कई बार ऐसा होता है कि हमारी लाख मेहनत के बावजूद करंट अफेयर्स का कोई न कोई परीक्षा छूट ही जाता है. यह सिर्फ हमारे साथ ही नहीं, बड़ी-बड़ी कोचिंग संस्थाओं के साथ भी होता है. हम तो खैर छोटे लोग हैं और वैसे भी मानव की प्रकृति है कि कुछ भी परफेक्ट नहीं हो सकता. खैर, जब हमने फिर से The Hindu और अन्य अखबारों पर अपनी पैनी नज़र दौड़ाई तो देखा कि कुछ important current affairs को हमने Sansar DCA में cover नहीं किया है या कभी-कभी हम उन परीक्षा को इसमें उठाते हैं जो Revision के लिए उपयुक्त हैं.
फिर हमने सोचा जो लोग UPSC Prelims 2019 को टारगेट कर रहे हैं और संसार लोचन टीम पर आँख मूँद कर भरोसा कर रहे हैं, हमारी यह भूल उनके लिए नाइंसाफी होगी. इसलिए हमने Sansar DCA से हटकर “Sansar Surgery Series” शुरू की है जिसमें वर्ष 2018 और आगामी वर्ष 2019 के वही परीक्षा शामिल होंगे जो हमारे द्वारा भूल से Sansar DCA में कवर नहीं किये गए हों. यह Sansar Surgery Series का पार्ट 27 है.
SANSAR SURGERY PART 27, 2018
गिलोटिन
गिलोटिन वह संसदीय प्रक्रिया है जिसमें सभी मांगों जो नियत तिथि तक न निपटाई गई हो बिना चर्चा के ही मतदान के लिए रखा जाता है. दूसरे शब्दों में अगर अंतिम दिन अध्यक्ष द्वारा दिन की बैठक की समाप्ति के लिए नियत समय तक माँग पर मतदान पूरा नहीं होता है, तो अध्यक्ष “गिलोटिन” का उपयोग करता है और अनुदानों की सारी माँगें बिना चर्चा के एक साथ मतदान हेतु प्रस्तुत की जाएँगी.
विधान मंडल के संदर्भ में विनियोग विधेयक
सरकार को देश की संचित निधि से खर्च करने से पहले संसद की स्वीकृति लेनी होती है. सरकार जिस विधेयक के माध्यम से संचित निधि से खर्च की स्वीकृति लेती है, उसे विनियोग विधेयक कहते हैं. इसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 114 में है. यह एक प्रकार का धन विधेयक है. विधान सभा से पारित विधेयक अगर परिषद् द्वारा चौदह दिनों के अंदर वापस नहीं किया जाता है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 198 (5) के तहत दोनों सदनों द्वारा पारित मान लिया जाता है. अगर विधेयक को परिषद् द्वारा अनुशंसा के साथ लौटाया जाता है, तो विधान सभा परिषद् की सभी अनुशंसाओं या उनमें से किसी को या तो स्वीकार कर सकती है या खारिज कर सकती है. अगर विधान सभा परिषद् के किसी भी अनुशंसा को स्वीकार नहीं करती है, तो विधेयक को दोनों सदनों से बिना संशोधन पारित मान लिया जाता है. उसके बाद विधेयक को राज्यपाल की सहमति के लिए उनके पास भेजा जाता है. उनकी सहमति के बाद विनियोग अधिनियम में दर्शाई गई रकम विभिन्न मांगों के तहत खर्च के लिए स्वीकृत अनुदान बन जाती है.
AFSPA क्या है?
सरल शब्दों में कहा जाए तो AFSPA वह अधिनियम है जो सैन्य बलों को उपद्रवग्रस्त क्षेत्रों में विधि-व्यवस्था बनाने के लिए शक्ति प्रदान करता है. इसके अनुसार सैन्य बल को यह अधिकार होता है कि किसी क्षेत्र में वह पाँच या उससे अधिक लोगों के जमावड़े को प्रतिबंधित कर सकता है. इसके अतिरिक्त वह बल का प्रयोग कर सकता है अथवा समुचित चेतवानी के बाद गोली भी चला सकता है यदि उसको लगे कि कोई व्यक्ति विधि का उल्लंघन कर रहा है. यदि सैन्य बल को लगे कि किसी व्यक्ति की गतिविधियाँ संदेहास्पद हैं तो वह उस व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकता है. सेना किसी भी घर में घुसकर बिना वारंट के तलाशी ले सकती है और आग्नेयास्त्र रखने पर रोक लगा सकती है. यदि कोई व्यक्ति गिरफ्तार होता है अथवा कस्टडी में लिया जाता है तो सेना उसे निकटतम पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को गिरफ्तारी की परिस्थितियों का विवरण देते हुए सौंप सकती है.
