Sansar Daily Current Affairs, 30 November 2020
GS Paper 1 Source : Indian Express
UPSC Syllabus : Important Geophysical phenomena such as earthquakes, Tsunami, Volcanic activity, cyclone etc.
Topic : Cyclone Nivar
संदर्भ
हाल ही में दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी(Southwest Bay of Bengal) के ऊपर बेहद गंभीर चक्रवाती तूफान ‘निवार‘ (NIVAR) के लिए भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के चक्रवात चेतावनी प्रभाग (Cyclone Warning Division) ने लाल सूचना (Red Message) जारी किया है.
चक्रवाती तूफान ‘निवार‘ (Cyclone Nivar) के विषय में
- ‘निवार'(NIVAR), एक ऊष्ण कटिबंधीय चक्रवाती तूफान है, जो बंगाल की खाड़ी (Bay of Bengal) में बना है.
- दक्षिण-पश्चिम बंगाल की खाड़ी(southwest Bay of Bengal) के ऊपर बना चक्रवाती तूफान “निवार” पश्चिम-उत्तर पश्चिम दिशा में आगे बढ़ रहा है और 24 नवंबर, 2020 की मध्य रात्रि को एक गंभीर चक्रवात में बदल गया है.
- जब चक्रवात की गति 120 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है तो यह ‘बेहद गंभीर’ चक्रवात की श्रेणी में आ जाता है. जब चक्रवात की गति 120 किमी प्रति घंटा से कम होती है तो यह ‘गंभीर’ चक्रवात की श्रेणी में आता है.
- चक्रवात ‘निवार‘(NIVAR) का नाम ईरान ने दिया है. निवार का शाब्दिक अर्थ है, ‘रोकथाम करना’.
तूफानों के नाम कौन रखता है?
- यह जानना भी दिलचस्प है कि तबाही मचाने के लिए कुख्यात इन तूफानों का नाम कैसे रखा जाता है. बीबीसी के मुताबिक 1953 से अमेरिका के मायामी स्थित नेशनल हरीकेन सेंटर और वर्ल्ड मेटीरियोलॉजिकल ऑर्गनाइज़ेशन (डब्लूएमओ) की अगुवाई वाला एक पैनल तूफ़ानों और उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के नाम रखता था. डब्लूएमओ संयुक्त राष्ट्र की एजेंसी है. हालांकि पहले उत्तरी हिंद महासागर में उठने वाले चक्रवातों का कोई नाम नहीं रखा जाता था. जानकारों के मुताबिक इसकी वजह यह थी कि सांस्कृतिक विविधता वाले इस क्षेत्र में ऐसा करते हुए बेहद सावधानी की जरूरत थी ताकि लोगों की भावनाएं आहत होने से कोई विवाद खड़ा न हो जाए.
- 2004 में डब्लूएमओ की अगुवाई वाले अंतर्राष्ट्रीय पैनल को भंग कर दिया गया. इसके बाद संबंधित देशों से अपने-अपने क्षेत्रों में आने वाले चक्रवातों का नाम ख़ुद रखने के लिए कहा गया. कुछ साल तक ऐसा किये जाने के बाद इसी साल हिंद महासागर क्षेत्र के आठ देशों ने भारत की पहल पर चक्रवाती तूफानों को नाम देने की एक औपचारिक व्यवस्था शुरू की है. इन देशों में भारत के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड शामिल हैं. इन सभी देशों ने मिलकर तूफानों के लिए 64 नामों की एक सूची बनाई है. इनमें हर देश की तरफ से आठ नाम दिये गये हैं. इस नई व्यवस्था में चक्रवात विशेषज्ञों के एक पैनल को हर साल मिलना है और जरूरत पड़ने पर सूची में और नाम जोड़े जाने हैं.
नाम को लेकर भी होता है हमेशा विवाद
सदस्य देशों के लोग भी तूफानों के लिए नाम सुझा सकते हैं. जैसे भारत सरकार इस शर्त पर इन नामों के लिए लोगों से सलाह मांगती है कि वे छोटे, समझ में आने लायक और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों. ‘निसर्ग’ नाम बांग्लादेश ने सुझाया है जिसका अर्थ है प्रकृति. ‘अम्फान’ का नामकरण थाईलैंड ने किया था जिसका शाब्दिक अर्थ है आकाश. वहीं बीते साल आए तूफान ‘फानी’ को यह नाम बांग्लादेश ने दिया था. वैसे बांग्ला में इसका उच्चारण फोनी होता है और इसका मतलब है सांप.
