए जाते हैं तो उन पौधों को GM पौधा कहते हैं. यहाँ पर यह ध्यान देने योग्य है कि वैसे भी प्राकृतिक रूप से जीनों का मिश्रण होता रहता है. यह परिवर्तन कालांतर में पौधों की खेती, चयन और नियंत्रित सम्वर्धन द्वारा होता है. परन्तु GM फसल में यही काम प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से किया जाता है.
GM फसल की चाहत क्यों?
- अधिक उत्पादन के लिए.
- खेती में कम लागत के लिए.
- किसानी में लाभ बढ़ाने के लिए.
- स्वास्थ्य एवं पर्यावरण में सुधार के लिए.
GM फसल का विरोध क्यों?
- यह स्पष्ट नहीं है कि GM फसलों (GM crops) का मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर कैसा प्रभाव पड़ेगा. स्वयं वैज्ञानिक लोग भी इसको लेकर पक्के नहीं हैं. कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि ऐसी फसलों से लाभ से अधिक हानि है. कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं कि एक बार GM crop तैयार की जायेगी तो फिर उस पर नियंत्रण रखना संभव नहीं हो पायेगा. इसलिए उनका सुझाव है कि कोई भी GM पौधा तैयार किया जाए तो उसमें सावधानी बरतनी चाहिए.
- भारत में GM विरोधियों का यह कहना है कि बहुत सारी प्रमुख फसलें, जैसे – धान, बैंगन, सरसों आदि की उत्पत्ति भारत में ही हुई है और इसलिए यदि इन फसलों के संशोधित जीन वाले संस्करण लाए जाएँगे तो इन फसलों की घरेलू और जंगली किस्मों पर बहुत बड़ा खतरा उपस्थित हो जाएगा.
- वास्तव में आज पूरे विश्व में यह स्पष्ट रूप से माना जा रहा है कि GM crops वहाँ नहीं अपनाए जाएँ जहाँ किसी फसल की उत्पत्ति हुई हो और जहाँ उसकी विविध किस्में पाई जाती हों. विदित हो कि भारत में कई बड़े-बड़े जैव-विविधता वाले स्थल हैं, जैसे – पूर्वी हिमालय और पश्चिमी घाट – जहाँ समृद्ध जैव-विविधता है और साथ ही जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है. अतः बुद्धिमानी इस बात में होगी कि हम लोग किसी भी नई तकनीक के भेड़िया-धसान में कूदने से पहले सावधानी बरतें.
- यह भी डर है कि GM फसलों के द्वारा उत्पन्न विषाक्तता के प्रति कीड़ों में प्रतिरक्षा पैदा हो जाए जिनसे पौधों के अतिरिक्त अन्य जीवों को भी खतरा हो सकता है. यह भी डर है कि इनके कारण हमारे खाद्य पदार्थो में एलर्जी लाने वाले तत्त्व (allergen) और अन्य पोषण विरोधी तत्त्व प्रवेश कर जाएँ.
आगे की राह
हर बार अवैध जीएम फसलों को इसी तरह से भारत समेत दुनिया के कई देशों में प्रवेश दिया जाता है. उसके बाद सरकार उस अवैध खेती को मंजूरी दे देती है. जीएम बीज बनाने वाली कंपनी पर यह जिम्मेदारी सुनिश्चत होनी चाहिए कि यदि बिना मंजूरी उसका बीज कहीं बाहर मिलता है तो उस पर कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए. अवैध बीटी बैंगन के इस समूचे खेत को नष्ट कर दिया जाना चाहिए. वहीं, इस कृत्य में शामिल लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई भी होनी चाहिए. यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि किसानों को इसके लिए प्रताड़ित किया जाए. ज्यादातर किसानों को वैध और अवैध बीजों की जानकारी नहीं होती. फसल नष्ट करने के बाद किसानों को इसका मुआवजा भी दिया जाना चाहिए.
GS Paper 2 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Welfare schemes for vulnerable sections of the population by the Centre and States and the performance of these schemes.
Topic : Pradhan Mantri Vaya Vandan Yojana (PMVVY)
संदर्भ
केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री वय वंदना योजना (PMVVY) के लाभार्थियों के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया है.
