[संसार मंथन] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Culture & Heritage GS Paper 1/Part 4

Sansar LochanCulture, GS Paper 1, History, Sansar Manthan

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

कला को परिभाषित करते हुए उसके प्रकारों का उल्लेख करें. (250 words) 

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.

सवाल का मूलतत्त्व

कला को तो आप परिभाषित अपने शब्दों में सकते हैं पर यदि विभिन्न विद्वानों का कला के विषय में क्या राय है, यदि आप अपने उत्तर में संलग्न करते हैं तो आपके उत्तर में गरिमा आएगी.

कला के प्रकार से तो आप भली-भाँति परिचित होंगे जैसे मूर्तिकला, चित्रकला आदि. पर आपका उत्तर औरों से अलग तभी होगा जब आप विभिन्न कलाओं को इस श्रेणी में बाँट देंगे – i) वस्तु, रूप अथवा तत्त्व के आधार पर  ii) प्रयुज्य पदार्थ के आधार पर iii) निमार्ण शैली के आधार पर

उत्तर

क्षेमराज द्वारा रचित शिवसूत्र विमर्शिणी में कला को वस्तु का रूप सँवारने वाली कहा है – कलयति स्वरूपं आवेशयति वस्तूनि वा. पश्चिम के विद्वानों ने कला की विभिन्न परिभाषाओं को हमारे समक्ष परोसा है. गोथे के अनुसार कला सत्य का एक रूप है. दूसरी ओर माइकल एंजलो का कहना है कि सच्ची कलाकृति दैवीय पूर्णता की प्रतिमूर्ति होती है (The true work of art is but a shadow of divine perfection.” हर्बर्ट रीड के विचारानुसार कला विचार-अभिव्यक्ति का एक माध्यम है (Art is a mode of expression).

डेकेस का विचार है कि वास्तविक कला वही है जो हमारे भावों को अभिव्यक्त करने में सक्षम है. उधर कुछ कला-विचारक भाव और रूप के समन्वय को ही कला मानते हैं. परन्तु प्रसिद्ध कला-समीक्षक ठाकुर जयदेव सिंह कला में विषय और शैली का सुसंघटित समन्वयन अनिवार्य मानते हैं. उनका कहना है कि कला के लिए केवल आकृति का ही नहीं अपितु सवेंदनशीलता से परिपूरित आकृति का होना असली कला है. वस्तुतः वे कला में संस्कृति, ज्ञान, भाव और कर्म का सामंजस्य स्वीकार करते हैं.

मूलतः किसी भी कार्य को भली-भाँति करने की प्रक्रिया ही कला है. उदाहरण के लिए मूर्ति बनाना, चित्र बनाना, भवन या मंदिर का निर्माण करना, गीत गाना, काव्य की रचना करना आदि-आदि. यहाँ भली-भाँति शब्द ध्यान देने योग्य है. गीत गाना कला तब ही कहा जायेगा जब गीत सुर में हो और लय-तान के साथ गाया जाए. ठीक उसी प्रकार काव्य, नाटक, चित्र, मूर्ति आदि से सम्बंधित प्रक्रिया कला की परिधि में तभी आएगी जब वह भली-भाँति संपन्न हो अर्थात् काव्य, नाटक, चित्र अथवा मूर्ति में अर्थ, रस, भाव और रूप का सुन्दर निष्पादन हो.

कला के प्रकार

ज्यादातर जिस वस्तु, रूप अथवा तत्त्व का निर्माण किया जाता है, उसी के नाम पर उस कला का प्रकार जाना जाता है, जैसे –

  1. वास्तुकला या स्थापत्य कला – अर्थात् भवन-निर्माण कला जैसे दुर्ग, प्रासाद, मंदिर, स्तूप, चैत्य, मकबरे आदि.
  2. मूर्तिकला – पत्थर या धातु के बनी मूर्तियाँ.
  3. चित्रकला – भवन की भित्तियों, छतों या स्तम्भों पर अथवा वस्त्र, भोजपत्र या कागज़ पर अंकित चित्र.
  4. मृदभांडकला – मिट्टी के बर्तन.
  5. मुद्राकला – सिक्के या मोहरें.

