State of India’s Birds 2020
गुजरात के गाँधीनगर में चल रहे प्रवासी प्रजाति संधि (Convention on Migratory Species) के पक्षकारों के 13वें संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के अवसर पर पिछले दिनों 10 संस्थानों एवं अनेक वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार अनुसंधान पत्र निर्गत किया गया जिसे ‘State of India’s Birds 2020’ (SoIB) शीर्षक दिया गया है. इस अनुसंधान पत्र के किये आँकड़ों का सिटीजन साइंस ऐप “eBird” के माध्यम से किया गया जिसके अन्दर 15,500 सिटीजन वैज्ञानिकों ने एक करोड़ प्रविष्टियाँ कर रखी हैं. इस ऐप की होस्टिंग की कॉर्नेल विश्वविद्यालय की पक्षी विज्ञान प्रयोगशाला (Cornell University’s Laboratory of Ornithology) करती है.
मुख्य निष्कर्ष
- जिन 867 प्रजातियों का अध्ययन किया गया है उनमें से 50% प्रजातियों की जनसंख्या दीर्घकाल में तथा 146 प्रजातियों की संख्या अल्पकाल में ढलान की ओर होगी.
- आखेट पक्षियों जैसे – ईगल, बाज, चील आदि, प्रवासी सामुद्रिक पक्षियों तथा विशेष बस्तियों में रहने वाले पक्षियों की जनसंख्या पिछले दशकों में सबसे अधिक दुष्प्रभावित हुई है.
- भारत के पश्चिमी घाट विश्व के सबसे बड़े जैव विविधता के गढ़ माने जाते हैं, परन्तु यहाँ पक्षियों की संख्या 2000 के बाद 75% घट चुकी है.
- किन्तु भारत का राष्ट्रीय पक्षी मोर अब पहले से अधिक हो गये हैं और इनका निवास क्षेत्र भी पहले से अधिक विस्तृत हो गया है.
- राष्ट्रीय स्तर पर गौरैयों की संख्या भी जस-के-तस बनी हुई है. यद्यपि शहरों में इनमें अच्छी-खासी कमी देखी जाती है.
- मोर, गौरैया, कोयल, तोते और दर्जिन चिड़िया जैसी 126 प्रजातियों की संख्या बढ़ने की आशा है क्योंकि ये पक्षी मानव बस्तियों में भी अपना सामंजस्य बैठा लेते हैं.
वर्गीकरण
- अनुसंधान पत्र में 101 पक्षी प्रजातियों को भारत के लिए संरक्षण की दृष्टि से “अत्यंत चिंता के योग्य” (High Conservation Concern) वर्ग में रखा गया है.
- 319 प्रजातियों को संरक्षण की दृष्टि से “सामान्यतः चिंतनीय” (Moderate Conservation Concern ) वर्ग में डाला गया है.
पक्षियों की संख्या क्यों कम हो रही है?
अनुसंधान पत्र बताता है कि निम्नांकित कारणों से पक्षी घटते जा रहे हैं –
- मानवीय गतिविधि
- कीटनाशक जैसे विषाक्त पदार्थों की व्यापक उपस्थिति
- पक्षियों के व्यापार के लिए उनका आखेट और उनका जाल से फंसाया जाना.
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