Sansar डेली करंट अफेयर्स, 31 August 2019

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Sansar Daily Current Affairs, 31 August 2019


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Important International institutions, agencies and fora, their structure, mandate.

Topic : Eastern Economic Forum

संदर्भ

5 सितम्बर को रूस के सुदूर-पूर्व (Far-East) में स्थित व्लाडिवोस्टक में आयोजित होने वाले पूर्वी आर्थिक मंच (Eastern Economic Forum) की बैठक में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया है.

पूर्वी आर्थिक मंच क्या है?

  • विश्व की आर्थिक व्यवस्था, क्षेत्रीय एकीकरण, नए औद्योगिक एवं तकनीकी क्षेत्रों के विकास तथा रूस और अन्य राष्ट्रों द्वारा सामना की जा रही वैश्विक चुनौतियों पर विचार-विमर्श के लिए पूर्वी आर्थिक मंच की स्थापना 2015 में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने एक आदेश के द्वारा की थी.
  • इस मंच की बैठक प्रत्येक वर्ष व्लाडिवोस्टक में ही होती है.
  • इस मंच में होने वाले विचार-विमर्श के निमित्त कई पैनल सत्र, गोलमेज वार्ताएँ, दूरदर्शन पर प्रसारित वाद-विवाद, व्यावसायिक कलेवे (business breakfasts) एवं व्यावसायिक संवाद आयोजित होते हैं जिनमें मुख्य रूप से विविध देशों के साथ रूस के रिश्तों पर चर्चा होती है.
  • इस मंच के व्यावसायिक कार्यक्रम में एशिया प्रशांत क्षेत्र और आसियान के अग्रणी प्रतिभागी देशों के साथ अनेक व्यावसायिक संवाद भी होते हैं.

सुदूर-पूर्व (Far-East) किसे कहते हैं?

रूस के सबसे पूर्वी भाग को सुदूर-पूर्व अर्थात् फार ईस्ट कहते हैं. यह भूभाग प्रशांत और आर्कटिक दो महासागरों की सीमाओं को छूता है और इसके समीप ये पाँच देश पड़ते हैं – चीन, जापान, मंगोलिया, अमेरिका और उत्तर कोरिया.

रूस के सुदूर-पूर्वी संघीय जिले के अन्दर देश की एक-तिहाई से अधिक भूमि आती है.

संसाधन : रूस का सुदूर-पूर्वी भाग प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध है. ये संसाधन हैं – हीरे, टीन, बोरेक्स, सोना, टंग्स्टन, मछलियाँ और समुद्री भोज्य पदार्थ. रूस के कोयला भंडार और हाइड्रो-इंजीनियरिंग संसाधनों का एक-तिहाई अंश इसी क्षेत्र में अवस्थित है. पूरे रूस के जंगलों का 30% क्षेत्र इसी क्षेत्र में पड़ता है.


GS Paper 2 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus : Government policies and interventions for development in various sectors and issues arising out of their design and implementation.

Topic : National Register of Citizens (NRC)

संदर्भ

असम में काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था ने यह विचार प्रकट किया है कि राज्य के मूल निवासियों को तब तक सुरक्षा नहीं मिलेगी जब तक राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) के अन्दर विदेशियों को पहचानने के लिए 1971 को आधार वर्ष माना जाता रहेगा.

आधार वर्ष का विवाद किया है?

असम में विदेशियों के निष्कासन के लिए 1979 से 1985 तक एक बड़ा आन्दोलन चला था. 1985 में सरकार और आन्दोलनकारियों के बीच एक समझौता हुआ जिसके बाद आन्दोलन समाप्त कर दिया गया. समझौते में यह आश्वासन दिया गया था कि NRC का नवीकरण किया जायेगा. इस समझौते (Assam Accord) में 24 मार्च, 1971 को विदेशियों के पहचान के लिए cut-off तिथि निर्धारित की गई थी.

अब यह माँग उठ रही है कि कट-ऑफ वर्ष 1971 न रखकर 1951 को रखा जाए, तभी सभी विदेशियों की पहचान हो पाएगी. ऐसा इसलिए कि असम में पूर्व पाकिस्तान से 1951 के बाद से ही आप्रवासी आ रहे हैं.