साथ ही यह भी निर्णय किया गया है कि यदि बायोमेट्रिक्स अच्छे नहीं होने के कारण आधार के लिए अभिप्रमाणन (authentication) नहीं हो पाता है तो वित्त मंत्रालय का वित्तीय सेवा विभाग अपनी एजेंसी के माध्यम से आधार नंबर जुटाने में लाभार्थी को सहायता करेगी.
प्रधानमंत्री वय वंदना योजना क्या है?
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना का वित्त मंत्री अरुण जेटली द्वारा 21 July, 2017 को आधिकारिक रूप से सूत्रपात किया गया. इस योजना से 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के नागरिक लाभान्वित होंगे.
- इस योजना को 4 मई, 2017 को खोला गया था और अब तक कई लोग इससे जुड़ चुके हैं.
- इस पॉलिसी की अवधि 10 वर्ष की होगी.
- प्रधानमंत्री वय वंदना योजना के अंतर्गत 10 वर्ष तक प्रतिवर्ष 8% का प्रतिलाभ सुनिश्चित किया गया है, जो हर माह दिया जायेगा.
- प्रतिलाभ पाने के लिए पेंशनधारी अपना समय चुन सकता है अर्थात् वह चाहे तो मासिक/त्रैमासिक/अर्धवार्षिक अथवा वार्षिक अवधि पर प्रतिलाभ पाने का विकल्प दे सकता है.
- यह योजना Service Tax/GST से मुक्त है.
- यदि पॉलिसी के 10 वर्ष पूरे हो गए और पेंशनर जीवित रह गया तो उसको क्रय-राशि के साथ-साथ अंतिम पेंशन क़िस्त प्राप्त हो जायेगा.
- इस पालिसी पर ऋण भी उठाया जाया सकता है. किन्तु इसके लिए पॉलिसी के तीन वर्ष पूरा हो जाना आवश्यक है.
- इस बीमा योजना से पेंशनधारी बीच में ही हट सकता है यदि वह या उसकी पत्नी किसी प्राणान्तक रोग से ग्रस्त हो गए हों. ऐसी दशा में उसको क्रय-राशि का 98% लौटा दिया जायेगा.
- यदि पेंशनधारी 10 वर्ष के अन्दर मृत्यु को प्राप्त हो गया तो क्रय राशि उसके nominee को मिलेगा.
- Life Insurance Coorporation से इस प्लान को ऑफलाइन या ऑनलाइन ख़रीदा जा सकता है >> https://eterm.licindia.in/Jaonline/pages/fpagevarishta.jsp
प्रधानमंत्री वय वंदना योजना में ग्राहक द्वारा चयनित पेंशन भुगतान मोड के अनुसार निवेश के लिए न्यूनतम और अधिकतम सीमा को निर्दिष्ट किया गया है – –
पेंशन का मोड | न्यूनतम खरीद मूल्य | अधिकतम खरीद मूल्य | न्यूनतम पेंशन राशि | अधिकतम पेंशन राशि |
वार्षिक | Rs. 1,44,578/- | Rs. 7,22,892/- | Rs. 12,000/- | Rs. 60,000/- |
अर्ध-वार्षिक | Rs. 1,47,601/- | Rs. 7,38,007/- | Rs. 6,000/- | Rs. 30,000/- |
त्रैमासिक | Rs. 1,49,068/- | Rs. 7,45,342/- | Rs. 3,000/- | Rs. 15,000/- |
मासिक | Rs. 1,50,000/- | Rs. 7,50,000/- | Rs. 1,000/- | Rs. 5,000/- |
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Science and Technology- developments and their applications and effects in everyday life Achievements of Indians in science & technology; indigenization of technology and developing new technology.
Topic : SnowEx
संदर्भ
2016-17 में आरम्भ किये गये स्नोएक्स (SnowEx) नामक पंचवर्षीय कार्यक्रम के एक अंग के रूप में पिछले दिनों NASA ने एक मौसमी अभियान का अनावरण किया.
स्नोएक्स क्या है?