इतनी सावधानी के बावजूद विवाद भी हो ही जाते हैं. जैसे साल 2013 में ‘महासेन’ तूफान को लेकर आपत्ति जताई गई थी. श्रीलंका द्वारा रखे गए इस नाम पर इसी देश के कुछ वर्गों और अधिकारियों को ऐतराज था. उनके मुताबिक राजा महासेन श्रीलंका में शांति और समृद्धि लाए थे, इसलिए आपदा का नाम उनके नाम पर रखना गलत है. इसके बाद इस तूफान का नाम बदलकर ‘वियारु’ कर दिया गया.
चक्रवात की परिभाषा
चक्रवात निम्न वायुदाब के केंद्र होते हैं, जिनके चारों तरफ केन्द्र की ओर जाने वाली समवायुदाब रेखाएँ विस्तृत होती हैं. केंद्र से बाहर की ओर वायुदाब बढ़ता जाता है. फलतः परिधि से केंद्र की ओर हवाएँ चलने लगती है. चक्रवात (Cyclone) में हवाओं की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में घड़ी की सुई के विपरीत तथा दक्षिण गोलार्द्ध में अनुकूल होती है. इनका आकर प्रायः अंडाकार या U अक्षर के समान होता है. आज हम चक्रवात के विषय में जानकारी आपसे साझा करेंगे और इसके कारण, प्रकार और प्रभाव की भी चर्चा करेंगे. स्थिति के आधार पर चक्रवातों को दो वर्गों में विभक्त किया जाता है –
- उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (Tropical Cyclones)
- शीतोष्ण चक्रवात (Temperate Cyclones)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात (TROPICAL CYCLONES)
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को कैरबियन सागर में हरिकेन, पूर्वी चीन सागर में टायफून, फिलीपिंस में “बैगयू”, जापान में “टायसू”, ऑस्ट्रेलिया में “विलिबिलि” तथा हिन्द महासागर में “चक्रवात” और “साइक्लोन” के नाम से जाना जाता है.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की अधिकतम बारंबारता पूर्वी चीन सागर में मिलती है और इसके बाद कैरिबियन, हिन्द महासागर और फिलीपिन्स उसी क्रम में आते हैं. उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रमुख क्षेत्र निम्न्वित हैं –
- उत्तरी अटलांटिक महासागर– वर्ड अंतरीप का क्षेत्र, कैरबियन सागर, मैक्सिको की खाड़ी, पश्चिमी द्वीप समूह.
- प्रशांत महासागर– दक्षिणी चीन, जापान, फिलीपिन्स, कोरिया एवं वियतनाम के तटीय क्षेत्र, ऑस्ट्रेलिया, मैक्सिको तथा मध्य अमेरिका का पश्चिमी तटीय क्षेत्र.
- हिन्द महासागर– बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, मॉरिसस, मेडागास्कर एवं रियूनियन द्वीपों के क्षेत्र.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की विशेषताएँ
- इनका व्यास 80 से 300 किमी. होता है. कभी-कभी इनका व्यास 50 किमी. से भी कम होता है.
- इसकी औसत गति 28-32 किमी. प्रतिघंटा होती है, मगर हरिकेन और टायफून 120 किमी. प्रतिघंटा से भी अधिक गति से चलते हैं.
- इनकी गति स्थल की अपेक्षा सागरों पर अधिक तेज होती है.
- सामान्यतः व्यापारिक हवाओं के साथ पूर्व से पश्चिम की ओर गति करते हैं.
- इसमें अनेक वाताग्र नहीं होते और न ही तापक्रम सम्बन्धी विभिन्नता पाई जाती है.
- कभी-कभी एक ही स्थान पर ठहरकर तीव्र वर्षा करते हैं.
- समदाब रेखाएँ अल्पसंख्यक और वृताकार होती है.
- केंद्र में न्यून वायुदाब होता है.
- इनका विस्तार भूमध्य रेखा के 33 1/2 उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों तक होता है.
निर्माण संबंधी दशाएँ
- एक विशाल गर्म सागर की उपस्थिति जिसके सतह का तापमान कम से कम 27°C हो.
- सागर के उष्ण जल की गहराई कम से कम 200 मी. होनी चाहिए.
- पृथ्वी का परिभ्रमण वेग उपर्युक्त स्थानों पर 0 से अधिक होनी चाहिए.
- उच्चतम आद्रता की प्राप्ति.
- उच्च वायुमंडलीय अपसरण घटातलीय अपसरण से अधिक होनी चाहिए.
- उध्वार्धर वायुप्रवाह (vertical wind flow) नहीं होनी चाहिए.
- निम्न स्तरीय एवं उष्ण स्तरीय विक्षोभ की उपस्थति.
शीतोष्ण चक्रवात
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात को गर्त चक्र अथवा निम्न दाब क्षेत्र भी कहा जाता है. इनकी उत्पत्ति दोनों गोलार्धों में 30°C – 65°C अक्षांशों के बीच होती है. इन अक्षांशों के बीच उष्ण वायु राशियाँ एवं शीतल ध्रुवीय वायुराशियाँ जब मिलती है तो ध्रुवीय तरंगों के कारण गर्त चक्रों की उत्त्पति होती. इन चक्रवातों की उत्पत्ति के सन्दर्भ में वर्कनीम द्वारा ध्रुवीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया गया. इस सिद्धांत को तरंग सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है.
एशिया के उत्तर-पूर्वी तटीय भागों में उत्पन्न होकर उत्तर-पूर्व दिशा में भ्रमण करते हुए अल्युशियन व उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तटीय भागों पर प्रभाव डालते हैं. उत्तरी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी तटीय भाग से उत्पन्न होकर ये चक्रवात पछुवा हवाओं के साथ पूर्व दिशा में यात्रा करते हैं, तथा पश्चिमी यूरोपीय देशों पर प्रभाव डालते हैं. शीत ऋतु में भूमध्य सागर पर शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात सक्रीय हो जाते हैं.इसका प्रभाव दक्षिणी स्पेन, द.फ़्रांस, इटली, बाल्कन प्रायद्वीप, टर्की, इराक, अफ़ग़ानिस्तान तथा उत्तर-पश्चिमी भारत पर होता है.
प्रमुख विशेषताएँ
- इनमें दाबप्रवणता कम होती है, समदाब रेखाएँ V अकार की होती है.
- जल तथा स्थल दोनों विकसित होते हैं एवं हज़ारों किमी. क्षेत्र पर इनका विस्तार होता है.
- वायुवेग उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों से कम होती है.
- अधिकतर शीत ऋतु में उत्पन्न होते हैं.
- तीव्र बौछारों के साथ रुक-रुक कर वर्षा होती है, जो कई दिनों तक चलती रहती है.
- शीत कटिबंधीय चक्रवातों के मार्ग कोझंझा पथ कहा जाता है.
- इसमें प्रायः दो वताग्र होते हैं एवं वायु की दिशा वताग्रों के अनुसार तेजी से बदल जाती है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : ISLAMIC COOPERATION COUNTRIES (OIC)
संदर्भ
भारत ने इस्लामिक सहयोग संगठन (Organisation of Islamic Conference-OIC) की कड़ी आलोचना करते हुए, इसके 47 वें काउंसिल ऑफ फॉरेन मिनिस्टर्स (Council of Foreign Ministers– CFM) सम्मलेन में जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में पारित किये गए अनुचित प्रस्तावों को खारिज कर दिया.
भारत ने कहा है कि जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश सहित भारत के नितांत आंतरिक मामलों में दखल देने ले लिए इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) की कोई अधिस्थिति (locus standi) नहीं है.
इस्लामी सहयोग संगठन (OIC) क्या है?
- यह विश्व के सभी इस्लामी देशों का एक संगठन है.
- संयुक्त राष्ट्र संघ के बाद यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अंतर-सरकारी संगठन है.
- इस संगठन की स्थापना 1969 में हुई थी.
