Lord Wellesley एक बहुत बड़ा साम्राज्यवादी था. साम्राज्यवादी से हमारा तात्पर्य है कि अपने साम्राज्य को फैलाने वाला. यानी Lord Wellesley चाहता था कि कम्पनी का शासन (East India Company) पूरे भारत में हो. क्या आपको पता है कि Lord Wellesley कब से कब तक भारत का Governor General रहा? नहीं पता तो पता कीजिए, यही सब चीजें तो परीक्षा में आपसे पूछी जाती हैं. खैर, मैं बताता हूँ. Lord Wellesley भारत का गवर्नर जनरल 1798 से 1805 तक रहा. कम्पनी के शासन के विस्तार के लिए उसने एक बेहद सरल तरीका निकाला और वह था सहायक संधि (Subsidiary Alliance). आज इस पोस्ट में हम इसी के विषय में चर्चा करेंगे कि आखिर क्या है यह सहायक संधि?
सहायक संधि
आपको बता दूँ कि Lord Wellesley सहायक संधि को प्रयोग में लाने वाले भले ही प्रथम ब्रिटिश हो पर इससे पहले भी कोई भारत में सहायक संधि को व्यवहार में लाया था. वह था फ़्रांसिसी गवर्नर डूप्ले. सहायक संधि के अंतर्गत जो भारतीय नरेश होते थे, रजवाड़ा इत्यादि ….उन्हें कंपनी द्वारा सैनिक सहायता दी जाती थी और बदले में उनसे धन लिया जाता था. Give and take policy. Lord Clive और Cornwallis ने भी Subsidiary Alliance System का सहारा लिया था पर इस व्यवस्था को सुनिश्चित और व्यापक रूप देने का श्रेय पूर्ण रूप से Wellesley को ही जाता है.
Subsidiary Alliance की योजना बनाने के बाद वेलेस्ली ने इसे व्यावहारिक स्वरूप प्रदान किया और कंपनी की सीमा का विस्तार किया. कुछ राज्यों ने तो इस संधि को खुद अपनाया, परन्तु कुछ राज्यों ने पराजित होकर इसे स्वीकार किया.
सहायक संधि के अंतर्गत शर्तें
- सहायक संधि को accept करने वाला रजवाड़ा/राज्य/राजा/देशी रियासत अपनी foreign policy को company को सौंप देता था. इसका मतलब यह हुआ कि वह बिना कंपनी की अनुमति के किसी अन्य राज्य से न तो युद्ध कर सकता था और न ही कोई संधि कर सकता था.
- रजवाड़ा/राज्य/राजा कंपनी की अनुमति के बिना वह अंग्रेजों के अतिरिक्त किसी अन्य यूरोपीय या अंग्रेजों के शत्रुओं को पनाह, नौकरी नहीं दे सकता था. यहाँ तक कि उन्हें दरबार में आमंत्रित करना भी मना था.
- इस संधि को स्वीकार करने वाला देशी रियासत अपनी सुरक्षा के लिए कम्पनी के द्वारा दी गई सेना की एक टुकड़ी रखती थी जिसका खर्च वह खुद वहन करेगी. सेना के खर्च के लिए नकद वार्षिक धनराशि या राज्य का कुछ इलाका कम्पनी को देना पड़ता था.
- देशी रियासत अपने दरबार में एक अंग्रेज़ रेजिडेंट रखेगी और उससे समय-समय पर शासन-सम्बन्धी सलाह लेते रहेगी.
- इसके बदले में देशी रियासत को क्या मिलता था? तो इसका जवाब है कि एक guarantee मिलती थी….किस बात की guarantee भाई? East India Company ऊपर दी गई शर्तों के बदले सहायक संधि स्वीकार करने वाले राज्य की बाह्य आक्रमणों से सुरक्षा की गारंटी लेती थी और देशी शासकों यह भरोसा दिलाती थी या यूँ कहें कि उन्हें आश्वासन देती थी कि कंपनी राज्य के आंतरिक शासन में हस्तक्षेप नहीं करेगी. पर सहायक संधि को स्वीकार करने वाले राज्य की विदेश-नीति पर कम्पनी का सीधा नियंत्रण स्थापित हो जाता था. इसलिए वेलेस्ली की इस चाल ने Subsidiary Alliance System को accept करने वाले राज्यों को कंपनी का हितैषी बना डाला.
