Sansar डेली करंट अफेयर्स, 30 July 2018

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Sansar Daily Current Affairs, 30 July 2018


GS Paper 1 Source: The Hindu

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Topic : Blood Moon

  1. ज्ञातव्य है कि चन्द्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं होता है. यह सूर्य के प्रकाश में ही चमकता है.
  2. इसके जितने अंश पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है उतने ही अंश को हम देख पाते हैं.
  3. सूर्य का प्रकाश चंद्रमा पर कभी कम कभी ज्यादा पड़ता है इसलिए हम चाँद का अलग-अलग आकार देखते हैं.
  4. अमावस्या के दिन चन्द्रमा पर सूर्य का कोई प्रकाश नहीं पड़ता इसलिए यह काला दिखाई देता है और पूर्णिमा के दिन इसपर सूर्य का प्रकाश पूरे भाग पर पड़ता है, इसलिए इसका पूरा आकार दिखता है.

चन्द्रग्रहण क्या है?

सूर्य की परिक्रमा करते-करते पृथ्वी सूर्य और चाँद के बीच आ जाती है. उस समय पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ने लगती है. इस घटना को चंद्रग्रहण कहते हैं. पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर कितनी पड़ती है उसी हिसाब से चंद्रमा का आंशिक या पूर्ण ग्रहण होता है.

ब्लड मून क्या है?

जब चंद्रग्रहण के समय पृथ्वी की छाया चन्द्रमा के सम्पूर्ण भाग को आच्छादित कर देती है तो वह पूर्ण चन्द्रग्रहण कहलाता है. ऐसा होने पर चंद्रमा का रंग लाल हो जाता है और इससे रक्त चंद्रमा (blood moon) कहा जाता है.

विदित हो कि जुलाई, 2018 में हुआ चन्द्रग्रहण 1 घंटे 43 मिनट चला. इस प्रकार यह 21वीं सदी का सबसे लम्बा चंद्रग्रहण था.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Domestic Council for Gold

केंद्र सरकार ने आभूषणों के निर्यात को सहायता पहुँचाने के लिए एक घरेलू स्वर्ण परिषद् (domestic council for gold) की स्थापना करने का निर्णय लिया है.

परिषद् का स्वरूप

इस परिषद् में भारत के सभी बड़े आभूषण निर्माताओं के द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधि सदस्य के रूप में होंगे.

परिषद् के कार्य

  • आभूषण उद्योग का विकास
  • रोजगार सृजन
  • प्रादेशिक संकुल (clusters) का निर्माण

स्वर्ण परिषद् का महत्त्व

यह परिषद् एक ऐसी प्रणाली का विकास करेगा जिसके माध्यम से देश में आभूषण निर्माण की वास्तविक संभावनाओं का उपयोग हो सकेगा.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : Manipur People’s Protection Bill, 2018

हाल ही में मणिपुर की विधानसभा ने मणिपुर लोक सुरक्षा विधेयक, 2018 (Manipur People’s Protection Bill, 2018) पारित किया है जिसका राज्य के अनेक जिलों में विरोध देखने में आ रहा है.

विधेयक के मुख्य तत्त्व

  • विदित हो कि अंग्रेजों के जमाने में पूर्वोत्तर के राज्यों – अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड – में लोगों के आवागमन को नियंत्रित करने के लिए एक अनुमति प्रणाली बनाई थी.
  • यह विधेयक उसी प्रणाली का अनुसरण करते हुए मणिपुर में बाहरी लोगों के आने-जाने को नियंत्रित करने हेतु बनाया गया है.
  • विधेयक में स्थानीय लोगों को परिभाषित करने के लिए तथा बाहरी लोगों के आगमन को रोकने के लिए 1951 वर्ष को आधारवर्ष के रूप में चयन किया गया है.
  • विधेयक के अनुसार मणिपुरी लोगों में मैतियों (Metis), पंगल मुस्लिमों (Pangal muslims), संविधान में वर्णित अनुसूचित जातियों के साथ-साथ उन सभी भारतीय नागरिकों को सम्मिलित किया गया है जो मणिपुर में 1951 के पहले से रह रहे हैं.
  • शेष अन्य सभी लोगों को गैर-मणिपुरी बताया गया है जिनको कानून की अधिसूचना के एक महीने के अन्दर अपने आप को पंजीकृत करवाना होगा. इन लोगों को सरकार एक पास देगी जो अधिकतम छ: महीनों के लिए होगा. जिन लोगों को व्यापार लाइसेंस दिया जायेगा वे प्रत्येक वर्ष अपना पास नया करवाएंगे. इस पास को अधिकतम पाँच साल तक बढ़ाया जा सकता है.
  • मणिपुर यात्रा करने वाला किसी भी बाहरी आदमी को एक पास लेना जरुरी होगा.

