सामान्य अध्ययन पेपर – 2
“भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है, परन्तु उसकी आत्मा एकात्मक है.” स्पष्ट करें. (250 शब्द)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संविधान – ऐतिहासिक अधिकार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना”.
सवाल का मूलतत्त्व
प्रश्न टेढ़ा है. इसलिए इस प्रश्न का उत्तर देते समय आपको तो पहले यह जानना होगा कि संघात्मक और एकात्मक स्वरूप में क्या अंतर है? क्या आपको लगता है कि केंद्र सरकार को राज्य सरकार से अधिक शक्तियाँ प्राप्त है? क्या केंद्र सरकार ही हमारे देश का सर्वेसर्वा है? यदि आप ऐसी सोच रखते हैं तो आपके अनुसार हमारा देश एक एकात्मक राज्य है. दूसरी तरफ यदि आप सोचते हैं कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों की महत्ता हमारे देश में एक समान है तो आपके अनुसार हमारा देश संघात्मक है. आपके अनुसार ही क्या…हमारे संविधान के अनुसार भी हमारा देश संघात्मक है.
पर प्रश्न में यह एकात्मक आत्मा वाली बात कहाँ से आ टपकी? जब संविधान में लिखा हुआ ही है कि हमारे संविधान का स्वरूप संघात्मक है तो फिर यह एकात्मक आत्मा के बारे में चर्चा ही क्यों करना? क्या हमारे संविधान में ऐसा कुछ प्रावधान है कि जिससे राज्य सरकार एक साइड हीरो की तरह नज़र आता हो और मेन हीरो केंद्र सरकार हो? क्या संविधान में कुछ ऐसा उल्लिखित है जिसमें केंद्र सरकार को कहीं न कहीं सर्वोपरि दिखाया गया हो? यदि हाँ तो फिर हम संघात्मक राज्य कैसे हैं? सिर्फ बोलने के लिए हैं?
इसी की चर्चा आपको अपने उत्तर में करनी है. क्या दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार ही पूरे देश को चला रही है या राज्यों की भी कोई भूमिका या अस्तित्व है?
ध्यान रहे कि प्रश्न में स्पष्ट कर दिया गया है कि भले ही हमारे संविधान का स्वरूप संघात्मक है….पर असल जीवन में इसकी आत्मा एकात्मक ही है यानी केंद्र सरकार को अधिकांश मुख्य शक्तियाँ प्राप्त हैं. चलिए उत्तर में देखते हैं …
उत्तर थोड़ा लम्बा होने वाला है. 250 शब्दों में छोटा करना आपका काम है. मैं सिर्फ आपको डिटेल बता डेटा हूँ, आप संक्षिप्त खुद करने का प्रयास करें.
उत्तर
भारतीय संविधान का स्वरूप संघात्मक है या एकात्मक – इसे समझने के लिए संघात्मक और एकात्मक राज्यों के मुख्य लक्षणों का ज्ञान आवश्यक है. प्रो. डायसी के अनुसार, संघात्मक राज्य के निम्नलिखित लक्षण हैं –
- एक लिखित, निश्चित और स्पष्ट संविधान हो.
- संविधान सर्वोच्च अथवा सार्वभौमिक परिवर्तनशील हो.
- संघ सरकार और संघान्तरित राज्यों की सरकारों के बीच अधिकारों का विभाजन हो.
- एक स्वतंत्र न्यापालिका हो, जिसमें संविधान का संरक्षण निहित हो.
ऊपर कथित प्रायः सभी लक्षण भारतीय संविधान में दिखाई पड़ते हैं. यहाँ भी एक लिखित, निश्चित और स्पष्ट संविधान है, जो अपरिवर्तनशील है अर्थात् उसमें संशोधन लाने के लिए एक विशेष विधि है. (क्या विधि है यह जानने के लिए >> click me)
संविधान की सर्वोच्चता मान ली गई है अर्थात् संविधान के विरुद्ध कोई कानून अवैध है. संघ सरकार और राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र विभाजित कर दिए जाते हैं. इसी उद्देश्य से तीन सूचियाँ बनाई गई हैं –
- संघ सूची
- राज्य सूची
- समवर्ती सूची
एक स्वतंत्र न्यापालिका की भी स्थापना की गई है. भारत के सर्वोच्च न्यायालय में भारतीय संविधान का संरक्षण निहित है. अतः स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है. लेकिन, इस संघात्मक की अपनी विशेषताएँ हैं, जो अन्य देशों के संघात्मक संविधानों से भिन्न हैं, यथा –
- भारत संघ की स्थापना राज्यों की इच्छा और समझौते से नहीं हुई है, बल्कि संघ सरकार की इच्छा से 1935 ई. के भारत शासन अधिनियम के आधार पर हुई है.