1971 को कट-ऑफ रखने से 1951 और 1971 के बीच की 20 वर्ष की अवधि में असम में घुसे विदेशी पकड़ में आने से बच निकलेंगे.

NRC 

  • राष्ट्रीय नागरिक पंजी (NRC) वह सूची है जिसमें असम में रहने वाले भारतीय नागरिकों के नाम दर्ज हैं. असम देश का एकमात्र राज्य है जहाँ NRC विद्यमान है.
  • NRC को पूरे देश में पहली और आखिरी बार 1951 में तैयार किया गया था.
  • लेकिन इसके बाद इसे अपडेट नहीं किया गया था.
  • NRC में भारतीय नागरिकों का लेखा-जोखा दर्ज होता है.
  • 2005 में केंद्र, राज्य और All Assam Students Union के बीच समझौते के बाद असम के नागरिकों की दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई. ये पढ़ें >> असम समझौता
  • मौजूदा प्रकिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो रही है.
  • सुप्रीम कोर्ट ने करीब दो करोड़ दावों की जांच के बाद 31 दिसम्बर, 2018 तक NRC को पहला draft जारी करने का निर्देश दिया था.
  • कोर्ट ने जांच में करीब 38 लाख लोगों के दस्तावेज संदिग्ध पाए थे.
  • अभी पिछले दिनों 31 जुलाई, 2019 को नए दावों का सत्यापन करके एक अंतिम सूची प्रकाशित हुई है जिसमें 19 लाख लोगों के निरस्त किया गया.

GS Paper 2 Source: Indian Express

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UPSC Syllabus : Effect of policies and politics of developed and developing countries on India’s interests, Indian diaspora.

Topic : Joint Comprehensive Plan of Action (JCPOA)

संदर्भ

ईरान के आणविक समझौते को लेकर हुए गड़बड़झाले के समाधान पर चर्चा करने के लिए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने फ्रांस के राष्ट्रपति से बात की है और उनके द्वारा इस दिशा में की गई पहल का समर्थन किया है.

पृष्ठभूमि

8 मई, 2019 को ईरान ने घोषणा की थी कि आणविक समझौते में वर्णित 300 किलोग्राम यूरेनियम बेचने के विषय में उसके द्वारा दिए गये वचन को अब वह पूरा नहीं करेगा क्योंकि समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य देशों ने अपने दायित्व पूरे नहीं किये हैं. जुलाई 7 को ईरान ने फिर यह घोषणा की कि यूरेनियम की समृद्धि को 3.67% तक रखने तथा अराक भारी जल रिएक्टर तन्त्र (Arak Heavy Water Reactor Facility) को फिर से बनाने के विषय में आणविक समझौते में उसके द्वारा दिए गये वचनों को भी वह पूरा नहीं करेगा.

ईरान आणविक समझौता क्या है?

  • यह समझौता, जिसे Joint Comprehensive Plan of Action – JCPOA के नाम से भी जाना जाता है, ओबामा के कार्यकाल में 2015 में हुआ थी.
  • इरानियन आणविक डील इरान और सुरक्षा परिषद् के 5 स्थाई सदस्य देशों तथा जर्मनी के बीच हुई थी जिसेP5+1भी कहा जाता है.
  • यह डील ईरान द्वारा चालाये जा रहे आणविक कार्यक्रम को बंद कराने के उद्देश्य से की गई थी.
  • इसमें ईरान ने वादा किया था कि वह कम-से-कम अगले 15 साल तक अणु-बम नहीं बनाएगा और अणु-बम बनाने के लिए आवश्यक वस्तुओं, जैसे समृद्ध यूरेनियम तथा भारी जल के भंडार में भारी कटौती करेगा.
  • समझौते के तहत एक संयुक्त आयोग बनाया गया था जिसमें अमेरिका, इंग्लैंड, रूस, चीन, फ्रांस और जर्मनी के प्रतिनिधि थे. इस आयोग का काम समझौते के अनुपालन पर नज़र रखना था.
  • इस डील के अनुसार ईरान में स्थित आणविक केंद्र अमेरिका आदि देशों की निगरानी में रहेंगे.
  • ईरान इस डील के लिए इसलिए तैयार हो गया था क्योंकि आणविक बम बनाने के प्रयास के कारण कई देशों ने उसपर इतनी आर्थिक पाबंदियाँ लगा दी थीं कि उसकी आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई थी.
  • उल्लेखनीय है कि तेल निर्यात पर प्रतिबंध के कारण ईरान को प्रतिवर्ष करोड़ों पौंड का घाटा हो रहा था. साथ ही विदेश में स्थित उसके करोड़ों की संपत्तियां भी निष्क्रिय कर दी गई थीं.