संविधान की उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक (सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य) बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों कोः
सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए, तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और
(राष्ट्र की एकता और अखण्डता) सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर, 1949 ई. को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं.
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3.1.1977 से) “प्रभुत्व-संपन्न लोकतंत्रात्मक गणराज्य” के स्थान पर प्रतिस्थापित.
- संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (3.1.1977 से) “राष्ट्र की एकता” के स्थान पर प्रतिस्थापित.
मूल कर्तव्य
मूल कर्तव्य – भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
(a) संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करें;
(b) स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखें और उनका पालन करें;
(c) भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें;
(d) देश की रक्षा करें और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करें;
(e) भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करें जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे
हों, ऐसी प्रथाओं का त्याग करें जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध हैं;
(f) हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका परिरक्षण करें;
(g) प्राकृतिक पर्यावरण की जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्य जीव हैं, रक्षा करें और उसका संवर्धन करें तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखें;
(h) वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें;
(i) सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखें और हिंसा से दूर रहें;
(j) व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करें जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाईयों को छू लें.
अनुच्छेद 239AA
इसके अंतर्गत दिल्ली संघ राज्य क्षेत्र को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCT of Delhi) कहा गया है और इसके प्रशासक उपराज्यपाल है.
- दिल्ली की स्थिति अन्य राज्यों या केंद्र शासित क्षेत्र से अलग है.
- केंद्र शासित क्षेत्र होते हुए भी दिल्ली की अपनी विधानसभा है, जहां अन्य राज्यों की तरह सुरक्षित सीटों का प्रावधान है. विधायकों का चुनाव सीधे जनता करती है.
- दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली में भी मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल का प्रावधान किया गया है, जो विधानसभा के लिए सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार होते हैं.
- दिल्ली में चुनाव कराने की ज़िम्मेदारी निर्वाचन आयोग के पास है.
- निर्वाचित मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल को उपराज्यपाल पद और गोपनीयता की शपथ दिलाते हैं.
- दिल्ली के उपराज्यपाल के पास अन्य राज्यपालों की तुलना में अधिक शक्तियां हैं.
- दूसरे राज्यों की तरह दिल्ली के पास पुलिस, कानून-व्यवस्था और भूमि संबंधी अधिकार नहीं हैं. वह इनसे जुड़े कानून नहीं बना सकती है.
- ये तीनों अधिकार केंद्र सरकार के पास हैं.
- केंद्र और दिल्ली की सरकार अगर किसी एक मुद्दे पर कानून बनाती है तो केंद्र का कानून क्षेत्र में लागू होगा.
- अगर सरकार और उपराज्यपाल के बीच में कोई मतभेद होते हैं तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति के पास मामला भेज सकते हैं.
- आपातकाल की स्थिति में उपराज्यपाल फैसले ले सकते हैं.
अनुच्छेद 239AB
- यह इमरजेंसी की स्थिति में लागू होता है.
- अगर मंत्रिमंडल सरकार नहीं चला पा रहा है तो उपराज्यपाल राष्ट्रपति को इमरजेंसी लगाने की सिफारिश कर सकते हैं.
अनुच्छेद 15, 16 और 49
15 – धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध
16 – अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता से संबंधित है.
49 – राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारकों, स्थानों, और वस्तुओं का संरक्षण.
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग
हाल ही में लोक सभा ने 123वें संविधान संशोधन विधेयक को पारित कर दिया है जिसमें एक संवैधानिक निकाय – राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (National Commission for Backward Classes) – का प्रावधान किया गया है. इस विधेयक के द्वारा राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग (NCBC) को राष्ट्रीय अनुसूची जाति आयोग तथा राष्ट्रीय अनुसूची जनजाति आयोग के समान संवैधानिक दर्जा (constitutional status) दिया गया है. आपको बता दें कि 1993 में गठित पिछड़ा वर्ग आयोग अभी तक सिर्फ सामाजिक और शैक्षणिक आधार पर पिछड़ी जातियों को पिछड़े वर्गों की सूची में शामिल करने या पहले से शामिल जातियों को सूची से बाहर करने का काम करता था.