- यहाँ अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता नहीं है, बल्कि एकहरी नागरिकता है.
- संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की भाँति यहाँ राज्यों को संविधान बनाने का अधिकार नहीं है. एक ही संविधान सम्पूर्ण देश के लिए लागू है.
- संघात्मक संविधान में संघ आर राज्य के लिए शासन या सरकार कि दोहरी व्यवस्था रहती है. लेकिन, भारतीय संविधान में यह दोहरापन कम कर दिया गया है. यहाँ अमेरिका की तरह संघ और राज्य के लिए न्यायपालिकाएँ पृथक्-पृथक् नहीं हैं. भारत का सर्वोच्च न्यायालय संस्तर देश की न्यायपालिकाओं का प्रावधान है. इसी प्रकार, समस्त देश के लिए अखिल भारतीय सेवाओं की व्यवस्था की गई है. यह सच है कि संघ और राज्य के अधिकार क्षेत्र विभाजित कर दिए गये हैं, लेकिन दोहरी शासन व्यवस्था को कम करने की चेष्टा की गई है.
- भारतीय संविधान में अमेरिका की तरह संघ शासन में प्रत्येक राज्य को बराबर नहीं समझा गया है. अमेरिका की सीनेट में प्रत्येक राज्य के दो सदस्य रहते हैं. लेकिन, भारतीय संसद के उच्च सदन – राज्य सभा – में यह व्यवस्था राज्य की जनसंख्या के अनुपात से की गई है.
- संघात्मक प्रणालीवाले देशों में राज्यों के प्रधान का निर्वाचन वहाँ की जनता द्वारा होता है परन्तु भारत में राज्यों के प्रधान (राज्यपाल) की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है. वह राज्य के प्रधान के रूप में कार्य करने के साथ-साथ केन्द्रीय सरकार के एजेंट के रूप में भी कार्य करता है.
- भारतीय संविधान में राष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि अन्य संघात्मक संविधान से भिन्न है. अमेरिका के राष्ट्रपति का निर्वाचन जनता द्वारा चुने गये एक निर्वाचनमंडल से होता है. ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के गवर्नर-जनरल की नियुक्ति मंत्रीपरिषद् के परामर्श पर ब्रिटिश सम्राट द्वारा होती है. लेकिन, भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों तथा राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा एकल संक्रमणीय मत विधि द्वारा होता है.
स्पष्ट है कि भारत का संघात्मक संविधान विश्व के अन्य संघात्मक संविधानों से भिन्न है. इसमें एकात्मक सरकार के अनेक लक्षण भी विद्यमान हैं. एकात्मक सरकार में राज्य की सम्पूर्ण शक्ति केंद्र सरकार में केंद्रीभूत रहती है और देश का सम्पूर्ण शासन केंद्र से संचलित होता है.
छोटे देशों में, जहाँ एकात्मक सरकार होती है, एक ही व्यवस्थापिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका रहती है. लेकिन बड़े देशों में एकात्मक सरकार के अंतर्गत भी प्रान्तों में अलग-अलग व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और नयायपालिका होती है. फिर भी, केन्द्रीय सरकार बहुत शक्तिशाली होती है. एकात्मक संविधान के अंतर्गत कानून तथा शासन में एकरूपता होती है और एक ही प्रकार का न्यायविधान रहता है. अर्थात् एकात्मक संविधान में केन्द्रीय सरकार ही सर्वप्रभुत्वसम्पन्न होती है और उसी के अनुसार तथा नियंत्रण में देश का शासन होता है.
