हाल ही में 16 नवम्बर, 2018 को एक अमेरिकी व्यक्ति अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के सेंटिनल द्वीप के आदिवासियों द्वारा मार दिया गया. सेंटिनल द्वीप एक सुरक्षित क्षेत्र (protected zone) है जहाँ उस व्यक्ति ने अवैध रूप से प्रवेश किया था.
सेंटिनल द्वीपवासी कौन हैं?
यह एक नीग्रो वर्ग की जनजाति है जो अंडमान के उत्तरी सेंटिनल द्वीप पर निवास करती है. शारीरिक और भाषागत समानता के आधार पर इन आदिवासियों को जारवा आदिवासियों से जोड़ा जाता है. ऐसा विश्वास है कि इन आदिवासियों की जनसंख्या 150 से कम और सम्भवतः 40 ही है.
इस द्वीप में पाए गये रसोई के अवशिष्टों की कार्बन डेटिंग से भारतीय मानव विज्ञान सर्वेक्षण ने पता लगाया है कि इस द्वीप में 2,000 वर्ष पहले से ही आदिवासी निवास करते रहे हैं. जीनोम अध्ययनों से यह ज्ञात होता है कि अंडमान के कबीले इस क्षेत्र में 30,000 वर्ष पहले से रह रहे होंगे.
सुरक्षित क्षेत्रों की स्थापना क्यों?
1956 में अंडमान निकोबार द्वीप समूह (आदिवासी कबीलों की सुरक्षा) विनियम भारत सरकार द्वारा निर्गत हुआ था जिसमें इस द्वीप समूह के कबीलों के आधिपत्य वाले पारम्परिक क्षेत्रों को सुरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया था. इस विनियम के द्वारा इन क्षेत्रों में बिना सरकारी अनुमति के कोई नहीं जा सकता है. यहाँ के आदिवासियों का छायाचित्र खीचना अथवा फिल्म बनाना भी दंडनीय है.
कालान्तर में इन विनियमों में सुधार भी होते रहे हैं जिन सब का उद्देश्य दंड-विधान को और भी कठोर बनाना रहा है. किन्तु हाल में कुछ द्वीपों के लिए प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट में ढील दी गई थी. भारत सरकार ने सेंटिनल द्वीप और 28 अन्य द्वीपों को दिसम्बर 21, 2022 तक प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट से अलग कर दिया है. इसका अभिप्राय यह हुआ कि विदेशी लोग इस द्वीप में बिना सरकारी अनुमति के जा सकते हैं.
सेंटिनल आदिवासी संकटग्रस्त क्यों माने जाते हैं?
- यह कहा जाता है कि ये आदिवासी 60,000 वर्षों से कोई प्रगति नहीं कर सके हैं और मछली तथा नारियल के बल पर अभी भी आदिम जीवन जी रहे हैं.
- क्योंकि इनका बाहरी संसार से कोई सम्पर्क नहीं है, इसलिए कीटाणु इन्हें बहुत क्षति पहुँचा सकते हैं. यदि किसी बाहरी यात्री के साथ साधारण फ्लू का वायरस भी इस द्वीप पर पहुँच जाए तो पूरी प्रजाति का नाश हो सकता है.
- 1960 से इन आदिवासियों तक पहुँचने के छिट-पुट प्रयास हुए हैं परन्तु ये सभी निष्फल रहे हैं, बाहरी व्यक्ति पर ये लोग टूट पड़ते हैं और इस प्रकार जतला देते हैं कि वे अकेले ही रहना चाहते हैं.
प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (RAP) क्या है?
- प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट (Restricted Area Permit – RAP) की व्यवस्था भारत सरकार के एक आदेश के द्वारा 1963 में स्थापित की गई थी.
- इस आदेश के अनुसार विदेशी लोगों को सुरक्षित अथवा प्रतिबंधित क्षेत्र में तब तक जाने नहीं दिया जाता है जब तक सरकार को यह न लगे कि उनकी यात्रा हर प्रकार से उचित है.
- भूटान के नागरिक को छोड़कर किसी और देश का नागरिक सुरक्षित अथवा प्रतिबंधित क्षेत्र में यदि प्रवेश करना और वहाँ ठहरना चाहता है तो उसको सक्षम पदाधिकारी द्वारा विशेष परमिट लेना होगा.
