मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Ancient History Gs Paper 1/Part 01

Sansar LochanGS Paper 1 2020-21

सामान्य अध्ययन पेपर – 1

Table of Contents

जैन धर्म बुद्ध धर्म की तुलना में अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ. कारण बताएँ.

Explain why Jainism could not become as popular as Buddhism. (250 words)

उत्तर :-

हाँ, यह सत्य है कि जैनमत बुद्धमत की तुलना में अधिक लोकप्रिय नहीं हुआ. इसके लिए निम्नलिखित कारण गिनाये जा सकते हैं.

ब्राह्मण धर्म से स्पष्ट पृथकता का अभाव

जैन धर्म का जन्म ब्राह्मण धर्म की फैली बुराइयों की प्रतिक्रिया का फल था तो भी जैन धर्म ने अपने आपको ब्राह्मण धर्म से स्पष्ट रूप से पृथक् नहीं किया. इसलिए आम जनता बड़ी संख्या में इसकी ओर नहीं झुकी.

प्रचार भावना का अभाव

इस धर्म में प्रचार भावना का अभाव था. जैन मत के प्रचारकों ने इस धर्म को फैलाने के लिए अधिक प्रयत्न नहीं किये. जैन संघ बौद्ध संघों की तरह सुसंगठित नहीं थे. महावीर जब तक जीवित रहे तब तक यह सम्प्रदाय संगठित रहा. उनके निर्वाण के बाद इस धर्म के अनुयायियों में उत्साह कम हो गया.

घोर तपस्या

अति हर वस्तु की बुरी है. जैन धर्म घोर तपस्या के जीवन पर अधिक बल देता था. इस धर्म में तपस्या करते-करते सूखकर कांटा हो जाना, कई दिनों तक अन्न और जल का ग्रहण न करना, तपस्या करते-करते प्राण त्याग देना अच्छा समझा जाता था. यह सब सर्वसाधारण लोग नहीं कर सकते थे. इसलिए घोर तपस्या के सिद्धांत ने जैन धर्म को अधिक लोकप्रिय नहीं होने दिया.

अहिंसा पर जोर

अहिंसा पर बहुत जोर देने से भी इस धर्म के प्रचार में रुकावट आई. उस समय के ब्राह्मण एवं क्षत्रिय लोगों के लिए अहिंसा का पालन करना सम्भव न था. वे क्रमशः बलि प्रथा का समर्थन तथा युद्ध में अपनी वीरता प्रदर्शन करना अपने जीवन का अनिवार्य अंग समझते थे. शुद्रों में भी अधिकांश लोग मांसाहारी थे. जबकि जैन लोगों ने पानी छानकर पीना एवं मुंह पर पट्टी बांधकर चलना जैसे कार्य किये. आम व्यक्ति के लिये इस हद तक अहिंसा के सिद्धान्त का पालन करना कठिन था. इसलिए केवल वैश्य वर्ण के लोगों ने ही बड़ी संख्या में इस धर्म को अपनाया.

अधिक राजकीय सहायता का न मिलना

जैन धर्म का अधिक लोकप्रिय न होने का एक कारण यह भी था कि इसे बौद्ध धर्म की तरह अनेक शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं का संरक्षण नहीं मिल सका. जब तक महावीर जीवित रहे तब तक जैन धर्म अंग, अवन्ति, मगध, मल्‍ल ओर लिच्छिवी राज्यों तक ही सीमित रहा. उनकी मृत्यु के बाद भी कुछ राज्यों का आश्रय जैन धर्म को मिलता रहा. अजातशत्रु के उत्तराधिकार उदायिन ने भी इस धर्म को अपनाया था. बाद की एक परम्परा के अनुसार कर्नाटक में जैन धर्म को बढ़ाने का श्रेय चन्द्रगुप्त मौर्य को दिया जाता है. किन्तु दूसरे स्रोतों से इस की पुष्टि नहीं होती. अजातशत्रु, उदायिन और कलिंग के राजा खारवेल आदि, राजाओं की सहायता का काल बहुत थोड़ा ही रहा.

