[no_toc] सामान्य अध्ययन पेपर – 3
वर्तमान में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर वैश्विक समस्या बन गया है. प्लास्टिक प्रदूषण के कारण के साथ-साथ इस प्रदूषण से बचने के उपाय बताएँ. (250 words)
- अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है = Green
- आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 3 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप में लिया गया है –
“संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और क्षरण, पर्यावरण प्रभाव का आकलन…”.
सवाल का मूलतत्त्व
ध्यान रहे कि न तो प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रभाव की चर्चा करनी है और न ही कोई वर्तमान स्थिति की चर्चा करनी है.
उत्तर
वर्तमान युग को प्लास्टिक का युग कहा जाता है, परन्तु यही प्लास्टिक आज एक समस्या बन गया है क्योंकि यह प्रदूषण का प्रमुख कारण के रूप में उभरा है. अतः यह माँग उठ रही है कि प्लास्टिक के प्रयोग को नियंत्रित किया जाये.
प्लास्टिक प्रूदषण के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं –
1. प्लास्टिक सस्ता मिलता है इसलिए इसका लोग अधिक से अधिक उपयोग करते हैं. जब प्लास्टिक को नष्ट करने की कोशिश की जाती है तो यह पर्यावरण में आसानी से विघटित नहीं होता है. इसको नष्ट करने से या तो वायु प्रदूषण होता है या यह भूमि और मिट्टी को प्रदूषित कर देता है.
2. कई लोग प्लास्टिक का सिर्फ एकबार ही प्रयोग करते हैं. यानी प्रयोग के बाद लोग इसे फेंक देते हैं, जैसे – बोतलें, पॉलिथीन बैग आदि. महानगरों आदि में प्लास्टिक के एकल प्रयोग के कारण प्रदूषण बढ़ रहा है.
3. प्लास्टिक बैग, प्लास्टिक की बोतलें या इलेक्ट्रॉनिक खिलौने, सामान आदि अंततः समुद्र में फेंक दिए जाते हैं जिससे समुद्र में कचरा तो जमा हो ही रहा है, साथ-साथ नहरों, नदियों और झीलों की जल निकासी प्रणाली अवरुद्ध हो रही है.
4. दुनिया भर में 100 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है जिसमें से करीब 25% प्लास्टिक से बने उत्पाद अनाशनीय हैं. ये अनाशनीय प्लास्टिक उत्पाद पर्यावरण में धीरे-धीरे जमा होते जा रहे हैं.
5. बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और उससे जुड़ी गतिविधियों के कारण भी बहुत-सारे प्लास्टिक कचरे पैदा होते हैं जो आखिरकार समुद्र में ही पहुँचते हैं.
6. फिशिंग और कोस्टल टूरिज्म भी समुद्र में इकठ्ठा हो रहे प्लास्टिक कचरे के लिए जिम्मेदार हैं.
प्लास्टिक प्रदूषण से निजात पाने के कुछ उपाय नीचे दिए गये हैं –
- प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल को बंद करना होगा. इसके बदले हम कपड़े या इको-फ्रेंडली बैग का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- प्लास्टिक प्लेट और चम्मच ये दोनों बहुतायत से इस्तेमाल हो रहे हैं. हम इनकी जगह स्टील या धातु के प्लेट का इस्तेमाल कर सकते हैं.
- आजकल कपड़ों में भी सिंथेटिक फैब्रिक का प्रयोग हो रहा है. ये सस्ते और आकर्षक होते हैं. इनकी जगह अगर हम कॉटन के कपड़ों का इस्तेमाल करें तो पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक बड़ा कदम होगा.
- बच्चों के खिलौने को प्लास्टिक के नहीं बल्कि लकड़ी या दूसरे इको-फ्रेंडली चीजों से बनानी चाहिए.
- होटल या ऑनलाइन आर्डर के जरिये आपके पास जो खाना पहुँचता है उसकी पैकिंग में प्रायः प्लास्टिक का इस्तेमाल होता है. इसलिए कोशिश करें कि खाना पैक नहीं करना चाहिए.
- हम हर मिनट 10 लाख प्लास्टिक की बोतलें खरीद रहे हैं जो पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा हैं. कोशिश करें कि पुनः प्रयोग में लाये जाने वाले बोतलों का इस्तेमाल करना चाहिए.
- पैकेज फ़ूड में प्लास्टिक का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है. इसलिए पैकेज फ़ूड की जगह स्थानीय उत्पादों को खरीदने की आदत डालनी चाहिए.
- प्लास्टिक उत्पादों की रीसाइक्लिंग के लिए हमें उन्हें सही जगह ठिकाने लगाने की भी जरूरत है. इसलिए डस्टबिन का प्रयोग करना चाहिए.
- स्टोरेज के लिए प्लास्टिक उत्पादों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. इनके बदले काँच या मिट्टी के बर्तनों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है.
- इसके अलावा सजावटी सामान प्लास्टिक के न हों, यह भी ध्यान में रखना चाहिए.