- आज इसमें सदस्य देशों की संख्या57 है.
- इसका मुख्यालय जेद्दा, सऊदी अरब में है.
- OIC का एक-एक प्रतिनिधिमंडल स्थाई रूप से संयुक्त राष्ट्र संघ और यूरोपियन यूनियन में प्रतिनियुक्त है.
- इस संगठन का उद्देश्य इस्लामी विश्व की सामूहिक आवाज के रूप में काम करना तथा मुसलमानों के हितों की रक्षा करना है.
- निर्गुट आन्दोलन (Non-Aligned Movement – NAM) के समान यह संगठन भी एक दन्तविहीन बाघ है जो सदस्य देशों के बीच होने वाले मसलों पर कुछ नहीं कर पाता.
OIC का भारत के लिए महत्त्व
- भारत का यह दावा रहा है कि उसे भी इस संगठन का एक सदस्य बनाया जाए क्योंकि भारत में मुसलमानों की आबादी कई देशों की तुलना में अधिक है.
- OIC के बहुत से देशों के साथ भारत के महत्त्वपूर्ण व्यापारिक रिश्ते हैं इस संगठन में भारत की सदैव रूचि रही है. पिछली बैठक में भारत को OIC की बैठक में एक सम्मानित अतिथि के रूप में आमंत्रित भी किया गया था.
- परन्तु पिछले दिनों हुई बैठक में OIC भारत के हितों को दरकिनार करते हुए कश्मीर से भी एक प्रतिनिधि को आमंत्रित किया जिसका भारत की ओर से कठोर प्रतिरोध हुआ.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.
Topic : Sustainable peatland management
संदर्भ
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, पीटभूमि जैव विविधता से समृद्ध होती है, जिसमें कई संभावित कशेरुकी (vertebrate) और अकशेरुकी (invertebrate) जीव या रोग के वाहक पाए जाते हैं.
चूँकि उन्हें उच्च स्तर के पर्यावास विघटन जैसे वन्य या मानव जनित दावानल आदि का सामना करना पड़ा है, जो संभावित पशुजन्य (zoonotic) संक्रामक रोगों के लिए अधिक उपयुक्त परिस्थिति थी.
वर्ष 1976 में इबोला का प्रथम मामला पीटमूमि क्षेत्र से ही था तथा HIV/ एड्स महामारी के प्रसार हेतु भी कांगो में पीटभूमि को उत्तरदायी माना गया था. इसलिए, पीटभूमि के सतत प्रबंधन से पशुजन्य रोगों से उत्पन्न भविष्य की महामारी के प्रसार को रोका जा सकता है.
पीटभूमि के विषय में
- पीटभूमि स्थलीय आर्द्रभूमि पारिस्थितिकी-तंत्र है, जिसमें जलभराव की स्थिति पादप सामग्री को पूर्णतया विघटित होने से रोकती है. फलस्वरूप, कार्बनिक पदार्थों का उत्पादन इसके अपघटन की तुलना में ज्यादा होता है, जिसके परिणामस्वरूप पीट का शुद्ध संचय होता है.
- वे सामान्यतः ध्रुवों की ओर तथा उच्च तुंगता पर स्थायी तुषार भूमि (permafrost) क्षेत्रों में, तटीय क्षेत्रों में, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के नीचे एवं बोरियल वनों में पाई जाती हैं.
- पीटभूमि वैश्विक जैव विविधता का संरक्षण करने, सुरक्षित पेयजल प्रदान करने, बाढ़ के जोखिम को घटाने और जलवायु परिवर्तन से निपटने में सहायता प्रदान करने के लिए भी जरूरी है.
- पीटभूमि सबसे बड़ा प्राकृतिक स्थलीय कार्बन भंडार है. क्षतिग्रस्त पीटभूमि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का एक प्रमुख स्रोत है, जिससे वार्षिक स्तर पर वैश्विक मानवजनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन का लगभग 6 प्रतिशत निर्मुक्त होता है.
GS Paper 2 Source : The Hindu
UPSC Syllabus : Related to Health.
