सामान्य अध्ययन पेपर – 1
“प्राचीन भारतीय कला समृद्ध थी” – विभिन्न कालों में इसके विकास की चर्चा करते हुए इस कथन की पुष्टि करें. (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.
सवाल का मूलतत्त्व
सवाल में एक कथन है, जिसकी हमें पुष्टि करनी है इसलिए हमें इस कथन को अपने उत्तर में हर हालत में सही ठहराना होगा. दूसरे शब्दों में हमें अपने उत्तर में प्राचीन भारत की कलाओं के सकारात्मक पहलू को रखना होगा. प्रश्न में विभिन्न कालों का जिक्र है इसलिए हमारे द्वारा हड़प्पा से शुरू करते हुए मौर्य, कुषाण, गुप्त काल के विषय में यदि थोड़ी-थोड़ी जानकारी दे दी जाए तो वह पर्याप्त होगी. हो सके तो दक्षिण के राजाओं के समय कला का स्थान क्या था, उसका जिक्र हो तो और भी अच्छा है. पर विजयनगर साम्राज्य कालीन तथ्यों को रखने की भूल न करे क्योंकि इसके देने के बाद आपका उत्तर प्राचीन भारत से सम्बंधित नहीं रहेगा.
उत्तर
सैन्धव-सभ्यता का क्षेत्र काफी विस्तृत होने के कारण उत्खनन के परिणामस्वरूप मूर्तियों के उदाहरण प्रचुर संख्या में प्राप्त हुए हैं. जहाँ तक वास्तुकला का सम्बन्ध है, हड़प्पा संस्कृति की नगर योजना आज भी नगर निर्माण के लिए “आदर्श” है. उनकी जल-निकास योजनाएँ प्रशंसनीय थीं. वह लोग चित्रकला, मूर्तिकला व नृत्यकला से भी परिचित थे.
अशोक-काल
अशोक के काल में चमकदार पोलिश करने की कला का विकास हुआ. उसके द्वारा बनवाए स्तम्भ अपनी चमकदार पोलिश के लिए बहुत लोकप्रिय हैं. स्तम्भों पर पशुओं की खासकर शेर की मूर्तियाँ बनाई गई हैं. अशोक के सारनाथ स्तम्भ का शीर्ष भारत सरकार ने राष्ट्रीय चिन्ह के रूप में अपनाया है.
कुषाण युग
कुषाण युग में यूनानी कला से प्रभावित होकर भारत में गांधार कला का विकास हुआ. इस कला में शिल्प का भाव तो भारतीय ही रहा पर सजावट और अवयव यूनानी शैली के हैं. इसी काल में मथुरा शैली में भगवान् बुद्ध की सुन्दर मूर्तियाँ बनी हैं.
गुप्त काल
गुप्त काल में कला के हर पक्ष ने उन्नति की. इस काल की चित्रकारी के नमूने अजंता की गुफाओं में पाए जाते हैं. इन चित्रों में जीवन तथा सौन्दर्य है. इन चित्रों के रंग इतने उत्कृष्ट हैं कि संसार में यूरोपीय पुनर्जागरण से पूर्व देखने को नहीं मिलते. इस काल में अनेक मन्दिर और मूर्तियाँ बनाई गईं.
जबलपुर का विष्णु मंदिर तथा बोध गया का बुद्ध मंदिर विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. सारनाथ में बैठे हुए बुद्ध की मूर्ति, मथुरा में खड़े हुए बुद्ध की मूर्ति और बरमिन्घम संग्राहलय में रखी बुद्ध की ताम्बे की मूर्ति बहुत सुन्दर बन पड़ी हैं.
प्राचीन काल में संगीत कला के विभिन्न अंगों जैसे गायन-वादन और नृत्य का विकास हुआ. धातु कला में भी भारत ने अत्यधिक प्रगति की. इस्पात बनाने की कला सबसे पहले भारत में विकसित हुई. भारतीय इस्पात का अन्य देशों में निर्यात चौथी शताब्दी ई.पू. से होने लगा. विश्व का कोई अन देश इस्पात की वैसी तलवारें नहीं बना सकता था जैसी भारतीय शिल्पकार बनाते थे. दिल्ली की महरौली में स्थित गुप्तकालीन लौह स्तम्भ अपनी धातु के लिए विश्व-प्रसिद्ध है.
दक्षिण भारत के नरेश कला-प्रेमी थे. चालुक्य नरेशों ने पहाड़ियों की गुफाओं में मंदिर का निर्माण कराया. एलोरा की अधिकतर मूर्तियों का श्री चालुक्य और राष्ट्रकूट नरेशों को जाता है.