पाटलिपुत्र में एक परिषद् को असफलता

महावीर की मृत्यु के 200 वर्षों बाद मगध में एक भयंकर अकाल पड़ा जो बारह वर्षों तक चलता रहा. इसलिए जीवन रक्षा के लिए अनेक जैन आचार्य दक्षिण भारत में चले गए. अकाल समाप्त होने पर जब यह लोग मगध लौटकर आये तब स्थानीय जैनों से उनका मतभेद हो गया. दक्षिण में वापस आए लोगों ने दावा किया कि अकाल के दिनों में भी उन्होंने धार्मिक नियमों का वहां पूरी तरह पालन किया है. जबकि मगध में बाकी जैन लापरवाह हो गए हैं. इन मतभेदों को दूर करने के लिए पाटलिपुत्र में एक परिषद् का आयोजन किया गया. दक्षिण से वापस आये जैनियों ने इस सभा का बहिष्कार किया तथा उसके निर्णयों को नहीं माना. इससे जैन धर्म में फूट बढ़ती चली गई. मगध के जैनियों ने अपने को श्वेताम्बर और दक्षिण के जैनियों ने अपने आपको दिगंबर कहना शुरू कर दिया. दिगंबर नग्न मूर्तियों की पूजा करते हैं तथा इनके मुनि भी नग्न रहते हैं. ये लोग कट्टर और पुराने सिद्धांतों का पालन करते हैं. दूसरी ओर, श्वेताम्बर अपनी मूर्तियों को श्वेत वस्त्र पहनाते हैं तथा इनके मुनि भी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, ये स्वयं को पार्श्वनाथ के अनुयायी समझते हैं. यह दिगम्बरों की तरह अधिक कठोर जीवन एवं तपस्या में विश्वास नहीं रखते. जैन धर्म के विभाजन ने उसकी लोकप्रियता को कम कर दिया.

बौद्ध धर्म के शीघ्र फैलने के कारण पर प्रकाश डालें.

Highlight the reasons for the rapid spread of Buddhism. (250 words)

उत्तर :-

बौद्ध धर्म का फैलाव बड़ी तेजी से हुआ. इसके अनुयायियों की संख्या सर्वत्र बड़ी तेजी से बढ़ी. यह धर्म भारत की सीमाओं में नहीं बंधा रहा बल्कि दूसरे देशों में भी फैला. भारतीय धर्मों के इतिहास में इसे एक प्रकार की क्रांति कहना अनुचित न होगा. इस धर्म की शिक्षाएं कर्मकाण्ड से हट कर सरल तथा जनता की भाषा में ही कही गई. जाति-पाति एवं लिंग के आधार पर भेदभाव का यह धर्म विरोधी था. भगवान् बुद्ध के प्रभावशाली व्यक्तित्व एवं जीवन का जनता पर बहुत प्रभाव पड़ा. बौद्ध धर्म के शीघ्र फैलने के कारण निम्न थे –

हिन्दू धर्म में फैली बुराइयाँ

उस समय ब्राह्मण धर्म में अनेक बुराइयाँ थीं. ऊँच-नीच की भावना, कर्मकांड, बड़े-बड़े यज्ञ, बलि एवं खर्चीले धार्मिक उत्सवों के कारण आम लोगों में हिन्दू धर्म के प्रति श्रद्धा नहीं रही . बौद्ध धर्म ने ब्राह्मणों की विशेष स्थिति का विरोध किया. जाति-पाति के भेदभाव की निंदा की तथा स्त्री और पुरुष को समान अधिकार देते हुए सभी को संघों में प्रवेश की आज्ञा दी. इससे सभी साधारण लोग इस धर्म के प्रति आकर्षित हुए.

मगध राज्य का ब्राह्मणों द्वारा तिरस्कार

भारत के जिन भागों में वैदिक प्रथाओं का प्रचलन नहीं था. उन प्रदेशों के लोगों ने बौद्ध धर्म को बड़े उत्साह एवं जोश से स्वीकार कर लिया मगध राज्य को ब्राह्मण धर्म के ठेकेदार तिरस्कार की नजर से देखते थे. बौद्ध धर्म कट्टर ब्राह्मणों का विरोधी था. इसलिए मगध के लोगों ने ऐसे धर्म को स्वीकार करना अपना सौभाग्य सभझा जो ब्राह्मणों के अधिकार और श्रेष्ठता को चुनौती दे रहा था. मगध को पवित्र आर्यवर्त (आधुनिक उत्तर प्रदेश) से बाहर समझा जाता था. बौद्ध धर्म के प्रचारकों ने ब्राह्मणों के इस गलत विचार और अंध-विश्वास का विरोध किया. परिणामस्वरूप मगध की जनता से बौद्ध धर्म को स्वीकार करने के साथ-साथ इसे फैलाने में हृदय से मदद दी. पुरानी परम्परा आज भी मौजूद है : उत्तरी बिहार के लोग अपने यहाँ के मृतक का दाह-संस्कार गंगा के दक्षिण अर्थात् मगध में करना पसंद नहीं करते.

बौद्ध धर्म की शिक्षाएं या उपदेश जनभाषा में

ब्राह्मण धर्म के सभी प्रमुख ग्रंथ संस्कृत में थे तथा ब्राह्मण लोग सभी धार्मिक क्रियाओं में इसी भाषा का प्रयोग करते थे. साधारण जनता संस्कृत भाषा को न तो बोलती थी और न समझ सकती थी. उनकी भाषा तो पाली थी. उधर दूसरी ओर बौद्ध धर्म के सभी उपदेशों का प्रचार जनता की भाषा पाली में ही किया गया. इस भाषा की सभी लोग समझ सकते थे. इससे बौद्ध धर्म का प्रचार शीध्र हो सका.