- स्नोएक्स नासा द्वारा आरम्भ किया गया एक पंचवर्षीय कार्यक्रम है जिसके लिए धनराशि नासा ही जुटाती है.
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य बर्फ के विषय में दूर से पता लगने वाली जानकारी में पाई जाने वाली खामियों को दूर करना और इस प्रकार भविष्य में हिम उपग्रह अभियान के लिए जमीनी तैयारी करना है.
- इस कार्यक्रम के अंतर्गत हवा में उपकरण भेजे जाते हैं और साथ ही जमीन पर भी काम होता है.
- इस अभियान में हवा में जो उपकरण छोड़े जाते हैं, वे हैं – लीडार, SAR, पैसिव माइक्रोवेव, मल्टी-स्पेक्ट्रल/हाइपरस्पेक्ट्रल VIS/IR आदि. जमीन के स्तर पर भी बर्फ को मापा जाता है जिससे वनाच्छादित भूभागों में हिमजल समतुल्य (Snow Water Equivalent – SWE) का अध्ययन होता है.
लक्ष्य
- मौसम-मौसम पर हिमाच्छादित होने वाले भूभागों को कई सेंसरों द्वारा निरीक्षण करते हुए वनाच्छादित एवं अ-वनाच्छादित भूभागों में SWE को मापने के लिए अल्गोरिद्म तैयार करना.
- हिम शिखरों के नीचे अवस्थित हिमराशि के लिए समुचित जमीनी माप लेते हुए ऊर्जा संतुलन मॉडल तथा हिम वितरण मॉडल तैयार करना और उनका परीक्षण करना.
- सर्वाधिक सटीक परिणाम निकालने के लिए यह पता लगाना कि सेंसर तकनीकों को मॉडलों और डाटा मिश्रण पद्धतियों से सर्वोत्तम ढंग से कैसे जोड़ा जा सकता है.
स्नोएक्स अभियान की आवश्यकता क्यों पड़ी?
- विश्व की जनसंख्या का 1/6 भाग अर्थात् 2 बिलियन लोग पीने के पानी के लिए मौसम-मौसम पर होने वाली हिमराशि और हिमानियों पर निर्भर करते हैं.
- उन्हें यह पानी हिमराशियों आर हिमानियों के पिघलने से मिलता है. परन्तु इस शताब्दी में संभावना है कि इसमें कमी आये.
- पृथ्वी के ठन्डे क्षेत्रों की पारिस्थितिकी में हिम का एक अलग महत्त्व है क्योंकि इस पर वहाँ के वन्यप्राणी और वनस्पतियाँ जुड़े हुए हैं.
- हिम की उपलब्धता घटती-बढ़ती रहती है. इसको सही ढंग से समझने की आवश्यकता है.
- जलवायु, जलचक्र और कार्बनचक्र इन सब के लिए धरती की हिमराशि का सही माप आवश्यक है.
GS Paper 3 Source: The Hindu
UPSC Syllabus : Infrastructure- railways.
Topic : Western Dedicated Freight Corridor
संदर्भ
भारत के पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई गलियारे (Western Dedicated Freight Corridor – DFC) के रेवाड़ी (हरियाणा) से लेकर माडर (राजस्थान) तक जाने वाले 300 किलोमीटर के अनुभाग को वाणिज्यिक प्रयोग के लिए खोल दिया गया है.
पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई गलियारा क्या है?
- यह एक ब्रॉड गेज (broad gauge corridor) वाला गलियारा है.
- यह पश्चिमी गलियारा कुल मिलाकर 1,504 किलोमीटर का है.
- यह उत्तर प्रदेश के दादरी से आरम्भ होकर मुंबई के निकट स्थित देश के सबसे बड़े कंटेनर बंदरगाह जवाहर लाल नेहरु बंदरगाह न्यास तक जाता है.
- यह मार्ग पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र राज्यों से गुजरता है. इसके मार्ग में वडोदरा, अहमदाबाद, पालनपुर, फुलेड़ा और रेवाड़ी शहर पड़ते हैं.
