Q1.सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारणों का उल्लेख करते हुए इसके परिणामों की भी संक्षिप्त रूप से व्याख्या कीजिए.
उत्तर:
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण
इस आन्दोलन को शुरू करने के कारणों को हम संक्षेप में निम्न रूप से रख सकते हैं-
- ब्रिटिश सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को अस्वीकृत कर भारतीयों के लिए संधर्ष के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग नहीं छोड़ा. उनके पास संघर्ष के अलावा और कोई चारा नहीं था.
- देश की आर्थिक स्थिति शोचनीय हो गयी थी. विश्वव्यापी आर्थिक मंदी से भारत भी अछूता नहीं रहा. एक तरफ विश्व की महान आर्थिक मंदी ने, तो दूसरी तरपफ सोवियत संघ की समाजवादी सफलता और चीन की क्रान्ति के प्रभाव ने दुनिया के विभिन्न देशों में क्रान्ति की स्थिति पैदा कर दी थी. किसानों और मजदूरों की स्थिति बहुत ही दयनीय हो गयी थी. फलस्वरूप देश का वातावरण तेजी से ब्रिटिश सरकार विरोधी होता गया. गांधीजी ने इस मौके का लाभ उठाकर इस विरोध को सविनय अवज्ञा आन्दोलन की तरफ मोड़ दिया.
- भारत की विप्लवकारी स्थिति ने भी आन्दालेन को शुरू करने को प्रेरित किया. आंतकवादी गतिविधियाँ बढ़ रही थीं. ‘मेरठ षड्यंत्र केस’ और ‘लाहौर षड्यंत्र केस’ ने सरकार विरोधी विचारधाराओं को उग्र बना दिया. किसानों, मजदूरों और आंतकवादियों के बीच समान दृष्टिकोण बनते जा रहे थे. इससे हिंसा और भय का वातावरण व्याप्त हो गया. हिंसात्मक संघर्ष की संभावना अधिक हो गयी थी.
- सरकार राष्ट्रीयता और देश प्रेम की भावना से त्रस्त हो चुकी थी. अतः वह नित्य दमन के नए-नए उपाय थी. इसी सदंर्भ में सरकार ने जनवरी 1929 में ‘पब्लिक सफ्तेय बिल’ या ‘काला काननू’ पेश किया, जिसे विधानमडंल पहले ही अस्वीकार कर चुका था. इससे भी जनता में असंतोष फैला.
- 31 अक्टूबर, 1929 को वायसराय लार्ड इर्विन ने यह घोषणा की कि – “मुझे ब्रिटिश सरकार की ओर से घोषित करने का यह अधिकार मिला है कि सरकार के मतानुसार 1917 की घोषणा में यह बात अंतर्निहित है कि भारत को अन्त में औपनिवेशिक स्वराज प्रदान किया जायेगा.” लॉर्ड इर्विन की घोषणा से भारतीयों के बीच एक नयी आशा का संचार हुआ. फलतः वायसराय के निमंत्रण पर गाँधीजी, जिन्ना, तेज बहादुर सप्रु, विठ्ठल भाई पटेल इत्यादि कांग्रेसी नेताओं ने दिल्ली में उनसे मुलाक़ात की. वायसराय डोमिनियन स्टटे्स के विषय पर इन नेताओं को कोई निश्चित आश्वासन नहीं दे सके. दूसरी ओर, ब्रिटिश संसद में इर्विन की घोषणा (दिल्ली घोषणा पत्र) पर असंतोष व्यक्त किया गया. इससे भारतीय जनता को बड़ी निराशा हुई और सरकार के विरुद्ध घृणा की लहर सारे देश में फैल गयी.
- उत्तेजनापूर्ण वातावरण में कांग्रेस का अधिवेशन दिसम्बर 1929 में लाहौर में हुआ. अधिवेशन के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू थे जो युवक आन्दोलन और उग्र राष्ट्रवाद के प्रतीक थे. इस बीच सरकार ने नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार नहीं किया था. महात्मा गांधी ने राष्ट्र के नब्ज को पहचान लिया और यह अनुभव किया कि हिंसात्मक क्रान्ति का रोकने के लिए ‘सविनय अवज्ञा आन्दालेन’ को अपनाना होगा. अतः उन्होंने लाहौर अधिवेशन में प्रस्ताव पेश किया कि भारतीयों का लक्ष्य अब ‘पूर्ण स्वाधीनता’ है न कि औपनिवेशिक स्थिति की प्राप्ति, जो गत वर्ष कलकत्ता अधिवेशन में निश्चित किया गया था.
यद्यपि सविनय अवज्ञा आन्दोलन अपने स्वतन्त्रता-प्राप्ति के उद्देश्य में असफल रहा, तथापि इसके महत्त्वपूर्ण परिणाम हुए-
(1) इसने देश को नवीन शक्ति प्रदान की और राष्ट्रीय आन्दोलन को गतिशील बनाया.
(2) इसने अहिंसात्मक आन्दोलन की उपयोगिता सिद्ध की.
(3) इससे इंग्लैण्ड और भारत के सम्बन्ध में मोड़ आया और अब इंग्लैण्ड के लिये यह सम्भव नहीं था कि वह काँग्रेस की उपेक्षा कर सके.
(4) सरकार की दमनात्मक नीति असफल सिद्ध हुई और राष्ट्रीय आन्दोलन शक्तिशाली बना.
(5) इस आन्दोलन में महिलाओं, युवकों, छात्रों , कृषकों , श्रमिकों ने व्यापक रूप से योगदान किया था. इससे काँग्रेस का सामाजिक आधार व्यापक हुआ.
(6) इससे संवैधानिक सुधारों को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ.
(7) गाँधीजी को भारत का सर्वोच्च नेता स्वीकार किया गया.
Q2. क्रांतिकारी आन्दोलन क्यों असफल रहा? अपना विचार प्रकट कीजिए.
उत्तर:
क्रान्तिकारियों ने भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन को एक नैतिक आदर्श और गौरव प्रदान किया लेकिन वह स्वतंत्रता के मूल लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल रहे. उनकी असफलता के कारण निम्नलिखित थे –
- क्रान्तिकारियों के पास किसी केन्द्रीय संगठन का अभाव था. अतः इनकी कार्यवाहियाँ भी संगठित रूप से संचालित नहीं हो सकीं.
- क्रान्तिकारियों का आन्दोलन सिर्फ नवयुवकों तक ही सीमित था. इसका प्रसार जनता तक नहीं हो सका.
- उच्च और मध्यम वर्ग के लोगों ने क्रान्तिकारियों का विरोध किया. यह लोग संवैधानिक उपायों में विश्वास करते थे.
- सरकार द्वारा क्रान्तिकारियों को घोर यातनाएँ दी गईं. उन्हें मृत्युदण्ड या देश निर्वासन की सजाएँ दी जाती थीं.
- क्रान्तिकारियों के पास पर्याप्त अस्त-शस्त्र नहीं थे. वे इनकी पूर्ति डाके डालकर करते थे.
- क्रान्तिकारी कांग्रेस का समर्थन प्राप्त करने में भी असफल रहे.
- गाँधीजी के सत्याग्रह आन्दोलन से जनता गहरे रूप से प्रभावित रही. इसकी उनकी लोकप्रियता के कारण क्रान्तिकारी आन्दोलन का प्रभाव समाप्त हो गया..
यह सच है कि क्रांतिकारी जन आन्दोलन को जन्म देने में विफल रहे, परन्तु राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन में उनका योगदान अमूल्य है. उनके बलिदानों से जनता को प्रेरणा प्राप्त हुई और राष्ट्रीय चेतना का संचार हुआ.