अमेरिका समझौते से हटा क्यों?

अमेरिका का कहना है कि जो समझौता वह दोषपूर्ण है क्योंकि एक तरफ ईरान को करोड़ों डॉलर मिलते हैं तो दूसरी ओर वह हमास और हैजबुल्ला जैसे आतंकी संगठनों को सहायता देना जारी किये हुए है. साथ ही यह समझौता ईरान को बैलिस्टिक मिसाइल बनाने से रोक नहीं पा रहा है. अमेरिका का कहना है कि ईरान अपने आणविक कार्यक्रम के बारे में हमेशा झूठ बोलता आया है.

अमेरिका के निर्णय पर अन्य देशों और संगठनों की प्रतिक्रिया

  • JCPOA के अन्य भागीदार इस समझौते को भंग करने के पक्ष में नहीं है.
  • केवल दो देशों – सऊदी अरब और इजराइल ने अमेरिका का इस समझौते से पीछे हटने के निर्णय की सराहना की है.
  • अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) का कहना है कि अमेरिका के एकपक्षीय निर्णय से सम्पूर्ण समझौते की नींव ही हिल गई है. यदि अमेरिका इस समझौते से जुड़ा होता तो यह बहुत हद तक सम्भव था कि समझौते के हर-एक बिंदु को अंततः ईरान सहज स्वीकार कर लेता.
  • ट्रांस-पैसिफिक साझेदारी, पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौते और उत्तरी अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौते से अलगाव के बाद, यह निर्णय अमेरिकी विश्वसनीयता को और कम करता है.
  • पेट्रोलियम निर्यातक देशों के संगठन (OPEC) में ईरान तीसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है. इस निर्णय के बाद ईरान की तेल आपूर्ति गिरकर 200,000 bpd और 1 मिलियन bpd के बीच हो सकती है. यह इस पर निर्भर करेगा कि वाशिंगटन के निर्णय का कितने अन्य देश समर्थन करते हैं.
  • तेल की कीमतों में संभावित वृद्धि हो सकती है जो वित्तीय बाजारों में अस्थिरता का कारण बन सकती है क्योंकि यूरोपीय देशों तक 37% तेल आपूर्ति ईरान द्वारा की जाती है. JCPOA के निर्माण के बाद व्यापार सम्बन्धों में कई आयामों का विकास हुआ है. अमेरिका द्वारा समझौते में स्वयं को अलग करना विशेष रूप से यूरोपीय देशों में इसकी विश्वसनीयता में कमी और NATO गठबंधन को कमजोर बना सकता है.
  • यह जनसामान्य के जीवन में अनेक कठिनाइयाँ पैदा करेगा.

भारत पर निर्णय के प्रभाव

तेल की कीमतें : ईरान वर्तमान में भारत का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता देश (इराक के बाद) है और कीमतों में कोई भी वृद्धि मुद्रास्फीति के स्तर और भारतीय रूपये दोनों को भी प्रभावित करेगी.

चाबहार : अमेरिकी प्रतिबंध चाबहार परियोजना के निर्माण की गति को धीमा कर सकते हैं अथवा रोक भी सकते हैं. भारत, बन्दरगाह हेतु निर्धारित कुल 500 मिलियन डॉलर के व्यय में इसके विकास के लिए लगभग 85 मिलियन डॉलर का निवेश कर चुका है, जबकि अफ़ग़ानिस्तान के लिए रेलवे लाइन हेतु लगभग 1.6 अरब डॉलर तक का व्यय हो सकता है.

भारत, INSTC (International North–South Transport Corridor) का संस्थापक है. इसकी अभिपुष्टि 2002 में की गई थी. 2015 में JCPOA पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद ईरान से प्रतिबन्ध हटा दिए गये और INSTC की योजना में तीव्रता आई. यदि इस मार्ग से सम्बद्ध कोई भी देश या बैंकिंग और बीमा कम्पनियाँ INSTC योजना से लेन-देन करती है तथा साथ ही ईरान के साथ व्यापार पर अमेरिकी प्रतिबंधों का अनुपालन करने का निर्णय लेती हैं तो नए अमेरिकी प्रतिबंध INSTC के विकास को प्रभावित करेंगे.