- इस परियोजना को चलाने के लिए अक्टूबर, 2006 में एक समर्पित निकाय बनाया गया जिसे भारतीय समर्पित माल ढुलाई गलियारा निगम (Dedicated Freight Corridor Corporation of India – DFCCIL) कहते हैं.
- इस परियोजना के लिए जापान इंटरनेशनल कारपोरेशन एजेंसी ने विशेष शर्तों पर 4 बिलियन डॉलर का एक कम ब्याज वाला कोष उपलब्ध कराया है.
पश्चिमी समर्पित माल ढुलाई गलियारा (Western DFC) का महत्त्व
- यह गलियारा मात्र माल-ढुलाई के लिए बना है अर्थात् इस पर सवारी गाड़ियाँ नहीं चलेंगी. इस प्रकार माल ढुलाई की गति में तेजी आ जायेगी.
- यहाँ जिन मालों की ढुलाई होगी, वे हैं – खाद, अनाज, नमक, कोयला, लोहा, इस्पात और सीमेंट.
- उधर पूर्व में भी ऐसा ही गलियारा तैयार हो रहा है जिससे इस गलियारे को अंततः जोड़ दिया जाएगा.
भारत में समर्पित माल ढुलाई गलियारों की आवश्यकता क्यों?
- भारत के पश्चिमी और पूर्वी माल ढुलाई गलियारों से गाड़ियों का सबसे अधिक आना-जाना होता है और इनमें जाम लगता रहता है. वस्तुतः इन पर माल ढुलाई का 58% और सवारी ढुलाई का 52% निर्भर है जैसा कि 2017 के मेक इन इंडिया रिपोर्ट में बताया गया है.
- ये गलियारे प्रदूषण और लागत की दृष्टि की भी काम के सिद्ध होंगे. आज की तिथि में इन गलियारों पर लगने वाले जाम के कारण ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन अतिशय मात्रा में होता है और साथ ही ईंधन की खपत भी बढ़ जाती है. इन गलियारों के चालू हो जाने से प्रदूषण और ईंधन-लागत में कमी होगी.
- पश्चिमी और पूर्वी गलियारों के निर्माण के साथ-साथ कई अन्य प्रकार के विनिर्माण होंगे, जैसे – औद्योगिक गलियारे और माल ढुलाई पार्क आदि. इस प्रकार निवेश के नए मार्ग प्रशस्त होंगे.
भारतीय समर्पित माल ढुलाई गलियारा निगम (DFCCIL) क्या है?
- भारतीय समर्पित माल ढुलाई गलियारा निगम रेलवे मंत्रालय द्वारा संचालित एक निगम है जो समर्पित माल ढुलाई गलियारों के योजनान्यवन, निर्माण, वित्तीय स्रोतों को जुटाने के साथ-साथ इनके संचालन और संधारण का काम करता है.
- DFCCIL कम्पनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत 30 अक्टूबर, 2006 को कम्पनी के रूप में पंजीकृत हो चुका है.
Prelims Vishesh
Longest single spacewalk by a woman :-
- अमेरिकी अन्तरिक्षयात्री क्रिस्टीना कोच ने अन्तरिक्ष में 289 दिन पूरे कर लिए हैं.
- इस प्रकार अन्तरिक्ष में सबसे अधिक दिन रहने वाली महिला अंतरिक्षयात्री बन गई हैं.
Drake Passage :-
- ड्रेक पैसेज समुद्र का वह भाग है जो दक्षिणी अमेरिका के Cape Horn और अन्टार्कटिका के South Shetland Islands के बीच स्थित है.
- यहाँ पर प्रशांत महासागर, अटलांटिक एवं दक्षिणी समुद्र मिलते हैं.
Russia Avangard missile :–
- रूस ने एवनगार्ड नामक ध्वनि से तेज चलने वाला अंतर्राष्ट्रीय बैलिस्टिक मिसाइल का सेनार्पण कर दिया है.
- विदित हो कि यह ध्वनि से 27 गुना तेज चलता है.
- इसकी मारक क्षमता 6,000 किलोमीटर और ढोने की क्षमता 2,000 किलो है.
- यह 2000 डिग्री सेल्सियस से अधिक का तापमान सहन कर सकता है.
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