अब हम सहायक संधि से किसे कितना फायदा हुआ और कितना नुकसान, इसकी चर्चा करेंगे. यदि देखा जाए तो कंपनी को इस संधि से अनेक लाभ हुए. एक तो इसके जरिये कम्पनी का साम्राज्य-विस्तार हुआ और दूसरी तरफ देशी राज्यों को अपने indirectly control में लेकर पंगु बना दिया. तो संक्षेप में यदि कहूँ तो इस संधि से कंपनी को सिर्फ फायदे ही फायदे मिले और देशी रियासतों को नुकसान ही नुकसान. चलिए इसे prove करते हैं . . .
कंपनी को Subsidiary Alliance से फायदे
- East India Company को सहायक संधि से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि इसके द्वारा सभी देशी राज्यों को एक-दूसरे से अलग कर दिया गया. यानी अब तो न कोई एक राज्य दूसरे राज्य से दोस्ती कर सकता था और न ठीक से लड़ाई. सभी पर कंपनी का नियंत्रण हो गया. अंग्रेजों के खिलाफ अब कोई राज्य आवाज़ नहीं उठा सकता था क्योंकि उन्हें कंपनी से खुद सैन्य सुरक्षा मिल रही थी. इसी कमजोरी का लाभ उठाकर कंपनी ने एक-एक कर सभी राज्यों को अपने प्रभाव में ले लिया.
- देशी राज्यों के ही व्यय पर देशी राज्यों में एक विशाल संगठन कर लेने के पीछे भी कंपनी का अपना स्वार्थ ही था. राज्यों की सुरक्षा तो दूर, वह विशाल सेना का उपयोग अपने शत्रुओं को नष्ट करने में करती थी.
- सहायक संधि की सहायता से अंग्रेजों ने फ़्रांसिसी प्रभाव को भारत में आने से रोका. संधि के अनुसार फ़्रांसिसियों को न तो दरबार में प्रवेश करने को मिला, न कोई नौकरी मिली और न ही उनसे सैन्य मदद किसी ने मांगी. धीरे-धीरे फ़्रांसिसियों को भारतीय राजनीति से संन्यास लेना पड़ा.
- इस संधि के द्वारा कंपनी को रेजिडेंटों (English Residents) के माध्यम से देशी रियासतों के प्रशासन पर अपना प्रभाव स्थापित करने में भी मदद मिली. राज्यों के बीच आपसी विवादों को अपने निजी लाभ के अनुसार मोड़ देने का कंपनी ने भरपूर फायदा उठाया.
रियासतों को Subsidiary Alliance से नुकसान
- देशी रियासतें कम्पनी की सर्वोच्चता स्वीकार कर अपनी स्वतंत्रता गँवा बैठीं.
- इन रियासतों को अंग्रेजी रेजिडेंट की सलाह के अनुसार ही निर्णय लेना ठीक लगने लगा. इससे उनकी अपने निर्णय लेने की क्षमता कमजोर होती चली गई. धीरे-धीरे वे अंग्रेज़ों के हाथ की कठपुतली बन गए.
- देशी रियासतों को कंपनी के सेना का, रेजिडेंट का खर्च वहन करना पड़ता था. सहायक संधि के चलते देशी रियासतें आर्थिक रूप से कमजोर पड़ गईं.
- जब देशी रियासतें कंपनी को धन देने में असमर्थ हो गयीं, तो संधि के अनुसार कंपनी ने जमीन हथियाना शुरू कर दिया.
इस प्रकार सहायक संधि से जहाँ ब्रिटिश हितों की सुरक्षा हुई वहीं देशी रियासतों और उनकी प्रजा को इसके दुष्परिणामों का सामना करना पड़ा.
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