5वीं और 6ठी अनुसूची
संविधान में असम, मेघालय , त्रिपुरा और मिजोरम से भिन्न राज्यों में “अनुसूचित क्षेत्र” कहलाने वाले कुछ क्षेत्रों के लिए प्रशासन के विशेष उपबंध 5वीं अनुसूची में दिए गये हैं. किसी भी क्षेत्र को “अनुसूचित क्षेत्र” घोषित करने का संवैधानिक अधिकार राष्ट्रपति को है. असम, मेघालय, त्रिपुरा तथा मिजोरम के जनजातीय क्षेत्रों के लिए प्रशासन की पृथक् व्यवस्था संविधान की छठी अनुसूची एन की गई है.
6ठी अनुसूची में कुछ विधायी तथा न्यायिक कृत्यों के निर्वहन हेतु जिला परिषद तथा प्रादेशिक परिषदों के गठन का उपबंध किया गया है. राज्यपाल इन परिषदों को कुछ अपराधों पर विचार करने की शक्ति भी प्रदान करता है. इन परिषदों द्वारा बनाए गये कानून राज्यपाल की स्वीकृति न मिलने तक निष्प्रभावी रहेंगे.
9वीं अनुसूची
प्रथम संविधान संशोधन (1951) द्वारा नेहरु सरकार द्वारा अनुच्छेद 31बी लाते हुए नौवीं अनुसूची को संविधान में जोड़ा गया.
इसके उद्देश्य निम्नलिखित थे –
- कुछ कानूनों को इस सूची में रखकर न्यायिक समीक्षा से दूर करना.
- उस समय आवश्यक था क्योंकि भूमि सुधार व जमींदारी उन्मूलन से सम्बंधित प्रगतिशील कानून बनाने थे जो सम्पत्ति के मौलिक अधिकार से टकराते थे.
यदि कोई कानून 24 अप्रैल, 1973 के बाद नौवीं अनुसूची में दर्ज हुआ है और उससे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तथा वह मूल ढाँचे को नष्ट करने वाला है तो ऐसे कानून को चुनौती दी जा सकती है अर्थात् न्यायालय उसकी समीक्षा कर सकता है. लेकिन चुनौती दिए जाने से पहले की कार्यवाहियां इससे अप्रभावित रहेंगी. नौवीं अनुसूची के कानूनों की समीक्षा सीधे प्रभाव और प्रभाव के परिणाम के आधार पर होगी.
उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2018
- विधेयक उपभोक्ता संरक्षण एक्ट, 1986 का स्थान लेता है. विधेयक उपभोक्ता अधिकारों को पुष्ट करता है और खराब वस्तुओं एवं सेवाओं में दोष से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए व्यवस्था प्रदान करता है.
- उपभोक्ताओं की शिकायतों पर फैसला करने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोगों का गठन किया जाएगा.
- जिला और राज्य आयोग के खिलाफ अपीलों की सुनवाई राष्ट्रीय आयोग में होगी और राष्ट्रीय आयोग के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई की जाएगी.
- विधेयक एक वर्ग (क्लास) के रूप में उपभोक्ता अधिकारों को बढ़ावा देने, उनका संरक्षण करने और उन्हें लागू करने के लिए केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण अथॉरिटी का गठन करता है. अथॉरिटी वस्तुओं और सेवाओं के लिए सेफ्टी नोटिस जारी कर सकती है, रीफंड का आदेश दे सकती है, वस्तुओं को रीकॉल कर सकती है और भ्रामक विज्ञापनों के खिलाफ नियम बना सकती है.
- अगर खराब वस्तु या दोषपूर्ण सेवा से किसी उपभोक्ता को कोई नुकसान होता है, तो वह मैन्यूफैक्चरर, विक्रेता या सर्विस प्रोवाइडर के खिलाफ उत्पाद दायित्व (प्रॉडक्ट लायबिलिटी) का दावा कर सकता है.
- विधेयक ऐसे कॉन्ट्रैक्ट्स को ‘अनुचित’ के रूप में पारिभाषित करता है जो उपभोक्ताओं के अधिकारों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं. वह अनुचित और प्रतिबंधित तरीके के व्यापार को भी परिभाषित करता है.
- विधेयक उपभोक्ता संरक्षण पर सलाह देने के लिए जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तरों पर उपभोक्ता संरक्षण परिषदों की स्थापना करता है.