कभी-कभी जिस पदार्थ से कलाकृतियों का निर्माण किया जाता है उस पदार्थ के नाम पर उस कला का प्रकार जाना जाता है, जैसे –

  1. प्रस्तरकला – पत्थर से गढ़ी गई आकृतियाँ
  2. धातुकला – काँसे, तांबे अथवा पीतल से निर्मित मूर्तियाँ
  3. दंतकला – हाँथी के दांतों से बनाई गई कलाकृतियाँ
  4. मृत्तिका कला – मिट्टी से बनाई गई कलाकृतियाँ या खिलौने

मूर्तिकला भी अपनी निर्माण शैली के आधार पर दो प्रकार की होती है जैसे –

  1. मूर्तिकला – जिसमें चारों तरफ से तराशकर मूर्ति को एक विशिष्ट रूप दिया जाता है. ऐसी मूर्तियों को आगे, पीछे या चारों ओर से देखा जा सकता है.
  2. उत्कीर्ण कला अथवा भास्कर्य कला – इसके अंतर्गत पत्थर, चट्टान, धातु अथवा काष्ठ के फलक पर उकेर कर रूपांकन किया जाता है. किसी भवन या मन्दिर की दिवार, खम्भे अथवा भीतरी छत पर उत्कीर्ण मूर्तियों का केवल अग्रभाग ही देखा जा सकता है.
  3. हाई रिलीफ (High Reliefs) – इसके अंतर्गत आकृति को गहराई से तराशा जाता था ताकि आकृतियों में ज्यादा से ज्यादा उभार आ सके और वे जीवंत हो सकें.
  4. लो रिलीफ (Low Reliefs) – इसमें आकृति को हल्के से तराशा जाता जाता जो आकृति में चपटापन लाता था.

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

ललित कला के विषय में आप क्या जानते हैं? भाषा-ज्ञान किस प्रकार कला के समक्ष मूक नजर आता है, स्पष्ट करें. (250 words) 

यह सवाल क्यों?

यह सवाल UPSC GS Paper 1 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –

“भारतीय संस्कृति में प्राचीन काल से आधुनिक काल तक के कला के रूप, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू शामिल होंगे”.

सवाल का मूलतत्त्व

ललित कला की परिभाषा और प्रकार लिखें. प्रश्न का जो दूसरा भाग है उसमें कला को भाषा से श्रेष्ठ बताया गया है. इसलिए उत्तर में भाषा Vs कला का जिक्र करते हुए आप यह चर्चा करें कि किस प्रकार भाषा कला के सामने कमजोर या बेबस नजर आती है.

उत्तर

प्राचीन भारत में 64 कलाओं की गणना मुख्य रूप से की गई थी. आगे चलकर संभवतः गुप्तकाल में इन सभी कलाओं से केवल कुछ ऐसी कलाओं की गणना पृथक रूप से की जाने लगी जिनमें लालित्य था और इसलिए इन्हें ललित कला (fine arts) कहा गया.

ललित कलाएँ रस और भाव-प्रधान होती हैं जो मनुष्य में उदात्त भावनाओं का सृजन करती हैं. ललित कला के निम्नलिखित प्रकार हैं –

  1. काव्यकला
  2. संगीत कला
  3. वास्तुकला या स्थापत्य कला
  4. मूर्ति कला
  5. चित्रकला

इनमें काव्य कला अर्थ-प्रधान, संगीत कला ध्वनि-प्रधान और अन्य कलाएँ रूप-प्रधान होती हैं. भारत में ललित कलाओं को सौन्दर्य एवं आनंद के अनुभव तथा शक्ति के संवार्धन का माध्यम माना गया था, न कि कुत्सित भावों एवं अंधविश्वासों का साधन.

कला का महत्त्व

विचारों का आदान-प्रदान मनुष्य की मूलभूत प्रवृत्ति रही है. इसी प्रवृत्ति के फलस्वरूप मनुष्य द्वारा बोली जाने वाली विभिन्न भाषाओं का जन्म हुआ. परपस्पर बोलकर या बातचीत करके विचारों का आदान-प्रदान करना संभव है. परन्तु एक क्षेत्र/देश की भाषा जब दूसरे क्षेत्र/देश की भाषा से जब अलग होती है तो वे दोनों क्षेत्र आपस में विचारों का आदान-प्रदान करने में असक्षम हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में भाषा के ज्ञान के बावजूद मनुष्य के विचारों का सार्वभौमिक आदान-प्रदान असंभव प्रतीत होता है.

भाषा की इस कमी को कला पूरा करती है. मनुष्य ने अपने मन में उठने वाले विचारों को कला के जरिये जो साकार या मूर्त रूप प्रदान किया, वह देश-काल की सभी सीमाओं को पार कर के सभी के लिए समान रूप से ग्रहण कर लिया गया. चित्रकला या मूर्तिकला में अंकित पशु-पक्षी, फूल-पत्ते आदि संसार के किसी कोने में बैठे व्यक्ति को उसी प्रकार रोचक प्रतीत होता है जैसा किसी अन्य स्थान में बैठे व्यक्ति को. लोग विभिन्न कलाकृतियों में समाविष्ट विभिन्न भावों – हास्य, उल्लास, क्रोध, दुःख – से सहज रूप से परिचित हो जाते हैं.

इस प्रकार विचारों के आदान-प्रदान हेतु जहाँ मनुष्य की भाषा का प्रभाव-क्षेत्र सीमित है, दूसरी ओर कला का प्रभाव-क्षेत्र असीमित है और समान रूप से ग्राह्य है.

“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan

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