विधयेक के अधिनियम बन जाने के पश्चात् 1951 के बाद मणिपुर में आने वाले लोगों को विदेशी माना जाएगा और उन्हें मताधिकार एवं भूमि पर स्वत्वाधिकार नहीं होगा.

Inner Line Permit

  • ज्ञातव्य है कि 2015 में यह विधेयक पारित हो चुका था पर इसपर राष्ट्रपति की स्वीकृति नहीं मिली थी.
  • इस सन्दर्भ ध्यान देने योग्य बात है कि मणिपुर एक छोटी आबादी वाला राज्य है.
  • परन्तु यहाँ बहुत सारे पर्यटक आते हैं तथा साथ ही बांग्लादेश, नेपाल और बर्मा के निवासी भी यहाँ आकर रहने लगे हैं.
  • इससे जनसंख्या का स्वरूप असंतुलित हो गया है.
  • इस कारण यहाँ के मूल निवासी घबरा गए हैं. उन्हें डर है कि उनकी नौकरियों और आजीविकाओं को राज्य के बाहर के लोग छीन रहे हैं.
  • यह सब देखते हुए मणिपुर सरकार ने 2015 में एक विधेयक पारित किया था.
  • Inner Line Permit भारत सरकार द्वारा जारी किया जाने वाला एक आधिकारिक यात्रा दस्तावेज है जो भारत के किसी नागरिक को किसी संरक्षित क्षेत्र के भीतर सीमित अवधि के लिए प्रवेश की छूट देटा है.
  • ज्ञातव्य है कि मणिपुर भी एक संरक्षित क्षेत्र है.
  • फिलहाल Inner Line Permit की आवश्यकता भारतीय नागरिकों को तब होती है जब वह इन तीन राज्यों प्रवेश करना चाहते हैं – अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम और नागालैंड.
  • इस विधेयक के पास हो जाने पर मणिपुर में भी यह परमिट लागू हो गया है.
  • वर्तमान में यह परमिट मात्र यात्रा के लिए निर्गत होते हैं.
  • इसमें यह प्रावधान है कि ऐसे यात्री सम्बंधित राज्य में भूसंपदा नहीं खरीद सकेंगे.

GS Paper 2 Source: The Hindu

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Topic : DigiYatra initiative

केन्द्रीय नागरिक विमानन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation) कुछ महीनों के अन्दर भारत के हवाई अड्डों पर DigiYatra सेवा का अनावरण करने जा रहा है.

DigiYatra क्या है?

  • DigiYatra डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के अनुपालन में विमानन उद्योग की ओर से की जा रही एक पहल है जिसका समन्वयन नागरिक विमानन मंत्रालय कर रहा है.
  • इस योजना का उद्देश्य विमान यात्रियों के अनुभव को बेहतर बनाना तथा भारतीय विमानन को विश्व के सर्वाधिक नवाचारोन्मुख विमानन नेटवर्क के बीच ला खड़ा करना है.
  • इसके लिए डिजिटल तकनीक का प्रयोग किया जायेगा जिससे यात्रीगणों को टिकेट बुकिंग से लेकर के हवाई अड्डे में प्रवेश की जाँच, सुरक्षा जाँच और विमान में प्रवेश तक किसी प्रकार की असुविधा न हो.

DigiYatra की कार्यप्रणाली

  • इसके लिए यात्री को AirSewa app के अपने आप को DigiYatra कार्यक्रम में पंजीकृत कराना होगा.
  • DigiYatra के द्वारा सत्यापित यात्री को हवाई अड्डे पर ई-द्वारों (E-Gates) के माध्यम से अड़चन-रहित प्रवेश मिलेगा.
  • प्रवेश-द्वार पर यात्री को एक टोकन दिया जाएगा जिसको लेकर यात्री सुरक्षा-स्कैनरों में से तेजी से आगे बढ़ जायेगा. ऐसा उन्नत bio-metric सुरक्षा-मशीनों के कारण संभव हो सकेगा.

यह सुविधा वैकल्पिक है. यदि कोई अपनी पहचान बताना नहीं चाहता है तो उसके लिए अलग इंतजाम है. पहचान-सत्यापन BCAS-अनुमोदित सरकारी ID के द्वारा किया जायेगा.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Naturalized species

  1. हाल ही में वैज्ञानिकों के एक अंतर्राष्ट्रीय दल, जिसमें भारतीय वैज्ञानिक भी शामिल थे, ने बाहरी पौधा प्रजातियों (alien plant species) के बारे में विभिन्न स्रोतों से सूचनाएँ एकत्र की हैं.
  2. इसके लिए भारत के सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय वनस्पतियों के विषय में ऑनलाइन सूचियों से लेकर प्राचीन विवरणों तक उपलब्ध जानकारियों का अध्ययन किया गया.
  3. अध्ययन में पाया गया कि भारत में 471 पौधे ऐसे हैं जो मूलतः भारत के नहीं हैं अपितु बाहर से आये हैं.
  4. परन्तु इनका भारतीय वातावरण से पूर्ण सामंजस्य हो गया है और ये देश के जंगलों में भी फल-फूल सकते हैं.

