[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Polity GS Paper 2/Part 14

Sansar LochanGS Paper 2, Sansar Manthan

[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 2

Q1. पंचायती राज को मजबूत बनाने और इसमें कमजोर वर्गों की भागीदारी को बढ़ाने के लिए क्या-क्या किया जाना चाहिए? (250 शब्द)

  • अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है  = Green
  • आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow

Syllabus, GS Paper II : शासन व्यवस्था, पारदर्शिता और जवाबदेही के महत्त्वपूर्ण पक्ष …

उत्तर की रूपरेखा

उत्तर :-

पंचायती राज संस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए और उनके कामकाज में कमजोर तबकों की भागीदारी को और बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि ग्राम पंचायत, पंचायत समिति और जिला परिषद् के स्तरों पर कामकाज का स्पष्ट विभाजन किया जाए. पंचायतों को अपना काम बेहतर ढंग से करने के लिए वित्तीय और प्रशासनिक स्वायत्ता दी जानी चाहिए. उन्हें विकास कार्यक्रम बनाने और लागू करने के लिए पर्याप्त वित्तीय और मानव संसाधन उपलब्ध कराए जाने चाहिए. केंद्र और राज्य सरकारों को पंचायती राज्य सस्थाओं में चुने गये कमजोर तबकों के अशिक्षित प्रतिनिधियों को शिक्षित करने और उनकी प्रशासनिक योग्यता में वृद्धि हेतु हर संभव कदम उठाना चाहिए. इस कार्य में स्वयंसेवी संगठन (SHGs) भी सरकारी प्रयासों में बहुत मददगार साबित हो सकते हैं.

ग्राम सभाएँ पंचायती राज व्यवस्था में विचार-विमर्श का सबसे महत्त्वपूर्ण मंच है. लेखिन देखा गया है कि इनकी बैठकों में महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों की भागीदारी बहुत कम रहती है. इसलिए ग्राम सभा की बैठकें वैसे समय की जानी चाहिए जब महिलाएँ और कमजोर तबकों के सदस्य घर या रोजगार के कामकाज में व्यस्त नहीं रहते हों. ग्राम सभा की बैठक में हिस्सा लेने के लिए समय निकालने से उन्हें अगर कोई आर्थिक नुक्सान होता है तो इसकी भरपाई की व्यवस्था करना एक अच्छा कदम होगा. पंचायत कार्यालयों में साम्प्रदायिक, जातीय और आर्थिक आधार पर कमजोर तबकों के साथ किसी भी तरह के भेदभाव के विरुद्ध सख्ती से निपटा जाना चाहिए. इसके साथ ही ऊँची जातियों के प्रतिनिधियों को इस बात के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे ग्राम सभा की बैठकों में वंचित समुदायों के लोगों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका दे.

निष्कर्ष

पंचायती राज संस्थाएँ अपनी ताकतों और कमजोरियों के साथ बराबरी पर आधारित एक नई सामाजिक व्यवस्था के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान कर रही हैं. इन संस्थाओं ने समाज के सबसे नीचे पायदान पर बड़े समुदायों में शिक्षा और प्रशासनिक दक्षता का प्रसार कर उन्हें सामूहिक कोशिशों के माध्यम से अपने सुनहरे भविष्य के निर्माण के लिए काम करने का आत्मविश्वास दिया है. इन संस्थाओं में अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और महिलाओं की भागीदारी को और सार्थक बनाने की आवश्यकता है ताकि भारत को सही मायनों में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय पर आधारित एक ऐसे आदर्श देश में बदला जा सके जिसमें सभी नागरिकों को बराबरी के अधिकार हासिल हों.

Q2. भारत में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की उद्यमिता संबंधी वर्तमान क्षमता कैसी है और इनका सशक्तीकरण कैसे किया जा सकता है? चर्चा करें. (250 शब्द)

उत्तर :-

भारत उत्साह और साहस से लैस युवाओं का देश है. अगर हम युवाओं के जनसांख्यिकी स्वरूप को देखें, तो इनमें से अधिकतर ग्रामीण इलाकों के वंचित सम्प्रदायों से आते हैं, जो संसाधनों का अभाव वाले माहौल में रहते हैं. 

इन लोगों के अन्दर उद्यमिता के लक्षण हैं, जिन्हें सफल उद्यमी बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया जा सकता है. नए उत्पाद का आविष्कार, नए समाधान और महत्त्वपूर्ण खोज के माध्यम से जटिल सामाजिक समस्याओं को सुलझाने जैसी बातें इन युवाओं को आकर्षित करती हैं. वे समाज में बदलाव का प्रतिनिधि बनने की चाह रखते हैं. इसके लिए उन्हें व्यापार के तौर पर अपने सोच को आगे बढ़ाने के लिए भरोसेमंद समर्थक प्रक्रिया के साथ सही सलाह की आवश्यकता होती है, ताकि वे अपनी सोच को सफल व्यापार में बदल सकें.

हाशिये पर मौजूद लोगों में शिक्षा और कौशल की कमी उनकी राह में बड़ी बाधा है. इसके परिणामस्वरूप उनके पास काम और जिम्मेदारियों को अंजाम देने को लेकर आत्मविश्वास की कमी होती है. विशेषतः महिलाओं में इस तरह के आत्मविश्वास की कमी होती है. उद्यमिता को लेकर प्रेरणा और प्रशिक्षण के साथ कौशल विकास के माध्यम से इन कमियों को दूर किया जा सकत है. युवाओं के बीच आत्मविश्वास पैदा करने और उनका उत्साह बढ़ाने में कार्यशाला और सेमिनार सेशन जांचा-परखा उपाय साबित हुए हैं.

जमीनी-स्तर पर हुए अध्ययनों से पता चलता है कि कच्चे माल की आपूर्ति में बाधा, अपर्याप्त पूंजी और बाजार ढाँचा की कमी आदि ग्रामीण उद्यमी के लिए प्रमुख बाधा की तरह हैं. साथ ही, शिक्षा के अभाव के कारण भी ग्रामीण उद्यमियों को विभिन्न सुविधाओं के विषय में जानकारी नहीं मिल पाती है और उनके पास काबलियत का अभाव होता है. लिहाजा, वे अक्सर स्वयं को स्वरोजगार के काम में प्रवेश करने से दूर रखते हैं और दिहाड़ी मजदूर की तरह काम करते रहते हैं. ग्रामीण उद्यमिता से जुड़ी इन संभावनाओं और चुनौतियों के मद्देनज़र उद्यमिता का ग्रामीण ढाँचे के संदर्भ में आकलन आवश्यक है. सम्बंधित इलाके कि प्रकृति और आवश्यकताओं के अनुसार उद्यमिता के लिए उचित विकास कार्यक्रम तैयार करने की खातिर बाजार की आंतरिक परिस्थितियों और व्यापक नीतिगत तन्त्र पर उसकी निर्भरता के मध्य अंतर-संबंधों को समझना जरूरी है. 


“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

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