GS Paper 3 Source: The Hindu

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UPSC Syllabus :Inclusive growth and issues arising from it.

Topic : Rediscovering development banks

संदर्भ

भारत में कोई विकास बैंक (development bank) नहीं है. अतः बड़ी-बड़ी निर्माण योजनाओं के लिए वित्त पोषण में समस्या देखी जाती है. अतः दीर्घकालिक वित्त उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सरकार ने एक ऐसे संगठन को स्थापित करने का प्रस्ताव दिया है जो भवन निर्माण और आवास-परियोजनाओं के लिए अधिक से अधिक ऋण मुहैया कराएगा.

इस घोषणा से भारत के वित्तीय तंत्र पर दूरगामी प्रभाव पड़ने की संभावना है. यह एक स्वागत योग्य पहल है, यद्यपि इसकी रूपरेखा को लेकर कुछ शंकाएँ भी हैं.

विकास बैंक क्या होता है?

विकास बैंक उस वित्तीय संस्थान को कहा जाता है जो लम्बे समय तक चलने वाले और कम प्रतिलाभ देने वाले पूँजी-निवेश के लिए दीर्घकालिक ऋण मुहैया करते हैं. ये निवेश शहरी ढाँचा निर्माण, खनन, भारी उद्योग और सिंचाई के क्षेत्र में किये जाते हैं.

विकास बैंकों को सावधिक ऋणदाता संस्थान (term-lending institutions) अथवा विकास वित्त संस्थान (development finance institutions) भी कहा जाता है.

विकास बैंकों की विशेषताएँ

  • ये बैंक समाज को लाभ पहुँचाने वाले दीर्घकालिक निवेशों को प्रोत्साहित करने के लिए बहुधा कम और स्थिर दरों पर ब्याज लेते हैं.
  • ऐसे ऋण देने के लिए विकास बैंकों को अच्छे-खासे वित्त की आवश्यकता होती है. यह वित्त साधारणतः पूँजी बाजार में बहुत बाद की तिथि वाली सिक्यूरिटी निर्गत करके प्राप्त किया जाता है. इन सिक्यूरिटियों को पेंशन, जीवन-बीमा कोषों एवं डाकघर जमा जैसे दीर्घकालिक बचत संस्थान खरीदते हैं.
  • विकास बैंकों को सरकार अथवा अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों का भी समर्थन मिलता है क्योंकि उनके द्वारा किये गये निवेश का सामाजिक लाभ बहुत अधिक होता है और ऐसे निवेश के साथ अनिश्चितताएँ भी जुड़ी होती हैं. सरकार इनकी सहायता करों में छूट देकर और निजी क्षेत्र के बैंकों और वित्तीय संस्थानों को इनके द्वारा निर्गत सिक्यूरिटी में निवेश करने हेतु प्रशासनिक आदेश देकर करती है.

प्रस्तावित विकास बैंक की रूपरेखा क्या हो?

  • भारत में विकास बैंक की स्थापना के पहले यह विचार कर लेना उचित होगा कि इसे वित्त कहाँ से मिलेगा.
  • यदि विदेश से निजी पूँजी आमंत्रित की जाती है तो इसका अर्थ होगा कि पूँजी देने वाली कम्पनियों का इस बैंक पर आंशिक स्वामित्व होगा. अतः ध्यानपूर्वक विश्लेषण के पश्चात् ही इस विकल्प पर निर्णय लिया जाना चाहिए.
  • राजनीतिक और प्रशासनिक नेतृत्व को चाहिए कि वे विकास बैंक के सदृश पूर्व में स्थापित बैंकों, यथा – IFCI, ICICI, IDBI आदि के संचालन में सीखे गये सबकों पर विचार करके ही नए संस्थान को एक दृढ़ नींव प्रदान करें.

GS Paper 3 Source: Indian Express

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UPSC Syllabus : Various Security forces and agencies and their mandate.

Topic : SPG, NSG and other security forces — How India protects its VIPs

संदर्भ

पिछले दिनों पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से विशेष सुरक्षा समूह (SPG) की सुरक्षा वापस ले ली गई.

