हाल ही में ‘नेचर ह्यूमन बिहेवियर’ (Nature Human Behaviour) नामक एक पत्रिका ने एक प्रतिवेदन निर्गत किया जिसमें कहा गया कि COVID-19 के प्रसार को “सोशल बबल” के द्वारा स्थिर किया जा सकता है और यह भी कहा गया कि अनिश्चित लॉकडाउन के दौरान इस परिकल्पना (Social Bubbles) से लोगों के मानसिक तनाव को भी कम किया जा सकता है.
मुख्य तथ्य
- COVID-19 के चलते संसार के अलग-अलग देशों में लागू लॉकडाउन के मध्य अपने गृहों में बंद लोगों में आर्थिक और मनोवैज्ञानिक बोझ हो जाता है. इस बोझ को कम करने हेतु सम्बंधित देश की सरकार पर लॉकडाउन को खत्म करने के लिए दबाव पड़ता है.
- ऐसा भी देखा गया कि COVID-19 के प्रसार के बावजूद भी कई देशों की सरकारों ने दबाव में आकर तालाबंदी खोल दी.
- ऐसे में सरकारों द्वारा COVID-19 संक्रमण की दूसरी लहर से बचने के लिए अनेक रणनीतियाँ अपनाई गयीं. उन्हीं में से एक ‘सोशल बबल’ का विकल्प है जिसे प्रभावी बताया जा रहा है.
होता क्या है ‘सोशल बबल’?
- सोशल बबल न्यूज़ीलैंड देश की परिकल्पना है जिसके अंतर्गत कुछ ऐसे विशेष सामाजिक समूहों का चयन किया जाता है जिन्हें COVID-19 या लॉकडाउन के अंतराल अपनों से मिलने की छूट दी जाती है.
- यहाँ “बबल” का अर्थ उन परिवार जनों से है जो एक साथ निवास करते हैं.
- इसके अंतर्गत कुछ अलर्ट का प्रावधान है जिसमें तीसरे अलर्ट मिलने पर लोगों को अपने ‘बबल’ के दायरे में तनिक वृद्धि की इजाजत दी जाती है. यदि लोग चाहें तो तीसरे अलर्ट मिलने पर अपने घर पर सेवकों या अपने बच्चों, जिनकी देखभाल कोई और कर रहा है, को सम्मिलित कर सकते हैं.
- वे लोग भी सोशल बबल का लाभ उठा सकते हैं जो अकेले रहते हैं या एक-दो लोगों के संपर्क में आना चाहते हैं.
- साथ ही यह उन लोगों पर भी लागू होगा जो अकेले रहते हैं अथवा ऐसे लोग जो किसी एक या दो लोगों के संपर्क में रहना चाहते हैं.
- जो लोग एक घर में एक साथ रहते हैं वे सोशल बबल के लिए पात्र नहीं हैं. यदि वे एक ही क्षेत्र में रहते हैं तो वह सोशल बबल के योग्य हो सकते हैं.
- सोशल बबल मॉडल के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति में COVID-19 के लक्षण पाए जाते हैं तो वैसी परिस्थिति में संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिये समूह के सभी लोगों को क्वारंटीन कर दिया जाएगा.
- दरअसल, सोशल बबल द्वारा दी जाने वाली इस छूट के पीछे COVID-19 संक्रमण की श्रृंखला के खतरे को सीमित करना है और इसकी वजह से होने वाले मानसिक दुष्प्रभावों को कम करना है.
- गत महीने इंग्लैंड में भी लॉकडाउन को समाप्त कर के लोगों को अपने अतिरिक्त एक अन्य परिवार के लोगों को अपने समूह में जोड़ने की इजाजत दी गई.
सोशल बबल्स का लाभ
व्यक्तियों का समूह बना देने से कोरोना की जाँच में आसानी होगी. जैसे यदि किसी समूह के एक व्यक्ति को COVID-19 हो गया तो उस समूह के अन्य लोगों की पहचान सरलता से की जा सकेगी अर्थात् दूसरे शब्दों में कहें तो इस बीमारी के कम्युनिटी स्प्रेडिंग से बचा जा सकता है जहाँ पता चलना बहुत कठिन होता है कि कोई व्यक्ति किसकी वजह से संक्रमित हुआ है.
मेरी राय – मेंस के लिए
एक शोध के अनुसार, सोशल बबल की परिकल्पना न्यूजीलैंड में कारगर सिद्ध हुई क्योंकि इसके जरिये अलग-थलग पड़े कमजोर अथवा किसी दुविधा में रह रहे लोगों को अपने परिवार या अपनों से जुड़ने का मौका मिला जिससे उनकी देखभाल संभव हो सकी. आज की तिथि में कोविड-19 को रोकने में सबसे बड़ी चुनौती है इस बीमारी के प्रसार को रोकना. अभी तक तो विश्व के हर देश ने इसके प्रसार को रोकने के लिए अथक प्रयास किये जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण लॉकडाउन है. पर सच तो यह है कि मानव एक सामाजिक प्राणी है. निरंतर होने वाले लॉकडाउन से लोग अपनों से दूर हो गये और उन्हें मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. ऐसी परिस्थिति में सोशल बबल के जरिये प्रसार के खतरों को कम भी किया जा सकता है और साथ ही साथ लोगों को मानसिक राहत भी प्रदान की जा सकती है.
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