बटलर समिति के बारे में आप क्या जानते हैं? इस समिति की सिफारिशों के बारे में संक्षिप्त चर्चा करें.
उत्तर :-
भारत सरकार अधिनियम, 1919 ई० (मांटेग्यू चेम्सफोर्ड रिफार्म्स ऐक्ट) में एक नरेंद्रमंडल (Chamber of Princes) की योजना बनाई गई. फरवरी, 1921 में इसका उद्घाटन हुआ. नरेंद्रमंडल के प्रावधानों के अनुसार देशी रियासतों को तीन श्रेणियों में विभक्त कर उनके साथ संबंध निश्चित किए गए. नरेंद्रमंडल के उद्घाटन के समय ब्रिटिश ताज ने देशी राजाओं के विशेषाधिकारों और मान-सम्मान की सुरक्षा के आश्वासन को दुहराया. नरेंद्रमंडल ने देशी रियासतों को ब्रिटिश सरकार के और नजदीक ला दिया. नरेंद्रमंडल सिर्फ एक परामर्शदात्री संस्था थी, इसका किसी राज्य के आंतरिक मामले से कोई भी संबंध नहीं था. नरेंद्रमंडल ने विवादास्पद छोटे-छोटे प्रश्नों को तो सुलझा दिया, परंतु संप्रभुता की सही व्याख्या नहीं हो सकी. लॉर्ड रिडिंग के 1926 ई० के वक्तव्य ने देशी शासकों को प्रेरित किया कि वे सरकार के साथ अपने संबंधों को स्पष्ट करवाएँ. ऐसी माँग लॉर्ड इरविन से की गई. फलतः, 1927 ई० में सरकार ने दोनों शक्तियों के मध्य संबंध सुनिश्चित करने के लिए बटलर समिति नियुक्त की.
इस कमिटी ने निम्नलिखित सिफारिशें प्रस्तुत की—
- सर्वश्रेष्ठता सर्वश्रेष्ठ रहनी चाहिए, इसे बदलती हुई परिस्थितियों के अनुसार अपना कर्तव्य निभाना चाहिए. अस्पष्ट मामलों में रीति-रिवाजों के अनुसार निर्णय होने चाहिए.
- देशी राज्यों के साथ संबंध के लिए सपरिषद् गवर्नर जनरल नहीं, बल्कि वायसराय ब्रिटिश सम्राट् का प्रतिनिधि माना जाए.
- देशी नरेशों की सहमति के बिना ब्रिटिश सरकार और देशी राज्यों के संबंध किसी ऐसी भारतीय सरकार को हतस्तांतरित नहीं किए जाएँ जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी हो.
- देशी राज्यों की परिषद् बनाने की योजना रद्द कर दी जाए.
- किसी राज्य के प्रशासन में हस्तक्षेप का अधिकार वायसराय के जिम्मे सुरक्षित रहे.
- देशी रियासतों एवं ब्रिटिश भारत में होनेवाले मतभेदों को सुलझाने के लिए समितियाँ नियुक्त हों.
- यह व्यवस्था आर्थिक मामलों के संबंध में भी हो.
- राजनीतिक पदाधिकारियों की नियुक्ति इंगलैंड में शिक्षाप्राप्त व्यक्तियों में से की जाए और उनकी शिक्षा की अलग व्यवस्था हो.
देशी शासकों एवं राष्ट्रीय नेताओं ने इन सिफारिशों की कड़ी आलोचना की. सी० वाई० चिंतामणि के शब्दों में, “बटलर कमिटी अपने जन्म से बुरी थी, इसकी नियुक्ति का समय बुरा था, इसकी जाँच-पड़ताल की शर्तें बुरी थीं, इसमें काम करनेवाले लोग बुरे थे और जाँच करने का इसका ढंग बुरा था. इसकी रिपोर्ट की दलीलें बुरी थीं तथा इसके निष्कर्ष बुरे थे.”
यह तो सिर्फ मॉडल उत्तर था, यदि विस्तारपूर्वक जानना हो तो क्लिक करें > बटलर समिति