सामान्य अध्ययन पेपर – 3
भारत वर्तमान में चीन के बाद कच्चे सिल्क का विश्व का दूसरा प्रमुख उत्पादक है परन्तु हमारा देश इस उद्योग को लेकर कई चुनौतियों का सामना कर रहा है. उन चुनौतियों का वर्णन करते हुए समाधान की भी चर्चा करें. (250 words)
- अपने उत्तर में अंडर-लाइन करना है = Green
- आपके उत्तर को दूसरों से अलग और यूनिक बनाएगा = Yellow
यह सवाल क्यों?
यह सवाल UPSC GS Paper 3 के सिलेबस से प्रत्यक्ष रूप में लिया गया है –
“निवेश मॉडल…..”.
सवाल का मूलतत्त्व
इस प्रश्न में सिल्क उत्पादन की वर्तमान स्थिति की चर्चा भूमिका में की जा सकती है. फिर चुनौतियों की चर्चा और उसी के अनुसार समाधान की भी चर्चा करें. अच्छा होगा कि यदि इस उद्योग से सम्बंधित कोई सरकारी योजना से आप अवगत हों तो वह भी लिखें, मार्क्स अच्छा मिलेगा.
उत्तर :-
हाल ही में सरकार के द्वारा “समेकित सिल्क उद्योग विकास योजना” को मंजूरी दी गई. वर्तमान सरकार ने 2022 तक रेशम उत्पादन में आत्मनिर्भर होने का लक्ष्य रखा है. “चाकी कीट” पालन, शहतूत पौधारोपण विकास कार्यक्रम, मलबरी स्वावलंबन योजना, रेशम कीट पालन आदि कई योजनाओं और पहलों को सरकार द्वारा लागू और प्रोत्साहित किया जा रहा है.
पर फिर भी इन प्रयासों के बावजूद भारतीय सिल्क उद्योग कई चुनौतियों का सामना कर रहा है, जैसे-
1. भारत में घरेलू सिल्क उत्पादन की गति काफी धीमी है. बुनियादी सुविधाओं का अभाव उत्पादन की धीमी गति का प्रमुख कारण है.
2. भारत में रेशम की घरेलू माँग में लगातार वृद्धि देखी जा रही है. घरेलू उत्पादन कम होने के कारण देश के एक-तिहाई कच्चे सिल्क की माँग की पूर्ति चीन से होती है. स्वभाविक है कि ऐसे में चीन से आयात पर भारत की निर्भरता बढ़ती जा रही है.
3. भारतीय सिल्क उद्योग परम्परागत उत्पादन व्यवस्था पर आधारित है. यहाँ सिल्क उत्पादन में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग न के बराबर है.
4. पहले भारतीय सिल्क की माँग विश्व-भर में की जाती थी पर धीरे-धीरे सिल्क उत्पाद की गुणवत्ता घटती जा रही है, जिसके कारण यह उद्योग वर्तमान स्थिति में फल-फूल नहीं रहा है. चीन के सस्ते रेशम के समक्ष भारत का रेशम बाजार में टिक नहीं पा रहा है.
5. विभिन्न सरकारी योजनाओं का लाभ किसानों तक नहीं पहुँच पा रहा है. किसान योजनाओं को लेकर अवगत भी नहीं होते हैं.
समाधान
- ज्ञातव्य है कि रेशम उत्पादन एक श्रम-आधारित उच्च आय देने वाला उद्योग है, इसलिए भारत जैसे विकासशील देशों में रोजगार सृजन हेतु विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में इस उद्योग को आगे बढ़ाने की आवश्यकता है.
- भारत में घरेलू सिल्क की माँग लगातार बढ़ रही है इसलिए भारत को माँग के साथ-साथ उत्पादन में वृद्धि करनी पड़ेगी. दूसरी तरफ इसी बीच बढ़ती हुई माँग को देखते हुए इसको तत्काल रूप से घटाने के लिए चीन से आयातित सिल्क पर अधिक टैक्स लगाने की आवश्यकता है.
- परम्परागत उत्पादन व्यवस्था पर निर्भरता को हटाना होगा क्योंकि अधिक से अधिक उत्पादन के लिए इस उद्योग में आधुनिकीकरण की आवश्यकता है. अन्य देशों के साथ समझौतों के जरिये नई तकनीकी को इस क्षेत्र में बढ़ावा देने का समय आ गया है.
- आजादी के 71 साल बाद भी सरकारी योजनाओं का प्रत्यक्ष लाभ सिल्क उत्पादन से जुड़े कृषकों को नहीं मिल पाता है. योजनाओं और कृषकों के बीच या तो भ्रष्टाचार की रेखा खींच दी जाती है या किसान विभिन्न सरकारी योजनाओं को लेकर स्वयं जागरूक नहीं होते. इसके लिए किसान विकास चैनलों, विद्यालयों, सोशल मीडिया आदि का सहारा लेकर किसानों को जागरुक करना चाहिए.
“संसार मंथन” कॉलम का ध्येय है आपको सिविल सेवा मुख्य परीक्षा में सवालों के उत्तर किस प्रकार लिखे जाएँ, उससे अवगत कराना. इस कॉलम के सारे आर्टिकल को इस पेज में संकलित किया जा रहा है >> Sansar Manthan
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