भारतीय संविधान में एकात्मक सरकार के निम्नलिखित लक्षण हैं –
1. यहाँ शक्तिशाली केन्द्रीय सरकार की स्थापना की गई है. राष्ट्रपति ही राज्यपालों की नियुक्ति करता है.
2. यद्यपि संघ सरकार और राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र विभाजित कर दिए गये हैं, फिर भी संघ सरकार को अत्यधिक अधिकार दिए गये हैं. संविधान के शासन के सभी विषयों को तीन सूचियों में विभक्त किया गया है जिनमें संघ सरकार की प्राथमिकता और प्रधानता स्वीकार की गई है. अवशिष्ट अधिकार भी संघ सरकार को ही दिया गया है. राज्यपाल को यह अधिकार दिया गया है कि वह राज्य के विधानमंडल द्वारा स्वीकृत किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ भेज सकता है और राष्ट्रपति उसे स्वीकृत या अस्वीकृत कर सकता है.
राज्य सूची के विषय पर कुछ परिस्थितियों में केन्द्रीय संसद को कानून बनाने का अधिकार होता है जैसे –
i) यदि राज्य सभा 2/3 बहुमत से यह प्रस्ताव पास कर दे कि राज्य सूची का अमुक विषय राष्ट्रीय महत्त्व का विषय है
ii) यदि संकटकाल की घोषणा की जाए, अथवा
iii) दो या दो से अधिक राज्य केन्द्रीय सरकार से इसके लिए प्रार्थना करें.
3. संकट काल अथवा विषम परिस्थितियों में संघ सरकार अपने अधिकार क्षेत्र में राज्य सरकार की सारी शक्तियाँ ले सकती है. शासन के क्षेत्र में एकरूपता लाने की चेष्टा की गई है. इसके लिए सर्वोच्च न्यायालय का आदेश और निर्णय समस्त देश के लिए मान्य किया गया है. समस्त देश के लिए एक ही राष्ट्रभाषा (हिंदी- देवनागरी लिपि में) रखी गई है. समूचे देश के लिए एक ही महालेखा परीक्षक है. राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वह संकटकाल में राज्य का शासन अपने हाथ में ले सकता है. जब देश की रक्षा अथवा आंतरिक शान्ति संकट में पड़ जाए अथवा कोई आर्थिक संकट अथवा किसी राज्य में वैधानिक संकट उत्पन्न हो जाए तो राष्ट्रपति संकटकाल की घोषणा करके देश का सम्पूर्ण शासन अपने हाथ में ले सकता है. संकटकाल में संघ सरकार सभी राज्यों के लिए स्वयं कानून बना सकती है, राज्य की कार्यकारिणी को कोई भी आदेश दे सकती है और संघ विधान के अर्थ-सम्बन्धी भाग को स्थगित कर सकती है.
4. यहाँ दोहरी नागरिकता हैं है, बल्कि एक ही नागरिकता है.
5. सभी राज्यों के लिए एक ही संविधान है और राज्य इस संविधान में संशोधन या परिवर्तन नहीं कर सकते.
6. सम्पूर्ण देश के लिए एक प्रकार की न्याय व्यवस्था की गई है. एक प्रकार के दीवानी तथा फौजदारी कानून और एक प्रकार के शासन की व्यवस्था की है.
7. संघ सरकार शक्तिशाली बनाई गई है. वह राज्य कि सरकारों पर पर्याप्त नियंत्रण रखती है. राज्यों के सीमा-परिवर्तन, धन-आबंटन, राज्यों को विशेष दर्जा देने का अधिकार, नामों में हेर-फेर करने का अधिकार भी केन्द्रीय संसद को ही दिया गया है.
निष्कर्ष
ऊपर की विशेषताओं से स्पष्ट है कि भारतीय संविधान का ढाँचा संघात्मक है, लेकिन उसमें एकात्मक सरकार के भी अनेक महत्त्वपूर्ण लक्षण निहित हैं. डॉ. अम्बेदकर के शब्दों में “भारतीय संविधान में संघात्मक सरकार के साथ-साथ एकात्मक सरकार के लक्षण विद्यमान हैं.” इसी कारण जोशी ने इसे अर्धसंघात्मक बताया. दुर्गादास बसु के शब्दों में, “भारतीय संविधान न तो पूर्णतः संघात्मक है और न तो एकात्मक. यह दोनों का समन्वय है. यह एक नवीन और अनूठे प्रकार का संघ है.”