इस खोज के मुख्य तत्त्व

  • वैज्ञानिकों ने प्रत्येक राज्य के लिए ऐसे पौधों की पहली सूची तैयार कर ली है.
  • इन सूचियों से पता चलता है कि भारत के 31 से अधिक राज्यों में 110 बाहरी पौधे प्राकृतिक रूप से उपलब्ध हो रहे हैं.
  • तमिलनाडु (332 पौधे) इस मामले में नंबर 1 पर है. इसके बाद केरल (290 पौधे) का नंबर आता है जबकि ऐसे पौधे सबसे कम लक्षद्वीप (17 पौधे) में पाए गये हैं.
  • भारत में बाहर से आकर प्राकृतिक हो जाने वाले अधिकांश पौधे साग-पात (herbs) हैं, जैसे – सियाम पतवार (Siam weed).

प्राकृतिक रूप से अनुकूलित पौधे सर्वाधिक भारत में

  • आज विश्व में 13,000 से अधिक ऐसे पौधे हैं जो विभिन्न स्थानों में प्रकृति से सामंजस्य कर चुके हैं. इनमें से कुछ बाद में तेजी से छा जाने वाले खरपतवार में बदल जाते हैं और स्थानीय वनस्पति और पशु जगत पर दुष्प्रभाव छोड़ते हैं.
  • पिछले साल एक अध्ययन से पता चला कि संसार में ऐसे 7 क्षेत्र हैं जहाँ तेजी से फैलने वाले खरपतवार होते हैं. इस मामले में भारत सबसे अग्रणी है.
  • वानस्पतिक विविधता केंद्र (ENVIS) के द्वारा निर्गत सूची के अनुसार भारत में पौधों की 170 से भी अधिक ऐसी प्रजातियाँ हैं जो तेजी से फ़ैल जाती हैं.
  • उपर्युक्त स्थिति को देखते हुए यह आवश्यकता है कि ऐसी प्रणाली विकसित की जाए जिसमें देश के अन्दर आने वाले किसी भी पौधे को सम्यक् जाँच-पड़ताल के बाद ही अन्दर आने दिया जाए.

GS Paper 3 Source: The Hindu

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Topic : Arsenic contamination

  1. हाल ही में प. बंगाल जादवपुर विश्वविद्यालय के पर्यावरणीय अध्ययन स्कूल (School of Environmental Studies – SOES) ने एक शोधपत्र निर्गत किया है जिसके अनुसार राज्य में भूमिजल में शोरे की मात्रा (arsenic content) बढ़ गयी है जिसके कारण धान की फसल भी प्रदूषित हो चुकी है.
  2. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार यदि प्रति लीटर जल में आर्सेनिक की मात्रा 0.01 मिलीग्राम से अधिक है तो जल में आर्सेनिक प्रदूषण का खतरा उत्पन्न हो जाता है. हालाँकि भारत सरकार के द्वारा 0.05 मि.ग्रा. तक आर्सेनिक का मानक तय किया गया है.
  3. आर्सेनिक प्रदूषित जल का उपयोग करने से कई रोग हो सकते हैं, जैसे -चर्म रोग, चर्म कैंसर, हाइपर केरोटोसिस, काला पांव, मायोकॉर्डियल, रक्तहीनता (इस्‍कैमिया), यकृत, फेफड़े, गुर्दे एवं रक्‍त विकार सम्बंधित रोग आदि.

अध्ययन में क्या पाया गया?

  • अध्ययन में पाया गया कि भूजल से पौधे में आने-वाला arsenic सबसे अधिक जड़ में रहता है और इसकी सबसे कम मात्रा पौधे के बीज अथवा चावल में होता है.
  • आर्सेनिक का धान के पौधे में जमाव धान के प्रकार के अनुसार बदलता रहता है.
  • यह अनुसंधान मिनिकित (Minikit) और जया (Jaya) नामक दो धान की प्रजातियों पर किया गया था जो सबसे ज्यादा उपभोग में आते हैं.
  • इन दोनों में जया प्रजाति में आर्सेनिक कम प्रवेश करता है.
  • अध्यन में इस बात की चिंता प्रकट की गई है कि प्रदूषित धान के पुआल को पशुओं को खिलाया जाता है अथवा उन्हें या तो जला दिया जाता है या खाद बनने के लिए खेत में ही छोड़ दिया जाता है.

आर्सेनिक प्राकृतिक रूप से धरती की सतह में पाया जाता है. परन्तु यदि यह भूमिगत जल में घुल जाता है तो लंबे समय तक इसके संपर्क में आने से जल प्रदूषित हो जाता है.

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