[संसार मंथन 2021] मुख्य परीक्षा लेखन अभ्यास – Defense | Gs Paper 3/Part 01

Sansar LochanGS Paper 3 2021 Defense

Based on the Daily Current Affairs of 02 Jan, 2021. From this link you can visit all questions of 1st Jan, 2021 – SMA Assignment 51 Click here

Q3. भारत का रक्षा उत्पादन डीआरडीओ की नियति से निकटता से जुड़ा हुआ है। डीआरडीओ के प्रदर्शन को संबल देने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए हालिया कदमों पर चर्चा तथा समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

India’s defence production is closely linked to DRDO’s fate. Discuss and critically examine the recent steps taken by government to bolster DRDO’s performance?

क्या न करें

❌रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर भारत का नया नारा जो बुलंद किया गया है, उसकी विस्तार से चर्चा नहीं कीजिये क्योंकि उसमें निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने की बात कही गई है, जिसका DRDO के विकास का कोई लेना-देना नहीं है.

❌प्रश्न में समालोचनात्मक शब्द पर ध्यान नहीं देने की धृष्टता न करें.

क्या करें

✅प्रश्न के पहले कथन को प्रमाणित करें.

✅प्रयास कीजिए कि सरकार की क़दमों की चर्चा कीजिए, उसके बाद समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिए. 

✅हमारा निष्कर्ष छोटा है. उसको अपने शब्द से और बड़ा करें.

उत्तर

प्रश्न का पहला भाग

देश की अंतरिक्ष शक्ति को बढ़ाने में डीआरडीओ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. DRDO ने हमेशा अत्याधुनिक और महत्त्वपूर्ण रक्षा प्रौद्योगिकियों एवं प्रणालियों में आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त करने के लिये भारत को सशक्त बनाने का प्रयास किया. इस संस्थान ने तीनों सेवाओं द्वारा निर्धारित आवश्यकताओं के अनुसार देश के सशस्त्र बलों को अत्याधुनिक हथियार प्रणालियों और उपकरणों से लैस करने में तत्परता दिखाई. डीआरडीओ द्वारा बनाए गए कई बेहतरीन रक्षा उत्पादों को सशस्त्र सेनाओं को सौंपा गया है.

यह देश की सुरक्षा सेवाओं के लिये स्टेट-ऑफ-द-आर्ट सेंसर (state-of-the-art sensors), शस्त्र प्रणाली (weapon systems), प्लेटफॉर्म और संबद्ध उपकरणों का उत्पादन, डिज़ाइनिंग, विकास और नेतृत्व प्रदान करता है. भारत ने DRDO की ही सहायता से स्वदेशी पृथ्वी, त्रिशूल, आकाश और नाग मिसाइलों का सफलताफूर्वक परीक्षण किया. 

DRDO लगातार रक्षा प्रणालियों के डिज़ाइन एवं विकास के साथ-साथ तीनों क्षेत्रों के रक्षा सेवाओं की आवश्यकताओं के अनुसार विश्व-स्तर की हथियार प्रणाली एवं उपकरणों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है.

डीआरडीओ सैन्य प्रौद्योगिकी के विभिन्न क्षेत्रों में काम कर रहा है, जिसमें वैमानिकी, शस्त्र, युद्धक वाहन, इलेक्ट्रॉनिक्स, इंस्ट्रूमेंटेशन, इंजीनियरिंग प्रणालियाँ, मिसाइलें, नौसेना प्रणालियाँ, उन्नत कंप्यूटिंग, सिमुलेशन और जीवन विज्ञान शामिल है.

प्रश्न का दूसरा भाग

डॉ. कलाम ने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास और संचालन में प्रमुख भूमिका निभाई. 2020-21 बजट में रक्षा क्षेत्र के लिए 4,71,378 करोड़ रुपये आवंटित किए गए. सरकार ने रक्षा पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की सीमा को वर्तमान 49 प्रतिशत से बढ़ाकर 74 प्रतिशत करने की घोषणा की. घरेलू रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए देश भर में DRDO प्रयोगशालाओं की दक्षता में सुधार के उपाय सुझाने के लिए दिल्ली IIT के निदेशक प्रोफेसर वी. रामगोपाल राव की अध्यक्षता में एक समिति बनाई गई. डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (DRDO) की देश भर में 50 से अधिक प्रयोगशालाएँ हैं जो रक्षा तकनीकों को विकसित करने में लगी हैं. डीआरडीओ प्रयोगशालाओं के कामकाज में सुधार के लिए सरकार द्वारा कई उपाय किए जा चुके हैं. भारत को रक्षा विनिर्माण का केंद्र बनाने के लिए सरकार ने व्यापक रोडमैप की रूपरेखा तैयार की है और घरेलू उद्योग को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत पहल कर रही है. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने घोषणा की थी कि भारत 2024 तक 101 हथियारों और सैन्य मंचों जैसे परिवहन विमान, हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों, पारंपरिक पनडुब्बियों, क्रूज मिसाइलों और सोनार प्रणालियों के आयात पर रोक लगा देगा. घरेलू रक्षा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के द्वारा रक्षा क्षेत्र में घोषित सुधारात्मक उपाय सैन्य क्षेत्र में उत्पादन और अनुसंधान को बढ़ावा देने में सहायक होंगे. सरकार ने DRDO से जुड़ाव वाले अतिरिक्त शैक्षणिक एवं अनुसंधानों के सृजन को बढ़ावा दिया है क्योंकि ऐसे संस्थान न केवल वर्तमान कार्यबल के क्षमता बढ़ा सकते हैं, अपितु रक्षा क्षेत्र की बढ़ती हुई माँगों को पूरा करने के लिए भविष्य में काम आने वाले प्रतिभा के एक सुदृढ़ पाइपलाइन का निर्माण कर सकेंगे.

प्रश्न का तीसरा भाग

जब भारत स्वतंत्र हुआ था तो उस समय रक्षा उत्‍पादन के लिए भारत में बहुत सामर्थ्‍य था. भारत जैसा सामर्थ्‍य बहुत कम देशों के पास था. लेकिन भारत का दुर्भाग्‍य रहा कि दशकों तक इस विषय पर उतना ध्‍यान नहीं दिया गया जितना देना चाहिए और कालांतर में अनेक देश पिछले 50 साल में हमसे बहुत आगे निकल गए. DRDO के प्रति सरकार की सुस्त राजस्व प्रतिबद्धताओं के कारण भविष्य की प्रौद्योगिकी से जुड़ी कई प्रमुख परियोजनाएँ अधर में पड़ी हैं. DRDO महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में अपर्याप्त जनशक्ति के चलते सशस्त्र बलों के साथ उचित तालमेल की कमी से भी ग्रस्त है. लागत में वृद्धि और परियोजना कार्यों में देरी ने DRDO की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाई है. DRDO की स्थापना के 60 वर्ष बाद भी भारत अपने रक्षा उपकरणों का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है

DRDO को एक दृढ़ संगठन में पुनर्गठित किया जाना चाहिये. परियोजनाओं को पूरा करने में देरी पर कटौती करने के अतिरिक्त इसे एक लाभदायक इकाई बनाने के लिये संगठन की एक वाणिज्यिक शाखा स्थापित करने की जानी चाहिए.

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