Topic : Fusarium wilt (Panama) disease in Banana
भारत के कम से कम 5 प्रमुख राज्यों में उगाए जाने वाले केले की फसल को फफूंद जनित बीमारी क्षति पहुंचा रही है. इस बीमारी को रोकने के लिए केले के पौधे में जड़ रोगजनक संक्रमण फ़्यूज़ेरियम की बेहतर समझ जल्द ही इसके लिए तकनीकी को विकसित करने में मदद कर सकती है.
- केले में इस बीमारी की रोक-थाम के लिए भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप प्राप्तकर्ता डॉ. सिद्धेश घाग संक्रमण आनुवंशिक दृष्टिकोण का उपयोग कर रहे हैं.
संबन्धित जानकारी
- भारत दुनिया में केले का प्रमुख उत्पादक देश है और वर्तमान केले की खेती इस फफूंद जनित बीमारी की चपेट में है.
- फ़्यूज़ेरियम मिट्टी में एक साइप्रोफाइट (saprophyte) के रूप में रहती है और पेड़ों की जड़ों में पहुँच कर परजीवी की तरह व्यवहार करने लगता है.
- वैज्ञानिक केले की खेती के लिए नवीन प्रबंधन रणनीतियों को विकसित करने के उद्देश्य से इस रोग के प्रतिमान को समझने की प्रयास कर रहे हैं.
- भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) की इंस्पायर फैकल्टी फेलोशिप प्राप्तकर्ता सेंटर फॉर एक्सीलेंस इन बेसिक साइंसेज, डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी (यूनिवर्सिटी ऑफ मुंबई) के डॉ. सिद्धेश घाग संक्रमण के दौरान केले और फुसैरियम के बीच आणविक क्रॉस-टॉक को समझने के लिए आनुवंशिक दृष्टिकोण का उपयोग कर रहे हैं.
फ्यूजेरियम विल्ट रोग के विषय में
- फ्यूजेरियम विल्ट केले में पाया जाने वाला फंगस जनित रोग है जिसके लिए ट्रॉपिकल रेस 4 (TR4) नावेल फंगस जिम्मेदार होता है. फ्यूजेरियम विल्ट को पनामा रोग के नाम से भी जाना जाता है.
- इस रोग को सर्वप्रथम ताइवान में पहचाना गया था. अब तो यह एशिया से लेकर मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका तक पहुंच गया है.
- यह पहले पत्तियों पर हमला करता है, जिससे पत्तियाँ पीली पड़कर सूखने लगती ओर नीचे की ओर लटक जाती हैं. अभी तक इस रोग का कोई प्रभावी उपाय नहीं खोजा जा सका है.
- संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के अनुसार, TR4 “सभी पौधों की बीमारियों में सबसे विनाशकारी” है.
- चूंकि अभी तक इसका कोई इलाज नहीं है इसलिए, वैज्ञानिक इसके प्रसार को धीमा करने के लिए जैव सुरक्षा उपायों सहित पौधों को अलग करने की सलाह देते हैं.
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने इससे बचने के उपायों के रूप में “जैव-प्राइमिंग” को अपनाए जाने का समर्थन किया है.
- आइसीएआर के पास फ्यूजीकांट प्रणाली है, जिसका उपयोग पनामा विल्ट नामक फंगस रोग के प्रबंधन में सक्षम है. फ्यूजीकांट प्रणाली में तापमान बढ़ने के साथ ही पहले से विकसित बायोकंट्रोल एजेंट का सक्रिय करना होता है.’
- इस बीमारी को रोकने का एक ही तरीका है, जिसमें एक खेत को दूसरे खेत से अलग रखा जाए. प्रभावित खेत की मिट्टी व पानी से दूसरे खेत को बचाना होता है. टिश्यू कल्चर वाले पौध ही लगाए जाएं.
GS Paper 3 Source : PIB
UPSC Syllabus : Indian Economy and issues relating to planning, mobilization of resources, growth, development and employment.
Topic : National Investment and Infrastructure Fund
संदर्भ
हाल ही में, केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) द्वारा प्रायोजित– NIIF ऋण प्लेटफॉर्म में सरकार द्वारा 6000 करोड़ रुपये के इक्विटी संचार के प्रस्ताव को स्वीकृति दी गयी है.