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उपभोक्ता संरक्षण विधेयक, 2019
- उपभोक्ता संरक्षण विधयेक में उपभोक्ता की परिभाषा देते हुए कहा गया है कि उपभोक्ता वह व्यक्ति है जो मूल्य देकर कोई वस्तु अथवा सेवा खरीदता है. तात्पर्य यह है कि यदि कोई व्यक्ति फिर से बेचने के लिए अथवा वाणिज्यिक उद्देश्य से कोई वस्तु अथवा सेवा हस्तगत करता है तो वह व्यक्ति उपभोक्ता नहीं कहलायेगा.
- विधेयक में सब प्रकार के लेन-देन को शामिल किया गया है, जैसे – ऑफलाइन, ऑनलाइन, टेली शौपिंग, बहु-स्तरीय विपणन अथवा प्रत्यक्ष विक्रय.
- विधेयक में उपभोक्ताओं के कुछ मुख्य अधिकार बताये गये हैं : i) जीवन एवं संपत्ति के लिए हानिकारक वस्तुओं एवं सेवाओं के विपणन से सुरक्षा पाना ii) वस्तुओं और सेवाओं की गुणवत्ता, मात्रा, कार्य क्षमता, शुद्धता, मानक तथा मूल्य से सम्बंधित सूचना पाना iii) प्रतिस्पर्धात्मक दामों पर कई प्रकार की वस्तुओं अथवा सेवाओं तक पहुँचना iv) अन्यायपूर्ण अथवा बंधनकारी व्यापार प्रचलनों का समाधान माँगना.
- उपभोक्ता संरक्षण विधयेक के अनुसार केंद्र सरकार एक केन्द्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) गठित करेगी जिसका उद्देश्य उपभोक्ताओं के अधिकारों को बढ़ावा देना, सुरक्षित करना और लागू करना होगा. यह प्राधिकरण उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन, अन्यायपूर्ण व्यापारिक प्रचलनों तथा भ्रामक विज्ञापनों से सम्बंधित विषयों के लिए नियामक निकाय होगा. इस प्राधिकरण में एक अन्वेषण शाखा भी होगी जिसका प्रमुख एक महानिदेशक होगा जो इन उल्लंघनों के विषय में जाँच अथवा विवेचना कर सकेगा.
- असत्य अथवा भ्रामक विज्ञापन के लिए CCPA निर्माता अथवा प्रचारकर्ता को 10 लाख रु. तक का आर्थिक दंड एवं दो वर्षों के कारावास का दंड लगा सकता है. यदि कोई निर्माता अथवा प्रचारकर्ता ऐसा अपराध दुबारा करता है तो उसपर 50 लाख रु. तक का आर्थिक दंड एवं पाँच वर्षों के कारावास का दंड लगाया जा सकता है.
वन अधिकार अधिनियम, 2006
15 दिसंबर, 2006 को यह कानून अपने मौजूदा स्वरूप में लोकसभा में पारित हुआ था. यह कानून भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और संवेदनशीलता की एक नायाब मिसाल के तौर पर प्रत्यक्ष रूप से देश की कुल जनसंख्या की 20 प्रतिशत आदिवासी आबादी और जंगलों पर आश्रित समुदायों के ‘इज्ज़त से जीने के अधिकार’ की रक्षा के लिए संसद ने पारित किया. यह कानून न केवल वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों और अन्य परंपरागत वन निवासियों के वन संसाधनों पर उनके मौलिक अधिकारों की पुष्टि करता है बल्कि वन, वन्य जीव, जैव विविधता संरक्षण के प्रति समुदायों के दायित्वों को भी सुनिश्चित करता है.
अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकार, एफ.आर.ए.) अधिनियम 2006 की अधिसूचना के बाद, 2008 में अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन भूमि अधिकारों और वन आधारित आजीविका अधिकारों को मान्यता देते हुए इस अधिनियम के कार्यान्वयन, वन पारिस्थितिक तंत्र और स्थायी आजीविका पर पड़ने वाले प्रभाव चर्चा और बहस के विषय बने रहे हैं.
डीप स्टेट
अमेरिका में कुछ विचारकों का कहना है कि अमेरिका में सरकार की नीतियों को प्रभावित करने वाला एक प्रभावशाली गुट है जिसमें सरकार के कुछ लोग और वित्त जगत के प्रतिनिधि षड्यंत्रपूर्वक शामिल रहते हैं. इस गुट को डीप स्टेट कहा जाता है.
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