- अफगानिस्तान, चीन और पकिस्तान के नागरिकों तथा पाकिस्तानी मूल के विदेशियों को प्रतिबंधित क्षेत्र परमिट दिया ही नहीं जाता.
जनजाति के अस्तित्व पर खतरा
- सबसे बड़ी चिंताओं में से एक चिंता इस जनजाति के अस्तित्व को लेकर है. यह जनजाति स्वतंत्रता के पश्चात् से अकेले इस द्वीप पर गुजर-बसर कर रही है, ताकि इनको उन बीमारियों से बचाया जा सके जिनसे लड़ने की शक्ति इनके पास नहीं है. कई लोगों के बीच यह विवाद चल रहा है कि इस जनजाति को क्या इस तरह अकेला छोड़ देना ठीक होगा या उन्हें “आम दुनिया” के सम्पर्क में आने देना चाहिए?
- सेंटिनल जनजाति की जनसंख्या बहुत ही कम है. भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, इस द्वीप पर केवल 15 सेंटीनेल ही थे. परन्तु जनगणना अधिकारियों ने इस जनजाति से दूरी बनाकर, बिना उनके पास गए ही उनकी जनगणना कर ली.
- चिंता यह भी जताई जा रही है की उनकी इतनी कम संख्या को देखते हुए, क्या यह जनजाति इतने बच्चे पैदा कर सकते हैं, जिससे वे अपनी जनजाति, संस्कृति और वंशावली को बचाए रख सकें? या फिर वे धीरे-धीरे विलुप्त हो जाएँगे?
- उत्तरी सेंटीनेल का भूभाग छोटा (20 वर्ग मील) है. जनसांख्यिकीय मानकों के अनुसार, समुद्र से घिरे 20 वर्ग मील का जंगल 100 की संख्या में आबादी को बनाए रख सकता है.
- ग्रेट अंडमानी, जारावा और सेंटिनल द्वीप की आबादी की आनुवांशिक विविधता इस सीमा तक नहीं गई है कि वे विलुप्त हो सके. अब भी उनमें आनुवांशिक क्षमता है.
- सेंटिनल जनजाति एंडोगेमस अथवा एक ही समूह में विवाह करने वाला समूह है. समूह से बाहर विवाह करने की परंपरा में एक ही चरित्र के लिए प्रमुख जीन की उपस्थिति के कारण खुद को व्यक्त करने में असमर्थ हैं. सेंटिनल सहित अंडमानी जनजातीय समूह के इस श्रेणी में फिट होने की संभावना है. अगर महामारी फैलती है और यदि इनके पास सुरक्षात्मक जीन नहीं है तो यह पूरी जनसंख्या को मिटा सकता है या एक प्राकृतिक आपदा भी इन्हें समाप्त कर सकती है.
- संक्रमण और शिशु मृत्यु दर से यह प्रजाति नष्ट हो सकती है. इन जनजातियों के ऐतिहासिक रिकॉर्ड बताते हैं कि इन्हें मलेरिया और खसरा से खास खतरा है. उनकी आबादी छोटी है और उनकी संख्या में उतार-चढ़ाव होता रहता है. उन्हें समय के साथ अपनी आबादी में वृद्धि नहीं मिल रही है. कोई प्रतिस्थापन नहीं है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जनसांख्यिकीय अस्थिरता है.
निष्कर्ष
क्या हम अंडमान की सेंटिनल जनजाति को लुप्त होने से बचा सकते हैं?
- हम इस जनजाति की शिशु मृत्यु दर को कम करने या रोकने के उपाय कर सकते हैं. कम से कम उन सेंटिनल जनजातियों के लिए जहाँ हमारी पहुँच आसानी से हो सकती है.
- हमें प्रत्येक जनजाति के अनुरूप अलग-अलग नीतियों को तैयार करना चाहिए. इस जनजाति को उनके हाल पर छोड़ देना चाहिए. सेंटिनल जनजाति स्वयं को वन के सहारे जिन्दा रखने में सक्षम हैं. जब वे इतने लंबे समय से जीवित रह रहे हैं तो वे भी भविष्य में भी अवश्य जीवित रहेंगे. प्रकृति को अपना कार्य स्वयं करने देना चाहिए.
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