सिद्धांतों और शिक्षाओं की सरलता

गौतम बुद्ध ने जो भी सिद्धांत और शिक्षाएं जनता के सामने रखी वह बहुत जटिल और कठोर नहीं थी. उन्होंने आम बातों को तर्क के आधार पर जनता के सामने रखा. इन सभी सिद्धांतों को जनता बड़ी आसानी से समझ सकती थी. संसार दु:खों का घर है और दु:खों से छुटकारा पाने एवं निर्वाण को प्राप्त करने के लिए अष्टांग मार्गों को अपनाने के लिए बुद्ध ने जोर दिया. मध्यम मार्ग और नैतिकता के नियम आदि सरल शिक्षाओं को सभी लोगों ने सहज रूप से अपनाना शुरू कर दिया.

गौतम बुद्ध का व्यक्तित्व

गौतम के आदर्श व्यक्तित्व ने इस धर्म के प्रचार में बड़ी सहायता दी. उन्होंने राजघराने के सुखों को लात मारी थी. बुद्ध ने दुराचरण का सामना सदाचरण तथा घृणा का सामना प्यार से किया. अगर किसी व्यक्ति ने उन्हें गालियां तक भी दीं तो भी वे अपने स्वभाव में क्रोध नहीं लाये. कहा जाता है कि एक बार एक अज्ञानी व्यक्त ने उन्हें गालियाँ दीं. बुद्ध शान्त होकर चुपचाप उन्हें सुनते रहे. जब उस व्यक्ति का गालियाँ देना बन्द हुआ तो बुद्ध ने उससे पूछा: “मेरे पुत्र, यदि कोई दान को स्वीकार नहीं करता तो उस दान का क्या होगा?” उस व्यक्त ने उत्तर दिया, “यह दान देने के इच्छुक व्यक्ति के पास ही रहेगा.” तब गौतम बुद्ध ने कहा, “मेरे पुत्र, मैं तुम्हारी गालियों को स्वीकार नहीं करता.” दया की मूर्ति बुद्ध ने सभी का हृदय छू लिया. वह शूद्र-ब्राह्मण स्त्री-पुरुष को समान समझते थे. उनकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं था.

जाति-भेद और ऊँच-नीच के विरोधी

गौतम बुद्ध ने उस समय के सामाजिक वर्ण भेद को नहीं माना. उन्होंने जाति-पाति के बन्धन काट डाले. सभी के लिए निर्वाण का मार्ग खोल दिया. बौद्ध धर्म के ग्रन्थों का अध्ययन और धार्मिक स्थानों के दर्शन शूद्र कर सकते थे. निम्न वर्ण के लोगों मे बौद्ध धर्म को वरदान समझकर अंगीकार कर लिया.

संघ तथा विहारों की स्थापना

संघ व्यवस्था और विहारों ने भी बौद्ध धर्म को शीघ्र फैलाने में मदद दी. संध में हर किसी को जाति या लिंग के भेदभाव के बिना शामिल होने को आज्ञा दी. इन विहारों में रहने वाले सभी भिक्षुओं को सादगी और सदाचरण से रहने को सौगन्ध खानी पड़ती थी. इन विहारों में शिक्षा का भी प्रबंध था. यहाँ दूर-दूर से विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करने आते थे. गौतम बुद्ध के विचार, सिद्धान्त दर्शन का प्रचार भी दूर-दूर तक फैलता गया.

राज्यों द्वारा संरक्षण

बौद्ध धर्म का शीघ्र एवं तीव्र गति से दूर-दूर तक फैलने का कारण उसे राज्याश्रय प्राप्त होना भी था. बुद्ध निर्वाण के 200 साल बाद प्रसिद्ध मौर्य सम्राट अशोक ने कलिंग विजय के बाद बौद्ध धर्म स्वीकार किया. उसका भारत के अधिकांश भागों पर अधिकार था. उसने न केवल बौद्ध धर्म को स्वीकार ही किया बल्कि इसके प्रचार के लिए प्रचारकों को भी भेजा. अशोक के बाद सम्राट कनिष्क (कुशाण वंश का प्रसिद्ध शासक) ने भी इस धर्म के प्रचार के लिए बहुत कोशिश की. उसने बौद्ध धर्म के दोनों सम्प्रदायों में एकता स्थापित करने के लिए सम्मेलन बुलाया. उसने मध्य एशिया में इस धर्म को फैलाने में सहायता दी .

भिक्षुओं का मोक्ष

बौद्ध भिक्षुओं ने बड़े जोश और सच्ची लगन से इस धर्म का प्रचार किया. उन्होंने अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों को जनता तक पहुंचाया. बौद्ध धर्म आज भी कई देशों में जीवित है जैसे श्रीलंका, बर्मा, तिब्बत, चीन और जापान परन्तु यह धर्म अपनी जन्मभूमि भारत में प्राय: लुप्त हो गया है. हमारे देश में इसके अनुयायियों की संख्या बहुत ही कम है.

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