अंग्रेजी शासन के दौरान स्त्री-शिक्षा की स्थिति एवं इसके प्रसार हेतु किये गये प्रयासों पर अपना मत प्रकट करें.
उत्तर :-
यद्यपि अंग्रेजी शासन के दौरान सरकार ने प्राथमिक, माध्यमिक एवं उच्च शिक्षा के प्रचार के लिए प्रयास किये परन्तु प्रारम्भ में स्त्री-शिक्षा की अवहेलना ही की गई. उनकी शिक्षा की व्यवस्था पर न तो सरकार ने ध्यान दिया और न ही इसके लिए धन की व्यवस्था की. इसका प्रधान कारण यह था कि 18वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक भारतीयों की मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया था. वे रुढ़िवादी थे तथा स्त्री-शिक्षा के कट्टर विरोधी भी थे. अतः अपने शासन के प्रारंभिक काल में ही कंपनी सरकार भारतीयों का प्रतिरोध झेलना नहीं चाहती थी. धीरे-धीरे 19वीं शताब्दी के मध्य चरण से जब भारत में अँगरेजी शिक्षा का प्रसार हुआ तब भारतीय पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति के संपर्क में आए. उनलोगों ने स्त्री-शिक्षा के महत्त्व को समझकर अपने रूढ़िवादी विचारों में परिवर्तन किया. इसके बावजूद, चूँकि सरकार के लिए स्त्री-शिक्षा की कोई विशेष उपयोगिता नहीं थी, इसलिए उसने इसके विकास पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया. स्त्री-शिक्षा के प्रसार का वास्तविक कार्य 19वीं-20वीं शताब्दी के धर्म एवं समाज सुधार आंदोलन के नेताओं ने किया.
इस दिशा में सबसे पहला भारतीय प्रयास (ईसाई मिशनरी अलग से स्त्री-शिक्षा का प्रसार कर रहे थे) ब्रह्म समाज ने किया. राममोहन राय ने स्त्रियों की स्थिति सुधारने के लिए उन्हें शिक्षित करने का प्रयास किया. 1843 ई० में देवेंद्रनाथ ठाकुर ने भी स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने का प्रयत्न किया. पंडित ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने इस क्षेत्र में सराहनीय प्रयास किए. स्कूल निरीक्षक की हैसियत से उन्होंने करीब 25 बालिका विद्यालयों की स्थापना की जिनमें अनेक उनके खर्च पर ही चलती थी. 1849 ई० में कलकत्ता में बेथुन स्कूल की स्थापना हुई जिसने नारी-शिक्षा के प्रसार में सराहनीय कार्य किए. बंगाल के अतिरिक्त महाराष्ट्र में भी नारी-शिक्षा के प्रसार के लिए कदम उठाए गए. 1848 ई० में “छात्र साहित्यिक ओर वैज्ञानिक समिति” की स्थापना की गई . इसने बालिकाओं की शिक्षा के लिए स्कूल खोलने का प्रयास किया. फलत:, 1851 ई० में ज्योतिबा फूले और उनकी पत्नी ने पुणे में एक बालिका विद्यालय खोला. आगे चलकर प्रार्थना समाज, रामकृष्ण मिशन जैसी संस्थाओं ने भी स्त्री-शिक्षा के लिए कार्य किए. स्त्री-शिक्षा की बढ़ती प्रगति से सरकार का भी ध्यान इस तरफ आकृष्ट हुआ. डलहौजी ने बालिकाओं को शिक्षित करने के उपाय किए. “वुड डिस्पैच” में इस बात की चर्चा की गई. हंटर कमीशन, सैडलर आयोग इत्यादि ने स्त्री-शिक्षा को बढ़ावा देने का सुझाव दिया. फलतः, बालिकाओं के लिए अनेक स्कूल एवं कॉलेज खुले. इसके बावजूद ब्रिटिश भारत में लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में शिक्षितों का अनुपात बहुत कम ही था. वर्तमान समय में इस अनुपात में वृद्धि हुई है.