भारतीय कला मध्य एशिया, चीन और दक्षिण पूर्व एशिया में फैली. गांधार शैली के अधिकतर अवशेष अफगानिस्तान में मिलते हैं. दक्षिण भारत के मंदिरों ने दक्षिण पूर्व एशिया की मंदिर निर्माण-कला को प्रभावित किया. उदाहरण के लिए, जावा का बोरोबुदर मंदिर और कम्बोडिया में अंगकोरवाट मंदिर पूरी तरह भारतीय कला से प्रभावित हैं. हमारे देश की चित्रकला के प्रभाव चीन और श्रीलंका में पाए जाते हैं.
सामान्य अध्ययन पेपर – 1
गुप्तकाल में साहित्य के क्षेत्र में हुई प्रगति का वर्णन करें. (250 words)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक ,,,,,,,के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.
सवाल का मूलतत्त्व
सवाल काफी सटीक है इसलिए जब तक आपको तथ्यों का पता न हो, इसका उत्तर लिख पाना कठिन है. इसमें आपको गुप्तकाल के रचनाकारों द्वारा रची विभिन्न रचनाओं का उल्लेख करना पड़ेगा.
उत्तर
इतिहासकार वार्नेट के अनुसार “प्राचीन भारत में गुप्तकाल का वही महत्त्व है जो यूनान के इतिहास में पेरिक्लीयन (Periclean) युग का.” गुप्तकाल में लम्बी अवधि तक सुख और शांति का वातावरण था जिसके चलते यहाँ साहित्य, कला और विज्ञान की उन्नति अपनी चरम सीमा तक पहुँच गयी. इस काल में उच्च कोटि के काव्य ग्रन्थ, नाटक तथा लेख लिखे गये. गुप्तकाल में कवियों को राज्य की ओर से संरक्षण भी प्राप्त था.
कवि कालिदास गुप्तकाल के सबसे महान् कवि तथा नाटककार थे. इनकी कृतियाँ आज भी सर्वप्रिय और प्रसिद्ध हैं. कालिदास की प्रमुख कृतियाँ “अभिज्ञानशाकुंतलम्”, “मेघदूतम्”, “कुमारसंभवम्” आदि हैं.
विषाखदत्त उस काल के प्रसिद्ध नाटककार थे. जिनका “मुद्राराक्षस” नामक नाटक बहुत प्रसिद्ध है. इस नाटक में उन षडयंत्रों को बताया गया है, जिनके द्वारा चाणक्य ने चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध के सिंहासन पर बैठाया था. इनका लिखा दूसरा मुख्य नाटक “देवीचन्द्रगुप्तम्” है.
गुप्तकाल में रचे गये नाटकों के सम्बन्ध में दो बातें उल्लेखनीय हैं. प्रथम वे सब सुखान्त नाटक हैं. हम इस काल में कोई भी दुखांत नाटक नहीं पाते. द्वितीय उच्च और निम्न वर्गों के पात्र एक ही भाषा नहीं बोलते थे.
स्वयं समुद्रगुप्त एक प्रतिभाशाली कवि था. इस सम्राट ने “कविराज” की उपाधि धारण की. हरिषेण समुद्रगुप्त का मंत्री तथा कवि था जिसके द्वारा रचित प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त की विजय-गाथाओं का वर्णन है. इस प्रशस्ति की भाषा और शैली अत्यंत रोचक हैं. विष्णु शर्मा गुप्तकाल के एक महान् कथाकार थे. उन्होंने पञ्चतन्त्र नामक कहानियों की विश्व-प्रसिद्ध पुस्तक लिखीं. भारतीय भाषाओं के साथ-साथ इस पुस्तक का अनुवाद अन्य विदेशी भाषाओं में भी हुआ.
इस काल में धार्मिक साहित्य भी बड़ी संख्या में लिखे गये. दो महाकाव्य रामायण और महाभारत, अंतिम तौर पर संभवतः चौथी शताब्दी में संकलित किये गये थे. सभी पुराणों को अंतिम रूप गुप्तकाल में ही दिया गया. गुप्तकाल में पाणिनि और पतंजलि को आधार बनाकर संस्कृत व्याकरण विकसित हुआ. यह काल अमरसिंह द्वारा अमरकोश के संकलन के लिए विशेष रूप से स्मरणीय है. अमरसिंह चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार का एक रत्न था.
कुल मिलाकर, गुप्तकाल में एक अलंकृत भाषा-शैली का विकास हुआ जो पुरानी सरल संस्कृत से भिन्न थी. इस काल से लेकर आगे तक हम गद्य की अपेक्षा पद्य पर अधिक जोर पाते हैं.
“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan