सूफी मत – सूफी विचारधारा (Sufism in Hindi)

Sansar LochanHistory, Medieval History

sufism

भारत में आने से पहले सूफी मत ने स्वयं को पूर्ण रूप से विकसित कर लिया था. बारहवीं सदी में भारत में आने से पूर्व तक इसमें प्रार्थना-उपवास, मन्त्र-पूजा, पीर-मुरीद आदि सभी परम्परायें विकसित हो चुकी थीं. चलिए जानते हैं सूफी मत भारत में कब आया और इसके प्रवर्तकों कौन थे? इस आर्टिकल में हम सूफी सिलसिले (Sufi Orders) के बारे में (Sufism in Hindi) भी जानेंगे; जैसे – चिश्ती सिलसिला, सुहारवर्दी, कादिरी (Qadiriyya), शत्तारी (Shattari Silsila), कुब्रबिया (Kubrawiyya), फिरदौस (Firdausi), नक्शबंदी (naqshbandi) सिलसिला आदि.

सूफी मत की नींव

प्रारम्भ में सूफी लोग (आठवीं व नवीं सदी में) अरब में दिखाई पड़े और लम्बे समय तक उनकी पहचान उनके पहनावे ऊनी वस्त्रों से की जाने लगी. साधारणतः सफ का अर्थ ऊन या भेड़-बेकरी के ऊनी कपड़े से होता है जो साफ से बने वस्त्र पहनता था, वह सूफी कहलाता था.इब्नुलअरबी प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने सूफी मत में महत्त्वपूर्ण सिद्धांत वहदत्त-उल-वुजूद (wahdat ul wajood) दिया. जिसका अर्थ है, ईश्वर सर्वव्याप्त है व सभी में उसकी झलक है, उससे कुछ भी अलग नहीं है, सभी मनुष्य समान हैं. सूफियों के निवास स्थान खानकाह कहलाते थे जबकि उनकी वाणी महफूजात (ग्रन्थ) में थी.

सैयद मुहम्मद हाफिज के मतानुसार ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (1192 ई. में मोहम्मद गौरी के साथ आये) ने भारत में सूफी मत का प्रारम्भ किया.

आइने अकबरी

आइने अकबरी में अबुल फजल ने 14 सूफी सिलसिलों का वर्णन किया है जो निम्न हैं –

      1. चिश्ती
      2. सुहरावर्दी
      3. कादिरी
      4. शत्तारी
      5. हबीबी
      6. तफूरी
      7. जुनैदी
      8. करबी
      9. सकती
      10. इयादी
      11. तूसी
      12. दुबरी
      13. अधमी
      14. फिरदौसी

सूफीवाद की तीन सीढियाँ

सूफीवाद की तीन सीढ़ियाँ ईश्वर में लीन होने की –

  1. फ़नाफिस्सेख (अपने पीर में समा जाना)
  2. फना किर्रसूक (अपने रसूल में समाना)
  3. फनाफिल्लाह  (अपने आपको ईश्वर में समा देना)

फरीदुद्दीन की सात घाटियाँ

सूफी कवी संत फरीदुद्दीन अत्तार ने कहा ईश्वर को प्रेम से पा सकते हैं जिनके लिए इन्होने सात घाटियों को पार करना आवश्यक बताया जो निम्न हैं –

  1. खोज घाटी – यहाँ साधक को भौतिक वस्तुओं को त्याग देना चाहिए. साधक को परम ज्योति प्राप्त होने पर इसे छोड़ देना चाहिए.
  2. परम ज्योति स्पर्श – इस ज्योति को पाकर साधक अनंत घाटी की ओर जाता है. यहाँ साधक के रहस्यमयी जीवन का आरम्भ होता है.
  3. मारीफात घाटी – इस घाटी में साधक को सत्य का ज्ञान प्राप्त हो जाता है,
  4. अनासक्ति घाटी – इसमें साधक को ईश्वरीय प्रेम प्राप्त हो जाता है.
  5. आनंद घाटी – इसमें साधक ईश्वरीय सौन्दर्य को प्राप्त कर आनंद की अनुभूति होती है.
  6. कौतूहल घाटी – यह साधक की अंतर्दृष्टि का पुनः लोप हो जाता है व साधक अन्धकार में जाता मह्सूत करता है.
  7. हकीकत घाटी – इसमें साधक को आत्मा या परमात्मा की आत्मा में एकाकार हो जाता है. इस घाटी यात्रा को पूरा कर साधक इश्क हकीकी को प्राप्त हो जाता है.

SUFI ORDERS

चिश्ती सिलसिला

मुइनुद्दीन चिश्ती

इस सिलसिला (Chishti Order) का प्रवर्तक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती (1192 ई.) थे. ख्वाजा मुइनुद्दीन शुरुआत में लाहौर आया और बाद में अजमेर में बस गया. यहीं पर चिश्ती सिलसिले का प्रांरभ किया. इसके अन्य महत्त्वपूर्ण संतों में कुतुबुद्दीन बख्तियार काकों (12वीं व 13वीं सदी), फरीदुद्दीन मसूद गज-ए-शंकर (हरियाणा), शेख निजामुद्दीन औलिया (13वीं व 14वीं सदी), शेख अधी सेराज, नूर क़ुतुब आलम (पांडुओक), शेख हुसामुद्दीन मामिकपूरी, बुरहानुद्दीन गरीब और दक्षिण के हजरत गेसूदराज अजोधन (पंजाब) आदि प्रमुख थे.

भारत में चिश्ती सिलसिला अजमेर (राजस्थान), दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार, उड़ीसा, बंगाल व दक्षिण भारत में फैला. बाबा फरीद मसूद के काव्य गीत आदिग्रंथ में शामिल किये गए हैं. इसके प्रमुख शिष्य (शेख) हजरत निजामुद्दीन औलिया थे.

  • चिश्ती संत यौगिक क्रियाओं में, समाज सेवा में, अद्वैतवाद में विश्वास रखते थे.
  • चिश्ती संत धन संचय, शासक वर्ग के सम्पर्क में रहना, संन्यास परम्पराओं में विश्वास नहीं रखते थे.

निजामुद्दीन औलिया

सात सुल्तानों को देखने वाले बदायूँ में जन्म निजामुद्दीन औलिया महबूब-ए-इलाही ने अपना कर्मक्षेत्र दिल्ली के पास गयासपुर में बनाया. इनकी लोकप्रियता से परेशान हो गयासुद्दीन तुगलक ने इन्हें दिल्ली छोड़ देने का आदेश दिया जिस पर इन्होने “हुजूर दिल्ली दूर अस्त” कहा.

सुल्तान महमूद तुगलक ने इनकी इच्छा से विरुद्ध इनका मकबरा दिल्ली में बनवाया. औलिया संगीत में अत्यधिक रूचि रखते थे जिसके कारण इन पर मुकदमा चलाया गया. अमीर खुसरो औलिया के एक शिष्य थे.

सुहारवर्दी सिलसिला (Suhrawardiyya)

इस सिलसिले के संस्थापक जलालुद्दीन तबरीजी और बहाउद्दीन जकारिया थे. चिश्ती सिलसिले के विपरीत सुहारवर्दी आरामपसंद जीवन में विश्वास रखते थे. ये राजनीति में सक्रिय रूप से भाग लेते थे. सुहारवर्दियों का मानना था कि “यदि दिल निर्मल है तो धन के संचय और वितरण दोनों में दोष नहीं है”.

कादिरी सिलसिला

इसका संस्थापक सैय्यद मुहम्मद गिलानी (भारत में) थे. कादिर पन्थ के प्रसिद्ध संत मियाँ मीर (मीर मुहम्मद) थे. शाहजहाँ का पुत्र दाराशिकोह भी कादिरी मत को मानता थे.

इस पंथ के संस्थापक शाह अब्दुल्ला थे. इस पन्थ का मुख्य संत ग्वालियर के मुहम्मद गौस थे. वह हाजी हमीद हसन के शिष्य थे. गौस की रचित पुस्तकें “जवाहर-ए-खामशाह” व “खालिद-ए-मुखाजिन” हैं. इस मत की मान्यता है कि पीर या शेख अन्य संतों, पैगम्बरों – ईश्वर तक से सीधा सम्पर्क रखने में समर्थ है.

कुब्रबिया सिलसिला

इसके प्रवर्तक नज्मुद्दीन-अल-कुबरा थे. इसका प्रसार मात्र कश्मीर में ही रहा.

फिरदौस सिलसिला

यह भारत में अपने पैर नहीं पसार सका.

नक्शबंदी सिलसिला

इसके संस्थापक ख्वाजा बली बिल्ला थे. यह सबसे रुढ़िवादी सूफी संत थे. यह अकबर की उदार नीतियों का कड़ा विरोधी थे.

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