कई वर्षों से पूरे विश्व में हवा की गति में गिरावट देखी जा रही थी पर हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि 2010 से वैश्विक हवा की गति में लगातार वृद्धि हो रही है. शोधकर्ताओं ने करीब 9,000 अंतर्राष्ट्रीय मौसम केन्द्रों से डाटा इक्कठा किया और इस निष्कर्ष पर आये कि हवा की गति में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है. मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि वायु की बढ़ती गति के पीछे महत्त्वपूर्ण कारण महासागरीय एवं वायुमंडलीय परिसंचरण के पैटर्न में परिवर्तन है. वैसे देखा जाए तो वायु की गति तेज होना एक अच्छी खबर ही है क्योंकि इससे पवन ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा.
अध्ययन के मुख्य तथ्य
- 2024 तक पवन चक्कियों से उत्पन्न होने वाली नवीकरणीय बिजली की मात्रा प्रति घंटे 3.3 मिलियन KW बढ़ जायेगी (37%).
- ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि वायु की गति बढ़ने से पवन ऊर्जा के उत्पादन में लगभग 37% की वृद्धि हो जायेगी.
- यह भी अनुमान है कि यह वृद्धि अगले 10 सालों तक जारी रहेगी.
पवन की गति में पिछले दशकों में कमी क्यों देखी जा रही थी?
विशेषज्ञों का मानना है कि विश्व-भर में अनगिनत इमारतों के निर्माण और बढ़ते शहरीकरण के चलते पवन की गति में लगातार गिरावट देखी जा रही थी. ये इमारतें हवा के लिए अवरोधक का कार्य कर रही थीं. इन इमारतों के चलते 1980 के बाद से हर दशक में हवा की गति में 2.3 % की दर गिरावट देखी गई.
भारत में पवन ऊर्जा की स्थिति
- भारत में पवन ऊर्जा का विकास 1990 के दशक में शुरू हुआ और पिछले कुछ वर्षों में इसमें काफी वृद्धि हुई है. पवन ऊर्जा क्षमता में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है. भारत सौर एवं सम्पूर्ण अधिष्ठापित ऊर्जा क्षमता के मामले में विश्व में पाँचवे स्थान पर है. अंतर्राष्ट्रीय सौर संघ की स्थापना भारत की प्रमुख भूमिका रही है.
- विदित हो कि भारत में पवन ऊर्जा की कुल उत्पादन क्षमता 35,129 मेगावॉट है.
- केंद्र सरकार ने 2022 तक 1 लाख 70 हजार मेगावाट बिजली अक्षय ऊर्जा से हासिल करने का लक्ष्य रखा है. इसमें सबसे अधिक 1 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा से और 60 हजार मेगावाट पवन ऊर्जा से हासिल करने का लक्ष्य है.
- 2019-20 का लक्ष्य 3000 मेगावाट का रखा गया था, लेकिन अप्रैल से जून 2019 के बीच 742.51 मेगावाट क्षमता के संयंत्र स्थापित किए जा सके हैं.
पवन ऊर्जा उद्योग में आने वाली कठिनाई
- इससे जुड़े उद्योगों की शिकायत रही है कि पवन ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू करने की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि भूमि अधिग्रहण में काफी समय लग जाता है, लेकिन अब सरकार ने इस दिशा में अहम कदम उठाया है जिसके बारे में नीचे हम विस्तार से पढ़ेंगे.
- पवन अक्षय ऊर्जा का एक प्रमुखस्रोत मानी जाती है. लेकिन, पवन-चक्की की टरबाइनें आसपास के क्षेत्रों में पक्षियों के जीवन के लिए खतरा बनकर उभर रही हैं. एक नए अध्ययन में पता चला है कि पवन-चक्कियों के ब्लेड से टकराने के कारण पक्षियों की मौत हो रही है.
नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए निविदा संबंधी दिशा-निर्देशों में संशोधन
ग्रिड से जुड़ी पवन ऊर्जा परियोजनाओं से बिजली की खरीद के लिए शुल्क आधारित प्रतिस्पर्धी निविदा प्रक्रिया के लिए दिशा-निर्देश 8 दिसंबर, 2017 को अधिसूचित किए गए थे. निविदा के अनुभव के आधार पर और हितधारकों के साथ परामर्श के बाद, पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए इन मानक निविदा-प्रक्रिया के दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित संशोधन किए गए:-
- पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की समयसीमा सात महीने से बढ़ाकर निर्धारित कमीशनिंग तिथि, यानी 18 महीने तक कर दी गई है. यह उन राज्यों में पवन ऊर्जा परियोजना डेवलपर्स को मदद करेगा, जहाँ भूमि अधिग्रहण में अधिक समय लगता है.
- पवन ऊर्जा परियोजना की घोषित क्षमता उपयोग घटक (सीयूएफ) के संशोधन की समीक्षा के लिए अवधि को बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है. घोषित सीयूएफ को अब वाणिज्यिक संचालन की तारीख के तीन साल के भीतर एक बार संशोधित करने की अनुमति है, जिसे पहले केवल एक वर्ष के भीतर अनुमति दी गई थी.
- न्यूनतम सीयूएफ के अनुरूप ऊर्जा में कमी पर जुर्माना, अब पीपीए शुल्क का 50 प्रतिशत तय किया गया है, जो कि पावर जेनरेटर द्वारा खरीदकर्ता को भुगतान की जाने वाली ऊर्जा शर्तों में कमी के लिए पीपीए शुल्क है. इसके अलावा, मध्यस्थ खरीदकर्ता द्वारा मध्यस्थ के घाटे को घटाने के बाद अंतिम खरीदकर्ता के लिए जुर्माना निर्धारित किया जाएगा.
- प्रारंभिक भाग के कमीशनिंग के मामलों में, खरीदकर्ता पूर्ण पीपीए शुल्क पर बिजली उत्पादन की खरीद कर सकता है.
- पवन ऊर्जा परियोजना की कमीशनिंग कार्यक्रम को पीपीए या पीएसए के कार्यान्वयन की तारीख से 18 महीने की अवधि के रूप में परिभाषित किया गया है, जो भी बाद में है.
देश में 31.10.2018 तक कुल स्थापित क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा की हिस्सेदारी इस प्रकार है:
स्रोत | स्थापित क्षमता (गीगावॉट) | प्रतिशत |
तापीय | 221.76 गीगावॉट | (63.84%) |
नाभिकीय | 6.78 गीगावॉट | (1.95%) |
पनबिजली | 45.48 गीगावॉट | (13.09%) |
नवीकरणीय | 73.35 गीगावॉट | (21.12%) |
कुल | 347.37 गीगावॉट | (100%) |
संशोधन का उद्देश्य न केवल भूमि अधिग्रहण और सीयूएफ से संबंधित निवेश जोखिमों को कम करना है, बल्कि परियोजना की जल्द शुरूआत के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना भी है. दंड प्रावधानों में शर्तों को हटा दिया गया है और दंड की दर तय कर दी गई है. पीएसए या पीएसए पर हस्ताक्षर करने की तारीख से, परियोजना के कार्यान्वयन की समय सीमा शुरू करने तक, जो भी बाद में हो, पवन ऊर्जा डेवलपर के जोखिम को कम कर दिया गया है.
पवन ऊर्जा उद्योग के विस्तार के परिणामस्वरूप एक दमदार माहौल, परियोजना परिचालन क्षमता और विनिर्माण आधार तैयार हुए हैं. पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए टरबाइन के विनिर्माण के लिए देश में अब अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उपलब्ध है. देश में इस क्षेत्र के सभी प्रमुख वैश्विक कंपनियों की मौजूदगी है. भारत में 12 अलग-अलग कंपनियों द्वारा 24 से अधिक प्रकार के विंड टरबाइन उत्पादन किया जा रहा है. विंड टरबाइन और उसके कलपुर्जों का निर्यात अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, ब्राजील एवं अन्य एशियाई देशों को किया जा रहा है. पवन ऊर्जा क्षेत्र में घरेलू विनिर्माण के साथ करीब 70 से 80 प्रतिशत स्वदेशीकरण को प्राप्त किया जा चुका है.