सरकार का यह प्रस्ताव, इस महीने की शुरुआत में घोषित किए गए आत्मनिर्भर भारत 3.0 पैकेज का हिस्सा है.
NIIF क्या है?
- NIIF लंबित आधारभूत परियोजनाओं हेतु विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिए भारत में एक प्रमुख मंच के रूप में कार्य करता है.
- ज्ञातव्य है कि यह कोष (NIIF) 2015 में भारत सरकार द्वारा 40,000 करोड़ रु. की राशि से देश में अवसंरचनात्मक परियोजनाओं में निवेश करने के लिए गठित की गई थी जिसमें 49% धन सरकार निवेश करेगी और शेष धन तृतीय-पक्ष (third-party) निवेशकों, जैसे – सॉवरेनसंपदा कोष (sovereign wealth funds), बीमा तथा पेंशन कोष, दान इत्यादि से उगाहा जायेगा.
- यह ऊर्जा, परिवहन, आवास, जल, कचरा निपटान तथा अन्य आधारभूत संरचना से सम्बंधित क्षेत्रों में निवेश करता है.
- वर्तमान में NIIF तीन अलग-अलग निवेश कोष चला रहा है जो सभी SEBI में वैकल्पिक निवेश फण्ड के रूप में पंजीकृत हैं.
तीन अलग-अलग निवेश कोष
मास्टर कोष :- यह कोष मुख्य रूप से सड़कों, बंदरगाहों, हवाई अड्डों, बिजली कारखानों आदि अवसंरचना के शुद्ध प्रक्षेत्रों में निवेश करता है.
कोषों का कोष :- यह उन कोषों में निवेश करता है जिनको वैसे कोष प्रबंधक संभाल रहे हैं जिन्होंने अवसंरचना एवं सम्बद्ध प्रक्षेत्रों में अच्छा काम किया है. यह कोष जिन प्रक्षेत्रों पर अधिक ध्यान देता है, वे हैं – हरित अवसरंचना, मध्य आय एवं सस्ती आवास योजना, अवसंरचनात्मक सेवाएँ और सम्बद्ध प्रक्षेत्र.
रणनीतिक निवेश कोष :- सेबी में पंजीकृत होने वाला तीसरा निवेश कोष रणनीतिक निवेश कोष कहलाता है और इसे वैकल्पिक निवेश कोष 2 का नाम दिया गया है.
Prelims Vishesh
Lingayat :-
- कर्नाटक सरकार ने अन्य पिछड़े वर्ग की केन्द्रीय सूची में लिंगायत समुदाय को सम्मिलित करने की योजना को स्थगित कर दिया है.
- लिंगायतवाद की परंपरा की स्थापना 12वीं सदी में कर्नाटक के एक सामाजिक सुधारक और दार्शनिक बासव द्वारा की गई थी.
- बासव/बासवन्ना ने सामाजिक व्यवस्था को सुधारने के लिए मानव स्वतंत्रता, समानता, तर्कसंगतता और भाईचारे को आधार बनाने के लिए कहा.
- लिंगायतों का कहना है कि उनके आदिगुरु बासवन्ना ने जिस शिव को अपना इष्ट बनाया था वे हिन्दू धर्म के शिव नहीं हैं अपितु इष्ट लिंग (निराकार भगवान्) हैं जिसे लिंगायत अपने गले में लटकाते हैं.
Giant Meterwave Radio Telescope – GMRT :-
- GMRT को अलेरिका के इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (IEEE) द्वारा एक माइलस्टोन सुविधा के रूप चुना गया है.
- यह पुणे स्थित नेशनल सेंटर फॉर रेडियो एस्ट्रोफिजिक्स द्वारा संचालित है, जो टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च का भाग है.
- GMRT एक निम्न आवृत्ति वाली रेडियो वेधशाला है, जो कि निकटवर्ती सौर मंडल से लेकर अवलोकन योग्य ब्रह्मांड के छोर तक विभिन्न प्रकार की रेडियो खगोल भौतिकी समस्याओं की जांच के लिए स्थापित की गई है.
- IEEE माइलस्टोन कार्यक्रम महत्वपूर्ण तकनीकी उपलब्धियों को सम्मानित करता है, जिनका वैश्विक या क्षेत्रीय प्रभाव होता है.
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