SPG का इतिहास

  • 1985 के मार्च में गृह मंत्रालय के द्वारा गठित एक समिति के सुझाव पर कैबिनेट सचिवालय के अधीन एक विशेष इकाई का सृजन हुआ. इस इकाई को शुरुआत में विशेष सुरक्षा इकाई कहा जाता था, पर अगले महीने इसका नाम बदलकर विशेष सुरक्षा समूह कर दिया गया.
  • कालांतर में संसद ने विशेष सुरक्षा समूह अधिनियम पारित किया जो जून, 1988 में अधिसूचित हुआ. अधिसूचना में इसका उद्देश्य प्रधानमंत्री की सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए एक सशस्त्र बल का गठन करना बताया गया.
  • अधिसूचना में प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए SPG के द्वारा किये जाने वाले कार्य को इस प्रकार परिभाषित किया गया – सड़क, रेल, विमान, जलयान, पैदल अथवा किसी अन्य परिवहन के साधन से यात्रा करते समय प्रधानमंत्री को निकट से सुरक्षा देना और साथ ही वे जहाँ रुकें, ठहरें, किसी कार्यक्रम में भाग लें तथा घर पर सुरक्षा देना.
  • इस प्रकार SPG मूलतः कार्यरत प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए बना था. आगे चलकर इसका विस्तार करके इसे भूतपूर्व प्रधानमंत्रियों और उनके निकटस्थ परिवारों के सदस्यों की सुरक्षा से भी जोड़ दिया गया. इसके लिए आवश्यक संशोधन राजीव गाँधी की हत्या (मई, 1991) के उपरान्त किया गया था.

सुरक्षा की विभिन्न श्रेणियाँ

SPG के अतिरिक्त देश के विशिष्ट व्यक्तियों (VIP) को अन्य सुरक्षा बलों के द्वारा सुरक्षा दी जाती है. दी गई सुरक्षा का स्तर इस बात पर निर्भर करता है कि सम्बंधित व्यक्ति को कितना खतरा है.

ये स्तर हैं –

  1. सुरक्षा का उच्चतम स्तर Z-प्लस कहलाता है. इसके बाद क्रमशः Z, Y और X श्रेणी का स्थान आता है.
  2. स्तर जितना ऊँचा होगा, सुरक्षा में लगाया गया कार्यबल उतना ही बड़ा होगा.
  3. Z-प्लस में स्वचालित हथियारों के साथ मोटे तौर पर 24 से 36 सुरक्षाकर्मी लगाये जाते हैं. Z श्रेणी में सुरक्षाकर्मियों की संख्या 16 से 20 तक होती है.
  4. जिन विशिष्ट व्यक्तियों को सर्वाधिक खतरा होता है उनके लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) के ब्लैक कैट कमांडो को तैनात किया जाता है.

Prelims Vishesh

Star tortoise, otters get higher protection at CITES :-

  • स्टार कछुए (eochelone elegans), चिकनी चमड़ी वाले उदबिलाव (Lutrogale perspicillata) और छोटे पंजों वाले उदबिलाव (Anoyx cinereus) की सुरक्षा को उत्क्रमित करने के लिए भारत ने CITES को जो प्रस्ताव दिया था, वह अनुमोदित हो गया है तथा इन प्रजातियों को CITES की अनुसूची I में सूचीबद्ध कर लिया गया है.
  • विदित हो कि CITES की अनुसूची I में वे प्रजातियाँ आती हैं जिनपर विलुप्ति का संकट सबसे अधिक होता है. इस सूची के प्रजातियों के वाणिज्यिक व्यापार पर प्रतिबंध होता है. मात्र वैज्ञानिक अथवा शैक्षणिक कारणों से असाधारण स्थिति में इनका व्यापार हो सकता है.

Biometric Seafarer Identity Document (BSID) :-

भारत ने समुद्र यात्रियों के चेहरे से सम्बंधित बायोमेट्रिक डाटा के आधार पर एक बायोमेट्रिक समुद्री यात्री पहचान प्रलेख (Biometric Seafarer Identity Document – BSID) निर्गत किया है और इस प्रकार ऐसा करने वाला वह विश्व का पहला देश बन गया है.


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