सामान्य अध्ययन पेपर – 2
42वें और 44वें संशोधन अधिनियम द्वारा किये गए मुख्य परिवर्तनों का संक्षेप में वर्णन करें. (250 शब्द)
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 2 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप से लिया गया है –
“भारतीय संविधान – ऐतिहासिक अधिकार, विकास, विशेषताएँ, संशोधन, महत्त्वपूर्ण प्रावधान और बुनियादी संरचना”.
सवाल का मूलतत्त्व
सवाल सीधा है. यदि आप 42वें और 44वें संशोधन के बारे में कुछ भी जानते हैं तो उसे point-wise लिखने का प्रयास करें क्योंकि आपको दोनों संशोधन द्वारा किये गये परिवर्तनों के विषय में लिखना है और वह भी 250 शब्दों में.
यदि यही प्रश्न दीर्घउत्तरीय रहता तो कम से कम 800 शब्द आराम से हो जाते क्योंकि ये दोनों संशोधन ने संविधान में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये हैं. पर चूँकि हमें इस उत्तर को 250 शब्दों में लिखना तो हम कॉमा का सहारा या पॉइंट का सहारा लेकर जल्दी-जल्दी इस प्रश्न को निपटा लेते हैं.
उत्तर
1976 ई में संविधान का 42वाँ संशोधन अधिनियम पारित किया गया. इस संशोधन द्वारा संविधान में अनेक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये गये हैं, जिनमें मुख्य हैं –
- प्रस्तावना में “धर्मनिरपेक्ष”, “समाजवाद” और “अखंडता” शब्दों को जोड़ा जाना.
- 83 और 172 अनुच्छेदों का संशोधन करके लोक सभा और राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल पाँच साल से बढ़ाकर छह वर्ष किया जाना.
- अनुच्छेद 74 (1) को संशोधित करके राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद् की सलाह मानने के लिए बाध्य कर देना.
- केंद्र सरकार को किसी भी राज्य में विकट स्थिति उत्पन्न होने पर सेना भेजने का अधिकार दिया जाना.
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के क्षेत्राधिकारों में परिवर्तन
- राज्य के चार नए नीति-निर्देशक तत्त्वों का समावेश
- प्रशासकीय प्राधिकरण की स्थापना
वैसे यदि इस संशोधन के विषय में और भी डिटेल जानना है तो >> click me
1978 ई. में संविधान का 44वाँ संशोधन अधिनियम बना. इस संशोधन अधिनियम द्वारा भारतीय संविधान में अनेक परिवर्तन किये गये. कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन इस प्रकार हैं –
- संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया. उसकी जगह उसे वैधानिक अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया.
- अनुच्छेद 352 के अधीन राष्ट्रपति को केवल बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में ही आपातकाल की घोषणा का अधिकार है.
- अनुच्छेद 356 के अधीन राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार है. किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की अवधी तीन वर्ष से घटाकर एक वर्ष कर दी गयी. तीन वर्ष तक राष्ट्रपति शासन तभी रह सकता है जब चुनाव आयोग यह प्रमाणित करे कि सम्बद्ध राज्य में चुनाव नहीं कराये जा सकते.
- एक नया अनुच्छेद 361 (अ) जोड़ा गया जिसके अनुसार संसद और विधानसभाओं की कार्यवाही के प्रशासन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान किया गया. केवल गुप्त बैठकों, दुर्भावनापूर्ण रिपोर्टिंग को यह संरक्षण नहीं मिला.
- अनुच्छेद 359 को भी संशोधित किया गया जिसके अनुसार आपातकाल में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा भी किसी नागरिक की स्वाधीनता और जीवन का अधिकार छीना नहीं जा सकेगा.
वैसे यदि इस संशोधन के विषय में और भी डिटेल जानना है तो >> click me
“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan